दुर्ग

​भारत माला परियोजना बना रहा है शिल्पग्राम थनौदवासियों के लिए आजीवन मुसीबत!
07-Jun-2025 3:33 PM
​भारत माला परियोजना बना रहा है शिल्पग्राम थनौदवासियों के लिए आजीवन मुसीबत!

कम हाइट का 12 फीट ऊंचा पुल बना ग्रामीणों की आजीविका और पहचान पर संकट,

 सरकार से ग्रामीणों की गुहार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

दुर्ग, 7 जून। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नजदीक स्थित ग्राम थनौद, जो राज्य भर में अपने उत्कृष्ट मूर्तिकला कार्य के लिए प्रसिद्ध है, आज एक बड़े संकट में घिर गया है। केंद्र सरकार की भारत माला परियोजना के तहत गांव के मुख्य मार्ग पर बनाए जा रहे महज 12 फीट ऊंचे पुल ने ग्रामीणों की वर्षों पुरानी जीवनशैली, रोजगार और पहचान को खतरे में डाल दिया है।

यह गांव छत्तीसगढ़ का गौरव रहा है। यहां के मूर्तिकारों ने जो विशाल, कलात्मक मूर्तियां तैयार की हैं, उन्होंने न केवल रायपुर बल्कि देश के कई राज्यों में धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों को सजाया है। लेकिन अब यही गांव भारत माला परियोजना के अंतर्गत बन रहे 12 फीट ऊंचे कम हाइट के पुल के कारण अपनी पहचान और आजीविका को खोने की कगार पर है।

कम हाइट का पुल बना संकट का कारण

किसानों को खेती में परेशानी गांव से पहले बन रहा 12 फीट ऊंचा पुल किसानों के लिए सबसे बड़ी बाधा बन गया है। धान, खाद, बीज और ट्रैक्टर जैसे बड़े कृषि वाहन अब पुल के नीचे से नहीं निकल सकेंगे। इससे न सिर्फ खेती में बाधा आएगी, बल्कि किसान की आमदनी भी प्रभावित होगी, मूर्तिकारों को भारी नुकसान- थनौद की पहचान इसकी विशाल मूर्तियाँ हैं, जिनकी ऊंचाई अक्सर 10-12 फीट या उससे भी अधिक होती है। अब ये मूर्तियाँ कम हाइट वाले पुल के नीचे से ट्रक या पिकअप में ले जाई ही नहीं जा सकेंगी। इससे मूर्तिकारों का व्यापार लगभग बंद होने की कगार पर है, आवागमन पर असर- गांव का प्रमुख रास्ता जो पहले सीधा और खुला था, अब कम हाइट वाले इस 12 फीट के पुल की वजह से तंग हो गया है। इससे स्कूल जाने वाले बच्चों, काम पर जाने वाले मजदूरों और महिलाओं को वैकल्पिक लंबा रास्ता लेना पड़ेगा, जिससे समय और पैसा दोनों की बर्बादी होगी, आजन्म मुसीबत का कारण- यह पुल कोई अस्थायी निर्माण नहीं, बल्कि स्थायी रचना है। यानी यह मुसीबत एक-दो साल की नहीं, बल्कि आजीवन बन जाएगी। आने वाली पीढिय़ां भी इसी संकट से गुजरेंगी।

 

सरकार से ग्रामीणों की मांग- हाइट बढ़ाओ, अस्तित्व बचाओ

थनौद ग्रामवासी प्रशासन और सरकार से अपील कर रहे हैं कि 12 फीट की जगह कम से कम 18 से 20 फीट ऊंचा पुल बनाया जाए, मूर्तिकारों और किसानों के रोजगार को ध्यान में रखते हुए बायपास या अंडरपास की व्यवस्था की जाए, निर्माण से पहले ग्रामीणों से चर्चा कर स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाए।

क्या विकास का रास्ता गांव को रौंदेगा?

भारत माला जैसी योजनाएं देश की तरक्की के लिए जरूरी हैं, लेकिन क्या इसका खामियाजा गांवों को भुगतना पड़ेगा?

क्या कम हाइट के पुल बना कर कला, संस्कृति और आजीविका को खत्म कर देना विकास कहा जा सकता है? थनौद केवल एक गांव नहीं है, यह छत्तीसगढ़ की शिल्प-संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। यदि आज इसकी आवाज नहीं सुनी गई, तो आने वाले वर्षों


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