राष्ट्रीय
दुनिया के पहले टेक्स्ट मैसेज यानी एसएमएस की नीलामी पेरिस में हुई. इस एसएमएस की कीमत 91 लाख रुपये से अधिक लगाई गई. इसको एक अनाम शख्स ने खरीदा है.
पेरिस के एगट्स नीलामी घर ने कहा कि 1992 में मोबाइल फोन पर भेजा गया पहला एसएमएस मंगलवार को नीलामी में एनएफटी के रूप में 1,21,600 डॉलर यानी 91 लाख 15 हजार रुपये से अधिक में बिका. इस पहले एसएमएस के खरीदार की पहचान का खुलासा नहीं किया गया है. इस एसएमएस की नीलामी एनएफटी यानी नॉन फंजीबल टोकन के रूप में हुई. इस एसएमएस को एनएफटी में तब्दील कर दिया गया है.
पहला एसएमएस वोडाफोन के कर्मचारी रिचर्ड जार्विस को "मेरी क्रिसमस" की बधाई के लिए भेजा गया एक 15 कैरेक्टर का संदेश था. प्रोग्रामर नील पापवर्थ ने अपने सहयोगी जार्विस को उस समय संदेश भेजा था, जब वे कंपनी की क्रिसमस पार्टी में शामिल थे. इस एसएमएस का खरीदार बिटक्वॉइन के बाद दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी एथर में भुगतान करेगा.
एनएफटी क्या है?
एनएफटी यानी नॉन फंजीबल टोकन. अर्थव्यवस्था में फंजीबल संपत्ति उसे कहते हैं जो हाथ से ली-दी जा सके. जैसे आपके पास 100 रुपये का नोट है, जिसे देकर आप 50-50 रुपये के दो नोट ले सकते हैं. यह फंजीबल संपत्ति है. तो इसके उलट नॉन-फंजीबल हुआ, जिसका ठोस आधार पर लेन-देन ना हो सके. यानी उसकी कीमत कुछ ऐसी है कि उसके बदले कुछ लिया दिया नहीं जा सकता.
यह कोई घर भी हो सकता है, कोई पेंटिग या कोई तस्वीर हो सकती है. ऐसी चीजें दूसरी नहीं हैं, तो इनकी असल कीमत तय करना मुश्किल है. डिजिटल जगत में ऐसी चीजों को सामान्य चीजों की तरह खरीदा बेचा जा सकता है. इसके बदले डिजिटल टोकन मिल जाएंगे, जिन्हें एनएफटी कहा जाता है. एनएफटी को ब्लॉकचेन तकनीक के जरिए संभाला जाता है.
रकम का क्या करेगा वोडाफोन
वोडाफोन ने कहा कि वह बिक्री की आय संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) को दान करेगा. वोडाफोन ने यूएनएचसीआर के प्राइवेट सेक्टर पार्टनरशिप सर्विस के प्रमुख क्रिश्चियन शाके के हवाले से कहा, "प्रौद्योगिकी में हमेशा दुनिया को नया करने और बदलने की शक्ति रही है."
बयान के मुताबिक, "सामाजिक भलाई के लिए अभूतपूर्व तकनीक और आंदोलन के इस संयोजन के माध्यम से यूएनएचसीआर शरणार्थियों और उन लोगों की मदद करना जारी रख सकता है जिन्हें घर से भागने के लिए मजबूर किया गया है, जिससे उन्हें अपने जीवन को बदलने, अपने प्रियजनों और समुदायों के लिए बेहतर भविष्य बनाने का अवसर मिलता है."
इसी साल विश्व प्रसिद्ध नीलामी घर 'क्रिस्टी' ने एक पूरी तरह से डिजिटल आर्टपीस को बेचा था. ब्रिटिश नीलामी घर ने पूरी तरह से डिजिटल तस्वीरों के एक कोलाज 'बीपल' को रिकॉर्ड 6.9 करोड़ डॉलर में बेचा था.
एए/सीके (एएफपी)
कर्नाटक में विवादित धर्मांतरण विरोधी विधेयक पर बहस के बीच फिर से राज्य के एक गिरजाघर में तोड़फोड़ हुई है. पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
चिक्कबल्लापुर स्थित जिस चर्च में तोड़फोड़ हुई है वह करीब 160 साल पुराना है. समाचार चैनल एनडीटीवी के मुताबिक 160 साल पुराने सेंट जोसेफ चर्च में सेंट एंथोनी की टूटी हुई मूर्ति मिली है. आगे की जांच के लिए पुलिस मूर्ति अपने साथ ले गई. पुलिस ने इस तोड़फोड़ के मामले में प्राथमिकी भी दर्ज की है.
यह घटना ऐसे वक्त में हुई है जब कुछ ही दिनों पहले दक्षिणपंथी संगठनों के लोगों पर कोलार में ईसाइयों से जुड़ी धार्मिक किताब को जलाने का आरोप लगा था. कर्नाटक में चर्चों के खिलाफ दक्षिणपंथी संगठन जबरन धर्म बदलने का आरोप लगाते रहे हैं.
चर्च के पादरी जोसेफ एंथोनी डेनियल ने मीडिया को बताया कि राज्य की राजधानी बेंगलुरु से करीब 65 किलोमीटर दूर सरायपाल्या में चर्च सुबह करीब साढ़े पांच बजे क्षतिग्रस्त हुआ. पादरी के साथ रहने वाले ने सबसे पहले क्षति देखी और पादरी को मौके पर बुलाया. पादरी ने ही पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.
धर्मांतरण विरोधी बिल पर बवाल
कर्नाटक विधानसभा में गुरुवार को विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी विधेयक चर्चा के लिए रखा गया. गुरुवार सुबह विधानसभा में इस विधेयक को लेकर काफी हंगामा हुआ. विपक्षी दल कांग्रेस इस विधेयक का भारी विरोध कर रही है. पहले यह विधेयक बुधवार शाम विधानसभा को चर्चा के लिए पेश किया जाना था लेकिन इसे एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया.
कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है और वहां की कैबिनेट ने 20 दिसंबर को इस विधेयक को मंजूरी दी थी. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई इस बिल के समर्थन में कह रहे हैं कि धर्मांतरण विरोधी विधेयक राज्य में "लालच के माध्यम से सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को बदलने के प्रयासों" को चुनौती देने के लिए जरूरी था.
कठोर सजा का प्रावधान
धर्मांतरण विरोधी विधेयक में सजा की अवधि तीन साल से बढ़ाकर 10 साल और जुर्माने की रकम 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख और 5 लाख तक करने का प्रावधान है. इस विधेयक में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा और बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी कपटपूर्ण तरीके से एक धर्म से दूसरे धर्म में गैर-कानूनी परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान है. अगर कोई व्यक्ति दूसरा धर्म अपनाना चाहता है तो उसे 30 दिन पहले घोषणापत्र देना होगा.
विधानसभा में चर्चा के दौरान कर्नाटक के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा कि यह कानून गैरकानूनी तरीके से धर्मांतरण को रोकेगा और यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है. वहीं कांग्रेस ने इस विधेयक को अल्पसंख्यक विरोधी बताया है.
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार विधेयक, 2021 या धर्मांतरण विरोधी विधेयक के खिलाफ बुधवार को कम से कम 40 सामाजिक-राजनीतिक संगठनों के सैकड़ों सदस्यों ने राज्य सरकार के खिलाफ बेंगलुरू में एक विरोध मार्च निकाला था. ईसाई धर्म से जुड़े लोग इस विधेयक और हाल के दिनों में चर्चों पर हो रहे हमले को लेकर काफी चिंतित हैं. (dw.com)
रोहतास जिले के पुलिस कप्तान आशीष भारती ने नक्सल प्रभावित इलाकों में अनूठे प्रयास किए हैं. वह युवाओं को शिक्षा की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट-
बिहार का एक जिला है रोहतास, जहां डेढ़ दशक पहले तक नक्सलियों का आतंक था. इसी जिले में कैमूर पहाड़ी पर स्थित नौहट्टा प्रखंड के रेहल गांव में 15 फरवरी 2002 में डीएफओ (जिला वन पदाधिकारी) की नक्सलियों ने नृशंस हत्या कर दी थी. इस जिले के कई इलाके अभी भी नक्सलियों के प्रभाव में हैं.
नक्सली आतंक के कारण ग्रामीण इलाके की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई थी. स्कूल से शिक्षक व छात्र नदारद हो गए, भवन का इस्तेमाल नक्सली रात में ठहरने के लिए करते थे.
सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति से स्थिति बदली, कई इलाकों में नक्सली प्रभाव में कमी आई. बदलते परिवेश में यहां के बच्चों में भी पढ़ने-लिखने की ललक जगी. अब इनके हौसलों को उड़ान देने में साथ दे रहे हैं 2011 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी व रोहतास जिला पुलिस के कप्तान आशीष भारती.
एक बेहतर पहल करते हुए एसपी आशीष भारती ने यहां सबसे पहले अपने दफ्तर में एक पुस्तकालय की स्थापना की. एसपी के दफ्तर में लाइब्रेरी और वह भी उन युवाओं के लिए जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे, आखिर क्यों. इस प्रश्न के जवाब में वह कहते हैं, ‘‘कई बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं या अन्य सेवाओं के लिए कैरेक्टर सर्टिफिकेट बनवाने आते थे. इसकी प्रक्रिया पूरी करने के तहत उन बच्चों का काफी समय बर्बाद होता था. इसे महसूस कर मैंने सोचा कि क्यों न यहां एक लाइब्रेरी खोल दी जाए, जहां अध्ययन कर वे अपने इस समय का सदुपयोग कर सकें.''
अगर छात्रों को जरूरत होती है तो वे किताबें घर भी ले जाते हैं. इसके लिए उन्हें कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है. इसका असर यह हुआ कि कई बच्चे अब तो नियमित रूप से पढ़ने आने लगे. यहां रवीन्द्रनाथ टैगोर व मुंशी प्रेमचंद आदि बड़े लेखकों की साहित्यिक पुस्तकें भी उपलब्ध हैं.
लाइब्रेरी के लिए स्थल चयन के संबंध में वह कहते हैं, ‘‘रोहतास के रेहल व धनसा में 2017 में पुलिस संवाद कक्ष बनाया गया था जो वर्तमान में किसी वजह से उपयोग में नहीं था. हमने उसी में पुस्तकालय खोला है. हमारी योजना जिले में कई जगहों पर लाइब्रेरी खोलने की है. कई लोग इसके लिए कह भी रहे हैं. शिक्षा से ही गरीबी व नक्सलवाद को दूर किया जा सकता है.''
