अंतरराष्ट्रीय
स्टॉकहोम, 11 दिसम्बर | मौजूदा कोविड-19 महामारी के मद्देनजर, स्टॉकहोम के सिटी हॉल से लगातार दूसरी बार नोबेल पुरस्कार अवॉर्ड समारोह का ऑनलाइन प्रसारण किया गया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पुरस्कार विजेताओं ने क्रमश: अपने घरों में पुरस्कार प्राप्त किए और शुक्रवार शाम को समारोह में पुरस्कार प्रदान करने वाले उनके वीडियो प्रसारित किए गए।
स्टॉकहोम सिटी हॉल के ब्लू हॉल में इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं को श्रद्धांजलि देने के लिए लगभग 300 मेहमान और शाही परिवार मौजूद थे। साइट पर कोई भी फेस मास्क पहने नहीं देखा गया।
इस वर्ष के पुरस्कार विजेता हैं: स्यूकुरो मानेबे, क्लाउस हैसलमैन और जियोर्जियो पेरिस (भौतिकी), बेंजामिन लिस्ट और डेविड डब्ल्यू.सी. मैकमिलन (रसायन विज्ञान), डेविड जूलियस और अर्देम पटापाउटियन (फिजियोलॉजी या मेडिसिन), अब्दुलराजाक गुरनाह (साहित्य) और डेविड कार्ड, जोशुआ डी. एंग्रिस्ट और गुइडो डब्ल्यू. इम्बेन्स (अर्थशास्त्र)।
नोबेल फाउंडेशन के बोर्ड के अध्यक्ष कार्ल-हेनरिक हेल्डिन ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, "चल रहे कोरोना वायरस महामारी अभी भी हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित कर रही है।"
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान चुनौती "विज्ञान में विश्वास पैदा करना और विज्ञान को इस तरह से संप्रेषित करना है जो हमारे सभी भय और शंकाओं के साथ मनुष्य के रूप में हमारे साथ प्रतिध्वनित हो।"
उन्होंने कहा कि वर्तमान महामारी के तहत विज्ञान और वैज्ञानिक रिकॉर्ड समय में प्रभावी टीके बनाने में बेहद सफल रहे हैं, लेकिन विज्ञान के परिणामों को समान रूप से साझा करना अक्सर अधिक कठिन साबित होता है।
उन्होंने कहा, "अब हमें टीके बनाने हैं और वे कितने महत्वपूर्ण हैं इसका ज्ञान सभी लोगों तक, सभी देशों में पहुंचाना है।"
महामारी के कारण, स्टॉकहोम सिटी हॉल में इस वर्ष का नोबेल भोज रद्द कर दिया गया।
1901 से प्रतिवर्ष नोबेल पुरस्कार प्रदान किए जाते रहे हैं।
विजेताओं की घोषणा हर साल अक्टूबर में की जाती है। (आईएएनएस)
सोशल मीडिया अजीबोगरीब चीजों का भंडार है. यहां आपको कई बार हंसाने वाली चीजें दिख जाती हैं तो कई बार हैरान कर देने वाली. कुछ चीजों को देखकर आप दुखी हो जाते हैं और कई बार कुछ फोटोज या वीडियोज आपको गुस्सा भी दिला सकते हैं. मगर इन दिनों एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसे देखकर आपको गुस्सा तो बिल्कुल भी नहीं आएगा. आप वीडियो देखकर थोड़ा सा शॉक होंगे और बहुत हसेंगे. दरअसल, इस वीडियो में एक कुत्ते और कछुए की नोकझोंक को बेहद मजेदार ढंग से दिखाया गया है.
मीम्स पर आधारित हमारा हुबली नाम के एक अकाउंट ने हाल ही में बेहद मेजदार वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में एक छोटा कछुआ और कुत्ता नजर आ रहा हैं. कछुआ बार-बार कुत्ते के सामने अपना मुंह फाड़कर ऐसी हरकत करता दिख रहा है जिसे देखकर लग रहा है जैसे वो उसके ऊपर चिल्ला रहा हो. कुत्ता उसकी हरकत से बीच-बीच में इतना खीज जाता है कि वो कई बार अपने मुंह से उसकी गर्दन पर हमला करता है मगर कछुआ हर बार अपना सिर अपनी शेल के अंदर घुसा लेता है.
मजेदार है कछुए और कुत्ते की नोकझोंक
कछुए और कुत्ते की इस लड़ाई से ज्यादा मजेदार है इस वीडियो का वॉइसओवर. दो लोग कुत्ते और कछुए की तरफ से अंग्रेजी में लड़ते नजर आ रहे हैं. उनके वॉइसओवर को सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे दोनों जानवर सच में बोल रहे हों और सड़क पर खड़े दो लोगों की तरह एक दूसरे से नोकझोंक कर रहे हों. आवाज सुनकर आपको कछुए के भाव ऐसे लगेंगे जैसे वो कुत्ते को तंग करने के लिए जोर-जोर से गाना गा रहा है और कुत्ता परेशान होकर उसके ऊपर हमला कर रहा है.
लोगों ने वीडियो पर किया कमेंट
आपको बता दें कि वीडियो को अबतक 44 लाख से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं. यही नहीं, डेढ़ लाख के करीब लोगों ने वीडियो को लाइक किया है जबकि हजारों लोगों ने इसपर कमेंट भी किया है. कई लोग फनी कमेंट लिख रहे हैं जबकि बहुत से लोगों का कहना है कि कछुए बहुत भयंकर तरीके से काटते हैं जिसके बारे में लोगों को पता ही नहीं होता. कुछ लोग तो वीडियो शेयर करने वालों पर भड़कते हुए लिख रहे हैं कि अपने पालतू जानवरों के साथ इस तरह का खिलवाड़ करना जिससे उन्हें चोट पहुंचे, ठीक नहीं है.
जकार्ता, 11 दिसम्बर| इंडोनेशिया के सेमेरू ज्वालामुखी के विस्फोट से मरने वालों की संख्या बढ़कर 45 हो गई है। बचाव दल ने पूर्वी जावा प्रांत के लुमाजांग जिले के कम्पुंग रेंटेंग हैमलेट में दो और लोगों के शव बरामद किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मीडिया को बताया कि इस बीच, नौ लोग अभी भी लापता हैं, जबकि 19 लोग गंभीर रूप से घायल हैं और 19 अन्य को मामूली चोटें आई हैं।
आपदा आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए टास्क फोर्स के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में 6,573 विस्थापित व्यक्ति, 2,970 प्रभावित घर और 33 क्षतिग्रस्त सार्वजनिक सुविधाएं हैं, जिसमें लुमाजांग और जिलों को जोड़ने वाला एक पुल भी शामिल है।
अधिकारी ने बताया कि सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में लुमाजंग जिले के प्रोनोजिवो और कैंडिपुरो इलाके शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि आपदा के स्थानों पर तीन खोज और बचाव दल तैनात किए गए थे, जिनमें कुरा कोबोकन और कम्पुंग रेंटेंग के सबसे कठिन इलाके शामिल हैं।
सेमेरू, जो इंडोनेशिया के 127 सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है, वर्तमान में अपने दूसरे स्तर की स्थिति में है।
4 दिसंबर को 3,676 मीटर ऊंचा ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ था। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 11 दिसम्बर| अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संघीय सरकार की कर्ज सीमा बढ़ाने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए एक बिल पर हस्ताक्षर किए हैं। बाइडेन ने ट्विटर पर कहा, "देश का पूर्ण विश्वास और श्रेय हमेशा एक जिम्मेदारी रही है। इस कानून के समर्थन से पता चलता है कि नेताओं के लिए काम करना अभी आसान है।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह बिल इस सप्ताह के शुरू में कांग्रेस के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया गया था और डेमोक्रेट्स के लिए दूसरे बिल में ऋण सीमा को साधारण बहुमत से बढ़ाने के लिए एक प्रक्रिया स्थापित करेगा।
स्थानीय मीडिया के अनुसार, दूसरे ऋण-सीमा बिल पर अंतिम वोट अगले सप्ताह होने की उम्मीद है।
यूएस ट्रेजरी विभाग के पास वर्तमान में अपनी मानक संचालन प्रक्रियाओं के तहत उधार लेने के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि यह 28.9 ट्रिलियन डॉलर की ऋण सीमा तक पहुंच गया है।
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने कांग्रेस से 15 दिसंबर से पहले ऋण सीमा बढ़ाने का आग्रह किया है। येलेन ने पिछले हफ्ते सांसदों को बताया कि "मैं यह नहीं बता सकता कि कांग्रेस इस मुद्दे को कितना महत्वपूर्ण समझ रही है। अमेरिका को समय पर और पूर्ण रूप से अपने बिलों का भुगतान करना होगा। अगर हम नहीं करते हैं, तो हम इसे हटा देंगे।"
वाशिंगटन डीसी स्थित एक थिंक टैंक के अनुसार, समय पर राष्ट्र के बिलों का भुगतान करने से वैश्विक अर्थव्यवस्था मजबूत हो सकती है।
ऋण सीमा वह कुल राशि है जिसे अमेरिकी सरकार अपने मौजूदा कानूनी दायित्वों को पूरा करने के लिए उधार लेने के लिए अधिकृत है, जिसमें सामाजिक सुरक्षा और चिकित्सा लाभ, राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज और अन्य भुगतान शामिल हैं। (आईएएनएस)
काबुल, 11 दिसम्बर| अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के दश्त-ए-बरची इलाके में शुक्रवार को एक मिनी बस को निशाना बनाकर किए गए विस्फोट में 2 नागरिकों की मौत हो गई जबकि 3 अन्य घायल हो गए। इसकी पुष्टि आंतरिक मंत्रालय के प्रवक्ता कारी सैयद खोस्ती ने की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने खोस्ती के हवाले से कहा, "आज दोपहर दश्त-ए-बरची इलाके में एक मिनी बस में हुए विस्फोट में 2 नागरिक शहीद हो गए और 3 अन्य घायल हो गए।"
हालांकि, प्रत्यक्षदर्शियों का मानना था कि हताहतों की संख्या रिपोर्ट की तुलना में ज्यादा हो सकती है।
अधिकारी ने यह भी पुष्टि की है कि लगभग उसी क्षेत्र में शुक्रवार दोपहर एक और विस्फोट में एक महिला घायल हो गई।
किसी भी समूह या व्यक्ति ने विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली है।
यह धमाका दोपहर 3:25 बजे हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि स्थानीय समयानुसार और काबुल में पुलिस जिला 13 के उपनगर दश्त-ए-बरची इलाके में एक मिनी बस को निशाना बनाया गया।
इस्लामिक स्टेट (आईएस) के कट्टरपंथी संगठन दाएश ने पिछले कुछ महीनों में दश्त-ए-बरची जिले में दो मिनी बसों पर बम हमलों सहित विध्वंसक गतिविधियों की जिम्मेदारी ली थी। (आईएएनएस)
मेक्सिको, 11 दिसम्बर| मेक्सिको के चियापास राज्य में एक ट्रेलर ट्रक के पलट जाने से मारे गए मध्य अमेरिकी प्रवासियों की संख्या बढ़कर 55 हो गई है। गवर्नर रुटिलियो एस्कैंडन ने इसकी पुष्टि की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को राज्य की राजधानी टक्सटला गुटिरेज और चियापा डी कोरजो शहर को जोड़ने वाले राजमार्ग पर करीब साढ़े तीन बजे जब ट्रेलर पलटा तो 150 से अधिक गैर-दस्तावेज प्रवासी ट्रेलर में सवार थे।
गर्वनर ने शुक्रवार को ट्वीट किया, "कल की दुर्घटना के बाद, दुर्भाग्य से आज एक और व्यक्ति की मौत हो गई। उन्होंने कहा कि वह घायलों और मृतकों के परिवारों की देखभाल के लिए संघीय सरकार के साथ काम कर रहे हैं।"
दुर्घटना स्थल पर मौजूद मेक्सिको की नागरिक सुरक्षा की राष्ट्रीय समन्वयक लौरा वेलाजक्वेज अल्जुआ ने संवाददाताओं को बताया कि विमान में सवार 152 प्रवासियों में से 73 घायल हो गए और 24 सही सलामत है।
राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर ने इन दुर्भाग्यपूर्ण, दुखद घटनाओं के लिए दुख व्यक्त किया है, और आगे की त्रासदियों को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर प्रवास के कारणों को संबोधित करने की आवश्यकता को दोहराया है।
इस बीच, विदेश मंत्री मासेर्लो एब्रार्ड ने कहा कि उनका मंत्रालय ग्वाटेमाला, इक्वाडोर और अन्य देशों की सरकारों के संपर्क में है, जिनके नागरिक पीड़ितों में शामिल हैं। (आईएएनएस)
-आरिफ़ शमीम
इस साल जब अगस्त के पहले हफ़्ते में, अमेरिकी राज्य जॉर्जिया के एक छोटे से शहर की रहने वाली निकोल स्मिथ लुडविक ने दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज ख़लीफा की चोटी पर जा कर कहा, कि "हाय मॉम, आई एम एट टॉप ऑफ़ दि वर्ल्ड' (हाय माँ मैं दुनिया की चोटी पर हूँ) तो वह सिर्फ़ बुर्ज ख़लीफा की ऊंचाई के बारे में बात नहीं कर रही थी, यह ऊंचाई दुबई की भी थी जो बहुत ही कम समय में विकास करता हुआ 'बुर्ज ख़लीफा' बन गया है और इसमें और मंज़िलें बढ़ती जा रही हैं.
स्काइडाइवर और एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स की खिलाड़ी निकोल स्मिथ ब्रिटेन की तरफ़ से संयुक्त अरब अमीरात को यात्रा प्रतिबंध की रेड लिस्ट से बाहर निकाले जाने पर राष्ट्रीय एयरलाइन एमिरेट्स के लिए एक विज्ञापन में काम कर रही थीं.
