राष्ट्रीय
जम्मू, 14 नवंबर । जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नगरोटा विधानसभा सीट को बरकरार रखा है। शुक्रवार को मतगणना के बाद भाजपा की उम्मीदवार देवयानी राणा को नगरोटा उपचुनाव में विजेता घोषित किया गया। इस सीट पर कुल 10 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला रहा। देवयानी राणा ने नगरोटा उपचुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, नेशनल पैंथर्स पार्टी के हर्ष देव सिंह को 24,647 वोटों के अंतर से हराकर जीत हासिल की। सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) पार्टी की उम्मीदवार शमीम बेगम लगभग 31,478 मतों के अंतर से तीसरे स्थान पर रहीं। भाजपा प्रत्याशी देवयानी राणा को उपचुनाव में 42,350 वोट मिले, जबकि पैंथर्स पार्टी के हर्ष देव सिंह के पक्ष में 17,703 और नेशनल कॉन्फ्रेंस की शमीम बेगम के पक्ष में 10,872 वोट पड़े।
नगरोटा में पार्टी उम्मीदवार की जीत की घोषणा के तुरंत बाद जम्मू में भाजपा खेमे में जश्न शुरू हो गया। देवयानी राणा पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह राणा की बेटी हैं, जिन्होंने 2024 के विधानसभा चुनाव में नगरोटा सीट जीती थी। पिछले साल 31 अक्टूबर को देवेंद्र सिंह राणा के निधन के कारण नगरोटा में उपचुनाव कराए गए हैं। वहीं, जम्मू-कश्मीर के बडगाम विधानसभा क्षेत्र में अभी मतगणना जारी है। नौवें दौर की मतगणना के बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के उम्मीदवार आगा सैयद मुंतजिर मेहदी अपने नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रतिद्वंद्वी आगा सैयद महमूद से 3,084 मतों से आगे चल रहे हैं। बडगाम सीट पर उपचुनाव नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इस्तीफा देने के बाद कराए गए हैं।
उमर ने 2024 के विधानसभा चुनावों में दो सीटें (गांदरबल और बडगाम) जीती थीं। बाद में उन्होंने बडगाम सीट से इस्तीफा देकर गंदेरबल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया। बता दें कि 90 सदस्यीय जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भाजपा के पास 29 सीटें हैं, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 41 सीटें हैं। बडगाम सीट जीतने की स्थिति में पीडीपी की संख्या बढ़कर 4 पहुंच जाएगी। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 नवंबर । प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रिलायंस एडीएजी ग्रुप के चेयरमैन अनिल डी.अंबानी को किसी भी तरह की वर्चुअल पेशी की अनुमति नहीं दी है। यह जानकारी शुक्रवार को सूत्रों की ओर से दी गई। अनिल डी.अंबानी को बैंक फ्रॉड मामले में दूसरे दौर की पूछताछ के लिए शुक्रवार (14 नवंबर) को ईडी के दिल्ली मुख्यालय में पेश होना था, लेकिन वह नहीं पहुंचे। हालांकि, उन्होंने वर्चुअल पेशी का प्रस्ताव रखा है। ईडी के सूत्रों के मुताबिक, जांच एजेंसी को ईमेल के माध्यम से वर्चुअल रूप से पेश होने की उनकी इच्छा की जानकारी मिली थी, लेकिन ईडी ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी है। अनिल डी. अंबानी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि वह सभी मामलों में ईडी के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है और वे वर्चुअल माध्यम से पेश हो सकते हैं।
बयान में आगे कहा गया, "अनिल डी. अंबानी को ईडी की ओर से भेजा गया समन फेमा जांच से संबंधित है, न कि पीएमएलए के किसी मामले से इसका जुड़ाव है।" बयान में आगे कहा गया,"अनिल डी. अंबानी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के बोर्ड के सदस्य नहीं हैं। उन्होंने अप्रैल 2007 से मार्च 2022 तक लगभग पंद्रह वर्षों तक कंपनी में केवल एक गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में काम किया और कंपनी के डे-टू-डे मैनेजमेंट में कभी शामिल नहीं रहे।" ईडी ने समूह के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूछताछ के लिए अनिल अंबानी को 14 नवंबर को फिर से तलब किया था।
अगस्त में ईडी मुख्यालय में कथित 17,000 करोड़ रुपए के ऋण धोखाधड़ी मामले में उनसे लगभग नौ घंटे तक कड़ी पूछताछ हुई थी। यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हुआ है जब ईडी ने सोमवार को नवी मुंबई स्थित धीरूभाई अंबानी नॉलेज सिटी में 4,462.81 करोड़ रुपए मूल्य की 132 एकड़ से अधिक जमीन को धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत अस्थायी रूप से कुर्क किया था। ईडी ने इससे पहले रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड (आरकॉम), रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस लिमिटेड और रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड के बैंक धोखाधड़ी मामलों में 3,083 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की 42 संपत्तियां जब्त की थीं। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 नवंबर । बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए मतगणना जारी है। चुनाव आयोग के ताजा रुझानों के अनुसार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बहुमत के आंकड़ों को पार करते हुए स्पष्ट दिख रहा है, जबकि विपक्ष का महागठबंधन पिछड़ता नजर आ रहा है। इस बीच भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर लगातार चुनाव हारने को लेकर तंज कसा। अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट कर लिखा, "राहुल गांधी! एक और चुनाव, एक और हार!
अगर चुनावी निरंतरता के लिए कोई पुरस्कार होता, तो वह सभी पर भारी पड़ते। इस दर पर, असफलताएं भी सोच रही होंगी कि वह उन्हें इतनी विश्वसनीयता से कैसे पा लेते हैं।" मालवीय ने राहुल गांधी के नेतृत्व में 95 हार का जिक्र किया। उन्होंने बताया, "राहुल गांधी की 95 हार, हालांकि कई लोग उन्हें 9 से 5 बजे तक दोषारोपण करने वाला राजनेता कहेंगे, लेकिन राहुल गांधी दो दशकों में 95 चुनावी हार झेल चुके हैं, जो एक सदी से पांच कम है। क्या भारत की संस्थाओं पर यह हमला इस चांदी के चम्मच वाले उत्तराधिकारी की ध्यान भटकाने की चाल है?"
मालवीय ने राज्य चुनावों के ग्राफिक्स भी पोस्ट किए, जिसमें दिखाया गया है कि राहुल गांधी के चुनावी राजनीति में प्रवेश करने के बाद कांग्रेस पार्टी कब और कहां चुनाव हारी। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मतगणना जारी है। चुनाव आयोग के ताजा रुझानों के मुताबिक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बहुमत के लिए आवश्यक आंकड़े 122 को आसानी से पार करते हुए दिख रही है। रुझानों में भाजपा ने बाकी सभी पार्टियों की तुलना में बढ़त बनाई हुई है। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक भाजपा सर्वाधिक 88 सीटों पर आगे है। दूसरे नंबर की पार्टी नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) है, जो 79 सीटों पर आगे चल रही है। इसके अलावा प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) 32 सीटों पर आगे चल रही है।
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 21 सीटों पर आगे चल रही है। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी एवं बिहार में विपक्षी महागठबंधन का प्रमुख दल कांग्रेस मात्र 4 सीटों पर आगे है। --(आईएएनएस)
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से क़रीब 35 किलोमीटर दूर धौज गाँव की सीमा शुरू होते ही पुलिस के बैरिकेड दिखाई देते हैं.
दर्जनों जवान यहाँ से आने-जाने वाली हर गाड़ियों की जाँच कर रहे हैं.
संदेह होने पर ड्राइवर के फ़ोन नंबर सहित अधिक जानकारियाँ नोट भी कर रहे हैं.
यहाँ से क़रीब दो-ढाई किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग से एक किलोमीटर हटकर अल फ़लाह यूनिवर्सिटी का 70 एकड़ से अधिक में फ़ैला और चारदीवारी से घिरा विशाल कैम्पस है.
यूनिवर्सिटी के गेट के बाहर मुस्तैद सुरक्षाकर्मी पत्रकारों को भीतर जाने से रोक रहे हैं.
यहाँ बड़ी संख्या में पत्रकार मौजूद हैं, जो यूनिवर्सिटी कैम्पस से बाहर निकल रहे लोगों से बात करने की कोशिश में माइक आगे बढ़ाते हैं लेकिन अधिकतर लोग बिना कोई प्रतिक्रिया दिए निकल जाते हैं.
कुछ पत्रकार बाहर निकल रहे लोगों का पीछा तक करते हैं. इस शोर-शराबे के बीच लोग ख़ामोश हैं और उनके चेहरों पर झिझक और डर साफ़ नज़र आता है.
वर्ष 2014 में स्थापित ये यूनिवर्सिटी इस साल अक्तूबर के अंत में तब चर्चा में आई, जब यहाँ पढ़ाने वाले एक डॉक्टर प्रोफ़ेसर को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हरियाणा पुलिस के साथ एक साझा ऑपरेशन में गिरफ़्तार किया.
लेकिन 10 नवंबर को दिल्ली में हुए धमाके के बाद यह यूनिवर्सिटी जाँच का केंद्र बन गई है.
बुधवार को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए), हरियाणा पुलिस, जम्मू-कश्मीर पुलिस और यूपी पुलिस के दलों ने कैम्पस में जाँच की.
मैकेनिकल इंजीनियर ने स्थापित की यूनिवर्सिटी
हरियाणा विधानसभा में साल 2014 में पारित एक क़ानून के तहत स्थापित इस यूनिवर्सिटी का संचालन दिल्ली के ओखला (जामिया नगर) में पंजीकृत अल-फ़लाह चैरिटेबल ट्रस्ट करता है.
पेशे से इंजीनियर और प्रोफ़ेसर जावेद अहमद सिद्दीक़ी 1995 में पंजीकृत इस ट्रस्ट के संस्थापक और चेयरपर्सन हैं.
अल फ़लाह चैरिटेबल ट्रस्ट ने 1997 में शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने शुरू किए थे.
सबसे पहले फ़रीदाबाद के धौज गाँव में ट्रस्ट ने एक इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किया था.
इसके बाद ट्रस्ट ने कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन और ब्राउन हिल कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग की स्थापना साल 2006 और 2008 में की.
आगे चलकर यही यूनिवर्सिटी बनीं और साल 2015 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने भी इस यूनिवर्सिटी को मान्यता दी.
यहाँ मेडिकल विषयों की पढ़ाई साल 2016 में शुरू हुई और साल 2019 में अल-फ़लाह स्कूल ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ को मान्यता मिली.
अब इस मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के अलावा 2023 से मेडिकल साइंसेज़ में पीजी कोर्स भी संचालित होते हैं. यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर इसे राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यापन परिषद (एनएएसी) से प्रमाणित बताया है हालांकि एनएएसी ने एक बयान जारी कर इस प्रमाण पत्र को फ़र्ज़ी बताया है.
यहाँ प्रति वर्ष 200 एमबीबीएस छात्रों के दाख़िले होते हैं और इस समय एक हज़ार से अधिक छात्र मेडिकल कोर्सेज़ में पंजीकृत हैं. इसके अलावा यहाँ पैरा-मेडिकल कोर्स भी चलते हैं.
अल फ़लाह चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरपर्सन और अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीक़ी ख़ुद इंजीनियर हैं.
इंदौर के देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय से इंडस्ट्रियल एंड प्रोडक्ट डिज़ाइन में बीटेक की डिग्री लेने वाले डॉ.जावेद सिद्दीक़ी अल-फ़लाह चैरिटेबल ट्रस्ट के अलावा कई अन्य कंपनियों के संस्थापक हैं.
उन्होंने साल 1996 में अल-फ़लाह इन्वेस्टमेंट लिमिटेड की स्थापना भी की थी. सिद्दीक़ी पर इस कंपनी के ज़रिए निवेश में धोखाधड़ी का आरोप लगा था और उन पर मुक़दमा भी दर्ज हुआ था.
सिद्दीक़ी साल 2000 में दर्ज धोखाधड़ी के इसी मामले में तीन साल से अधिक समय तक जेल में भी रहे. हालाँकि उन्हें साल 2005 में बरी कर दिया गया था.
वो जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में भी पढ़ा चुके हैं.
दिल्ली ब्लास्ट के बाद सुर्ख़ियों में यूनिवर्सिटी
भारत सरकार ने दिल्ली में लाल क़िले के सामने 10 नवंबर की शाम हुए धमाके को अब 'टेरर अटैक' माना है.
अब तक की जाँच में जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, उनमें से कुछ लोगों का संबंध अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी से है.
जम्मू-कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस ने एक साझा अभियान में अक्तूबर माह के अंत में डॉ. मुज़म्मिल शकील को गिरफ़्तार किया था.
2017 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाले डॉ. मुज़म्मिल शक़ील अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में फिज़ियोलॉजी विभाग में शिक्षक हैं.
फ़रीदाबाद पुलिस के एक बयान के मुताबिक़ मुज़म्मिल शक़ील की निशानदेही पर भारी मात्रा में विस्फ़ोटक पदार्थ और रसायन बरामद किए गए थे.
फ़रीदाबाद के पुलिस कमिश्नर सतेंद्र कुमार ने 10 नवंबर को पत्रकारों से बातचीत में कहा था,"फ़रीदाबाद में जम्मू-कश्मीर पुलिस की जाँच के दौरान बड़ी मात्रा में आईईडी बनाने का सामान और गोला-बारूद बरामद हुआ है."
उन्होंने डॉक्टर मुज़म्मिल शक़ील की गिरफ़्तारी की पुष्टि भी की थी.
जाँच एजेंसियों ने डॉ. मुज़म्मिल शकील की निशानदेही पर असॉल्ट राइफ़ल और पिस्टल समेत हथियार भी बरामद करने का दावा किया है.
फ़रीदाबाद के पुलिस कमिश्नर के पीआरओ यशपाल ने बीबीसी से इस बात की पुष्टि की है कि इस यूनिवर्सिटी से ही जुड़ी एक और डॉ. शाहीन सईद को भी जाँच एजेंसियों ने हिरासत में लिया है.
2002 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाली डॉ. शाहीन यूनिवर्सिटी के फॉर्माकोलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. फ़रीदाबाद पुलिस ने बीबीसी से डॉ. शाहीन सईद की गिरफ़्तारी की पुष्टि की है
समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में शाहीन के भाई मोहम्मद शोएब ने बताया कि पुलिस और एटीएस की टीम उनके घर पर आई थी और पूछताछ हुई थी.
जबकि उनके पिता का कहना था कि शाहीन पर लगे आरोपों पर उन्हें भरोसा नहीं है.
डॉक्टर शाहीन ने कुछ समय कानपुर में भी पढ़ाया था. इस मामले को लेकर कानपुर पुलिस ने भी कई लोगों से पूछताछ की है.
कानपुर के ज्वाइंट सीपी (लॉ एंड ऑर्डर) आशुतोष कुमार के मुताबिक़ शाहीन जेएसम कॉलेज में पढातीं थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने दिल्ली पुलिस के सूत्रों के हवाले से जानकारी दी है कि डीएनए टेस्ट से इसकी पुष्टि हुई है कि लाल क़िले के पास जिस कार में धमाका हुआ, उसे डॉक्टर उमर नबी ही चला रहे थे.
2017 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाले डॉ. उमर नबी जनरल मेडिसिन विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत थे.
डॉ. उमर नबी के परिजनों से भी पूछताछ की गई है.
डॉक्टर उमर नबी की भाभी मुज़म्मिल अख़्तर ने बीबीसी को बताया कि सोमवार देर रात पुलिस की टीम पुलवामा के कोइल गाँव में उनके घर पर आई थी. उमर के कुछ अन्य रिश्तेदार से भी पूछताछ की गई है.
हालाँकि इस बारे में जाँच एजेंसियों की तरफ़ से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.
दूसरी ओर अल फ़लाह यूनिवर्सिटी ने ख़ुद को इन तीनों डॉक्टरों से अलग करते हुए कहा है कि यूनिवर्सिटी के साथ उनका संबंध सिर्फ़ पेशेवर था.
क्या कहा है यूनिवर्सिटी ने?
अल-फ़लाह स्कूल ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ की प्रिंसिपल डॉ. भूपिंदर कौर की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है, "हमें पता चला है कि हमारे दो डॉक्टरों को जाँच एजेंसियों ने हिरासत में लिया है. हम ये स्पष्ट करना चाहते हैं कि इन दोनों व्यक्तियों का यूनिवर्सिटी से कोई संबंध नहीं है. ये पेशेवर हैसियत में हमारे साथ काम कर रहे थे."
यूनिवर्सिटी ने कहा है कि किसी तरह के रसायनों या विस्फोटक पदार्थों से संस्थान का कोई संबंध नहीं है और संस्थान जाँच एजेंसियों का पूरा सहयोग कर रहा है.
अपने बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा है कि संस्थान को दिल्ली के लाल क़िले के पास हुई घटना के साथ जोड़ने से छात्रों के लिए दिक़्क़तें हो रही हैं.
बीबीसी ने ट्रस्ट के चेयरपर्सन डॉ. जावेद अहमद सिद्दीक़ी और मेडिकल कॉलेज का पक्ष जानने का प्रयास किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका.
स्टू़डेंट्स में डर
इस यूनिवर्सिटी में देश के अलग-अलग हिस्सों से छात्र पढ़ने आते हैं.
मेडिकल कोर्सेज के अधिकतर छात्र परिसर में बने हॉस्टल में रहते हैं, जबकि अन्य कोर्सेज के छात्र आसपास के इलाक़ों में लॉज या किराए के कमरों में रहते हैं.
