अंतरराष्ट्रीय
काबुल, 16 फरवरी | पाकिस्तान ने अपनी जासूसी एजेंसी की तुर्की में अफगान जिहादी नेताओं के साथ मुख्य बैठक की खबरों का खंडन किया है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, काबुल स्थित पाकिस्तानी दूतावास ने आईएसआई प्रमुख की अफगान जिहादी नेताओं अट्टा मुहम्मद नूर, अब्दुल राशिद डस्तम और मुहम्मद मुहाकिक के साथ तुर्की में मुलाकात की खबरों का खंडन किया है।
इस खबर को फर्जी करार देते हुए दूतावास ने कहा है कि तुर्की में किसी भी पाकिस्तानी अधिकारी ने अफगान जिहादी नेताओं से मुलाकात नहीं की है।
इससे पहले, यह दावा किया गया था कि आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट-जनरल नदीम अंजुम ने कई अफगान जिहादी नेताओं से मुलाकात की और अफगानिस्तान में समावेशी सरकार की स्थापना पर चर्चा की है।
यह तब सामने आया जब अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के अधिकारियों ने अफगान से आग्रह किया है कि निर्वासन में राजनेता देश लौटे और शांतिपूर्वक ढंग से रहें। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 15 फरवरी | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अगर पाकिस्तान ने सबसे पहले अफगानिस्तान सरकार को मान्यता दे दी तो उस पर अंतरराष्ट्रीय जगत का दबाव अधिक होगा और इसे वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। जिओ न्यूज ने यह जानकारी दी है।
उन्होंने फ्रांस के अखबार ली फिगारो को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि अगर पाकिस्तान ने सबसे पहले तालिबान को मान्यता दी तो हमारे पर अंतरराष्ट्रीय दबाव काफी बढ़ जाएगा और हम उसे बर्दाश्त करने की हालत में नहीं होंगे क्योंकि हम अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है "अगर उसे मान्यता प्रदान कर अलग थलग रहना है तो यह काम हम अंत में करेंगें और उसे मान्यता प्रदान करने की प्रकिया सामूहिक होनी चाहिए ।"
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के लोगों का आत्मसम्मान बहुत अधिक है और उन्हें एक निश्चित तरीके से कार्य करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा "आप उन्हें मजबूर नहीं कर सकते। तालिबान जैसी सरकार पर विदेशी दबाव डाले जाने की भी एक सीमा है। पश्चिमी देशों के लोगों की महिलाओं को लेकर जो मान्यता और धारणा है आप वह अफगानों से उम्मीद नहीं कर सकते हैं ।"
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान लड़कियों की शिक्षा पर सहमत हो गया है, लेकिन उसे समय चाहिए।
पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने अफगानिस्तान में मानवीय संकट के बिगड़ने, शरणार्थियों की संभावित वापसी और अफगानिस्तान के लिए कुल धनराशि में से मात्र आधी राशि जारी करने के अमेरिकी प्रशासन के फैसले पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने उल्लेख किया कि अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के पतन से पहले वहां तीन संगठन पाकिस्तानी तालिबान, बलूच आतंकवादी और दाएश के एक समूह अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे।
रिपोर्ट के अनुसार, "हम मानते हैं कि अफगान में सरकार जितनी अधिक स्थिर होगी, इन समूहों की गतिविधियां उतनी ही कम होंगी और इसलिए हम अफगानिस्तान की स्थिरता के बारे में चिंतित हैं।" (आईएएनएस)
कीव/नई दिल्ली, 15 फरवरी| कीव में भारतीय दूतावास ने यूक्रेन में भारतीय नागरिकों, विशेष रूप से ऐसे छात्रों से कहा है कि मौजूदा स्थिति के मद्देनजर अस्थायी रूप से देश छोड़ने पर विचार करें जिनका प्रवास आवश्यक नहीं है। मंगलवार को जारी एक ताजा एडवाइजरी में इसकी जानकारी दी गई। इसमें कहा गया है, "भारतीय नागरिकों को भी यूक्रेन के भीतर और उसके भीतर सभी गैर-जरूरी यात्रा से बचने की सलाह दी जाती है।"
सलाहकार ने आगे भारतीय नागरिकों से 'यूक्रेन में उनकी उपस्थिति की स्थिति' के बारे में दूतावास को रखने का अनुरोध किया, ताकि मिशन को 'जब और जहां आवश्यक हो' पहुंचने में सक्षम बनाया जा सके।
"यूक्रेन में भारतीय नागरिकों को सभी सेवाएं प्रदान करने के लिए दूतावास सामान्य रूप से कार्य करना जारी रखता है।"
अमेरिका द्वारा कुछ दिनों में संभावित रूसी आक्रमण के खिलाफ चेतावनी देने के बाद, एक दर्जन देशों ने अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की सलाह दी है। (आईएएनएस)
पाकिस्तान ने भारत को अफगानिस्तान में गेहूं पहुंचाने की इजाजत दे दी है. सोमवार को दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों ने इस बारे में पुष्टि की है.
भारत का गेहूं अब पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पहुंच सकेगा. पाकिस्तान ने इसके लिए अपने यहां से भारतीय ट्रकों के होकर गुजरने की इजाजत दे दी है. दोनों देशों के बीच जो समझौता हुआ है, उसके तहत दर्जनों भारतीय ट्रक पाकिस्तान होते हुए आफगानिस्तान जाएंगे.
अधिकारियों ने नाम ना छापने की शर्त पर मीडिया को बताया कि 21 फरवरी से भारतीय ट्रक रवाना होना शुरू होंगे. वाघा सीमा पार कर गेहूं से भरे ये ट्रक पहले लाहौर जाएंगे. वहां से अगले दिन पाकिस्तान के तोरखाम से सीमा पारकर ये ट्रक अफगानिस्तान के जलालाबाद पहुंचेंगे.
भारत-पाक तनाव के बीच
भारत ने तीन महीने पहले ऐलान किया था कि अफगानिस्तान को 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं की मदद पहुंचाई जाएगी. इसके अलावा भारत ने संघर्षरत अफगानिस्तान को जीवन-रक्षक दवाएं और अन्य साज-ओ-सामान से मदद करने की भी घोषणा की थी. लेकिन भारतीय मदद के पहुंचने के लिए पाकिस्तान का राजी होना जरूरी था. पाकिस्तान ने तभी कह दिया था कि वह भारतीय मदद को रास्ते दे सकता है. लेकिन भारत की तरफ से औपचारिकताएं पूरी होने का इंतजार किया जा रहा था. अधिकारियों ने बताया कि पिछले हफ्ते ही भारत की तैयारी पूरी हुई.
भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के चलते दोनों देशों के बीच आवाजाही बहुत कम हो गई है. यह समाचार पुलवामा हमले की ठीक तीसरी बरसी के दिन हुई. 14 फरवरी 2019 को भारत के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर एक हमला हुआ था जिसमें 40 जवानों की मौत हो गई थी. भारत ने इसके लिए पाकिस्तान स्थित संगठनों को जिम्मेदार बताया था. पाकिस्तान इस आरोप को नकारता है और उसने भारत से सबूत मांगे हैं.
2019 में पाकिस्तान ने भारत के साथ व्यापार संबंध तब स्थगित कर दिए थे जब भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की धारा 370 को खत्म कर दिया था. तब से दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध सामान्य नहीं हुए हैं.
अफगानिस्तान में हालत नाजुक
पाकिस्तान का कहना है कि भारतीय वाहनों को उसके रास्ते से अफगानिस्तान जाने की इजाजत विशेष प्रबंध के तहत दी गई है. उसने खुद भी हाल के महीनों में दवाएं और अनाज अफगानिस्तान भेजे हैं. पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफागनिस्तान के हालात पर ईरान से भी चर्चा की है.
पिछले साल अफगानिस्तान तालिबान द्वारा सत्ता कब्जाए जाने के बाद से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था संकट में है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि वहां दस लाख से ज्यादा बच्चे भुखमरी के कगार पर हैं. देश के 90 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीने को मजबूर हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफगानिस्तान के लिए पांच अरब डॉलर की मदद उपलब्ध कराने की अपील की है. फिलहाल किसी भी देश ने अफगानिस्तान की नई सरकार को मान्यता नहीं दी है, इसलिए उसकी अंतरराष्ट्रीय मदद रुकी हुई है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
चीन के आर्टिफिशियल बर्फ पर विंटर ओलंपिक्स कराने की कहीं वाहवाही हो रही है, तो कहीं आलोचना. पर यह बर्फ बनाई कैसे गई है. बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक्स 100 फीसदी आर्टिफिशियल बर्फ पर हो रहे हैं. आइए जानते हैं कि यह कैसे बनती है.
डॉयचे वैले पर विशाल शुक्ला की रिपोर्ट-
चीन की राजधानी बीजिंग में विंटर ओलंपिक्स हो रहे हैं. जहां तापमान कभी इतना गिरता ही नहीं कि बर्फ जम जाए. और इतनी जम जाए कि वहां बर्फ वाले खेल हो जाएं, ऐसी जगह विंटर ओलंपिक्स हो रहे हैं. कैसे? आर्टिफिशियल बर्फ जमाकर. यानी प्रकृति माता की जमाई नहीं, बल्कि इंसानों की बनाई बर्फ पर खेल हो रहे हैं.
विंटर ओलंपिक्स 88 साल से हो रहे हैं. पहली बार 1924 में फ्रांस में हुए थे. तब से पहली बार ऐसा हो रहा है कि सौ की सौ फीसदी आर्टिफिशियल बर्फ पर खेल हो रहे हों. इससे पहले 2014 में रूस के सोची में विंटर ओलंपिक्स हुए थे. तब 80 फीसदी आर्टिफिशियल बर्फ पर खेल हुए थे. फिर 2018 में दक्षिण कोरिया के प्योंगचांग में विंटर ओलंपिक्स हुए. वहां 90 फीसदी से ज्यादा आर्टिफिशियल बर्फ थी. इस बार बीजिंग में सिर्फ आर्टिफिशियल बर्फ ही है.
वैसे आर्टिफिशियल बर्फ जमाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. आप लंबे वक्त से सुनते भी आ रहे होंगे कि यहां आर्टिफिशियल बर्फ जमाई गई, वहां कृत्रिम बर्फ का इंतजाम किया गया. चीन से तो कृत्रिम सूरज और चांद बनाने जैसी खबरें भी आती हैं. तो आखिर तीन ने ओलंपिक कराने के लिए इतनी बर्फ कैसे जमा ली. इतनी कि उस पर स्केटिंग हो जाए, स्कीइंग हो जाए... 15 किस्मों के खेल हो जाएं. आइए, जानते हैं.
कैसे बनती है कृत्रिम बर्फ?
सबसे पहले तो यह फैसला करना होता है कि बर्फ जमानी कहां है. दो जगहों पर इसकी जरूरत होती है. स्केटिंग और आइस हॉकी जैसे खेलों के लिए इनडोर स्टेडियम में और स्कीइंग जैसे खेलों के लिए आउटडोर. दोनों जगह बर्फ जमाने के अलग-अलग तरीके हैं. दोनों में शुरुआत यहीं से होती है कि जिस पानी से बर्फ बनानी है, पहले उसे साफ यानी प्यूरिफाई किया जाता है.
अब मान लीजिए कि इनडोर बर्फ जमानी है. तो कंक्रीट की फर्श के नीचे रेफ्रिजरेंट यानी ठंडा करनेवाली या जमानेवाली गैसों की सप्लाई वाले पाइप लगाए जाते हैं. इनसे गैस निकलती है. गैस से फर्श माइनस सात डिग्री तक ठंडी की जाती है. फिर इस ठंडी फर्श पर मशीन से पानी की फुहारें डाली जाती हैं. जब पानी की महीन बूंदें इस बहुत ठंडे फर्श पर गिरती हैं, तो जम जाती हैं. इसी तरह तब तक पानी छिड़का जाता है, जब तक बर्फ कुछ सेंटीमीटर मोटी न हो जाए. अमूमन ढाई-तीन सेंटीमीटर. फिर खेल की जरूरत के हिसाब से इसे दबा-दबाकर सख्त बनाया जाता है.
वहीं आउटडोर बर्फ जमाने के लिए 'स्नो मशीन' या 'स्नो गन' जैसी चीजें इस्तेमाल में लाई जाती हैं. अब इनडोर वाले प्रॉसेस में जमीन के नीचे रखे पाइपों की वजह से पानी जम रहा था. आउटडोर के प्रॉसेस में 'स्नो गन' में ही पानी को बर्फ बना देने का सिस्टम होता है. तो एक तरफ से पाइप से पानी डाला जाता है. मशीन में रखी गैस उस पानी को बर्फ में बदलती है. फिर मशीन में लगा पंखा इतनी तेजी से इस बर्फ को आगे फेंकता है कि यह एकदम पाउडर की तरह हवा में फैल जाती है. फिर धीरे-धीरे जमीन पर गिरकर इकट्ठी होती रहती है. ऐसे ही बहुत देर तक बर्फ छिड़की जाती है. फिर जरूरत के हिसाब से इसे दबाकर सख्त बना लिया जाता है.
इस बार के विंटर ओलंपिक्स बीजिंग के कई स्टेडियम में हो रहे हैं, लेकिन नया स्टेडियम एक ही बनाया गया है. इसका नाम है- नेशनल स्पीड स्केटिंग ओवल. निकनेम है 'दि आइस रिबन'. बाकी सारे पुराने स्टेडियम इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
अब दिक्कत यह है कि बीजिंग का मौसम तो ऐसा है नहीं, जहां ठंड में बर्फ गिरती हो या पहाड़ों पर जमती हो. तो सब कुछ बिल्कुल शुरू से शुरू करना पड़ रहा है. जहां बिल्कुल बर्फ है ही नहीं, वहां ढेर सारा पानी और बिजली खर्च करके बर्फ पैदा की गई है. मिट्टी में नमी भी नहीं है, तो उस पर बर्फ का टिकना भी मुश्किल होता है. इसका अलग इलाज करना होता है. बिजली-पानी के इस संकट के बारे में आगे बात करेंगे. पहले एक-दो टेक्निकल चीजें निपटा लेते हैं.
नई तकनीक से बर्फ बनाना
विज्ञान का एक शब्द है हाइड्रोक्लोरोकार्बन. यह वही रेफ्रिजरेंट यानी ठंडा करनेवाली गैस है, जिसके बारे में हमने आपको ऊपर बताया था. हमारे घरों में जो फ्रिज और एसी होते हैं, उनमें भी तो ठंडा करने के लिए यही गैस भरी जाती थी. बड़े पैमाने पर बर्फ भी इसी से जमाया जाता था.
अच्छा यहां हम आपको एक शब्द बताने की तकलीफ और देंगे. हाइड्रोक्लोरोकार्बन से पहले यही काम क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस से लिया जाता था. फिर वैज्ञानिकों ने बताया कि इससे तो ओजोन परत को बहुत नुकसान हो रहा है. तो 1990 के आसपास से इसे बंद करके हाइड्रोक्लोरोकार्बन को लाया गया. फिर पता चला कि हाइड्रोक्लोरोकार्बन से ओजोन का नुकसान तो नहीं हो रहा है, लेकिन कार्बन उत्सर्जन बहुत हो रहा है. इससे धरती का तापमान बढ़ रहा है. तो 2010 के आसपास से इसे भी बंद करके हाइड्रोकार्बन और हाइड्रोफ्लोरोओलेफीन जैसे विकल्प लाए गए. अब तो खैर कार्बन डाईऑक्साइड यानी CO2 रेफ्रिजरेंट्स तकनीक का दौर आ गया है.
चीन का कहना है कि आइस रिबन स्टेडियम में हाइड्रोक्लोरोकार्बन के बजाय CO2 रेफ्रिजरेंट्स का इस्तेमाल किया गया है. बताया गया कि यह ओलंपिक इतिहास में पहली बार हो रहा है और इससे पर्यावरण को और कम नुकसान होगा. अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने कहा कि खेलों में CO2 रेफ्रिजरेंट्स के इस्तेमाल से हर साल 3,900 कारों जितना कार्बन उत्सर्जन घटाने में मदद मिलेगी.
अब एक सवाल और आपके मन में उठेगा कि गैस से बर्फ कैसे जम जाती है. याद है बचपन में विज्ञान की कक्षा में पढ़ाया जाता था कि कोई भी पदार्थ तीन अवस्थाओं में होता है- ठोस, द्रव और गैस. तो कमरे के सामान्य तापमान पर सारी गैसें गैस के रूप में ही होती हैं. अगर आप इन्हें कम जगह में ज्यादा दबाव के साथ भर देंगे, तो ये तरल में बदल जाएंगी. जैसे आपके किचन में रखा गैस सिलेंडर, जिसमें भरी LPG लिक्विड फॉर्म में होती है. इसी वजह से जब बड़े सिलेंडर से छोटे सिलेंडर में गैस भरी जाती है, तो सिलेंडर बहुत ठंडा हो जाता है. जैसे फ्रिज से निकाला गया हो. अब इसी गैस पर और दबाव डालिए, तो यह ठोस हो जाएगी. यानी बर्फ बन जाएगी.
अब सोचिए कि जमीन के नीचे रखे एक पाइप से बहुत दबाव के साथ भरी गैस निकल रही है. इससे वह अपने ऊपर की फर्श ठंडी कर रही है. इसी गैस को बर्फ में बदल दीजिए, तो यह उसी बर्फ का काम करेगी, जिस पर आप खेल सकें, फिसल सकें. जब गैस को बर्फ बनाया जाता है, तो पानी के मुकाबले वह पिघलती भी बहुत धीरे है.
कितना तामझाम और कितना खर्चा?
बीजिंग में बर्फ गिरती नहीं है, लेकिन बर्फ पर होने वाले 109 खेल कराने हैं. तो खर्चा तो होगा ही. चीन ने इसके लिए इटली की कंपनी टेक्नोआल्पिन से 383 स्नो गन मंगाई. चीन के अपने अनुमान के मुताबिक इसमें 6 करोड़ डॉलर का खर्च आया. इन्हें चलाने के लिए विंड और सोलर एनर्जी का इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा बर्फ बनाने में करीब 5 करोड़ गैलन पानी भी लगा है. वह भी ऐसे शहर में, जहां दो करोड़ से ज्यादा लोग न जाने कितने दशकों से पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग कह रहे हैं कि वह पर्यावरण के ज्यादा अनुकूल और भ्रष्टाचार मुक्त विंटर ओलंपिक्स आयोजित करा रहे हैं. आयोजक कह रहे हैं कि यह इतिहास का सबसे ज्यादा 'ग्रीन ओलंपिक्स' है. वे यह भी कह रहे हैं कि जहां भी बिजली चाहिए, वहां सौर और वायु ऊर्जा इस्तेमाल की जा रही है, ताकि कार्बन उत्सर्जन कम से कम हो. जो उत्सर्जन हो भी रहा है, उसे कम करने के मकसद से हजारों पेड़ लगाने का दावा भी किया गया है.