समुद्र में समाने की तैयारी कर रहा एक ख़ूबसूरत देश
लेकिन इससे पहले किसी और देश ने इतने कम सालों में इतना ज़्यादा विकास भी नहीं किया है. जहां 30 साल पहले तक सिर्फ़ धूल उड़ती नज़र आती थी, वहां अब दुनिया की सबसे अच्छी सड़कें और अत्याधुनिक मेट्रो दौड़ती नज़र आती है. जहां कभी दूर-दूर कोई एक, दो मंज़िला मकान दिखाई देता था, वहां अब शानदार गगनचुंबी इमारतें खड़ी हैं और दुनिया भर के पर्यटक और कारोबारी लोग, जिनकी प्राथमिकता लंदन, पेरिस और न्यूयॉर्क होते थे, अब दुबई का रुख़ करते हैं.
संयुक्त अरब अमीरात और दुबई
संयुक्त अरब अमीरात वास्तव में सात राज्यों दुबई, अबू धाबी, शारजाह, उम्मुल क्वैन, रास-अल-ख़ैमा, अजमान और अल फ़ुजैरा का एक संघ है जिसकी राजधानी अबू धाबी है. हालांकि, जब भी संयुक्त अरब अमीरात की बात होती है तो सबसे पहले दिमाग़ में दुबई का ही नाम आता है. इसलिए संयुक्त अरब अमीरात की बात असल में दुबई की बात है. हालांकि अबू धाबी, शारजाह, रास-अल-ख़ैमा और दूसरे राज्यों का भी एक अपना स्थान है, लेकिन दुबई बस दुबई है.
इन राज्यों को 1 दिसंबर, 1971 को ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिली थी और अगले ही दिन, यानी 2 दिसंबर को छह राज्यों ने एक संघीय गठबंधन बना लिया था. सातवां राज्य, रास-अल-ख़ैमा, 10 फ़रवरी, 1972 को गठबंधन में उस समय शामिल हुआ जब ईरानी नौसेना ने होर्मुज जल मार्ग के कुछ जगहों पर अपना दावा करते हुए कब्ज़ा कर लिया. रास-अल-ख़ैमा और शारजाह भी इन क्षेत्रों पर अपना दावा करते थे. इस तरह इन दोनों राज्यों के गठबंधन में शामिल होने के साथ-साथ, ईरान के साथ क्षेत्रीय विवाद भी उसके हिस्से में आया जो आज भी जारी है.
इन राज्यों के नेताओं ने 1820 से 1890 तक ब्रिटेन के साथ विभिन्न संधियों पर हस्ताक्षर किए थे, ताकि ब्रिटेन उन्हें सुरक्षित व्यापार करने की सुविधाएं मुहैया करता रहे. उस समय उपमहाद्वीप पर अंग्रेज़ों का शासन था, इसलिए इन राज्यों की मुद्रा भी भारतीय रुपया ही थी और अमीरात के लोग इसी मुद्रा के ज़रिए लेन-देन करते थे. 1959 में, इसका नाम बदलकर खाड़ी रुपया कर दिया गया, शुरू में इसकी क़ीमत भारतीय रुपये के बराबर ही थी. बाद में, स्वतंत्रता के बाद, इन राज्यों ने अपनी मुद्रा की शुरुआत की.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में डॉयरेक्टर ऑफ़ गल्फ़ स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर एके पाशा के अनुसार, लगभग सौ साल पहले क्षेत्र के व्यापारी चाहे वो भारत के हों, फ़ारस या इराक़ के हों, सब धीरे-धीरे यहां आकर जमा हुए और ये व्यापार का गढ़ बन गया.
'जब ब्रिटेन ने यहां तेल की खोज की तो अबू धाबी के शासक शेख़ ज़ायद-बिन-सुल्तान-अल-नाहयान और दुबई के शासक शेख़ राशिद-बिन-सईद-अल-मकतूम और संयुक्त अरब अमीरात के अन्य नेताओं को कमाई होने लगी. शेख़ ज़ायद बाद में संयुक्त अरब अमीरात के पहले राष्ट्रपति और शेख़ राशिद पहले उपराष्ट्रपति बने.'
संयुक्त अरब अमीरात और मोती उद्योग
प्रोफ़ेसर पाशा का कहना है कि दुबई के लोग मोतियों का व्यापार करते थे और उन्हें बेचने के लिए आसपास के इलाक़ों में जाते थे. "इसी तरह, अन्य व्यापारी भी यहां आकर अपना माल बेचते थे. यह क्षेत्र एक व्यापारिक नेटवर्क बन गया था और कुवैत या बसरा के व्यापारी, भारत के गुजरात, केरल या ज़ंज़ीबार जाते हुए दुबई में ज़रूर रुकते थे.
मोती के व्यापार से अमीराती लोगों को बहुत फ़ायदा हुआ, लेकिन जब जापानियों ने कृत्रिम मोती बनाने का तरीक़ा खोजा, तो अमीराती मोतियों की मांग धीरे-धीरे कम होने लगी और उद्योग कम होते-होते लगभग ख़त्म हो गया.
तेल की खोज के बाद बहुत से अमीराती लोगों ने मोतियों का कारोबार छोड़ दिया और तेल के सेक्टर में व्यापार करना शुरू कर दिया, और जब 1971 में उन्हें ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिली तो तेल का उत्पादन अचानक बढ़ गया जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी सहारा मिला और दुबई व्यापार का केंद्र बन गया.
देखा जाए तो पाकिस्तानी फ़िल्म लेखक रियाज़ बटालवी को इस बात का क्रेडिट दिया जाना चाहिए कि उन्हें साल 1979 में अंदाज़ा हो गया था कि आने वाले समय में दुबई दुनिया की एक ऐसी जगह बनाने वाला है जिसकी ओर दुनिया खिंची चली आएगी. दुबई की आज़ादी के आठ साल बाद ही उन्होंने सुपरहिट फ़िल्म 'दुबई चलो' बनाई जिसे आज भी पाकिस्तान की सबसे सफल फ़िल्मों में से एक माना जाता है.
फ़िल्म की कहानी जो भी हो, 'दुबई चलो' ने पाकिस्तान और भारत के लोगों को ऐसा रास्ता दिखाया कि आज भी संयुक्त अरब अमीरात में सबसे ज़्यादा भारतीय और पाकिस्तानी ही रहते हैं.
साल 2021 में किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात की नब्बे लाख 99 हज़ार की कुल आबादी में से लगभग 28 लाख भारतीय और लगभग 13 लाख पाकिस्तानी हैं, जो कुल आबादी का लगभग 40 प्रतिशत है.
जिस देश में 1979-80 तक धूल उड़ती थी, जहां केवल एक या दो मंज़िला घर होते थे, जिन्हें स्थानीय तौर पर ग्राउंड प्लस वन और ग्राउंड प्लस टू अपार्टमेंट कहा जाता था, अब वहां दुनिया के लगभग 200 देशों के लोग रहते हैं. आख़िर इसका कारण क्या है?
दुबई में किसी से भी पूछें तो यही जवाब मिलता है कि यह दुबई और अबू धाबी के शासकों की दूरदर्शिता का नतीजा है. उन्होंने आज़ादी के तुरंत बाद ही ये तय कर लिया था कि देश को कहां ले जाना है.
दुबई में विज़न शेख़ राशिद का था जिसे शेख़ मोहम्मद ने पूरा किया और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है. अगर शेख़ ज़ायद ने संयुक्त अरब अमीरात के राज्यों को एकजुट करने और उन्हें तेल संपदा के माध्यम से समृद्ध बनाने में भूमिका निभाई, तो दूसरी ओर शेख़ राशिद ने तेल से आगे के भविष्य के बारे में सोचा. उनकी इस सोच को उनके वंशजों ने और आगे बढ़ाया और दुबई को एक तेल निर्भर राज्य से दुनिया का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना दिया.
शैलेश दास भारत के कलकत्ता शहर के रहने वाले एक फ़ाइनेंसर और व्यवसायी हैं जो अब दुबई में रहते हैं. उनका फ़ील्ड शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं है. उनका कहना है कि संयुक्त अरब अमीरात के बारे में सबसे मज़बूत चीज़ इसके नेताओं का विज़न है. "अन्य देशों में भी बड़े नेता होते हैं, वे सोचते हैं, लेकिन यहां सोचने के साथ-साथ काम भी किया जाता है."
उनका मानना है कि दुबई की नई पीढ़ी को जिस तरह से तैयार किया जा रहा है, वह अगले 50 वर्षों में देश को और ऊंचाइयों पर ले जाएगी.
वे कहते हैं, "ऐसा कोई संकेत नहीं है जिससे ये पता चले कि यह संभव नहीं है. "यहां लोग सुरक्षित हैं, व्यवसाय सुरक्षित हैं और यहां की सिक्योरिटी की गिनती दुनिया की सबसे अच्छी सिक्योरिटी में होती है."
वे इसकी तुलना अमेरिका से करते हैं. अमेरिका ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टैलेंट को बुलाया और उन्हें अपने देश में बसाया. संयुक्त अरब अमीरात का भी यही हाल है. वे अच्छे लोगों को बुलाते हैं और उनसे काम करवाते हैं जो देश के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है.
डॉक्टर पाशा भी दास की इस बात से सहमत हैं. उनका कहना है कि दुबई के विकास के पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ शेख़ राशिद-अल-मकतूम का विज़न है, "क्योंकि दुबई के पास तेल बहुत कम है और उन्होंने सोचा कि अगर वे व्यापार में आमूल-चूल परिवर्तन लाएंगे, दूसरे देशों के व्यापारियों को सुविधाएं देंगे, तो वे निश्चित रूप से अपने फ़ायदे के लिए यहां ज़रूर आएंगे. दूसरी बात यह है कि वे हर नई चीज़ का अनुभव करना चाहते थे और देखना चाहते थे कि इससे उन्हें कितना फ़ायदा होगा."
दुबई और कोविड संकट
दुनिया को हिला देने वाली वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने का ही उदाहरण ले लें कि दुबई इससे कैसे निपटा. जब इस महामारी के कारण पूरी दुनिया एक-दूसरे के लिए अपने दरवाज़े बंद कर रही थी, दुबई उन देशों में से एक था जिसने पहला मौक़ा मिलते ही मेहमानों का स्वागत किया. जब दुनिया कोई भी बड़ा आयोजन करने से कतरा रही है, तो दुबई में एक्सपो 2020 पूरे ज़ोरों पर चल रहा था.
दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह दुबई भी इस वैश्विक महामारी से प्रभावित हुआ. देश में संक्रमण को रोकने के लिए यहां भी लॉकडाउन लगाना पड़ा, मॉल सुनसान हो गए और कुछ समय के लिए दुनिया के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक पर जहाज़ों की गर्जना की जगह सिर्फ़ हवा की सांय-सांय सुनाई दी. यहां तक कि अमीरात एयरलाइंस ने उड़ान बंद होने के कारण अपने बहुत से कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया.
साल 2020 में दुबई की अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत कम हो गई, लेकिन इसने वापस छलांग लगाई और अब सभी क्षेत्रों में सुधार हो रहा है. इस समय, संयुक्त अरब अमीरात की लगभग 90 प्रतिशत आबादी कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन लगवा चुकी है और दुबई, जहां देश की लगभग 50 प्रतिशत आबादी रहती है, इसमें सबसे आगे है.
दुबई में हिल्शा ग्रुप के अध्यक्ष लाल भाटिया का कहना है कि दुबई के विकास का अंदाज़ा इमरजेन्सी आधार पर कोविड संकट से निपटने से ही लगाया जा सकता है.
लाल भाटिया भारत के कोलकाता शहर के रहने वाले हैं और वो पिछले साल ही दुबई शिफ़्ट हुए हैं. कोविड के दौरान जब संयुक्त अरब अमीरात पहली बार खुला तो उन्होंने पहली फ़्लाइट पकड़ी और यहां पहुंच गए. वह पहले भी कई बार दुबई जा चुके हैं, लेकिन इस बार उनके वहां जाने की वजह कुछ और थी.
वे कहते हैं कि, "मैं यहां आता-जाता रहता था, लेकिन अब मैंने यहां अपना स्थायी घर बना लिया है और इसका सबसे बड़ा कारण दुबई का कोविड संकट से निपटना है."
"जिस तरह से इन्होंने कोविड संकट से डील किया है, वह प्रभावशाली है. बाकी दुनिया की तरह इन्होंने इसे एक वित्तीय या आर्थिक संकट की तरह नहीं बल्कि स्वास्थ्य संकट की तरह डील किया है. इन्होंने ऐसे तरीक़े अपनाये कि पहले इससे स्वास्थ्य संकट की तरह डील किया जाये."
भाटिया का कहना है कि ''जब दुनिया के सभी वित्तीय केंद्र बंद या संकट में थे, तब दुबई ही एकमात्र ऐसी जगह था जो व्यापार के लिए खुला हुआ था. संयुक्त अरब अमीरात ने 50 साल में जो किया है, उसने मेरे जैसे लोगों को यहां खींचा है. ऐसा लगता है जैसे दुबई कोविड से निपटने के लिए तैयार था. यह उस नेतृत्व और विज़न का कमाल है कि मेरे जैसे लोग यहां आते हैं और कहते हैं कि मैं इसे अपना नया घर बना रहा हूं. यहां नेताओं ने सिर्फ़ वही नहीं किया जो उन्होंने सोचा था बल्कि वह किया जिसकी लोगों को ज़रूरत थी.''