नक्सली व दूरस्थ इलाकों पर जोर
आशीष कहते हैं, ‘‘नक्सल इलाकों में जब ऑपरेशन में हम लोग जाते हैं तो वहां के लोगों द्वारा कई तरह की मदद का अनुरोध किया जाता है, क्योंकि अन्य संसाधनों से ऐसे इलाकों में अपेक्षाकृत कम मदद पहुंच पाती है.''
आशीष मानते हैं कि जहां ऐसे प्रयास होते हैं वहां नक्सल गतिविधियों में कमी आती है, हालांकि यह इकलौता फैक्टर नहीं है. वह बताते हैं, "हम नक्सली इलाकों में मेडिकल कैंप, फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन या फिर युवाओं को रोजगार की व्यवस्था के लिए ड्राइविंग सिखाने जैसा काम भी करते हैं. वैसे रोहतास में नक्सल प्रभाव काफी कम हुआ है, किंतु जो पहाड़ी क्षेत्र हैं या यूपी व झारखंड की सीमा से लगे इलाके हैं, वहां से कभी-कभी नक्सली गतिविधि की सूचना मिलती रहती है.”
गाइडेंस व काउंसिलिंग भी
आशीष प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं को गाइडेंस और काउंसलिंग भी देते हैं. वह कहते हैं, ‘‘अगर हम अपने युवाओं को सही दिशा की ओर ले जाने में कामयाब हो जाते हैं तो उनका भटकाव कदापि नहीं होगा. परीक्षाओं के लिए हम उन्हें गाइड करते हैं, उनकी काउंसलिंग भी करते हैं जिसका भी खासा प्रभाव होता है. कई बच्चे सब इंस्पेक्टर या अन्य परीक्षाओं में सफल भी हुए हैं. जब भागलपुर में मेरी तैनाती थी तो मैं वहां गाइडेंस प्रोग्राम के तहत उन बच्चों को पढ़ाता था जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते थे. वहां खुले मैदान में करीब हजार-बारह सौ बच्चे बैठते थे. पता चला है कि उन बच्चों में से 50-55 बच्चों का सब इंस्पेक्टर के लिए फाइनल सेलेक्शन हुआ है.''
लाइब्रेरी के लिए पुस्तकों की व्यवस्था के संबंध में आशीष कहते हैं कि अभी तक मैं ही पुस्तक उपलब्ध करवाता हूं. वह कहते हैं, "मुझे किताबों का शौक है. मेरी खुशकिस्मती है कि मेरे पास बहुत सारी किताबें हैं. दूसरी, मेरे पिताजी की किताब की दुकान है तो बहुत सारी किताबें हम वहां से ले लेते हैं. खुशी की बात है कि कई लोग अब पुस्तकें भेजने लगे हैं. एक रिटायर्ड आइएएस अधिकारी हैं, उन्होंने इस प्रयास को देखकर अपनी बहुत सारी गणित व विज्ञान की पुरानी-पुरानी किताबों को लाइ्ब्रेरी के लिए दिया.”
आशीष स्पष्ट करते हैं कि किसी से कोई वित्तीय सहायता अब तक न तो ली है और न ही आगे ली जाएगी.' हां, कोई पुस्तक देना चाहें तो वे दे सकते हैं. पुस्तकालय के संचालन की व्यवस्था पर आशीष कहते हैं, ‘‘हम लोगों ने इसके लिए एक कमेटी बना दी है. रेहल व धनसा में लाइब्रेरी जिस स्कूल के पास है, वहां के एक शिक्षक, एक स्थानीय युवक और जिस थाना में वह इलाका आता है, वहां के एसएचओ इसे मैनेज करेंगे.''
एक रोहतास थाना में हैं और दूसरा नौहट्टा थाना में आता है. यहां रोहतास में एसपी दफ्तर में जो पुस्तकालय है, उसका संचालन पुलिस लाइन के पदाधिकारी करते हैं. आशीष इससे पहले मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित धरहरा में भी थाने में लाइब्रेरी की स्थापना कर चुके हैं. उनके आने के बाद आज भी वहां एसएचओ की देखरेख में लाइब्रेरी चल रही है.
डिजीटल युग में लाइब्रेरी कितनी प्रासंगिक
आशीष भारती कहते हैं, ‘‘लाइब्रेरी का अपना एक महत्व है और यह बरकरार रहेगा. मोबाइल, टैबलेट पर पढ़ने में डिस्ट्रैक्शन बहुत होता है. लेकिन किताबों को आप बिना अवरोध के पढ़ते हैं. मेरा मानना है कि बेसिक बुक से आप कॉन्सेप्ट क्लियर करें और वैल्यू एडिशन के लिए डिजिटल माध्यम का उपयोग करें तो आपको ज्यादा फायदा होगा, दोनों का समावेश जब तक नहीं होगा तब तक ऑप्टिमम रिजल्ट नहीं मिलेगा.”
एसपी ऑफिस में बनाई गई लाइब्रेरी में पढ़ने वाले कुब्बा गांव निवासी गुलेशर अंसारी कहते हैं, ‘‘परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण बाहर जाकर परीक्षा की तैयारी करना हमारे लिए संभव नहीं है. अगर हमें हमारे गांव में ही सुविधा मिल जाए तो हम अपनी योग्यता अवश्य साबित कर देंगे.''
पत्रकार रितेश कुमार कहते हैं, ‘‘यहां के बच्चे भी उतने ही योग्य हैं. तभी तो पिछले साल नक्सल प्रभावित दूरवर्ती पहाड़ी इलाके तेलकप की रहने वाली रसूलपुर उच्च विद्यालय की छात्रा प्रिया कुमारी ने मैट्रिक परीक्षा के टॉप टेन में अपनी जगह बनाई थी. वह अफसर बनना चाहती है. ऐसे बच्चों के लिए एसपी साहब का यह प्रयास तो वरदान ही साबित होगा.''
यह पूछने पर कि आपके स्थानांतरण के बाद इस प्रोजेक्ट का क्या होगा, आशीष भारती कहते हैं कि यह तो आने वाले व्यक्ति पर निर्भर करेगा. वह बताते हैं, "भागलपुर में जो हमारे पूर्ववर्ती थे, उन्होंने गाइडेंस का प्रोग्राम शुरू किया था. हमने इसे बढ़ाया और इसका बेहतर परिणाम सामने आया. अगर आपके थोड़े प्रयास से कई लोगों को फायदा पहुंचता है और उसकी उपयोगिता है तो उस प्रयास को जारी रखना चाहिए. लेकिन यह भी सच है कि ऐसे प्रयास प्राय: ऑफिसर ड्रिवेन ही होते हैं.'' (dw.com)
भारत के सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला देश की हजारों यौनकर्मियों के लिए मुस्कुराहट लेकर आया है. इस फैसले के चलते वे लोग ना सिर्फ वोट दे सकेंगी बल्कि उन्हें सरकारी मदद भी मिल पाएगी.
मानव तस्करी की शिकार के संध्या करीब पांच साल पहले इस पेशे में धकेल दी गईं. 28 साल की संध्या दो बच्चों की मां हैं और पेशा छोड़कर कोई और काम खोजने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन पहचान पत्र ना होने के कारण उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है. वह बताती हैं, "मजदूरी ही मिल पाती है. लॉकडाउन में तो हमें बहुत मुश्किल हुई. मदद भी नहीं मिल पाई. अगर पहचान पत्र मिल जाएगा तो हमारी मुश्किल थोड़ी तो कम होगी.”
सुप्रीम कोर्ट का पिछले हफ्ते आया एक फैसला संध्या जैसी लाखों महिलाओं की जिंदगी बदल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि पंजीकृत यौनकर्मियों को राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ट जारी किए जाएं और उनका आधार पंजीकरण भी किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक डॉक्टर समरजीत जना की याचिका पर आया है, जिनकी इसी साल मई में कोविड के कारण मौत हो गई थी. इस याचिका की वकील तृप्ति टंडन कहती हैं, "सालों से यौनकर्मियों को सरकारों की तरफ से पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता रहा है. यह आदेश उन्हें अपने फैसले लेने की सुविधा दे पाएगा.”
सही संख्या का नहीं पता
अधिकारियों का अनुमान है कि भारत में लगभग 10 लाख यौनकर्मी हैं. उनमें से ज्यादातर अब तक वोट नहीं डाल सकतीं. उनके पास बैंक खाते नहीं हैं और सरकार खाने पर जो सब्सिडी देती हैं, उन्हें मिल ही नहीं पाती क्योंकि उनके पास सही दस्तावेज नहीं हैं.
लेकिन यह संख्या और ज्यादा हो सकती है. इस क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि देश की आधी से ज्यादा यौनकर्मी, जो बेहद गरीब पृष्ठभूमि से हैं, अब तक रजिस्टर्ड नहीं हैं और सरकारी आंकड़ों में शामिल ही नहीं हैं.
इसी कारण आंध्र प्रदेश में कुछ संस्थाओं ने राज्य सरकार से यौनकर्मियों की दोबारा गणना का अनुरोध किया है. आंध्र प्रदेश में काम करने वाली संस्था हेल्प (HELP) के संस्थापक राममोहन नीमाराजू कहते हैं, "आधिकारिक दस्तावेजों में लगभग एक लाख यौनकर्मी हैं जबकि राज्य में दो लाख से ज्यादा यौनकर्मी हैं. इसीलिए हमने दोबारा गणना का अनुरोध किया है.”
सुप्रीम कोर्ट के पिछले हफ्ते आए फैसले के कारण यह गणना और अहम हो जाती है. नीमाराजू कहते हैं, "राशन कार्ड मिल जाने से उन्हें दो रुपये किलो चावल मिल सकेगा. वे जमीन खरीद सकेंगी और अगर उनके बच्चे होते हैं तो स्कूल में बिना परेशानी दाखिला दिला सकेंगी. इसके फायदों का कोई अंत नहीं है.”
भारत में यौनकर्म वैध है. लेकिन ज्यादातर यौनकर्मी गरीब हैं और उनका हर तरह से शोषण होता है. ज्यादातर मामलों में परिवार उन्हें त्याग देता है और उनके पास कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं होता जिसके जरिए वे पहचान पत्र के लिए आवेदन कर सकें. वे आमतौर पर जगह बदलती रहती हैं या अवैध ठिकानों पर रहती हैं जहां से घर के पते का कोई प्रमाण पत्र बनवाना भी असंभव हो जाता है.
कोविड की मार
2019 में कोविड-19 महामारी के प्रकोप का दुनियाभर की यौनकर्मियों पर बुरा असर हुआ. उनकी आय के साधन रातोरात खत्म हो गए. बहुत सी यौनकर्मियों को वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार बताकर मारा-पीटा भी गया.