आयोजकों का कहना है कि बर्फ जमाने में इस्तेमाल हुई CO2 औद्योगिक कचरे में निकली गैसों से ली गई है, जिसे प्यूरिफाई किया गया. फिर बर्फ जमाने के दौरान जो गर्मी पैदा हुई, उसे रीसाइकल करके स्टेडियम गर्म रखने और नहाने में इस्तेमाल किया जा रहा है.
खेल जगत में राय क्या है?
12 फरवरी को चीन के गाओ टिन्ग्यू स्पीड स्केटिंग में गोल्ड जीतने वाले पहले पुरुष चीनी खिलाड़ी बने. उन्होंने अपने खेल में आठवां सबसे तेज ओलंपिक रिकॉर्ड भी बनाया. इससे एक दिन पहले 11 फरवरी को भी 'आइस रिबन' के इसी ट्रैक पर 10 हजार मीटर की पुरुषों की रेस में एक वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना. यह सब तब हुआ, जब खेल कम ऊंचाई पर हो रहा है.
जैसे कनाडा के कैलगरी और अमेरिका के साल्ट लेक सिटी में विंटर गेम्स के जो मैदान बनते हैं, वो हाई एल्टीट्यूड पर होते हैं. ऊंची जगहों पर होने की वजह से वहां हवा हल्की होती है और स्केटर्स के लिए कम बाधा पैदा करती है. फिर भी नीदरलैंड्स की आइरीन शाउटेन और पुरुष खिलाड़ी जेल्ड नूइस ने ओलंपिक के दो दशक पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए, जो साल्ट लेक सिटी में बनाए गए थे.
स्केटिंग का यह ट्रैक तैयार करनेवाले कनाडा के आइसमेकर मार्क मेसर ध्यान से गाओ को देख रहे थे. वह कहते हैं, "हमें इसी बात की खुशी है कि हाई एल्टीट्यूड में जो रिकॉर्ड दो दशक पहले बने थे, वो यहां टूटे हैं. इसका मतलब है कि यहां कुछ शानदार हो रहा है. अगर हमें थोड़ा और समय मिल जाता, तो हम ट्रैक और बढ़िया बना देते. कुछ स्केटर्स को बर्फ मुलायम लग रही थी, लेकिन उन्होंने बताया कि वक्त बीतने के साथ यह बेहतर हो गई थी. स्केटर्स के लिए यह अच्छी बात नहीं है कि उन्हें फर्क महसूस हो रहा है."
61 साल के मार्क मेसर के लिए यह छठा ओलंपिक है. इसमें भी उन्होंने रेस शुरू होने से 6 दिन पहले ही काम शुरू किया था. हालांकि, स्केटर्स की सफलता में वह कोई क्रेडिट न लेते हुए कहते हैं, "हम तो बस एक सरफेस तैयार करना चाहते थे, जिस पर स्केटर्स अच्छा परफॉर्म कर पाएं. तो हम ओलंपिक रिकॉर्ड बनने से खुश तो हैं, लेकिन आखिरकार यह सब स्केटर्स की ही मेहनत है."
2014 और 2018 को विंटर ओलंपिक्स में बर्फ का इंतजाम करने वाली कंपनी SMI स्नोमेकर्स के अध्यक्ष जो वांडरकेलेन कहते हैं, "हम इसे मशीनी बर्फ कहते हैं. यह आर्टिफिशियल बर्फ नहीं है, असली बर्फ है. बर्फ बनाने के लिए मशीन पानी और कंप्रेस्ड एयर को एक साथ फेंकती है. पानी जमीन पर गिरने से पहले जम जाता है, जिससे बर्फ बनती है. अब बर्फ चाहे आसमान से गिरे, चाहे मशीन से. बनती तो वह हमेशा जमे पानी से ही है न."
हालांकि, कणों पर शोध करने वाले भौतिक विज्ञानी रेन लिबरेख्त कहते हैं कि इसके लिए 'आर्टिफिशियल स्नो' ही सही नाम है. वह कहते हैं, "दोनों की बनावट एकदम अलग-अलग हैं. आर्टिफिशियल बर्फ में सब कुछ तेजी से करवाना होता है. पानी जमीन पर गिरने से पहले ही जम जाना चाहिए. यह प्राकृतिक तरीके से थोड़ी न जमती है."
आगे-पीछे का थोड़ा हालचाल
1964 में ऑस्ट्रिया के इंसब्रुक में विंटर ओलंपिक्स होना था. किस्मत से उस साल बहुत बर्फ नहीं गिरी और खेल बीच में लटक गए. फिर ऑस्ट्रिया की सेना ने पर्वतों से बर्फ के 20 हजार टुकड़े काटे थे. वे पहाड़ों से 40 हजार क्यूबिक मीटर बर्फ भी लाए. यह पहली बार था, जब विंटर ओलंपिक्स के लिए ऐसे बर्फ का इंतजाम करना पड़ा था. भारत ने विंटर ओलंपिक्स में अपना आगाज भी इसी साल किया था. फिर 1980 में जब अमेरिका के लेक प्लेसिड में विंटर ओलंपिक्स हुए, तो पहली बार मशीन से बनने वाली बर्फ की जरूरत पड़ी.
अब चीनी अधिकारी कह तो रहे हैं कि बर्फ पिघलने से जो पानी निकलेगा, उसे वो दोबारा इस्तेमाल कर लेंगे. लेकिन, एक स्टडी यह भी कहती है कि 40 फीसदी पानी तो उड़ जा रहा है. आर्टिफिशियल बर्फ की वजह से मिट्टी खत्म हो रही है और पहाड़ों की वनस्पतियां खत्म हो रही हैं. IOC की ही एक रिपोर्ट कहती है कि चीन ने बर्फ बनाने में जितना पानी लगना था, उसे कम आंका था और बर्फ पिघलने से जितना पानी मिलने का अनुमान लगाया था, वह ज्यादा था. पानी की किल्लत का मुद्दा तो है ही. हालांकि, चीन इस सबसे इनकार करता है.
कनाडा की वाटरलू यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च बताती है कि विंटर ओलंपिक्स कराने की क्षमता रखने वाले शहरों की संख्या घटती जा रही है. अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं रोका गया, तो अब तक जिन 21 जगहों पर विंटर ओलंपिक्स कराए गए हैं, 2080 तक उनमें से सिर्फ जापान का सप्पोरो शहर ही होगा, जहां विंटर ओलंपिक्स कराने लायक बारिश और तापमान होगा. शोध यह भी बता रहे हैं कि दुनिया जिस रफ्तार और रवैये से चल रही है, वैसे ही चलती रही, तो 2050 तक बीजिंग जैसे शहरों में वैसे भी विंटर ओलंपिक्स नहीं हो पाएंगे, जैसे आज हो पा रहे हैं.
2026 में विंटर ओलंपिक्स की मेजबानी इटली के पास है. यहां 70 साल बाद विंटर ओलंपिक्स होने हैं. पिछली बार जब 1956 में यहां ओलंपिक्स हुए थे, तब पहले ही दिन खूब बर्फ पड़ी थी. अब एक स्टडी बताती है कि 1956 से अब तक फरवरी में यहां का तापमान 5.9 डिग्री तक बढ़ गया है. अगर दुनियाभर में यही ट्रेंड चलता रहा, तो आर्टिफिशियल बर्फ भी विंटर ओलंपिक्स का भविष्य नहीं बचा पाएगी. (dw.com)
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स यूक्रेन के दौरे पर आए हैं. शॉल्त्स ने रूस को पश्चिमी देशों से गंभीर बातचीत का प्रस्ताव दिया है हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति का कहना है कि वो नाटो की सदस्यता के लिए कोशिशें जारी रखेंगे.
यूक्रेन की सीमा पर रूसी फौजों के जमावड़े के बाद उठे तनाव को घटाने की दिशा में पश्चिमी देश लगातार कोशिश कर रहे हैं. जर्मन चांसलर का यूक्रेन दौरा भी इसी की कड़ी है. जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने उम्मीद जताई है कि रूस यूक्रेन के साथ तनाव घटाने के लिए स्पष्ट कदम उठाएगा. राजधानी कीव में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात के बाद उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया.
नाटो की सदस्यता
शॉल्त्स के मुताबिक जर्मनी और उसके पश्चिमी सहयोगी रूस के साथ यूरोप की सुरक्षा पर गंभीर बातचीत के लिए तैयार हैं. शॉल्त्स ने पत्रकारों से कहा, "हम यूरोप की सुरक्षा पर रूस के साथ गंभीर बातचीत को तैयार हैं." जर्मन चांसलर ने यूक्रेन के लिए जर्मनी की ओर से 15 करोड़ यूरो की नई मदद का एलान किया और इसके साथ ही कहा कि अगर रूस यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है तो पश्चिमी देश दूरगामी और असरदार प्रतिबंध लगाने के लिए भी तैयार हैं."
प्रेस कांफ्रेंस में जर्मन चांसलर के साथ मौजूद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा कि उनका देश रूस की नाराजगी और कुछ पश्चिमी देशों की आशंकाओं के बावजूद नाटो की सदस्यता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयास करता रहेगा. जेलेंस्की ने कहा, "आज बहुत से पत्रकार और नेता कह रहे हैं कि यूक्रेन जोखिम से बच सकता है. वो हमें भविष्य में संगठन की सदस्यता के मुद्दे को नहीं उठाने के लिए संकेतों में सलाह दे रहे हैं क्योंकि इन जोखिमों की वजह रूस की प्रतिक्रिया है.मेरा ख्याल है कि हमें उसी रास्ते पर बढ़ना चाहिए जो हमने चुना है."
रूस को सजा
जर्मन चांसलर से मुलाकात में वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा किरूस नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को "भूराजनीतिक हथियार" के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. रूस और जर्मनी के बीच यह पाइपलाइन यूक्रेन की आपत्तियों को अनदेखा कर बनाई गई है. अमेरिका के साथ ही यूक्रेन भी इसे लेकर नाखुशी जताता रहा है. प्रेस कांफ्रेंस में जेलेंस्की ने कहा कि रूस और जर्मनी के एनर्जी लिंक पर, "हमारे आकलन में हमारी कुछ असहमतियां हैं. हम निश्चित रूप से समझते हैं कि यह एक भूराजनीतिक हथियार है."
बाल्टिक सागर से हो कर गुजरने वाली यह पाइपलाइन पिछले साल ही बन कर तैयार हो गई लेकिन अभी जर्मन एजेंसियों ने इसे चालू करने की अनुमति नहीं दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कह चुके हैं कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन परियोजना खत्म हो जाएगी.
जर्मन चांसलर ने कांफ्रेंस मेंनॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइनका नाम लिए बगैर कहा, "किसी को भी जर्मनी की इच्छा और तैयारियों पर संदेह नहीं होना चाहिए." अगर रूस अपने पड़ोसी पर हमला करता है तो जर्मनी उसे सजा देगा. शॉल्त्स ने कहा, "हम तब कार्रवाई करेंगे और दूरगामी कदम उठाए जाएंगे जिनका रूस के आर्थिक विकास के अवसरों पर बहुत बड़ा असर होगा."
रूस की तरफ से बातचीत के संकेत
ओलाफ शॉल्त्स कीव के बाद मॉस्को भी जाएंगे. पश्चिमी देश जहां कूटनीतिक कोशिशों में जुटे हैं, वहीं रूस सीमावर्ती इलाकों में फौज की तैनाती और बड़े युद्धाभ्यास कर रहा है. रूस ने सोमवार को इस बात के संकेत दिए कि वह पश्चिमी देशों के साथ बातचीत जारी रखने के लिए तैयार है ताकि रक्षा संकट को दूर किया जा सके.
टीवी पर प्रसारित एक बातचीत में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को अपने विदेश मंत्री के साथ दिखाया गया है. इस बातचीत में पुतिन सर्गेई लावरोव से पूछ रहे हैं कि क्या रूस की सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए किसी सहमति के आसार हैं या फिर यह बस जटिल बातचीत को खींचने की कोशिश है. जवाब में लावरोव कहते हैं, "हमने पहले ही कई बार चेतावनी दी है कि जिन सवालों के जवाब आज दिए जाने जरूरी हैं उन पर अंतहीन बातचीत को स्वीकार नहीं करेंगे." इसके साथ ही लावरोव ने कहा, "मुझे लगता है कि हमारी संभावनाएं अभी खत्म नहीं हुई हैं... इस समय तो मैं यही सलाह दूंगा कि हम इसे जारी रखें और आगे बढ़ाएं."
पुतिन और लावरोव के इस वीडियो को दुनिया के साथ रूस की बातचीत जारी रखने का संकेत कहा जा रहा है. अमेरिका चेतावनी दे रहा है कि यूक्रेन पर"किसी भी दिन" हमला हो सकता है और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री स्थिति को "बहुत, बहुत खतरनाक" बता रहे हैं. रूस ने यूक्रेन की सीमा पर एक लाख से ज्यादा सैनिकों की तैनाती कर रखी है लेकिन हमले की योजना से इनकार कर रहा है.
एनआर/एके(एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
एक शोध में पता चला है कि कार में टॉयलेट से भी ज्यादा कीटाणु होते हैं. कार के कुछ हिस्सों में तो ई कोली बैक्टीरिया तक पाया गया.
शोधकर्ताओं का कहना है कि हम अपने घर के शौचालयों को ज्यादा साफ करते हैं और कारों पर कम ध्यान देते हैं. इसलिए कारें शौचालयों से ज्यादा गंदी होती हैं. शोधकर्ताओं ने बताया है कि कारें बाहर से उतनी गंदी नहीं होतीं, हालांकि वे कार्बन उत्सर्जन के जरिए पर्यावरण को गंदा करती हैं. लेकिन अंदर से वे इतनी ज्यादा गंदी होती हैं, जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
ब्रिटेन में बर्मिंगम की ऐस्टन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह शोध किया है. उन्होंने पाया कि कार के भीतर एक औसत घरेलू शौचालय से भी ज्यादा कीटाणु हो सकते हैं. इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने पांच कारों के भीतर के नमूने लिए थे और उनकी तुलना दो शौचालयों से लिए गए नमूनों से की गई. ज्यादातर मामलों में कारों में बैक्टीरिया शौचालयों से ज्यादा मिले. कारों में विषाणुओं का स्तर भी शौचालयों से ज्यादा था.
सबसे ज्यादा कीटाणु पिछले हिस्से में
शोधकर्ताओं के मुताबिक कार के ट्रंक में सबसे ज्यादा बैक्टीरिया मिले. उसके बाद सबसे अधिक गंदगी ड्राइवर की सीट पर थी. गियर स्टिक तीसरे नंबर पर, पिछली सीट चौथे और डैशबोर्ड पर पांचवें स्थान पर गंदगी का भंडार पाया गया.
शोधकर्ताओं ने जितनी भी जगहों की जांच की, उनमें स्टीयरिंग व्हील पर बैक्टीरिया सबसे कम पाए गए. उनका कहना है कि इसकी वजह यह भी हो सकती है कि कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों ने औसत से ज्यादा बार और अधिक मात्रा में और हैंड सैनेटाइजर का प्रयोग किया.
पिछले हिस्से में ई-कोली
माइक्रो बायोलॉजिस्ट और मुख्य शोधकर्ता जोनाथन कॉक्स ने डॉयचे वेले को बताया कि उन्हें कार की डिक्की या बूट में ई कोली वायरस के कण भी मिले. कॉक्स ने कहा, "कार के बूट में सफाई पर हम आमतौर पर कम ध्यान देते हैं क्योंकि यह मुख्यतया सामान रखने की जगह होती है."
कॉक्स कहते हैं कि बूट में लोग अक्सर जानवरों और गंदे जूतों को रखते हैं, जिस कारण वहां खतरनाक बैक्टीरिया होने की संभावना ज्यादा होती है. ई कोली बैक्टीरिया गंभीर फूड पॉइजनिंग की भी वजह बन सकता है.
कॉक्स के मुताबिक अब ऐसा ज्यादा होने लगा है कि लोग खुली सब्जियां या फल कार के बूट में रख दें. ऐसा तब तो और भी ज्यादा होने लगा है जबकि ब्रिटेन में लोगों से प्लास्टिक बैग कम इस्तेमाल करने की अपील की जा रही है.
कॉक्स ने बताया, "यह एक जरिया है जिससे हम ई कोली बैक्टीरिया को अपने घरों और रसोइयों में ला सकते हैं, और उन्हें अपने शरीर में घुसने का मौका दे सकते हैं. इस शोध का मकसद लोगों को इस बारे में और ज्यादा जागरूक करना था."
फोन भी गंदे, नोट भी गंदे
इससे यह बात एक बार फिर पुष्ट हुई कि यदि कोई जगह साफ नजर आती है तो जरूरी नहीं कि वह साफ ही हो. मसलन फोन भी कारों की तरह ही गंदे होते हैं. कुछ शोधों में पता चला है कि फोन किसी टॉयलेट सीट से दस गुना ज्यादा तक गंदा हो सकता है. इस मामले में करंसी नोट और सिक्कों की स्थिति भी काफी खराब है. न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि एक बैंक नोट पर तीन हजार तरह के बैक्टीरिया हो सकते हैं.
आमतौर पर गंदगी की तुलना के लिए शौचालयों का ही इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि टॉयलेट सीट को लेकर अवधारणा बनी होती है कि वे सबसे गंदी होती हैं. कॉक्स बताते हैं, "लोगों को इससे तुलना करने में आसानी होती है. हममें ज्यादातर लोग शौचालयों की सफाई के लिए केमिकल्स का प्रयोग करते हैं. कुछ तो ऐसा रोजाना करते हैं. लेकिन क्या हम अपनी कारों को ब्लीच करते हैं? नहीं."
लाहौर हाई कोर्ट की मुल्तान बेंच ने मॉडल और एक्ट्रेस क़ंदील बलोच की हत्या के मुक़दमे में मुख्य अभियुक्त और पीड़िता के भाई मोहम्मद वसीम को उम्र क़ैद की सज़ा से बरी कर दिया है.
