अंतरराष्ट्रीय
जिनेवा, 24 जनवरी । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि यह मानना अभी खतरनाक है कि ओमिक्रोन अंतिम वेरिएंट है या कोराना समाप्ति की राह पर है क्योंकि विश्व में कोरोना के अन्य वेरिएंट उभरने के लिए स्थितियां काफी अनुकूल हैं।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस अधानोम गेब्रेसियस ने संगठन की कार्यकारी बोर्ड की 150वीें बैठक को संबोधित करते हुए सोमवार को कहा कि ओमिक्रोन का पता नबंबर में चला था और अब यह विश्व के 171 देशों में फैल चुका है।
उन्होंने कहा कि कोरोना के अत्यधिक संक्रामक रूप ओमिक्रोन के आठ करोड़ से अधिक मामले डब्ल्यूएचओ के सामने आए हैं, जो 2020 में दर्ज किए गए कोविड मामलों से अधिक हैं।
उन्होंने कहा कि मामलों में जोरदार बढ़ोत्तरी होने के बावजूद मौतों में वृद्धि नहीं हुई है। गेब्रेसियस ने कहा कि महामारी खत्म होने वाली नहीं है, बल्कि इसके नए रूप सामने आएंगे।
डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा, यह सच है कि हम निकट भविष्य के लिए कोविड के साथ रहेंगे लेकिन यह मान लेना खतरनाक है कि ओमिक्रोन अंतिम वेरिएंट होगा, या कि यह समाप्ति की तरफ है।
उन्होंने कहाइसके विपरीत, विश्व स्तर पर स्थितियां इसके अधिक रूपों के उभरने के लिए आदर्श है और हम एक ऐसे विषाणु को लेकर कोई जुआ भी नहीं खेल सकते हैं जिसकी उत्पत्ति या नियंत्रण के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।
उन्होंने कहा कि दुनिया को इसके साथ रहना सीखना चाहिए, जिसका मतलब यह नहीं है कि हमें इसे फैलने का अवसर देना होगा।
उन्होंने कहा कि महामारी से लडने के लिए हर देश की 70 फीसदी आबादी के टीकाकरण का लक्ष्य हासिल करना जरूरी है।
उन्होंने अफसोस जताया कि अफ्रीका की लगभग 85 प्रतिशत आबादी को अभी तक टीके की एक भी डोज नहीं मिली है।
उन्होंने कोरोना मरीजों की देखभाल, इसके निदान प्रबंधन, ऑक्सीजन और एंटीवायरल दवाओं तक सबकी समान पहुच की सिफारिश करते हुए वायरस के नए रूपों की निगरानी के लिए विश्व स्तर पर परीक्षण और सिक्वेंसिंग को बढ़ाव देने पर जोर दिया।(आईएएनएस)
स्कीइंग से जुड़ा खेल 'नॉर्डिक कंबाइंड' इकलौता ऐसा ओलंपिक खेल है जिसमें आज भी महिलाएं हिस्सा नहीं ले सकती हैं. इस खेल में भी महिलाओं की हिस्सेदारी की अनुमति के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति से उम्मीद की जा रही है.
स्की जंपिंग और क्रॉस-कंट्री स्कीइंग का मिला जुला खेल 'नॉर्डिक कंबाइंड' इकलौता ऐसा ओलंपिक खेल है जिसमें लैंगिक बराबरी नहीं है. कई देशों में यह खेल महिलाएं भी खेलती हैं लेकिन ओलंपिक खेलों में इसमें महिलाओं के लिए कोई प्रतियोगिता है ही नहीं.
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के कार्यकारी बोर्ड को 2018 में एक आवेदन दिया था जिसमें अनुरोध किया गया था कि बीजिंग में होने वाले ओलंपिक खेलों में इस खेल में भी महिलाओं को भाग लेने दिया जाए. बोर्ड ने आवेदन पर विचार किया लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्की फेडरेशन से चर्चा करने के बाद उसे नामंजूर कर दिया.
ओलंपिक समिति की झिझक
समिति के खेल निदेशक किट मैककॉनेल के 2018 में कहा था, "ओलंपिक खेलों में महिलाओं के लिए किसी भी खेल का शामिल किया जाना लैंगिक बराबरी को बढ़ावा देने के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन उन खेलों का ऐसे स्तर पर होना जरूरी है जो ओलंपिक खेलों में शामिल होने के लिए और ओलंपिक पदक हासिल करने की प्रतियोगिता के लिए उचित स्तर होना चाहिए."
मैककॉनेल ने यह भी कहा था, "मुझे लगता है कि यह महसूस किया गया कि इस खेल की सर्वव्यापकता, प्रतियोगितात्मकता, आकर्षण और लोकप्रियता को अभी और देखने की जरूरत है...तब जाकर 2026 के लिए इस पर दोबारा चर्चा की जा सकती है."