भाटिया का कहना है कि दुबई की लीडरशिप ने पहले इस संकट को बहुत ही प्रोफ़ेशनल तरीक़े से समझा और फिर उससे डील किया. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि दुबई व्यापार के लिए खुला रहे, बल्कि उन्होंने दो क़दम आगे जाकर एक ऐसे वीज़ा सिस्टम की शुरुआत की जिससे दुनिया भर के लोग दुबई आ कर यहां से अपने घरों में बैठे अपने-अपने ऑफ़िस और कारोबार के लिए काम कर सकते थे.
भाटिया को हिल्शा ग्रुप के लिए यहीं एक व्यावसायिक अवसर भी मिला. दुबई पहुंचते ही उन्होंने वर्क फ़्रॉम दुबई प्रोग्राम पर काम करना शुरू कर दिया. "यहां हम ऑफ़र करते हैं कि दुबई एक ऐसी जगह है जहां से लोग वर्क फ़्रॉम होम कर सकते हैं. लोग यहां आयें, रहें, घर से काम करें. सरकार ने ऐसा किया है कि अगर आप महीने में 5 हज़ार डॉलर से ज़्यादा कमाते हैं तो आपको एक साल का वीज़ा मिल सकता है और आप दुबई से काम कर सकते हैं. सरकार ने सोचा कि कोविड के कारण, ज़्यादातर लोग घर से काम कर रहे होंगे, तो क्यों न उन्हें ख़ूबसूरत धूप वाले दुबई की पेशकश की जाए, जहां हाई स्पीड इंटरनेट और डेटा और सिस्टम की पूरी सिक्योरिटी हो.''
विजिट दुबई की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इस वीज़ा की कुल लागत 611 अमेरिकी डॉलर है जिसमें आवेदन शुल्क, वीज़ा प्रोसेसिंग की लागत, मेडिकल और संयुक्त अरब अमीरात आईडी शुल्क शामिल है.
भाटिया का कहना है कि ''दुबई ने कोविड से निपटने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का बेहतरीन इस्तेमाल किया है. कोविड के दौरान दुबई में जारी की गई ऐप के मुताबिक़, आपको बाहर जा कर घर का सामान लेने के लिए भी इजाज़त लेनी होती थी और अधिकारियों को बताना पड़ता था. कुछ दोस्त एक विला में बैठे थे और उन्होंने कहा कि चलो हम अलग-अलग दिशाओं में जा कर सामान ख़रीद कर लाते हैं. कुछ देर बाद ही उन्हें पुलिस का फ़ोन आया कि तुम लोग एक ही जगह से हो, फिर अलग-अलग दिशाओं में जाकर सामान क्यों ख़रीद रहे हो. यह है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जो कोविड के दौरान काम आई.''
दुबई में मास्क न पहनने पर 3,000 दिरहम का ज़ुर्माना
दुबई के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अख़बार ख़लीज टाइम्स के बिज़नेस एडिटर मुज़फ़्फ़र रिज़वी का भी मानना है कि दुबई का भविष्य बहुत उज्ज्वल है क्योंकि यह महामारी पर क़ाबू पाने की सफल रणनीति के बाद दुनिया में बेहतर जीवनशैली के लिए एक सुरक्षित स्थान के रूप में उभरा है.
दुबई में जारी ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ कोविड-19 के बाद पिछले साल की तुलना में दुबई की आबादी में 0.05 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. मुज़फ़्फ़र रिज़वी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि "कनाडा, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के बहुत से लोग महामारी के बाद दुबई शिफ़्ट हो गए हैं क्योंकि लॉकडाउन, सीमित आवाजाही और कोविड वैक्सीनेशन के लंबे इंतज़ार की वजह से वो अपने ही देश में असुरक्षित महसूस कर रहे थे. हमने यह भी देखा कि जब भारत में कोविड-19 वायरस के बड़े पैमाने पर फैलने से स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह प्रभावित हुआ, तो बड़ी संख्या में भारतीयों ने भी दुबई का रुख़ किया."
दुबई में सार्वजनिक स्थानों पर फ़ेस मास्क न पहनने पर 3 हज़ार दिरहम का ज़ुर्माना है.
लाल भाटिया का कहना है कि दुबई में स्थानीय लोगों से अधिक अप्रवासी रहते हैं और सभी नियमों को मान रहे हैं, वैक्सीन लगवा चुके हैं. "यह सब कुछ रातोंरात नहीं हुआ. यह पिछले 50 वर्षों से जो चल रहा है उसका हिस्सा है."
रिज़वान अहमद एक पाकिस्तानी व्यवसायी हैं जो लगभग 40 वर्षों से दुबई आ-जा रहे हैं. वह भी इस बात से सहमत हैं कि दुबई के क़ानून पिछले दो वर्षों में जिन्हें कोविड इयर्स कहा जाता है विदेशी आप्रवासियों के लिए काफ़ी नरम हो गए हैं और सरकार की रणनीति भी इस प्रक्रिया का हिस्सा है.
कच्चे घरों के बाद गगनचुंबी इमारतों का दौर
मशहूर है कि कुछ साल पहले एक ऐसा समय भी आया था जब पूरी दुनिया की सबसे ज़्यादा क्रेनें दुबई में मौजूद थीं. यह दौर दुबई के 'तेज़ गति' से होने वाले कंस्ट्रक्शन का दौर था. उस दौरान दुबई को अबू धाबी से जोड़ने वाले मुख्य शेख़ ज़ायद राजमार्ग को आधुनिक स्तर पर बनाया गया था, दुबई मरीना, बुर्ज ख़लीफा, जुमेरा लेक टावर्स, जुमेराह हाइट्स, पाम जुमेराह जैसी प्रमुख परियोजनाओं को शुरू किया गया था और दुबई एयरपोर्ट की एक साधारण-सी इमारत को दुनिया का सबसे व्यस्त एयरपोर्ट बनाया गया.
यहां ये दिलचस्प बात भी बताना ज़रूरी है कि पाम जुमेरा जो एक कृत्रिम द्वीप है, उसके निर्माण के लिए किसी कंक्रीट या लोहे का उपयोग नहीं किया गया था, बल्कि समुद्र तल से 120 मिलियन क्यूबिक मीटर रेत निकाल कर उससे द्वीप का निर्माण किया गया है.
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि कुल मिलाकर देखा जाये तो पिछले 20 या 30 वर्षों में किसी देश को इस तरह से बदल देना एक ज़बरदस्त उपलब्धि है. "दुबई एक वित्तीय केंद्र बन गया है, एक रीजनल पावर हॉउस बन गया है, बंदरगाहों को आधुनिक स्तर पर बनाया गया और बुर्ज ख़लीफा जैसी 828 मीटर ऊंची गगनचुंबी इमारतों का निर्माण किया गया है.
तेल में भी ये दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन गया है, पर्यटन स्थल भी है, मेडिकल हब भी बन गया है, अच्छे-अच्छे अस्पताल हैं. इसके अलावा, मिस्र, इराक़ और सीरिया जैसे अरब देशों के कमज़ोर होने से इस क्षेत्र में संयुक्त अरब अमीरात का राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ा है.
मुज़फ़्फ़र रिज़वी कहते हैं कि दुबई ने पिछले 18 वर्षों में एक बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया है जो इसे अपने प्रतिद्वंद्वियों और पड़ोसी राज्यों से आगे रखता है. इसने 2005 और 2006 में बुर्ज ख़लीफा, दुबई मॉल और दुबई मेट्रो जैसे मेगा डिवेलपमेंट्स की घोषणा की और 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बावजूद इन मेगा प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा किया. "दुबई मेट्रो एक बड़ी सफलता है.
कुछ साल पहले तक, यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि लोग निजी एसयूवी, लग्ज़री कारों और जीपों पर मेट्रो को प्राथमिकता देंगे क्योंकि दुबई में पेट्रोल पानी से सस्ता था. आज लोग समय बचाने और ट्रैफ़िक जाम से बचने के लिए दुबई मेट्रो का इस्तेमाल करते हैं.
कोविड और ऑनलाइन प्रॉपर्टी पोर्टल्स
जब साल 2007 और 2009 के बीच वैश्विक आर्थिक संकट आया, तो बाकी दुनिया की तरह संयुक्त अरब अमीरात भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ और इसकी आधुनिक विकास योजनाएं रुक गईं. लेकिन फिर दुबई जल्द ही अपने पैरों पर खड़ा हो गया और 2012 के बाद प्रॉपर्टी मार्केट में सुधार होने लगा.
यह वह समय था जब एक ईरानी नागरिक अता श्वाबरी ने दुबई में ऑनलाइन प्रॉपर्टी पोर्टल 'ज़ूम प्रॉपर्टी' लॉन्च किया, जो अब तेज़ी से फल-फूल रहा है. उनका कहना है कि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के निवेशक तो हमेशा से दुबई की प्रॉपर्टी में निवेश करते थे, लेकिन इस बार नए खिलाड़ी मैदान में आ गए हैं जिनमें इसरायली निवेशक भी शामिल हैं.
ज़ूम प्रॉपर्टी के मार्केटिंग डायरेक्टर फ़ैसल क़ुरैशी का कहना है कि ''शुरू में कोविड-19 की वजह से प्रॉपर्टी मार्केट में गिरावट आई थी, लेकिन क्योंकि हम एक ऑनलाइन पोर्टल हैं, इसलिए हम ज़्यादा प्रभावित नहीं हुए. ऑनलाइन पोर्टल के प्रति जागरूकता भी कोविड के दौरान ही बढ़ी है. प्रॉपर्टी पोर्टल लॉन्च करने का मक़सद भी यही था कि विदेशी निवेशकों के लिए आसानी हो और वो मार्केट का पोटेंशियल देख कर निवेश करें.''
कोविड-19 संकट के दौरान, जब दुनिया भर में ज़्यादातर लोग घर से काम कर रहे थे, तो दुबई की कंपनियों ने ऑनलाइन विशेषज्ञों की मदद से रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा कराना शुरू कर दिया. इससे सभी ऑनलाइन पोर्टल्स को फ़ायदा हुआ और निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी.
फ़ैसल का कहना है कि इसके अलावा एक्सपो 2020 की वजह से भी ऑनलाइन प्रॉपर्टी में निवेश में उछाल आया है. "संयुक्त अरब अमीरात की नीतियां बहुत ज़बरदस्त हैं, यात्रा, दस्तावेज़, प्रक्रियाएं, सब कुछ. कोविड के बाद हमारे पोर्टल पर विदेशी आते हैं. वे साइटों और परियोजनाओं को 3D नक़्शों पर देखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे आप ख़ुद जाकर साइट देखते हैं."
"अब जब यहां एक्सपो की वजह से टूरिस्ट और बिज़नेसमैन आये हैं तो हमारे रेंटल मार्केट में भी ज़बरदस्त उछाल आया है. जब किराया बढ़ा तो निवेशकों की दिलचस्पी भी बढ़ी और इसी तरह डेवलपर्स ने अपना प्रोडक्शन भी बढ़ा दिया है."
फ़ैसल क़ुरैशी का कहना है, "कोविड से पहले प्रॉपर्टी की क़ीमत 800 से 900 दिरहम प्रति वर्ग फ़ीट थी जो अब 900 से 1100 दिरहम के क़रीब हो गई है. पिछले क्वार्टर में विला की मांग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ी है. इसकी एक वजह तो ये है कि लोगों ने यात्रा ज़्यादा की है और दूसरा यह है कि सुरक्षा के कारण लोग अपार्टमेंट के बजाय विला में रहना पसंद कर रहे हैं और सरकार ने ऐसी नीतियां बना दी हैं कि लोग अपने परिवार के साथ आते हैं और विला में रहते हैं."
संयुक्त अरब अमीरात और एमिरेट्स एयरलाइंस
संयुक्त अरब अमीरात को दुनिया से जोड़ने में इसकी राष्ट्रीय एयरलाइन एमिरेट्स ने भी अहम भूमिका निभाई है. पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की स्थिति को देखते हुए, शायद बहुत से लोगों को विश्वास न हो कि एमिरेट्स एयरलाइन की स्थापना में पीआईए की बड़ी भूमिका है. कराची, पाकिस्तान का वो पहला शहर था, जहां एमेरिट्स की पहली उड़ान, ईके600, उतरी थी और पाकिस्तानी पायलटों और इंजीनियरों ने ही एमेरिट्स की तकनीकी मदद की थी.
रिज़वान अहमद 1979 से पाकिस्तान से दुबई की यात्रा कर रहे हैं. उनका कहना है कि एमिरेट्स की भी देश के विकास में अहम भूमिका है. "1985 में जब इसकी शुरुआत हुई तो जीवन बहुत आसान हो गया. यूरोप के लिए इसकी इतनी सर्विस है कि ज़्यादातर लोग इसका ही इस्तेमाल करते हैं. जब दिल चाहा चले गए और जब दिल चाहा आ गए."
एमिरेट्स दुनिया की बड़ी एयरलाइन है जिसकी उड़ानें मध्य पूर्व, अफ्रीक़ा, एशिया, दक्षिण प्रशांत, यूरोप, उत्तरी और दक्षिण अमेरिका के 50 शहरों में जाती हैं.
एमिरेट्स की वेबसाइट के अनुसार, कोविड-19 संकट के बावजूद, 2020 में इस एयरलाइन के ज़रिये एक करोड़ 58 लाख लोगों ने यात्रा की.
दुबई का हाइब्रिड सिस्टम
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि "मूल रूप से, संयुक्त अरब अमीरात का समाज हमेशा से ही एक रूढ़िवादी समाज रहा है. उनकी परंपराएं आज भी क़बायली हैं. लेकिन ये पर्यटकों की सुविधा के लिए बहुत-सी आधुनिक चीज़ें भी बर्दाश्त कर लेते हैं क्योंकि दुबई में ज़्यादा तेल नहीं है, यह पर्यटकों पर निर्भर करता है. वे यहां जिस भी लिबास में चाहें आ सकते हैं और होटलों के अंदर शराब भी पी सकते हैं."