लाहौर हाईकोर्ट की मुल्तान बेंच के जस्टिस सुहैल नासिर ने दोनों पक्षों में सुलह होने और गवाहों के बयानों से पलटने पर मुख्य अभियुक्त को बरी कर दिया है. यह फ़ैसला मुख्य अभियुक्त मोहम्मद वसीम की मॉडल कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील पर सुनवाई करते हुए दिया गया है.
अभियुक्त मोहम्मद वसीम की ओर से एडवोकेट सरदार महबूब ने कोर्ट में दलीलें पेश कीं. ग़ौरतलब है कि मुल्तान की मॉडल कोर्ट ने 27 सितंबर 2019 को क़ंदील बलोच हत्याकांड में फ़ैसला सुनाते हुए मुख्य अभियुक्त और पीड़िता के भाई मोहम्मद वसीम को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.
सोशल मीडिया पर अपने बेबाक अंदाज़ के लिए पहचानी जाने वाली क़ंदील बलोच की जुलाई 2016 में हत्या कर दी गई थी, तब वह अपने घर में मौजूद थीं. पुलिस जांच में सामने आया था कि उनकी हत्या गला दबाकर की गई थी.
बीबीसी संवाददाता तुरहब असगर से बात करते हुए क़ंदील बलोच के वकील सफ़दर अब्बास शाह ने कहा कि क़ंदील के माता-पिता ने, उन्हें क़ंदील का वकील नियुक्त किया था जबकि एडवोकेट महबूब को क़ंदील के भाइयों का वकील नियुक्त किया गया था.
उन्होंने बताया कि "मैंने क़ंदील के माता-पिता की तरफ़ से राज़ीनामा जमा कराया था कि अगर अदालत वसीम को बरी करती है तो इस पर हमें कोई आपत्ति नहीं है. हालांकि, इसके बाद वसीम के वकील ने अदालत में बरी किये जाने की रिट दायर की और सोमवार को उन्हें बरी कर दिया गया."
उन्होंने आगे कहा कि "क़ंदील के भाई को दो चीज़ों के आधार पर बरी किया गया है. एक हमारी तरफ़ से जमा कराया गया राज़ीनामा और दूसरा अदालत में पुलिस की तरफ़ से पेश किया गया 164 का बयान है. इसी के आधार पर वसीम की तरफ़ से ये कहा गया कि 'पुलिस ने मुझे धमका कर इक़बालिया बयान लिया था, जबकि मैंने क़ंदील को नहीं मारा'."
एडवोकेट सफ़दर अब्बास ने आगे कहा कि क़ंदील के माता-पिता चाहते थे कि उनके बेटे इस केस से बरी हो जाएं, लेकिन एक महीना पहले क़ंदील के पिता की भी मृत्यु हो गई थी जो इस केस में वादी थे.
मुल्तान की मॉडल अदालत ने साल 2019 में इस मुक़दमे के एक अभियुक्त मोहम्मद आरिफ़ को वाॉन्टेड घोषित किया था, जबकि क़ंदील के भाई असलम शाहीन और धार्मिक स्कॉलर और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के उलेमा विंग के पूर्व सदस्य मुफ़्ती अब्दुल क़वी समेत पांच अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था.
जज ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि 'मोहम्मद वसीम को धारा 311 के तहत उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई जाती है, जबकि अभियोजन पक्ष अन्य अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप साबित करने में विफल रहा है.'
ध्यान रहे कि मोहम्मद वसीम ने अपनी गिरफ़्तारी के बाद क़बूल किया था कि ये अपराध उन्होंने किया है और इसका कारण यह बताया था कि 'क़ंदील बलोच परिवार की बदनामी की वजह बन रही थी' लेकिन बाद में जब औपचारिक रूप से चार्जशीट दाख़िल की गई तो उन्होंने इससे इंकार कर दिया था.
इससे पहले क़ंदील के पिता ने अदालत में मोहम्मद वसीम और असलम शाहीन के लिए क्षमा याचना दाखिल की थी जिसे ख़ारिज कर दिया गया था.
इस मुक़दमे के अभियुक्तों में क़ंदील के दो भाई मोहम्मद वसीम और असलम शाहीन के अलावा उनके क़रीबी रिश्तेदार हक़ नवाज़, ज़फ़र इक़बाल, मोहम्मद आरिफ़, मुफ्ती अब्दुल क़वी और अब्दुल बासित शामिल थे.
मोहम्मद वसीम और हक़ नवाज़ इस मामले में मुख्य अभियुक्त थे जबकि अब्दुल बासित टैक्सी ड्राइवर थे और उन पर क़ंदील बलोच की हत्या के बाद मोहम्मद वसीम और हक़ नवाज़ को भागने में मदद करने का आरोप लगाया गया था.
इस मुक़दमे को मुल्तान के डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज की अदालत से मॉडल कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था ताकि मुक़दमे का जल्द से जल्द फ़ैसला हो सके. इसी अदालत ने साल 2019 में ही पीड़िता के पिता की तरफ़ से दोनों बेटों के लिए दायर की गई क्षमा याचना को रद्द कर दिया था.
अदालत ने कहा था कि ऑनर किलिंग के मामलों में वादी द्वारा दायर की गई सुलह या क्षमादान की अर्ज़ी को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
छह साल पहले जब क़ंदील बलोच की हत्या की गई थी, तब पीड़िता के पिता और वादी मोहम्मद अज़ीम ने दो टूक शब्दों में कहा था कि वह अभियुक्तों को किसी भी क़ीमत पर माफ़ नहीं करेंगे.
क़ंदील बलोच कौन थीं?
क़ंदील बलोच पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के दक्षिणी ज़िले मुल्तान के एक ग़रीब परिवार से थीं. उनका असली नाम फ़ौजिया अज़ीम था लेकिन उन्हें शोहरत क़ंदील बलोच के नाम से मिली थी.
उन्हें पाकिस्तान की पहली सोशल मीडिया सेलिब्रिटी कहा जाता है और सोशल मीडिया पर उन्हें ये शोहरत अपने उस बेबाक अंदाज़ की वजह से मिली जो बाद में उनकी हत्या की भी वजह बनी.
सोशल मीडिया पर उनके हज़ारों प्रशंसक थे और उनकी हत्या से पहले पाकिस्तान में इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा सर्च की जाने वाली दस शख़्सियतों में उनका नाम भी शामिल था.
साल 2014 में शोहरत हासिल करने के बाद क़ंदील की निजी ज़िंदगी की जानकारी भी सामने आई थी. यह भी पता चला कि उनकी शादी कम उम्र में ही हो गई थी और उनका एक बेटा भी है. क़ंदील ने अपने पति के बारे में दावा किया था कि 'वह एक ज़ालिम व्यक्ति था जो उसे मारता-पीटता था और इसीलिए वो अपने बेटे के साथ उसे छोड़ कर आ गई थी.'
उन्होंने कहा कि बेटे का ख़र्च उठाने में असमर्थ होने के कारण, बाद में उन्होंने उसे उसके पिता को सौंप दिया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ क़ंदील ने उसके बाद से अपने बेटे को नहीं देखा था.
हालांकि, बेटे को उसके पिता के पास भेजने के बाद ही फ़ौजिया अज़ीम क़ंदील बलोच बनी. उनकी बेबाक हरकतों को देखते हुए ये आशंका ज़ाहिर की गई थी कि उनकी जान को ख़तरा हो सकता है, लेकिन क़ंदील ने अपने अंदाज़ और विचारों के लिए कभी माफ़ी नहीं मांगी.
बीबीसी उर्दू को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "मुझे धमकियां मिलती हैं लेकिन मेरा यक़ीन है कि मौत का समय निश्चित है और जब आपकी मौत का समय आता है तो आपको मरना ही पड़ता है."
क़ंदील केस की वजह से ऑनर किलिंग के क़ानून में संशोधन
साल 2016 में, पाकिस्तान की संसद ने क़ंदील बलोच की हत्या की प्रतिक्रिया में शुरू हुए आंदोलन के बाद ऑनर किलिंग क़ानून में संशोधन पारित किया था. इसके अनुसार मृतक के परिजनों की तरफ़ से क्षमा किये जाने के बाद भी हत्यारे को उम्र क़ैद या 25 साल क़ैद की सज़ा होगी.
इससे पहले पाकिस्तान में ऑनर किलिंग के ज़्य़ादातर मामलों में यह पाया गया था कि वादी हत्यारे के माता-पिता या भाई-बहन होते थे, जो उन्हें माफ़ कर देते थे, जिसके बाद उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा ख़त्म हो जाता था.
क़ंदील बलोच की हत्या के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में इसकी चर्चा हुई और यह घटना अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी आई और पाकिस्तान में ऑनर किलिंग की घटनाओं के बढ़ने का कारण इस संबंध में उचित क़ानून का ना होना बताया गया था. (bbc.com)
-शुमाइला जाफ़री
राबिया (बदला हुआ नाम) की कुछ साल पहले एक लड़के से दोस्ती थी. दोस्ती जब बढ़ी तो राबिया ने अपनी कुछ अंतरंग तस्वीरें दोस्त से शेयर कीं. कुछ दिन बाद दोनों का रिश्ता टूट गया और फिर एक दिन राबिया ने देखा कि उसके एक्स ब्वॉयफ़्रेंड ने वो तस्वीरें पोर्न वेबसाइट पर शेयर कर दीं.
राबिया जब मुझसे मिलने एक गोपनीय जगह आईं तो हर चीज़ को संदेह भरी नज़रों से देख रही थीं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, "मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अब इसे रोका जा सकता है. दिमाग़ काम नहीं कर रहा था. एक तरह से ब्रेकडाउन वाली स्थिति थी क्योंकि वो तस्वीरें तेज़ी से फैल चुकी थीं. मैं डर गई थी कि किसी जान पहचान वाले की नज़र उन तस्वीरों पर गई तो क्या होगा, या किसी ऐसे आदमी को मिल जाए जिसके साथ मेरे संबंध अच्छे नहीं हों, तो वो इसका कैसे इस्तेमाल करेगा."
ऐसे मुश्किल दौर में अपनी दोस्त की मदद से राबिया ने लाहौर स्थित ग़ैर सरकारी संगठन डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन की हेल्पलाइन की मदद ली. यह संगठन पाकिस्तान में महिलाओं को डिजिटल सुरक्षा मुहैया कराने के लिए काम करता है और महिलाओं में जागरुकता भी फैलाता है.
राबिया ने अदालत में अपने पूर्व ब्वॉयफ़्रेंड पर तो कोई आरोप नहीं लगाए, लेकिन वो एडल्ट साइट्स से अपनी तस्वीरें हटवाने में कायमाब रहीं. हालांकि उन्हें अभी भी लगता है कि वह किसी जाल में फंसी हुई हैं और उन्हें समझौते करने पड़ रहे हैं.
राबिया ने बताया, "अब तो मेरा किसी पर भरोसा ही नहीं रहा. मुझे हमेशा इस बात का डर भी सताता रहता है कि क्या वे तस्वीरें फिर से इंटरनेट पर आ जाएंगी. यह डर तो लगता है कि अब जीवन भर रहेगा."
दरअसल राबिया का मामला पाकिस्तान में तेज़ी से बढ़ते 'रिवेंज पोर्न' के मामलों का एक उदाहरण भर है. अंतरंग तस्वीरों का बिना सहमति के इस्तेमाल और उसके ज़रिए ब्लैकमेल करने के मामले पाकिस्तान में तेज़ी से बढ़े हैं.
कई बार बहुत साल पहले बनाए गए वीडियो को रिवेंज पोर्न के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जिससे पीड़ित महिलाओं की ज़िंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ता है.
डिज़िटल राइट्स फ़ाउंडेशन के मुताबिक़, उनकी हेल्पलाइन को पिछले साल चार हज़ार से ज़्यादा शिकायतें मिलीं जिनमें 1,600 के क़रीब अंतरंग तस्वीरों की बिना सहमति के इस्तेमाल करने से जुड़ी थीं.
इस पहलू पर काम करने वाले एक्टिविस्टों के मुताबिक़ इसके वास्तविक मामलों का पता लगाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि अधिकांश मामलों में महिलाएं शर्म और कलंक के डर से शिकायत करने सामने नहीं आतीं.
पाकिस्तान की फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के साइबर क्राइम विंग की जांच अधिकारी उज़्मा ख़ान के मुताबिक़ उनके पास शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या पिछले कुछ सालों में कई गुना बढ़ी है. साइबर क्राइम विंग के पास ही रिवेंज पोर्न से जुड़ी शिकायतों को देखने की ज़िम्मेदारी है.
ज़्यादातर मामलों में ये शिकायतें पूर्व-ब्वॉयफ़्रेंड, मंगेतर, असंतुष्ट सहकर्मी और कई मामलों में पति के ख़िलाफ़ होती हैं. अधिकांश मामलों में महिला की अंतरंग तस्वीरों या वीडियो को परिवार के सदस्यों के पास भेजने या सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी दी जाती है.
2016 में पाकिस्तान में साइबर क्राइम रोकने के लिए रिवेंज पोर्न जैसे अपराधों में सात साल की सज़ा और भारी भरकम जुर्माने का प्रावधान किया गया. बावजूद इसके अभी भी ज़्यादातर महिलाएं साइबर विंग से मदद लेकर दोषियों को सज़ा दिलाने के क़ानूनी रास्ते का चुनाव नहीं करती हैं.
उज़्मा ने बताया, "इन महिलाओं को लगता है कि भयंकर नुक़सान तो हो ही चुका है, अब इसे यहीं बंद किया जाए. बस अब और आगे नहीं. वे चाहती हैं कि मामले की जानकारी ज़्यादा लोगों तक नहीं पहुंचे. वे अपने परिवार तक से इसे गोपनीय रखना चाहती हैं."
उज़्मा महिलाओं के पीछे हटने की एक और वजह बताती हैं, "उनके पास लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए न तो संसाधन होते हैं और न ही स्टेमिना. कई बार इसके चलते उनकी सगाई या शादी टूट चुकी होती है. कई मामलों में तो महिलाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी दिखती है."
तस्वीरें शेयर करते वक़्त सावधानी बरतें
डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन की कोशिश ऐसी महिलाओं को मदद करने की है जो अपराध की शिकार तो हैं लेकिन डर और कलंक के चलते शिकायत करने सामने नहीं आतीं. यह संस्था महिलाओं की न केवल मानसिक तौर पर मदद करती है, बल्कि अदालत में क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाली महिलाओं को क़ानूनी मदद भी मुहैया कराती है.
डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन की कार्यकारी निदेशक निग़त दाद बताती हैं, "मेरे ख़्याल से तकनीक और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली युवतियां और महिलाएं ऐसे अपराध का शिकार हो सकती हैं. वे यूज़र तो होते हैं लेकिन उन्हें सुरक्षा के प्रावधानों के बारे में जानकारी नहीं होती. उन्हें ये भी नहीं मालूम होता है कि वे क्या डेटा, किसके साथ शेयर कर रही हैं और इससे वे कहां पहुंच सकती हैं."
निग़त के मुताबिक़, रिवेंज पॉर्न की शिकार ज़्यादातर महिलाओं को लगता है कि यह उनकी ग़लती से हुआ. उन्होंने किसी पर विश्वास करके डेटा शेयर किया जिसके चलते यह मुश्किल सामने आई.
निग़त ये भी बताती हैं कि ग्रामीण इलाक़ों में अधिकांश महिलाओं को क़ानूनी प्रावधानों और डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन जैसी संस्थाओं के बारे में जानकारी नहीं होती. अधिकांश मामलों में महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों से भी मदद नहीं लेतीं क्योंकि परिवार को बताने पर उन पर दोष मढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है. निग़त के मुताबिक़, कई बार रिवेंज पॉर्न के मामले में ऑनर किलिंग भी हो जाती है.
2016 में पाकिस्तान की पहली महिला सोशल मीडिया सेलिब्रेटी कंदील बलोच की हत्या उनके ही भाई ने कर दी थी क्योंकि उनका मानना था कि कंदील सोशल मीडिया पर 'परिवार की इज़्ज़त धूमिल करने वाले बोल्ड वीडियो' पोस्ट कर रही थीं.
कंदील बलोच की हत्या के बाद ही सोशल प्लेटफ़ॉर्म को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के बारे में बहस शुरू हुई और पीड़ितो की मदद के लिए क़ानून बनाए गए.
क़ानून लागू करने के पांच साल बाद भी रिवेंज पोर्न, अंतरंग तस्वीरों का सहमति के बिना इस्तेमाल और तस्वीर के साथ छेड़छाड़ कर ब्लैकमेल करने के मामलों में केवल 27 लोगों को दोषी क़रार दिया गया है.
'लंबी और थकाने वाली क़ानूनी प्रक्रिया'
पिछले महीने पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने कराची यूनिवर्सिटी की एक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की केस स्टडी को अपनी गंभीर रिपोर्ट में शामिल किया है. यह केस स्टडी मंगलवार को लॉन्च की जा रही है.
आयोग की 'रीथिंकिंग द प्रीवेंशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स एक्ट, हाउ साइबर क्राइम्स लॉज़ आर वीपेनाइज़्ड अगेंस्ट वीमेंस' नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एक महिला असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ने अपनी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करके ऑनलाइन पोस्ट किए जाने की शिकायत दर्ज कराई थी.
शिकायत दर्ज कराने के चार साल आठ महीने और 141 सुनवाई के बाद उसी यूनिवर्सिटी के एक अस्सिटेंट प्रोफ़ेसर को इसके लिए दोषी क़रार दिया गया. इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि इन चार सालों के दौरान संघीय जांच एजेंसी (एफ़आईए) ने मामले को बर्बाद करने की तमाम कोशिशें कीं.
जांच एजेंसी ने पहले तो महिला को अदालत की सुनवाई के बारे में जानकारी नहीं दी. महिला को सुनवाई में शामिल होने के लिए घंटों इंतज़ार करना होता था क्योंकि जांच अधिकारी और अभियोजक मौजूद नहीं होते थे. अभियुक्त के वकील के सवाल शर्मसार करने वाले होते थे. वो महिला प्रोफ़ेसर से उन तस्वीरों के बारे में विस्तार से बताने के लिए कहते थे.
निग़त दाद के मुताबिक़ एजेंसी हालांकि अपनी प्रक्रिया सरल और महिला के प्रति ज़्यादा सहज बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इस रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं, वो कुछ हद तक ठीक हैं.