बातचीत इस साल दोबारा शुरू होगी. उम्मीद है कि जून में बोर्ड 2026 में इटली में होने वाले खेलों में महिलाओं को भी शामिल करने के आवेदन पर फैसला लेगा. महिला खिलाड़ी और उन्हें शामिल किए जाने की मांग के समर्थक आशावान हैं.
इस खेल का विश्व कप पिछले साल ही शुरू हुआ. इस साल दूसरे विश्व कप में 30 से भी ज्यादा महिला खिलाड़ी हिस्सा ले रही हैं. लेकिन फिलहाल जब बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेल शुरू होंगे तो समिति को सवालों और आलोचना के एक और दौर का सामना करना पड़ेगा.
चैंपियन ने छोड़ा खेल
हालांकि समिति ने बड़े गर्व से लैंगिक बराबरी की दिशा में उठाए गए उसके कदमों की तरफ इशारा किया है. समिति के मुताबिक बीजिंग में महिला खिलाड़ियों और महिलाओं के खेलों के लिए नए मानदंड रचे जाएंगे. खेलों में महिलाओं की हिस्सेदारी 45 प्रतिशत हो जाएगी. चार साल पहले यह 41 प्रतिशत थी.
महिलाओं को और अवसर देने के लिए स्की जंपिंग जैसे खेलों में मिश्रित टीम फॉर्मैट भी जोड़े गए हैं. स्पीड स्केटिंग जैसे खेलों में पहली बार अब पुरुष और महिला खिलाड़ी बराबर संख्या में खेल रहे हैं.
लेकिन नॉर्डिक कंबाइंड खिलाड़ी तारा गेराटी-मोएट्स जश्न मनाने के मूड में बिल्कुल नहीं है. पहले उन्होंने दो बार इस खेल का कॉन्टिनेंटल कप जीता और फिर दिसंबर 2020 में वो विश्व कप जीत गईं. लेकिन बाद में जब महामारी की वजह से महिलाओं के खेल रद्द होने के बाद फिर से नहीं आयोजित किए गए जबकि पुरुषों के खेल दोबारा हुए, तब वो निराश हो गईं.
उन्होंने इस खेल को छोड़ कर बाईएथलन अपना लिया. वो कहती हैं, "नार्डिक कंबाइंड में होने से मैंने ओलंपिक खेलों का असली चेहरा देखा, जो कि कोई सुन्दर छवि नहीं है. स्कीइंग संघ के पास ज्यादा ताकत नहीं है और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की जवाबदेही कोई नहीं तय करता है."
सीके/एए (एपी)
अफगानिस्तान में अगस्त 2021 के बाद से तालिबान का शासन है, जिसे अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है. अफगानिस्तान में लगातार गहराते मानवीय संकट के बीच यूरोपीय संघ, अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत हो रही है.
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के बाद से तालिबान अंतरराष्ट्रीय संबंध सुधारने और मान्यता हासिल करने की कोशिशों में लगा है. इसी कड़ी में तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुतक्की के नेतृत्व में एक दल ने पश्चिमी देशों के प्रतिनिधियों और अफगान सिविल सोसाइटी के लोगों से मुलाकात की है. नॉर्वे के राजधानी ओस्लो में हुई ये मुलाकात, पहला मौका है जब तालिबान की यूरोप में पश्चिमी देशों से आधिकारिक स्तर पर बातचीत हुई हो. इस मुलाकात की तालिबान के लिए खासी अहमियत है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता हासिल करने के अलावा वे अमेरिका और यूरोप में फ्रीज किए गए अफगान सरकार के कई बिलियन डॉलर वापस हासिल करना चाहते हैं. अफगानिस्तान इस वक्त एक बड़े मानवीय संकट से जूझ रहा है. भोजन की कमी और सर्दी ने हालात और खराब बना दिए हैं.
इस मुलाकात के बारे में तालिबानी प्रतिनिधि सैफुल्लाह आजम ने कहा, ये "अफगान (तालिबान) सरकार को मान्यता देने की ओर एक कदम है." हालांकि मेजबान नॉर्वे ने ऐसे दावों को खारिज किया है. नॉर्वे की विदेश मंत्री अन्नीकेन हुइटफेल्ट ने स्पष्ट किया कि इस मुलाकात का मतलब तालिबान को मान्यता या वैधता देना नहीं है. अभी तक दुनिया के किसी भी देश ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है.
देश चलाने के लिए पैसा नहीं
अफगानिस्तान के बजट का 80 प्रतिशत हिस्सा अंतरराष्ट्रीय मदद से आता है. 24 जनवरी से तालिबान के प्रतिनिधि- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों से मिलेंगे. उनका लक्ष्य होगा कि इन देशों में अफगान सरकार का फ्रीज किया गया पैसा, उन्हें वापस मिल पाए. अकेले अमेरिका ने करीब 10 बिलियन डॉलर फ्रीज किए हुए हैं. तालिबानी प्रतिनिधि सैफुल्लाह आजम ने कहा, भुखमरी और जानलेवा सर्दी से अफगानिस्तान में पैदा हुए संकट में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मदद के लिए आगे आना चाहिए और अफगानियों को राजनैतिक मसलों की वजह से ये सब सहने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए. कुछ समय पहले तालिबान प्रशासन को संयुक्त राष्ट्र की ओर से कुछ राहत मिली थी. उन्होंने तालिबान को आयात और बिजली आपूर्ति के लिए पैसा चुकाने की अनुमति दे दी थी.
