पाकिस्तान ने इस महीने 19,500 से अधिक अफगान शरणार्थियों को वापस भेजा है. 80,000 से ज्यादा लोग पहले ही पाकिस्तान छोड़कर जा चुके हैं ताकि गिरफ्तारी का दंश ना झेलना पड़े.
डॉयचे वैले पर साहिबा खान की रिपोर्ट-
ना ही अफगानिस्तान की किसी भाषा की मालूमात, ना ही वहां की गलियों की खबर, फिर भी मूल रूप से ये लोग अफगान हैं. ये पाकिस्तान में बरसों से शरणार्थियों के तौर पर रह रहे हैं. कई वहीं पैदा हुए हैं और कई की वहीं शादी हुई. अनेकअपने देश में चल रहे युद्ध से भागकर पाकिस्तान आए और पड़ोसी मुल्क के ही होकर रह गए. नवंबर 2023 में पाकिस्तान ने इन लोगों को अपने मुल्क अफगानिस्तान लौट जाने का अल्टीमेटम दिया. पाकिस्तान सरकार ने कहा कि 30 अप्रैल 2025 तक उन्हें वापस अफगानिस्तान लौटना होगा. इस आदेश को न मानने वालों को गिरफ्तार किया जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पाकिस्तान ने इस महीने 19,500 से अधिक अफगान शरणार्थियों को वापस भेजा है. 80,000 से ज्यादा लोग 30 अप्रैल की समय-सीमा से पहले ही चले गए हैं ताकि गिरफ्तारी का दंश ना झेलना पड़े.
ऐसी ही वापसी का असर अफगान सीमा पर स्थित तोरखाम में एक टेंट में रह रहीं नाजमीन खान पर दिखता है. पाकिस्तान में पली बढ़ी 15 वर्षीय नाजमीन ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें वापस अफगानिस्तान जाना पड़ जाएगा. नाजमीन को नहीं पता कि उनका या उनके परिवार का तालिबान शासित अफगानिस्तान में क्या होगा, लेकिन उन्हें इतना मालूम है कि उनके कई अधिकार अब शायद वैसे ना रहे जैसे पाकिस्तान में थे.
पाकिस्तान लाखों अफगान शरणार्थियों को भेज रहा वापस
पाकिस्तान ने बगैर दस्तावेज वाले और अस्थायी रूप से रहने की अनुमति प्राप्त अफगानों को वापस भेजने का अपना अभियान तेज कर दिया है. उसका कहना है कि इनकी उपस्थिति के कारण पाकिस्तान में सार्वजनिक सेवाओं पर बोझ बढ़ रहा है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर तनाव भी बना हुआ है. इस्लामाबाद का मानना है कि अफगान शरणार्थियों के कारण उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. हालांकि तालिबान सरकार ऐसे आरोपों से इनकार करती है.
तालिबान के अधिकारियों का कहना है कि रोज 700 से 800 परिवारों को वापस भेजा जा रहा है, और आने वाले महीनों में 20 लाख लोगों के निर्वासित होने का अनुमान है.
कई ऐसे लोग जो मूल रूप से अफगान हैं लेकिन पाकिस्तान में जन्मे
अफगानिस्तान की सीमा पर तोरखाम नाम का कस्बा है. वहां ओमारी कैंप में नाजमीन खान अपने परिवार के छह सदस्यों के साथ एक छोटे से टेंट में गुजारा कर रही हैं. खान का परिवार 1960 के दशक में अफगानिस्तान छोड़कर भागा था. उनके चार भाई और एक बहन पाकिस्तान में ही जन्मे.
उन्होंने समाचार एजेंसी एफपी को बताया, "कुछ ही दिनों में हम सीमा से लगे प्रांत नांगरहार में किराये पर रहने के लिए जगह तलाश करेंगे". उनका परिवार यहीं से है.
नाजमीन ने पूरी बात उर्दू में कही क्योंकि वो पाकिस्तान में ही पैदा हुईं और उन्हें अफगानिस्तान की भाषाएं पश्तो और दारी नहीं आतीं. टेंट में लेटने के लिए एक कपड़ा और कुछ तकियों के अलावा कुछ नहीं है. तिरपाल के नीचे मक्खियां भिनभिनाती हैं और चिथड़ेदार कपड़े पहने अनगिनत बच्चे वहां आते जाते हैं.
इस्लामाबाद के अनुसार, 1 अप्रैल से अब तक 92,000 से अधिक अफगानियों को उनके मूल देश वापस भेजा जा चुका है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, देश निकाले के फैसले से पहले 30 लाख अफगानी पाकिस्तान में रह रहे थे.
अफगानिस्तान और लड़कियों की आजादी
अपने भविष्य के बारे में बात करते हुए नाजमीन कहती हैं कि उन्हें कुछ नहीं पता आगे क्या होगा. पाकिस्तान में ही उन्होंने स्कूली शिक्षा छोड़ दी थी. इसलिए अफगानिस्तान में लड़कियों के स्कूल जाने पर बैन से उन्हें खासा फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन पूर्वी पाकिस्तान के पंजाब में रहते हुए उन्होंने अपने देश के बारे में जो कुछ सुना था, उससे उन्हें पता है कि "यहां वैसी आजादी” उन्हें शायद ना मिले.
2021 में तख्तापलट के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता हासिल की. इसके बाद तालिबान प्रशासन ने महिलाओं पर प्रतिबंध लगाए, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘जेंडर अपार्थाइड' का नाम दिया. महिलाओं को विश्वविद्यालयों, पार्कों, जिम और ब्यूटी सैलून में जाने से रोक दिया गया. कइयों को नौकरियों से बाहर कर दिया गया.
गैर-सरकारी समूह इस्लामिक रिलीफ के प्रोग्राम प्रमुख इब्राहिम हुमैदी ने कहा, "यह अब उनके लिए एक नया जीवन है, और वे इसे बहुत कम सहूलियतों, सामान, पैसे और मदद के साथ शुरू कर रहे हैं." हुमैदी की संस्था ने ओमारी कैंप में वापस लौट रहे अफगानियों के लिए लगभग 200 टेंट लगाए हैं.
उन्होंने आगे बताया कि कई परिवार इस कैंप में तीन दिन से ज्यादा रह जाते हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि अपने थोड़े से पैसों से वो आगे क्या कर सकेंगे, "उन लोगों को ये भी मालूम है कि वापस आने पर समुदाय उनका स्वागत तो करेगा, लेकिन उन्हें ये भी पता है कि वो लोग भी अफगानिस्तान में क्या कुछ झेल रहे हैं.”
वापस आ रहे अफगानों के लिए तैयार है तालिबान?
तालिबान के अधिकारियों के मुताबिक, वापसी कर रहे अफगानों के लिए उन्होंने बुनियादी ढांचा खड़ा कर दिया है. लेकिन अगर सीमा पर बसे तोरखाम को देखें तो वहां सपाट रोड और पथरीले रास्तों और हवा में फड़फड़ाते टेंटों के अलावा और कुछ नहीं हैं.
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) का मानना है कि वापस लौटने वालों के लिए बुनियादी ढांचा हो, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाएं भी हों, यह सुनिश्चित करने के लिए "अधिक स्पष्टता" की आवश्यकता है.
तालिबान के कम्युनिकेशन अधिकारी अवंद अजीज आगा ने एएफपी को बताया कि यह जरूरी है कि "वापस आने वाले लोग सोच-समझकर निर्णय लें और उनका टाउनशिप में स्थानांतरण अपनी मर्जी से हो.”