दिल्ली में हुए हमले की जाँच के दायरे में यूनिवर्सिटी के आने के बाद से ही कई छात्र आशंकित और डरे हुए हैं.
इसी यूनिवर्सिटी से पैरा-मेडिकल कोर्स करने और अब यहाँ पढ़ रहे एक छात्र ने अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए बताया, "जिन डॉक्टरों की गिरफ़्तारी की गई है वह हमारे कॉलेज से ही जुड़े हैं. जब से ये घटनाक्रम हुआ है छात्र डरे हुए और आशंकित हैं."
मेडिकल कॉलेज से जुड़ा 650 बेड का एक अस्पताल भी है, जिसमें आसपास के इलाक़े के अलावा दूर-दूर से भी मरीज़ इलाज कराने आते हैं.
जाँच के बीच यहाँ मरीज़ों का आना जारी है, हालाँकि उनकी संख्या में गिरावट ज़रूर हुई है.
अस्पताल में काम करने वाले एक अन्य स्टाफ़ ने बताया, "इस घटनाक्रम के बाद से इलाज कराने आ रहे मरीज़ों की संख्या में भारी गिरावट आई है. अब पहले से आधे मरीज़ ही आ रहे हैं."
उत्तर प्रदेश के रहने वाले विश्वास जॉनसन ने बताया, "इसी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद मुझे आसानी से संस्थान में ही नौकरी मिल गई. यहाँ देश के हर हिस्से से छात्र पढ़ने आते हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा संख्या यूपी और बिहार से आने वाले छात्रों की है."
विश्वास कहते हैं, "यहाँ मेडिकल कोर्सेज में पढ़ाई का माहौल बेहतर है. हालाँकि पैरा-मेडिकल कोर्स में पढ़ने वाले छात्रों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है."
विश्वास भी डरे हुए हैं. वो कहते हैं, "कैंपस में भारी पुलिस है. छात्रों में डर का मौहल है. डॉ. शाहीना सईद ने हमें पढ़ाया है. डॉ. मुज़म्मिल को भी मैंने परिसर में कई बार देखा है."
मेडिकल के एक छात्र ने अपना नाम ज़ाहिर न करते हुए कहा, "छात्र आशंकित हैं, अगर यूनिवर्सिटी पर असर हुआ तो इससे छात्रों का भी भविष्य प्रभावित हो सकता है. नए छात्रों में डर और आशंकाएँ और भी ज़्यादा हैं."
एक अन्य छात्र ने बताया, "यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रों से संयम बनाए रखने की अपील की है."
11 साल से यहाँ सुरक्षा गार्ड का काम कर रहे एक व्यक्ति के मुताबिक़ डॉक्टरों की गिरफ़्तारी के बाद से कर्मचारी भी आशंकित हैं.
वो कहते हैं, "इतने साल यहाँ काम करते हुए हो गए, कभी ऐसा नहीं सुना. अब यहाँ जाँच चल रही है, बार-बार पुलिस आ रही है. इससे यहाँ काम करने वालों के मन में भी सवाल हैं."
कहाँ मिले विस्फोटक?
हरियाणा पुलिस के मुताबिक़, अल फ़लाह यूनिवर्सिटी के नज़दीक ही धौज गाँव और फ़तेहपुर तगा गाँव से डॉ. मुज़म्मिल की निशानदेही पर विस्फोटक बरामद हुए हैं.
डॉ. मुज़म्मिल ने धौज गाँव में एक कमरा किराए पर लिया था. जाँच एजेंसियों ने यहाँ से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद करने का दावा किया है.
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हरियाणा पुलिस के साथ मिलकर फ़रीदाबाद में कार्रवाई की थी.
जम्मू-कश्मीर की पुलिस ने भी इस बारे में विस्तार से जानकारी दी थी.
पुलिस के बयान के मुताबिक़ अब तक 2900 किलो से अधिक आईईडी बनाने की सामग्री और अन्य रासायनिक पदार्थ बरामद हुए हैं.
डॉ. मुज़म्मिल ने इसी साल सितंबर में धौज में एक कमरा किराए पर लिया था. यहाँ भी जाँच एजेंसियाँ पड़ताल कर रही हैं.
इस मकान के मालिक से भी पुलिस ने पूछताछ की है, जिसके बाद से वो भी डरे हुए हैं.
वहीं अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी से क़रीब तीन किलोमीटर दूर भी डॉ. मुज़म्मिल ने एक कमरा किराए पर लिया था. पुलिस ने यहाँ भी विस्फोटक और रसायन बरामद करने का दावा किया है.
फ़तेहपुर तगा गाँव की नई बन रही डेहरा बस्ती के आख़िरी छोर पर वो घर अब खुला पड़ा है, जहाँ कथित रूप से विस्फोटक बरामद किए गए. यहाँ भी लोग बात करने से डरते हैं.
इस घर के ठीक सामने रहने वाली एक महिला ने बीबीसी से कहा, "दो दिन पहले यहाँ पुलिस आई थी. कहा जा रहा है कि कोई डॉक्टर हैं, जिन्होंने ये कमरा किराए पर लिया था. मैंने उन्हें कभी यहाँ नहीं देखा ना ही मीडिया में आने से पहले उनका नाम सुना था."
इस मकान में अन्य किराएदार भी रहते हैं, जो फ़िलहाल यहाँ मौजूद नहीं थे.
इस मकान के मालिक नूर मोहम्मद इश्तियाक़ अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी में बनीं मस्जिद के इमाम भी हैं. उन्हें भी हिरासत में लिया गया है.
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उनके भाई ने बताया कि मकान का एक कमरा कुछ डॉ. मुज़म्मिल को किराए पर दिया गया था.
अपने भाई को बेग़ुनाह बताते हुए उन्होंने कहा, "मेरे भाई 20 साल से उस मस्जिद में इमाम हैं, इमाम की हैसियत से वो नमाज़ पढ़ने आने वाले डॉक्टरों और छात्रों से बात भी करते थे. इसके अलावा उनका किसी से कोई संबंध नहीं है."
बढ़ा जाँच का दायरा
अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी परिसर में जाँच जारी है. बुधवार को यहाँ कई राज्यों की पुलिस और केंद्रीय एजेंसियाँ मौजूद रहीं.
एक सुरक्षा गार्ड के मुताबिक़, मंगलवार के बाद से यहाँ लगातार जाँच एजेंसियों से जुड़े लोग आ रहे हैं.
हालाँकि इसे लेकर आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है.
बुधवार रात होने तक भी कई जाँच टीमें अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी परिसर में मौजूद थीं.
गेट पर मौजूद एक सुरक्षा गार्ड कहते हैं, "अब पहले से ज़्यादा पुलिस आ रही है. आगे क्या होगा किसी को नहीं पता."
वहीं, यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में क़रीब 70 किलोमीटर दूर से इलाज कराने आए एक व्यक्ति ने कहा, "यहाँ इलाज कुछ सस्ता हो जाता है इसलिए आते हैं."
लगातार आगे बढ़ रही लाल क़िले के पास हुए हमले की जाँच ने यूनिवर्सिटी के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
इन सवालों से सबसे ज़्यादा परेशान यहाँ पढ़ने वाले छात्र हैं.
पैरा-मेडिकल की पढ़ाई कर रहे एक छात्र ने कहा, "किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि यूनिवर्सिटी का नाम इतने बड़े हमले से जुड़ेगा. अब इसका असर हम सबके भविष्य पर पड़ेगा. यूनिवर्सिटी की बहुत बदनामी हो रही है, हम जैसे छात्रों को इसे भुगतना पड़ सकता है."
किसान अब पहले से ज्यादा यूरिया की मांग कर रहे हैं. लेकिन घरेलू उत्पादन उस गति से नहीं हो रहा. तो क्या भारत यूरिया संकट की तरफ बढ़ रहा है?
डॉयचे वैले पर शिवांगी सक्सेना की रिपोर्ट -
भारत में किसानों की यूरिया पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है. यह स्थिति सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. किसानों की बढ़ती जरूरत के मुकाबले देश में यूरिया का उत्पादन कम हो रहा है. पिछले वित्त वर्ष यानी अप्रैल 2024 से मार्च, 2025 के बीच यूरिया की खपत लगभग 38.8 मिलियन टन रही. यह रिकॉर्ड आंकड़ा है.
जल्द ये रिकॉर्ड भी टूट सकता है. चालू वित्त वर्ष में यूरिया की खपत 40 मिलियन टन से ज्यादा होने की उम्मीद है. इस वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में ही यूरिया की बिक्री में 2.1 प्रतिशत का उछाल आया है. रबी के मौसम में यह और बढ़ेगी. गेहूं, चना, आलू, सरसों और मटर जैसी फसलें इसी मौसम में बोई जाती हैं. इन फसलों को अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, जो यूरिया से मिलता है.
बिहार के कई जिलों में हैंडपंप से लेकर तालाब तक सब सूखे
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यूरिया की खपत पिछले दशकों में लगातार बढ़ी है. वित्त वर्ष 1990‑91 में यह लगभग 14 मिलियन टन थी. वर्ष 2010-11 तक खपत दोगुनी होकर 28.1 मिलियन टन पर पहुंच गई. लेकिन बढ़ती मांग के साथ घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ रहा बल्कि कम हो रहा है. घरेलू उत्पादन वर्ष 2023‑24 में 31.4 मिलियन टन था. लेकिन अगले वित्त वर्ष में यह घटकर 30.6 मिलियन टन हो गया. साल 2025 में अप्रैल से सितंबर के बीच यह उत्पादन, पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में 5.6 प्रतिशत कम हुआ है.
यूरिया की मांग क्यों बढ़ रही है?
वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की स्थिति के कारण यूरिया की बिक्री बढ़ रही है. साथ ही यूरिया का गैर-कृषि कार्यों में भी इस्तेमाल बढ़ा है. गोंद, पेंट, प्लास्टिक और फर्नीचर जैसे उद्योगों में यूरिया की जरुरत पड़ती है.
तापमान और बारिश का पैटर्न बदला है. सूखा या अत्यधिक बारिश होने से मिट्टी की पोषक तत्व क्षमता प्रभावित होती है. इस वर्ष जून से अगस्त के बीच देश भर में बारिश औसत से ऊपर रही. जून में 8.9 प्रतिशत, जुलाई में 4.8 प्रतिशत, और अगस्त में 5.2 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है. अच्छी बारिश से खरीफ फसलों जैसे मक्का और धान की बुवाई पर असर पड़ा. किसान फसल धनत्व बढ़ाने के लिए उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं. इसके चलते यूरिया की मांग अचानक बहुत बढ़ गई है.
अन्य उर्वरकों पर सब्सिडी की जरुरत
बाजार में मौजूद अन्य उर्वरकों की तुलना में यूरिया सस्ता है. सरकार यूरिया पर सबसे ज्यादा सब्सिडी देती है. यूरिया का एमआरपी नवंबर 2012 से 5,360 रूपए प्रति टन है. यह तब से नहीं बदला है. वहीं जनवरी 2015 से नीम की परत लगी यूरिया का मूल्य लगभग 5,628 रूपए प्रति टन है.
जबकि एक टन सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) की कीमत 11,500 से 12,000 रूपए, ट्रिपल सुपर फॉस्फेट (टीएसपी) 26,000 रूपए, डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) 27,000 रूपए और म्युरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी) की कीमत 36,000 रूपए है. किसान उर्वरक बैग के हिसाब से खरीदते हैं. यूरिया के एक 45 किलोग्राम वाले बैग की कीमत लगभग 250 से 270 रूपए है. जो बाकियों से बहुत सस्ता पड़ता है.
सस्ता होने के साथ ही यूरिया में नाइट्रोजन की मात्रा भी ज्यादा होती है. इसमें 46 प्रतिशत नाइट्रोजन है. डीएपी में लगभग 18 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है. वहीं एसएसपी और टीएसपी में नाइट्रोजन लगभग ना के बराबर मिलता है.
आयात नहीं, घरेलू उत्पादन को बढ़ाना होगा
भारत में यूरिया की कुल मांग का लगभग 87 प्रतिशत घरेलू उत्पादन से पूरा होता है. जितना कम पड़ता है उसे आयात किया जाता है. भारत में चीन, ओमान, कतर और रूस से यूरिया खरीदा जाता है. इस वित्त वर्ष आयात बढ़ने का अनुमान है.
भारत में यूरिया बनाने के लिए प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की भी जरुरत पड़ती है. देश में लगभग 15 प्रतिशत यूरिया संयंत्र ही देश की खुद की गैस का इस्तेमाल करते हैं. बाकी की क्षमता आयातित गैस पर आधारित है. इसका मतलब एलएलजी की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव की वजह से यूरिया के आयात और दाम पर असर पड़ सकता है.
यूरिया उत्पादन वर्ष 2019‑20 में 24.5 मिलियन टन से बढ़कर 2023‑24 में 31.4 मिलियन टन तक पहुंच गया. लेकिन अगले ही वित्त वर्ष से इसमें गिरावट आने लगी. वर्ष 2024-25 के बीच इफको, नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, कृषक भारती सहकारी लिमिटेड, मैटिक्स फर्टिलाइजर और चंबल फर्टिलाइजर ने घरेलू यूरिया उत्पादन की आपूर्ति करने में मदद की. वरना स्थिति और खराब हो सकती थी.
हालांकि इसके कुछ नुकसान भी हैं. यूरिया बनाने वाले इन संयंत्रों से प्रदूषण भी फैलता है. विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की एक रिपोर्ट के अनुसार कुल उत्पादन लागत का लगभग 70-80 प्रतिशत हिस्सा ऊर्जा की खपत पर खर्च होता है. अध्ययन में यह भी पाया गया कि यूरिया उत्पादन करने वाले संयंत्रों में प्रति वर्ष लगभग 191 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग होता है. लगभग 26 प्रतिशत संयंत्रों में भूजल का इस्तेमाल होता है. इन संयंत्रों से निकलने वाला पानी भी प्रदूषित होता है.
यूरिया पर निर्भरता घटाने की जरुरत भी
केवल यूरिया पर निर्भर रहने के बजाय किसान गोबर, कंपोस्ट, हरी खाद और जैविक उर्वरक का उपयोग कर सकते हैं. डॉ.दया श्रीवास्तव सुझाव देते हैं कि सरकार उन किसानों को प्रोत्साहित करे जो यूरिया का इस्तेमाल कम कर रहे हैं. अभी ऐसा नहीं हो रहा है.
वह कहते हैं, "अगर यूरिया पर सब्सिडी दी जा रही है, तो वर्मी कंपोस्ट जैसे जैविक उर्वरक पर भी सब्सिडी दी जानी चाहिए. जैविक उर्वरक महंगे होने के कारण कम इस्तेमाल होते हैं. प्राकृतिक या जैविक खेती में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग नहीं होता. जैविक खेती के लिए किसान को रजिस्ट्रेशन का खर्च अपनी जेब से देना पड़ता है. यह 4,000 से 4,500 रुपये है. जबकि सरकार को जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को अधिक सब्सिडी और प्रोत्साहन देना चाहिए.”
डॉ. दया श्रीवास्तव आगे बताते हैं, "जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए अभी तक कोई विशेष बाजार विकसित नहीं किया गया है, जिससे उन्हें अपना उत्पादन बेचने में दिक्कत होती है. यूरिया पर सब्सिडी को कम किया जा सकता है क्योंकि नाइट्रोजन के अन्य कई स्रोत उपलब्ध हैं." डॉ. दया श्रीवास्तव के मुताबिक पोल्ट्री मेंयोर एक बेहतरीन विकल्प है. साथ ही, जैविक उर्वरक जैसे बायो-एनपीके के उपयोग और महत्व के बारे में किसानों में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए.
हालांकि भारत में यूरिया की बढ़ी मांग और कमजोर उत्पादन के बीच भारत सरकार के उर्वरक विभाग ने हाल ही में कहा है कि देश में यूरिया की मांग को पूरा करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. इस वर्ष अप्रैल से अक्टूबर के बीच, भारत ने 5.8 मिलियन टन यूरिया का आयात किया. पिछले वर्ष इसी अवधि में यह मात्रा 2.4 मिलियन टन थी.
देश में भी घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं. असम के नामरूप और ओडिशा के तलचर में दो यूरिया संयंत्र निर्माणाधीन हैं. दोनों की क्षमता 1.27 मिलियन टन प्रति वर्ष है. साथ ही सरकार ने आश्वासन दिया है कि रबी सीजन के लिए यूरिया का पर्याप्त स्टॉक है.
क्यों इतने खास हैं 'माउंट ऑफ ऑलिव्स' के जैतून
येरुशलम के पूरब की ओर एक लंबे टीले पर तीन पहाड़ियां हैं. इन्हीं में से एक है, माउंट ऑफ ऑलिव्स. यहां जैतून तोड़कर तेल निकालना एक प्राचीन परंपरा का हिस्सा है. मान्यता है कि ईसा मसीह ने इस पहाड़ी पर प्रार्थना की थी.
माना जाता है, ईसा ने यहां प्रार्थना की थी
कभी ये जमीन जैतून के पेड़ों से ढकी थी. जैतून के पेड़ों से इसे ही 'माउंट ऑफ ऑलिव्स' को अपना नाम मिला. इसका जिक्र बाइबिल में भी मिलता है. गॉस्पेल के मुताबिक, सूली चढ़ाने के लिए प्राचीन येरुशलम ले जाए जाने से पहले ईसा मसीह ने आखिरी रात यहीं गुजारी थी. ईसा ने यहां प्रार्थना की थी. ईसाई और यहूदी, दोनों धर्मों में इस जगह की काफी मान्यता है.