महामारी के दौरान भारत में असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सरकार की तरफ से नकद और खाद्य सामग्री की मदद की योजना चलाई गई थी. लेकिन अधिकतर यौनकर्मी इस मदद से महरूम रहीं क्योंकि उनके पास पहचान पत्र या कोई अन्य आधिकारिक दस्तावेज नहीं था.
सरकारी संस्था नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेन (NACO) यौनकर्मियों की स्वास्थ्य जांच करती है और उन्हें मुफ्त कंडोम मुहैया कराती है. लेकिन ये सुविधाएं भी रजिस्टर्ड यौनकर्मियों को ही मिल पाती हैं. संस्था का कहना है कि यौनकर्मियों की सटीक गणना की कोशिश की जा रही है.
नाको की उप महानिदेशक शोबीनी राजन कहती हैं, "हमारे पास लगभग दस लाख यौनकर्मी पंजीकृत हैं. मैं ये तो नहीं कह सकती कि और यौनकर्मी हैं ही नहीं लेकिन हम इनके साथ शुरुआत कर सकते हैं.” राजन कहती हैं कि नाको ने पिछले एक साल में करीब पांच लाख ऐसी यौनकर्मियों को खाना उपलब्ध करवाया है जिनके पास पहचान पत्र नहीं थे.
अधिकारी कहते हैं कि अब इन यौनकर्मियों का भी पंजीकरण हो गया है और उन्हें सरकारी मदद नियमित रूप से मिल रही है. राजन बताती हैं, "हमने अपनी सभी राज्य इकाइयों को निर्देश दिया कि स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम करें ताकि सभी यौनकर्मियों की सही पहचान हो सके.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
कंपाला, 22 दिसम्बर | हाल ही में पड़ोसी तंजानिया में क्षेत्रीय विधानसभाओं के खेलों में भाग लेने वाले लगभग 50 विधायकों और कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। ये जानकारी युगांडा के संसदीय प्रवक्ता ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, क्रिस ओबोर ने मंगलवार को एक ट्वीट में कहा कि विधायक तंजानिया के अरुशा शहर में आयोजित पूर्वी अफ्रीकी समुदाय विधानसभाओं के खेलों से लौट रहे थे।
ओबोर ने कहा, "उनका प्रबंधन स्वास्थ्य मंत्रालय और संसद की स्वास्थ्य टीम द्वारा किया जा रहा है। अस्पताल में भर्ती होने का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है। अरुशा गए अधिकांश लोग सुरक्षित हैं।"
स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनता से कोरोना से बचाव के उपायों का पालन जारी रखने का आग्रह करते हुए चेतावनी दी है कि संक्रमण दर बढ़ रही है।
मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि 18 दिसंबर को किए गए कोरोना टेस्ट के परिणामों ने 357 नए मामलों की पुष्टि की। मार्च 2020 में देश में महामारी फैलने के बाद से पुष्टि मामलों की संख्या बढ़कर 129,676 हो गई है।
सरकार लोगों की सुरक्षा के लिए कोरोना टीकाकरण को बढ़ा रही है। मार्च में टीकाकरण शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 1 करोड़ टीकों की खुराक दी जा चुकी है। (आईएएनएस)
कहीं ओमिक्रॉन भारत में कोविड की तीसरी लहर ना ले आए, इन चिंताओं के बावजूद अधिकतर राज्यों में जांच कम ही की जा रही है. ऐसे में अगर तीसरी लहर आ भी जाए तो हालात का सही अंदाजा नहीं लग पाएगा.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
ओमिक्रॉन को लेकर देश में स्थिति अब इतनी चिंताजनक हो गई है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को कमर कस लेने की हिदायत दी है. राज्यों को भेजे ताजा पत्र में केंद्र ने कहा है कि ओमिक्रॉन डेल्टा से तीन गुना ज्यादा संक्रामक है और इसके प्रसार को रोकने के लिए अब "वॉर रूम" की स्थापना की जरूरत है.
केंद्र ने कहा है कि सभी राज्यों को रोकथाम के सभी आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है और जरूरत पड़े तो राज्य सरकारें कर्फ्यू भी लगा सकती हैं. देश में ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. अभी तक पूरे देश में कुल 213 मामले सामने आ चुके हैं.
दिल्ली में फैलता ओमिक्रॉन
दिल्ली में सबसे ज्यादा 57 मामले, महाराष्ट्र में 54, तेलांगना में 24, कर्नाटक में 19, राजस्थान में 18, केरल में 15 और गुजरात में 14 मामले सामने आ चुके हैं. इनके अलावा जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी मामलों की पुष्टि हुई है.
इसके बावजूद लगभग सभी राज्यों में रोजाना की जाने वाली जांच की संख्या को स्थिति की गंभीरता के हिसाब से बढ़ाया नहीं जा रहा है. दिल्ली में रोजाना सामने आने वाले संक्रमण के मामले छह महीनों में सबसे ऊंचे स्तर पर हैं, लेकिन जांच की रफ्तार अभी भी धीमी है.
दिल्ली में पिछले एक हफ्ते में रोजाना सिर्फ 45,000 से 67,000 सैंपलों की जांच की जा रही है, जिनमें से करीब 100 सैंपल पॉजिटिव पाए जा रहे हैं. जांच की यह संख्या भी बीच बीच में गिर जाती है, जबकि पॉजिटिविटी दर लगातार बढ़ती ही जा रही है. दूसरे राज्यों और विशेष रूप से बड़े राज्यों को देखें तो यह स्थिति और भी चिंताजनक नजर आती है.
करीब 20 करोड़ की आबादी के साथ उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है लेकिन आज कल रोजाना लगभग 1,50,000 मामलों की जांच की जा रही है. यानी आबादी दिल्ली से करीब दस गुना ज्यादा लेकिन जांच दिल्ली से सिर्फ लगभग तीन गुना ज्यादा. इसका नतीजा यह है कि पूरे राज्य में रोजाना संक्रमण के सिर्फ 15-20 मामले सामने आ रहे हैं.
बड़े राज्यों की बड़ी समस्या
मध्य प्रदेश की हालत इससे भी ज्यादा खराब है. राज्य की आबादी करीब सात करोड़ है लेकिन रोजाना 60,000 से भी कम सैंपलों की जांच की जा रही है. यानी अक्सर दिल्ली से भी कम. यहां भी रोजाना संक्रमण के 15-20 मामले ही पकड़ में आ रहे हैं.
राजस्थान की भी आबादी लगभग सात करोड़ ही है लेकिन वहां स्थिति और ज्यादा खराब है. अव्वल तो राज्य सरकार जांच की संख्या के आंकड़े सहज रूप से उपलब्ध ही नहीं कराती.
कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि वहां रोजाना सिर्फ 30,000 के आस पास सैंपलों की जांच की जा रही है. संक्रमण के मामले फिर भी बढ़ रहे हैं. ताजा आंकड़ा एक दिन में 32 पॉजिटिव मामलों का है.
महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में 825 नए मामले सामने आए हैं, जो कि बीते कुछ महीनों में एक नया रिकॉर्ड है. 11 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले इस राज्य में पिछले 24 घंटों में 1,11,385 सैंपलों की जांच की गई.
अगर संक्रमण के कुल मामले ही कम पकड़े जाएंगे तो उनमें से विशेष रूप से ओमिक्रॉन के मामलों की संख्या और भी काम पाए जाने की संभावना है. अप्रैल-मई में महामारी की दूसरी लहर के बीच लगभग इन सभी राज्यों को जांच की रफ्तार मजबूरन बढ़ानी पड़ी थी. कई जानकार कह रहे हैं कि जांचों की संख्या बढ़ाने का समय फिर से आ गया है. (dw.com)
दशकों पहले राकेश और रश्मि वर्मा भारत की गली-गली नापते घूम रहे थे. ये गूगल मैप आने से भी पहले की बात है. तब वर्मा दंपती भारत के तमाम बड़े शहरों के नक्शे तैयार करने के लिए पैदल हर कोने पर गए थे.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
दशकों पहले की यह मेहनत मंगलवार को चोखा रंग लेकर आई. राकेश और रश्मि वर्मा की कंपनी मैपमाईइंडिया के आईपीओ के बाद शेयर बाजार में उनकी स्टार्टअप कंपनी ने धांसू शुरुआत की है. मंगलवार को कंपनी का शेयर 35 प्रतिशत बढ़कर 1393.65 रुपये पर बंद हुआ. इसके साथ ही वर्मा दंपती की संपत्ति 44 अरब रुपये को पार कर गई.
मैपमाईइंडिया भारत के डिजिटल नक्शे और भौगोलिक डेटा बेचती है. सीई इन्फोसिस्टम के मूल नाम वाली कंपनी ने इसी महीने की शुरुआत में अपना आईपीओ लॉन्च किया था जिसे 150 गुना ज्यादा बुकिंग मिली थी. एप्पल और अमेजॉन जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने भी इस कंपनी के सॉफ्टवेयर खरीदे हैं.
आईपीओ के बाद कंपनी का 54 प्रतिशत मालिकाना हक राकेश और रश्मि वर्मा के पास है. अपने घर से शुरू किया उनका यह स्टार्अप इतना सफल रहेगा इसका यकीन राकेश वर्मा को भी नहीं था. लेकिन उन्हें अपने उस कदम पर यकीन था जो उन्होंने दशकों पहले उठाया था.
ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में राकेश वर्मा ने कहा, ”जब हमने शुरुआत की थी तब तो मैपिंग डाटा को कोई समझता ही नहीं था. अब 25 साल बाद इसके बिना कोई बिजनेस, उद्योग, सरकारी कंपनियां या मंत्रालय तक चलते नहीं हैं.”
सपने की ओर कदम
राकेश वर्मा 71 साल के हो गए हैं. उनकी पत्नी रश्मि अब 65 की हैं. दोनों ने 1990 के मध्य में अपना बिजनेस शुरू किया था. जब भारत में आम जनता को इंटरनेट उपलब्ध नहीं था. और नई स्टार्टअप कंपनियों के लिए ना सरकारी सुविधाएं थीं, ना बेंगलुरू या गुरुग्राम जैसे तकनीकी केंद्र.
लेकिन वर्मा दंपती के पास एक सोच थी. वह भविष्य को देख पा रहे थे. इसलिए वह संघर्ष से भागे नहीं. साथ ही उनके पास दशकों तक विदेशों के बेहतरीन संस्थानों में कमाया ज्ञान भी था. 1970 के दशक में भारत से इंजीनियरिंग करने के बाद दोनों अमेरिका चले गए थे.