निग़त दाद बताती हैं, "कुछ ही मामले हैं जो अदालत तक पहुंचते हैं. अगर पीड़िता महिला की शिकायत दर्ज हो जाए और सुनवाई शुरू हो जाए तो दूसरा सवाल सामने आता है कि क्या अदालती कार्रवाई के दौरान पीड़िता ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर पाएगी. यह भी तय करना होता है कि सुनवाई की बातें मीडिया की सुर्ख़ियां न बनें और अदालत के सामने जो सबूत पेश किए जाएं वे ठोस और भरोसेमंद हों. साथ ही उन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक न किया जाए. दुर्भाग्य ये है कि क़ानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी और थकाने वाली होती हैं. इस चलते महिलाएं न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए सामने नहीं आना चाहतीं."
निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार
वैसे पाकिस्तान की फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी एफ़आईए इन आरोपों और पीड़िता के साथ किसी तरह के भेदभाव से इनकार करती है.
एजेंसी का कहना है कि वह प्रक्रिया को और ज़्यादा सरल बनाने के लिए काम कर रही है. पिछले कुछ सालों में एजेंसी में दर्जनों नियुक्तियां हुई हैं. नई तकनीक के आधार पर लोगों को प्रशिक्षित भी किया गया है.
साइबर क्राइम विंग के ऑपरेशंस डायरेक्टर बाबर बख़्त क़ुरैशी कहते हैं कि इन सब के बाद भी दोषियों को सज़ा दिलाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण है.
उन्होंने बताया, "दोष साबित करने के लिए सुनवाई में पर्याप्त समय लगता है. देश के संविधान के तहत निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार सभी को है. लेकिन इसमें कुछ साल लगते हैं. 2016 में 'प्रीवेंशन ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स एक्ट' लागू हुआ और 2019 से अब तक 27 मामलों में अभियुक्त पर ही दोष साबित किया जा सका है."
बाबर बख़्त क़ुरैशी के मुताबिक़ साइबर क्राइम विंग में ज़्यादा महिलाओं को नियुक्त किया जा रहा है और सभी महिलाओं को जेंडर को लेकर संवेदनशील होने की ट्रेनिंग दी गई है.
उन्होंने बताया, "जो महिलाएं हमारे पास आ रही हैं उनके लिए हम चीज़ें सरल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि वे अपने लिए खड़ी हों, लेकिन हमारी तमाम कोशिशों के बाद भी वे कई बार पीछे हट जाती हैं. ऐसी स्थिति में दोषियों को सजा दिलाना असंभव हो जाता है." (bbc.com)
नई दिल्ली, 14 फरवरी | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अमेरिका के 'आतंक के खिलाफ युद्ध' ने और अधिक आतंकवादियों को जन्म दिया है। डॉन न्यूज ने इसकी जानकारी दी है। प्रधानमंत्री ने सीएनएन पर पत्रकार फरीद जकरिया के साथ एक विशेष साक्षात्कार के दौरान विचार व्यक्त किए, जो रविवार को प्रसारित हुआ, जब उनसे व्यापक मध्य पूर्व में आतंकवाद के बारे में पूछा गया।
उन्होंने कहा, "अमेरिका ने 'आतंक के खिलाफ युद्ध' ने वास्तव में आतंकवादियों को जन्म दिया है। मैं आपको पाकिस्तान के उदाहरण से बता सकता हूं क्योंकि अमेरिका में शामिल होने से, हमारे 80,000 लोग मारे गए थे।" उन्होंने कहा कि युद्ध ने और अधिक आतंकवादी पैदा किए क्योंकि यह साथ-साथ चल रहा था।
उन्होंने कहा, "मुझे विश्वास है कि यह वही है जो अफगानिस्तान में हुआ था। इन रात के छापे और ड्रोन हमलों को लेकर अमेरिका को अपनी नीति की समीक्षा करनी चाहिए।"
खान ने कहा कि अमेरिकी नागरिकों को बताया जा रहा था कि ड्रोन हमले सटीक थे और आतंकवादियों को निशाना बनाया गया था।
उन्होंने कहा, "मुझे डर है, अमेरिका में जनता को क्षति की मात्रा का पता नहीं था (जो हुआ था)। हमें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।"
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अमेरिका का सहयोगी माना जाता है और इसलिए उसे बदला लेने के हमलों का सामना करना पड़ा।
"पूरे देश में आत्मघाती हमले हुए। हमने 80,000 लोगों को खो दिया।"
जकरिया ने कहा, "लेकिन अमेरिका पीछे हट गया है और आतंक जारी है।" जिस पर खान ने कहा कि अब हमले 'बहुत कम' हैं। (आईएएनएस)
काबुल, 14 फरवरी| तालिबान सरकार के उप प्रवक्ता इनामुल्ला समांगानी ने रविवार को अफगानिस्तान की संपत्ति को 9/11 आतंकवादी हमलों के पीड़ितों को मुआवजा देने के वाशिंगटन के अनुचित फैसले की आलोचना की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने समंगानी के हवाले से कहा, "अफगानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार को संभालने पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन का हालिया निर्णय जल्दबाजी में किया गया अनुचित बदला है, जो अमेरिका की अत्यधिक घोर नैतिकता को प्रदर्शित करता है।"
अफगानिस्तान से अगस्त 2021 में अपने सैनिकों की वापसी के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक की लगभग 10 अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया है, जिससे युद्धग्रस्त एशियाई देश में आर्थिक संकट और गरीबी बढ़ गई है।
शुक्रवार को जारी एक डिक्री में बाइडेन ने कथित तौर पर 9/11 के आतंकवादी हमलों के पीड़ितों को नुकसान के रूप में संपत्ति से 3.5 अरब डॉलर के आवंटन का आदेश दिया और तालिबान की सहमति के बिना मानवीय सहायता के रूप में अफगानों की 3.5 अरब डॉलर अधिक दिए।
समांगानी ने कहा, "सैन्य हार झेलने के बाद अमेरिका अब इस तरह का अनुचित निर्णय लेकर अपनी नैतिक हार की मुहर लगा रहे हैं। अफगान संपत्ति का भुगतान अमेरिकियों द्वारा अफगानों को मुआवजे या मानवीय सहायता के रूप में नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे अफगानिस्तान की संपत्ति हैं।"
न्यूयॉर्क और वाशिंगटन पर 11 सितंबर, 2001 को आतंकवादी हमलों के संबंध में समांगानी ने कहा, "हर कोई जानता है कि इसमें कोई भी अफगान शामिल नहीं था, कोई हमलावर अफगानी नहीं था, हमलों में इस्तेमाल किए गए विमान अफगानिस्तान से संबंधित नहीं थे और वह क्षेत्र जहां से हमले हुए अफगानिस्तान से संबंधित नहीं थे।"
अधिकारी ने कहा, "अफगानिस्तान की संपत्ति से मुआवजा लेना पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और अनुचित है।"
समांगानी ने अमेरिका पर अफगानिस्तान में अपनी 20 साल की सैन्य उपस्थिति के दौरान अफगानों के खिलाफ अपराध करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अमेरिकी सैनिकों ने 100,000 से अधिक अफगानों को मार डाला है।
सामगनी ने कहा, "लाखों अफगानों को गिरफ्तार किया गया है और घायल किया गया है और विस्थापित किया गया है, और उन्हें मुआवजा किसे देना चाहिए?"
उन्होंने कहा, "दुनिया का सबसे अमीर देश दुनिया के सबसे गरीब देश की जेब से चोरी कर रहा है।" (आईएएनएस)
ट्रकों की हड़ताल के कारण कनाडा और अमेरिका के सामने संकट खड़ा हो गया है.
सैंकड़ों ट्रकों ने ऑन्टेरियो के विंडसर में एंबेसडर ब्रिज को ठप किया हुआ है. यहां से सामानों की आवाजाही रुक गई है. कोई सामान ना अमेरिका जा पा रहा है और ना वहां से आ रहा है.
50 हज़ार से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों ने ब्रिज को जाम किया हुआ है. इसके चलते ऑन्टेरियो में इमर्जेंसी की घोषणा की गई है और कोर्ट ने भी मामले में दखल दिया है. वहीं, राजधानी ओटावा में भी विरोध प्रदर्शन चल रहा है.
ब्रिज से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पुलिस कार्रवाई भी की गई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. प्रदर्शनकारी अब भी वहाँ डटे हुए हैं. ऐसे में इस गतिरोध का क्या समाधान है.
पुलिस यहाँ बसों में पहुंची थी. उनके चेहरे आधे ढके हुए थे और उनके हाथों में लंबी बंदूकें थीं. वह दर्जनों विरोध प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए तैयार थे.
वहाँ छोटे ट्रक और गाड़ियां खड़ी थीं जिन पर कनाडा का झंडा लगा था. वैक्सीनेशन और जस्टिन ट्रूडो के विरोध में नारे लग रहे थे. वहाँ कुछ बड़े कमर्शियल ट्रक भी थे.
लगभग दो किमी. की सड़क पर करीब 100 गाड़ियां खड़ी की गई हैं. ये सड़क ब्रिज की तरफ़ जाती है और एक हफ़्ते में गाड़ियां यहाँ तक भी पहुंच सकती हैं.
क्या है विरोध की वजह
इस विरोध प्रदर्शन की वजह है कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का दिया एक आदेश. इसके तहत अमेरिका से आने वाले उन्हीं ट्रक चालकों को कनाडा में प्रवेश करने दिया जाएगा, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन लगवा रखी हो वरना उन्हें क्वारंटीन होना पड़ेगा. ट्रक ड्राइवर्स के संगठन के इस नियम का विरोध कर रहे हैं.
लेकिन, यहाँ मौजूद प्रदर्शनकारी सिर्फ़ इसलिए एकजुट नहीं हैं क्योंकि वो एक ही पेशे में हैं बल्कि कुछ मसलों ने उन्हें एकसाथ जोड़ रहा है. जैसे वैक्सीन को लेकर भरोसे की कमी, सरकार से धोखा मिलने का डर और प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के प्रति नापसंदगी.
बारह घंटों से भी अधिक समय बाद कोर्ट ने विंडसर से प्रदशर्नकारियों को हटाने के आदेश दिए. पुलिस शनिवार सुबह यहाँ पहुंची. कई गाड़ियां तुरंत चली गईं लेकिन फिर भी विरोध प्रदर्शन ख़त्म नहीं हुआ.
विंडसर पुलिस सर्विस के डिप्टी चीफ़ ऑपरेशंस जेसन बेलेयर ने कहा कि और गाड़ियां शाम तक उठा ली जाएंगी. लेकिन, गाड़ियां अभी समस्या नहीं हैं. दिक्क़त लोगों से है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, ‘‘हम उन्हें स्पष्ट करने की ज़रूरत है कि वो यहां नहीं रुक सकते और ब्रिज को बाधित नहीं कर सकते.’’
कई गाड़ियां चली गई हैं लेकिन लोगों ने सड़कों को जाम किया हुआ है.
क्या कहते हैं प्रदर्शनकारी
एक प्रदर्शनकारी टीन ने कहा, ‘‘वो (सरकार में नेता) भगवान के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं.’’
इस नौजवान महिला की आंखें छलक आती हैं जब वो बताती हैं कि कैसे वैक्सीन की अनिवार्यता से उनके परिवार पर प्रभाव पड़ा है.
उन्होंने कहा, ‘‘अगर मेरा परिवार बीमार हो जाता है तो मैं उनके पास रहना चाहती हूं. मैंने कई परिवारों को अकेले मरते देखा है. ये सही नहीं है.’’
पुलिस प्रदर्शनकारियों को पीछे हटा रही है लेकिन उन्हें खास सफलता नहीं मिली है. उन्होंने जिन सड़कों को घेरा है उसमें प्रवेश के कई रास्ते हैं. आसपास आवासीय इलाक़ा भी है. लोग यहां आसानी से आ रहे हैं और विरोध प्रदर्शन बढ़ रहा है.
कनाडा में 90 प्रतिशत वैक्सीनेशन दर है जो कि अमेरिका से बहुत ज़्यादा है. देश के कई हिस्सों बार, जिम और रेस्टोरेंट में वैक्सीनेशन का सबूत दिखाना ज़रूरी है.
एक विरोध प्रदर्शनकारी डैन ने कहा, ‘‘वो हमें यहां से भगाने जा रहे हैं. हम शांतिपूर्ण रहेंगे और हाथ पकड़कर एकता दिखाएंगे.’’
फिलहाल गतिरोध की स्थिति बनी हुई और पुलिस प्रदर्शनकारियों को समझाने की कोशिश कर रही है.
डिप्टी चीफ़ जेसन बेलेयर कहते हैं, ‘‘हम उन्हें समझा रहे हैं, उनसे बात कर रहे हैं ताकि सबकुछ शांतिपूर्ण तरीके से हल हो जाए.’’
वहीं, इस इलाक़े से 750 किमी पूर्व राजधानी ओटावा में भी विरोध प्रदर्शन चल रहा है जो शांत नहीं हो रहा है.
इस विरोध प्रदर्शन में विंडसर के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा लोग हैं. हज़ारों लोग कनाडा के झंडे के साथ राजधानी की सड़कों और गलियों में निकल आए हैं.
प्रदर्शनकारियों के लिए खाने का इंतजाम है, लोग म्यूज़िक पर स्ट्रीट हॉकी खेल रहे हैं, हॉर्न बजा रहे हैं और ‘आज़ादी’ के नारे लगा रहे हैं.
जस्टिन स्मिथ विरोध प्रदर्शन वाली जगह पर अपनी पत्नी के साथ आए हैं.वो कहते हैं, ‘‘ये वैक्सीन विरोध अभियान नहीं है. ये आज़ादी का अभियान है. ये चुनने की आज़ादी के लिए है.’’
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक शख़्स को भीड़ ने क़ुरान के अपमान के आरोप में पीट-पीटकर मारा डाला है. ये घटना खानेवाल ज़िले के तुलंबा शहर की है.
खानेवाल ज़िला पुलिस और अतिरिक्त आईजी दक्षिण पंजाब कार्यालय ने मॉब लिचिंग में एक शख़्स के मारे जाने की पुष्टि की है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इस लिंचिंग को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है. इमरान ख़ान ने ट्वीट कर कहा, ''क़ानून को कोई अपने हाथ में नहीं ले सकता. इसे क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. मॉब लिंचिंग में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ क़ानून सख़्ती से निपटेगा. पंजाब के आईजी से कहा गया है कि लिंचिंग में शामिल लोग और जो पुलिस वाले इसे रोकने में नाकाम रहे उनके ख़िलाफ़ रिपोर्ट तैयार करें.''
खानेवाल ज़िला पुलिस प्रवक्ता इमरान ने बीबीसी उर्दू से कहा कि मियां चन्नु तहसील में ग़ुस्साई भीड़ ने एक शख़्स को पीट-पीट कर मार दिया. (bbc.com)
काले सागर में बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास, अमेरिका के साथ तमाम यूरोपीय देशों की नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की सलाह और यूक्रेन के रूसी दूतावास में फेरबदल के बीच हमले की चेतावनी को रूस ने अमेरिका की "मिर्गी" करार दिया है.
रूस ने यूक्रेन में मौजूद अपने राजनयिक अधिकारियों की मौजूदगी "अनुकूल" बनाने की बात कही है. यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे तनाव को देखते हुए इसका अंदाजा स्टाफ की संख्या में कमी से लगाया जा रहा है. हालांकि रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने साफ तौर पर इस बारे में कुछ नही कहा. जाखारोवा ने बताया है कि दूतावास और वाणिज्य दूतावास अपने प्रमुख काम करते रहेंगे. रूसी प्रवक्ता का कहना है कि यूक्रेन और दूसरे पक्षों की तरफ से "उकसावे" को देखते हुए कर्मचारियों की सुरक्षा के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है.
इससे पहले शनिवार की सुबह रूस की नौसेना ने बड़े पैमाने पर काले सागर में युद्धाभ्यास शुरू कर दिया. रूस के रक्षा मंत्रालय ने शनिवार सुबह कहा, "काले सागर में मौजूद हमारी फ्लीट से 30 जहाज सेबास्टोपोल और नोवोरोसिस्क सागर में पहले से तय अभ्यास के लिए गए हैं. इस अभ्यास का मकसद क्राइमिया प्रायद्वीप के तटों के साथ ही ब्लैक सी फ्लीट के सैनिक अड्डों और देश के आर्थिक क्षेत्र की संभावित सैन्य खतरों से सुरक्षा है.
यह अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जबअमेरिका बार बार कह रहा है कि रूस यूक्रेन पर "कभी भी" हमला कर सकता है. हालांकि रूस ने इसे अमेरिका की "मिर्गी" कह कर खारिज किया.
यूक्रेन से विदेशियों की वापसी
इस बीच अमेरिका के बाद जर्मनी ने भी अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने के लिए कह दिया है. यूरोपीय संघ के कई और देश भी अपने नागरिकों के लिए यह चेतावनी जारी किया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तो पहले ही अपने नागरिकों कोयूक्रेन से निकल जाने के लिए कह चुके हैं. ब्रिटेन, कनाडा, नॉर्वे और डेनमार्क समेत नाटो के कई सहयोगी देशों ने भी अपने नागरिकों के लिए यही संदेश जारी किया है.
शनिवार सुबह अमेरिकी विदेश विभाग ने यूक्रेन में मौजूद गैर-आपातकालीन स्टाफ को भी यूक्रेन से जाने के लिए कह दिया. अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों के परिवारवालो को वहां से पहले ही हटाया जा चुका है. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जेक सुलिवैन ने पत्रकारों से कहा है कि हवाई और मिसाइल हमले से शुरुआत होने की आशंका है. अमेरिकी अधिकारी अपने नागरिकों को "जितनी जल्दी हो सके" यूक्रेन से निकलने के लिए कह रहे हैं.
अमेरिका की "मिर्गी"
हालांकि रूस ने हमले की अमेरिका के तरफ से अपने नागरिकों को दी जा रही चेतावनियों का मजाक उड़ाया है और इसे "मिर्गी" करार दिया है. मारिया जाखारोवा ने टेलिग्राम पर लिखा है, "व्हाइट हाउस की मिर्गी इस बार सबसे ज्यादा सामने आई है. एंग्लो-सेक्सन को एक जंग की जरूरत है. हर कीमत पर. उकसावा, गलत सूचना और चेतावनियां उनकी अपनी समस्याओं के हल का पसंदीदा तरीका हैं." एंग्लो-सेक्सन उन लोगों को कहा जाता है जो पांचवीं सदी में यूरोप से ब्रिटेन जा कर बस गए थे और सांस्कृतिक रूप से रोमन ब्रिटेन को जर्मैनिक ब्रिटेन में बदल दिया. इसमें कई अलग अलग समुदायों के लोग थे जिन्होंने एक साझी संस्कृति और भाषा को अपनाया.