जैतून के प्राचीन पेड़
'माउंट ऑफ ऑलिव्स' पर जैतून के बहुत प्राचीन पेड़ भी हैं. इन्हें अहम सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है. इस साल जैतून की फसल तोड़ने के मौसम में ही इस्राएल और हमास के बीच युद्धविराम हुआ. युद्ध के दौरान आशंका थी कि पेड़ों को मिसाइल से नुकसान पहुंच सकता है.
प्राचीन परंपरा का हिस्सा
अब शांत हुए माहौल में मंक और ननें 'माउंट ऑफ ऑलिव्स' और 'गेथसमनी गार्डन' में जैतून की तैयार हो चुकी फसल जमा करने में व्यस्त हैं. यह बहुत प्राचीन परंपरा रही है. जैतून तोड़ने के लिए कई देशों से वॉलंटियर भी यहां आते हैं. सिर्फ वयस्क ही नहीं, बच्चे और किशोर भी हाथ बंटाते हैं. इस तस्वीर में दो कैथलिक नन, सिस्टर मैरी बेनेडिक्ट और सिस्टर कोलोंबा नजर आ रही हैं.
जैतून तोड़कर जमा करने में लोगों की आस्था है
डिएगो दला गासा एक 'फ्रेंसिस्कन' हैं. यह कैथलिक चर्च से जुड़ा एक धार्मिक समूह है. डिएगो, 'माउंट ऑफ ऑलिव्स' पर 'गेथसमनी गार्डन' के पास एक आश्रम (हरमिटेज) में जैतून पैदावार की देखरेख करते हैं. पहाड़ी पर बने बाकी कैथलिक आश्रमों-चर्चों और उनमें रहने वाले समुदायों के लिए जैतून तोड़कर उनसे तेल जैसे उत्पाद बनाना ना तो कारोबार है, ना ही भरण-पोषण का मुख्य जरिया.
"ये जमीन एक तोहफा है"
इन लोगों के लिए यह काम प्रार्थना का एक रूप और श्रद्धा की एक अभिव्यक्ति है. जैसा कि डिएगो ने एपी से बातचीत में कहा, "यह जमीन एक तोहफा है, दैवीय उपस्थिति का एक प्रतीक है." डिएगो बताते हैं, "पवित्र जगहों का संरक्षक होने का मतलब बस उनकी रक्षा करना नहीं है, बल्कि उन्हें जीना है. शरीर से भी और आध्यात्मिक रूप से भी. दरअसल ये पवित्र जगहें हमारी रक्षा करती हैं."
इन लोगों के लिए कारोबार नहीं है जैतून की खेती
पहाड़ी पर बने आश्रमों और चर्चों के लोग बाजार में बेचने के लिए सामान नहीं बनाते हैं. इस काम में उनकी गहरी आस्था है. जैसा कि सिस्टर मैरी बेनेडिक्ट बताती हैं, "जैतून तोड़ते समय प्रार्थना करना आसान है, और प्रकृति में भी इतनी सुंदरता है. ऐसा लगता है छुट्टी बिता रहे हों."
धार्मिक कार्यों में भी इस्तेमाल होता है ऑलिव ऑइल
ये लोग जितना जैतून का तेल निकालते हैं, उसका बड़ा हिस्सा खुद ही इस्तेमाल करते हैं. धार्मिक अनुष्ठानों में भी ऑलिव ऑइल इस्तेमाल किया जाता है. यहां 'बेनेडिक्टेन मोनेस्ट्री' में रहने वालीं सिस्टर कोलोंबा ने बताया कि ईसा मसीह की मूर्ति के पास जलने वाले चर्च लैंप के जैतून का तेल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो, यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है.
आर्थिक और धार्मिक, दोनों रूपों से बड़ा प्रतीक है जैतून
इस शुष्क, रेगिस्तानी इलाके में जैतून के पेड़ बहुत अहम पैदावार हैं. सदियों से यहां जैतून उगता और उगाया जाता रहा है. वेस्ट बैंक में यहूदी सेटलर्स और फलस्तीनियों के बीच संघर्ष में जैतून के पेड़ों पर भी विवाद रहा है. यहां जैतून आर्थिक और धार्मिक, दोनों रूपों से एक मजबूत प्रतीक है.
इस बरस कम पैदावार हुई
इस साल जैतून की पैदावार काफी कम हुई. सूखा पड़ने और तेज हवाओं के कारण फूलों को बड़ा नुकसान पहुंचा. बसंत के मौसम में एक बड़ी आग में बहुत सारे पेड़ तहस-नहस भी हो गए.
भारत में शराब के बढ़ते बाजार के बीच, जेन-जी नॉन-अल्कोहलिक विकल्पों को अपनाकर पीने की आदतों में बदलाव ला रहे हैं. लेकिन अभी ये विकल्प पूरी तरह शराब की जगह नहीं लेने जा रहे
डॉयचे वैले पर शिवांगी सक्सेना की रिपोर्ट -
भारत में शराब पीने के तरीके में बदलाव आ रहा है. जिम्मेदारी से पीने के शौकीन अब एक ऐसे विकल्पों की ओर देख रहे हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ना हों. इस ट्रेंड को 'सोबर ड्रिंकिंग' या 'सोबर क्यूरोसिटी' कहते हैं. बहुत से जेन-जी सोशल गैदरिंग में शराब के अलावा काफी मात्रा में नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स भी पी रहे हैं. स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता से ऐसा हुआ है. ज्यादा शराब पीने से वजन बढ़ने और नींद खराब होने जैसे बुरे प्रभावों को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. वे शराब पी रहे हैं लेकिन नियंत्रित मात्रा में. नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स भी उन्हें आकर्षित कर रही हैं.
यूरोमीटर इंटरनेशनल की 'वैश्विक शराब बाजार 2025' रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक शराब उद्योग वर्ष 2024 में 253 अरब लीटर तक पहुंच गया था. फिर इसकी रफ्तार ठहर गई. दुनियाभर में शराब पीने वाले लोगों की संख्या घट रही है. जो लोग कभी-कभी शराब पीते हैं, उनमें से 53 प्रतिशत लोग अब इसे कम करने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि पांच साल पहले यह आंकड़ा 44 प्रतिशत था.
टैल्कम पाउडर, एस्बेस्टस और कैंसर: क्या है इनका रिश्ता?
सबसे ज्यादा जेन-जी इस बदलाव को तेजी से अपना रहे हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि 36 प्रतिशत युवाओं ने कभी शराब नहीं पी. इसके पीछे स्वास्थ्य एक बड़ी वजह है. लगभग 87 प्रतिशत लोगों को लगता है कि स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और लंबी उम्र के लिए शराब से परहेज जरुरी है. जबकि 30 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि कम शराब पीने से बचत होती है. वहीं 25 प्रतिशत लोग बेहतर नींद पाने के लिए शराब कम कर रहे हैं.
भारत में क्या हैं ड्रिंकिंग पैटर्न?
पारंपरिक रूप से शराब की बड़ी खपत वाले पश्चिमी देशों के बजाए अब ब्राजील, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और खासतौर पर भारत जैसे उभरते हुए बाजार बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. वर्ष 2024 से 2029 तक भारत में शराब की खपत करीब 36 करोड़ लीटर बढ़ने की उम्मीद है. यह दर्शाता है कि भारत के बाजारों में भी शराब की खरीद तेजी से बढ़ रही है. इसका मुख्य कारण है इन सभी देशों में मध्यम वर्ग की आय का बढ़ना और लोगों की खरीदारी की आदतों में आया बदलाव. वहीं तेज महंगाई और खराब होती अर्थव्यवस्था के बीच अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों में लोग खर्च करने से पहले बहुत ज्यादा सोच-विचार करने लगे हैं. इसलिए अब शराब उद्योग को सबसे बड़ी संभावनाएं उभरते हुए बाजारों में दिख रही हैं.
हालांकि भारत में भी लोगों का शराब की ओर रुझान अपने चरम पर नहीं है क्योंकि भारत में भी लोग कम अल्कोहल वाले विकल्पों की ओर जा रहे हैं. ऐसे में नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. भारत में नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक का बाजार वर्ष 2024 में लगभग 32.06 बिलियन डॉलर था. वर्ष 2033 तक यह बढ़कर 68.73 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. अगर इस सेगमेंट की बात करे तो वर्ष 2024 में नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स की बिक्री में 17 प्रतिशत और नॉन-अल्कोहलिक रेडी-टू-ड्रिंक ड्रिंक्स की बिक्री में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि नॉन/लो अल्कोहल बीयर में 11 प्रतिशत और नॉन-अल्कोहलिक वाइन में 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. अधिकतर बार और रेस्टोरेंट्स में जीरो‑प्रूफ स्पिरिट्स या नॉन-अल्कोहलिक कॉकटेल आसानी से मिल रहे हैं.
क्यों नॉन-अल्कोहलिक बन रहे हैं युवा
स्टैटिस्टा के आंकड़ों के अनुसार जेन-जी पिछली पीढ़ियों की तुलना में शराब पर बहुत कम खर्च कर रही है. वर्ष 2022 में बूमर, जेन-एक्स और मिलेनियल ने शराब पर 23 से 25 बिलियन डॉलर तक खर्च किया. वहीं जेन-जी का खर्च केवल 3 बिलियन डॉलर था.
दक्षिण-पूर्व एशिया के लोग भारी संख्या में छोड़ रहे धूम्रपान
नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक की लोकप्रियता के कई कारण है. जेन-जी और मिलेनियल सबसे स्वास्थ्य‑सचेत पीढ़ियां समझी जाती हैं. ये लोग किसी भी प्रोडक्ट को खरीदने से पहले उसमें इस्तेमाल सामग्री को ध्यान से पढ़ते हैं. ताकि उन्हें पता हो कि उनके शरीर में क्या जा रहा है. खासकर कोविड महामारी के बाद से वे ज्यादा सतर्क हो गए हैं. ये वो पीढ़ी भी है जिसने अपने परिवार या आसपास किसी ना किसी पर शराब के बुरे असर होते देखे हैं. ये लोग इस बात के प्रति भी सजग हैं कि 40 साल की उम्र तक उनका स्वास्थ्य और शरीर कैसा दिखना चाहिए. इसलिए वे अपने खान-पान पर और अधिक ध्यान दे रहे हैं. साथ ही नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक उन लोगों को भी समूह का हिस्सा बनने का मौका देती हैं जो शराब नहीं पीते, लेकिन फिर भी पार्टी में शामिल होना चाहते हैं.
अल्कोहलिक ड्रिंक जैसे बीयर, वाइन, व्हिस्की और रम में एथेनॉल होता है. जबकि मॉकटेल, नॉन-अल्कोहलिक बीयर, और जीरो प्रूफ स्पिरिट्स को फलों का रस, हर्ब्स, मसाले और फ्लेवरिंग एजेंट्स मिलाकर बनाया जाता है.
वंश पाहुजा घरेलू नॉन-अल्कोहलिक स्पिरिट्स ब्रांड ‘सोबर' के फाउंडर है. वह डीडब्ल्यू को बताते हैं कि नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक उनके लिए है जो शराब जैसा स्वाद, अनुभव, खुशबू और लुक चाहते हैं लेकिन शराब के नकारात्मक असर जैसे सिरदर्द या नशे का अनुभव नहीं करना चाहते. नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक में शुगर और कैलोरी की मात्रा भी बहुत कम या ना के बराबर होती है. हां, इनकी कीमत थोड़ी ज्यादा है क्योंकि अभी इनका बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं हो रहा. अभी इनकी डिमांड बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में अधिक है.
क्या है युवाओं में लोकप्रिय जीब्रा स्ट्राइपिंग
नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक अभी इस स्थिति में नहीं हैं कि वो शराब की जगह ले लें. हालांकि वो एक विकल्प जरूर बन चुके हैं. युवा 'जीब्रा स्ट्राइपिंग' अपना रहे हैं. इसका मतलब है कोई व्यक्ति पार्टी या सोशल मौके पर शराब और नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक को बारी-बारी से पीता है. ताकि शराब कम और संतुलित तरीके से पी जाए.
रुचि नागरेचा नॉन-अल्कोहलिक कॉकटेल ब्रांड ‘सोब्रेटी सिप्स' की फाउंडर हैं. उनका मानना है कि नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स जश्न मनाने का एक तरीका हैं. शराब उद्योग सैकड़ों सालों से मौजूद है. यह रातों-रात खत्म नहीं होगा. उनके ब्रांड की ड्रिंक्स में बोटैनिकल्स, हाइड्रोसोल्स, टिंचर और कोल्ड एक्सट्रैक्शन का इस्तेमाल होता है. जो अल्कोहलिक कॉकटेल जैसी जटिलता और संतुष्टि देते हैं.
रूचि डीडब्ल्यू से कहती हैं, "मैं अक्सर देखती हूं कि कोई शाम की शुरुआत वाइन के एक ग्लास से करता है और फिर जीरो-प्रूफ या नॉन-अल्कोहलिक कॉकटेल की ओर शिफ्ट हो जाता है. यह एक बेहतरीन संतुलन है. जीब्रा स्ट्राइपिंग एक मानसिकता है. लोग अभी भी पार्टी और माहौल का हिस्सा बनना चाहते हैं. लेकिन साथ ही वो हाइड्रेटेड रहना और हैंगओवर से भी बचना चाहते हैं."
क्या शराब की जगह ले सकेंगे नॉन- अल्कोहलिक ड्रिंक?
भारत में लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक सचेत हो रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं कि वे सीधे नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स की ओर बढ़ रहे हैं. भारत में शराब के क्षेत्र में अब कम अल्कोहल वाले और रेडी-टू-ड्रिंक (आरटीडी) उत्पाद लोकप्रिय हो रहे हैं. लेकिन ये बदलाव अभी अल्कोहलिक ड्रिंक की कैटेगरी पर ज्यादा असर नहीं डाल रहा.
आरडेंट अलकोबेव के निदेशक देबाशीष श्याम ने इसे लेकर डीडब्ल्यू को बताया कि लोग शराब कम पीने लगे हैं. वे बेहतर क्वालिटी के उत्पाद चुन रहे हैं. घर पर पार्टी, ट्रैवल और आउटडोर इवेंट्स बढ़ने से प्रीमियम शराब की मांग भी बढ़ रही है.
शराब विशेषज्ञ और सलाहकार रोजिता तिवारी भी कुछ ऐसा ही कहती हैं. उनके मुताबिक अब भारत में पीने की एक नई सोच शुरू हो रही है. लोग ज्यादा समझदारी और संतुलन के साथ, स्वाद और आनंद पर ध्यान देते हुए पीना पसंद कर रहे हैं. लोग कम पीना चाहते हैं लेकिन गुणवत्ता वाली चीजें पीना चाहते हैं. नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स उनके लिए हैं जो शराब नहीं पीते. ताकि वे बिना शराब के भी दोस्तों के साथ उसी स्वाद और माहौल का आनंद ले सकें. ये नशे का इलाज नहीं हैं सिर्फ किसी समूह में 'एडजस्ट' होने का एक तरीका हैं.
वीरेंदर दिल्ली के वसंत विहार में स्थित 'रेड' बार में बतौर बार टेंडर काम करते हैं. ये बार अपने अल्कोहलिक कॉकटेल के लिए जाना जाता है. वीरेंद्र डीडब्ल्यू को बताते हैं कि लोग स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं लेकिन वो ज्यादातर मामलों में खुद से नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स नहीं मांग रहे, सिर्फ आर्डर देते समय वे शुगर की मात्रा कम रखने को कहते हैं. उनके बार में सोबर ब्रांड के ड्रिंक मौजूद हैं. इनको ड्रिंक्स मेन्यू में 'मॉकटेल' की कैटेगरी में रखा जाता है. यानी बार और रेस्टोरेंट्स में नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक को जूस, और कोक जैसे सॉफ्ट ड्रिंक की कैटेगरी में जगह मिल गई है.
शराब पीने को लेकर किस देश में क्या चेतावनी दी जाती है
अमेरिका में शराब की बोतलों पर कैंसर की चेतावनी देने की जरूरत पर बहस चल रही है. अलग अलग देशों में शराब पीने को लेकर अलग अलग नियम हैं.
ब्रिटेन
ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा कहती है कि एक हफ्ते में 14 यूनिट से ज्यादा शराब नहीं पीनी चाहिए. उसका यह भी कहना है कि "पीने का पूरी तरह से सुरक्षित कोई भी स्तर नहीं है, लेकिन इन दिशा निर्देशों के पालन से आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने का जोखिम कम हो जाता है." इन दिशा निर्देशों के मुताबिक, कम शराब पीने के लंबी अवधि के फायदों में कैंसर के जोखिम का कम होना शामिल है.
फ्रांस
फ्रांस की स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि वयस्कों को एक दिन में अधिकतम दो सामान्य ड्रिंक जितनी शराब पीनी चाहिए और हर रोज नहीं पीना चाहिए. एक हफ्ते में 10 से ज्यादा सामान्य ड्रिंक नहीं लेने चाहिए और हर हफ्ते शराब ना पीने वाले वाले दिन भी होने चाहिए. एजेंसी के मुताबिक शराब कैंसर का जाना माना कारण है और कुछ तरह के कैंसर होने का खतरा रोज एक ड्रिंक लेने से भी बढ़ जाता है.