हालांकि, हाल ही में, दुबई ने एक ऐसा क़दम उठाया है जो हर तरह से इस समाज के लिहाज़ से एक बहुत ही क्रांतिकारी क़दम है. दुबई में क़ानून के अनुसार, विदेशी पुरुष और महिलाएं भी शादी किये बिना एक दूसरे के साथ नहीं रह सकते थे और न ही बच्चा पैदा कर सकते थे. बल्कि, क़ानून तो यहां तक कहता है कि वे सार्वजनिक जगहों पर एक-दूसरे का हाथ भी नहीं पकड़ सकते. लेकिन हाल ही में एक क़ानून पारित किया गया जिसके तहत विदेशी अब 'एक साथ रह सकते हैं' और अब अगर कोई महिला बिना शादी किए गर्भवती हो जाती है, तो उसे देश छोड़ कर भागना या अवैध गर्भपात नहीं करवाना पड़ेगा.
दुबई में रहने वाले विदेशियों के अनुसार, यह क़दम इसलिए उठाया गया क्योंकि बहुत से यूरोपीय, पार्टनर को साथ न रखने की वजह से देश में नहीं रहना चाहते थे और कोविड संकट के बाद सरकार इसे अफ़ोर्ड नहीं कर सकती थी. अब यूरोपीय देशों के लोगों को अस्पताल में सिर्फ़ अपना कार्ड दिखाना पड़ेगा कि हम बच्चे के माता-पिता हैं लेकिन अभी हमारी शादी नहीं हुई है.
नाम न छापने की शर्त पर एक निवासी ने कहा कि यह एक "बहुत बड़ा क़दम' है. वे हर तरह की रुकावट को दूर कर रहे हैं, चाहे उसकी जो भी क़ीमत हो, इस्लामी या ग़ैर-इस्लामिक. वो चाह रहे हैं कि लोग यहां आकर रहें."
दुबई की शहज़ादियां और मानवाधिकार
साल 2018 में दुबई के शासक शेख़ मोहम्मद-बिन-राशिद-अल-मकतूम की बेटी शहज़ादी लतीफ़ा-अल-मकतूम के कथित अपहरण और फिर जबरन हिरासत में रखने और इसके बाद साल 2019 में शेख़ मोहम्मद और उनकी पत्नी शहज़ादी हया के बीच तलाक़ के बाद, फ़ोन हैकिंग और मानवाधिकारों के हनन के मुक़दमे से दुबई के शासक की साख तो ख़राब हुई ही, साथ ही इस पर भी बात होने लगी कि ऐसे देश में आम नागरिकों और आप्रवासियों का क्या हाल होगा. शहज़ादी लतीफ़ा की कहानी की गूँज तो संयुक्त राष्ट्र तक पहुंची.
मानवाधिकार संगठन आरोप लगाते हैं कि बहुत से आप्रवासियों को जबरन अगवा, मुल्क बदर या अन्यायपूर्ण तरीक़े से हिरासत में रखा जाता है, निष्पक्ष सुनवाई के बिना सज़ा दी जाती है और प्रताड़ित किया जाता है.
अरब स्प्रिंग के दौरान भी, बहुत से लोगों को केवल इसलिए जबरन गिरफ़्तार किया गया और सज़ा दी गई क्योंकि वे क़ानून में सुधार की मांग कर रहे थे.
संयुक्त अरब अमीरात का विदेशी मज़दूर वर्ग भी इस तरह की कई कहानियां सुनता है, लेकिन वे मानवाधिकारों के इन उल्लंघन के बारे में बात करने से भी डरते हैं, और इसी डर को दूर करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात को सबसे ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है.
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, "इस मुद्दे को लेकर मैंने कई बार आला अधिकारियों से बात की है. वो कहते हैं कि हम एक कल्याणकारी राज्य हैं और हम पैदा होने से लेकर क़ब्र तक हर नागरिक को सभी सुविधा मुहैया कराते हैं. हम जो कुछ भी करते हैं वो यहां रहने वालों के फ़ायदे के लिए करते हैं. यहां अमेरिका की तरह आज़ादी, लोकतंत्र और चुनाव नहीं चल सकते क्योंकि यहां मजलिस का सिस्टम है. हम अपने नागरिकों के साथ सीधे संपर्क में रहते हैं."
तो दुबई चुम्बक की तरह लोगों को आकर्षित करता है, लेकिन यह कह पाना मुश्किल है कि क्या इसके आकर्षण की वजह यहां की आसान टैक्स नीतियां, ड्यूटी फ्री ज़ोन्स, बिज़नेस फ्रेंडली वातावरण, कोविड के ख़िलाफ़ सफल रणनीतियां, सुंदर रेतीले बीच या इसकी मिनिस्ट्री फ़ॉर हैप्पीनेस ऐंड वेल बीइंग है.
हां यक़ीन कीजिए यहां ख़ुश रखने का भी एक मंत्रालय था जिसे कोविड संकट के दौरान मिनिस्ट्री ऑफ़ कम्युनिटी डिवेलपमेंट के तहत कर दिया गया है. (bbc.com)
-संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 10 दिसम्बर | पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान 'सरकारी संस्थानों के खिलाफ' बयान देने के आरोप में ग्वादर में पुलिस ने 77 वर्षीय अवामी वर्कर्स पार्टी (एडब्ल्यूपी) के कार्यकर्ता यूसुफ मस्तीखान को गिरफ्तार किया है, जो कि एक कैंसर रोगी हैं।
फ्राइडे टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूसुफ मस्तीखान को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
मस्तीखान के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई है जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने एडब्ल्यूपी कार्यकर्ता को राष्ट्र, सशस्त्र बलों और खुफिया एजेंसियों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देते सुना है।
शिकायत में मस्तीखान के हवाले से कहा गया है कि 1947 में बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान का हिस्सा बनाया गया था और राष्ट्र प्रांत के लोगों को 'गुलाम' मानता है।
प्राथमिकी के अनुसार, मस्तीखान ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान 1953 से प्रांत से गैस की चोरी कर रहा है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने भी एडब्ल्यूपी कार्यकर्ता की गिरफ्तारी की निंदा की है। एचआरसीपी ने कहा, "उन्होंने इस मांग के अलावा और कुछ नहीं किया है कि राज्य ग्वादर के निवासियों को नागरिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार दे, जिसके वे हकदार हैं।"
अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी राजनेता की गिरफ्तारी पर चिंता व्यक्त की।
एक सोशल मीडिया यूजर ने कहा, "वास्तव में उनके स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि वह वृद्ध हैं और एक एडवांस स्टेज के कैंसर रोगी हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य यूजर ने लिखा कि नेता की गिरफ्तारी को लेकर पूरे बलूचिस्तान में गुस्सा है और नागरिक समाज और प्रगतिशील राजनीतिक आंदोलनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
ग्वादर में एक महीने से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, प्रदर्शनकारियों ने पीने के पानी तक पहुंच सहित बुनियादी अधिकारों की मांग की है। इसके अलावा भी लोगों की कई मांगे हैं, जिनमें जीवानी से कराची तक तटीय राजमार्ग पर अनावश्यक जांच चौकियों को हटान, सीमा व्यापार पर प्रतिबंध तत्काल हटाना और अन्य चीजों के अलावा ईरान से खाद्य पदार्थों का परिवहन शामिल है। (आईएएनएस)
कोलंबो, 10 दिसम्बर | श्रीलंका सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश करने वालों के लिए कोविड वैक्सीन कार्ड अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है। राष्ट्रपति कार्यालय ने शुक्रवार को इसकी घोषणा की। कोविड -19 नियंत्रण पर विशेष समिति ने कहा कि उन्होंने भविष्य में सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश करते समय टीकाकरण कार्ड को अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया है। हालांकि, इन्होंने कहा कि महामारी के प्रसार को रोकने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश करने से टीका नहीं लेने वालों को रोकने के संबंध में कानूनी सलाह भी मांगी गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय शारीरिक टीकाकरण कार्ड को मोबाइल एप्लिकेशन से बदलने की भी योजना बना रहा है।
इस बीच, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने विशेष समिति के सदस्यों को आगामी त्योहारी सीजन के दौरान कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए अगले दो सप्ताह के भीतर बूस्टर खुराक देने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है।
शुक्रवार को, द्वीप राष्ट्र ने 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए फाइजर-बायोएनटेक बूस्टर खुराक को भी शुरू करना शुरू कर दिया है, जिन्होंने किसी भी कोविड -19 वैक्सीन के दो खुराक लिए हैं। अक्टूबर के बाद से, फ्रंटवर्क लाइन के स्वास्थ्य कर्मियों और 60 वर्ष से ऊपर के लोगों को बूस्टर खुराक दी गई है।
देश ने 16 से 19 साल के बच्चों को दूसरी खुराक और 12 से 15 साल के बीच के सभी बच्चों को पहली खुराक देने को हरी झंडी दे दी है।
देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक गंभीर वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा है। राष्ट्रपति राजपक्षे ने पर्यटन पर लगाए गए प्रतिबंधों में और ढील देने का निर्देश दिया।
कोविड -19 के नए ओमिक्रॉन वैरिएंट के प्रसार की खबर के बाद, छह अफ्रीकी देशों - दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, नामीबिया, बोत्सवाना, लेसोथो और इस्वातिनी के यात्रियों पर 27 नवंबर को लगाया गया यात्रा प्रतिबंध शुक्रवार को हटा लिया गया है।(आईएएनएस)
सोने के खनन और इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होने वाला पारा गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है. लेकिन पारे के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद किर्गिस्तान उत्पादन बढ़ा रहा है.
डॉयचे वैले पर डायना क्रुजमान की रिपोर्ट-
ऐडारकेन किर्गिस्तान में एक पहाड़ी शहर है. इसके पास में ही खनिक पहाड़ों पर भारी मशीनों की मदद से काम कर रहे हैं. खदान मजदूर धातु खोजने के लिए चट्टानों को अपने हथौड़ों से तोड़ते हैं. चमकदार धातु को पाने के लिए मजदूर कड़ी मशक्कत करते हैं. पारा खतरनाक गुणों वाली धातु है.
ऐडारकेन खदान धरती पर उन अंतिम स्थानों में से एक है जहां अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए कानूनी रूप से नया पारा निकाला जाता है. 2013 में 135 देशों ने मिनामाता कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए, यह एक वैश्विक समझौता है जो नए पारा उत्पादन पर प्रतिबंध लगाता है और इसका उद्देश्य धातु में अधिकांश अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समाप्त करना है.
क्या है मिनामाता कन्वेंशन
वैश्विक समझौते के तहत पारा का कारखाना उत्पादन प्रतिबंधित है और अंतरराष्ट्रीय बाजारों से धातु को हटाना समझौते का हिस्सा है. इसका नाम जापान के मिनामाता शहर के नाम पर रखा गया है. यह समझौता 16 अगस्त 2016 को लागू हुआ था.
किर्गिस्तान की अर्थव्यवस्था में पारा खनन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसलिए यह मिनामाता समझौते का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. किर्गिज स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संचालित एक प्रयोगशाला के प्रमुख महमूद इसराइलियोव का कहना है, "पारे के पर्यावरण प्रदूषण के लिए हम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि यह एक वैश्विक समस्या है."
पारे का अंतरराष्ट्रीय बाजार
किर्गिज शहर ऐडारकेन में पारा खनन 1941 में पूर्व सोवियत संघ के दौरान शुरू हुआ था. साम्यवादी सोवियत संघ के पतन के बाद भी खदान सरकारी नियंत्रण में रही. किर्गिस्तान में प्राप्त पारा चीन, रूस, कजाकिस्तान, यूक्रेन, भारत, फ्रांस और अमेरिका को निर्यात किया जाता है. मिनामाता कन्वेंशन के बाद भी पारा के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार 38 मिलियन यूरो का है. अंतरराष्ट्रीय बाजार से पूंजी किर्गिस्तान की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा सहारा है.
एक और महत्वपूर्ण बिंदु है कि पारे के अवैध खनन से अंतरराष्ट्रीय काला बाजार भी लाभान्वित हो रहा है. यह अवैध खनन भी अमेजन क्षेत्र के लिए एक बड़ी समस्या है.
पारे का हानिकारक प्रभाव
पारा एक जहरीली धातु है. यह कुदरती तौर पर हवा, पानी और मिट्टी में मिलता है. ज्वालामुखियों आदि से यह हवा-पानी में मिल जाता है. हालांकि प्रदूषण ने इसकी मात्रा बढ़ाई है. कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र और सोने का खनन आदि ऐसी गतिविधियां हैं जिन्होंने वातावरण में पारे की मात्रा बढ़ाई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पारे को 10 ऐसे रसायनों में रखा है, जो इंसानी सेहत के लिए खतरनाक हैं. बहुत कम मात्रा में भी इनका मानव शरीर पर बहुत बुरा असर होता है. यह स्नायुतंत्र, पाचन तंत्र और फेफड़ों, गुर्दों त्वचा व आंखों पर सीधा प्रभाव डालता है.
2013 में ऐडारकेन में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किर्गिज शहर के पास के क्षेत्रों से एकत्र किए गए नमूनों में पारा पाया गया था. ऐडारकेन खदान से पारा को वाष्पित होने से रोकने के सरकार के प्रयासों के अब तक कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं मिले हैं. (dw.com)
न्यूजीलैंड की सरकार एक कानून लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत 2027 के बाद आने वाली पीढ़ी सिगरेट नहीं पीती होगी.