अमेरिका में रूस के राजदूत अनातोली अंटोनोव ने न्यूजवीक मैगजीन से कहा है कि अमेरिकी चेतावनियां "भय फैलाने वाली" हैं. इसके साथ ही अंटोनोव ने दोहराया है रूस किसी पर हमला नहीं करने जा रहा है.
बाइडेन पुतिन की टेलिफोन पर बातचीत
इन सब के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन शनिवार को टेलिफोन पर बात करने जा रहे हैं. बाइडेन से बातचीत के पहले रूसी राष्ट्रपति फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों से भी फोन पर बात करेंगे. इस हफ्ते की शुरुआत में माक्रों और पुतिन की मुलाकात भी हो चुकी है.
इस बीच इलाके में अमेरिका ने 3000 अतिरिक्त सैनिकों को भेजा है. हालांकि बाइडेन ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि अमेरिका सेना यूक्रेन में यु्द्ध लड़ने नहीं उतरेगी.
ऐसी खबरें आ रही हैं कि अमेरिका को खुफिया सूत्रों से खबर मिली है कि रूस अपने संभावित निशाने की तलाश में है. हालांकि पुख्ता तौर पर अभी ऐसी किसी जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया है.
एनआर/एमजे (एपी, एएफपी)
सना, 13 फरवरी| यमन के हाउतियों ने उत्तरी प्रांत हज्जा के हरद शहर से सरकारी सेना को खदेड़ दिया है जिसमें 60 से ज्यादा सैनिक मारे गए और 140 अन्य घायल हो गए। यह जानकारी एक सैन्य सूत्र ने दी।
सूत्र ने शनिवार को समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया, "आज की लड़ाई के दौरान विद्रोहियों ने अल-मिहसम सैन्य शिविर और सेना से ऊंचे पहाड़ों पर फिर से कब्जा कर लिया।"
उन्होंने कहा, "विद्रोही स्नाइपर्स ने 60 से ज्यादा सैनिकों को मार डाला, जिन्होंने दक्षिणी और पश्चिमी इलाकों में घुसपैठ की और 140 अन्य घायल हो गए थे।"
सूत्र ने कहा, यमन सरकार की सेना का समर्थन करने वाली सऊदी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना ने हाउती अग्रिम के खिलाफ तीन हवाई हमले शुरू किए। सेना अब इस रणनीतिक शहर से बाहर है, जो सऊदी अरब की सीमा में है।
यह हार यमन सरकार की सेना के लिए एक बड़ा झटका है, जिसने पिछले सप्ताह शुरू हुई भीषण लड़ाई में शहर के अधिकांश हिस्सों पर फिर से कब्जा कर लिया था। (आईएएनएस)
ऑन्टैरियो. कोरोना महामारी के दौर में कनाडा और अमेरिका इन दिनों एक नए संकट का सामना कर रहे हैं. वजह है ट्रकों की हड़ताल. सैंकड़ों ट्रकों ने ऑन्टैरियो के विंडसर में एंबैसडर ब्रिज को ठप किया हुआ है. यहां से न कोई सामान अमेरिका जा पा रहा है, न आ रहा है. जरूरी चीजों की किल्लत हो गई है. कनाडाई पीएम की अपील भी बेअसर हो रही है. ऑन्टैरियो से लेकर राजधानी ओटावा तक प्रदर्शन हो रहे हैं. 50 हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारी ओटावा में डटे हुए हैं. वे पीएम जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे पर अड़े हैं. हालत ये है कि ऑन्टैरियो में इमरजेंसी की घोषणा करनी पड़ी है. कोर्ट को दखल देना पड़ा है.
एक-तिहाई कारोबार ठप
ट्रकों की इस हड़ताल की वजह है कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडे का एक आदेश. पिछले महीने जारी इस आदेश में कहा गया है कि अमेरिका से आने वाले उन्हीं ट्रक चालकों को कनाडा में एंट्री दी जाएगी, जिन्होंने कोरोना की वैक्सीन लगवा रखी होगी, वरना उन्हें क्वारंटीन होना पड़ेगा. ट्रक चालकों के संगठन इस आदेश का विरोध कर रहे हैं. धीरे-धीरे शुरू हुए इस विरोध ने विशाल रूप ले लिया है. चालकों ने एंबैसडर ब्रिज पर 400 से ज्यादा ट्रक खड़े कर रखे हैं. इसकी वजह से सामान की आवाजाही पूरी तरह ठप है. जरूरी चीजों की किल्लत होने लगी है. रोजाना करोड़ों का नुकसान हो रहा है. कनाडा और अमेरिका के बीच कुल व्यापार का करीब एक-तिहाई इसी ब्रिज के जरिए होता है. बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि इस पुल से हर रोज 323 मिलियन डॉलर (2440 करोड़ रुपये) का सामान आता-जाता है. 10 हजार से ज्यादा कमर्शल गाड़ियों की आवाजाही होती है. लेकिन पिछले दो हफ्ते से सब ठप है.
पीएम के इस्तीफे पर अड़े प्रदर्शनकारी
हालात ऐसे हो गए हैं कि कनाडाई पीएम को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को फोन करके हालात की जानकारी देनी पड़ी है. दोनों देश इस संकट का समाधान निकालने में जुटे हुए हैं. प्रदर्शनकारी कनाडाई पीएम ट्रूडो के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. वो पीएम के उस बयान से नाराज हैं, जिसमें उन्होंने प्रदर्शनकारियों को ‘मुट्ठीभर चिल्लाने वाले लोग’ और ‘स्वास्तिक लहराने वाले’ करार दिया था. इससे न केवल विपक्षी दल बल्कि खुद उनकी लिबरल पार्टी के सांसद भी भड़क गए हैं.
कई देशों में फैला आंदोलन
कनाडा में ट्रक चालकों ने हड़ताल के दौरान अपनी बात मनवाने के लिए अनोखा तरीका भी आजमाया. 11 दिनों तक उन्होंने लगातार 16 घंटे तक ट्रकों को हॉर्न बजाए. हड़तालियों को मनाने की हर कोशिश नाकाम हो रही है. कोई रास्ता न देख ऑन्टैरियो के मेयर ने शुक्रवार को शहर में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया. उनका कहना है कि ये प्रोटेस्ट नहीं रह गया है, लोगों ने अवैध कब्जा जमा लिया है. इसके कुछ ही घंटे बाद अदालत ने आदेश जारी करके हड़तालियों से इलाके को खाली करने को कहा है. अनिवार्य कोरोना वैक्सीनेशन के खिलाफ ट्रक चालकों की इस हड़ताल का असर सिर्फ कनाडा तक सीमित नहीं है. ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फ्रांस में भी इसी तरह के प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. वहां भी लोग वैक्सीन के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं.
-सुमी खान
ढाका, 13 फरवरी| बांग्लादेश में एक पिकअप वैन की चपेट में आने से सड़क दुर्घटना में मारे गए पांच लोगों के परिजनों ने आशंका व्यक्त की है कि यह घटना सुनियोजित थी और इसे 'पूर्व नियोजित हत्या' करार दिया।
मुन्नी सुशील 8 फरवरी को चटगांव के चकरिया उपजिले में सड़क दुर्घटना में बाल-बाल बच गई, लेकिन उसके 5 भाई मारे गए, जबकि दो भाई घायल हो गए।
मुन्नी ने कहा : 29 जनवरी को लगभग 50 बदमाशों ने हमारे घर पर हमला किया। उन्होंने मेरे पिता को जान से मारने की धमकी दी। अगले दिन, 30 जनवरी को मेरे पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। पिछले 10 साल से मेरे पिता यहां दुर्गा पूजा का आयोजन कर रहे थे।
मुन्नी का एक भाई दीपक सुशील जनवरी में हसीनापारा गांव में मंदिर बनाने के लिए ईंट-बजरी लाया था।
मुन्नी ने आईएएनएस से कहा, तब से मेरे पिता को धमकियां मिल रही थीं।
उसने पूछा, अगर मेरे भाई वास्तविक लक्ष्य नहीं थे, तो सड़क पर खड़े हम दोनों को मारने के बजाय वाहन ने उन्हें सड़क से दूर ले जाकर क्यों कुचल दिया?
उसके घायल भाइयों में से एक - रक्तिम सुशील चटगांव जनरल अस्पताल में कॉमा में है, उसकी हालत गंभीर बताई जा रही है।
दुर्घटना में घायल हुए रक्तिम के भाई प्लाबोन ने बाद में चकरिया थाने में शिकायत दर्ज कराई।
दुखी मां मनुबाला शील ने कहा, मैं अपने पांच बेटों में से अपने पोते के साथ किसके पास जाऊंगा? मेरे बच्चों ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। मेरे पांच बच्चों को इस तरह क्यों मारा गया?
परिवार की एक सदस्य मृणालिनी ने कहा, हम हमलावरों को नहीं पहचान सके।
परिवार मालुमघाट क्षेत्र के हसीनापारा गांव में 2010 से रह रहा है। गांव में करीब 30-35 हिंदू परिवार रहते हैं।
एक अधिकारी ने कहा कि जांच अधिकारी पीड़ित परिवार द्वारा लगाए गए पूर्व रंजिश के आरोपों की जांच करेंगे।
इस बीच, डॉक्टरों ने कहा कि रक्तिम को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है।
चटगांव जनरल अस्पताल के अधीक्षक शेख फजले रब्बी ने कहा, एक मेडिकल बोर्ड रक्तिम के इलाज की निगरानी कर रहा है।
उन्होंने कहा, उन्हें रक्तस्राव है और वह अभी भी बेहोश हैं।
आथोर्पेडिक्स के सलाहकार अजय दास ने कहा कि रक्तिम के शरीर में सिर से लेकर पैर तक कई फ्रैक्च र हुए हैं।
रक्तिम की पत्नी ने कहा, हमने सब कुछ खो दिया है। इस त्रासदी में मेरे पांच साले मारे गए। मेरे पति अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि वह मेरे पति को लौटा दें। (आईएएनएस)
अंतरिक्ष में मौजूद एक चीनी अंतरिक्षयान ने बेकार हो चुके एक उपग्रह को उठाकर पृथ्वी की कक्षा के एक कोने में फेंक दिया. चीनी मशीन की ये हरकत, अंतरिक्ष यानों की गतिविधि पर नजर रखने वाली एक निजी कंपनी ने देख ली.
डॉयचे वैले पर एस्तेबान पार्दो की रिपोर्ट-
पिछले महीने धरती की कक्षा में स्टार वॉर्स फिल्म जैसा नजारा देखने को मिला. जनवरी के आखिर में एक चीनी उपग्रह एक दूसरे लंबे समय से निष्क्रिय सैटेलाइट को दबोचता दिखा था. कुछ दिन बाद 300 किलोमीटर दूर वो उसे कक्षा के क्रबगाह कहे जाने वाले हिस्से में फेंकता हुआ देखा गया. उस हिस्से में मलबे की किसी अंतरिक्षयान से टकराने की संभावना नहीं के बराबर होती है.
सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक ऐंड इंटरनेशनल स्टडीज ऐंड सिक्योर वर्ल्ड फाउंडेशन के पिछले महीने हुए एक वेबिनार में डॉ. ब्रायन फ्लुवेलिंग ने ये दुर्लभ जानकारी पेश की. वो एक निजी अमेरिकी कंपनी एक्सोएनालिटिक सॉल्यूशंस में चीफ स्पेस सिचुएश्नल अवेयरनेस आर्किटेक्ट हैं. यह कंपनी विशाल ऑप्टिक दूरबीनों के एक व्यापर वैश्विक नेटवर्क का उपयोग करते हुए उपग्रहों की स्थिति को ट्रैक करती है.
22 जनवरी को चीनी अंतरिक्ष यान एसजे-21 अपनी निर्धारित जगह से हटकर निष्क्रिय किए जा चुके उपग्रह कम्पास-जी2 की ओर बढ़ता हुआ देखा गया था. कुछ दिन बाद कम्पास-जी2 से जुड़ा एसजे-21, उसकी कक्षा को बदलता पाया गया. चीनी अधिकारियों ने अभी तक किसी ऐसे अंतरिक्षी ठेले यानी एक उपग्रह को खींचकर ले जाने वाले दूसरे उपग्रह के होने की पुष्टि नहीं की है.
एक्सोएनालिटिक के वीडियो में दिखाया गया कि अगले कुछ दिनों में दोनों अंतरिक्षयान डोलते हुए पश्चिमी दिशा की ओर जाने लगे. 26 जनवरी को दोनों अलग हुए और जी2 गहन अंधकार में फिंकवा दिया गया. कम्पास-जी2 या बाइडो-2 जी2, चीन की बाइडू-2 संचालन उपग्रह प्रणाली का अंतरिक्षयान है. वो 2009 में अंतरिक्ष भेजे जाने के कुछ ही समय बाद बेकार हो गया था. दस साल से भी अधिक समय से धातु का वो पिंजर पृथ्वी की कक्षा के चारों ओर भटकता रहा है जहां और भी लाखों करोड़ो की संख्या में मलबा बिखरा हुआ है.
एसजे-21, अक्टूबर 2021 में लॉन्च किया गया था. अब वो कॉन्गो बेसिन से जरा ऊपर एक भूस्थैतिक कक्षा (जीईओ) में लौट चुका है. जीईओ तब घटित होता है जब भूमध्यरेखा के ऊपर, एक उपग्रह धरती के घूमने की समान गति से उसका चक्कर काटता है. धरती के लिहाज से देखें तो जीईओ में घूमते उपग्रह स्थिर प्रतीत होंगे. इक्का-दुक्का ही जरा सा हिलते-डुलते दिखेंगे. ऐसी कक्षा को कभी-कभी क्लार्क ऑर्बिट यानी क्लार्क ग्रह-पथ भी कहा जाता है.
इसका ये नाम ब्रिटेन के मशहूर लेखक आर्थर सी क्लार्क के नाम पर पड़ा है. उन्होंने 1945 के अपने एक पर्चे में दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति कर देने की संभावना वाले जीईओ की कल्पना की थी. उसके बाद दो दशक भी नहीं बीते थे कि पहला जियो स्टेश्नरी सैटेलाइट यानी भूस्थैतिक उपग्रह लॉन्च कर दिया गया था.
चीनका मलबा हटानाः जरूरतयाखतरा?
मलबा हटाने में तो कुछ भी गलत नहीं है. अंतरिक्ष के कबाड़ की सफाई के लिए दूसरे देशों ने भी ऐसी प्रौद्योगिकियां या तो लॉन्च कर दी हैं या वे उन्हें तैयार कर रहे हैं. जापान ने मार्च 2021 में ईएलएसए-डी मिशन लॉन्च किया था. वो अंतरिक्ष में बिखरे मलबे को पकड़ने और हटाने की प्रौद्योगिकियों के परीक्षण का मिशन था. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) भी अंतरिक्ष कचरे के निस्तारण का अपना अभियान 2025 में लाने की तैयारी कर रही है.
कचरा निस्तारण की प्रौद्योगिकी तैयार करने और अमल में लाने की चौतरफा कोशिशों के बावजूद कुछ अमेरिकी अधिकारियों ने एसजे-21 जैसे चीनी उपग्रहों को लेकर चिंता जताई है. अमेरिकी अंतरिक्ष कमान के कमांडर जेम्स डिकन्सन ने अप्रैल 2021 मे कहा था कि चीन के एसजे-21 जैसी टेक्नोलॉजी, "भविष्य की किसी प्रणाली के तहत दूसरे उपग्रहों को दबोचने में इस्तेमाल की जा सकती है.”
लेकिन वाकई कोई खतरा है भी?
2021 में अपनी काउंटरस्पेस रिपोर्ट में द सिक्योर वर्ल्ड फाउंडेशन ने कहा था कि इस बात के पक्के सबूत है कि चीन और रूस, काउंटरस्पेस यानी प्रतिअंतरिक्ष क्षमताओं वाली प्रौद्योगिकी पर काम कर रहे हैं. आशय अंतरिक्ष प्रणालियों को नष्ट करने की क्षमता से है. रिपोर्ट के मुताबिक वैसे चीन के आधिकारिक बयान अंतरिक्ष में शांतिपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने से ही जुड़े रहे हैं. इस बात के कोई सबूत नहीं है कि किसी विनाशकारी या काउंटरस्पेस अभियानों को उनसे हवा मिली हो.
अमेरिकी वायुसेना से जुड़े एक थिंक टैंक, चाइनीज एयरोस्पेस स्टडीज इंस्टीट्यूट (सीएएसआई) की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक एसजे-21 का इस्तेमाल, अंतरिक्ष कबाड़ को हटाने के तरीकों का परीक्षण करने तक ही महदूद रहने की संभावना है.
अंतरिक्ष में मरम्मत का काम
सीएएसआई की रिपोर्ट में बताय गया कि बहुत संभव है कि एसजे-21, चीन के ऑन-ऑरबिट सर्विसिंग, असेम्बली और मैनुफैक्चरिंग (ओएसएएम) यानी ओसाम उपग्रहों में से एक हो. दशकों से कई अंतरिक्ष एजेंसियां ओएसएएम अभियान तैयार करती रही हैं. मिसाल के लिए, इन अभियानों के तहत निर्मित अंतरिक्ष यान मौजूदा उपग्रहों की मरम्मत या उनमें ईंधन भरने के काम आ रहे हो सकते हैं या अंतरिक्ष का कबाड़ हटाने के.
अमेरिकी अंतरिक्ष सर्विलांस नेटवर्क के मुताबिक, 20वीं सदी के 60 के दशक में अंतरिक्ष गतिविधियों की शुरुआत से 6,000 से अधिक अंतरिक्ष अभियानों के जरिए कक्षा में 50,000 उपग्रह भेजे गए हैं. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के अंतरिक्ष मलबे पर केंद्रित विभाग के मुताबिक 30,000 से ज्यादा कृत्रिम उपग्रह हमारी धरती का चक्कर काट रहे हैं, और इनमें से करीब 5,000 ही चालू हालत में हैं.