तालिबान को फंड देने की एवज में पश्चिमी देश भी कुछ शर्तें रखेंगे. माना जा रहा है कि महिलाओं के अधिकार और अफगानिस्तान की सत्ता में अल्पसंख्यक धार्मिक और कबाइली समूहों को हिस्सा देने की शर्तों मुख्य होंगी. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी कहा है कि तालिबन से नई राजनैतिक व्यवस्था, मानवीय संकट, आर्थिक संकट और महिला अधिकारों पर बातचीत की जाएगी. सत्ता में आने के बाद से तालिबान ने अफगान महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं. स्वास्थ्य और शिक्षा के अलावा किसी भी अन्य क्षेत्र में महिलाओं को काम करने की इजाजत नहीं है. लड़कियों के छठी कक्षा से आगे पढ़ने पर पाबंदी है. सत्ता में आने के बाद से तालिबान लगातार नागरिक अधिकार समूहों और पत्रकारों को निशाना बनाता रहा है.
कुछ को उम्मीद, कुछ विरोध में
पश्चिमी देशों और तालिबान की इस मीटिंग का कुछ लोगों ने नॉर्वे के विदेश मंत्रालय के बाहर इकट्ठा होकर विरोध भी किया है. एक प्रदर्शनकारी शाला सुल्तानी ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि "आप आतंकवादियों से बातचीत नहीं करते. ये मुलाकात उन लोगों का मुंह पर मजाक बनाना है, जिन्होंने अपने परिजनों को (अफगानिस्तान में) खोया है."
गौरतलब है कि इस बैठक में तालिबान से जुड़े सबसे हिंसक गुट- हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी भी शामिल रहे. अनस को अमेरिका ने कुछ साल तक बगराम डिटेंशन सेंटर में बंद रखा था और साल 2019 में बंदियों की अदला-बदली के दौरान रिहा किया गया था. अफगानिस्तान सरकार में खदान और पेट्रोल मंत्री रहीं और अब नॉर्वे में रह रहीं नरगिस नेहान ने एएफपी से कहा कि उन्होंने बातचीत का न्यौता स्वीकारने से इनकार कर दिया. उनका मानना है कि ये तालिबान के पक्ष में माहौल बनाएगा और तालिबान का सामान्यीकरण कर देगा, जबकि तालिबान खुद नहीं बदलेंगे.
तालिबान ने रविवार को सिविल सोसाइटी और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी की है. हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. महिला अधिकार कार्यकर्ता जमीला अफगान ने एएफपी से बातचीत में कहा, "ये मुलाकात सही दिशा में रही. तालिबान ने नेक नीयत दिखाई है. आगे देखते हैं कि क्या उनके काम यहां बोली बातों के मुताबिक होते हैं."
आरएस/ओएसजे(एपी, एएफपी)
आरोप है कि चीन की सरकार के निर्देश पर प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का 'वी चैट' अकाउंट छीन लिया गया है. मॉरिसन इस अकाउंट के द्वारा चीनी मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों से संवाद करते थे.
चीन पर ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का 'वी चैट' अकाउंट हाइजैक करने का आरोप लगा है. इस अकाउंट पर मॉरिसन के करीब 76 हजार फॉलोअर थे. इस महीने उन्हें नोटिफिकेशन आया कि मॉरिसन के पेज का नाम बदलकर 'ऑस्ट्रेलियन चाइनीज न्यू लाइफ' कर दिया गया है. पेज के प्रोफाइल में लगी मॉरिसन की फोटो भी हटा दी गई है.
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, मॉरिसन और उनकी सरकार की जानकारी के बिना 'वी चैट' खाते से छेड़छाड़ की गई है. 'वी चैट' चीन का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है. इस पर चीन की टेक कंपनी 'टेनसेंट' का मालिकाना हक है. हालांकि चीन में सोशल मीडिया पर सरकार का सख्त नियंत्रण है. आशंका है कि यह प्रकरण ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच जारी तनाव को और बढ़ा सकता है.
चुनाव में दखलंदाजी का आरोप
इस मामले पर अब तक मॉरिसन या उनके कार्यालय की ओर से कोई बयान नहीं आया है. लेकिन इंटेलिजेंस और सुरक्षा से जुड़ी साझा संसदीय समिति के प्रमुख जेम्स पैटरसन ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर आरोप लगाया है. उन्होंने इल्जाम लगाया कि चीन मई 2022 में होने जा रहे ऑस्ट्रेलियाई चुनावों के मद्देनजर मॉरिसन को सेंसर कर रहा है.