न्यूजीलैंड ने तंबाकू उद्योग पर दुनिया की सबसे कठिन कार्रवाई में से एक में युवाओं को अपने जीवनकाल में सिगरेट खरीदने पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है. देश का तर्क है कि धूम्रपान का सेवन खत्म करने के अन्य प्रयासों में बहुत अधिक समय लग रहा है.
प्रस्तावित कानून के मुताबिक 14 वर्ष और उससे कम्र उम्र के लोग 2027 में कभी भी सिगरेट नहीं खरीद पाएंगे. 50 लाख की आबादी वाले देश में 9 दिसंबर को नया कानून का खाका पेश किया गया. कानून तंबाकू के खुदरा विक्रेताओं की संख्या पर भी अंकुश लगाएगा और सभी उत्पादों में निकोटीन के स्तर में कटौती करेगा.
स्वास्थ्य मंत्री आयशा वेर्रल ने एक बयान में कहा, "हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि युवा कभी धूम्रपान न करें, युवाओं के नए समूहों को धूम्रपान करने वाले तंबाकू उत्पादों को बेचने या आपूर्ति करने के लिए इसे अपराध बना देंगे."
उन्होंने कहा, "अगर कुछ नहीं बदलता है, तो माओरी धूम्रपान की दर 5 प्रतिशत से कम होने तक दशकों लगेंगे और यह सरकार लोगों को पीछे छोड़ने के लिए तैयार नहीं है."
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में 15 वर्ष से अधिक आयु के सभी न्यूजीलैंड के 11.6 प्रतिशत लोग धूम्रपान करते हैं, यह अनुपात मूल निवासी माओरी वयस्कों में 29 प्रतिशत तक पहुंच जाता है.
2022 के अंत तक इसे कानून बनाने के उद्देश्य से सरकार अगले साल जून में संसद में बिल पेश करने से पहले आने वाले महीनों में माओरी स्वास्थ्य कार्य बल के साथ परामर्श करेगी.
इसके बाद प्रतिबंधों को 2024 से चरणों में शुरू किया जाएगा, जिसकी शुरुआत अधिकृत विक्रेताओं की संख्या में तेज कमी के साथ होगी. 2025 में निकोटीन की आवश्यकता कम हो जाएगी और 2027 से "धूम्रपान-मुक्त" पीढ़ी आने लगेगी. 2027 में न्यूजीलैंड एक ऐसी पीढ़ी चाहता है जो सिगरेट नहीं पीती हो.
न्यूजीलैंड की तरह यूनाइटेड किंगडम 2030 तक धूम्रपान मुक्त होने का लक्ष्य निर्धारित किया है जबकि कनाडा और स्वीडन ने आबादी के 5 प्रतिशत से भी कम को धूम्रपान के प्रसार को करने का लक्ष्य रखता है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एपी)
नासा की जेम्स वेब दूरबीन अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली अभी तक की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली दूरबीन है. इसके जरिए वैज्ञानिक अंतरिक्ष की गहराइयों में और अरबों साल पीछे के समय में झांक पाएंगे.
नासा ने कहा है कि हबल दूरबीन की जगह लेने वाली जेम्स वेब दूरबीन उस समय में झांकने में वैज्ञानिकों की मदद करेगी जब सबसे पहली आकाशगंगाओं का बनना शुरू हुआ था. नासा के शब्दों में यह "अंतरिक्ष का और समय का ऐसा हिस्सा है जिसे कभी देखा नहीं गया."
यानी ब्रह्मांड की जवानी के दिन, बिग बैंग सिर्फ कुछ करोड़ों साल बाद. नासा के गॉडार्ड अंतरिक्ष उड़ान केंद्र में इंस्ट्रूमेंट सिस्टम्स इंजीनियर बेगोनिया विला ने एक वार्ता में बताया कि दूरबीन समय में करीब एक अरब 35 करोड़ साल पीछे देखने की कोशिश करेगी, जो कि "विज्ञान के लिए काफी उत्कृष्ट लक्ष्य" है.
बीते समय में देखना
उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य है वैज्ञानिकों को यह मालूम करने का मौका देना कि आकाशगंगाएं "कैसे बदलीं और वैसी बनीं जिस रूप में आज हम उनमें रहते हैं." टेलिस्कोप सबसे पहले बने सितारों का भी अध्ययन करेगी और "पानी, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसे जीवन का संकेत माने जाने वाले तत्वों" को खोजने की कोशिश करेगी.
रोशनी को यात्रा करने में लगने वाले समय की वजह से अंतरिक्ष की गहराइयों में देखने का मतलब बीते समय में देखना होता है. उदाहरण के तौर पर सूरज की रौशनी को पृथ्वी पर पहुंचने में आठ मिनटों का समय लगता है. हबल एक अरब 34 करोड़ सालों से आगे नहीं जा पाई और उसने जीएन-जेड11 नाम की अभी तक जानी जाने वाली सबसे पुरानी आकाशगंगा की खोज की.
जीएन-जेड11 के बारे में सबसे पहले बताने वाले स्विट्जरलैंड के तारा-भौतिकविद पास्कल ओश का कहना है कि वो प्राचीन आकाशगंगा भले की सिर्फ एक बिंदु थी लेकिन वो "एक आश्चर्य भी थी और उसमें ऐसा प्रकाश था जिसकी किसी ने इतनी दूर से उम्मीद नहीं की थी."
इंफ्रारेड से लैस दूरबीन
1990 में लॉन्च की गई हबल मुख्य रूप से दिखाई देने वाली रोशनी पर काम करती है वेब इंफ्रारेड पर ध्यान केंद्रित करती है. उसे 22 दिसंबर को लॉन्च किया जाएगा. नासा का कहना है कि ब्रह्मांड के सबसे पहले रोशनी वाले पिंडों से जो रोशनी निकली थी वो ब्रह्माण्ड के लगातार होते विस्तार की वजह से आज हम तक इंफ्रारेड के रूप में पहुंचती है.
वेब हबल से काफी ज्यादा संवेदनशील है और उम्मीद की जा रही है कि वो और ज्यादा बारीकियों वाली तस्वीरें उपलब्ध करवाएगी. उसकी इंफ्रारेड क्षमता तारों के बीच मौजूद धूल के बादलों के अंदर भी देख पाएगी को अक्सर सितारों की रोशनी को सोख लेती है.
फ्रेंच अटॉमिक एनर्जी कमीशन में तारा-भौतिकविद डेविड एल्बाज कहते हैं कि इससे "इन बादलों के अंदर, सितारों और आकाशगंगाओं के जन्म को देखना मुमकिन हो पाएगा." वेब को नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और कैनेडियन अंतरिक्ष एजेंसी ने मिल कर बनाया है.
सीके/एए (एएफपी)
जानकार मानते हैं कि भारत के बड़े आकार से अलग इस तरह की प्रवृत्ति के पीछे कई तरह की खींचतान और अनोखी काबिलियत है. प्रॉब्लम सॉल्विंग, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और लगातार कड़ी मेहनत करने की क्षमता भी इसमें अहम रोल निभाती है.
ट्विटर के नए सीईओ पराग अग्रवाल भारत के प्रतिष्ठित आईआईटी संस्थान के भूतपूर्व स्टूडेंट्स के क्रम में नए जुड़ गए हैं, जिन्हें अमेरिका की सबसे बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों में से एक की कमान सौंपी गई है. अब शिवानी नंदगांवकर उन्हीं के पदचिन्हों पर चलना चाहती हैं.
22 साल की शिवानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे की स्टूडेंट हैं जिस संस्थान से पराग अग्रवाल ने भी पढ़ाई की है. शिवानी को भी गूगल में प्लेसमेंट मिल गया है और वे भी उन हजारों आईआईटी ग्रैजुएट्स में शामिल हो चुकी हैं, जो भारतीय संस्थानों से निकलकर बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों में जाते हैं.
वे कहती हैं, "जब मैंने पराग के बारे में सुना तो मुझे बहुत खुशी हुई. एक आईआईटीयन गूगल का भी सीईओ है, सुंदर पिचाई. इसलिए अब मेरे लिए सफलता की सीढ़ियों का यही मतलब था."
बड़ी कंपनियों के सबसे बड़े पदों पर
पराग अग्रवाल, एस ऐंड पी 500 में शामिल किसी कंपनी के सबसे कम उम्र के सीईओ हैं. वे अभी मात्र 37 साल के हैं. गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट के 49 साल के सीईओ सुंदर पिचाई की तरह ही उन्होंने भी भारत को अपनी आईआईटी की पढ़ाई पूरी करने के बाद छोड़ दिया था. फिर उन्होंने अमेरिका से ही पोस्टग्रैजुएशन किया और यहां कई कंपनियों में काम भी किया.
अन्य भारतीय, जो ऊंचे कॉरपोरेट पदों पर रहे हैं, उनमें हैं आईबीएम के अरविंद कृष्णा और पॉलो ऑल्टो नेटवर्क्स के निकेश अरोड़ा. ये दोनों भी आईआईटी के ही स्टूडेंट रहे हैं. माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला और अडोबी के शांतनु नारायण का नाम भी इसी क्रम में आता है.
भारतीय सबसे आगे क्यों?
बड़ी कंपनियों के अधिकारी और एक्सपर्ट कहते हैं कि भारत के बड़े आकार से अलग इस तरह की प्रवृत्ति के पीछे कई तरह की खींचतान और अनोखी काबिलियत है. साथ ही प्रॉब्लम सॉल्विंग की संस्कृति, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और लगातार कड़ी मेहनत कर सकने की क्षमता भी इसमें अहम रोल निभाती है.
आईआईटी ग्रैजुएट और सन माइक्रोसिस्टम्स के को-फाउंडर विनोद खोसला मानते हैं कि अलग-अलग समुदायों, रिवाजों और भाषाओं के बीच बड़े होने की वजह से भारतीयों में कठिन परिस्थितियों में भी रास्ता निकाल लेने की समझ होती है.
अरबपति वेंचर कैपिटलिस्ट खोसला कहते हैं, "आईआईटी की कठिन भारत में पढ़ाई में प्रतिस्पर्धा और सामाजिक उठापटक उनकी काबिलियत को बढ़ाने में मदद करती हैं."
भारत से निकले बॉस सफल
सिलिकॉन वैली में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों में टेक्निकल विशेषज्ञता के साथ ही, अलग-अलग समुदायों को संभालने और अनिश्चितता के बीच आंतरप्रेन्योरशिप जैसी विशेषताओं की जरूरत होती है. अकादमिक जगत से जुड़े भारतीय-अमेरिकी विवेक वाधवा कहते हैं, रचनात्मकता दिखाते हुए आपको हमेशा नियम तोड़ने होते हैं, आपको निडर होना चाहिए. और... आप भारत में हर रोज बिना कोई नियम तोड़े, बिना अक्षम नौकरशाही और भ्रष्टाचार से जूझे बिना रह ही नहीं सकते.
वह कहते हैं, "जब आपको सिलिकॉन वैली में रचनात्मकता दिखानी होती है तब ये काबिलियत काफी काम आती हैं क्योंकि आपको हमेशा सत्ता को चुनौती देनी होती है. और ये चीजें कीमती हैं, टैक्सी सेवाएं देने वाली बड़ी कंपनी उबर ने इस महीने आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट्स को अमेरिका में प्लेसमेंट के दौरान 2.74 लाख डॉलर यानी 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का पैकेज दिया है.
अच्छे से अच्छा टैलेंट
130 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले देश में इस तरह के इनामों का कॉम्पटीशन पढ़ाई पर ध्यान दिए जाने के साथ काफी पहले ही शुरु हो गया था. आईआईटी को भारत की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी के तौर पर देखा जाता है और इसकी 16 हजार सीटों के लिए हर साल 10 लाख से भी ज्यादा स्टूडेंट्स अप्लाई करते हैं.
पिछले डेढ़ साल से नंदगांवकर हफ्ते के सातों दिन 14 घंटों से भी ज्यादा पढ़ाई करती हैं. वे बताती हैं कि कुछ स्टूडेंट्स तो इसके लिए 14-15 साल की उम्र से ही पढ़ाई शुरु कर देते हैं.
विवेक वाधवा कहते हैं, "एक ऐसी प्रवेश परीक्षा के बारे में सोचिए जो एमआईटी और हार्वर्ड से 10 गुना ज्यादा कठिन हो. बस वही आईआईटी है. तो इसमें देश के बेहतर से बेहतर टैलेंट आते हैं."
भारत से बाहर क्यों निकले आईआईटीयन
आईआईटी का नेटवर्क 1950 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्थापित किया गया था, जो 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद नए भारत के निर्माण के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के ग्रैजुएट्स का एक समूह बनाना चाहते थे.
लेकिन इंजीनियर्स की सप्लाई सीमित घरेलू मांग से आगे निकल गई. तो ये ग्रैजुएट्स भारत के बाहर, खासकर अमेरिका में नौकरी के अवसर ढ़ूंढ़ने लगे, जहां डिजिटल क्रांति के शुरु होने के बाद बेहद काबिल कर्मचारियों की जरूरत थी.
आईआईटी बॉम्बे के डिप्टी डायरेक्टर एस सुदर्शन कहते हैं, "60, 70 और 80 ही नहीं बल्कि 90 के दशक में भी भारतीय उद्योग उतने एडवांस नहीं थे और... जो नई टेक्नोलॉजी पर काम करना भी चाहते थे, उन्हें विदेश जाने की जरूरत महसूस हुई."
अग्रवाल, पिचाई और नडेला ने इन बड़ी कंपनियों में अपना रास्ता बनाने में दशकों का समय गुजारा है और अमेरिकियों की बनाई इन कंपनियों का विश्वास हासिल करते हुए अंदरूनी जानकारियां जुटाई हैं. और सालों तक, अमेरिका के कौशल आधारित इमिग्रेंट वीजा एच-1 बी के आधे से ज्यादा एप्लीकेंट्स भारत से रहे और उनमें भी ज्यादातर टेक सेक्टर से रहे.