जर्मनी
जर्मन सेंटर फॉर एडिक्शन इशूज कहता है कि एक दिन में महिलाओं को 12 ग्राम से ज्यादा और पुरुषों को 24 ग्राम से ज्यादा शराब नहीं पीनी चाहिए. हर हफ्ते कम से कम दो दिन शराब से परहेज भी करना चाहिए. 2022 में सरकार के पैसे से हुए एक अध्ययन में दावा किया गया था कि शराब पीने से कई तरह के कैंसर हो सकते हैं.
आयरलैंड
अगले साल लागू होने वाले नए नियमों के तहत आयरलैंड में बिकने वाले सभी शराब उत्पादों पर स्वास्थ्य से जुड़ी लेबल लगाना अनिवार्य कर दिया गया है. इनमें कैंसर, लिवर की बीमारी आदि से संबंध और गर्भावस्था में पीने के जोखिम को लेकर चेतावनियां शामिल हैं. इस कदम का स्वागत करते हुए उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि आयरलैंड शराब उत्पादों पर स्वास्थ्य से जुड़े लेबल देने वाला पहला देश बन जाएगा.
लिथुआनिया
लिथुआनिया के कड़े नियम शराब पीने को लेकर किसी भी तरह के सार्वजनिक प्रोत्साहन को प्रतिबंधित करते हैं. यहां तक कि शराब के विज्ञापन भी नहीं निकाले जा सकते हैं. सरकार के नारकोटिक्स, टोबैको एंड अल्कोहल कंट्रोल बोर्ड की वेबसाइट पर एक बयान में शराब और कैंसर के बीच संबंध के बारे में बताया गया है. हालांकि इसमें कैंसर को लेकर स्पष्ट चेतावनी नहीं दी गई है.
नॉर्वे
नॉर्वे के स्वास्थ्य निदेशालय का कहना है कि शराब पीने का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है और इसे "जितना हो सके उतना कम" पीना चाहिए. 2024 में जारी किए गए दिशानिर्देशों में निदेशालय ने कहा, "शराब पीना कैंसर के विकसित होने से जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से स्तनों का कैंसर और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट का कैंसर."
स्पेन
स्पेन के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि शराब पीने से हमेशा ही जोखिम रहता है और "शराब को जितना कम पिया जाए उतना अच्छा." महिलाएं एक दिन में वाइन का आधा गिलास या बियर का छोटा गिलास पीएं तो जोखिम कम रहता है. पुरुषों के लिए यह सीमा एक दिन में वाइन का एक गिलास या बियर के दो छोटे गिलास है. मंत्रालय के मुताबिक जोखिम भरे सेवन से भविष्य में कैंसर या मानसिक रोग जैसी समस्याओं के होने की संभावना बढ़ती है.
अमेरिका
अमेरिका में शराब आधारित ड्रिंक्स पर 1988 से एक स्वास्थ्य चेतावनी रहती है, लेकिन इसमें गर्भवती महिलाओं को सलाह दी गई होती है कि वो इन्हें ना पिएं. यह भी लिखा होता है कि शराब पीने से इंसान की गाड़ी चलाने और मशीनें चलाने की क्षमता पर असर पड़ता है. सीके/एनआर (रॉयटर्स)
दिल्ली वालों को रोजाना एक घंटा भी आराम का नहीं मिलता
एक नई रिपोर्ट ने दिल्ली समेत कई भारतीय शहरों पर प्रदूषण के असर को एक नए नजरिए से पेश किया है. रिपोर्ट दिखाती है कि प्रदूषण का इन शहरों में रहने वालों के जीवन की गुणवत्ता पर कितना बुरा असर पड़ रहा है.
क्या हैं आरामदायक घंटे
आरामदायक घंटे यानी वो समय जब किसी भी शहर का तापमान 18 से 31 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. इसके बारे में अहमदाबाद के सीईपीटी विश्वविद्यालय और भारतीय जलवायु टेक स्टार्टअप 'रेस्पीरेर लिविंग साइंसेज' ने मिल कर एक नया अध्ययन किया है.
दिल्ली में नहीं आराम
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली को साल के 8,760 घंटों में से सिर्फ 2,210 ऐसे घंटे मिलते हैं जो तापमान के लिहाज से आरामदायक होते हैं. लेकिन इनमें से 1,951 घंटे (88 प्रतिशत) ऐसे होते हैं जिनमें वायु की गुणवत्ता खराब होती है. दिल्ली वालों को साल में सिर्फ 259 (तीन प्रतिशत) घंटे ऐसे मिलते हैं जिनमें तापमान आरामदायक होता है और वायु की गुणवत्ता भी अच्छी होती है. यानी एक दिन में औसतन सिर्फ 42 मिनट.
चेन्नई का भी यही हाल
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली अकेला ऐसा भारतीय शहर नहीं है जो इस समस्या से जूझ रहा है. राष्ट्रीय राजधानी की ही तरह चेन्नई के आरामदायक घंटों में से भी करीब 88 प्रतिशत घंटों पर वायु प्रदूषण का असर रहता है.
बेंगलुरु का हाल बेहतर
बेंगलुरु का हाल दिल्ली से काफी बेहतर बताया गया है. कर्नाटक की राजधानी में साल में 8,100 से भी ज्यादा घंटे ऐसे मिलते हैं जिनमें वायु की गुणवत्ता ठीक होती है और तापमान के लिहाज से आरामदायक घंटों पर खराब एक्यूआई की न्यूनतम छाया पड़ती है. इसी तरह अहमदाबाद को भी दिल्ली से ज्यादा इस्तेमाल करने लायक घर से बाहर के हालात मिलते हैं.
मेट्रो शहरों पर दोहरा असर
रिपोर्ट दिखाती है कि विशेष रूप से भारत के मेट्रो शहरों में जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का दोहरा असर बढ़ता जा रहा है. इससे पहले भी कई अध्ययन यह दिखा चुके हैं कि इन दोनों कारणों की वजह से इन शहरों में जीवन की गुणवत्ता और लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है.
पारंपरिक तरीकों से नहीं बन रही बात
इन हालात को देखते हुए इस रिपोर्ट में घर के अंदर के हालात को भी और बेहतर बनाने के उपाय सुझाए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पूरी तरह से बंद और वातानुकूलित स्थान हों या बेरोक प्राकृतिक वेंटिलेशन वाले स्थान, दोनों ही तरीके अब भारतीय शहरों की मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. प्रस्तावित किया गया है कि पर्स्नलाइज्ड एनवायरनमेंटल कंट्रोल सिस्टम्स (पीईसीएस) का इस्तेमाल करना चाहिए.
क्या है पीईसीएस
पीईसीएस यानी तापमान का नियंत्रण करने के स्थानीय साधन, जैसे निजी पंखे, रेडिएंट पैनल और स्थानीय वेंटिलेशन सिस्टम आदि. इनसे ऊर्जा की भी बचत होती है. रिपोर्ट में दिखाया गया है कि अगर इमारतें बनाने में पीईसीएस का इस्तेमाल किया जाए तो दिल्ली में 68 प्रतिशत, अहमदाबाद में 70 प्रतिशत और चेन्नई में 72 प्रतिशत ऊर्जा बचत की जा सकती है.
बिहार के गांवों से पलायन कोई नई बात नहीं है। लेकिन ये कहानी सिर्फ रोजगार से ही नहीं, बल्कि उन महिलाओं से भी जुड़ी है जो पार्टनर के बिना रहने को मजबूर हैं।
डॉयचे वैले पर शिवांगी सक्सेना-याकूत अली की रिपोर्ट -
जहानाबाद के नसरत गांव में हर जगह केवल महिलाएं दिखाई देंगी। शादी के तुरंत बाद पुरुष काम के लिए घर छोड़ देते हैं। जूली देवी की शादी वर्ष 2017 में अनिल कुमार से हुई। अगले ही महीने अनिल बेंगलुरु चले गए। जहां वह इलेक्ट्रीशियन का काम करते हैं।
बिहार में रोजगार की तलाश में आप्रवासनआम बात है। दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और दक्षिण भारत इलाकों में काम करने वाले मजदूरों में बिहार के पुरुषों की संख्या काफी ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 74।54 लाख लोग बिहार से बाहर काम करने जाते हैं।
जहां प्रवास पुरुषों के लिए आर्थिक अवसर लाता है। वहीं महिलाओं पर भी इसका काफी ज्यादा असर पड़ता है। नसरत जैसे बिहार के ऐसे सैकड़ों गांव हैं जहां पति अपनी पत्नियों को गांव में ही छोड़ गए हैं। वे केवल छठ जैसे पर्व या किसी विशेष अवसर पर ही घर लौटते हैं।
मजदूरों के तौर पर होता है शोषण
नसरत पटना से केवल 50 किलोमीटर दूर है। गांव में महिलाएं अपने पतियों के भेजे पैसों से घर चलाती हैं। यहां एक किराना दुकान है। इस दुकान में लगभग हर महिला का उधार खाता चलता है। क्योंकि घर के खर्च भेजे गए पैसों से पूरे नहीं होते।
पति के बिना अकेली महिलाओं पर काम का बोझ भी बढ़ जाता है। जूली के पति महीने का पंद्रह हजार रूपए कमाते हैं। हर महीने वह दस हजार रूपए घर भेजते हैं। जूली बताती हैं कि बच्चों की पढ़ाई, सास-ससुर की देखभाल और पूरा घर संभालने की जिम्मेदारी उन्हीं की है।
जूली ने डीडब्लू से बातचीत में कहा, ‘दस हजार रुपये में पांच लोगों का खर्च नहीं चलता। बच्चे की पढ़ाई और सास की दवाई का खर्च बहुत होता है। घर चलाने के लिए हर महीने कम से कम बीस हजार रूपए चाहिए। देवर और ननद पढ़े-लिखे हैं, पर नौकरी नहीं मिल रही। इसलिए मुझे ही घर से बाहर जाकर कुछ पैसे कमाने पड़ते हैं।’
जूली कहती हैं कि जब कोई महिला अकेली होती है, तो खेत के जमींदार उसका फायदा उठाते हैं। महिलाएं अपने हक या सही मजदूरी की मांग नहीं कर पातीं। उन्हें डर रहता है कि अगर कुछ बोलेंगी तो काम छिन जाएगा। गांव में खेती के काम के अलावा महिलाओं के पास कमाई करने का और कोई विकल्प भी नहीं है।
जूली कहती हैं, ‘मैं और मेरी सास दोनों खेत में दिनभर काम करते हैं। सुबह 9 बजे निकलते हैं। शाम 6 बजे तक खेत में ही रहते हैं। इतने लंबे काम के बदले हमें सिर्फ सौ रुपये मिलते हैं। जबकि मर्दों को तीन सौ रुपये दिए जाते हैं। सब मालिक ऐसा ही करते हैं। अगर हम कुछ कहें, तो फिर हमें काम ही नहीं मिलेगा।’
पति से दूर रहने वाली जितनी भी महिलाओं से हमने बाद की, उन्होंने इस मसले पर दुख जाहिर किया। जूली के पति साल में सिर्फ एक बार, जनवरी में घर आते हैं और होली के बाद फिर बेंगलुरु लौट जाते हैं।
उदास चेहरे के साथ जूली कहती हैं, ‘जब पति साथ होते हैं, काम बांटने में आसानी होती है। अपने सुख-दुख साझा कर सकते हैं। बच्चों की परवरिश बेहतर होती है। उनके बिना मेरा ख्याल रखने वाला कोई नहीं है। अगर मैं बीमार हो जाऊं तो डॉक्टर के पास खुद ही जाती हूं, दवा लेती हूं और ठीक होते ही फिर काम पर लग जाती हूं। अब तो बस फोन पर ही उनसे बात होती है। छठ जैसे त्योहारों पर उनके बिना बहुत खालीपन महसूस होता है।’
गांव में महिलाओं को यह डर भी रहता है कि अगर उनके पति वापस ना लौटे तो? कई राज्यों में बिहार के आप्रवासियों पर होने वाले हमले और मारपीट की खबरें इन्हें परेशान करती हैं। जूली कहती हैं कि नीतीश सरकार ने कुछ नहीं किया। वो कहती हैं, ‘अगर गांव में कंपनियां होतीं, तो यह सवाल ही नहीं उठता कि पति के बिना हम कैसे रहें।’
कर्ज और उधार के बोझ तले महिलाएं
गांव में कई महिलाओं ने अपनी बेटी की शादी या पशु खरीदने के लिए उधार लिया है। अब उसे चुकाने की जिम्मेदारी उनकी अकेले की है। सुनैना देवी के पति चेन्नई में मजदूरी करते हैं। महीने का पांच से दस हजार घर भेजते हैं। सुनैना कहती हैं, ‘पिछले दो महीने से वो भी नहीं आ रहा।’
नीतीश सरकार ने चुनाव से कुछ ही दिन पहले बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना से जुड़ी जीविका दीदी योजना शुरू की है, जिसके तहत बिहार में महिलाओं के बैंक अकाउंट में दस हजार रूपए ट्रांसफर किए जाते हैं। सुनैना को भी इसका लाभ मिला है। पर इन गांव में कई महिलाएं ऐसी हैं जो शादी, बीमारी, इलाज या खेती-बाड़ी के लिए माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लेती हैं। सुनैना ने भी कर्ज लिया हुआ है। गांव में औसतन हर महिला पर बीस हजार रूपए तक का कर्ज बकाया है। ये कंपनियां आम तौर पर सालाना 20 से 30 प्रतिशत की दर से ब्याज वसूलती हैं।
सुनैना बताती हैं, ‘पिछले साल बेटी की शादी में छह लाख रूपए लोन लिया था। वो अभी चुकाना बाकी है। जीविका के पैसों से गाय खरीदी है। इसकी कीमत 12 हजार रूपए पड़ी। इसके लिए दो हजार रूपए उधार लिए। महिलाएं जब उधार लेती हैं, तो ब्याज ज्यादा लिया जाता है। हमारे परिवार पर कर्ज बढ़ गया है और अभी तीन बच्चों की शादी करनी है। मैं खेतों में मजदूरी कर कुछ पैसा कमा लेती हूं। लेकिन इतना काफी नहीं है। मेरे पति अब विदेश जाकर काम ढूंढने की तैयारी कर रहे ’
नई दिल्ली, 12 नवंबर । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय भूटान दौरे पर हैं। अपनी यात्रा के दूसरे दिन, बुधवार को उन्होंने कालचक्र अभिषेक का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने खुद को सौभाग्यशाली बताया। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उद्घाटन कार्यक्रम की तस्वीर पोस्ट की। तस्वीर में पीएम मोदी भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक, चतुर्थ नरेश के साथ नजर आए। उन्होंने लिखा, "भूटान के राजा महामहिम जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक और महामहिम चतुर्थ नरेश के साथ कालचक्र 'समय का चक्र' अभिषेक का उद्घाटन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसकी अध्यक्षता परम पावन जे खेंपो ने की, जिसने इसे और भी विशेष बना दिया।"
उन्होंने लिखा, "यह दुनिया भर के बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जिसका सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। कालचक्र अभिषेक चल रहे वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव का एक हिस्सा है, जिसने बौद्ध धर्म के भक्तों और विद्वानों को भूटान में एक साथ लाया है।" भूटान के प्रधानमंत्री छेरिंग तोबगे ने 'एक्स' पर लिखा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पवित्र कालचक्र अभिषेक का उद्घाटन और आशीर्वाद दिया, जो आज चल रहे वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव के एक भाग के रूप में शुरू हुआ।" इससे पहले पीएम मोदी ने थिम्पू में भूटान के चौथे नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगचुक से मुलाकात की थी। उन्होंने मुलाकात की तस्वीर 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए बताया, "महामहिम चतुर्थ नरेश के साथ एक अच्छी बैठक हुई।
भारत-भूटान संबंधों को और मजबूत करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में उनके व्यापक प्रयासों की सराहना की। ऊर्जा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और कनेक्टिविटी में सहयोग पर चर्चा हुई। गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी परियोजना की प्रगति की सराहना की, जो हमारी एक्ट ईस्ट नीति के अनुरूप है।" 11 नवंबर, 1955 को जन्मे जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने भूटान के चौथे नरेश के रूप में कार्य किया। उनका शासनकाल 1972 से 2006 तक चला और उन्हें भूटान के सबसे दूरदर्शी और प्रिय राजाओं में से एक माना जाता है। उनके नेतृत्व में, भूटान का आधुनिकीकरण हुआ, राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई और एक अद्वितीय सुख-आधारित दर्शन अपनाया गया जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 नवंबर । संयुक्तता और मिशन तत्परता का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए थलसेना और भारतीय वायुसेना ने एक समन्वित एयरबोर्न अभ्यास को अंजाम दिया। दोनों सेनाओं ने यह प्रदर्शन अभ्यास ‘मरु ज्वाला’ के तहत किया है।
इस प्रभावशाली अभ्यास में थलसेना व वायुसेना ने सटीकता, तालमेल और परिचालन दक्षता का अद्वितीय प्रदर्शन किया। वहीं भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान सीमा के पास राजस्थान के थार रेगिस्तान में सैन्य अभ्यास 'महागुजराज' को अंजाम दिया है। सेना के मुताबिक, इस अभ्यास ने यह सिद्ध किया कि भारतीय सशस्त्र बल जटिल एयरबोर्न अभियानों की योजनाओं, समन्वय और निष्पादन में एकीकृत रूप से कार्य करने में सक्षम हैं। सेना ने बुधवार को इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि यह अभ्यास भारतीय सशस्त्र बलों की संयुक्त युद्धक क्षमता का शानदार प्रतीक रहा। यहां सशस्त्र बलों के बीच रणनीतिक तालमेल और तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली। यह रणनीतिक तालमेल भविष्य के बहु-आयामी युद्धक्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाने में सक्षम है। यह अभ्यास दक्षिणी कमान की सुदर्शन चक्र कोर के तहत एकीकृत त्रि-सेवा अभ्यास ‘त्रिशूल’ का हिस्सा था।
लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ, जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, दक्षिणी कमान ने प्रत्यक्ष रूप से इस अभ्यास को देखा। उन्होंने एयरबोर्न बलों, सुदर्शन चक्र कोर और भारतीय वायुसेना के अधिकारियों व जवानों की उच्च स्तर की संचालनिक तत्परता और पेशेवर क्षमता की सराहना की। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान सीमा के पास राजस्थान के थार रेगिस्तान में सैन्य अभ्यास ‘महागुजराज’ पूरा किया है। इसी दौरान थल सेना, वायुसेना और नौसेना ने संयुक्त अभ्यास भी किया। इसका उद्देश्य तीनों सेनाओं की संयुक्त युद्धक क्षमताओं और समन्वय का प्रदर्शन करना था। यह संयुक्त त्रि-सेवा युद्धाभ्यास ‘त्रिशूल’ का हिस्सा था। वहीं वायुसेना के अभियान ‘महागुजराज’ नाम से संचालित किए गए।
भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी क्षेत्र में अभ्यास महागुजराज-25 का आयोजन किया। यह अभ्यास 28 अक्टूबर से 11 नवंबर तक चला। संचालनिक उत्कृष्टता और संयुक्त तत्परता की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारतीय वायुसेना का यह व्यापक अभ्यास वायुसेना की क्षमता को प्रमाणित करता है। वायुसेना अपनी इस क्षमता के माध्यम से विभिन्न वायु अभियानों के संपूर्ण दायरे को कवर करती है। इसके अंतर्गत वायुसेना एयर कैंपेन से लेकर समुद्री और एयर-लैंड मिशनों तक प्रभावी ढंग से संचालन करने में सक्षम है। -(आईएएनएस)
कोच्चि, 8 नवंबर। केरल के कोच्चि के एडापल्ली में शनिवार को एक कार मेट्रो के मेट्रो के खंभे से टकराने के कारण उसमें सवार दो युवकों की मौत हो गई। पुलिस ने यह जानकारी दी।
मृतकों की पहचान अलप्पुझा जिले के रहने वाले मुनीर (21) और हारून शाजी (22) के रूप में हुई है।
कार चालक और एक अन्य यात्री को गंभीर रूप से घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
पुलिस के अनुसार, यह दुर्घटना तड़के साढ़े तीन बजे हुई जब ये युवक नेदुम्बस्सेरी हवाई अड्डे से अपने घर लौट रहे थे।
पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, "एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि कार की गति बहुत तेज थी। दुर्घटना के सही कारण का पता लगाना बाकी है।"
पुलिस ने बताया कि मेट्रो के खंभे से टकराने के बाद वाहन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। (भाषा)
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने शुक्रवार यानी 7 नवंबर को आवारा कुत्तों से जुड़े मामलों में नया आदेश जारी किया.