अमेरिका में दोनों ने पहले डिग्रियां हासिल कीं और फिर बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम किया. राकेश वर्मा जनरल मोटर्स में बड़े अधिकारी रहे जबकि रश्मि ने आईबीएम में कंप्यूटर डेटाबेस बनाए. और फिर भारत लौटकर उन्होंने अपने सपने को मूर्त रूप देना शुरू किया.
छोटी शुरुआत
वे बताते हैं कि मैपमाईइंडिया के शुरुआती साल तो किसी बुरे सपने जैसे थे. तकनीक बहुत कमजोर थी और हाथ का काम बहुत ज्यादा था. फिर धीरे-धीरे तकनीकी विकास हुआ तो उनका काम भी बढ़ा. सालभर के भीतर ही उन्हें कोकाकोला ने अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स को मैप करने का काम दिया. फिर मोटोरोला, इरिकसन, एबी और क्वॉलकम जैसे नाम जुड़ते गए. 2004 में राकेश और रश्मि वर्मा ने भारत का पहला इंटरेक्टिव मैप प्लैटफॉर्म शुरू किया था.
इस साल भारत सरकार ने नियम बदल दिए तो विदेशी कंपनियों के लिए यह अनिवार्य हो गया कि वे भारतीय कंपनियों से ही डेटा खरीद सकती हैं. इस फैसले ने मैपमाईइंडिया की किस्मत बदल दी. वर्मा कहते हैं कि जीपीएस नेवीगेशन के 95 प्रतिशत भारतीय बाजार पर उनका कब्जा है.
अब शेयर बाजार से पैसा उगाहने के बाद मैपमाईइंडिया अंतरराष्ट्रीय होने की ओर बढ़ना चाहती है. वे दो सौ से ज्यादा देशों के नक्शे अपने प्लैटफॉर्म पर लाना चाहते हैं. (dw.com)
उत्तर प्रदेश में सरकारी ने सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से रोक लगा दी है और चेतावनी दी है कि यदि इसका उल्लंघन किया गया तो आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम यानी एस्मा (ESMA) के तहत कार्रवाई की जएगी.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
राज्य के अपर मुख्य सचिव कार्मिक डॉक्टर देवेश चतुर्वेदी ने इस बारे में अधिसूचना जारी कर दी है कि यूपी में अब हड़ताल अवैध है. इसके मुताबिक, उत्तर प्रदेश में किसी भी लोक सेवा, निगमों और स्थानीय प्राधिकरणों में हड़ताल पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. इसके बाद भी हड़ताल करने वालों के खिलाफ विधिक व्यवस्था के तहत कार्रवाई की जाएगी.
राज्य में पहले भी कोविड संक्रमण की वजह से एस्मा एक्ट लगाया जा चुका है. पिछले साल 25 नवंबर को छह महीने के लिए राज्य सरकार ने यह आदेश जारी किया था और इस दौरान राज्य में किसी भी तरह की हड़ताल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. उसके बाद इसी साल मई में इसे अगले छह महीने के लिए फिर बढ़ा दिया गया था और अब एक बार फिर इसकी अवधि छह महीने के लिए बढ़ा दी गई है.
बार-बार बढ़ रहा है एस्मा
एस्मा को साल 1968 में लागू किया गया था जिसके तहत केंद्र सरकार अथवा किसी भी राज्य सरकार द्वारा यह कानून अधिकतम छह महीने के लिए लगाया जा सकता है. कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी कर्मचारी को बिना वॉरंट गिरफ्तार किया जा सकता है. एस्मा लागू करने से पहले कर्मचारियों को समाचार पत्रों तथा अन्य माध्यमों से इसके बारे में सूचित किया जाता है.
उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं और कई कर्मचारी संगठन अपनी विभिन्न मांगों को लेकर धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकारी कर्मचारियों के अलावा छात्रों और समाज के अन्य वर्गों के लोग भी अपनी मांगों को लेकर आए दिन प्रदर्शन करते रहते हैं. लखनऊ में 69,000 हजार शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थी पिछले कई दिनों से डेरा जमाए हुए हैं. चूंकि इन्हें तो प्रदर्शन करने से रोका नहीं जा सकता, सरकार ने एस्मा लगाकर सरकारी कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन पर लगाम लगाने की कोशिश की है.
दो दिन पहले निजीकरण के विरोध में बैंक कर्मियों की देशव्यापी हड़ताल से लोगों को काफी परेशानियां उठानी पड़ी थीं. राज्य कर्मचारी भी यदि हड़ताल पर चले गए या फिर कार्य बहिष्कार कर दिया तो जनता को परेशानी होगी और इसका सीधा नुकसान चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को उठाना पड़ेगा. इस स्थिति को टालने के लिए सरकार ने एस्मा लगाने की अधिसूचना जारी कर दी, जबकि एस्मा जैसा कानून हमेशा नहीं बल्कि विशेष परिस्थितियों में ही लगाया जाता है.
बोलने की आजादी पर हमला
कई कर्मचारी संगठनों ने सरकार के इस फैसले की आलोचना भी की है. उत्तर प्रदेश के चतुर्थ श्रेणी राज्य कर्मचारी महासंघ ने घोषणा की है कि वो सरकार के इस फैसले के खिलाफ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे.
संघ के प्रदेश महामंत्री सुरेश यादव कहते हैं, "सरकार ने राज्य कर्मचारी संगठनों पर तीन बार एस्मा लगाया. सरकार कर्मचारियों की बात न सुनकर हड़ताल के माध्यम से बात रखने पर भी रोक लगा दी है, जो किसी भी हालत में ठीक नहीं है. हजारों की संख्या में पद खाली पड़े हैं लेकिन भर्ती नहीं हो रही है. बार-बार एस्मा लगाकर सरकार बोलने की आजादी पर प्रतिबंध लगा रही है."
उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के शिक्षक और हजारों की संख्या में सरकारी कर्मचारी नई पेंशन योजना के विरोध और पुरानी पेंशन बहाली के लिए लड़ रहे हैं. उनकी मांग है कि केंद्र सरकार की नई पेंशन योजना को वापस लिया जाए और पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जाए.
विभिन्न विभागों के कर्मचारी अलग-अलग इसके खिलाफ कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं और उन्होंने चेतावनी दी थी कि अब सभी कर्मचारी संगठन एक बैनर के तले पुरानी पेंशन बहाली को लेकर आंदोलन चलाएंगे. लेकिन एक बार फिर एस्मा की अवधि बढ़ा देने के बाद अब इन संगठनों की योजनाओं पर पानी फिर गया है.
एक दिसंबर को लखनऊ के ईको गार्डन में इस मांग को लेकर हजारों कर्मचारी इकट्ठा हुए थे और उन्होंने सरकार को चेतावनी दी थी. चुनाव से पहले बड़े आंदोलन की आशंकाओं के चलते ही सरकार ने एस्मा लगा दिया ताकि कर्मचारी संगठन एक होकर कोई आंदोलन न करने पाएं.
इसके अलावा, कई अन्य विभागों में भी कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने की तैयारी में थे. कुछ जगहों पर छिट-पुट आंदोलन चल भी रहे थे. कर्मचारी संगठनों को उम्मीद थी कि चुनाव से पहले सरकार के सामने अपनी मांगों को उठाएंगे तो शायद कुछ हद तक उनका समाधान निकल जाए लेकिन सरकार ने तो मांगें उठाने पर ही प्रतिबंध लगा दिया है.
लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के कर्मचारियों ने भी पिछले हफ्ते हड़ताल शुरू कर दी थी. इनकी मांग थी कि इन्हें पीजीआई के कर्मचारियों के बराबर वेतन और सुविधाएं मिलें. अस्पताल में ओपीडी से लेकर ऑपरेशन तक कई सेवाएं बाधित रहीं और लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा. हालांकि, बातचीत के बाद आंदोलन स्थगित हो गया लेकिन मांगें पूरी न होने पर कर्मचारियों ने दोबारा आंदोलन की चेतावनी दी थी.
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि कोविड को देखते हुए मई में या उससे पहले भी किसी संगठन ने हड़ताल करने की कोई योजना नहीं बनाई थी लेकिन फिर भी एस्मा लगा दिया गया. अब चुनाव के वक्त इसकी अवधि फिर से बढ़ाने के बाद कर्मचारी संगठनों में इसे लेकर काफी नाराजगी है. (dw.com)
केरल के एक शख्स ने वैक्सीन प्रमाणपत्र पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर छपी होने के खिलाफ याचिका डाली थी. मगर केरल हाई कोर्ट ने इसे राजनीति से प्रेरित बताते हुए शिकायतकर्ता पर ही 1 लाख का जुर्माना लगा दिया.
केरल के रहने वाले पीटर मयालीपारामपिल को सर्टिफिकेट पर मोदी की तस्वीर होने से आपत्ति थी. पीटर ने इसके खिलाफ केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में पीटर ने कहा कि उन्होंने अपनी वैक्सीन के लिए खुद पैसे खर्च किए हैं और उनके वैक्सीन सर्टिफिकेट पर मोदी की तस्वीर की कोई "उपयोगिता या प्रासंगिकता" नहीं है. याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को देश के कोविड टीकाकरण अभियान का चेहरा बनाकर अपना विज्ञापन कर रहे हैं.
दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी कोविड वैक्सीन लगवाने वालों को सर्टिफिकेट जारी किया जाता है. इसमें जानकारी दी जाती है कि व्यक्ति ने कब, कहां, किससे और कौन सी वैक्सीन लगवाई है. भारत में जारी होने वाले सर्टिफिकेट के आखिर में एक क्यूआर कोड और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी होती है.
इससे पहले भारत में विपक्षी दल भी मोदी की तस्वीर को वैक्सीन सर्टिफिकेट पर छापने के खिलाफ रोष जता चुके हैं. उनकी मांग रही है अगर वैक्सीन सर्टिफिकेट पर मोदी की तस्वीर लगाई गई है तो कोविड से हुई मौतों के मामलों में मृत्यु प्रमाणपत्र में भी मोदी की फोटो छपनी चाहिए. सरकार का तर्क इस मामले में कुछ अलग है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की राज्यमंत्री भारती पवार ने 10 अगस्त 2020 को राज्य सभा में कहा था कि मोदी की तस्वीर लगाने से जागरुकता बढ़ेगी.
भारत में कोविड के मामलों में फिलहाल कमी देखी जा रही है. सरकार के मुताबिक, भारत में 1 अरब से ज्यादा कोविड वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी हैं. 1 अरब डोज का लक्ष्य पूरा होने पर प्रधानमंत्री मोदी को बधाई देते कई बिलबोर्ड देशभर में लगाए गए हैं. भारत में अब तक आधिकारिक तौर पर कोरोना से 4 लाख 77 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. दुनिया भर में भारत से ज्यादा मौतें सिर्फ अमेरिका और ब्राजील में हुई हैं.