और ये तो सिर्फ वे उपग्रह हैं जो इतने बड़े हैं कि ट्रैक के जरिए गिनती में आ जाते हैं. अमेरिका, रूस, चीन और भारत- सभी ने अंतरिक्ष में अपने बेकार हो चुके उपग्रहों को उड़ाया है जिससे और ज्यादा बड़ी तादाद में धातुओं और अन्य चीजों के बहुत सारे छोटे छोटे टुकड़े अंतरिक्ष में यहां से वहां बिखरे हुए हैं. ईएसए के आंकड़े दिखाते हैं कि 30 करोड़ से ज्यादा छोटी छोटी चीजें, 30,000 किलोमीटर प्रति घंटे यानी दुनिया की सबसे तेज गोली से करीब पांच गुना ज्यादा की अविश्वसनीय रफ्तार से अंतरिक्ष में तैर रही हैं.
ईएसए ने 1990 में, जियोस्टेश्नरी सर्विसिग व्हीकल (जीएसवी) प्रोग्राम के साथ ओएसएएम परियोजनाओं का परीक्षण शुरू किया था. उसका मकसद था जीईओ में यानी भूस्थैतिक कक्षा में टूटे हुए उपग्रहों को पकड़कर उनकी मरम्मत करना. ओएसएएम अभियान का एक प्रसिद्ध और सफल उदाहरण, हबल अंतरिक्ष दूरबीन की दिसंबर 1993 में हुई मरम्मत का है.
नासा ने और भी बहुत सारे ओएसएएम अभियानों की योजना बनाई है. इसमें ओसाम-1 और ओसाम-2 भी शामिल हैं. ओसाम-2 अंतरिक्ष में ही उपग्रहों के हिस्सों के 3डी प्रिंट करने के लिहाज से डिजाइन किया गया है, उससे उम्मीद है कि किसी रॉकेट के अंदर फिट न हो पाने वाले बड़े हिस्से, एक दिन सीधे अंतरिक्ष में ही तैयार किए जा सकेंगे. (dw.com)
जब भी रूस के साथ पश्चिमी देशों का तनाव बढ़ता है, नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन खतरे में पड़ जाती है. जानिए, इस पाइपलाइन की पूरी कहानी.
डॉयचे वैले पर निक मार्टिन की रिपोर्ट-
जर्मनी की भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार की गई नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन, अमेरिका जैसे उसके सहयोगी देशों को विवादास्पद लगती है. रूस और पश्चिमी देशों के बीच ताजा टकराव के बीच इस परियोजना को बंद करने की मांग फिर से उठने लगी हैं.
नॉर्डस्ट्रीम-2 हैक्या?
नॉर्ड स्ट्रीम-2 बाल्टिक सागर से होते हुए पश्चिमी रूस से उत्तरपूर्वी जर्मनी तक जाने वाली दूसरी प्राकृतिक गैस पाइपलाइन है. 2011 में चालू हुई अपनी पूर्ववर्ती नॉर्ड स्ट्रीम-1 के साथ नयी गैस पाइपालाइन में हर साल 55 अरब घन मीटर गैस ले जाने की क्षमता है.
नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन को बनाने में साढ़े नौ अरब यूरो (10.6 अरब डॉलर) का खर्च आया है. 1,230 किलोमीटर लंबी ये पाइपलाइन, दुनिया की सबसे बड़ी समुद्री पाइपलाइन है. एक दशक से भी ज्यादा समय पहले इसका खाका तैयार किया गया था.
2018 में इस पाइपलाइन का निर्माण प्रारंभ हुआ और सितंबर 2021 में पूरा हुआ. लेकिन नॉर्ड स्ट्रीम-2 से गैस भेजने का काम अभी शुरू नहीं हुआ है क्योंकि उसका परिचालन लाइसेंस अटक गया है.
नॉर्डस्ट्रीम-2 कीजरूरतक्योंहै?
जर्मनी कमोबेश पूरी तरह प्राकृतिक गैस के आयात पर निर्भर है. आईएचएस मार्किट के मुताबिक 2020 में जर्मनी को आधे से ज्यादा गैस आपूर्ति अकेले रूस से हुई थी.
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश को ऊर्जा स्थानान्तरण के लिहाज से कोयला और एटमी ऊर्जा से छुटकारा पाना है. इसीलिए पर्याप्त मात्रा में अक्षय ऊर्जा उत्पादन या निर्यात शुरू न हो पाने तक वह प्राकृतिक गैस का उपयोग, एक पुल की तरह करना चाहता है.
जर्मनी में पिछले महीने आखिरी बचे छह एटमी ऊर्जा स्टेशनों में से तीन बंद किए जा चुके हैं. और ऐसे में गैस की जरूरत और तीव्र हो चुकी है. अगले तीन संयंत्र दिसंबर में बंद किए जाएंगे.
नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन से जर्मनी को अपनी सप्लाई को मजबूत करने में मदद मिलेगी. इस बीच प्राकृतिक गैस का अधिकांश हिस्सा ऑस्ट्रिया, इटली और दूसरे मध्य और पूर्वी यूरोप के देशों को भेजा जाएगा. कुछ पर्यावरणीय समूह शुरुआत से ही पाइपलाइन को गैरजरूरी बताते आए हैं.
नॉर्डस्ट्रीम-2 मेंकौन-कौनशामिलहै?
रूस की सरकारी कंपनी गाजप्रोम, नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन की निर्माता है. पांच यूरोपीय ऊर्जा कंपनियों की मदद से इसे तैयार किया गया था. ये हैं- ऑस्ट्रिया की ओएमवी, ब्रिटेन की शेल, फ्रांस की एन्गी, जर्मनी की उनीपर और वहीं से बीएएसएफ की विंटरशॉल यूनिट. पांचों कंपनियों ने पाइपलाइन में करीब आधे का निवेश किया है.
नॉर्डस्ट्रीम-2 इतनीविवादास्पदक्योंहै?
अमेरिका और जर्मनी के कई यूरोपीय साझेदार शुरुआत से ही नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल की सरकार पर समझौता तोड़ने के लिए दबाव भी डाला था.
इन सहयोगियों ने आगाह किया है कि नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन यूरोप को रूसी गैस पर बहुत ज्यादा निर्भर बना देगी. और यही निर्भरता रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को पश्चिम के साथ विवाद के मामलों में फायदा उठाने का अवसर दे सकती है.
यूरोप की अधिकांश गैस यूक्रेन से होते हुए आती है, जिसे रूस से ट्रांजिट शुल्क मिलता है. पोलैंड भी इस रूप में नॉर्ड स्ट्रीम-2 का विरोध करता है. रूस से आने वाली गैस के परिवहन में ट्रांजिट देश के रूप में, वह अपनी बढ़ी हुई भूमिका देखना चाहता है. जर्मनी लंबे समय से इस पर जोर देता आया है कि पाइपलाइन एक खालिस आर्थिक मुद्दा है.
नॉर्डस्ट्रीम-2 बंदहोनेकेकगारपरक्योंथी?
2018 में जब यह पाइपलाइन बन ही रही थी, तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसके निर्माण में शामिल तमाम कंपनियों पर प्रतिबंध थोप दिए थे. इसके चलते 18 यूरोपीय कंपनियों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए. इनमें जर्मनी की विंटरशॉल कंपनी भी शामिल थी. उसे वित्तीय दंड भुगतने का डर था.
रूसी कंपनी गाजप्रोम ने कहा था कि वो खुदबखुद ये पाइपलाइन बिछाना जारी रखेगी. और परियोजना आखिरकार पूरी भी हो गई. पिछले साल मई में बाइडेन प्रशासन ने नॉर्ड स्ट्रीम-2 के खिलाफ तमाम प्रतिबंध वापस ले लिए. वह जर्मनी के साथ रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहते.
नॉर्डस्ट्रीम-2 परफिरसेखतराक्यों?
यूक्रेन के मुद्दे पर रूस और पश्चिम के बीच जारी तनाव और संकट के बीच अब ये पाइपलाइन केंद्र में आ गई है. अमेरिका और नाटो ने कहा है कि रूस ने यूक्रेन से लगती अपनी सीमा पर एक लाख से ज्यादा की तादाद में सैनिकों का जमावड़ा लगा दिया है. और रूसी फौज यूक्रेन पर हमला करने को तैयार है. रूस ने इससे इंकार किया है. पश्चिमी देशों ने रूस पर नये प्रतिबंध लगान की चेतावनी दी है. इस बार उनके निशाने पर रूसी बैंक हैं.
उनके सामने एक तरीका ये है कि स्विफ्ट नाम से प्रचलित वैश्विक भुगतान प्रणाली से रूसी बैंकों को बाहर कर दिया जाए. स्विफ्ट के तहत पूरी दुनिया में हर रोज करीब पांच खरब डॉलर धनराशि के साढ़े तीन करोड़ की संख्या में वित्तीय लेनदेन होते हैं.
दूसरा प्रस्ताव नॉर्ड स्ट्रीम-2 को चालू करने की औपचारिक मंजूरी को अभी और लटकाए रखने का है जिससे रूसी सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर किया जा सके. मैर्केल पश्चात की सरकार, पाइपलाइन परियोजना को बंद करने को लेकर अब और इंकार भी नहीं कर रही है. लेकिन यूरोप सर्दियों की ऊर्जा की किल्लत से जूझ रहा है. हाल के महीनों में प्राकृतिक गैस की कीमतों में बड़ा उछाल आया है. और यूरोपीय देशों का भंडार भी पांच साल में सबसे कम है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सात फरवरी को चेतावनी के अंदाज में कहा था कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो वो नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन को रुकवा देंगे. उन्होंने कहा था, "हम उसका अंत कर देंगे.” इस बीच, जर्मन सरकार के ऊर्जा नियामक विभाग ने कहा है कि नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन को गर्मियों से पहले मंजूरी मिलने से तो रही. (dw.com)
कहा जा रहा है कि वहां की परिस्थितियां ऐसी हैं जिनमें जीवन पनप सकता है. नया खोजा गया "रहने लायक" ग्रह पानी के लिहाज से ना तो बहुत ज्यादा गर्म है और ना ही बहुत ज्यादा ठंडा.
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन की रिपोर्ट-
ब्रिटिश रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने इसके बारे में जानकारी दी है. सोसायटी ने लिखा है कि एक ग्रह पुराने छोटे से सफेद क्षुद्र ग्रह के चारों ओर चक्कर लगा रहा है. रिसर्चरों के लिए यह खोज बिल्कुल नई है. खोज करने वाले रिसर्चरों के दल के प्रमुख जेय फारिही यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर हैं. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा है, "यह टीम के लिए एक झटके जैसा था." उनका कहना है कि अगर इसकी पुष्टि हो जाती है तो यह पहली बार होगा कि एक सफेद क्षुद्र ग्रह का चक्कर लगाने वाले ग्रह पर जीवन की संभावना हो.
फारिही का कहना है, "जब हमें कोई ग्रह मिलता है तो आमतौर पर इसका मतलब है कि वहां और भी बहुत कुछ है." रिसर्चरों को जहां इस ग्रह के होने की उम्मीद है वहां सफेद क्षुद्रग्रह का चक्कर लगाने वाले 65 चांद के बराबर आकार के खगोलिय पिंड हो सकते हैं. उनकी आपस में दूरी नहीं बदलती है क्योंकि ग्रह का गुरुत्वाकर्षण उन पर असर डालता है. इस हिसाब से ग्रह को इसके आसपास ही होना चाहिए. वैज्ञानिकों के लिए अब अगला कदम होगा इस ग्रह के अस्तित्व का सीधा सबूत ढूंढना.
हमारा सूरज भी किसी वक्त एक सफेद क्षुद्रग्रह में बदल जाएगा. कुछ अरब सालों में पहले यह एक लाल विशालकाय आकृति में बदलेगा फिल चपटा होगा और फिर पड़ोस के बुध और शुक्र ग्रह के साथ सहयोग बंद कर देगा. आखिर में खगोलिय निहारिका में एक ठंडा सफेद क्षुद्रग्रह ही बाकी बचेगा. ज्यादातर तारे इस तरह के राख की गेंद में बदल जाएंगे जिनका आकार पृथ्वी के बराबर होगा.
सफेद क्षुद्रग्रह की कक्षा में मौजूद ग्रहों पर पानी के तरल रूप में रहने की परिस्थितियां होंगी या नहीं यह उनकी दूरी पर निर्भर करेगा. बहुत ज्यादा करीब के ग्रह बहुत गर्म होगें जबकि बहुत दूर के ग्रह बेहद ठंडे.
अंतरिक्षविज्ञानियों ने जिस इलाके का पता लगाया है वहां परिस्थितियां "बिल्कुल सही" हैं. खोजा गया ग्रह अपने तारे की परिक्रमा पृथ्वी से सूर्य की दूरी की तुलना में 60 गुना कम दूरी पर रह कर रहा है. (dw.com)
एक नई रिसर्च से पता चला है कि कोरोना वायरस गर्भवती महिला के प्लेसेंटा में घुस कर उसे नुकसान पहुंचाता है. इसके नतीजे में संक्रमित महिला के अजन्मे बच्चे की मौत हो सकती है.
यह किसी भी गर्भधारण में सामान्य रूप से नहीं होता है लेकिन कोविड-19 से पीड़ित महिलाओं में इसका जोखिम ज्यादा है. अधिकारियों का मानना है कि टीका लगाने से इस तरह के मामले रोके जा सकते हैं.
अमेरिका समेत 12 देशों के रिसर्चरों ने 64 अजन्मे और जन्म के तुरंत बाद मर गए चार बच्चों की प्लेसेंटा और शव परीक्षा से मिले ऊतकों का विश्लेषण किया है. इन सभी मामलों में माओं को वैक्सीन नहीं लगा था और गर्भावस्था के दौरान वो कोविड-19 से संक्रमित हो गईं.
गर्भनाल को नुकसान
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फाइनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के पैथेलॉजिस्ट डॉ जेफरी गोल्डस्टाइन का कहना है कि इस रिसर्च ने रिपोर्ट किए गए कुछ मामलों के सबूतों को मजबूती दी है. यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि कोविड-19 से जुड़े अजन्मे बच्चों की मौत के पीछे संभावित कारण भ्रूण में संक्रमण की बजाय प्लेसेंटा को हुआ नुकसान है. डॉ गोल्डस्टाइन इस रिसर्च में शामिल नहीं थे.
इस रिसर्च की रिपोर्ट गुरुवार को आर्काइव्स ऑफ पैथोलोजी एंड लेबोरेट्री मेडिसिन में प्रकाशित हुई है. इससे पहले मिले सबूतों से पता चला था कि कोविड-19 से संक्रमित गर्भवती महिलाओं में अजन्मे बच्चे की मौत की आशंका सामान्य की तुलना में ज्यादा है. खासतौर से कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से. वैक्सीन को गर्भवती महिलाओं के लिए भी जरूरी बताया जा रहा था और साथ ही यह भी कि संक्रमित होने की स्थिति में उनके लिए ज्यादा परेशानी का जोखिम है.
कैसे नुकसान पहुंचाता है वायरस
रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक डॉ डेविड श्वार्त्स का कहना है कि अकसर संक्रमण प्लेसेंटा में घुस कर भ्रूण को नुकसान पहुंचाता है. इसी वजह से भ्रूण की मौत हो जाती है. जीका वायरस के मामले में ऐसा ही होता है.
डॉ श्वार्त्स और उनकी टीम यह देखना चाहते थे कि क्या कोरोना वायरस भी ऐसा ही करता है. उन्हें बिल्कुल उलट नतीजा देखने को मिला. इस मामले में प्लेसेंटा खुद ही संक्रमित और बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. डॉ श्वार्त्स का कहना है, "बहुत से मामलों में प्लेसेंटा के 90 फीसदी हिस्से को क्षति पहुंची थी जो बहुत डरावनी स्थिति है."
सामान्य प्लेसेंटा के ऊतक सेहतमंद लाल वर्ण के और गद्देदार होते हैं. जिन नमूनों का इन्होंने अध्ययन किया उनमें वे कठोर थे और उनके ऊतक बदरंग हो कर मर चुके थे. कई बार प्लेसेंटा को दूसरी चीजों से भी नुकसान होता है लेकिन डॉ श्वार्त्स का कहना है कि उन्होंने और किसी कारण से इस तरह का, इतना ज्यादा और लगातार नुकसान नहीं देखा है. प्लेसेंटा वो अंग है जो गर्भवास्था के दौरान बनती है और गर्भाशय को जोड़े रखती है. यह अंबिलिकल कॉर्ड यानी गर्भनाल से जुड़ी होती है और मां के रक्त से ऑक्सीजन और पोषण ले कर बच्चे तक पहुंचाती है.
अजन्मे बच्चों की मौत
वायरस संभवतया रक्तप्रवाह के जरिए ही प्लेसेंटा तक पहुंचता है. इसकी कोशिकाएं प्रोटीन जमा करती हैं. फिर असामान्य सूजन होती है जिसके कारण रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह रुक जाता है. रिसर्चरों का कहना है कि इसके बाद प्लेसेंटा के ऊतकों की मौत हो जाती है. कुछ भ्रूणों में कोरोना वायरस भी मिले हैं लेकिन गर्भाशय में घुटन के सबूत प्लेसेंटा की क्षति की और मौत का कारण बनने के संकेत दे रहे हैं.
नवंबर में सेंटर्स ऑफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन रिपोर्ट ने बताया कि अमेरिका मेंकोविड-19 से संक्रमित गर्भवती महिलाओं की हर 80 में से एक अजन्मे बच्चे की मौत हुई. यानी 20 हफ्ते के बाद भ्रूण की मौत हो गई थी. अगर गैरसंक्रमित महिलाओं में देखें तो यह आंकड़ा 155 में एक का था.
उच्च रक्तचाप, कुछ पुरानी बीमारियां और भ्रूण की असामान्य स्थिति भी अजन्मे बच्चे की मौत की आशंका बढ़ा सकती है. ये सारे कारण कोविड-19 से प्रभावित महिलाओं पर भी असर करते हैं. अभी यह साफ नहीं है कि ओमिक्रॉन का संक्रमण अजन्मे बच्चों की मौत का कारण बनता है या नहीं. यह रिसर्च ओमिक्रॉन वायरस का संक्रमण शुरू होने से पहले की गई थी.
एनआर/आईबी (एपी)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के 49 वर्षीय नेता और सांसद आमिर लियाक़त हुसैन इन दिनों ख़ूब चर्चा में हैं.