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों से कहा है कि सरकारी और निजी अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों और रेलवे स्टेशन जैसी सार्वजनिक जगहों से आवारा कुत्तों को हटाया जाए.
इसके बाद उनकी नसबंदी और टीकाकरण कराकर उन्हें शेल्टर होम में रखा जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने हाईवे और एक्सप्रेसवे से आवारा जानवरों और मवेशियों को हटाने का भी आदेश दिया.
कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि इन निर्देशों का सख़्ती से पालन होना चाहिए. पिछले तीन महीनों में सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों से जुड़े मामलों में कई बार हस्तक्षेप किया है.
इन आदेशों का विरोध भी हुआ, जिसके बाद कोर्ट को कुछ निर्देशों में संशोधन करना पड़ा. आइए समझते हैं कि इन सभी आदेशों के बाद अब सरकारों को क्या-क्या करना होगा.
मामले की शुरुआत कैसे हुई?
आवारा कुत्तों से जुड़े कई मामले सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाई कोर्टों में लंबित थे. इस बीच, 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया.
इस रिपोर्ट में दिल्ली की एक छह साल की बच्ची की मौत का ज़िक्र था, जिसे आवारा कुत्ते ने काट लिया था.
कोर्ट ने इसे "चिंताजनक और परेशान करने वाला" मामला बताया और कहा कि दिल्ली में कुत्तों के काटने की हज़ारों घटनाएं रोज़ दर्ज होती हैं.
इसके बाद, 11 अगस्त की सुनवाई में कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर (नोएडा और गाज़ियाबाद सहित) से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि वहाँ उनकी नसबंदी और टीकाकरण किए जाएंगे और उन्हें दोबारा सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा.
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति या संगठन ने अगर इस आदेश में बाधा डाली, तो उसके ख़िलाफ़ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी.
साथ ही अदालत ने यह निर्देश भी दिया कि शेल्टर में रखे गए कुत्तों की उचित देखभाल और निगरानी सुनिश्चित की जाए.
इस फ़ैसले का बहुत विरोध किया गया. इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए. कोर्ट के फैसले की एक बड़ी आलोचना यह थी कि शहर में कुत्तों के लिए पर्याप्त शेल्टर नहीं हैं.
इस विरोध के बाद मामला एक बड़ी तीन जजों की पीठ को सौंपा गया. इस पीठ ने देशभर में चल रहे आवारा कुत्तों से जुड़े सभी मामलों को अपने पास ट्रांसफर कर लिया.
22 अगस्त को इस पीठ ने पहले आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उसी इलाके में वापस छोड़ा जाएगा, जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था. केवल रेबीज़ से संक्रमित कुत्तों को ही शेल्टर में रखा जाएगा.
साथ ही, हर इलाके में कुत्तों को खाना देने के लिए निर्धारित स्थल तय करने को कहा गया. कोई व्यक्ति या संगठन कुत्ते को गोद लेना चाहे तो वह म्युनिसिपल अधिकारियों को आवेदन दे सकता है.
इसके साथ मामला सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहा. कोर्ट ने यह आदेश सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू कर दिया. और उनसे जवाब भी मांगा कि वे अपने यहाँ जानवरों से जुड़े ऐसे मुद्दों के लिए क्या कदम उठा रहे हैं.
7 नवंबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्कूल, अस्पताल, खेल परिसर, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर कुत्तों के काटने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं. और कहा कि यह प्रशासन की उदासीनता और सिस्टम की नाकामी को दर्शाती हैं. इससे लोगों की सुरक्षा, पर्यटन और भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बुरा असर पड़ रहा है.
कोर्ट ने कहा कि साल दर साल आवारा कुत्तों की लोगों को काटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं. सरकारी डेटा के मुताबिक 2023 में देश भर में 30 लाख के करीब ऐसी घटनाएँ हुई, और 2024 में क़रीब 37 लाख ऐसी घटनाएँ.
इससे निपटने के लिए कोर्ट ने ये दिशानिर्देश जारी किए:
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो हफ़्ते के अंदर ऐसे निजी और सरकारी अस्पताल, शैक्षणिक संस्था इत्यादि की सूची बनानी होगी. इन जगहों पर पर्याप्त बाउंड्री वॉल, फेंसिंग और गेट लगाने होंगे ताकि आवारा कुत्ते घुस ना सके. ऐसा जल्द से जल्द करना होगा, और हो सके तो आठ हफ्तों के अंदर.
इन सभी अस्पतालों, खेल परिसरों, शैक्षणिक संस्थाओं को एक अधिकारी नामित करना होगा जो जगह की देख-रेख करे.
स्थानीय नगरपालिका या पंचायत तीन महीने में एक बार इन जगहों का निरीक्षण करें.
नगरपालिका अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इन परिसरों में मौजूद आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में रखा जाए, उनकी नसबंदी और टीकाकरण हो, और उन्हें दोबारा उन्हीं इलाकों में न छोड़ा जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों से आठ हफ़्तों के भीतर यह रिपोर्ट मांगी है कि वे इन आदेशों को कैसे लागू कर रहे हैं.
मवेशी और आवारा पशुओं के लिए भी आदेश
कोर्ट ने मवेशियों और आवारा पशुओं के मुद्दे पर भी आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि मवेशियों और आवारा पशुओं के कारण रोड और हाईवे पर दुर्घटना होते रहती है.
इसलिए, म्युनिसिपल, राज्य और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के अधिकारियों को हाईवे और एक्सप्रेसवे से मवेशियों और आवारा पशुओं को हटाना होगा.
इन्हें पकड़कर गोशालाओं या शेल्टर होम में रखा जाए, जहाँ उनकी उचित देखभाल हो सके.
अदालत ने अधिकारियों को आदेश दिया कि सड़कों पर 24 घंटे निगरानी रखी जाए ताकि कोई पशु दोबारा सड़कों पर न आए.
कोर्ट ने यह भी कहा कि हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव अपने स्तर पर ज़िम्मेदारी तय करें और आदेशों के पालन में किसी तरह की लापरवाही पाए जाने पर संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आठ हफ़्तों के भीतर रिपोर्ट मांगी है कि वे इन दिशा-निर्देशों का पालन कैसे कर रहे हैं.
आगे क्या?
कोर्ट के इन फैसलों के बाद अब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सार्वजनिक स्थलों, जैसे अस्पताल, खेल परिसर, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और शैक्षणिक संस्थानों से आवारा कुत्तों को उठा कर शेल्टर घरों में रखना होगा. साथ ही, हाईवे और एक्सप्रेसवे पर मवेशियों और आवारा पशुओं को भी हटाना होगा.
ये फ़ैसला कितना लागू होने पाता है, ये देखने वाली बात होगी. अब भी सबसे बड़ा सवाल है कि इन आवारा जानवरों और कुत्तों को रखा कहा जाएगा.
हालांकि, कोर्ट ने जानवरों को हटाने के लिए कोई समय सीमा नहीं दी है, बस ये कहा है कि आठ हफ्तों में रिपोर्ट दायर करनी होगी कि राज्यों ने क्या कदम उठाए हैं.
पशु कल्याण से जुड़े कई संस्थानों ने कोर्ट के शुक्रवार को दिए गए फैसले की आलोचना की.
पशु अधिकार संगठन पेटा इंडिया ने अपने एक प्रेस रिलीज़ में कहा कि कोर्ट का फैसला "ज़मीनी वास्तविकता से जुड़ा नहीं है".
पेटा ने कहा कि देश भर में पाँच करोड़ से ज़्यादा आवारा कुत्ते हैं और 50 लाख से ज़्यादा मवेशी हैं. उसका कहना था कि इन्हें रखने के लिए पर्याप्त शेल्टर होम अभी नहीं हैं.
बीजेपी की पूर्व सांसद मेनका गांधी ने समाचार एजेंसी एनआई को कहा कि कोर्ट का नया फैसला पिछले फैसले वाली दिक्कतों का सामना करेगा, जिसे कोर्ट को बाद में बदलना पड़ा था. उन्होंने कहा कि वे इस फैसले को आगे कोर्ट में चुनौती देंगी.
उन्होंने कहा कि अगर कुत्तों को रेलवे स्टेशन, स्कूलों और कॉलेजों से हटाया जा सकता था, तो ये हो जाता.
वे बोलीं, "अगर इन्हें हटाया गया, तो ये जानवर जाएँगे कहाँ?" उनके मुताबिक अगर कुत्तों को उनकी जगह से हटा कर रोड पर लाया गया तो उससे आम नागरिकों को खतरा और बढ़ जाएगा.
कुछ बातें स्पष्ट नहीं
सुप्रीम कोर्ट के सामने 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एक एफिडेविट दायर की है, जिसमें उन्होंने बताया है कि उनके यहाँ कितने शेल्टर होम हैं और उन्होंने कितने आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण की है.
दिल्ली में 20 जानवरों के लिए 'एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर' हैं. ये 'एनिमल बर्थ कंट्रोल' नियम के तहत बनाए जाते हैं. पिछले छह महीनों में हर सेंटर पर रोज़ाना 15 आवारा कुत्तों की नसबंदी और उनका टीकाकरण हुआ है.
महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा ऐसे एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर है. पूरे राज्य में 236 ऐसे सेंटर हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश के 17 शहरों में ऐसे सेंटर हैं और बिहार में एक भी ऐसा सेंटर नहीं है, लेकिन कुत्तों के लिए 16 जगहों पर व्यवस्था है.
पशु अधिकार कार्यकर्ता गौरी मौलेखी, जो इस मामले में भी शामिल थी, उन्होंने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, "(इस फ़ैसले से) जानवरों से प्यार करने वालों और अधिकारियों जिन्हें जानवरों को हटाने पर मजबूर किया गया है, उनके बीच झगड़ा बढ़ेगा."
कई स्कूलों और कॉलेजों में भी आवारा कुत्तों को पाला जाता है. इसी साल जून में विश्वविदालय अनुदान आयोग ने कहा था कि उच्च शिक्षा संस्थानों में जानवरों का देखभाल करने के लिए सोसाइटी बनाई जाए. इनमें संस्थानों में जानवरों को खाना देने लिए जगह बनाई जाए. तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसे संस्थानों में कुत्तों को हटाया जाएगा या उन्हें रहने दिए जाएगा ये अभी स्पष्ट नहीं है.
ये भी गौर करने वाली बात है, कि कोर्ट ने जानवररों को केवल हटाने को नहीं कहा, लेकिन यह भी कहा कि रेलवे स्टेशन, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज इत्यादि में दीवार या फेंसिंग होनी चाहिए. जानवरों को हटाने के साथ ये भी एक बड़ा काम होगा, जिसे राज्यों को आठ हफ्तों के अंदर करना होगा.
इस मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को है, तब ये बात और साफ़ होगी कि इन आदेशों का कितना पालन हो पाया है.
नई दिल्ली, 7 नवंबर । अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जानकारी दी है कि इजरायल के साथ मुस्लिम देश कजाकिस्तान भी अब्राह्म समझौते में शामिल होने जा रहा है। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अब्राहम समझौते में शामिल होने वाला कजाकिस्तान पहला देश है। आइए जानते हैं कि अब्राहम समझौता क्या है और इसकी कब शुरुआत हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर इसका ऐलान करते हुए लिखा, "मैंने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कसीम-जोमार्ट तोकायेव के बीच एक शानदार बातचीत की। कजाकिस्तान मेरे दूसरे कार्यकाल का पहला देश है जो अब्राहम समझौते में शामिल हुआ है।" अमेरिकी राष्ट्रपति ने आगे कहा कि यह दुनियाभर में सेतु बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
आज, मेरे अब्राहम समझौते के माध्यम से और भी कई देश शांति और समृद्धि को अपनाने के लिए कतार में खड़े हैं। हम जल्द ही इसे आधिकारिक बनाने के लिए एक हस्ताक्षर समारोह की घोषणा करेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने जानकारी दी है कि वह कई अन्य देशों से इस शक्ति समूह में शामिल होने के लिए बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्थिरता और विकास के लिए देशों को एकजुट करने में अभी बहुत कुछ बाकी है, वास्तविक प्रगति, वास्तविक परिणाम। अब्राहम समझौते की शुरुआत ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में की थी।
2020 में अब्राहम समझौते की शुरुआत हुई थी, जिसके तहत इजरायल और अरब देशों के बीच आधिकारिक तौर पर संबंध की शुरुआत हुई थी। यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पैगंबर के नाम पर ही इस समझौते का नाम अब्राहम रखा गया। अमेरिकी राष्ट्रपति की पहल पर संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने इजरायल के साथ संबंध स्थापित किए।
फिलिस्तीन को लेकर इजरायल और अन्य मुस्लिम देशों के बीच काफी तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई थी। हालांकि, इस समझौते के तहत अरब और मुस्लिम देशों ने इजरायल के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए। यूएई के बाद मोरक्को, बहरीन और सूडान भी इसमें शामिल हुए। इस समझौते से जुड़े देशों ने इजरायल में अपनी एंबेसी खोलने पर सहमति जताई। इसके साथ ही व्यापार और पर्यटन की भी शुरुआत हुई, हालांकि गाजा में इजरायल के युद्ध का इस समझौते पर गहरा असर पड़ा। बीते कुछ सालों से इस समझौते में कोई प्रगति देखने को नहीं मिली, हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में जानकारी दी है कि इस समझौते में अब अन्य कई मुस्लिम देश भी शामिल होंगे। इसका ऐलान आधिकारिक तौर पर किया जाएगा। अगर कजाकिस्तान की बात करें तो इजरायल के साथ हमेशा से ही इसके अच्छे संबंध रहे हैं। कजाकिस्तान में 70 फीसदी आबादी मुस्लिमों की रही है, बावजूद इसके इजरायल के साथ इसके संबंध अच्छे रहे। वहीं अब्राहम में इसके शामिल होने से दोनों देशों के बीच की दोस्ती और मजबूत होगी। --(आईएएनएस)
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की एक बेंच ने शुक्रवार को अपने एक आदेश में सभी राज्य सरकारों से कहा है कि वो आवारा कुत्तों और मवेशियों को हाईवे, सड़कों और एक्सप्रेस-वे से हटा दें.
हालांकि कोर्ट का लिखित आदेश अभी जारी नहीं हुआ है.
कोर्ट ने अपने मौखिक आदेश में कहा, 'इसका सख़्ती से पालन करना जरूरी है वरना अधिकारियों को व्यक्तिगत तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा.'
कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह भी निर्देश दिया कि वे सरकारी और निजी संस्थानों की पहचान करें, जिनमें अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान, सार्वजनिक खेल परिसर, रेलवे स्टेशन शामिल हैं. उन्हें इस तरह घेर दें कि आवारा कुत्ते अंदर न आ सकें.
कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों को ऐसे परिसरों से मौजूदा आवारा कुत्तों को हटाकर उनकी नसबंदी करानी होगी. इसके बाद उन्हें डॉग शेल्टर में भेजना होगा.
कुछ वकीलों ने आदेश पर चिंता जताई और कोर्ट से इसे संशोधित करने के लिए सुनवाई की मांग की. हालांकि बेंच से इसे ख़ारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
शुक्रवार को जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले में फ़ैसला सुनाया.
लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर शैक्षिक संस्थान, अस्पताल, स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, बस स्टैंड, डिपो, रेलवे स्टेशनों इत्यादि की अच्छी तरह से बाड़बंदी ज़रूरी है, ताकि आवारा कुत्तों को घुसने से रोका जा सके.
बेंच ने कहा कि ये स्थानीय प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि वे आवारा कुत्तों को इस तरह की जगहों से हटाए और टीकाकरण, नसबंदी के बाद उन्हें एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स के अनुरूप ही कुत्तों के लिए बने शेल्टर में रखें.
लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन इलाकों से हटाए गए कुत्तों को उसी जगह वापस न छोड़ा जाए.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऐसा करने से इन जगहों से आवारा कुत्तों से मुक्त करवा पाने का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा.साथ ही शीर्ष अदालत ने स्थानीय निकायों को इन जगहों का समय-समय पर निरीक्षण करने को भी कहा, ताकि यहां कुत्ते अपना घर न बना सकें.
कोर्ट ने सड़कों और हाईवे से आवारा मवेशियों को हटाने के लिए निर्देश भी दिए.
पहले क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?
इसी साल जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने एक न्यूज़ रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए आवारा कुत्तों का मामला उठाया था.
दो जजों की इस बेंच ने 11 अगस्त को सुनवाई करते हुए दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर होम्स में बंद करने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने डॉग बाइट और रेबीज़ की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई थी और अधिकारियों को इस काम को आठ हफ़्ते में पूरा करने की समयसीमा दी थी.
हालांकि, पशु प्रेमियों ने इस आदेश का विरोध किया और कुछ डॉग लवर्स ने सुप्रीम कोर्ट में ही इसके ख़िलाफ़ अर्ज़ी दी.
पशु अधिकार संगठन पेटा इंडिया का कहना था कि कुत्तों को हटाना न तो वैज्ञानिक तरीका है और न ही इससे समस्या का स्थायी समाधान होगा. संगठन ने कहा था, "अगर दिल्ली सरकार ने पहले ही प्रभावी नसबंदी कार्यक्रम लागू किया होता तो आज सड़कों पर शायद ही कोई कुत्ता होता."
आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में बंद करने वाले आदेश के ख़िलाफ़ दी गई अर्ज़ी पर तीन जजों की बेंच ने निर्देश दिया कि जिन कुत्तों को पकड़ा गया है, उन्हें उसी इलाक़े में छोड़ा जाए.
हालांकि, इस फ़ैसले में शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा था कि जिन कुत्तों को रेबीज़ है या रेबीज़ होने का संदेह है, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा. इसी मुद्दे पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर कई डॉग लवर्स और पशु अधिकार कार्यकर्ता जुटे थे, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर खुशी जताई थी.
पूर्णिया, 6 नवंबर । लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को बिहार के पूर्णिया में एक चुनावी सभा को संबोधित किया। राहुल ने कहा कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद शिक्षा पर विशेष तौर पर काम किया जाएगा। राहुल गांधी ने एक बार फिर वोट चोरी का मुद्दा उठाते हुए कहा कि बिहार में लाखों लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए। जिनके वोट काटे गए, उनमें महागठबंधन के वोटर शामिल थे। वोटर लिस्ट में गलत नाम जोड़े गए हैं। जेन-जी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आप सभी को पोलिंग बूथ पर सावधान रहना है। भाजपा के लोग 'चुनाव चोरी' करने की पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन बिहार के युवाओं और जेन-जी को संविधान की रक्षा करनी है। हमें चुनाव चोरी करने वालों को रोकना है और ये हमारी जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि पोलिंग बूथ पर हमें वोट चोरी करने वालों को रोकना है, यही हमारी जिम्मेदारी है। भाजपा पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने कहा कि वोट चोरी के दम पर ही यह चुनाव जीत रहे हैं। मैंने हरियाणा चुनाव के बारे में बताया, यह बिहार में भी ऐसा ही कुछ कर सकते हैं, इसलिए युवाओं को इसे रोकना होगा। भाजपा हर जगह 'वोट चोरी' कर चुनाव जीत रही है, लेकिन हमें किसी भी कीमत पर बिहार में 'वोट चोरी' नहीं होने देनी है। राहुल गांधी ने बिहार की जनता को भरोसा दिलाते हुए कहा कि हमारी महागठबंधन की सरकार बनने के बाद बिहार सरकार शिक्षा पर काम करेगी। यह विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के विकास पर ध्यान केंद्रित करेगी। पहले यहां नालंदा विश्वविद्यालय था, जहां दुनिया भर से लोग आते थे। पेपर लीक का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि वर्तमान में जो युवा ईमानदारी से पढ़ाई करता है उसे पेपर लीक का सामना करना पड़ता है। कुछ लोगों को पहले ही एग्जाम का पेपर मिल जाता है। इसलिए मेरा वादा है कि जैसे ही दिल्ली में इंडी गठबंधन की सरकार बनेगी, हम बेहतरीन विश्वविद्यालय बिहार में बनाएंगे। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 6 नवंबर । प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रिलायंस एडीएजी ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी को उनके समूह के खिलाफ चल रहे मनी लॉन्ड्रिंग मामले के लिए एक बार फिर से समन भेजा है। सूत्रों के मुताबिक, सरकारी जांच एजेंसी अनिल अंबानी से 14 नवंबर को पूछताछ करेगी। यह खबर ऐसे समय पर सामने आई है, जब ईडी ने इस सप्ताह की शुरुआत में धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत नवी मुंबई स्थित धीरूभाई अंबानी नॉलेज सिटी में 4,462.81 करोड़ रुपए मूल्य की 132 एकड़ से अधिक जमीन को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया है। इससे पहले ईडी ने रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड (आरकॉम), रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस लिमिटेड और रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड से जुड़े बैंक फ्रॉड मामले में 3,083 करोड़ रुपए की 42 संपत्तियों को जब्त किया था।
ईडी बयान में कहा गया, "अब तक 7,545 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति को जब्त किया जा चुका है। प्रवर्तन निदेशालय वित्तीय अपराध करने वालों की सक्रियता से तलाश कर रहा है और अपराध से प्राप्त राशि को उनके वास्तविक दावेदारों को वापस दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।" सरकारी एजेंसी की ओर से जांच सीबीआई की एफआईआर के बाद शुरू की गई थी। सीबीआई द्वारा अनिल अंबानी, आरकॉम और अन्य के खिलाफ एफआईआर आईपीसी की धारा-120-बी, 406 एवं 420, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 13(2) के तहत दर्ज की गई है। बयान में आगे कहा गया, आरकॉम और उनकी ग्रुप कंपनियों की ओर से 2010-2012 के बीच घरेलू और विदेशी बैंकों से भारी मात्रा में लोन लिए गए थे, जिसमें से 40,185 करोड़ रुपए बकाया रह गए थे। पांच बैंकों ने ग्रुप के बैंक खातों को फ्रॉड घोषित कर दिया था। ईडी की जांच के मुताबिक, समूह की एक इकाई द्वारा लिए गए बैंक लोन का इस्तेमाल, समूह की किसी अन्य कंपनी द्वारा अन्य बैंक से लिए गए लोन का पुनर्भुगतान, अन्य कंपनियों को ट्रांसफर और म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए किया गया। यह लोन के नियम व शर्तों के खिलाफ था। --(आईएएनएस)
ज़ोहरान ममदानी के मेयर बनने के बाद फिर चर्चा में न्यूयॉर्क, अमेरिका की राजधानी ना होते हुए भी इतना अहम क्यों?
ज़ोहरान ममदानी, 4 नवंबर, 2025 को न्यूयॉर्क सिटी के मेयर का चुनाव जीत गए.
नतीज़ों के बाद से उनकी काफी चर्चा हो रही है.
ममदानी, 1892 के बाद बने इस शहर के सबसे युवा मेयर हैं.
वो न्यूयॉर्क सिटी के पहले मुस्लिम मेयर भी होंगे.
इसलिए ममदानी के साथ-साथ न्यूयॉर्क की भी काफ़ी चर्चा हो रही है.
लेकिन ममदानी के इतर न्यूयॉर्क शहर भी अपने आप में एक अनोखा कैरेक्टर है. आइए शहर के बारे में कुछ ख़ास बातें जानते हैं.
न्यूयॉर्क सिटी कैसे बनी आज की न्यूयॉर्क
आज से 400 साल पहले, 1625 में ट्रेड के मकसद से डच लोगों ने इसकी नींव रखी थी. तब इसका नाम 'न्यू एम्सटर्डम' था.
फिर, 1664 में अंग्रेज़ों ने यहां कब्जा कर लिया और ड्यूक ऑफ यॉर्क के नाम पर इसका नाम बदलकर 'न्यूयॉर्क' कर दिया गया.
अमेरिका का सबसे बड़ा शहर
अमेरिका के 'न्यूयॉर्क स्टेट' में 62 काउंटीज़ आती हैं. उनमें सबसे ज्यादा आबादी वाली काउंटी न्यूयॉर्क है. स्टेट ही नहीं बल्कि पूरे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में सबसे ज्यादा आबादी इसी शहर में रहती है.
वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के हिसाब से न्यूयॉर्क स्टेट की आबादी करीब 2 करोड़ है. इसमें से 84 लाख से ज्यादा लोग अकेले न्यूयॉर्क सिटी में रहते हैं.
लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी कोई एक समुदाय यहां बहुलता में नहीं है. न्यूयॉर्क शहर को यहां आकर बसने वाले लोगों ने 'न्यूयॉर्क' बनाया है.
अमेरिका के 'न्यूयॉर्क स्टेट' में 62 काउंटीज़ आती हैं. उनमें सबसे ज्यादा आबादी वाली काउंटी न्यूयॉर्क है. स्टेट ही नहीं बल्कि पूरे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में सबसे ज्यादा आबादी इसी शहर में रहती है.
वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के हिसाब से न्यूयॉर्क स्टेट की आबादी करीब 2 करोड़ है. इसमें से 84 लाख से ज्यादा लोग अकेले न्यूयॉर्क सिटी में रहते हैं.
लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी कोई एक समुदाय यहां बहुलता में नहीं है. न्यूयॉर्क शहर को यहां आकर बसने वाले लोगों ने 'न्यूयॉर्क' बनाया है.
1990 के दशक में दुनिया भर के करीब 12 लाख अप्रवासी न्यूयॉर्क आकर बसे
करीब 3000 साल पहले सबसे पहले लेनेप लोगों ने इसे अपना घर बनाया. ये डेलावेर के ही स्थानीय लोग थे. फिर 1625 में डच और यूरोपीय लोग यहां आकर बसे.
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुए 'द ग्रेट माइग्रेशन' में हजारों अफ्रीकी-अमेरिकी दक्षिण से उत्तर की तरफ आकर बस गए.
फिर, 1990 के दशक में दुनिया भर के करीब 12 लाख अप्रवासी न्यूयॉर्क आ बसे.
इस तरह विभिन्न समुदाय के लोगों ने मिलकर न्यूयॉर्क को बनाया, शहर 'न्यूयॉर्क'. इन विविध समुदायों की मौजूदगी की वजह से ही इसे प्रवासियों का शहर भी कहा जाता है.
ममदानी ने भी जीत के बाद अपने भाषण में कहा है, "न्यूयॉर्क हमेशा प्रवासियों का शहर रहेगा, इस शहर को प्रवासियों ने बनाया है और प्रवासी लोग ही इसे चलाते हैं."
अमेरिका के 'न्यूयॉर्क स्टेट' में 62 काउंटीज़ आती हैं. उनमें सबसे ज्यादा आबादी वाली काउंटी न्यूयॉर्क है. स्टेट ही नहीं बल्कि पूरे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में सबसे ज्यादा आबादी इसी शहर में रहती है.
वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के हिसाब से न्यूयॉर्क स्टेट की आबादी करीब 2 करोड़ है. इसमें से 84 लाख से ज्यादा लोग अकेले न्यूयॉर्क सिटी में रहते हैं.
लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी कोई एक समुदाय यहां बहुलता में नहीं है. न्यूयॉर्क शहर को यहां आकर बसने वाले लोगों ने 'न्यूयॉर्क' बनाया है.
प्रवासियों का शहर कैसे बना न्यूयॉर्क
इमेज कैप्शन,1990 के दशक में दुनिया भर के करीब 12 लाख अप्रवासी न्यूयॉर्क आकर बसे
करीब 3000 साल पहले सबसे पहले लेनेप लोगों ने इसे अपना घर बनाया. ये डेलावेर के ही स्थानीय लोग थे. फिर 1625 में डच और यूरोपीय लोग यहां आकर बसे.
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुए 'द ग्रेट माइग्रेशन' में हजारों अफ्रीकी-अमेरिकी दक्षिण से उत्तर की तरफ आकर बस गए.
फिर, 1990 के दशक में दुनिया भर के करीब 12 लाख अप्रवासी न्यूयॉर्क आ बसे.
इस तरह विभिन्न समुदाय के लोगों ने मिलकर न्यूयॉर्क को बनाया, शहर 'न्यूयॉर्क'. इन विविध समुदायों की मौजूदगी की वजह से ही इसे प्रवासियों का शहर भी कहा जाता है.
ममदानी ने भी जीत के बाद अपने भाषण में कहा है, "न्यूयॉर्क हमेशा प्रवासियों का शहर रहेगा, इस शहर को प्रवासियों ने बनाया है और प्रवासी लोग ही इसे चलाते हैं."
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बदलते समय के साथ न्यूयॉर्क ने खुद को बदला
इस शहर की अपनी एक तासीर है. कहा जाता है, ये शहर हर किसी को अपनाता है. कोई भी इंसान यहां आकर अपनी जिंदगी, शुरू से शुरू कर सकता है. अपनी पहचान बना सकता है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, हर दिन करीब दस लाख वर्कर न्यूयॉर्क सिटी में कदम रखते हैं.
इस शहर ने पुराने कई सांचों को तोड़कर, बदलावों को तेजी से अपनाकर खुद की एक नई पहचान बनाई है. और यही इसकी ख़ासियत है.
कई ऐतिहासिक जगहें
यूनाइटेड नेशंस के हेडक्वार्टर्स से लेकर, दुनिया का फाइनेंशियल कैपिटल कहा जाने वाले वॉल स्ट्रीट भी इसी शहर में ही है.
अमेरिका का स्टॉक एक्सचेंज न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और नैस्डैक भी यहीं मौजूद है.
दुनिया की चौथी सबसे बड़ी मूर्ति स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लेकर 86 मंजिला एंपायर स्टेट बिल्डिंग, टाइम्स स्क्वैयर, सेंट्रल पार्क, ब्रॉडवे शो का पता भी यही शहर है, जिसे देखने दुनिया भर से लोग आते हैं.
वो साल जिसने न्यूयॉर्क को झकझोर दिया
मगर, 2001 का साल, उस काले पन्ने की तरह है, जिसने इस शहर को झकझोर कर रख दिया.
दरअसल, न्यूयॉर्क सिटी में 16 एकड़ में मौजूद वर्ल्ड ट्रेड सेंटर इसकी शान हुआ करता था. इसके अंदर बना ट्विन टावर, शहर की सबसे बड़ी इमारत थी.
मगर 11 सितंबर, 2001 को आतंकी हमलों में ये दोनों टावर ज़मींदोज़ हो गए. जिसमें हज़ारों लोगों की जान चली गई थी.
अमेरिका में सबसे बड़ी इकॉनमी वाला शहर न्यूयॉर्क
अमेरिका में सबसे बड़ी इकॉनमी वाला शहर न्यूयॉर्क
इमेज कैप्शन,अमेरिका की जीडीपी में न्यूयॉर्क सिटी की हिस्सेदारी 9 फ़ीसदी है
लेकिन, इस शहर ने खुद को फिर से खड़ा किया. 2024 में 'स्टेट ऑफ द न्यूयॉर्क सिटी इकॉनमी' नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका की पूरी इकॉनमी में न्यूयॉर्क की 9 फीसदी हिस्सेदारी है.
चकाचौंध तो है, मगर चुनौतियां भी कम नहीं
उपलब्धियों के अलावा, इस शहर की अपनी चुनौतियां भी हैं. नस्लीय भेदभाव, अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई की समस्या बनी हुई है.
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यूयॉर्क सिटी में बीते एक दशक में आय में असमानता बढ़ी है.
बेरोजगारी और श्रम बल भागीदारी में नस्लीय असमानताएं कम तो हुई हैं, मगर ये अभी भी काफ़ी ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं.
ममदानी भी आय में असमानता को खत्म करने के वादे से आए हैं. अब देखना होगा कि वो इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं.
