भारतीय वन्यजीव संस्थान और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व-मध्य भारत में बाघ के लिए शिकार की प्रजातियां घट रही हैं, जिससे बाघ और इंसान के बीच संघर्ष का खतरा बढ़ गया है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट -
भारत, बाघों की बढ़ती आबादी पर गर्व करता है, यहां दुनिया में सबसे ज्यादा 3,600 से अधिक जंगली बाघ हैं, लेकिन इसके जंगलों में एक खामोश संकट पनप रहा है. भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई एक नई रिपोर्ट में एक चेतावनी दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के प्रमुख बाघ आवासों में चीतल, सांभर और जंगली भैंसे जैसी शिकार प्रजातियों की आबादी घट रही है. यह गिरावट बाघ संरक्षण के लिए एक बड़ा खतरा है और इंसान-वन्यजीव संघर्ष का जोखिम बढ़ाती है.
क्यों घट रही शिकार की आबादी
इन प्रजातियों की घटती आबादी के लिए कई कारण हैं, जैसे जंगलों की कटाई, बुनियादी ढांचे का विकास, कृषि, शिकार और कुछ क्षेत्रों में नागरिक अशांति. यह निष्कर्ष डब्ल्यूआईआई और एनटीसीए द्वारा भारत की 2022 की बाघ गणना के आंकड़ों का इस्तेमाल करके किए गए खुर वाले स्तनधारियों के अपने तरह के पहले मूल्यांकन से आए हैं.
दरअसल, खुर वाले स्तनधारी जानवर जैसे चीतल, सांभर और जंगली भैंसें बाघों की जीवन रेखा हैं. इनके बिना बाघ इंसानी बस्तियों के करीब चले जाते हैं और मवेशियों का शिकार करने लगते हैं. कई बार इसी कारण से बाघ और इंसानों के बीच संघर्ष होता है.
रिपोर्ट में महाराष्ट्र के ताड़ोबा और मध्य प्रदेश के रातापानी जैसे हॉटस्पॉट की ओर इशारा किया गया है, जहां जंगली जानवरों के बढ़ते हमलों ने इंसान और जानवरों के बीच तनाव को बढ़ा दिया है. जंगल में जहां पर्याप्त प्राकृतिक शिकार नहीं है, वहां बाघ को इन बस्तियों में भोजन के लिए आना पड़ता है और अकसर सबसे आसान भोजन गाय, बकरी या भैंस होती है, और जब ऐसा होता है, तो प्रतिशोध होता है.
पिछले कुछ सालों में, बाघ के निवास स्थान के तेजी से खत्म होने और अवैध शिकार के कारण जंगल में बाघों की संख्या में कमी आई है. निवास स्थान के कम होते जाने से बाघ इंसानी बस्ती नजदीक आ गए हैं, जिसके कारण कई संघर्ष हुए हैं और दोनों पक्षों ने नुकसान झेला है.
वाइल्डलाइफ एसओएस के डायरेक्टर कंजर्वेशन प्रोजेक्ट्स, बैजूराज एम.वी. कहते हैं, "सब कुछ शिक्षा, जागरूकता और रोजगार पर निर्भर करता है. जब लोग शिक्षित होंगे, तो वे वैकल्पिक आजीविका की ओर बढ़ेंगे जो वन संसाधनों का दोहन नहीं करती है. नहीं तो वे वन उपज का विकल्प चुनेंगे. जब लोगों को शिक्षित करने की बात आती है, तो हमें उन्हें आवास बहाली के बारे में भी शिक्षित करना चाहिए. अगर पेड़ होंगे, तो हिरण, लंगूर और कई अन्य प्रजातियां उस पर पनपेंगी. अगर जंगल का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो शिकार की प्रजातियां स्वाभाविक रूप से कम हो जाएंगी और बाघ, गायों और भैंसों की तलाश में गांवों में चले जाएंगे."
इंसान और बाघ का संघर्ष कैसे रोका जा सकता है
रिपोर्ट में एक समाधान का सुझाव दिया गया है, जिसके मुताबिक सुरक्षित बाड़ों में चीतल और सांभर का प्रजनन किया जाए. इन बाड़बंद क्षेत्रों में आबादी को सुरक्षित रूप से बढ़ने दिया जाए और शिकार और शिकारियों दोनों से बचाया जाए, इससे पहले कि उन्हें जंगल में फिर से बसाया जा सके. डीडब्ल्यू से बैजूराज कहते हैं, "अगर हम लोगों को शामिल करना चाहते हैं, तो सबसे पहले वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध करानी होगी. तभी स्थानीय लोग जंगली जानवरों के प्रति दयालु बन सकते हैं. अगर हितधारकों का ख्याल रखा जाएगा, तो वे निश्चित रूप से जंगल और उसकी जैव विविधता का ख्याल रखेंगे."