दरअसल, लियाक़त हुसैन ने ट्विटर पर ये जानकारी दी है कि उन्होंने 18 साल की सैयदा दानिया से शादी की है और ये उनकी तीसरी शादी है. दोनों की उम्र में क़रीब 31 साल का फ़ासला है.
लियाकत हुसैन के ट्वीट से ठीक एक दिन पहले ही उनकी दूसरी पत्नी सैयदा तूबा अनवर ने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में तलाक़ की जानकारी दी थी.
उन्होंने लिखा था, "भारी मन से, मैं लोगों को अपने जीवन में हुए बदलाव की जानकारी देना चाहती हूँ. मेरा परिवार और क़रीबी दोस्त जानते हैं कि 14 महीने अलग रहने के बाद, ये साफ़ था कि अब सुलह की कोई उम्मीद नहीं है और मुझे अदालत से खुला लेने का विकल्प चुनना पड़ा."
तूबा अनवर ने इसी पोस्ट में लिखा है, "मैं बता नहीं सकती कि ये कितना मुश्किल रहा लेकिन मैं अल्लाह पर ऐतबार करती हूँ. मैं सभी से अपील करूंगी कि मुश्किल भरे इस समय में मेरे फ़ैसले का सम्मान किया जाए."
पेशे से टीवी होस्ट, 28 साल की तूबा अनवर और लियाक़त हुसैन ने 2018 में शादी की थी. उस समय लियाक़त हुसैन की पहली पत्नी ने दावा किया था कि उन्हें फ़ोन पर तलाक़ दिया गया था.
लियाकत हुसैन की पहली पत्नी सैयदा बुशरा इक़बाल ने उस समय इंस्टाग्राम पोस्ट के ज़रिए ये बताया था कि कैसे उनके पति ने दूसरी बीवी के सामने फ़ोन कॉल पर उन्हें तलाक़ दिया. उन्होंने आरोप लगाया था कि लियाक़त ने ऐसा तूबा के कहने पर किया.
लियाक़त हुसैन ने बताया कि उन्होंने दक्षिण पंजाब के लोधरान में रहने वाले सआदत परिवार की सैयदा दानिया शाह से निक़ाह किया है, जिनकी उम्र 18 साल है. लियाकत हुसैन ने अपने शुभचिंतकों से दुआ की अपील की.
आमतौर पर पति-पत्नी के बीच उम्र में 31 साल का फ़ासला असामान्य होता है. पाकिस्तान में कानून 18 साल की उम्र में शादी की इजाज़त देता है. लेकिन हुसैन की शादी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पाकिस्तान में कम उम्र की दुल्हनों को प्राथमिकता दी जाती है और इस मुल्क में क्या ये आम बात हो चली है?
पाकिस्तानी ट्विटर यूज़र सोहनी लियाक़त हुसैन की शादी पर लिखती हैं, "हर वैध चीज़ हमेशा सही नहीं होती. क्या एक 50 साल के आदमी का 18 साल की लड़की से शादी करना वैध है? हाँ. लेकिन दूल्हे की उम्र से तुलना करें तो क्या लड़की अभी बच्ची है? हाँ. जब वो पैदा हुई थी तब दूल्हा 32 साल का था."
सोहनी ने एक और ट्वीट में लिखा, "जब आप अपने से बहुत छोटे किसी किशोरावस्था में रहने वाले से शादी करते हैं, तो आप एक ग़लत शक्ति संतुलन बनाते हैं. आपका व्यक्तित्व और जीवन पूरी तरह बन चुका होता है. लेकिन एक 18 साल के किशोर या किशोरी का नहीं. आप उन्हें जैसा चाहें वैसा बना सकते हैं और इसलिए आमिर जैसे आदमी ऐसा करते हैं."
इस शादी की आलोचना करने वाली सोहनी अकेली नहीं हैं. फ़लक नाम की एक अन्य यूज़र लिखती हैं, "बहुत से उम्रदराज़ लड़के युवा लड़कियों को अपने इशारों पर चलाने के लिए उनसे रिश्ता जोड़ते हैं और इसे ये कहकर जायज़ ठहराते हैं कि वे "नाबालिग़" नहीं हैं. क्या वे ये नहीं सोचते कि जब वे 25 साल के थे तब वो लड़की सिर्फ़ 10 साल की रही होगी??"
महीन ग़नी लिखती हैं, "असल दुर्भाग्य ये है कि अधिकांश पाकिस्तानी पुरुष आमिर लियाक़त जैसे ही हैं. अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर एक बच्ची जैसी दुल्हन खोजते हैं ताकि समाज में दबदबा बना सकें. ये ज़हरीला चलन जारी है और पूरी तरह स्वीकार्य भी."
हालांकि, आलोचनाओं के बीच कई यूज़र ये भी कह रहे हैं कि हर पाकिस्तानी पुरुष आमिर लियाक़त जैसा नहीं है.
पहले भी उड़ी थी शादी की अफ़वाह
साल 2021 में अभिनेत्री और मॉडल हानिया ख़ान ने दावा किया कि वो लियाक़त हुसैन की पत्नी हैं. इसके बाद लियाक़त हुसैन ने एक वीडियो संदेश जारी कर इन अफ़वाहों को विराम दिया था.
उन्होंने वीडियो मेसेज में कहा कि उनकी सिर्फ़ एक पत्नी है, जिनका नाम तूबा है.
सुंदरता की वजह से कम उम्र की दूल्हन खोजते हैं पाकिस्तानी?
इस मुद्दे पर बीबीसी उर्दू ने कई लोगों से बात की और कम उम्र की लड़की से शादी के पीछे कई कारण सामने आए, जिनमें से सबसे पहला और बड़ा है सुंदरता.
कराची के रहने वाले समीर ख़ान के तीन बच्चे हैं. ख़ान ने बीबीसी को बताया, "जब हम लड़की देखने जाते हैं तो सुंदरता देखते हैं लेकिन जब हम लड़की के लिए दूल्हा खोजते हैं तो हम लड़के की उम्र नहीं बल्कि उसका पैसा और शिक्षा देखते हैं."
समीर ख़ान कहते हैं, "मैं अपने बेटे के लिए कम उम्र की दुल्हन लाऊंगा ताकि वो लंबे समय तक ख़ूबसूरत दिखे. मुझे लगता है कि 80 फ़ीसदी लोग सुंदर बहू चाहते हैं." पर क्या सिर्फ़ सुंदरता ही अकेली वजह है?
इस पर समीर ख़ान कहते हैं, "कम उम्र की लड़की खोजने के पीछे एक और बड़ा कारण ये है कि उम्र जितनी कम होगी बच्चे पैदा करने के लिए उतना समय होगा. शादी की शुरुआत में बच्चों की योजना न हो तो बाद में भी पति-पत्नी के पास इसके लिए समय होता है."
"युवा लड़कियां आसानी से कंट्रोल में आती हैं"
कराची की रहने वाली आयशा (बदला हुआ नाम) अपने शादी के अनुभव के आधार पर ये स्वीकार करती हैं कि कम उम्र की दुल्हन खोजने के पीछे ये वजह होती है कि एक पुरुष अपने बच्चों को स्वस्थ रहते हुए अच्छे से पाल लेगा.
हालांकि, वो एक और कारण बताती हैं. उनका कहना है, "हर कोई दुनिया पर राज करना चाहता है. ख़ासतौर पर सास चाहती हैं कि उन्हें ऐसी बहू मिले जिन्हें अपने तरीक़े से चलाया जा सके. इसके लिए कम उम्र की लड़कियां ही चाहिए होती हैं. ज़्यादा उम्र की लड़कियों के पास अपनी सोच होती है और वे उसी तरह काम करती हैं. ऐसे में उनपर नियंत्रण पाना मुश्किल होता है."
"हालात अब बदल रहे हैं"
रावलपिंडी में सालों से मैरिज ब्यूरो चलाने वालीं अफज़ल ने बीबीसी उर्दू से बातचीत के दौरान कहा कि अब स्थितियां और प्राथमिकताएं बदल रही हैं. जब लड़के के माता-पिता हमारे पास आते हैं तो कम उम्र की दूल्हनों पर बात नहीं करते. उन्होंने कहा कि अब तो कई शादियों में लड़कियों की उम्र ज़्यादा होती है.
वो कहती हैं कि इसका दूसरा पहलू भी है. अब "कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुष भी अब घबराते हैं. वे इन युवा लड़कियों की अलग सोच और व्यवहार को समझ नहीं पाते हैं."
सिंगापुर के नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल साइसेंज में प्रेम चंद दोमारजो ने बीबीसी उर्दू को बताया कि दक्षिण एशिया में पति और पत्नी की उम्र में सबसे ज़्यादा फ़ासला बांग्लादेश में देखने को मिलता है और इसके बाद पाकिस्तान का नंबर आता है.
दोमारजो के मुताबिक़, बांग्लादेश में औसतन पति अपनी पत्नी से उम्र में साढ़े आठ साल बड़े होते हैं तो वहीं पाकिस्तान में ये फ़ासला पाँच साल से ज़्यादा का है.
दोमारजो के शोध के मुताबिक, पाकिस्तान में बीते 35 सालों से स्थिति में कुछ ख़ास बदलाव देखने को नहीं मिला है. दोमारजों कहते हैं कि इस फ़ासले के पीछे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारण होते हैं जो हर देश में अलग हैं.
लेकिन साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनीसेफ़ ने बताया था कि बीते एक दशक में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी में दुनियाभर के अंदर 20 प्रतिशत की कमी हुई है.(bbc.com)
चीन ने लिथुआनिया से होने वाले मांस, दूध और बीयर के आयात पर रोक लगा दी है. ताइवान का साथ देने का कारण यूरोपीय देश लिथुआनिया पर चीन की भृकुटी तनी हुई है.
चीन ने लिथुआनिया के खिलाफ कुछ कड़े कदम उठाए हैं. लिथुआनिया में जानवरों से संबंधी उत्पादों के लिए जिम्मेदार एक सरकारी एजेंसी ने गुरुवार को बताया कि चीन ने उनके गोमांस, दुग्ध-उत्पादों और बीयर के आयात पर रोक लगा दी है.
एजेंसी के मुताबिक चीन के कस्टम विभाग ने उन्हें सूचित किया है कि ‘दस्तावेजों की कमी' के कारण निर्यात रोका जा रहा है. एक बयान जारी कर एजेंसी ने कहा, "ऐसा नोटिस हमें पहली बार मिला है क्योंकि अगर कोई सूचना उपबल्ध नहीं होती तो जो देश आयात कर रहे होते हैं वे पहले उस सूचना के बारे में पूछताछ करते हैं.” गुरुवार को ही चीन की एजेंसी ने बिना कोई वजह बताए बस इतना कहा था कि लिथुआनिया से गोमांस का आयात रोका जा रहा है.
पिछले कुछ समय से दोनों देशों के संबंध तनावग्रस्त हैं. इसकी शुरुआत तब हुई जब लिथुआनिया ने ताइवान को अपने यहां अनौपचारिक दूतावास खोलने की इजाजत दे दी. यह कदम चीन को नागवार गुजरा क्योंकि वह ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. उधर ताइवान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार राज करती है.
‘सीनाजोरी का जवाब दें'
ऑस्ट्रेलिया का दौरा कर रहे लिथुआनिया के विदेश मंत्री गैब्रिएलस लैंसबर्गिस ने बुधवार को कहा था कि व्यापार को बदला लेने के तौर पर इस्तेमाल करने वाले देशों को "एक जैसी सोच रखने वाले देशों द्वारा याद दिलाया जाना चाहिए कि उनके पास इस तरह की सीनाजोरी का जवाब देने के तौर-तरीके और नियम-कायदे हैं.”
ब्रिटेन ने सोमवार को ऐलान किया था कि वह भी विश्व व्यापार संगठन में चीन के खिलाफ यूरोपीय संघ की शिकायत में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की तरह साथ देगा. यूरोपीय आयोग का कहना है कि संघ के सदस्य देश लिथुआनिया का चीन के साथ व्यापार पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले दिसंबर में 91 प्रतिशत तक कम हो गया.
लिथुआनिया की एजेंसी ने कहा कि दिसंबर की शुरुआत से ही उनके देश ने चीन को गोमांस समेत अन्य खाद्य उत्पादों का निर्यात नहीं किया है. वहां की प्रधानमंत्री इंगरीदा सिमोनाइट ने गुरुवार को कहा, "जहां तक मैं जानती हूं, चीन के इस कदम से कोई व्यवहारिक समस्या पैदा होने वाली नहीं है क्योंकि अब हम चीन को ये उत्पाद निर्यात नहीं करते. निर्यातक अन्य बाजारों की ओर बढ़ गए हैं. जैसा कि चीन कह रहा है, अगर समस्या प्रक्रिया से जुड़ी है या प्रशासनिक है तो उसे बहुत आसानी से हल कर लिया जाएगा.”
‘गलतियां सुधारें'
गोमांस पर लगाई गई रोक पर तो चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीजियां ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया लेकिन उन्होंने लिथुआनिया को अपनी गलतियां सुधारने की सलाह दी. उन्होंने कहा, "लिथुआनिया को सच्चाई का सामना करना चाहिए, अपनी गलतियां सुधारनी चाहिए और सही रास्ते पर आकर ‘एक चीन' के सिद्धांत का पालन करना चाहिए. उसे गलत और सही के बीच घालमेल से बचना चाहिए.”
ताइवान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जोएन वू ने चीन के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने इसे ‘एकतरफा' और ‘दादागीरी' बताया और आरोप लगाया कि यह नई मिसाल है कि चीन कैसे लिथुआनिया की विदेश नीति बदलने की कोशिश कर रहा है.
चीन की पाबंदियों से राहत पहुंचाने के लिए ताइवान ने लिथुआनिया से अपना आयात बढ़ा दिया है. हाल ही में उसने रम का आयात शुरू किया है.
चीन दुनिया का सबसे बड़ा गोमांस आयातक है लेकिन लिथुआनिया से उसका आयात नाममात्र ही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2021 में उसने लिथुआनिया से 775 टन गोमांस का आयात किया था जबकि उसका कुल आयात 23.6 करोड़ टन था.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
फ्रेंच नेशनल एसेंबली में प्रतिस्पर्धी खेलों में हिजाब जैसे प्रतीकों पर बैन का प्रस्ताव खारिज हो गया. राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की पार्टी ने प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया. अप्रैल 2022 में फ्रांस के राष्ट्रपति का चुनाव है.
फ्रांस की लैंगिक समानता मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने हिजाब पर मुस्लिम महिला फुटबॉल खिलाड़ियों का समर्थन किया है. इस समर्थन का संदर्भ फ्रांस में फुटबॉल से जुड़ी गवर्निंग बॉडी 'फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन' के एक फैसले से जुड़ा है. इसके मुताबिक, मैच खेलने के दौरान खिलाड़ी ऐसी कोई चीज नहीं पहन सकते, जिनसे उनकी धार्मिक पहचान जाहिर होती हो. इनमें मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला हिजाब और यहूदी लोगों द्वारा लगाई जाने वाली खास टोपी 'किप्पा' भी शामिल हैं.
हिजाब लगाने वाली खिलाड़ी कर रही हैं विरोध
फ्रांस की मुस्लिम फुटबॉल खिलाड़ी इस प्रतिबंध का विरोध कर रही हैं. इनसे जुड़ा एक संगठन है, ले हिजाबुस. यह फ्रांस की उन महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की संस्था है, जो हिजाब पहनने के चलते मैच नहीं खेल पा रही हैं. नवंबर 2021 में इस संस्था ने फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन के प्रतिबंध को कानूनी चुनौती दी. संगठन की दलील है कि यह प्रतिबंध भेदभाव करता है. साथ ही, यह धर्म मानने के उनके अधिकार में भी दखलंदाजी करता है.
'ले हिजाबुस' 9 फरवरी को अपनी मांगों के समर्थन में फ्रेंच संसद के आगे एक विरोध प्रदर्शन करना चाहता था. मगर प्रशासन ने सुरक्षा संबंधी कारणों से इसकी इजाजत नहीं दी. इस संस्था की शुरुआत करने वालों में शामिल फुन्न जवाहा ने जनवरी 2022 में न्यूज एजेंसी एएफपी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था, "हम बस फुटबॉल खेलना चाहती हैं. हम हिजाब की समर्थक नहीं हैं, हम बस फुटबॉल प्रशंसक हैं."
इस मुद्दे पर पार्टियों में असहमति
फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में दो महीने का समय बचा है. चुनावी माहौल के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है. फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता से जुड़े कानून काफी सख्त हैं. यहां धर्म और सरकार दोनों के बीच विभाजन काफी स्पष्ट है. फ्रेंच सीनेट में दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व है. जनवरी 2022 में पार्टी एक कानून का प्रस्ताव लाई. इसमें सभी प्रतिस्पर्धी खेलों में ऐसे प्रतीकों पर बैन लगाने का प्रस्ताव रखा गया था, जिनसे किसी की धार्मिक पहचान जाहिर होती हो.
9 फरवरी को संसद के निचले सदन 'नेशनल असेंबली' में यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया. यहां राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की 'रिपब्लिक ऑन द मूव पार्टी' और उसके सहयोगी बहुमत में हैं. इसी पर टिप्पणी करते हुए 10 फरवरी को मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने एलसीआई टेलिविजन से कहा, "कानून कहता है कि ये महिलाएं हिजाब लगाकर फुटबॉल खेल सकती हैं. मौजूदा समय में फुटबॉल मैदानों पर हिजाब लगाने के ऊपर कोई पाबंदी नहीं है. मैं चाहती हूं कि कानून का सम्मान किया जाए." मोरैनो ने आगे कहा, "सार्वजनिक जगहों पर महिलाएं जैसे चाहें, वैसे कपड़े पहन सकती हैं. मेरा संघर्ष उन्हें सुरक्षित करना है, जिन्हें पर्दा करने पर मजबूर किया जाता है."
क्या कहता है फ्रेंच कानून
फ्रांस का धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा कानून हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है. इसमें सार्वजनिक जगहों पर लोगों के धार्मिक प्रतीक पहनने पर पाबंदी नहीं है. एक अपवाद है, चेहरे को पूरी तरह ढकना. फ्रांस यूरोप का पहला देश था, जिसने 2011 में घर से बाहर नकाब लगाने, यानी चेहरे को पूरी तरह ढकने पर बैन लगाया था. सरकारी संस्थानों के कर्मचारियों पर भी अपना धर्म प्रदर्शित करने की मनाही है. यह पाबंदी स्कूली बच्चों पर भी लागू है.