आरएस, एसएम/आरपी (एएफपी)
1 लाख का जुर्माना
कोर्ट को पीटर के तर्क पसंद नहीं आए और याचिका खारिज कर दी गई. केरल हाई कोर्ट ने कहा, यह याचिका राजनीति से प्रेरित लगती है. मामला यही खत्म नहीं हुआ. जज ने याचिका को समय की बर्बादी बताते हुए पीटर पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने आगे कहा, "अगर याचिकाकर्ता अपने प्रधानमंत्री की तस्वीर देखकर शर्मिंदा होता है तो वह वैक्सीन सर्टिफिकेट के निचले हिस्से से नजरें फेर सकता है." पीटर मयालीपारामपिल के वकील ने न्यूज एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा है कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे.
केरल के एक ही जिले में 12 घंटों के अंदर एसडीपीआई और बीजेपी के दो नेताओं की हत्या कर दी गई. हत्याओं के बाद पूरे जिले में तनाव के बीच धारा 144 लगा दी गई है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
सबसे पहले शनिवार शाम को एसडीपीआई नेता केएस शान की सड़क पर हत्या की गई. 38 वर्षीय शान अपने घर जा रहे थे तभी रास्ते में एक गाड़ी ने उनकी मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी. फिर उसी गाड़ी में से चार लोग उतरे, शान पर चाकू से कई बार वार किया और उसी गाड़ी में सवार होकर वहां से भाग गए.
शान ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया. अगली सुबह कुछ लोगों ने राज्य में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के सचिव रंजीत श्रीनिवासन के घर में घुस कर उनकी मां, उनकी पत्नी और उनकी बेटी के सामने उनकी हत्या कर दी.
आरोप और प्रत्यारोप
पुलिस दोनों हत्याओं की जांच कर रही है लेकिन अभी तक विस्तृत जानकारी जारी नहीं की है. करीब 50 लोगों को हिरासत में ले लिया गया है, जिनमें से अधिकांश बीजेपी, आरएसएस और एसडीपीआई के कार्यकर्ता हैं.
आलपुर्रा जिले में इस समय धारा 144 लागू है. केरल में बीजेपी के अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने सीधे सीधे श्रीनिवासन की हत्या का आरोप पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर लगाया. एसडीपीआई पीएफआई का ही राजनीतिक संगठन है.
साथ ही सुरेंद्रन ने शान की हत्या के पीछे आरएसएस और बीजेपी की कोई भी भूमिका होने से इनकार किया है. एसडीपीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष एमके फैजी ने शान की हत्या का आरोप आरएसएस पर लगाया है.
कौन है जिम्मेदार
केरल में इस तरह की राजनीतिक हत्याओं का एक लंबा इतिहास है. एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 15 सालों में राज्य में 125 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं, जिनमें लगभग बराबर की संख्या में आरएसएस और सीपीएम के कार्यकर्ता मारे गए हैं.
आज तक इन हत्याओं की संस्थागत रूप से ना जांच हो पाई है और ना किसी को सजा दी गई है. 2009 में एसडीपीआई की स्थापना के बाद इस पार्टी के कार्यकर्ता भी इस हिंसा की जद में आने लगे. बाद में उन पर भी इस हिंसा में शामिल होने के आरोप लगने लगे.
2014 में केरल सरकार ने केरल हाई कोर्ट को एक हलफनामे में बताया था कि पीएफआई और उससे जुड़े एक और संगठन एनडीएफ के कार्यकर्ताओं को 27 हत्याओं, 86 हत्या की कोशिश के मामलों और सांप्रदायिक हिंसा के 106 दूसरे मामलों में शामिल पाया गया. (dw.com)
रूस की सरकार एक नया कानून लाने जा रही है जिसने वहां रहने वाले विदेशियों को परेशान कर दिया है. कई संगठनों ने सरकार से इस कानून पर पुनर्विचार की मांग की है.
डॉयचे वैले पर सर्गेई गुशा की रिपोर्ट-
रूस में एक कानून में संशोधन किया जा रहा है जिसके तहत विदेशियों की हर तीन महीने में स्वास्थ्य जांच की जाएगी. यह जांच संक्रामक रोगों जैसे सिफलिस, एचआईवी, लेप्रोसी, टीबी और कोविड-19 जैसी बीमारियों के लिए की जाएगी.
कानून के मुताबिक देश में रहने वाले सभी विदेशियों और उनके परिजनों को यह जांच करानी होगी. उन्हें नशीली दवाओं के लिए भी जांच करानी होगी और अपनी उंगलियों के निशान व बायोमीट्रिक फोटो भी अधिकारियों को देने होंगे.
बच्चों की भी होगी जांच
नए नियम 6 वर्ष से ऊपर के बच्चों पर भी लागू होंगे. उन्हें भी यौन रोग सिफलिस और नशीली दवाओं के लिए जांच करानी होगी. अगर किसी को पॉजीटिव पाया जाता है तो उसका वीजा रद्द कर दिया जाएगा और उन्हें देश छोड़ने का आदेश दिया जाएगा. इसके अलावा जो लोग 90 दिन से ज्यादा रूस में रहना चाहते हैं उन्हें अब वीजा आवेदन के साथ एचआईवी निगेटिव होने का सबूत भी देना होगा.
रूस की सरकार ने यह नहीं बताया है कि इन नये नियमों का मकसद क्या है लेकिन कानून के प्रस्तावित मसौदे के साथ संलग्न पत्र में कहा गया है कि देश में बेलारूस, किरगिस्तान, मोल्डोवा और उज्बेकिस्तान के 25 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं जिनकी कभी कभार ही स्वास्थ्य जांच की जाती है.
इस पत्र कहा गया है कि रूस में घुसकर खतरनाक संक्रामक रोगों को फैलाए जाने का खतरा है. लेकिन बेलारूस के लोगों को इस कानून से बाहर रखा गया है जो शायद इस वजह से हो सकता है बेलारूस और रूस एक संघ हैं. बेलारूस के नागरिकों को रूस जाने के लिए वीजा नहीं लेना पड़ता. और यदि वे वहां काम करना चाहते हैं तो उनके लिए नियम अन्य लोगों के मुकाबले आसान हैं.
नए नियमों पर आपत्ति
कई अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठनों ने इन नियमों पर आपत्ति जताई है. जर्मन-रशियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (एएचके रशिया) के थॉर्स्टन गुटमान कहते हैं कि वह महीनों से इन नए नियमों को लागू ना किए जाने के लिए कोशिश कर रहे हैं लेकिन कामयाब नहीं हो पाए हैं.
गुटमान ने डॉयचे वेले को बताया, "शुरू में तो नियम यह बनाया जाने वाला था कि विदेशी जब भी रूस में प्रवेश करेंगे उन्हें ये जांच करानी होंगी. अब यह हर तीन महीने पर कराए जाने की बात कही जा रही है.”
जांच कैसे होगी इस पर फैसला रूसी अधिकारी करेंगे. मॉस्को में रहने वाले विदेशियों को जांच कराने के लिए जखारोवो स्थित माइग्रेशन सेंटर जाना होगा जो 60 किलोमीटर दूर है. रूस में काम करने वाले एक जर्मन नागरिक ने बताया कि ये नियम उसे नामंजूर हैं. इस व्यक्ति ने कहा, "अगर मुझे हर तीसरे महीने अपने फेफड़ों का एक्सरे कराना होगा तो मैं जर्मनी में ही कोई नौकरी खोज लूंगा. मेरे ख्याल से बहुत से लोग ऐसा ही महसूस करते हैं.”
कम से कम दस अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने एक अपील जारी कर इन नियमों का वापस लेने की मांग की है. इसके अलावा अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने रूस की सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि इस कानून के गंभीर नतीजे हो सकते हैं. (dw.com)
पंजाब में दो दिन में दो लोगों की भीड़ द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद राज्य में तनाव है और लोगों को किसी बड़ी साजिश का डर सता रहा है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
पंजाब में दो जगहों पर एक जैसी घटना हुई. पहले अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एक व्यक्ति को गुरुग्रंथ साहिब को अपवित्र करने के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला गया. उसके बाद कपूरथला जिले के एक गांव में वैसा ही मामला हुआ.
विभिन्न राजनीतिक दलों ने गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की तो निंदा की है लेकिन भीड़ द्वारा हत्याओं पर बहुत कम प्रतिक्रिया आई है. पंजाब में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने हैं और सभी दल बहुत संभलकर बोल रहे हैं.
जब भारतीय जनता पार्टी के राज्य प्रमुख अश्वनी शर्मा से इस संबंध में मीडियाकर्मियों ने प्रतिक्रिया चाही तो उन्होंने कहा, "मुझे पूरे मामले का पता नहीं है. मुझे पहले सारे तथ्यों को जान लेने दीजिए, फिर मैं बयान जारी करूंगा.”
गुरुद्वारों में क्या हुआ?
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में शनिवार शाम एक व्यक्ति को वहां मौजूद लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला. मीडिया में आ रही जानकारी के मुताबिक इस व्यक्ति ने प्रार्थना के दौरान गुरु ग्रंथ साहिब को अपवित्र करने की कोशिश की. कुछ चश्मदीदों ने कहा कि उस युवक ने रेलिंग फांद कर गुरु ग्रंथ साहिब के पास रखी तलवार उठा ली थी.
वीडियो में देखा जा सकता है कि उस युवक को रोकने के लिए कई लोग दौड़ रहे हैं. पुलिस ने एनडीटीवी को बताया कि वह 20-25 साल का युवक था जो उत्तर प्रदेश से आया था. अमृतसर के डीएसपी परमिंदर सिंह बंदल ने कहा, "20-25 साल का युवक था. उसने सिर पर पीला कपड़ा बांधा हुआ था. वह रेलिंग फांद गया तो लोगों ने उसे पकड़ लिया. वे लोग उसे बाहर ले गए, जहां हिंसक विवाद हुआ जिसमें उसकी मौत हो गई.”
कुछ ही घंटे बाद रविवार को कपूरथला जिले में ठीक वैसी ही घटना हुई. निजामपुर गांव के लोगों ने एक व्यक्ति को यह कहते हुए पकड़ लिया कि वह गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश कर रहा था. हालांकि पुलिस वहां पहुंच गई थी लेकिन स्थानीय लोगों ने मांग की कि उस युवक से उनके सामने ही पूछताछ की जाए. पुलिस और लोगों के बीच हुई धक्का-मुक्की के दौरान उस युवक की भी हत्या कर दी गई.
