दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 24 अक्टूबर । जिले भर में मातर महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया। इस दौरान मातर पर यादव समाज के लोग अपने घरों से काछन निकले फिर दइहान पहुंचकर खोड़हर देव की पूजा-अर्चना किया। इस दौरान उन्होंने अखाड़ा कला के माध्यम अपने शौर्य का प्रदर्शन करने के साथ दांड़ खेलाकर गौधन को सोहई बांधे । अंत में प्रसादी के रूप में लोगों को खीर व दूध का वितरण किया गया।
गोवर्धन पूजा के बाद दूसरे दिन छत्तीसगढ़ में मातर तिहार का लोकपर्व मनाया जाता है। यह लोक पर्व यहां के मूल गोपालक समुदाय यादव जाति की अगुवाई में होता है। रंगबिरंगे परिधान में सजे यादव समाज के इस पर्व में पूरा गांव शामिल होता है। मातर तिहार लोक उत्सव के कार्यक्रम स्थल पर पूरा गांव एकत्रित होता है।
इस कार्यक्रम स्थल पर लोक देव के रूप में खोड़हर स्थापित किया जाता है। खोड़हर लकड़ी से बनाया जाता है। हल्की नक्काशी के साथ। यह खोड़हर लोक देव का प्रतीक है। इस लोकदेव में ही मातर का भाव समाहित है इस प्रतीक में यादव समुदाय की अटल आस्था है।
छत्तीसगढ़ के यादव समाज के मूल अस्त्र तेंदू का लाठी होता है। रंगबिरंगे परिधान में सजावट का अंग मयूर पंख की शोभा के साथ कौड़ी (समुद्री सीप की आकृति का) होता है। मानो कृष्ण कन्हैया पूरे गोप ग्वालों के साथ गाँव में उतर आये हो। सभी ग्रामवासी राऊत बन्धुओं की शौर्य और लोक सौन्दर्य की अगुवाई में सामने मड़ई को बलिष्ठ व्यक्ति लेकर चलता है, जो रुककर दौड़ता भी है, जो काफी चित्ताकर्षक होता है।
यादव समाज के वरिष्ठ नागरिक छत्तीसगढ़ी लोकगायक खुमान सिंह यादव ने बताया कि कार्तिक शुक्ल द्वितीय तिथि को छग में जगह जगह मातर तिहार उमंग व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन सुबह के समय यादव समाज के लोग नाचते एवं जोश भरे अंदाज में उमंग के साथ उछल उछल कर प्रेरक दोहा पारते हुए मातर ठौर पहुंचते है, जहां पर खोड़हर गड़ाकर इसकी पूजा की जाती है। साथ ही गौधन को सोहई बांधकर खोड़हर के चारों ओर घुमाया जाता है इसे छत्तीसगढ़ी में दांड़ खेलाना कहते है।
इस दौरान यादव समाज के लोग अखाड़ा कला के माध्यम से अपने शौर्य का प्रदर्शन भी करते हैं। दांड़ खेलाने पश्चात यादव समाज के लोग ठाकुर जोहारने चले जाते है। शाम को अपने घरों में अपने कुल देवी देवता की पूजा कर यादव समाज के लोग दोहा पारते निकलते है जिसे छत्तीसगढ़ी में काछन निकलना कहते हैं। श्री यादव ने बताया कि काछन निकलते समय इस प्रकार के दोहा पारे जाते हैं एक काछ काछंव रे भेड़ा, अऊ दूसर दिए ले माई। तीसर काछ काछंव रे भेड़ा, मोर देवी देवता के पड़े दुहाई।
इस तरह यादव समाज के लोग अपने अपने घरों से काछन निकलकर मस्ती भरे अंदाज में उमंग व जोश के साथ नाचते व दोहा पारते पुन: शाम को मातर ठौर पहुंचे जहां यादव समाज के लोगों द्वारा शौर्य कला प्रदर्शन उपरांत अंत में खीर, दूध आदि का प्रसादी के रूप में वितरण कर कार्यक्रम का समापन किया गया इस दौरान हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे।