फ्रांस के कई दक्षिणपंथी नेता हिजाब पर भी रोक लगाना चाहते हैं. उनका मानना है कि हिजाब इस्लामिकता के समर्थन में दी गई राजनैतिक अभिव्यक्ति है. वे हिजाब को फ्रेंच सिद्धांतों के भी खिलाफ मानते हैं. हालिया सालों में दक्षिणपंथी नेताओं ने ऐसे प्रस्ताव भी दिए हैं कि स्कूली ट्रिप पर अपने बच्चों के साथ जाने वाली मांओं के हिजाब लगाने पर भी पाबंदी हो. वे शरीर को पूरी तरह ढकने वाले स्विम सूट 'बुर्किनी' को भी प्रतिबंधित करना चाहते हैं.
रिपब्लिकन पार्टी के दक्षिणपंथी सांसद एरिक सियोटी ने नेशनल असेंबली में प्रस्ताव खारिज होने के बाद माक्रों की पार्टी की आलोचना की. उन्होंने कहा, "इस्लामिज्म हर जगह अपनी सत्ता थोपना चाहता है." सत्ताधारी पार्टी के विरोध के बीच उन्होंने कहा, "पर्दा महिलाओं के लिए कैद है. यह अधीनता का प्रतीक है."
2014 में इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड (आईएफएबी) ने महिला खिलाड़ियों को मैच के दौरान हिजाब पहनने की अनुमति दी थी. बोर्ड ने माना था कि हिजाब धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक प्रतीक है. वहीं फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन का कहना है कि बैन लगाकर वह केवल फ्रेंच कानूनों का पालन कर रहा है. फिलहाल यह मामला अदालत में है. फ्रांस की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत इस मामले में 'ले हिजाबुस' की अपील पर फैसला सुनाएगी.
एसएम/एमजे (एएफपी)
इस्लामिक स्टेट ने हजारों यजीदी महिलाओं और लड़कियों को गुलाम बनाया. यजीदी समाज जहां इन महिलाओं को वापस अपना रहा है, वहीं बलात्कार और जबरन बनाए गए संबंधों से हुए बच्चों को अपनाने के लिए वह तैयार नहीं है.
रोजा बरकत के गुनहगार हराये जा चुके हैं. मगर उन्होंने अतीत में जो अत्याचार किए, उसके आतंक से रोजा आज भी आजाद नहीं हो सकी हैं. वह 11 साल की थीं, जब इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने पकड़कर उन्हें गुलाम बना लिया था. 2014 में इस्लामिक स्टेट ने उत्तरी इराक पर अपना नियंत्रण बनाने के बाद हजारों की संख्या में यजीदी महिलाओं और लड़कियों को गुलाम बनाया. रोजा इनमें से ही एक थीं.
कौन हैं यजीदी?
यजीदी एक प्राचीन धर्म है. यह एक ईश्वर में यकीन करता है. इसकी जड़ें ईसाई धर्म की शुरुआत से भी करीब 2,000 साल पुरानी हैं. यजीदी अपने धर्म में शैतान की अवधारणा को नहीं मानते. उनका यकीन है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर इतना कमजोर नहीं कि शैतान जैसे किसी और ताकतवर का अस्तित्व सहन करे. ऐसे में शैतान की बात करना या फिर यह कहना कि शैतान जैसी कोई चीज होती है, यजीदियों में ईशनिंदा मानी जाती है.
यजीदियों के धार्मिक विश्वास के केंद्र में एक फरिश्ता है, जिन्हें 'मेलेक टाउस' कहा जाता है. यजीदी इन्हें ही धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानते हैं. इनका चित्रण मोर के रूप में किया जाता है. यजीदी जन्म से इस धर्म का हिस्सा होते हैं. यानी, किसी और का यजीदी में धर्मांतरण संभव नहीं है. अगर कोई यजीदी किसी और धर्म के अनुयायी से शादी कर ले, तो उसके पार्टनर का धर्म ही उसका धर्म मान लिया जाएगा. यजीदियों की सबसे पवित्र धार्मिक जगह 'लालिश' है. यह शहर उत्तरी इराक के एक पहाड़ की घाटी में बसा है.
क्या हुआ यजीदियों के साथ?
2014 में पड़ोसी सीरिया से आगे बढ़ते हुए इस्लामिक स्टेट का इराक में भी विस्तार शुरू हुआ. आईएसआईएस यजीदियों को काफिर मानता था. उसका मानना था कि यजीदियों का या तो धर्मांतरण कर देना चाहिए, या फिर उन्हें मार देना चाहिए. चूंकि याजिद कुर्दिश एथनिक समूह का भी हिस्सा हैं, इसलिए भी उन्हें लंबे समय से प्रताड़ना झेलनी पड़ रही थी. आईएसआईएस के आने से स्थितियां और बदतर हो गईं. ऐसे में बड़ी संख्या में यजीदी इराक छोड़कर भागने लगे.
उत्तरी इराक में सिंजर नाम की एक जगह है. यह जगह सिंजर नाम की एक पहाड़ी श्रृंखला के पास बसी है. सिंजर में यजीदी अल्पसंख्यकों की काफी बसाहट थी. अगस्त 2014 में आईएसआईएस ने सिंजर पर हमला किया और यहां बड़े स्तर पर नरसंहार किया. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, यहां लगभग 5,000 यजीदी पुरुष मार डाले गए. लगभग 7,000 महिलाओं और बच्चों को अगवा कर लिया गया. इन्हें गुलाम बनाकर कई-कई बार खरीदा और बेचा गया. बलात्कार किया गया. पकड़े गए यजीदी लड़कों को भी भीषण यातनाएं दी गईं. उन्हें मारकर, भूखा रखकर जबरन युद्ध लड़ने को मजबूर किया गया.
क्या जीवन पहले जैसा हो पाएगा?
रोजा भी सिंजर की रहने वाली थीं. अगस्त 2014 में आईएसआईएस उन्हें गुलाम बनाकर सीरिया ले गया. उन्हें कई बार बेचा गया. कई बार उनका बलात्कार किया गया. इतनी कम उम्र में रोजा मां बन गईं. अब वह 18 साल की हैं. उनका बच्चा मर चुका है. इन सालों की यातनाओं ने रोजा से बहुत कुछ छीन लिया है. यहां तक कि वह अपनी मातृभाषा 'कुरमांजी' भी बहुत कम बोल पाती हैं.
2019 में आईएसआईएस की हार हुई. बड़ी संख्या में उसके लड़ाके गिरफ्तार कर लिए गए. उनकी पत्नियों और बच्चों को डिटेंशन कैंपों में बंद कर दिया गया. रोजा जैसी गुलाम बनाई गई यजीदी महिलाएं आजाद तो हुईं, लेकिन सामान्य जीवन में लौट पाना अब भी बहुत मुश्किल था. एक तरफ सालों तक झेली गई यातनाओं की पीड़ा थी. वहीं, एक बड़ी तकलीफ यह भी थी कि इनमें से ज्यादातर महिलाओं के पास वापस लौटकर जाने के लिए कोई घर नहीं था. उनके सामने एक बड़ा सवाल यह था कि उनका परिवार और समाज उन्हें अपनाएगा या नहीं.
रोजा के नाखूनों पर लगा लाल नेल पॉलिश मिटने लगा है. उंगलियां घबराहट में उनकी बंधी हुई चोटी को टटोलती हैं. वह कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि लौटकर मैं अपने लोगों का सामना कैसे करूंगी." आईएसआईएस के जिन लड़ाकों ने सालों तक उन्हें गुलाम रखा, वे कहते थे कि रोजा के लिए अब वापस लौटने के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं. अगर वह लौटती भी हैं, तो परिवार और समाज उन्हें वापस नहीं अपनाएगा. रोजा ने इन बातों पर यकीन कर लिया था.
रोजा की कहानी, उनकी मनोस्थिति उन जैसी सैकड़ों यजीदी महिलाओं की मौजूदा जिंदगी का सारांश है. ये महिलाएं सालों तक झेली गई यातनाओं से अब भी आतंकित हैं. उनके साथ जो हुआ, वे अब तक उससे नहीं उबर सकी हैं. वहीं उन्हें वापस अपनाने के सवाल पर अब भी यजीदी समाज ऊहापोह में उलझा है. 'यजीदी हाउस' उत्तरपूर्वी सीरिया में काम कर रही एक संस्था है. इसके उपप्रमुख फारुक तुजु बताते हैं, "जिसके साथ 12 की उम्र में बलात्कार हुआ, 13 साल में वह मां बन गई, ऐसी बच्ची से आप क्या उम्मीद करते हैं? इतनी यातनाएं और दहशत झेलने के बाद वे अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पाती हैं. वे कहीं की नहीं हैं."
बार-बार बिकने से बचने के लिए धर्म बदला
पिछले हफ्ते उत्तर-पश्चिमी सीरिया में अमेरिकी स्पेशल फोर्सेज ने एक विशेष ऑपरेशन किया. इसमें आईएसआईएस का सरगना अबू इब्राहिम अल-हाशिमी अल-कुरैशी मारा गया. 3 फरवरी, 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उसके मारे जाने की जानकारी दी. 2019 में अबू बकर अल-बगदादी के मारे जाने के बाद अबू इब्राहिम ने खुद को खलीफा घोषित किया था. माना जाता है कि यजीदी महिलाओं को गुलाम बनाने में अबू इब्राहिम की बड़ी भूमिका थी.
उसके मारे जाने के बाद न्यूज एजेंसी एपी ने रोजा से मुलाकात की. वह 'यजीदी हाउस' द्वारा चलाए गए एक सेफ हाउस में रहती हैं. अबू इब्राहिम की खबर सुनकर रोजा ने कहा कि अब इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वह अपनी आपबीती सुनाती हैं. बताती हैं कि सबसे पहले उन्हें जिस इराकी ने खरीदा था, वह उनके पिता से भी बड़ा था. उसने रोजा को मजबूर किया था कि वह उसकी पत्नी को 'मां' कहें. यह वाकया बताते हुए रोजा अब भी कांप जाती हैं.
कुछ महीने बाद उस इराकी ने रोजा को किसी और के हाथों बेच दिया. बार-बार बेचे जाने की यातना से बचने के लिए रोजा ने धर्म परिवर्तन कर लिया. तब आईएसआईएस के लड़ाकों ने रोजा की शादी लेबनान के एक शख्स से करवा दी. वह आदमी आईएसआईएस के लिए खाने और हथियारों की आपूर्ति करता था. रोजा बताती हैं, "वह बाकियों से बेहतर था." 13 साल में रोजा मां बनीं. बेटे का नाम रखा, हूद.
वे आईएसआईएस की राजधानी रक्का में रहती थीं. एक बार रोजा ने यह पता लगाने की जिद की कि उनकी बड़ी बहनों के साथ क्या हुआ. रोजा की बहनें भी उन्हीं की तरह गुलाम बना ली गई थीं. रोजा जानना चाहती थीं कि उनकी बहनें और माता-पिता जिंदा भी हैं कि नहीं. कुछ हफ्तों के बाद रोजा का पति एक तस्वीर लेकर आया. यह तस्वीर रक्का के गुलाम बाजार की थी, जहां यजीदी लड़कियां बेची जाती थीं. इस तस्वीर में बेची जा रही एक यजीदी महिला दिख रही थी. वह रोजा की ही बहन थी. रोजा वह तस्वीर याद करते हुए बताती हैं, "वह कितनी बदल गई थी."
बेटे का क्या हुआ?
2019 की शुरुआत में जब आईएसआईएस का नियंत्रण कमजोर होने लगा, तो रक्का से लोग भागने लगे. रोजा भी अपने पति के साथ भागकर पहले देर अल-जोर और फिर बगूज चली आईं. बगूज आईएसआईएस का आखिरी मजबूत ठिकाना था. 2019 में अमेरिका के समर्थन वाली कुर्दिश डेमोक्रैटिक फोर्सेज ने बगूज को घेर लिया. औरतों और बच्चों को सुरक्षित बाहर आने की जगह दी गई. इसी समय रोजा भी सामने आ सकती थीं. अपनी यजीदी पहचान बताकर सुरक्षा मांग सकती थीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
मार्च 2019 में अपने बेटे हूद को साथ लेकर वह आईएसआईएस लड़ाकों की पत्नियों के साथ शहर से भाग गईं. आईएसआईएस समर्थकों की मदद से उन्होंने एक स्मगलिंग रूट पकड़ा और उत्तर-पश्चिमी सीरिया के इदलिब प्रांत में आ गईं. रोजा का पति बगूज की लड़ाई में मारा गया था. इसलिए इदलिब में रोजा आईएसआईएस सदस्यों की विधवाओं के एक ठिकाने पर रहने लगीं. इसके आगे रोजा के साथ क्या हुआ, यह स्पष्ट नहीं है. शुरुआत में रोजा ने अधिकारियों को बताया था कि उन्होंने अपने बेटे को इदलिब में छोड़ा और काम की तलाश में निकल गईं. मगर न्यूज एजेंसी एपी से बात करते हुए रोजा ने कहा कि उनका बेटा एक हवाई बमबारी में मारा गया. जब एपी ने उनसे स्पष्टीकरण मांगी, तो रोजा का जवाब था, "यह बहुत मुश्किल है. मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहती हूं."
एक तस्वीर से सामने आया अतीत
रोजा बताती हैं कि एक तस्कर की मदद से वह देर अल-जोर पहुंचीं. यहां उन्हें काम भी मिल गया. वह तुर्की जाकर नई जिंदगी शुरू करना चाहती थीं. इसके लिए वह पैसे भी जोड़ रही थीं. मगर फिर जनवरी 2021 में कुर्दिश फोर्सेज ने रोजा को पकड़ लिया. गिरफ्तारी के समय वह एक घर में छुपी हुई थीं. यहां से वह तस्करों की मदद लेकर सीरिया-तुर्की सीमा पार करना चाहती थीं. रोजा को कई दिनों तक हिरासत में रखकर पूछताछ की गई. इस पूछताछ के बारे में वह बताती हैं, "मैं अपनी यजीदी पहचान को छुपाने की हर मुमकिन कोशिश की." रोजा ने जांचकर्ताओं से कहा कि देर अल-जोर की हैं. इलाज के लिए तुर्की जाना चाहती हैं.
मगर जांचकर्ताओं को रोजा की बातों पर भरोसा नहीं हुआ. उन्हें रोजा के मोबाइल में एक पुरानी तस्वीर मिली. इसमें एक यजीदी लड़की गुलाम बाजार में बेची जाती दिख रही थी. जांचकर्ताओं ने जब इस तस्वीर पर रोजा से स्पष्टीकरण मांगा, तब जाकर कहानी खुली. यह रोजा की बहन की तस्वीर थी. वही तस्वीर, जो कभी रोजा के पति ने उन्हें दिखाई थी.
रोजा कहती हैं, "मेरे मुंह से निकल गया कि वह मेरी बहन है." रोजा की यजीदी पहचान का पता लगने के बाद जांचकर्ताओं ने उन्हें सीरिया के बरजान गांव में बने एक सेफ हाउस में पहुंचा दिया. यहां यजीदी समुदाय ने रोजा का स्वागत किया. उस अनुभव को याद करते हुए रोजा बताती हैं, "उन्होंने इतने अपनेपन से मुझसे बात की. उनका लगाव देखकर, उनका प्यार देखकर मैं हैरान थी. मैं जैसी हूं, उसी रूप में मेरा स्वागत किया गया था."
बच्चों का क्या होगा?
आईएसआईएस की हार को दो साल से ज्यादा समय हो चुका है. लेकिन 2,800 से ज्यादा यजीदी महिलाएं और बच्चे अब भी लापता हैं. फारुक तुजु बताते हैं कि इनमें से कई महिलाओं ने सबसे रिश्ते संपर्क तोड़ लिया है. वे अपने समुदाय से बाहर नई जिंदगी शुरू करने की कोशिश कर रही हैं. उन्हें लगता है कि अगर वे लौटेंगी, तो शायद मार डाली जाएं. कई महिलाएं बच्चे छीन लिए जाने के डर से नहीं लौटती हैं.
इराक के यजीदी समुदाय ने सिंजर लौटने वाली महिलाओं के आगे शर्त रखी है. ये महिलाएं अगर वापसी चाहती हैं, तो उन्हें अपने बच्चे छोड़ने होंगे. इसलिए कि इन बच्चों के पिता आईएसआईएस का हिस्सा थे. सिंजर लौटने वाली कई यजीदी महिलाओं से कहा गया था कि सीरिया के कुर्द परिवार उनके बच्चे गोद ले लेंगे. मगर ऐसा नहीं हुआ. दर्जनों छोड़ दिए गए बच्चे उत्तरपूर्वी सीरिया के यतीमखानों में पहुंचा दिए गए हैं. इन बच्चों का क्या भविष्य होगा, इसे लेकर यजीदी समुदाय के बीच बहस चल रही है.
"मुझे वक्त चाहिए"
2019 में यजीदियों की सर्वोच्च धार्मिक काउंसिल ने यजीदी समाज से आईएसआईएस के अत्याचारों की शिकार महिलाओं को वापस अपनाने को कहा. फिर कुछ दिनों बाद काउंसिल ने कहा कि महिलाओं को वापस अपनाया जाएगा. लेकिन उनके साथ हुए बलात्कार से जो बच्चे पैदा हुए, उन्हें नहीं अपनाया जाएगा. तुजु कहते हैं, "यह हमारी गलती है. हम इसे स्वीकार करते हैं. हमने बच्चों को अपनी मांओं के साथ नहीं रहने दिया." तुजु ने बताया कि अब भी कई यजीदी महिलाएं अल-होल कैंप में रह रही हैं. इस कैंप में हजारों की संख्या में महिलाएं हैं. इनमें से ज्यादातर आईएसआईएस सदस्यों की पत्नियां, विधवाएं और बच्चे हैं.
रोजा अभी सिंजर वापस लौटने के लिए तैयार नहीं हैं. उनका समूचा परिवार लापता है. वे सब जिंदा हैं या नहीं, ये भी नहीं पता. वहां किसके पास लौटा जाए. लौटने के लिए क्या बचा है. रोजा इन सवालों के जवाब खोज रही हैं. वह कहती हैं, "मुझे वक्त चाहिए. अपने लिए समय चाहिए."
एसएम/आरपी (एपी)