संभली हुई प्रतिक्रियाएं
लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इन घटनाओं पर बहुत संभलकर प्रतिक्रिया दी है. हर कोई हत्या करने वालों की निंदा करने से बचता नजर आ रहा है जबकि बेअदबी पर खुलकर बोला जा रहा है.
आम आमदी पार्टी के प्रवक्ता हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि उन्हें कुछ बोलने से पहले ज्यादा जानकारी चाहिए होगी. शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल ने दोनों घटनाओं को किसी बड़ी साजिश का हिस्सा बताया.
पंजाब के उप मुख्यमंत्री और गृह मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा अमृतसर में शनिवार को युवक को मारा नहीं जाना चाहिए था क्योंकि पुलिस से पूछताछ में वह जानकारी दे सकता था और साजिश की जड़ तक पहुंचा जा सकता था. गृह मंत्री रंधावा ने रविवार को दरबार साहिब का दौरा भी किया.
साजिश का शक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी घटना पर प्रतिक्रिया दी है. संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि जो लोग इस साजिश के पीछे हैं उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
राज्य के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) ने भी इन घटनाओं को साजिश बताते हुआ कहा कि लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. यूनियन के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा, "सोमवार से हम कपास के किसानों को मुआवजा देने की मांग पर धरना शुरू कर रहे हैं. अब जनता का पूरा ध्यान इन घटनाओं पर चला गया है. अगर आप बेअदबी रोकना चाहते हैं और साजिश को बेनकाब करना चाहते हैं तो उन्हें पुलिस को दो, मारा क्यों?”
सिख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को बड़ा पाप माना जाता है. इस तरह की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं. 2015 में इस किताब के पन्ने फाड़े जाने की घटना के बाद राज्य में कई दिन तक भारी तनाव रहा था. ये पन्ने फरीदकोट जिले के एक गांव में फटे मिले थे जिसके बाद दो लोगों की हत्या कर दी गई थी. कई जांच टीम और दो आयोगों के बावजूद उस घटना की सच्चाई का पता नहीं चल पाया. (dw.com)
पणजी, 19 दिसम्बर | मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रविवार को राज्य मुक्ति दिवस की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महामारी के दौरान दुनिया को अपना नेतृत्व कौशल दिखाया। सावंत ने कहा, "हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक महामारी से निपटने में पूरी दुनिया को अपना नेतृत्व कौशल दिखाया। उन्होंने दुनिया भर में देश का गौरव बढ़ाया है।"
सावंत ने यह भी कहा, "गोवा के लोगों की ओर से मैं पीएम और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने हमें कोविड की लहर से उबरने में मदद की है।"
मोदी 60वीं वर्षगांठ समारोह में भाग लेने के साथ-साथ राज्य में 600 करोड़ रुपये की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए रविवार को गोवा का दौरा करने वाले हैं।
19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा गोवा को 451 साल के औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराया गया था। (आईएएनएस)
पटना, 19 दिसम्बर | बिहार के कोसी क्षेत्र के खूंखार गैंगस्टर पप्पू देव की सहरसा जिले के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई है।
खूंखार अपराधी को शुक्रवार की रात सहरसा में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया गया था, जब वह अपने गिरोह के सदस्यों के साथ सराही गांव में अवैध रूप से जमीन के एक टुकड़े पर कब्जा करने गया था।
पप्पू और उसके सहयोगियों ने एक पुलिस पार्टी पर गोलियां चलाईं, जिससे मुठभेड़ शुरू हो गई। अधिकारियों ने बताया कि पप्पू देव के अलावा गिरोह के तीन और सदस्यों को भी गिरफ्तार किया गया, जबकि कुछ अन्य भागने में सफल रहे।
सदर पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने कहा, "हमने साराही गांव में छापेमारी की। हमारी पुलिस ने इलाके को घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। उनके कुछ सहयोगी मौके से भागने में सफल रहे, जबकि पप्पू देव और उनके तीन लोग उस परिसर के अंदर फंस गए जहां वे कब्जा करने गए थे।"
"हमने उन्हें पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया और दीवार कूद कर मौके से भागने की कोशिश की। हालांकि, पप्पू देव दीवार से गिर गया और घायल हो गया। चूंकि वह घायल हो गया था और सीने में दर्द की शिकायत भी कर रहा था, हमने उसे भर्ती कराया। शनिवार की सुबह 2.05 बजे सदर अस्पताल ले जाया गया। करीब एक घंटे बाद जब डॉक्टरों ने उसे दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (डीएमसीएच) रेफर किया, तो रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।"
सहरसा पुलिस ने इनके पास से एक ऑटोमेटिक राइफल, तीन पिस्टल, तीन देशी कट्टस, 47 जिंदा गोलियां और कई कारतूस बरामद किए हैं।
पप्पू देव 1990 के दशक में कोसी क्षेत्र के कुख्यात गैंगस्टर के रूप में उभरा था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 19 दिसंबर | पाकिस्तान रविवार को अफगानिस्तान में मौजूदा बिगड़ती मानवीय स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के विदेश मंत्रियों की परिषद के17वें सत्र की मेजबानी करेगा। सत्र ओआईसी शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में सऊदी अरब के आग्रह पर बुलाया गया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान संसद भवन में में मुख्य भाषण देंगे।
सम्मेलन की शुरूआत विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के एक बयान से होगी, जो सत्र की अध्यक्षता करेंगे।
ओआईसी शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष, सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल-सऊद, फिर प्रतिनिधियों से बात करेंगे।
इसके बाद ओआईसी के महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा का बयान, ओआईसी क्षेत्रीय समूहों (एशिया, अफ्रीका, अरब) की ओर से बयान और इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक के अध्यक्ष डॉ मुहम्मद अल-जैसर का एक बयान होगा।
इस्लामाबाद में तुर्की, सिएरा लियोन, सोमालिया, संयुक्त अरब अमीरात, ताजिकिस्तान, बांग्लादेश, जॉर्डन और फिलिस्तीन सहित कई देशों से विदेश मंत्रियों, उप विदेश मंत्रियों, विदेश सचिवों और अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों सहित कई प्रतिनिधिमंडल पहुंचे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरिम अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी भी विशेष बैठक में शामिल होने के लिए संघीय राजधानी में हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 19 दिसम्बर | तेल विपणन कंपनियों ने रविवार को फिर से प्रमुख भारतीय शहरों में डीजल और पेट्रोल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है। इस हिसाब से दिल्ली में डीजल और पेट्रोल की कीमत क्रमश: 86.67 रुपये प्रति लीटर और 95.41 रुपये प्रति लीटर पर बनी हुई है।
वित्तीय राजधानी मुंबई में, दरें 94.14 रुपये और 109.98 रुपये पर अपरिवर्तित रहीं।
कोलकाता में भी कीमतें 89.79 रुपये और 104.67 रुपये पर स्थिर रहीं।
चेन्नई में भी ये 91.43 रुपये और 101.40 रुपये है।
देशभर में भी, ईधन की कीमत रविवार को काफी हद तक अपरिवर्तित रही, लेकिन स्थानीय स्तर के करों के आधार पर खुदरा दरें भिन्न रहीं। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 19 दिसम्बर | जम्मू एवं कश्मीर के गांदरबल जिले में रविवार को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक जवान ने खुद को गोली मार ली। पुलिस सूत्रों ने बताया कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के रहने वाले 118 बटालियन के जवान देवनाथ यादव ने गांदरबल जिले के गुंड इलाके में अपनी सर्विस राइफल से खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और इस कदम के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए जांच शुरू कर दी गई है। (आईएएनएस)
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश), 19 दिसम्बर | मुरादाबाद जिले के भोजपुर इलाके में एक स्थानीय अस्पताल में पत्नी को पीटने के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 30 वर्षीय व्यक्ति की शनिवार को रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) विद्या सागर मिश्रा ने कहा कि एक निजी क्लिनिक में काम करने वाले भूपेंद्र पांडे को उनकी पत्नी के भाई द्वारा 'डायल 112' कॉल करने के बाद गिरफ्तार किया गया था।
मिश्रा ने कहा कि पुलिस हिरासत में पांडे की तबीयत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। एएसपी ने कहा कि उस व्यक्ति ने जहर का सेवन किया था। उन्होंने कहा कि उसकी मौत का गिरफ्तारी से कोई लेना-देना नहीं है।
इस बीच पांडे के परिजनों ने मुरादाबाद-हरिद्वार स्टेट हाईवे जाम कर दिया और पांडेय की पत्नी और उनके भाई समेत पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज और निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिए जाने के बाद लोगों ने अपना प्रदर्शन बंद कर हाईवे को खोला।
मिश्रा ने संवाददाताओं से कहा, "पीड़ित अक्सर अपनी पत्नी को पीटता था और उसके खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की गई थीं। जब पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए हिरासत में लिया, तो उसने कहा कि उसने अपनी गिरफ्तारी से बहुत पहले जहर का सेवन कर लिया है।"
मिश्रा ने कहा, "हमने युवक के पिता की शिकायत पर उसकी पत्नी और साले के खिलाफ हत्या की धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। जांच पूरी होने के बाद गिरफ्तारी की जाएगी।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 19 दिसम्बर | भाजपा ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के गर्भगृह में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की कथित बेअदबी की सीबीआई जांच की मांग की है, ताकि इस तरह की घटनाओं का इस्तेमाल पंजाब में शांति भंग करने के लिए न हो। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री अमित शाह से अपील की है कि वह पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी को इस मामले को सीबीआई को सौंपने के लिए राजी करें।