पैटरसन का कहना है कि चाइनीज मूल के करीब 12 लाख ऑस्ट्रेलियाई नागरिक 'वी चैट' इस्तेमाल करते हैं. मॉरिसन का खाता बंद किए जाने के चलते वे प्रधानमंत्री से जुड़ी खबरें 'वी चैट' पर नहीं देख सकेंगे. मगर विपक्षी नेता एंथनी अल्बानिज सरकार द्वारा की जाने वाली सरकार की आलोचनाएं लोगों तक पहुंचेंगी.
बहिष्कार की अपील
पैटरसन, मॉरिसन की 'कंजरवेटिव लिबरल पार्टी' के सदस्य हैं. उन्होंने सभी सांसदों से 'वी चैट' का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा, "एक ऑस्ट्रेलियाई खाते को बंद करके चीन की सरकार ने जो किया है, वह चुनावी साल में ऑस्ट्रेलिया के लोकतंत्र में विदेशी दखलंदाजी है."
पैटरसन का यह भी कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई सररकार ने 'वी चैट' से मॉरिसन का अकाउंट वापस बहाल करने का आग्रह किया था. मगर 'वी चैट' ने अब तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है. खबरों के मुताबिक, इस घटना के बाद लिबरल पार्टी के कई सांसदों ने 'वी चैट' का इस्तेमाल बंद करने की बात कही है.
चीनी ऑस्ट्रेलियाई समुदाय में 'वी चैट' लोकप्रिय
चीनी मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के बीच 'वी चैट' लोकप्रिय है. ऐसे में उनसे जुड़ने और संवाद कायम करने के लिए मॉरिसन ने फरवरी 2019 में 'वी चैट' पर अपना खाता खोला था. तब ऑस्ट्रेलिया में चुनाव होने वाले थे.
उसी साल कुछ पत्रकारों ने मॉरिसन से सवाल पूछा था कि क्या उन्हें चीन की सरकार द्वारा उनके 'वी चैट' अकाउंट को सेंसर करने की आशंका दिखती है. इस पर मॉरिसन ने कहा था कि इस तरह की सेंसरशिप अभी तक दिखी तो नहीं है.
और भी खातों में छेड़छाड़ के आरोप
मॉरिसन ऑस्ट्रेलिया के अकेले नेता नहीं हैं, जिनके 'वी चैट' अकाउंट में यह बदलाव हुआ हो. फारगस रेयान नाम के एक चीनी सोशल मीडिया विशेषज्ञ द्वारा किए गए ट्वीट के मुताबिक, मॉरिसन समेत कम-से-कम एक दर्जन ऑस्ट्रेलियाई नेताओं के 'वी चैट' खाते अब चीनी नागरिकों के नाम पर दर्ज हो गए हैं. रेयान 'ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट' नाम के एक थिंक टैंक से भी जुड़े हैं.
लिबरल पार्टी के एक और सांसद और पूर्व राजनयिक डेव शर्मा ने भी आरोप लगाया कि मॉरिसन के खाते में हुई दखलंदाजी को संभवत: चीनी सरकार ने ही मंजूरी दी. शर्मा ने कहा, "संभावना है कि यह निर्णय सरकार प्रायोजित था और इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति बीजिंग के रवैये का पता चलता है."
चुनाव में दखलंदाजी के आरोपों पर दूसरी राय
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में चीनी मामलों के विशेषज्ञ ग्रीम स्मिथ ने बताया कि मॉरिसन का खाता अब जिस चीनी नागरिक के नाम पर है, वह फूजियान प्रांत का रहने वाला है. स्मिथ ने 'ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्प' को बताया, "चीन के भीतर किसी अकाउंट को हैक करना बहुत मुश्किल नहीं है. इस घटना के पीछे कौन है, मुझे नहीं लगता कि हम यह जानते हैं. हम इतना कह सकते हैं कि कम-से-कम यह चीन की सरकार द्वारा प्रेरित है."
स्मिथ ने कहा कि मॉरिसन के 'वी चैट' से हुई छेड़छाड़ से वह यह नहीं मानते कि चीन अगले ऑस्ट्रेलियाई चुनाव में विपक्षी सेंटर-लेफ्ट लेबर पार्टी का समर्थन करेगा. स्मिथ ने कहा, "उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि चुनाव कौन जीतता है. जब तक लोग लोकतंत्र पर अविश्वास करते रहेंगे, तब तक उन्हें किसी के जीतने से फर्क नहीं पड़ता."
पहले भी 'वी चैट' ने किया था सेंसर
खबरों के मुताबिक, मॉरिसन 'वी चैट' को बहुत इस्तेमाल नहीं करते थे. पिछले साल उन्होंने इसपर करीब 20 पोस्ट किए. इनमें ज्यादातर पोस्ट मॉरिसन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्तियों का चीनी भाषा में अनुवाद और कोविड-10 से जुड़े अपडेट थे.