डेमोक्रेटिक कैंडिडेट ज़ोहरान ममदानी न्यूयॉर्क का मेयर चुनाव जीत गए हैं.
सीबीएस के मुताबिक, 34 साल के ममदानी 100 साल से भी अधिक समय में न्यूयॉर्क के सबसे युवा और पहले मुसलमान और दक्षिण एशियाई मूल के मेयर होंगे.
ममदानी की जीत तय होने के साथ ही उनके समर्थक खुशी से उछल गए और जश्न मानने लगे.
बीबीसी संवाददाता मैडलिन हलपर्ट के मुताबिक लोग ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे, "ज़ोहरान, ज़ोरहान, ज़ोहरान".
वहाँ मौजूद तकरीबन हर शख्स चिल्ला रहा था और लोग एक-दूसरे को बधाइयां दे रहे थे.
मेयर पद के लिए मुख्य मुक़ाबला ज़ोहरान ममदानी और एंड्रयू कुओमो के बीच था. ममदानी से डेमोक्रेट प्राइमरी में हारने के बाद कुओमो इंडिपेंडेंट उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे. (bbc.com/hindI)
ज़ोहरान क्वामे ममदानी का जन्म साल 1991 में युगांडा की राजधानी कंपाला में हुआ था. ममदानी के पिता ने उन्हें एक क्रांतिकारी और घाना के पहले प्रधानमंत्री क्वामे एन्क्रूमाह के नाम पर मिडिल नेम क्वामे दिया था.
ममदानी मशहूर भारतीय-अमेरिकी फ़िल्म निर्देशक मीरा नायर और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के जाने-माने प्रोफे़सर महमूद ममदानी के बेटे हैं.
कंपाला में उन्होंने अपने शुरुआती दिन बिताए और फिर पांच साल की उम्र में दक्षिण अफ़्रीका आ गए.
ममदानी के भारतीय मूल के पिता महमूद ममदानी केपटाउन विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे. केपटाउन में ही 1848 में शुरू हुए दक्षिण अफ़्रीका के सबसे पुराने स्कूल सेंट जॉर्ज ग्रामर में उन्होंने शुरुआती पढ़ाई-लिखाई की.
सात साल की उम्र में वे न्यूयॉर्क आ गए. उन्होंने ब्रॉन्क्स हाई स्कूल ऑफ़ साइंस से पढ़ाई की.
साल 2014 में उन्होंने बोडन कॉलेज से 'बैचलर इन अफ़्रीकन स्टडीज़' में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की.
कुछ साल बाद 2018 में, ममदानी एक अमेरिकी नागरिक बन गए.
ममदानी का राजनीतिक सफ़र
ममदानी का राजनीतिक सफ़र
ज़ोहरान ममदानी ने सक्रिय राजनीति में क़दम रखने से पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम किया.
राजनीति में आने से पहले ज़ोहरान ममदानी क्वींस, न्यूयॉर्क में बतौर फॉरक्लोज़र काउंसलर (घर ज़ब्ती मामलों में सलाहकार) का काम करते थे. ममदानी कम आय वाले परिवारों की मदद करते थे जो आर्थिक तंगी के कारण अपने घर खोने की कगार पर थे.
इस काम के दौरान उन्होंने देखा कि जिन परिवारों की मदद वह कर रहे थे, उनकी दिक्कतें केवल आर्थिक नहीं बल्कि नीतिगत भी थीं. इसी अनुभव ने उन्हें सक्रिय राजनीति की ओर प्रेरित किया ताकि वह नीतियां बदल सकें जो आम लोगों को प्रभावित करती हैं.
इसके बाद साल 2020 में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा. उन्होंने न्यूयॉर्क असेंबली के 36वें डिस्ट्रिक्ट (एस्टोरिया, क्वींस) से डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा.
ज़ोहरान ममदानी पहली बार में ही जीत गए और न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली में पहले दक्षिण एशियाई और पहले सोशलिस्ट प्रतिनिधि बने.
अब डेमोक्रेट ममदानी ने न्यूयॉर्क मेयर प्राइमरी में पूर्व गवर्नर को पीछे छोड़कर सभी को चौंका दिया है.
राज्य के पूर्व गवर्नर 67 वर्षीय कुओमो, यौन उत्पीड़न से जुड़े एक मामले में 2021 में पद से इस्तीफ़ा देने के बाद राजनीतिक वापसी का प्रयास कर रहे थे.
जीत के बाद ममदानी ने कहा, "आज रात हमने इतिहास लिखा है. जैसा कि नेल्सन मंडेला ने कहा था- 'जब तक यह पूरा नहीं हो जाता, यह हमेशा असंभव लगता है.' मेरे दोस्तों, हमने इसे कर दिखाया. मैं डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के रूप में आपकी न्यूयॉर्क सिटी का मेयर बनूंगा."
मोदी और इसराइल की आलोचना
ममदानी का राजनीतिक सफ़र
ज़ोहरान ममदानी ने सक्रिय राजनीति में क़दम रखने से पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम किया.
राजनीति में आने से पहले ज़ोहरान ममदानी क्वींस, न्यूयॉर्क में बतौर फॉरक्लोज़र काउंसलर (घर ज़ब्ती मामलों में सलाहकार) का काम करते थे. ममदानी कम आय वाले परिवारों की मदद करते थे जो आर्थिक तंगी के कारण अपने घर खोने की कगार पर थे.
इस काम के दौरान उन्होंने देखा कि जिन परिवारों की मदद वह कर रहे थे, उनकी दिक्कतें केवल आर्थिक नहीं बल्कि नीतिगत भी थीं. इसी अनुभव ने उन्हें सक्रिय राजनीति की ओर प्रेरित किया ताकि वह नीतियां बदल सकें जो आम लोगों को प्रभावित करती हैं.
इसके बाद साल 2020 में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा. उन्होंने न्यूयॉर्क असेंबली के 36वें डिस्ट्रिक्ट (एस्टोरिया, क्वींस) से डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा.
ज़ोहरान ममदानी पहली बार में ही जीत गए और न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली में पहले दक्षिण एशियाई और पहले सोशलिस्ट प्रतिनिधि बने.
अब डेमोक्रेट ममदानी ने न्यूयॉर्क मेयर प्राइमरी में पूर्व गवर्नर को पीछे छोड़कर सभी को चौंका दिया है.
राज्य के पूर्व गवर्नर 67 वर्षीय कुओमो, यौन उत्पीड़न से जुड़े एक मामले में 2021 में पद से इस्तीफ़ा देने के बाद राजनीतिक वापसी का प्रयास कर रहे थे.
जीत के बाद ममदानी ने कहा, "आज रात हमने इतिहास लिखा है. जैसा कि नेल्सन मंडेला ने कहा था- 'जब तक यह पूरा नहीं हो जाता, यह हमेशा असंभव लगता है.' मेरे दोस्तों, हमने इसे कर दिखाया. मैं डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के रूप में आपकी न्यूयॉर्क सिटी का मेयर बनूंगा."
मोदी और इसराइल की आलोचना
ज़ोहरान ममदानी इसराइल से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक की खुलकर आलोचना कर चुके हैं.
मई, 2025 में एक कार्यक्रम में उनसे एक सवाल पूछा गया कि अगर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैडिसन स्क्वायर गार्डन में रैली करते हैं और फिर न्यूयॉर्क के मेयर के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करना चाहते हैं, तो क्या वह उसमें शामिल होंगे?
ममदानी ने 'नहीं' में जवाब देते हुए कहा था, "मेरे पिता और उनका परिवार गुजरात से है. नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मुसलमानों के बड़े पैमाने पर क़त्लेआम को अंजाम देने में मदद की, इतनी बड़ी हिंसा हुई कि अब तो ऐसा लगता है जैसे गुजराती मुसलमान हैं ही नहीं. हमें मोदी को उसी नज़र से देखना चाहिए जैसे हम बिन्यामिन नेतन्याहू को देखते हैं. वह एक युद्ध अपराधी हैं."
इस बयान के बाद न्यूयॉर्क के कुछ इंडो-अमेरिकन और हिंदू, सिख समुदायों ने इसे विभाजनकारी और घृणास्पद बताया था. साथ ही इन लोगों ने ममदानी से माफ़ी की मांग की थी.
यहां ये बताना ज़रूरी है कि गुजरात दंगों के सभी आरोपों से सुप्रीम कोर्ट ने जून 2022 में नरेन्द्र मोदी को मुक्त कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित विशेष जाँच दल की उस रिपोर्ट को शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया जिसमें उन्हें दोषमुक्त बताया गया था.
ज़ोहरान ममदानी का फ़लस्तीन के समर्थन और इसराइल की आलोचना को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी के ज़्यादातर नेताओं से मतभेद रहा है.
एक अमेरिकी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इसराइल के यहूदी देश के रूप में अस्तित्व का विरोध किया था.
उन्होंने कहा, "मैं किसी ऐसे देश का समर्थन नहीं कर सकता जहां नागरिकता धर्म या किसी और आधार पर बांटी जाती हो. हर देश में समानता होनी चाहिए, यही मेरा विश्वास है."
ममदानी ने कथित तौर पर इसराइल के लिए उकसावे वाले काफ़ी विवादित 'ग्लोबलाइज़ द इंतिफ़ादा' नारे से दूरी नहीं बनाई. उन्होंने इसे फ़लस्तीनी लोगों की मानवाधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बताया- वह इसे हिंसक नहीं, बल्कि समानता की आवाज़ मानते हैं.
मुस्लिम पहचान पर हुए हमले
प्राइमरी चुनाव जीतने के बाद ममदानी की मुस्लिम पहचान पर हमले बढ़े. उनपर खुलेआम नस्ली हमले हुए.रिपब्लिकन सांसद एंडी ओगल्स ने तो जस्टिस डिपार्टमेंट को पत्र लिखकर ज़ोहरान ममदानी की नागरिकता रद्द कर वापस भेजने की मांग कर दी थी.
ममदानी धार्मिक पहचान से जुड़े हमलों का खुलकर जवाब देते रहे हैं. उन्हें कैंपेन के दौरान हिंसक हमले की भी धमकियां मिलती रहीं. कई बार तो ममदानी ने अपने कैंपेन में उन धमकियों की रिकॉर्डिंग भी सुनाई थी.
इस बारे में ज़ोहरान ममदानी से एमएसएनबीसी ने पूछा कि आपको वापस भेजने की मांग हो रही है. आप पर इस्लामोफोबिक हमले हो रहे हैं. इन हमलों को आपके परिवार में कैसे देखा जाता है? इसके जवाब में ममदानी ने कहा, ''यह बहुत ही मुश्किल है. ऐसा आए दिन हो रहा है. मेरे नाम और आस्था के आधार पर नियमित रूप से हमले हो रहे हैं. इससे जूझना बहुत मुश्किल है. मेरी जीत यह बताने का मौक़ा है कि एक मुसलमान होना किसी दूसरे धर्म के अनुयायी होने जैसा ही है.''
साउथ कैरलाइना से रिपब्लिकन रीप्रेजेंटेटिव नैंसी मैक ने ईद के मौक़े पर ज़ोहरान ममदानी के कुर्ते पायजामे वाली तस्वीर शेयर करते हुए 25 जून को लिखा था, ''9/11 के बाद हमने कहा था- हम कभी नहीं भूलेंगे. मुझे लगता है कि हम भूल गए. यह बहुत ही दुखद है.''
9/11 का हमला जब हुआ था तो ज़ोहरान ममदानी नौ साल के थे और मैनहटन में रह रहे थे.
नई दिल्ली, 5 नवंबर । लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने कथित तौर पर वोट चोरी के मुद्दे को दोहराया और दावा किया कि राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तर पर वोट चोरी हो रही है। कथित वोट चोरी के मुद्दे पर राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हमारे पास 'एच' फाइल्स हैं और यह इस बारे में है कि कैसे एक पूरे राज्य को ही चुरा लिया गया है। हमें संदेह है कि यह व्यक्तिगत निर्वाचन क्षेत्रों में नहीं, बल्कि राज्य स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है।" कांग्रेस के आधिकारिक एक्स हैंडल से राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस की वीडियो शेयर कर बताया, "एक पूरा राज्य कैसे चुरा लिया गया? वोट चोरी राज्य और राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर हो रही है।
हमने कई राज्यों में इसका अनुभव किया है, इसलिए हमने हरियाणा में और गहराई से जांच करने का फैसला किया।" उन्होंने कहा, "सभी सर्वेक्षणों में कांग्रेस की जीत की ओर इशारा किया गया था। एक और बात यह थी कि हरियाणा के चुनावी इतिहास में पहली बार, डाक मतपत्रों की संख्या वास्तविक मतदान से अलग थी। डाक मतपत्रों में, कांग्रेस को 73 और भाजपा को 17 मत मिले। इसलिए, हमने बारीकियों की जांच शुरू की।" उन्होंने कहा, "मैं चुनाव आयोग और भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठा रहा हूं, और मैं ऐसा 100 प्रतिशत प्रमाण के साथ कर रहा हूं। हमारे लिए यह स्पष्ट है कि कांग्रेस की अनुमानित भारी जीत को हार में बदलने की एक योजना बनाई गई थी। मतगणना से दो दिन पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री की मुस्कान और 'व्यवस्था' के उनके संदर्भ पर ध्यान दें। ऐसे समय में जब एग्जिट पोल और तमाम संकेतक कांग्रेस के पक्ष में थे, भाजपा की 'व्यवस्था' में उनका विश्वास हैरान करने वाला था। इन सबके बाद, नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस हरियाणा चुनाव में मात्र 22,779 वोटों से हार गई।" -(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 5 नवंबर । मंगोलिया के उलानबटार में आपातकालीन लैंडिंग के बाद एयर इंडिया के विमान एआई174 के सभी यात्रियों और क्रू सदस्यों को सुरक्षित रूप से भारत वापस लाया गया है। इस सफल वापसी से घंटों से विदेश में फंसे यात्रियों और कर्मचारियों ने आखिरकार राहत की सांस ली। एयर इंडिया ने इस पूरे अभियान को अपनी बेहतरीन समन्वय क्षमता का प्रमाण बताया है। एयर इंडिया ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि यह राहत उड़ान विशेष रूप से उन सभी यात्रियों और क्रू को वापस लाने के लिए भेजी गई थी जो तकनीकी कारणों से हुए एहतियात के तौर पर लिए गए डायवर्सन के बाद उलानबटार में रुक गए थे। एयरलाइन ने बताया कि पूरी प्रक्रिया के दौरान यात्रियों का ध्यान रखा गया और उन्हें हर जरूरी सुविधा उपलब्ध कराई गई।
एयर इंडिया के प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा, "राहत उड़ान, जिसमें एआई174 के वे यात्री और क्रू शामिल थे जो उलानबटार, मंगोलिया में डायवर्सन के बाद रुके हुए थे, सुबह दिल्ली पहुंच गई है। एयर इंडिया उलानबटार के स्थानीय प्रशासन, मंगोलिया स्थित भारतीय दूतावास, डीजीसीए, भारत सरकार और उन सभी का धन्यवाद करती है, जिन्होंने इस दौरान यात्रियों और क्रू की मदद की और उन्हें सुरक्षित दिल्ली लाने में सहयोग दिया। हम अपने यात्रियों के धैर्य और समझ के लिए भी आभारी हैं। हमारे मेहमानों और कर्मचारियों की सुरक्षा और भलाई हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है।" इस बात की जानकारी एयर इंडिया के आधिकारिक 'एक्स' हैंडल के जरिए दी गई। यात्रियों ने भी एयर इंडिया और स्थानीय अधिकारियों के प्रयासों की सराहना की। कई यात्रियों के अनुसार, स्थिति चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन उन्हें लगातार अपडेट मिलते रहे और सभी जरूरी इंतजाम किए गए। एयर इंडिया ने अपने बयान में यह भी दोहराया कि सुरक्षा उसके लिए हमेशा सबसे ऊंची प्राथमिकता है और इसी कारण जरूरी समझे जाने पर उड़ान को बिना किसी जोखिम के तुरंत डायवर्ट कर दिया गया। कंपनी ने आश्वासन दिया कि भविष्य में भी यात्रियों की भलाई और सुरक्षा से कभी समझौता नहीं किया जाएगा। --(आईएएनएस)
