बस्तर

पथरागुड़ा के काछन गुड़ी में 6 को होगी यह रस्म
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 1 अक्टूबर। परपा क्षेत्र के बड़े मोरठपाल में रहने वाली 13 वर्षीय अनुराधा इस बार फिर बेल के कांटों में झूलकर बस्तर दशहरा मनाने की रस्म को अदा करेगी, वहीं अनुमति लेने बस्तर महाराज आतिशबाजी के साथ ही राजपरिवार के सदस्यों के साथ ही जनप्रतिनिधियों, माझी चालकी के साथ आएंगे।
अनुराधा दास ने बताया कि जब वह 6 वर्ष की थी, तब से वह इस रस्म को निभा रही हैं, आज 13 वर्ष होने के साथ ही वह मोरठपाल के ही पूर्व माध्यमिक शाला बड़े मारेंगा में कक्षा 7वीं की छात्रा है।
अनुराधा ने बताया कि वह इस रस्म को निभाने के लिए अपने पिता शिव प्रसाद दास के अलावा अपनी माँ को लेकर आई है, जहाँ एक-एक दिन के अंतराल में उपवास रहकर इस रस्म को निभाएगी।
यह रस्म शहर के पथरागुड़ा स्थित जेलबाड़ा के पास बने काछन गादी में मनाया जाएगा। शहर के अलावा विदेशों से लोग इस रस्म को देखने आते हंै, वहीं इस पूरे स्थल को बेरिकेट के साथ ही जवानों की तैनाती किया जाता है, जहाँ बाद में बस्तर महाराज कमल चंद्र भंजदेव के साथ ही राजपरिवार के साथ माता से अनुमति लेने के लिए आएंगे, जहाँ माता के रूप में अनुराधा बस्तर महाराज की काटों के झूले में झूलकर उन्हें फूल देकर इस रस्म को मनाने की अनुमति देगी।
बताया गया है कि पथरागुड़ा के भंगाराम चौक में स्थित इस गुड़ी (मंदिर) को काछन गुड़ी कहते है। इसका निर्माण काकतीय (चालुवय) वंश के राजा दलपत देव के द्वारा 18 वीं शताब्दी अर्थात सन् 1772 के आसपास किया गया था। वर्ष 2005 में शासन के द्वारा जीर्णोद्धार किया गया, दशहरा पर्व के अंतर्गत काछन देवी के द्वारा काँटेदार झूले की गद्दी पर आसीन होकर दी जाने वाली ‘ कंटक जयी ’ होने का आशीर्वाद काछन गादी पूजा विधान कहलाता है, जो आश्विन अमावस्या के दिन होता है। काछन देवी ‘रण’ की देवी कहलाती है।
ऐसा माना जाता है आश्विन अमावस्या को पनका जाति कि कुवांरी कन्या को देवी की सवारी आती है। देवी को काछन गुड़ी के समक्ष कांटो के झूले पर लिटाकर झुलाया जाता है। इस दिन शाम के समय राजपरिवार, बस्तर दशहरा समिति के सदस्य , देवी-देवताओं , मांझी, चालकी, नाईक, पाईंक के साथ माँ दन्तेश्वरी मंदिर से निकलकर मुण्डा बाजा एवं आतिशबाजी के साथ काछन गुड़ी पहुंचते हंै तथा काँटों के झूले पर सोए हुए काछन देवी से दशहरा पर्व मनाने की औपचारिक अनुमति मांगी जाती है। इस दौरान पनका जाति के पुजारी और गुरु मांई के द्वारा ‘धनकुल’ गीत गाया जाता है। काछन देवी बस्तर के पनका जाति के आराध्य देवी मानी जाती है।