यह पहली बार नहीं है, जब मॉरिसन के 'वी चैट' अकाउंट में कोई समस्या आई हो. इससे पहले दिसंबर 2020 में भी 'वी चैट' ने मॉरिसन का एक पोस्ट हटा दिया था. इसमें ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों द्वारा किए गए कथित युद्ध अपराधों की जांच का समर्थन किया गया था. इस पोस्ट में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान की आलोचना भी की गई थी. लिजियान ने एक ऑस्ट्रेलियाई सैनिक की फर्जी तस्वीर पोस्ट की थी.
दोनों देशों के बीच तल्खियां
मॉरिसन सरकार और चीन के बीच पिछले कुछ समय से लगातार विवाद चल रहा है. कोविड-19 की शुरुआत और इसमें चीन की कथित भूमिका पर मॉरिसन सरकार द्वारा तीखी टिप्पणियां की गईं. इससे तनाव गहराया.
ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ बढ़ते सामरिक सहयोग से भी चीन को आपत्ति है. सितंबर 2021 में इस पार्टनरशिप के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु क्षमता वाली पनडुब्बियां देने का एलान किया गया था. चीन ने इस पर भी विरोध जताया था.
एसएम/ (एपी, एएफपी)
माइनस 40 से डिग्री से भी कम तापमान और ना के बराबर ऑक्सीजन, वो भी कई घंटों तक. विमान के पहिए में छिपकर एम्सटर्डम पहुंचे एक शख्स को देखकर अधिकारी भी हैरान हैं और एक्सपर्ट भी.
कॉर्गोलक्स का विमान रविवार को अफ्रीका से नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम पहुंचा. 17 घंटे लंबी उड़ान भरने के बाद विमान जब पार्किंग पर खड़ा हुआ तो उसके अगले पहिये के पास एक शख्स मिला. उसकी हालत खराब थी, लेकिन वह बोल पा रहा था. नीदरलैंड्स के बॉर्डर कंट्रोल विभाग के मुताबिक, "जिस तरह के हालात हैं, उन्हें देखा जाए तो वह काफी बेहतर हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया है."
नीदरलैंड्स के अधिकारियों ने उसकी पहचान, राष्ट्रीयता और उम्र सार्वजनिक नहीं की है. अधिकारियों के मुताबिक उनकी प्राथमिकता उस व्यक्ति की सेहत है. डच बॉर्डर कंट्रोल विभाग की अधिकारी योआना हेलमॉन्डस कहती हैं, "यह निश्चित रूप से बहुत ही असामान्य है कि कोई उस ऊंचाई पर, इतनी ठंड में कैसे जिंदा रह सकता है. ये बहुत ही ज्यादा असाधारण है."
अभी यह पता नहीं चला है कि विमान के अगले पहियों में छुपकर नीदरलैंड्स पहुंचा ये शख्स कहां से आया है. बोइंग 747 मॉडल का यह कार्गो विमान दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहानिसबर्ग से उड़ा और कुछ घंटों के लिए केन्या की राजधानी नैरोबी में रुका. लेकिन उसके बाद विमान करीब साढ़े आठ घंटे की नॉन स्टॉप उड़ान भर एम्सटर्डम पहुंचा. इस दौरान विमान ने करीब 6680 किलोमीटर की दूरी पूरी की.
लंबी दूरी तय करने वाले बड़े विमान आम तौर पर 9,000 से 11,000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं. इतनी ऊंचाई पर हवा का तापमान माइनस 43 डिग्री से माइनस 54 डिग्री के बीच होता है. इतनी ठंड में वो भी कई घंटे तक रहने पर इंसान के जिंदा बचने की संभावना ना के बराबर होती है. ठंड के अलावा इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा भी बहुत कम होती है. यही कारण है कि 8,000 मीटर के बाद की ऊंचाई को डेथ जोन भी कहा जाता है.
मालवाहक विमान ऑपरेट करने वाली इटली की कंपनी कार्गोलक्स इटालिया ने भी अफ्रीका से नीदरलैंड्स पहुंचे इस शख्स की पुष्टि की है. कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, "प्रशासन और एयरलाइन की जांच पूरी होने तक हम इस बारे में और कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकते हैं."
ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स, एपी)
ताइवान के अधिकारियों का कहना है कि दर्जनों चीनी लड़ाकू विमान उसके हवाई क्षेत्र में फिर से दाखिल हुए. ताइवान ने भी विमानों को घेरने और अपनी मिसाइल रक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के लिए लड़ाकू विमान आसमान में उड़ाए.
