धमतरी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कुरुद, 10 दिसंबर। जिला प्रशासन की अपील की परवाह नहीं करते हुए किसान खेतों में धडल्ले से पराली जलाने में लगे हुए हैं। रोकथाम के नाम पर कृषि अधिकारी राजस्व विभाग का मुंह ताक रहे हैं। इधर किसान धान कटाई के बाद खेत में बिखरे पैरा को जलाकर दलहन फसल बोने की तैयारी में जुटा है। इससे हवा की गुणवत्ता, मिट्टी की उर्वरता और मित्र किट का कुनबा नष्ट हो रहा हैं।
खरीफ फसल की कटाई के बाद पर्यावरण संरक्षण के नाम पर जिला प्रशासन ने अपील जारी कर किसानों से खेतों में फसल अवशेष नहीं जलाने की समझाईश दी थी। जिसका जमीन पर कोई असर नजऱ नहीं आ रहा है। अधिकांश किसान हारवेस्टर से धान की कटाई करवा पराली खेत में ही छोड़ देते हैं। अब उन खेतों में दलहन तिलहन की फसल लगाने पराली जलाने का काम किया जा रहा है। लेकिन इसमें रोक लगाने के लिए कोई भी विभाग का मैदानी अमला सक्रिय नहीं है। जबकि फसल अवशेष जलाने पर शासन द्वारा अर्थदंड का प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद क्षेत्र के अधिकांश खेतों में पराली जलाने काम धडल्ले से जारी है।
इस बारे में भारतीय किसान संघ जिलाध्यक्ष लालाराम चन्द्राकर ने कहा कि खेतों में पैरा जलाना पर्यावरण, मिट्टी की उर्वरता और जनस्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। सरकार किसानों को अवशेष प्रबंधन के लिए तकनीकी सहयोग उपलब्ध करा रही है। किसान भाई इसकी मदद से पर्यावरणहितैषी तरीके से कृषि में योगदान दें। भरदा के प्रगतिशील कृषक लेखराज चन्द्राकर ने माना कि फसल अवशेष जलाने से धुएं में मौजूद जहरीली गैसें मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, इससे फेफड़ों के रोग, कैंसर उत्प्रेरक तत्वों समेत कई स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहे हैं।
पप्पू दाऊ ने कहा कि अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीव, केंचुए और मकडिय़ाँ खत्म हो जाती हैं, जिससे प्राकृतिक कीट नियंत्रण बाधित होता है और किसानों को महंगे कीटनाशकों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस बारे में कुरूद विकास खंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी जितेन्द्र सोनकर ने बताया कि किसानों को खेतों में पराली जलाने के लिए हमेशा मना किया जाता है। कार्यवाही के संबंध में उनका कहना है कि जब तक हमें खसरे की जानकारी नहीं होगी तो हम कैसे किसी के खिलाफ एक्शन ले सकते हैं। इस काम में हमें राजस्व विभाग की मदद मिले तो संयुक्त सर्वे से दोषी किसानों का पता लगाया जा सकता है।