घटना की निंदा करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सरदार आरपी सिंह ने कहा, "मैं दरबार साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब को अपवित्र करने के प्रयास की कड़ी निंदा करता हूं। मैं चरणजीत सिंह चन्नी सरकार से भी मांग करता हूं कि वह मामले को तुरंत सीबीआई को सौंपे ताकि सच्चाई सामने आ सके।"
सिंह ने कहा कि सीबीआई जांच में सच्चाई का पता चलेगा कि वह व्यक्ति कौन था, उसकी मंशा क्या थी और उसके पीछे के लोग क्या थे।
उन्होंने लोगों से चन्नी सरकार पर मामले को सीबीआई को सौंपने का दबाव बनाने की अपील की।
सिंह ने कहा, "मैं गृह मंत्री अमित शाह से अपील करता हूं कि पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को निष्पक्ष जांच के लिए दरबार साहिब में 'बेअदबी' के मामले को तुरंत सीबीआई को सौंपने के लिए राजी करें ताकि इस उदाहरण का इस्तेमाल पंजाब में शांति भंग करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।"
शनिवार शाम अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को अपवित्र करने की कोशिश करने के बाद एक व्यक्ति की कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। कथित तौर पर उत्तर प्रदेश के रहने वाले युवक ने प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश किया और गुरु ग्रंथ साहिब के सामने रखी तलवार को उठाने की कोशिश की। उसे सुरक्षाकर्मियों ने पकड़ लिया और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) कार्यालय को सौंप दिया गया, जहां उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। (आईएएनएस)
चेन्नई, 18 दिसम्बर| अभिनेत्री-राजनेता खुशबू सुंदर ने महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का स्वागत किया है।
रविवार को, अभिनेत्री ने इस मुद्दे पर अपने विचार रखने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया।
उन्होंने कहा, "एक मां के रूप में, मैं भारत सरकार के इस फैसले का स्वागत करती हूं जिसमें लड़की की शादी की कानूनी उम्र 21 नहीं 18 साल है। एक महिला को मानसिक रूप से मजबूत, शारीरिक रूप से तैयार, आर्थिक रूप से स्वतंत्र और पत्नी की जिम्मेदारी को समझने की जरूरत है।"
अभिनेत्री ने एक ट्विटर यूजर को भी कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिसने सरकार के इस कदम से असहमत होते हुए, उन्हें 'एलीट' भी कहा।
उन्हें संबोधित किए गए ट्वीट का जवाब देते हुए, खुशबू ने कहा, "सीरियस्ली? पीढ़ियों के लिए धन? मेरी संपत्ति मेरी कड़ी मेहनत से है। मेरे पिता ने मुझे बहुत कम उम्र में बेघर और भूखा छोड़ दिया। यदि आप जैसे लोग कम उम्र में आपकी बेटियों/बहनों की शादी नहीं करवाते हैं, तो इसकी सराहना करेंगे, क्योंकि आपको ऐसा करना चाहिए।" (आईएएनएस)
श्रीनगर, 18 दिसम्बर| राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने शनिवार को एक मामले के सिलसिले में एक पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेता को पूछताछ के लिए तलब किया है।
सूत्रों ने कहा कि जिला विकास परिषद गांदरबल के उपाध्यक्ष बिलाल अहमद को 23 दिसंबर को नई दिल्ली स्थित एनआईए कार्यालय में बुलाया गया है, जहां उनसे पूछताछ की जाएगी।
सूत्रों ने कहा कि पीडीपी नेता से एजेंसी द्वारा जांच किए जा रहे मामले के संबंध में पूछताछ की जा रही है। (आईएएनएस)
भारतीय राजनीति का धार्मिकीकरण बढ़ता जा रहा है. हर बड़ी पार्टी और उसके नेता सिर्फ धर्म के ही आधार पर वोट मांगते नजर आ रहे हैं, जैसे देश की सभी समस्याओं का समाधान हो चुका है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
सत्तापक्ष हो या विपक्ष, भारतीय राजनीति में जिधर देखिए धर्म की ही बात हो रही है. पूरे देश में टीवी पर प्रधानमंत्री को पूजा-अर्चना करते दिखाया जा रहा है और उन्हें चुनौती देने वाले खुद को उनसे भी बड़ा धर्म-रक्षक बताने की कोशिश में लगे हुए लगे हैं.
राहुल गांधी चीख चीख कर अपने हिंदू होने का प्रमाण देने की कोशिश कर रहे हैं. अखिलेश यादव काशी गलियारे की परिकल्पना का सहरा अपने सिर बांधने की कोशिश कर रहे हैं.
उधर अगले लोक सभा चुनावों में विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बनने की कोशिश में लगीं ममता बनर्जी ने तो अपनी पार्टी टीएमसी का मतलब "टेम्पल, मस्जिद, चर्च" बता कर पार्टी के पूरे अस्तित्व को ही धर्म के खूंटे से गाड़ दिया है.
स्पष्ट है कि जहां बीजेपी धर्म के रास्ते ही चुनावी राजनीति पर अपनी पकड़ को और मजबूत बनाना चाह रही है, वहीं विपक्षी पार्टियों को भी लग रहा है कि बीजेपी को हरा कर सत्ता के दरवाजे के ताले को खोलने की कुंजी भी धर्म ही है.
जरा याद कीजिए
देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की घोषित प्राथमिकताओं को देख कर लगता ही नहीं कि देश में जनहित के लिए कोई और विषय आवश्यक है.
यह वही देश है जो विकास के अधिकतर पैमानों पर अभी भी काफी पिछड़ा हुआ है. यहां 20 प्रतिशत से ज्यादा आबादी अभी भी अशिक्षित है. 25 प्रतिशत से भी ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. अमीरों-गरीबों के बीच की खाई का मुंह और फैलता ही चला जा रहा है.
यह वही देश है जो अभी अभी महामारी की एक ऐसी लहर से निकला है जिसने पूरे देश को जैसे एक विशाल श्मशान घाट में बदल दिया था. शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जिसके परिवार, संबंधियों, दोस्तों या परिचितों में से किसी के घर को भी मौत छू कर ना गई हो.
अपने प्रियजनों की मौत और उनके अंतिम दर्शन तक ना कर पाने के अफसोस का बोझ अपने अपने दिलों पर लिए लोग क्या इतनी जल्दी उस त्रासदी को भूल गए हैं?
प्राथमिकता क्या है
सत्ताधारी तो चाहेंगे ही कि लोग यह सब भूल जाएं. वो चाहेंगे कि जनता यह भी भूल जाएं कि देश की अर्थव्यवस्था जिस तरफ जा रही है वो एक अलग ही त्रासदी है. पहले से ही विकास की रफ्तार खो रही अर्थव्यवस्था महामारी के इन दो सालों में चरमरा गई है.
इतिहास में पहली बार अर्थव्यवस्था बढ़ने की जगह सिकुड़ रही है. धनी परिवार इस झटके को झेल सकते हैं लेकिन गरीबों और मध्यम वर्ग के लिए खतरे की घंटी है.
हाल के दशकों में जो करोड़ों लोग धीरे धीरे गरीबी से निकल पाए वो गरीबी की चपेट में वापस जा चुके हैं. पिछले कम से कम 12 सालों में ऐसी महंगाई नहीं देखी गई. बेरोजगारी दर ने 45 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है.
राजनीतिक तमाशों के परे देखेंगे तो समझ में आएगा कि देश इस समय किन हालात में है. इस समय देश को एक ऐसी राजनीति की जरूरत है जो बताए कि करोड़ों लोगों को रोजगार कैसे मिलेगा, घरों में चूल्हा कैसे जलेगा, बच्चे स्कूलों में कैसे पहुंचेंगे, अस्पताल, डॉक्टरों और अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या कैसे बढ़ेगी?
ऑक्सीजन जैसी मूलभूत चीज की कमी कैसे दूर होगी? अस्तित्व के लिए जरूरी ऐसे सवाल हमारे सामने खड़े हैं. ऐसे में, क्या सबसे ज्यादा चिंता इस बात की होनी चाहिए कि कौन सा मंदिर कहां और कब बनेगा?
जनता किसे चुनना चाहती है वो चुनावों में बता सकती है, लेकिन राजनीतिक पार्टियों के पास अपनी प्राथमिकताओं को दिखाने का मौका चुनाव के पहले ही उपलब्ध रहता है.
इस समय ऐसा लग रहा है कि वो अपनी प्राथमिकताएं तय कर चुकी हैं. और उसमें फिलहाल आम लोगों की जिंदगियों को बेहतर बनाने के प्रयासों की कोई जगह नहीं दिखती. (dw.com)
नई दिल्ली : सूबे के पुलिस चीफ यानी पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के मामले में ममता बनर्जी सरकार शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंची. राज्य सरकार ने पश्चिम बंगाल DGP के चयन के लिए पैनल समिति के सदस्यों में केंद्र के नामित अफसरों को शामिल करने का विरोध किया. पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा है कि वो पैनल समिति के गठन से गहरी व्यथित है. उसने कहा कि केंद्र के नामितों को शामिल करना संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है. ये राज्य सरकार की विशेष शक्तियों का अतिक्रमण है.
दरअसल संघ लोक सेवा आयोग ने सरकार के गृह सचिव को पैनल समिति में शामिल करने की राज्य सरकार की प्रार्थना को खारिज कर दिया है. इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार ने तत्काल सुनवाई की मांग की है. देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने आश्वासन दिया कि वह इस मुद्दे पर विचार करेंगे.
खनन कंपनियों के कारण अपनी आजीविका खो चुके चार किसानों ने एक ऐतिहासिक लड़ाई जीती है. अदालत ने ‘दुर्लभ फैसले’ में कंपनियों को सजा सुनाई है.
संबलपुर के मनबोध बिस्वाल को उम्मीद है कि उनकी जमीन अब पहले जैसी उपजाऊ हो पाएगी और उन्हें सिंचाई के लिए प्रदूषित नहीं साफ पानी मिलेगा. बिस्वाल और उनके तीन साथियों ने कोर्ट में दो बड़ी निजी कंपनियों को हराकर एक ऐसी लड़ाई जीती है, जिसका असर उनके जैसे लाखों किसानों पर पड़ सकता है.
इसी महीने नेशनल ग्रीन ट्राइब्न्यूनल ने हिंडाल्को इंडस्ट्रीज और रायपुर एनर्जेन को तालाबिरा-1 कोयला ब्लॉक की सफाई के लिए 10 करोड़ रुपये जमा कराने का आदेश दिया है. यह ब्लॉक 2018 में बंद हो गया था. 65 साल के बिस्वाल कहते हैं, "हमारे चारों तरफ खदानें हैं जिन्होंने हमारी जमीन, हवा और पानी सब बर्बाद कर दिया है. इस लड़ाई को मैं दस साल से लड़ रहा हूं और आखिर उम्मीद की एक किरण नजर आई है कि जो थोड़ा बहुत बचा है उसे हम बचा पाएंगे और फिर से खेती कर पाएंगे."
दोनों ही कंपनियों के वकीलों ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किन इस फैसले के खिलाफ अपील करने पर विचार कर रहे हैं. मुकदमे के दौरान कंपनियों ने दलील दी थी कि उन्होंने खनन के दौरान सारे नियमों का पालन किया था.
दुर्लभ है फैसला
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है. हालांकि दुनियाभर में कोयले को अब बुरी नजर से देखा जाने लगा है और कई बड़े देश अपने यहां कोयले का इस्तेमाल बंद कर रहे हैं लेकिन भारत ने आने वाले कुछ दशकों तक कोयला उत्पदान और इस्तेमाल जारी रखने की बात कही है.