ताइवान ने रविवार को एक बमवर्षक सहित अपने दक्षिण-पश्चिमी वायु रक्षा क्षेत्र (ADIZ) में 39 चीनी लड़ाकू विमानों के एक साथ प्रवेश की खबर दी है. ताजा घटनाक्रम पर बीजिंग की ओर से तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
द्वीप का एडीआईजेड प्रादेशिक हवाई क्षेत्र के समान नहीं है, बल्कि स्व-घोषित हवाई क्षेत्र है जिसकी निगरानी राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए की जाती है. चीन ताइवान को अपना क्षेत्र मानता है और अगर जरूरी हो तो बलपूर्वक द्वीप को अपने क्षेत्र में एकीकृत करने का प्रण लिया है.
ताइवान ने क्या रिपोर्ट दी?
ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि घुसपैठ में 34 लड़ाकू विमान और एक एच-6 बमवर्षक शामिल था. रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा फाइटर जेट्स के उड़ान पथ रिकॉर्ड पर पोस्ट किए गए एक ऑनलाइन बयान के अनुसार, चीनी लड़ाकू विमानों ने ताइवान-नियंत्रित द्वीप प्रतास के उत्तर-पूर्व में उड़ान भरी.
रक्षा मंत्रालय ने एक ट्विटर पोस्ट में कहा कि जवाब में ताइवान ने भी उनका पीछा करने के लिए अपने लड़ाकू विमान भेजे और रेडियो चेतावनी प्रसारित करते समय उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए तुरंत अपनी वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली सक्रिय कर दी.
पिछले साल अक्टूबर में एडीआईजेड क्षेत्र में लगभग 56 लड़ाकू विमानों के प्रवेश करने के बाद से यह अपनी तरह की अब तक की सबसे बड़ी घटना है. ताइवान को चीनी वायु सेना से अपने क्षेत्र में घुसपैठ के बारे में शिकायतें मिल रही हैं, आमतौर पर देश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में प्रतास द्वीप समूह के पास, जिसे वह नियंत्रित करता है. ताइवानी रक्षा अधिकारियों ने बीजिंग पर ताइवान की सेना पर दबाव बढ़ाने के लिए "ग्रे जोन" रणनीति का उपयोग करने का आरोप लगाया है.
नवंबर में ताइवान ने 27 चीनी विमानों के एडीआईजेड में प्रवेश करने के बाद फिर से अपने लड़ाकू जेट विमानों को उड़ाया था.
अमेरिका और चीन के बीच एक लंबे समय से चले आ रहे समझौते के तहत, वॉशिंगटन "एक-चीन" नीति का अनुसरण कर रहा है. इस राजनीतिक स्थिति के मुताबिक अमेरिका ताइवान की राजधानी ताइपे को आधिकारिक रूप से मान्यता देने के बजाय बीजिंग के साथ सभी मुद्दों को निपटाने के लिए बाध्य है.
ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है, लेकिन चीन इसे अपने देश का हिस्सा मानता है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में ताइवान के साथ "पूर्ण एकीकरण" के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. इस बीच ताइवान के उपराष्ट्रपति लाइ चिंग ते उर्फ विलियम लाई इसी हफ्ते अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं. वह होंडूरास की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिका जाकर वहां नेताओं से बातचीत करेंगे. ताइवान और चीन के बीच बढ़े तनाव के बीच विलियम लाई की यह यात्रा अहम मानी जा रही है.
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
राष्ट्रपति आर्मन सार्किस्यान ने अजरबाइजान के साथ संघर्ष से संबंधित फैसलों पर अपना असंतोष जाहिर किया और इस्तीफा दे दिया.
आर्मन सार्किस्यान ने रविवार को घोषणा की कि वे संकट के समय में नीति को प्रभावित करने में असमर्थता के कारण अर्मेनिया के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे रहे हैं. वे पिछले चार साल से देश के राष्ट्रपति के पद पर थे.
लंबे समय से अर्मेनिया एक राजनीतिक संकट में उलझा हुआ है जो दक्षिण और उत्तर पूर्व के विवादित नागोर्नो काराबाख क्षेत्र पर अजरबाइजान के साथ युद्ध के मद्देनजर भड़क उठा है.
सार्किस्यान ने इस्तीफा क्यों दिया?
अजरबाइजान के साथ युद्ध और विरोध प्रदर्शनों के बीच चीफ ऑफ जनरल स्टाफ के प्रमुख को हटाने के अपने फैसले पर सार्किस्यान प्रधानमंत्री निकोल पाशनियान से असहमत थे. पाशनियान ने मार्च 2021 में अर्मेनिया के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ को हटा दिया, उन्होंने दावा किया था कि सेना तख्तापलट की योजना बना रही है.
अजरबाइजान के साथ युद्ध को समाप्त करने वाले शांति समझौते के बाद से पाशनियान दबाव में हैं, नियमित रूप से सड़क पर होने वाले विरोध प्रदर्शनों में उनसे पद छोड़ने की मांग की जाती रही है. रूस द्वारा 2020 में कराए गए समझौते के तहत अजरबाइजान ने 1990 के दशक की शुरुआत में एक युद्ध के दौरान अपने खोए हुए क्षेत्र को फिर से हासिल कर लिया. जिस समय शांति समझौते पर बातचीत हो रही थी, सार्किस्यान ने इस तथ्य की आलोचना की कि उन्हें विचार-विमर्श में शामिल नहीं किया गया था.