जबलपुर, 4 नवंबर । बीएपीएस श्री स्वामिनारायण संस्था द्वारा आयोजित पांच दिवसीय “जीवन उत्कर्ष महोत्सव” का भव्य शुभारंभ जबलपुर के होटल विजन महल, मंडला रोड, तिलहरी में अत्यंत भक्तिभाव और उत्साह के साथ हुआ। यह आयोजन परम पूज्य महंत स्वामी महाराज के पवित्र जन्मस्थान पर आयोजित हो रहा है, जो संस्कारधानी जबलपुर के लिए ऐतिहासिक और गौरवपूर्ण अवसर है। प्रातः कालीन सत्र में पूज्य आदर्श जीवन स्वामी द्वारा “महंत चरितम” विषय पर प्रेरणादायक पारायण संपन्न हुई। देश-विदेश से सैकड़ों श्रोताओं ने इसमें भाग लिया और परम पूज्य महंत स्वामी महाराज के आदर्श जीवन से आत्मिक प्रेरणा प्राप्त की। परम पूज्य महंत स्वामी महाराज बीएपीएस संस्था के वर्तमान आध्यात्मिक गुरु हैं, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सेवा, साधना, सत्संग और संस्कार के प्रसार हेतु समर्पित किया है। उनका जीवन विनम्रता, समता और प्रेम का जीवंत उदाहरण है। उनके नेतृत्व में विश्वभर में सैकड़ों मंदिरों और सामाजिक सेवा प्रकल्पों द्वारा समाज उत्कर्ष की दिशा में उल्लेखनीय कार्य हुआ है। इस कार्यक्रम के प्रथम दिवस के मुख्य अतिथि मोहन भागवत (सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) रहे। बीएपीएस के संतों ने उनका हार, अंगवस्त्र एवं पुष्पगुच्छ द्वारा हार्दिक स्वागत किया। भागवत ने अपने प्रेरक उद्बोधन में महंत स्वामी महाराज के जीवन से प्रेरणा लेने तथा राष्ट्र निर्माण में आध्यात्मिकता के योगदान पर प्रकाश डाला। पूज्य आत्मतृप्त स्वामीजी ने संस्कृति के ज्योतिर्धर प्रमुख स्वामी महाराज विषय पर प्रेरक वक्तव्य का लाभ दिया था। इसके साथ विश्ववंदनीय संत प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन पर साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ’संत विभूति प्रमुख स्वामी महाराज’ का लोकार्पण भी हुआ। इस अवसर पर इस पुस्तक के लेखक विद्वान संत महामहोपाध्याय भद्रेशदास स्वामीजी ने कृतज्ञता ज्ञापित की। अबू धाबी स्थित हिंदू मंदिर के संचालक संत ब्रह्मबिहारी स्वामी ने भी प्रासंगिक उद्बोधन किया। बीएपीएस संस्था की विश्वव्यापी सेवा प्रवृत्ति के संयोजक वरिष्ठ संत ईश्वरचरण स्वामीजी ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए जबलपुर भूमि की गरिमा का वर्णन किया। इस उत्सव में 4 नवंबर को मुख्यमंत्री मोहन यादव के आगमन की घोषणा की गई। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारीगण भी उपस्थित रहे। बीएपीएस के संतों द्वारा मनोहर कीर्तन-भजन एवं प्रेरणादायक प्रवचनों से वातावरण भक्तिमय बन गया। कार्यक्रम में जबलपुर एवं आसपास के क्षेत्रों से हजारों हरि भक्तों ने भाग लिया। प्रथम दिन का आयोजन अत्यंत सफल और प्रेरणादायी रहा, जिसने आनेवाले चार दिनों के लिए श्रद्धा और उत्साह का पवित्र वातावरण निर्मित किया। जबलपुर का यह “जीवन उत्कर्ष महोत्सव” केवल एक आध्यात्मिक आयोजन नहीं, बल्कि महंत स्वामी महाराज के जीवन-संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का एक पुण्य प्रयास सिद्ध हो रहा है। --आईएएनएस एएस/
नई दिल्ली, 4 नवंबर । 'विशेष अभियान 5.0' ने नए मानक स्थापित किए हैं। इस कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने पिछले 4 साल में चार हजार करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व प्राप्त किया है। केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को यह जानकारी दी। 'विशेष अभियान 5.0' का उद्देश्य स्वच्छता को बढ़ावा देना, कार्य को सरल बनाना व मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रमों और इसके अंतर्गत आने वाले संगठनों में लंबित शिकायतों का समाधान करना है। केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 'एक्स' पोस्ट में लिखा, "कचरे के निपटान से 4,085 करोड़ रुपए (2021 से) का राजस्व प्राप्त हुआ।"
उन्होंने देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद भी किया। उन्होंने बताया कि 9.87 लाख से अधिक जगहों पर स्वच्छता अभियान चलाया गया, जिसमें 2021 के बाद के कुल स्वच्छता अभियान स्थलों की संख्या 21.92 लाख है। अभियान के दौरान 231.75 लाख स्क्वायर फुट जगह खाली हुई। जितेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि 53.21 लाख से अधिक रिकॉर्ड प्रबंधन फाइलों की समीक्षा की गई, जिसमें से 28.44 लाख फाइलों को बंद किया गया है। 7.3 लाख जन शिकायतें और अपीलों का निपटारा किया गया। कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने 'विशेष अभियान 5.0' के मुख्य चरण में सक्रिय रूप से भाग लिया। मंगलवार को जानकारी दी गई कि 2 अक्टूबर से शुरू होकर 31 अक्टूबर 2025 तक 1836 से अधिक स्वच्छता अभियान चलाए गए। इसके अतिरिक्त, सांसदों के तीन संदर्भ, 7 संसदीय आश्वासन, 307 लोक शिकायतें और 27 लोक शिकायत अपीलों का निपटारा किया गया। कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने यह भी बताया कि 1250 फाइलों की समीक्षा की गई और 466 फाइलों को छांटा गया। 658 ई-फाइलों की समीक्षा की गई, जिनमें से 266 फाइलों को बंद कर दिया गया। फाइलों को छांटने और कबाड़ के निपटान से लगभग 4,000 वर्ग फुट जगह खाली हुई। कबाड़ के निपटान से 7.58 लाख रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ। 'विशेष अभियान 5.0' पहल के तहत कोयला मंत्रालय ने मोटी कमाई की है। सोमवार को प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि 2 से 31 अक्टूबर तक मंत्रालय ने अपने निर्धारित लक्ष्यों को पार करते हुए 56,85,76,462 का कुल राजस्व अर्जित किया और 1,28,527 फाइलों का निराकरण व समापन किया। -(आईएएनएस)
बिहार की मोकामा विधानसभा सीट पर जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह के लिए प्रचार कर रहे केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है.
पटना ज़िला प्रशासन के मुताबिक़, ललन सिंह के ख़िलाफ़ एक वीडियो में आपत्तिजनक कमेंट करने को लेकर एफ़आईआर दर्ज की गई है.
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर पटना ज़िला प्रशासन ने अपने आधिकारिक अकाउंट से कहा, "पटना ज़िला प्रशासन की वीडियो निगरानी टीम के वीडियो फुटेज की जांच की गई. जांच के बाद इस मामले में ललन सिंह उर्फ़ राजीव रंजन सिंह के विरुद्ध भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता एवं लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की सुसंगत धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है."
दरअसल, अनंत सिंह की गिरफ़्तारी के बाद मोकामा में ललन सिंह उनके लिए प्रचार कर रहे हैं.
दुलारचंद यादव की हत्या मामले में शनिवार देर रात पटना पुलिस ने बाढ़ शहर के बेढना गांव से अनंत सिंह को उन्हीं के करगिल मार्केट से गिरफ़्तार कर लिया था.
प्रचार के दौरान ललन सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह कहते दिख रहे हैं कि कुछ नेता ऐसे हैं, जिन्हें चुनाव के दिन घर से बाहर नहीं निकलने देना.
उन्होंने कहा, "उन्हें घर के भीतर पैक कर देना और अगर वे बहुत हाथ-पैर जोड़ें तो कहिएगा कि चलिए हमारे साथ और अपना वोट डालिए."
नई दिल्ली, 4 नवंबर । नशीले पदार्थ लंबे समय से आईएसआई के लिए अपने टेरर इंफ्रास्ट्रक्चर को फंड करने का एक बड़ा जरिया रहे हैं। इस बीच भारतीय एजेंसियां अलर्ट मोड में हैं और आईएसआई के समर्थन से फल फूल रहे दाऊद इब्राहिम के नारकोटिक्स बिजनेस पर शिकंजा कस रही हैं। नतीजतन, डी कंपनी को अपना नेटवर्क बढ़ाना पड़ रहा है ताकि नुकसान की भरपाई कर सके। डी-सिंडिकेट ने अब बांग्लादेश में अपना अड्डा बना लिया है और नशीले पदार्थों के व्यापार को और बढ़ाने के लिए सऊदी अरब में भी विस्तार की योजना बना रहा है। भारत में सिंडिकेट अपने पैर नहीं पसार पा रहा है इसलिए बांग्लादेश को अच्छे विकल्प के तौर पर सेट कर रहा है। आईएसआई ने डी-सिंडिकेट को निर्देश दिया है कि वह भारत में ड्रग्स बांग्लादेश के रास्ते पहुंचाए। वहां की वर्तमान अंतरिम सरकार का पाकिस्तान के प्रति रवैया दोस्ताना है, और आईएसआई इसी स्थिति का पूरा फायदा उठा रहा है।
आईएसआई ने दाऊद गैंग से यह भी कहा है कि वह बांग्लादेश का इस्तेमाल सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पश्चिमी और मध्य पूर्वी देशों में भी ड्रग्स तस्करी के लिए करे। गैंग ने ड्रग्स के व्यापार को अंजाम देने के लिए बड़ी संख्या में युवाओं की भर्ती भी की है। म्यांमार से ऑपरेट होने वाले ड्रग माफिया के साथ भी संबंध बढ़ाए हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अधिकारी का कहना है कि आशंका है कि बांग्लादेश में ऑपरेशन को बड़े स्तर पर अंजाम दिया जाएगा। इनपुट है कि आईएसआई नशीले पदार्थों की तस्करी में बांग्लादेश को अपना मुख्य ऑपरेटिंग सेंटर बनाने के लिए सभी संभावित संसाधनों का इस्तेमाल करेगा। इसका मतलब यह होगा कि फोकस पाकिस्तान से हट जाएगा, जो ड्रग्स ट्रेड का मुख्य केंद्र रहा है। या इसे यूं समझा जा सकता है कि जब फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) जैसे संगठन टेरर फंडिंग की जांच करेंगे, तो उंगली पाकिस्तान की ओर नहीं बल्कि बांग्लादेश की ओर मुड़ जाएगी। पाकिस्तान अपनी खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के कारण एफएटीएफ के रेडार पर नहीं आना चाहता। आईएसआई की ग्रे लिस्ट में वापस आने का मतलब सीधा होगा कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई है। इस्लामाबाद यह बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्योंकि उस पर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट 2.0 (सीपीईसी) को फंड करने के लिए चीन का दबाव है। पाकिस्तान सऊदी अरब के बाजार पर भी नजर रख रहा है। यह आत्मविश्वास इस बात से आता है कि दोनों देशों ने एक परमाणु सुरक्षा और सैन्य समझौता किया है। यह सहयोग कुछ ऐसा है जिसका आईएसआई फायदा उठाना चाहेगा। दाऊद गैंग पहले से ही सऊदी अरब में अपना धंधा बढ़ाने की जुगाड़ में युवाओं को चिन्हित कर रहा है। मकसद वहां रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों की मदद से सऊदी अरब के अंदर ड्रग्स सप्लाई चेन को मजबूत करना है।
हालांकि, भारतीय अधिकारियों के अनुसार, टारगेट वे लोग नहीं होंगे जो सऊदी अरब में कानूनी रूप से रह रहे हैं। वहां कई लोग अवैध रूप से रहते हैं, और वे डी-सिंडिकेट के टारगेट ऑडियंस होंगे। उनके अवैध रूप से रहने का फायदा उठाकर आईएसआई उन्हें दाऊद गैंग के लिए काम करने पर मजबूर करेगा। लगभग दस साल पहले, दाऊद नेटवर्क ने अल-कायदा और बोको हराम दोनों के साथ बिजनेस किया था। हालांकि, कुछ समय बाद यह बंद हो गया था। इंटेलिजेंस एजेंसियों के अनुसार,अब ये संबंध एक बार फिर से शुरू हो गए हैं। इसका मतलब है कि ये दोनों आतंकी ग्रुप अब भारी रकम के बदले दाऊद नेटवर्क को ड्रग्स सप्लाई करेंगे। इन दोनों आतंकी ग्रुप्स का एक नेटवर्क है जो नशीले पदार्थों के व्यापार से जुड़ा है, और यह सिंडिकेट के काम आएगा। इस नेटवर्क को दाऊद का भाई अनीस इब्राहिम संभालेगा, जैसा कि उसने पहले भी किया था। अल-कायदा और बोको हराम दोनों को फंड की जरूरत है। वे बड़ी रकम जुटाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बड़े पैमाने पर लोगों को भर्ती कर सकें और उन्हें ट्रेनिंग दे सकें। एक अधिकारी ने बताया कि आईएसआई बड़े पैमाने पर नार्कोटिक्स ट्रेड को बढ़ा रहा है। इसके लिए जरूरी है कि एक साथ मिलकर प्रयास किया जाए और अगर ऐसा होता है तभी इस मामले से निपटा जा सकता है। - (आईएएनएस)
चेन्नई, 4 नवंबर । तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम के समर्थक, अलंगुलम विधायक मनोज पांडियन, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की उपस्थिति में सत्तारूढ़ डीएमके में शामिल हो गए हैं। डीएमके में शामिल होने के कुछ ही देर बाद, पांडियन ने घोषणा की कि वह मंगलवार की शाम को अपने विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे। तमिलनाडु विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष बीएच पांडियन के पुत्र मनोज पांडियन 2017 में वीके शशिकला के खिलाफ विद्रोह के समय ओ. पन्नीरसेल्वम का समर्थन करने वाले शुरुआती नेताओं में से एक थे। एआईएडीएमके से निष्कासित होने के बाद भी पांडियन पन्नीरसेल्वम के करीबी सहयोगी बने रहे और कई राजनीतिक संघर्षों में उनके साथ खड़े रहे।
डीएमके में शामिल होने के बाद मीडिया से बात करते हुए पांडियन ने कहा कि उनका यह फैसला तमिलनाडु के वर्तमान राजनीतिक माहौल और उनके व्यक्तिगत मूल्यों पर गहन चिंतन के बाद आया है। उन्होंने कहा, "मैंने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। एक ऐसे नेता जो द्रविड़ विचारधारा को कायम रखते हैं, चुनौतियों का डटकर सामना करते हैं और बिना किसी समझौते के प्रगति की ओर अग्रसर होते हैं। मेरा मानना है कि उनमें सामाजिक न्याय और समावेशी शासन की भावना कूट-कूट कर भरी है।" अपने इस्तीफे के बारे में बताते हुए, पांडियन ने कहा, "मैं आज शाम अपने विधायक पद से इस्तीफा दे रहा हूं। यह फैसला मेरे परिवार या व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं है। यह सिद्धांतों और विचारधारा के लिए है। मैं एक ऐसे आंदोलन में शामिल हुआ हूं, जो प्रगतिशील मूल्यों और जन कल्याण के लिए खड़ा है।" पांडियन ने अपनी पूर्व पार्टी, अन्नाद्रमुक पर भी परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि यह एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण दौर से गुजर रही है। उन्होंने कहा, "अन्नाद्रमुक अब स्वतंत्र नहीं रही। यह किसी अन्य संगठन के अधीन हो गई है और बाहरी निर्देशों का पालन करती है। यह वह विरासत नहीं है जिसकी कल्पना एमजीआर या जयललिता ने की थी।" मुख्यमंत्री स्टालिन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए, पांडियन ने कहा कि द्रमुक नेता ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया है। पांडियन के इस कदम से 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले दक्षिणी तमिलनाडु में द्रमुक का प्रभाव ज्यादा मजबूत होने की उम्मीद है। --(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 4 नवंबर । 'गनपाउडर प्लॉट' ब्रिटेन के इतिहास का ऐसा अध्याय है जो अगर सफल होता तो संसद धूल में मिल गई होती। ये घटना 1605 की है। 5 नवंबर की सुबह लंदन की सर्द हवा में एक साजिश की बू थी। ब्रिटिश संसद के तहखाने से अचानक 36 बैरल बारूद बरामद हुए और उसी के साथ ब्रिटेन के इतिहास की दिशा बदल गई। यह था गनपाउडर प्लॉट, यानी “बारूद की साजिश”-एक ऐसा प्रयास जिसने इंग्लैंड के राजा, सरकार और कैथोलिक धर्म के संबंधों को हमेशा के लिए बदल दिया। यह षड्यंत्र किंग जेम्स प्रथम के खिलाफ रची गई थी। उस दौर में इंग्लैंड में कैथोलिक्स पर अत्याचार हो रहे थे और देश पर प्रोटेस्टेंट शासन था।
कई कैथोलिक गुट यह मानते थे कि अगर संसद को उड़ा दिया जाए और राजा की हत्या हो जाए, तो देश में दोबारा उनका शासन लौट सकता है। इस योजना का नेतृत्व रॉबर्ट केट्सबी ने किया था, जबकि जिस नाम ने इतिहास में जगह बनाई वह था 'गाइ फॉक्स' , जो बारूदों की रखवाली करने वाला सैनिक था। 4 नवंबर की रात, फॉक्स संसद के नीचे स्थित तहखाने में तैयारियों में लगा था। लेकिन गुप्त सूचना मिलने पर वहां छापा पड़ा और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ में उसने साथियों के नाम बताए, और जल्द ही पूरी साजिश का पर्दाफाश हो गया। अगर यह साजिश सफल होती, तो उस दिन इंग्लैंड की संसद, राजा और अभिजात वर्ग सब खत्म हो सकते थे। फॉक्स और उसके साथियों को राजद्रोह के आरोप में मौत की सजा दी गई। लेकिन उनकी असफलता ने ब्रिटेन को एक प्रतीक दे दिया — हर 5 नवंबर को बोनफायर नाइट या गाई फॉक्स नाइट के रूप में मनाया जाता है, जब लोग आतिशबाजी करते हैं और “रिमेम्बर, रिमेम्बर द फिफ्थ ऑफ नवंबर…” की पंक्तियां गाते हैं। यह न केवल उस साजिश की याद है, बल्कि सत्ता, धर्म और विद्रोह के उस संघर्ष की भी याद दिलाती है जिसने इंग्लैंड के राजनीतिक इतिहास को आकार दिया। (आईएएनएस)