भारत ही बन गया टेक हब तब क्या होगा?
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देवेश कपूर, जो खुद एक आईआईटी ग्रैजुएट हैं, कहते हैं, "इसके उलट भारत से ज्यादा जनसंख्या वाले चीन के इंजीनियरों के पास घर में ही नौकरियां खोजने या अमेरिका में पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद घर लौटने का ही विकल्प था क्योंकि उनकी घरेलू अर्थव्यवस्था तेजी से फैल रही थी."
यह परिघटना धीरे-धीरे खत्म भी हो सकती है क्योंकि भारत में अब खुद टेक सेक्टर तेजी से तरक्की कर रहा है. जिससे भारत के सबसे अच्छे और होनहार दिमागों को अपने देश में ही अच्छे अवसर मिल जा रहे हैं. लेकिन नंदगांवकर के लिए अग्रवाल या पिचाई जैसा टेक सेक्टर का बॉस बनना कोई बहुत दूर की कौड़ी नहीं है. वे कहती हैं, "क्यों नहीं हो सकता, बड़े सपने देखिए तो."
एडी/वीके (एएफपी)
पहली ‘समिट फॉर डेमोक्रेसी’ के उद्घाटन भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि दुनियाभर में आजादियां ऐसे नेताओं के कारण खतरे में हैं जो अपनी ताकत को बढ़ाने में लगे हैं और दमन को सही ठहरा रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दुनिया के सौ से अधिक देशों के नेताओं से अपील की है कि लोकतंत्र को मजबूत करें, मानवाधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करें क्योंकि मौजूदा दौर में एकाधिकारवादी सरकारें लोकतंत्र को बड़ी चुनौती दे रही हैं.
अपनी तरह के इस पहले सम्मेलन में बाइडेन ने कहा, "हम इतिहास में एक दोराहे पर खड़े हैं. क्या हम अधिकारों और लोकतंत्र को पीछे खिसक जाने देंगे? या हम मिलकर एक सोच और हौसले के साथ इंसान और इंसानी अधिकारों को आगे की ओर ले जाएंगे?”
पहला ऐसा सम्मेलन
अमेरिका ने पहली बार ‘समिट ऑफ डेमोक्रेसी' नाम से इस सम्मेलन का आयोजित किया है जिसमें दुनियाभर से सौ से ज्यादा नेताओं को बुलाया गया है. इस सम्मेलन को बाइडेन के फरवरी में किए एक ऐलान से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि वह अमेरिका को दुनिया के नेतृत्व की भूमिका में फिर से ले जाएंगे और तानाशाही शासकों को करारा जवाब देंगे.
111 देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए बाइडेन ने कहा, "लोकतंत्र कोई हादसा नहीं है. हमें इसे हर पीढ़ी के साथ बदलना होता है. मेरे विचार से यही हमारे वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है.” बाइडेन ने चीन या रूस जैसे देशों की ओर सीधे कोई उंगली नहीं उठाई, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्मेलन ऐसी ही ताकतों के खिलाफ जनमत बनाने का एक जरिया है. इस समझ की वजह यह भी है कि रूस और चीन के नेताओं को इस सम्मेलन में नहीं बुलाया गया है.
यह बात कई मंचों से कही जा चुकी है कि दुनिया इस वक्त सबसे ज्यादा देशों में लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है. हाल ही में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी ऐंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने एक रिपोर्ट में कहा था कि म्यांमार, अफगानिस्ता और माली में हुए तख्तापलट ने तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया ही है, हंगरी, ब्राजील और भारत भी उन देशों में शामिल हैं जहां लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हुई हैं.
कमजोर होते लोकतंत्र
लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम करने वाली संस्था आइडिया के मुताबिक ऐसे देशों की संख्या जिनमें लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं इस वक्त जितनी अधिक है उतनी कभी नहीं रही. इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक लोक-लुभावन राजनीति, आलोचकों को चुप करवाने के लिए कोविड-19 महामारी का इस्तेमाल, अन्य देशों के अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों को अपनाने का चलन और समाज को बांटने के लिए फर्जी सूचनाओं का प्रयोग जैसे कारकों के चलते लोकतंत्र खतरे में है.
आइडिया ने 1975 से अब तक जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट कहती है, "पहले से कहीं ज्यादा देशों में अब लोकतंत्र अवसान पर है. ऐसे देशों की संख्या इतनी अधिक पहले कभी नहीं रही, जिनमें लोकतंत्र में गिरावट हो रही हो."
रिपोर्ट में ब्राजील, भारत और अमेरिका जैसे स्थापित लोकतंत्रों को लेकर भी चिंता जताई गई है. रिपोर्ट कहती है कि ब्राजील और अमेरिका में राष्ट्रपतियों ने ही देश के चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े किए जबकि भारत में सरकार की नीतियों की आलोचना करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है.
अमेरिका ने कहा है कि दुनिया में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार कांग्रेस के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि 42.44 करोड़ डॉलर की राशि उपलब्ध करवाई जा सके. इस राशि का इस्तेमाल कई कदमों के लिए किया जाएगा जिनमें स्वतंत्र न्यू मीडिया को मजबूत करना भी शामिल है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
इस्लामाबाद. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर से भारत के खिलाफ बयानबाजी की है. इमरान खान ने इस्लामाबाद कॉन्क्लेव 2021 को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ की ब्राह्मणों पर आधारित जो विचारधारा है, वह भारत के 50-60 करोड़ अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक मानती है. इतना ही नहीं, इमरान खान ने कश्मीर को दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा बता दिया.
‘कश्मीर मुद्दे ने दक्षिण एशिया को बंधक बनाया’
इमरान खान ने अपने भाषण में क्षेत्रीय स्थिति पर कहा कि पूरे दक्षिण एशिया को कश्मीर के मुद्दे ने बंधक बनाकर रखा हुआ है. मुझे बहुत अफसोस से कहना पड़ता है कि हमने भारत सरकार से संपर्क की पूरी कोशिश की, लेकिन कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली. हमने पीएम मोदी को फोन भी किए, लेकिन हमें आहिस्ता-आहिस्ता अहसास हुआ कि इसे हमारी कमजोरी समझा जा रहा था.
इमरान बोले- भारत से बाद करना मुश्किल
पाकिस्तान के पीएम ने कहा- ‘दुर्भाग्य से हम एक सामान्य भारत सरकार के साथ नहीं, बल्कि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की विचारधारा के साथ बातचीत कर रहे थे. इस विचारधारा के साथ बातचीत करना बहुत मुश्किल है. उन्होंने आगे कहा कि जिसने भी आरएसएस की विचारधारा पढ़ ली है, उनके संस्थापक के बयानों को देख लें, तो ऐसे लोगों के साथ मुश्किल है कि वे हमारे साथ सही मायनों में बातचीत करते.’
‘ब्राह्मणों पर केंद्रित है आरएसएस की विचारधारा’
इमरान ने कहा कि हिंदुस्तान में जो हो रहा है वह सिर्फ हमारी बदकिस्मती नहीं है, खासतौर पर कश्मीर की बदकिस्मती भी नहीं है, बल्कि यह हिंदुस्तान के लोगों की बड़ी बदकिस्मती है. एक इतना बड़ा मुल्क हो उसके अंदर कम से कम 50-60 करोड़ तो अल्पसंख्यक हैं. जो ये ब्राह्मण…ब्राह्मणों पर केंद्रित आरएसएस की विचारधारा है वह 50-60 करोड़ लोगों को निकाल रही है. इमरान ने दावा किया कि कुछ सामाजिक वर्गों के हाशिए पर जाने से भारतीय समाज और अन्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.
पाक पीएम का दावा- हाशिए पर रखे लोग कट्टरपंथी बनते हैं
पाकिस्तानी पीएम ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि जब आप लोगों को बाहर करते हैं तो आप (लोगों) को हाशिए पर रखते हैं और फिर आप उन्हें भी कट्टरपंथी बनाते हैं. इमरान ने कहा कि उनके विचार में, सैन्य साधनों और युद्धों के माध्यम से हल की गई समस्याएं गलत अनुमान के अधीन थीं. जो लोग युद्ध के माध्यम से समस्याओं को हल करने का निर्णय लेते हैं, उनमें दो लक्षण होते हैं: वे इतिहास से नहीं सीखते हैं और उन्हें अपने हथियारों पर गर्व होता है. (ANI इनपुट के साथ)
सियोल, 10 दिसम्बर| मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी फैलने के बाद से दक्षिण कोरिया के युवाओं को वृद्ध लोगों की तुलना में अधिक गंभीर रोजगार का झटका लगा और नए कॉलेज और हाई स्कूल के स्नातकों को नौकरी खोजने में अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा। शुक्रवार को एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। सांख्यिकी कोरिया संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, 15-34 आयु वर्ग के कोरियाई लोगों के लिए रोजगार दर जनवरी में 50.5 प्रतिशत तक पहुंच गई।
योनहाप न्यूज एजेंसी ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि जनवरी में 35-64 आयु वर्ग के लोगों के लिए यह दर 71.2 प्रतिशत थी, जो पिछले वर्ष के 73.6 प्रतिशत से कम थी।
विशेष रूप से, जिन्होंने एक साल से भी कम समय पहले कॉलेज या हाई स्कूल से स्नातक किया था, उन्हें नौकरी खोजने में अधिक कठिनाई हुई है।
उनमें से, कॉलेज या विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाले पुरुषों के लिए रोजगार दर में पिछले साल अगस्त और सितंबर में 12.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी, जब देश महामारी की दूसरी लहर की चपेट में था।
एक साल से भी कम समय पहले हाई स्कूल से स्नातक करने वाली महिलाओं के लिए, रोजगार दर मार्च और अप्रैल 2020 में 14.4 प्रतिशत अंक गिर गई और पिछले वर्ष की तुलना में अक्टूबर और नवंबर 2020 में 14.9 प्रतिशत अंक गिर गई। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 9 दिसंबर | टेक दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट कथित तौर पर पायरेटेड वर्जन का इस्तेमाल करने वाले कुछ लोगों को अपने ऑफिस सूट पर 50 फीसदी तक की छूट दे रही है। द वर्ज ने गुरुवार को बताया, "पायरेटेड ऑफिस ऐप पर ऑफिस रिबन बार में एक नया संदेश दिखाई दे रहा है, जो वास्तविक माइक्रोसॉफ्ट 365 सदस्यता पर 50 प्रतिशत की छूट के साथ लोगों को लुभा रहा है।"
संदेश एक आधिकारिक माइक्रोसॉफ्ट वेबसाइट से लिंक करता है, जो दावा करता है कि 'पायरेटेड सॉफ्टवेयर आपके पीसी को सुरक्षा खतरों से बचाता है'।
रिपोर्ट में कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट ने ऑफिस पाइरेट्स को चेतावनी दी है कि वे वायरस, मैलवेयर, डेटा हानि, पहचान की चोरी कर जोखिम में हैं और अब महत्वपूर्ण अपडेट प्राप्त करने में असमर्थ रहेंगे।
टेक वेबसाइट के अनुसार, छूट से माइक्रोसॉफ्ट365 परिवार सदस्यता की कीमत पहले वर्ष के लिए 49.99 डॉलर या माइक्रोसॉफ्ट 365 व्यक्तिगत सदस्यता की कीमत एक वर्ष के लिए 34.99 डॉलर तक कम हो जाती है।
घक्स नोट के उपयोगकर्ताओं को यह देखने के लिए अपने माइक्रोसॉफ्ट खाते में साइन इन करना होगा कि क्या वे छूट के लिए पात्र हैं। एक बार जब उपयोगकर्ता कीमत में अंतर की पुष्टि कर लेता है, तो वह अपनी खरीदारी पूरी करने के लिए चेकआउट के लिए आगे बढ़ सकता है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 10 दिसंबर| चीन-अमेरिका के बीच एक-दूसरे पर हावी होने और रूस के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के आरोपों के बीच खेल के मैदान पर पूर्व-पश्चिम तनाव फैल रहा है, लेकिन वाशिंगटन ने शीतकालीन ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार की घोषणा की है। अगले साल 4 से -20 फरवरी तक बीजिंग में निर्धारित, भू-सामरिक तनावों से गर्म हुए यूलटाइड के मौसम के बीच चीन की ओर से तेज प्रतिक्रिया आई है।
दो महाशक्तियों के बीच तीखे संबंध हाल के दिनों में प्रवाह में रहे हैं, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने जो बाइडेन के नेतृत्व में चीन पर बयानबाजी तेज कर दी है।
ताइवान, हांगकांग, शस्त्रीकरण और दक्षिण चीन सागर में एक-अपमान की लड़ाई ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को खराब कर दिया है। खेल को हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
दोनों देशों के बीच जो कुछ हो रहा है, बहिष्कार उसके साथ तालमेल से बाहर नहीं लगता है। इनमें से एक हमेशा खुद को स्वतंत्र दुनिया का नेता साबित करने के लिए 'आग' लगाता है।
एक पूर्व चीनी खेल पत्रकार ने कहा, "यह तब तक समझ में आता है, जब तक वे एथलीटों को भेज रहे हैं। यह कदम सीधे एथलीटों को प्रभावित नहीं करेगा।"
पत्रकार ने कहा, जर्मनी के थॉमस बाख, 1976 के ओलंपिक तलवारबाजी के स्वर्ण पदक विजेता ने 1980 में अपने ओलंपिक खिताब की रक्षा करने का अवसर खो दिया, जब पश्चिमी ब्लॉक ने मास्को खेलों का बहिष्कार किया।
बाख अब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा है कि उन्होंने वाशिंगटन द्वारा बहिष्कार के विरोध में राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना चुना।
ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर चिंताओं का हवाला देते हुए शीतकालीन खेलों के राजनयिक बहिष्कार की घोषणा करके अमेरिका की बोली लगा रहे हैं। (आईएएनएस)
संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 10 दिसंबर| उइगर ट्रिब्यूनल ने बुधवार को कहा कि चीन ने शिनजियांग में उइगरों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नष्ट करने के इरादे से जन्मों को रोकने के उपायों को लागू कर नरसंहार किया है।
ब्रिटेन स्थित स्वतंत्र न्यायाधिकरण ने कहा कि चीन के कारण उइगरों की यातना उचित संदेह से परे है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के कारण मानवता के खिलाफ अपराध उचित संदेह से परे स्थापित किए गए हैं : निर्वासन या जबरन स्थानांतरण, कारावास या शारीरिक स्वतंत्रता के अन्य गंभीर अभाव, कष्ट पहुंचाना, दुष्कर्म और अन्य यौन हिंसा, लागू नसबंदी, उत्पीड़न और अन्य अमानवीय कृत्य।
ट्रिब्यूनल सभी उचित संदेह से परे संतुष्ट है कि अन्य अमानवीय कृत्यों की मानवता के खिलाफ अपराध साबित हो गया है।
सैटेलाइट इमेजरी ने इस क्षेत्र में लगभग 16,000 मस्जिदों या पिछले कुल के 65 प्रतिशत के विनाश, या क्षति की पहचान की, गवाहों की प्रत्यक्ष टिप्पणियों से मेल खाने वाले सबूत।
इसके अलावा, कब्रिस्तान और धार्मिक महत्व के अन्य स्थलों को नष्ट कर दिया गया है। उइगरों को धार्मिक पालन के प्रदर्शन के लिए कारावास और यातना से दंडित किया जाता है, जिसमें मस्जिदों में भाग लेना, प्रार्थना करना, सिर पर स्कार्फ और दाढ़ी पहनना और शराब नहीं पीना या सूअर का मांस नहीं खाना शामिल है।
ट्रिब्यूनल संतुष्ट है कि पीआरसी ने भौतिक धार्मिक स्थलों के विनाश की एक व्यापक नीति लागू की है और धार्मिक 'अतिवाद' के उन्मूलन के घोषित उद्देश्य के लिए उइगर धार्मिकता पर एक व्यवस्थित हमला किया है।
ट्रिब्यूनल को सबूत मिले, जिसमें वह इस श्रेणी में शामिल हो सकता है, जिसमें उइगर परिवार के घरों में हान लोगों को जबरन थोपना, पूरे क्षेत्र में व्यापक निगरानी प्रणाली स्थापित करना, इसे एक खुली हवा में जेल बनाना, मस्जिदों और कब्रिस्तानों को नष्ट करना, धार्मिक दमन और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और जबरन या जबरन विवाह।
हिरासत में लिए गए उइगरों की संख्या, मस्जिदों और कब्रिस्तानों की संख्या को नष्ट किया जाना, नसबंदी और गर्भपात, भाषा के उपयोग और धर्म के अभ्यास का दमन, उइगर बच्चों को उनके माता-पिता से अलग करना यह दर्शाता है कि वास्तव में बिना किसी औचित्य के उइगरों पर हमला, भले ही उनमें से कुछ ने चीन से अलग होने की मांग की हो और भले ही कुछ उइगरों ने हिंसा के कृत्यों को अंजाम दिया हो, जैसा कि उदाहरण के रूप में 1997 से 2000 और बाद में 2000 में उरुमची में और 2014 में कुनमिंग में ट्रेन पर हमला हुआ था। (आईएएनएस)
पिता बनने के बाद कोस्ट गार्ड अकैडमी से निकाल दिए गए एक पूर्व कैडेट ने संघीय अदालय में मुकदमा कर स्कूल की नीति को चुनौती दी है. इस कैडेट को 2014 में अकैडमी से निकाला गया था.