अर्मेनिया के राष्ट्रपति की वेबसाइट पर एक बयान में सार्किस्यान ने कहा, "यह भावनात्मक रूप से प्रेरित फैसला नहीं है और यह एक विशिष्ट तर्क से लिया गया है." उन्होंने अपने बयान में कहा, "राष्ट्रपति के पास लोगों और देश के लिए कठिन समय में विदेश और घरेलू नीति की महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को प्रभावित करने के लिए आवश्यक साधन नहीं हैं."
अर्मेनिया में राष्ट्रपति का पद काफी हद तक औपचारिक होता है और कार्यकारी शक्ति मुख्य रूप से प्रधानमंत्री के पास होती है. 2015 के जनमत संग्रह के बाद अर्मेनिया एक संसदीय गणराज्य बन गया जिसने राष्ट्रपति की शक्तियों को काफी सीमित कर दिया. उन्होंने अपने बयान में कहा, "हम एक अनूठी वास्तविकता में रह रहे जिसमें राष्ट्रपति युद्ध और शांति के मामलों को प्रभावित नहीं कर सकता है. वह उन कानूनों को वीटो नहीं कर सकता, जिन्हें वह राज्य और लोगों के लिए हानिकारक मानते है."
निवर्तमान राष्ट्रपति 2018 में चुने गए थे जिन्होंने पहले युनाइटेड किंग्डम में अर्मेनिया के राजदूत के रूप में कार्य किया था. 1996-1997 में सार्किस्यान ने प्रधानमंत्री का पद भी संभाला.
एए/वीके (एफपी, रॉयटर्स, डीपीए)
अमेरिका ने यूक्रेन में तैनात अपने राजनयिकों के परिवारों को वापस लौट आने का आदेश दिया है. यूक्रेन में मौजूद सभी अमेरिकी नागरिकों को तुरंत देश छोड़ने की हिदायत दी गई है. क्या युद्ध का खतरा बहुत नजदीक है?
यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के खतरे का हवाला देते हुए अमेरिका ने अपने राजनयिकों के परिजनों को फौरन देश छोड़ने का आदेश दिया है. रविवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आदेश जारी कर कहा कि सभी परिजनों को तुरंत निकलना शुरू करना है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने नागरिकों को यूक्रेन की यात्रा ना करने की भी हिदायत दी है. यात्रा संबंधी एक सार मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित की गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि रूस यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तैयारी कर रहा है.
अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास के कर्मचारियों को भी कहा है कि अगर वे चाहें तो लौट सकते हैं. समाचार एजेंसी एपी के अनुसार कर्मचारियों का लौटना उनकी इच्छा पर छोड़ा गया है लेकिन वे लौटने का फैसला करते हैं तो सरकार इसका खर्च देगी.
मदद जारी रहेगी
विदेश मंत्रालय की एडवाइजरी के मुताबिक, "रूस अधिकृत क्रीमिया और रूसी नियंत्रण वाले पूर्वी यूक्रेन में सुरक्षा हालात काफी नाजुक हैं और बहुत कम समय में स्थिति बिगड़ सकती है. यूक्रेन में नियमति रूप से होने वाले प्रदर्शन अक्सर हिंसक हो सकते हैं.”
समाचार एजेंसी एपी ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि दूतावास खुला रहेगा और इस घोषणा का अर्थ वहां से लोगों को बचाकर निकाला जाना नहीं है. यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस घोषणा के बावजूद अमेरिका की यूक्रेन को मदद जारी रहेगी.
रविवार देर रात जारी एक अन्य अडवाइजरी में अमेरिका ने अपने नागरिकों को रूस ना जाने की भी सलाह दी है. लोगों को रूस से यूक्रेन सड़क के रास्ते यात्रा ना करने की भी हिदायत दी गई है.
यूक्रेन में कैसे हैं हालात?
अमेरिका की यह घोषणा तब हुई है जबकि यूक्रेन पर रूसी हमले का खतरा लगातार बना हुआ है. शनिवार को ही ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने दावा किया था कि रूस यूक्रेन में अपनी कठपुतली सरकार स्थापित करना चाहता है. हालांकि रूस ने इस दावे को गलत बताया है.
जर्मनी की विदेश मंत्री क्रिस्टीन लांब्रेष्ट ने शनिवार को दिए एक इंटरव्यू में सभी पक्षों से संयम बरतने और तनाव घटाने की अपील की थी. उन्होंने यह भी कहा कि जर्मनी यूक्रेन को हथियार सप्लाई नहीं करेगा.
शुक्रवार को अमेरिका और रूस के बीच हुई बातचीत में कोई विशेष तरक्की नहीं हुई थी.