एक तथ्य यह भी है कि 2008 से भारत में 123 कोयला खदानें बंद हुई हैं. लेकिन इन खदानों के बंद होने के बाद उन जगहों का पर्यावरण बेहतर हुआ या नहीं, इस बारे में कोई ठोस सबूत उपलब्ध नहीं है. बिस्वाल के वकील सौरभ शर्मा ने एनजीटी के फैसले को इन प्रभावित समुदायों के पुनर्स्थापन की दिशा में एक नए युग की शुरुआत बताया.
शर्मा कहते हैं, "कंपनियों को इस तरह सजा मिलना बहुत दुर्लभ है. यह फैसला खदानों के इर्द-गिर्द रहने वाले समुदायों की समस्याओं को भी मान्यता देता है. हम उम्मीद करते हैं कि बिस्वाल और अन्य किसान अपने वातावरण और आजीविका के रूप में जो कुछ खनन के हाथों खो चुके हैं, उसका कुछ हिस्सा वापस पा सकेंगे.”
विकास किसका हुआ?
बिस्वाल का घर संबलपुर जिले में हैं जहां खनिज भरपूर मात्रा में हैं. देश में ऐसे तमाम खनिज प्रधान इलाकों में बीते दशकों में आर्थिक और सामाजिक विकास नाममात्र को हुआ है और ये देश के सबसे गरीब और सबसे प्रदूषित इलाकों में शामिल हैं.
सखी ट्रस्ट नामक संस्था चलाने वालीं एम भाग्यलक्ष्मी कहती हैं कि खनन से प्रभावित समुदायों का पुनर्स्थापन सिर्फ एक दिखावा है. वह बताती हैं, "खदानों के बंद हो जाने के बाद भी समुदाय बेचारे ही रह जाते हैं और उन्हें पीने के साफ पानी जैसी मूलभूत चीजें भी नहीं मिल पातीं.”
गरीब समुदायों की मदद के लिए स्थापित विशेष फंड आमतौर पर खर्च ही नहीं होता लिहाजा खनन प्रभावित क्षेत्र अविकसित रहते हैं. बिस्वाल इस बात की ताकीद करते हैं कि उनके समुदाय को खनन से कोई लाभ नहीं हुआ.
वह बताते हैं, "पहले हम साल में दो फसल उगाते थे. अब मुश्किल से कुछ सब्जियां उगा पाते हैं. खदानों से निकली मिट्टी से खड़े हुए पहाड़ों ने खेतों तक पहुंचना मुश्किल कर दिया है. हर जगह कोयले की धूल है. सिंचाई का पानी प्रदूषित हो चुका है.”
कैसे बंद हो खदान?
ट्राइब्यूनल ने सरकार को आदेश दिया है कि विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जाए जो तालाबिरा-1 ब्लॉक में प्रभावितों को मुआवजा तय कर सके. समिति को तीन महीने के भीतर जीर्णोद्धार योजना भी तैयार करनी होगी. शर्मा बताते हैं कि बिस्वाल जैसे प्रभावित किसान समिति से अपने नुकसान के लिए मुआवजा मांग सकते हैं.
कोई भी कंपनी जब किसी कोयला खदान को बंद करती है तो उसके एक साल पहले उसे बताना होता है कि क्षेत्र का जीर्णोद्धार कैसे होगा, और इसके लिए पेड़ लगाने आदि जैसे क्या क्या कदम उठाए जाएंगे.
एनएफआई की रिपोर्ट तैयार करने वालों में शामिल काव्या सिंघल कहती हैं कि जब भी कोई खदान बंद होती है तो सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले वहां के मजदूर और आसपास रहने वाले समुदाय ही होते हैं. वह कहती हैं, "जब भी किसी कोयला खदान को बंद किया जाए तो सबसे पहला कदम उस क्षेत्र में मौजूद सारे खतरों को दूर करना होना चाहिए क्योंकि खनन के दौरान इलाके की हवा, पानी और जमीन बर्बाद हो चुकी होती है.”
कोल कंट्रोलर्ज ऑर्गनाइजेशन खदानों के बंद होने से जुड़े मामलों के लिए जिम्मेदार है. इस संबंध में ऑर्गनाइजेशन को खनन कंपनियों की जिम्मेदारी के संबंध में कुछ सवाल भेजे गए थे जिनका उन्होंने जवाब नहीं दिया.
वीके/एए (रॉयटर्स)
नेटफ्लिक्स की मशहूर सीरीज स्क्विड गेम में एक किरदार निभाने वाले अनुपम त्रिपाठी की जिंदगी ही बदल गई है. 11 साल से दक्षिण कोरिया में रह रहे त्रिपाठी का बड़ा सपना पूरा हुआ है.
अनुपम त्रिपाठी कहते हैं कि उनके दादा ने एक बार उनका हाथ देखकर कहा था कि एक दिन वह बहुत धन कमाएंगे. त्रिपाठी मजाक में पूछते हैं, "कहां है मेरा धन?”
33 वर्षीय त्रिपाठी को अपने दादा की उस भविष्यवाणी पर कभी भरोसा नहीं हुआ था. भारतीय एक्टर अनुपम त्रिपाठी लगभग एक दशक पहले दक्षिण कोरिया चले गए थे. उसके बाद वहां उन्होंने थिएटर और फिल्मों में छोटा-मोटा काम किया. उसी ने उन्हें ‘स्क्विड गेम्स' में काम करने का मौका दिलाया.
स्क्विड गेम्स दुनियाभर में मशहूर टीवी सीरीज है जो नेटफ्लिक्स की सबसे सफल सीरीज रही है. उस सीरीज में त्रिपाठी ने एक पाकिस्तानी नागरिक अली अब्दुल की भूमिका निभाई है जिसने बतौर कलाकार उनकी जिंदगी बदल दी है. अब वह एक्टिंग को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं.
जिंदगी बदल गई
स्क्विड गेम में अब्दुल ने 199 नंबर खिलाड़ी की भूमिका निभाई है, जो एक मासूम और जज्बाती इंसान है. इस भूमिका ने एकाएक त्रिपाठी को दुनियाभर में मशहूर कर दिया है. उन्हें एसोसिएटेड प्रेस का ‘ब्रेकथ्रू एंटरटेनर ऑफ द ईयर' भी चुना गया.
इस सीरीज की सफलता का असर ऐसा हुआ है कि अनुपम त्रिपाठी के अब इंस्टाग्राम पर 40 लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं. वह कोरियाई टीवी पर अक्सर दिखने लगे हैं. उनका भाई भारत के उनके गांव में स्क्विड गेम की स्क्रीनिंग कराना चाहता था, जिसे उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया.
वह कहते हैं, "हर कोई इस मौके को मनाना चाहता है. मेरे लिए, मैं बस अपना काम करके आगे बढ़ना चाहता हूं. पिछले 11 साल से कोरिया में मैं ऐसे ही जिया हूं. काम किया और अगले काम की खोज में लग गया.”
दिल्ली में जन्मे और पले-बढ़े अनुपम त्रिपाठी ने दक्षिण कोरिया को एक्टिंग की पढ़ाई के लिए चुना था. उन्हें कोरिया नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ आर्ट्स की एक प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप पर दाखिला मिला था. 2006 से वह बतौर एक्टर काम कर रहे थे लेकिन उनका ज्यादातर काम थिएटर में ही रहा. हालांकि वह कुछ बड़ा करने के लिए छटपटा रहे थे. वह बताते हैं, "मैं एकदम केंद्रित था. पेशेवराना एक्टिंग सीखना मेरा सपना था.”
मुश्किल थी शुरुआत
लेकिन इस सपने को दक्षिण कोरिया में पूरा करना इतना आसान नहीं था. किसी बेगाने देश में एक्टिंग सीखना एक बात है लेकिन नई भाषा सीखकर फिर उसमें एक्टिंग करना दूसरी. वह कहते हैं दक्षिण कोरिया पहुंचने के बाद इसका अहसास हुआ. वह बताते हैं, "मैं रो रहा था. दो ही चीजें थीं, रोना और सीखना. पिछले साढ़े तीन महीने से मैं वही कर रहा था.”
जब घर की याद आनी बंद हुई तो अपने सहपाठियों के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ने लगीं. ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने भी वही किया जो अक्सर बेकाम एक्टर करते हैं, यानी एक काम की तलाश करते हुए एक रेस्तरां में काम. वक्त बीतने के साथ-साथ काम बढ़ता गया. उन्हें थिएटर और फिल्मों में काम मिलने लगा.
वह बताते हैं, "मैंने कोरियन भाषा में बेहतर प्रदर्शन करना शुरू किया. अब मैं कोरियन, अंग्रेजी और हिंदी तीनों में काम कर सकता हूं.” इसलिए जब अली का किरदार उनके रास्ते आया तो वह तैयार थे. पर काम मिलने के बाद उनका मूड एकदम बदल गया.
त्रिपाठी बताते हैं, "उसके पहले मैंने हर फिल्म में कुछ लाइनें ही की थीं. मैं बहुत उत्साहित भी था लेकिन बहुत बहुत नर्वस भी था. इतनी बड़ी चीज थी, मैं कसे करूंगा!” सही बात थी. यह भूमिका और यह मौका कई मायनों में बड़ा था. उन्हें अपने शरीर में भी बदलाव करने थे जो स्क्विड गेम बनाने वालों की मांग थी.
और सपने भी हैं
जब शूटिंग शुरू हुई तो उन्होंने कुछ नए दोस्त बनाए. खासकर पार्क हाए-सू, जिन्होंने 228 नंबर खिलाड़ी का किरदार निभाया है. यानी वह शख्स जो अली को धोखा देता है.
अपनी इस दोस्ती के बारे में त्रिपाठी बताते हैं, "हम हर बात पर बात कर सकते हैं, सब कुछ साझा कर सकते हैं और हर वक्त बात कर सकते हैं. शो में भी ऐसा ही था. एक दूसरे पर भरोसा करना था, जब तक अली को पता नहीं चलता कि सांग-वू ही उसे धोखा दे रहा है.”
अभी यह नहीं पता है कि अगर शो का दूसरा सीजन आता है तो त्रिपाठी को उसमें रखा जाएगा या नहीं. अली को मरते दिखाया तो नहीं गया था लेकिन उसका शव एक ताबूत में था. लेकिन त्रिपाठी आगे बढ़ रहे हैं. उनके पास पूरे करने के लिए और बहुत से सपने हैं जैसे मार्टिन स्कॉरसीसी, जेम्स कैमरन और टेरेंस मलिक के साथ काम करना है.
वीके/एए (एपी)