आइजैक ऑलसन अमेरिका की कोस्ट गार्ड अकैडमी में पढ़ रहे थे. वह मैकैनिकल इंजीनियरिंग कर रहे थे और पास होकर सेना में कमीशन पाने से सिर्फ दो महीने दूर थे जब उन्हें अकैडमी से निकाल दिया गया. यह फैसला तब लिया गया जब उन्होंने कुछ महीने पहले अपने पिता बनने का खुलासा किया. अमेरिकी के कनेक्टिकट की जिला अदालत में दायर मुकदमे के मुताबिक उनकी मंगेतर ने एक बच्चे को जन्म दिया था. कुछ महीनों बाद जब यह बात स्कूल के प्रशासन को पता चली तो ऑलसन को कॉलेज से निकाल दिया गया.
अकैडमी ने नियमानुसार ऑलसन को निकाला था. मुकदमे के मुताबिक नियम कहता है कि अगर 14 हफ्ते से ज्यादा का गर्भ हो जाने पर कैडेट को खुद अकैडमी छोड़नी होगी या उन्हें हटा दिया जाएगा.
ऑलसन की वकील इलाना बिल्डनर ने बताया कि पिता बनने का फैसला निजी होता है. उन्होंने कहा, "माता या पिता बनने का फैसला बेहद निजी होता है और कोई स्कूल या नौकरी उसके रास्ते में नहीं आनी चाहिए. यूएस कोस्ट गार्ड अकैडमी का यह प्राचीन नियम, जो कि छात्रों को पितृत्व या डिग्री में से कोई एक चुनने का विकल्प देता है, नैतिक रूप से गलत और असंवैधानिक है.”
‘महिला विरोधी है नियम'
इस बारे में यूएस कोस्ट गार्ड या स्कूल ने सवालों के जवाब नहीं दिए. बिल्डनर ने बताया कि यह नियम 1970 के दशक में तब लागू किया गया था जब अकैडमी में महिलाओं को दाखिला मिलना शुरू हुआ था. उन्होंने कहा, "यह कोई हादसा नहीं है कि अकैडमी ने मातृत्व पर यह प्रतिबंध महिलाओं को दाखिला देना शुरू करने के फौरन बाद लागू किया. कनेक्टिकट या कहीं और इस नीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. इसे खत्म हो जाना चाहिए.”
अदालत में दायर हलफनामे के मुताबिक ऑलसन को अपने जूनियर ईयर में अप्रैल महीने में पता चला कि उनकी मंगेतर गर्भवती हैं. उन्होंने गर्भ ना गिराकर बच्चे को जन्म देने का फैसला किया. तब ऑलसन ने फैसला किया कि वह अकैडमी नहीं छोड़ेंगे क्योंकि ऐसा करने पर स्कलू को उनकी करीब पांच लाख डॉलर फीस जब्त करने का अधिकार मिल जाएगा.
2013 के अगस्त में ऑलसन की मंगेतर ने बच्चे को जन्म दिया. इसेक बाद मार्च 2014 में एक फॉर्म में ऑलसन ने बताया कि वह एक बच्चे के पिता हैं. ऑलसन के मुताबिक यह पहली बार था जब किसी फॉर्म में उनसे यह जानकारी मांगी गई थी.
वापस चाहिए कमीशन
अपनी डिग्री पूरी करने के लिए ऑलसन ने अपने पितृत्व अधिकार कानून छोड़ भी दिए. लेकिन स्कूल ने उन्हें निकाल दिया. बिल्डनर बताती हैं कि लंबी प्रशासनिक प्रक्रिया के बाद अब ऑलसन ने मुकदमा करने का फैसला किया है.
ऑलसन और उनकी मंगेतर अब शादीशुदा हैं. अब वह कोस्ट गार्ड में एविएशन टेक्निशियन के तौर पर काम कर रहे हैं और अलास्का में तैनात हैं. अगर वह कमीशन पा जाते तो उन्हें प्रतिमाह लगभग 3,000 डॉलर ज्यादा मिलते. ऑलसन अपना कमीशन वापस चाहते हैं.
बिल्डनर के मुताबिक इस मुकदमे के नतीजे का असर और कई संस्थानों पर भी पड़ेगा जहां इसी तरह के नियम हैं. एएलसीयू विमिंस राइट्स प्रोजेक्ट की लिंडा मॉरिस बताती हैं, "हम मानते हैं कि हर सैन्य अकादमी के लिए इस तरह के प्रतिबंध गलत हैं और अकादमियों को इन्हें अपनी नियमावली से हटा देना चाहिए.”
अमेरिकी सांसदों रिपब्लिकन सेनेटर टेड क्रूज और डेमोक्रैट सेनेटर कर्स्टन गिलीब्रैंड ने सेनेटर में एक बिल पेश किया है जिसके तहत इस तरह के नियमों को सभी अकादमियों के लिए खत्म करने का प्रस्ताव है. क्रूज ने बिल पेश करते हुए कहा, "यह नीति पक्षपात, पुरातन और अस्वीकार्य है.”
वीके/एए (एपी)
यूनिसेफ ने दुनियाभर में मानवीय संकटों और कोविड-19 महामारी से प्रभावित करोड़ों लोगों के लिए रिकॉर्ड फंडिंग की अपील की.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने दुनियाभर में मानवीय संकटों और कोविड-19 महामारी से प्रभावित 17.7 करोड़ बच्चों समेत 32.7 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए रिकॉर्ड 9.4 अरब डॉलर की आपातकालीन फंडिंग अपील शुरू की है.
यूनिसेफ ने दुनियाभर में चल रहे संघर्षों, जलवायु संकट और कोरोना वायरस महामारी के बढ़ने के मुख्य कारणों का हवाला देते हुए 2022 के लिए 9.4 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड परिचालन बजट की घोषणा की. यूनिसेफ की इस साल की फंडिंग पिछले साल की तुलना में 31 फीसदी ज्यादा है.
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर के मुताबिक, "दुनिया भर में लाखों बच्चे घटनाओं और जलवायु संकट के प्रभावों से पीड़ित हैं. जैसे-जैसे कोविड-19 महामारी अपने तीसरे साल के करीब आ रही है लड़खड़ाती अर्थव्यवस्थाओं, बढ़ती गरीबी और बढ़ती असमानता के साथ और भी बदतर हो गई है. हमेशा की तरह, पहले से ही संकट से गुजर रहे बच्चों को तत्काल मदद की जरूरत है."
दुनिया बढ़ाए मदद के हाथ
अपील में अफगानिस्तान में यूनिसेफ की प्रतिक्रिया के लिए 2 अरब डॉलर शामिल हैं, जहां 1.3 करोड़ बच्चों को तत्काल मदद की आवश्यकता है. इनमें 10 लाख बच्चे शामिल हैं, जो ऐसे समय में गंभीर कुपोषण का सामना कर रहे हैं. अफगानिस्तान की यह अब तक की सबसे बड़ी अपील है.
यूनिसेफ ने कहा कि अतिरिक्त 93.3 करोड़ डॉलर कोविड-19 टूल्स एक्सेलेरेटर तक पहुंच के लिए आवंटित किए जाएंगे, जो कोविड-19 परीक्षणों, उपचारों और टीकों के विकास, उत्पादन और समान पहुंच में तेजी लाने का एक वैश्विक प्रयास है.
फंड सीरियाई शरणार्थी संकट के लिए 90.9 करोड़ डॉलर, सीरिया के अंदर संकट के लिए 33.4 करोड़ डॉलर, यमन में प्रतिक्रिया के लिए 48.4 करोड़ डॉलर और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में कार्यक्रमों के लिए 35 करोड़ डॉलर से अधिक की मांग कर रहा है.
इथियोपिया में जहां 1.56 करोड़ बच्चों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है और जहां क्रूर लड़ाई ने उत्तर में लाखों बच्चों को विस्थापित किया है, यूनिसेफ को अपने कार्य के लिए 35.1 करोड़ डॉलर की आवश्यकता होगी. इसी साल गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम ने कहा था कि दुनिया भर में हर एक मिनट में 11 लोगों की मौत भूख के कारण हो जाती है. विश्व में अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करने वालों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में छह गुना वृद्धि हुई.
एए/वीके (डीपीए)
बांग्लादेश में 20 यूनिवर्सिटी छात्रों को मौत की सजा सुनाई गई है. सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वाले एक युवा की हत्या के मामले में यह सजा दी गई है.
एक सरकार विरोधी सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर 2019 में युवक की हत्या करने वाले 20 छात्रों को बांग्लादेश में मौत की सजा सुनाई गई है. 21 वर्षीय अबरार फहद जिस छात्र की हत्या हुई थी उसका शव हॉस्टल के उसके कमरे में बुरी तरह क्षत-विक्षत हालत में मिला था. फहद ने हत्या से कुछ ही घंटे पहले एक फेसबुक पोस्ट में अपनी प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत से जल संधि करने के लिए आलोचना की थी.
अबरार फहद को क्रिकेट बैट और अन्य पैनी-नुकीली चीजों से छह घंटे तक पीटा गया था. पीटने वाले ये 25 छात्र सत्तारूढ़ अवामी लीग के छात्र दल ‘बांग्लादेश छात्र लीग' के सदस्य थे. इनमें से 20 आरोपियों को मौत की सजा हुई है जबकि बाकी पांच को उम्रकैद. तीन आरोपी अभी भी फरार हैं.
पिता ने जताई खुशी
जिन छात्रों को सजा-ए-मौत सुनाई गई है वे सभी घटना के वक्त 20 से 22 वर्ष के बीच के थे और फहद के साथ बांग्लादेश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ते थे. कुछ आरोपियों के वकील फारूक अहमद ने कहा कि फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की जाएगी.
