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अमेजऩ, फ्लिपकार्ट एवं रिलायंस ई-फार्मेसी कंपनियों के खिलाफ कैट ने खोला मोर्चा
25-May-2022 12:25 PM
अमेजऩ, फ्लिपकार्ट एवं रिलायंस ई-फार्मेसी कंपनियों के खिलाफ कैट ने खोला मोर्चा

रायपुर, 25 मई। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू,   अमर गिदवानी,  प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन,  कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीडिय़ा प्रभारी संजय चौंबे ने बताया।

कैट ने केंद्र सरकार से ऐमज़ान, फ्लिपकार्ट, रिलायंस, सहित अन्य ई-फ़ार्मेसी व्यापार में ड्रग एवं कौसमैटिक्स क़ानून 1940 के प्रावधानों के खि़लाफ़ दवाइयों की ऑनलाइन बिक्री करने का मुद्दा ज़ोरदार तरीक़े से उठाकर इन कम्पनियों द्वारा ऑनलाइन व्यापार के ज़रिए दावा व्यापार पर रोक लगाने की माँग की है क्योंकि यह व्यापार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए चलाया जा रहा है जिससे देश भर के लाखों रिटेल केमिस्ट व्यापारियों का व्यापार बुरी तरह चरमरा गया है।

कैट ने कहा है की फार्मईज़ी,, मेड लाइफ़, अमज़ोन , फ्लिपकार्ट, रिलायंस के स्वामित्व वाली कम्पनी नेटमैड, 1 एमजी, आदि पर आरोप लगते हुए कहा कि ये 30 प्रतिशत - 40 प्रतिशत  छूट के साथ  कीमतों पर परिचालन करके ई-कॉमर्स व्यापार  का दुरुपयोग कर रहे हैं और विदेशी निवेश के कारण इन ई-फार्मेसियों को मुफ्त शिपिंग देने में  कोई नुकसान नही उठाना पड़ता है जबकि देश भर में लाखों केमिस्ट एवं दवा विक्रेता सरकार के हर क़ानून एवं नियम का पालन करते हुए अपने लिए एवं कर्मचारियों के लिए तथा उनके परिवारों के लिए रोज़ी रोटी कमाते हैं  तथा देश के हर भाग में एवं दूरदराज  इलाकों में लोगों की दवाइयों की मांग की पूर्ति करते आ रहे हैं ।

कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने कहा की पूंजी डंपिंग की यह प्रथा देश में दवा की सप्लाई चेन के बने रहने पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है और भविष्य के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकती है क्योंकि ई-फार्मेसियों की अपनी सीमाएं हैं पर उपभोक्ताओं से सीधा संबंध और आपातकालीन परिस्थितियों में दवाओं की किसी भी समय पहुचाने का  कार्य सिर्फ एक केमिस्ट की दुकान ही कर सकती है।

उन्होंने कहा की क्योंकि ई -फार्मेसी कंपनियां नियम एवं क़ानून का उल्लंघन कर रही है, इस नाते से इनके खिलाफ सरकार द्वारा कार्रवाई करना बेहद जरूरी हो गया है । क्या बड़ी कंपनियों के लिए क़ानून का पालन अनिवार्य नहीं है ? क्या जिस प्रकार से एक आम दुकानदार के खिलाफ कार्रवाई होती है तो फिर यही कार्रवाई किसी बड़ी कम्पनी के साथ क्यों नहीं होती? क्या सरकार का ऐसा कोई मेकेनिज़्म  है जो इस बात पर नजर रखता है की सरकार के नियमों अथवा कानूनों का पालन हो रहा है अथवा नहीं?

श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने श्री गोयल से आग्रह किया की  भारतीय ई-कॉमर्स व्यापार को सभी ख़ामियों से मुक्त कराने के लिए एफड़ीआई नीति के प्रेस नोट 2 के स्थान पार एक नया प्रेस नोट जारी करने की मांग दोहराई और कहा क़ी ई-कॉमर्स में सभी हितधारकों के लिए एक समान स्तर पर प्रतिस्पर्धी माहौल देने के प्रावधान नए प्रेस नोट में सुनिशचित किए जाए।

श्री पारवानी एवं श्री दोशी  ने कहा कि ई-फ़ार्मेसी के बढ़ते व्यापार के चलते खुदरा व्यापारियों और वितरकों को भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिसका मुख्य कारण इनके द्वारा अपनाई जा रही कुप्रथाएँ  है जैसे कि पूंजी डंपिंग और गहरे डिस्काउंट तथा लागत से भी क़म मुल्य पर दवा बेचना है। उन्होंने कहा की यह दुर्भाग्य है की जहर प्रकार के ई-कॉमर्स व्यापार में बड़ी अथवा विदेशी फंड प्राप्त कंपनियां हर तरह के हथकंडे अपनाते हुए किसी भी तरह से भारत के रिटेल व्यापार पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश में लगी हैं। इस बात को समझते हुए सरकार को ई-कॉमर्स व्यापार में लंबित सुधारों को तुरंत लागू कर देने चाहिए ।


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