अहमद ने मीडिया से कहा, "मैं इस फैसले से काफी निराश हूं. यह अन्याय है. वे युवा हैं और देश के सबसे होनहार छात्रों में से हैं. उनमें से कुछ के खिलाफ तो समुचित सबूत भी नहीं थे फिर भी उन्हें मौत की सजा सुनाई गई.” सजा सुनाए जाने के बाद फहद के पिता बरकतुल्लाह ने पत्रकारों से कहा, "मैं इस फैसले से खुश हूं. मुझे उम्मीद है कि सजा पर अमल जल्द किया जाएगा.”
सजा के फैसले पर देश के न्याय मंत्री अनीसुल हक ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि "ऐसे अपराध करने के बाद कोई भी बच नहीं पाएगा.” छात्रों के एक और अहम संगठन छात्र अधिकार परिषद ने फैसले के समर्थन में प्रदर्शन किया और सजा पर जल्द अमल की मांग की. संगठन के महासचिव अकरम हुसैन ने कहा, "यह फैसला लोगों की जीत है.”
हाल के सालों में बीसीएल का नाम हत्या, हिंसा और उगाही जैसे मामलों में कई बार आया है. 2018 में उसके सदस्यों पर एक सरकार विरोधी आंदोलन को दबाने के लिए हिंसा के प्रयोग के आरोप लगे थे. ऐसी ही एक रैली में एक छात्र की तेज बस के नीचे आ जाने से मौत भी हो गई थी.
मौत की सजा
कत्ल किए गए छात्र फहद ने फेसबुक पर भारत और बांग्लादेश के उस समझौते की आलोचना की थी जिसके तहत भारत को दोनों देशों की सीमा पर बहने वाली नदी से पानी लेने की इजाजत दी गई थी. लीक हुई एक सीसीटीवी फुटेज में फहद को बीसीएल के कुछ कार्यकर्ताओं के साथ हॉस्टल के गलियारे में जाते देखा गया था. इसके छह घंटे बाद उनका शव मिला. उन्हें बुरी तरह पीटा गया था. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.
इस घटना के बाद बांग्लादेश में भारी विरोध हुआ था और प्रदर्शनकारियों ने फहद के हत्यारों को सजा के साथ-साथ बीसीएल पर प्रतिबंध की भी मांग की. प्रधानमंत्री हसीना ने तब वादा किया था कि हत्यारों को ‘सर्वोच्च सजा' मिलेगी.
बांग्लादेश में मौत की सजा आम बात है. देश में सैकड़ों लोग मौत की सजा का इंतजार कर रहे हैं. वहां ब्रिटिश राज के समय से ही फांसी के जरिए मौत की सजा दी जाती है. अगस्त में एक अदालत ने जो समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए छह इस्लामिक कट्टरपंथियों को मौत की सजा सुनाई थी. 2019 में 16 लोगों को 19 वर्षीय एक छात्रा को जिंदा जला देने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी.
वीके/एए (एएफपी)
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की बुधवार को एक हादसे में मौत हो गई. उन्हें उनकी बहादुरी और बेबाकी के अलावा उनके विवादित बयानों के लिए भी याद रखा जाएगा.
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत खुलकर बोलने वाले और सैनिकों के हिमायती जनरल माने जाते थे. हालांकि बहुत से लोग उन्हें ध्रुवीकरण करने वाले सेना प्रमुख के रूप में भी देखते हैं लेकिन वह ऐसे जनरल थे जिनकी हिम्मत और जज्बे को पूरी दुनिया की सेनाओं में सम्मान मिला.
बुधवार को एक हेलीकॉप्टर हादसे में जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका समेत 13 लोगों की मौत हो गई. तमिलनाडु में सुलुर से वेलिंगटन जाते वक्त कुन्नूर के पास उनका हेलीकॉप्टर हादसे का शिकार हो गया था.
63 वर्षीय जनरल रावत सेना में अपनी सेवाएं देते हुए सीमा पर गोलीबारी में एक बार घायल भी हुए थे और पहले भी एक हेलीकॉप्टर हादसे में बाल-बाल बचे थे.
गोली खाने वाला जनरल
रावत एक सैन्य परिवार से आते थे. उनकी कई पीढ़ियां सेना में सेवा दे चुकी हैं. उन्होंने 1978 में सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर सेना में शुरुआत की थी. कश्मीर में एक सीमा चौकी पर तैनाती के वक्त पाकिस्तानी फौज से मुठभेड़ में वह घायल हो गए थे.
इंडिया टुडे पत्रिका को एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, "पाकिस्तान से हम पर भारी गोलीबारी होने लगी. एक गोली मेरे टखने में लगी और एक कील मेरे दाहिने हाथ को छूकर निकल गई.” इसके लिए उन्हें इंडिया वूंड मेडल मिला था.
जनरल रावत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिक के तौर पर डीआर कॉन्गो में भी सेना का नेतृत्व किया. जब उन्होंने 2008 में यूएन की नॉर्थ कीवू ब्रिगेड की कमान संभाली तो वह लेफ्टिनेंट जनरल थे. वहां उन्होंने शांति अभियान का चेहरा ही बदल दिया.
एक संवाददाता को उन्होंने बताया था, "यूएन चार्टर के सातवें अध्याय में हमें कुछ मामलों में बल प्रयोग की इजाजत है. इसके बावजूद हम अपने हथियारों से लड़ ही नहीं रहे थे.” वहां पहुंचने के महीनेभर के भीतर उन्होंने ताकत का इस्तेमाल बढ़ाया जिससे स्थानीय लोगों में भरोसा जगा कि यूएन शांति सैनिक उनकी सुरक्षा कर सकते हैं.
चार दशक लंबे अपने करियर के दौरान जरनल रावत ने भारतीय कश्मीर के अलावा चीन से लगती सीमा पर भी सेवाएं दीं. 2015 में उन्होंने म्यांमार में अलगाववादियों के खिलाफ अभियान का नेतृत्व किया था. यह विदेशी जमीन पर भारत का सार्वजनिक रूप से स्वीकृत पहला हमला था. उसी साल नागालैंड में वह हादसे में बाल-बाल बचे थे जब उनका हेलीकॉप्टर उड़ान भरने के दस सेकेंड बाद जमीन पर आ गिरा था. तब उन्हें मामूली चोटें आई थीं.
अपने सैनिकों के लिए हमेशा खड़े रहने के उनके रवैये के चलते वह भारतीय सैनिकों के बीच खासे लोकप्रिय थे. जनरल बिपिन रावत 2017 से 2019 तक भारतीय थल सेना के प्रमुख रहे थे. इसके बाद उन्हें देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाया गया, जिस पद के लिए काफी समय से चर्चा चल रही थी.
राजनीतिक जनरल
कई पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के उलट भारत में सेना अब तक राजनीति से दूर रही है. लेकिन जनरल बिपिन रावत ने सीधे-सीधे सत्तारूढ़ पार्टी की राजनीतिक लाइन पर बयान दिए. इस वजह से उन्हें एक हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी के तौर पर भी देखा जाता था. वह विदेश नीति और भूराजनीतिक मुद्दों के अलावा घरेलू राजनीति पर भी बोलते थे.
जनरल बिपिन रावत के कई बयानों पर विवाद हुआ था. सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने कहा था कि देश के नागरिकों को सेनाओं से डरना चाहिए. 2017 में उन्होंने सैनिकों से कहा था, "दुश्मनों को आपसे डरना चाहिए और साथ-साथ आपके अपने लोगों को भी आपसे डरना चाहिए. हम एक दोस्ताना फौज हैं लेकिन जब हमें कानून-व्यवस्था स्थापित करने के लिए बुलाया जाता है तो लोगों को हमसे डरना चाहिए.”
दो साल बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने जनरल रावत पर अपनी शपथ का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जब उन्होंने नए नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगों की आलोचना की.
जनरल रावत ने कई बार नेपाल में चीन की गतिविधियों पर भी बयान दिए थे. चीन की सेना ने हाल ही में उनके एक बयान पर आपत्ति जताई थी जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
विवादित जनरल
कई लोग कहते थे कि रिटायरमेंट के बाद जनरल रावत चुनाव लड़ सकते हैं. समलैंगिकों की भारतीय सेना में भर्ती के मुद्दे पर सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने कहा था, "अपने रूढ़िवादी समाज से भारत की फौज की सोच काफी मिलती है. सेना रूढ़िवादी है. हम ना आधुनिक हुए हैं ना हमारा पश्चिमीकरण हुआ है.”
2017 में रावत ने कश्मीरी आंदोलनकारियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वे हमारी फौज पर सिर्फ पत्थर क्यों फेंकते हैं. उन्होंने कहा था कि अगर वे हथियारों का इस्तेमाल करते तो "ज्यादा खुशी होती” क्योंकि तब उन्हें हम जैसा चाहे जवाब दे सकते थे.
सेना प्रमुख के तौर पर उन्होंने उस मेजर तरुण गोगोई को मेडल भी दिया था जिसने एक कश्मीरी नागरिक को जीप पर बांध कर ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा था, "यह एक छद्म युद्ध है. और छद्म युद्ध गंदा होता है. इसे गंदे तरीके से ही लड़ा जाता है.”
वीके/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)
जेनेवा, 9 दिसम्बर| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख ने कहा कि ओमिक्रॉन वैरिएंट की कुछ विशेषताएं, इसके वैश्विक प्रसार और बड़ी संख्या में म्यूटेंट की क्षमता के कारण यह कोरोना के प्रारूप को बदल सकता है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, ओमिक्रॉन वेरिएंट अब 57 देशों में मौजूद है, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस एडनॉम घेबियस ने एक प्रेस ब्रीफिंग में चेतावनी दी कि यह पिछले वेरिएंट की तुलना में अधिक तेजी से फैल सकता है।
उन्होंने कहा कि अब हम संचरण (दरों) में तेजी से वृद्धि की एक सुसंगत तस्वीर देखना शुरू कर रहे हैं, हालांकि अभी के लिए अन्य वेरिएंट के सापेक्ष वृद्धि की सटीक दर को निर्धारित करना मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के उभरते आंकड़े बताते हैं कि ओमिक्रॉन के साथ फिर से संक्रमण का खतरा बढ़ गया है, लेकिन मजबूत निष्कर्ष निकालने के लिए अधिक डेटा की आवश्यकता है।
डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञों ने कहा है कि हालांकि कुछ सबूत यह सुझाव दे सकते हैं कि ओमिक्रॉन पहले के डेल्टा वेरिएंट की तुलना में हल्के लक्षणों का कारण बनता है, अभी कोई अंतिम निष्कर्ष निकालने के लिए ये शुरूआती दिन हैं।
डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य आपात स्थिति कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक माइक रयान के अनुसार, हालांकि वायरस की विकासवादी प्रकृति इसे और अधिक संक्रमणीय बनाती है क्योंकि यह खुद को बदलता है।
जैसा कि नवीनतम कोविड 19 वेरिएंट के अध्ययन विकसित हो रहे हैं, डब्ल्यूएचओ का कहना है कि वैश्विक महामारी विज्ञान के आंकड़ों के आने, विश्लेषण करने और फिर कोई ठोस निष्कर्ष निकालने के लिए इसे अभी भी दिनों या हफ्तों की आवश्यकता है।
डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन के अनुसार, यह कहना अभी भी जल्दबाजी होगी कि ओमिक्रॉन टीके की प्रभावशीलता में उल्लेखनीय कमी ला सकता है।
डब्ल्यूएचओ ने सभी देशों से निगरानी, परीक्षण और अनुक्रमण बढ़ाने और अद्यतन ऑनलाइन केस रिपोटिर्ंग फॉर्म का उपयोग करके डब्ल्यूएचओ क्लिनिकल डेटा प्लेटफॉर्म पर अधिक डेटा जमा करने का आह्वान किया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 दिसम्बर| पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) ने बुधवार को प्रधानमंत्री इमरान खान को पेशावर में एक स्वास्थ्य बीमा योजना के उद्घाटन को लेकर उसकी आचार संहिता का उल्लंघन करने के खिलाफ चेतावनी दी।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी की अपनी दिन भर की यात्रा के दौरान सूक्ष्म स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में ईसीपी ने प्रधानमंत्री के प्रांतीय राजधानी के निर्धारित दौरे के बारे में मीडिया रिपोटरें का हवाला दिया और उन्हें आयोग की 4 नवंबर की अधिसूचना की याद दिलाई, जिसमें चुनाव से पहले पार्टियों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए निदेशरें का विवरण दिया गया है।
ईसीपी ने 19 दिसंबर और 16 जनवरी को प्रांत में स्थानीय सरकार के पहले और दूसरे चरण के चुनावों की तारीखें तय की थीं।
ईसीपी ने अपने पत्र में कहा, चुनाव कार्यक्रम जारी होने के बाद, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, अध्यक्ष किसी भी विधानसभा के उपाध्यक्ष और सीनेट के उपाध्यक्ष, संघीय और प्रांतीय मंत्री, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के सलाहकार या सार्वजनिक पद के किसी अन्य धारक किसी भी विकास योजना की घोषणा करने या किसी उम्मीदवार के लिए प्रचार करने के लिए किसी भी स्थानीय परिषद के क्षेत्र का दौरा नहीं करेगा।
ईसीपी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को चुनाव आयोग द्वारा जारी आचार संहिता और निर्देशों के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करने की सलाह दी है और साथ ही चेतावनी भी दी है कि आपके खिलाफ चुनाव अधिनियम, 2017 की धारा-233 (आचार संहिता) और 234 (चुनाव अभियानों की निगरानी) के तहत कानूनी कार्यवाही शुरू की जाएगी।
इस बीच, सूचना मामलों पर खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री के विशेष सहायक कामरान खान बंगश ने स्पष्ट किया है कि पेशावर की प्रधानमंत्री की यात्रा पूरी तरह से एक आधिकारिक यात्रा थी।
रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने एक बयान में कहा, यह (यात्रा) राज्य के दैनिक मामलों का एक हिस्सा है, जिस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। (आईएएनएस)