वीके/एए (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
वाशिंगटन, 24 जनवरी| दुनिया भर में कोरोनावायरस के मामले बढ़कर 35.09 करोड़ से ज्यादा हो गए हैं। इस महामारी से अब तक कुल 55.9 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है जबकि 9.79 अरब से ज्यादा का वैक्सीनेशन हुआ है। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने साझा किए हैं। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने सोमवार सुबह नए अपडेट में बताया कि वर्तमान वैश्विक मामले, मरने वालों और टीकाकरण की कुल संख्या बढ़कर क्रमश: 350,909,728, 5,595,929 और 9,795,554,434 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे ज्यादा मामलों और मौतों 70,699,416 और 866,540 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना मामलों में दूसरा सबसे प्रभावित देश भारत है, जहां कोरोना के 39,237,264 मामले हैं जबकि 489,409 लोगों की मौत हुई है, इसके बाद ब्राजील में कोरोना के 24,054,405 मामले हैं जबकि 623,370 लोगों की मौत हुई हैं।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार, 50 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश फ्रांस (16,807,733), यूके (15,966,838), तुर्की (10,947,129), रूस (10,923,494), इटली (9,923,678), स्पेन (8,975,458), जर्मनी (8,717,091), अर्जेटीना (7,862,536), ईरान (6,250,490) और कोलंबिया (5,740,179) हैं।
जिन देशों ने 100,000 से ज्यादा मौतों का आंकड़ा पार कर लिया है, उनमें रूस (319,536), मेक्सिको (303,085), पेरू (204,141), यूके (154,374), इंडोनेशिया (144,220), इटली (143,523), कोलंबिया (132,240), ईरान (132,230) , फ्रांस (129,620), अर्जेटीना (119,168), जर्मनी (116,723), यूक्रेन (105,791) और पोलैंड (103,844) शामिल हैं। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 24 जनवरी| पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हाल ही में हुई भारी बारिश के दौरान बारिश से संबंधित अलग-अलग घटनाओं में कम से कम 7 लोगों की मौत हो गई जबकि 16 अन्य घायल हो गए। ये जानकारी प्रांतीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (पीडीएमए) ने दी। पीडीएमए ने रविवार को एक रिपोर्ट में कहा कि शुक्रवार से सूबे के विभिन्न इलाकों में बारिश के कारण जमीन खिसकने और छत गिरने की घटनाओं में मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 19 घर और इमारतें बारिश के कारण आंशिक या पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं और प्रभावित जिलों में स्थानीय प्रशासन की देखरेख में बचाव और राहत अभियान जारी है।
प्रांत में लैंड स्लाइडिंग के कारण अवरुद्ध होने के बाद अधिकारियों ने यातायात के लिए कई सड़कों को भी साफ कर दिया। (आईएएनएस)
काबुल, 24 जनवरी| अफगानिस्तान की तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार ने घोषणा की है कि देश में अगस्त 2021 के बाद से बंद पड़े लड़कियों के लिए हाई स्कूल मार्च में फिर से खुलेंगे। ये जानकारी मीडिया रिपोर्ट से सामने आई है। खामा प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में नया शैक्षणिक वर्ष मार्च से शुरू होता है जो नए सोलर ईयर के पहले महीने को भी चिह्न्ति करता है।
रविवार को एक बयान में, शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता अजीज अहमद रेयान ने कहा कि तालिबान लड़कियों के लिए स्कूलों को फिर से खोलने के लिए प्रतिबद्ध और आशावादी है और वह इस संबंध में गंभीरता से काम कर रहा है।
रेयान ने दावा किया कि लड़कियों को हाई स्कूलों में कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं देने के पीछे का कारण यह था कि तालिबान लड़कियों के लिए एक सुरक्षित व्यवस्था बना रहा था।
खामा प्रेस ने प्रवक्ता के हवाले से कहा, "तालिबान को लड़कियों की शिक्षा से कोई समस्या नहीं है, इसलिए हमने महिला शिक्षकों के वेतन का भुगतान किया है। हम लड़कियों के लिए और महिला शिक्षकों को नियुक्त करेंगे।"
प्रवक्ता ने आगे कहा कि वे महिला शिक्षकों के क्षमता निर्माण पर काम कर रहे हैं और इन शिक्षकों की संख्या में वृद्धि करना चाहते हैं ताकि केवल महिलाएं ही लड़कियों को पढ़ाएं।
उन्होंने कहा कि अगर कुछ क्षेत्रों में महिला शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं, तो केवल बुजुर्ग पुरुष शिक्षकों को ही छात्राओं को पढ़ाने की अनुमति होगी।
पिछले साल 15 अगस्त को तालिबान के सत्ता में आने के बाद से लड़कियों को केवल 6 तक की कक्षाओं में जाने की अनुमति थी, जिसकी देश और विदेश में कड़ी आलोचना हुई थी।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि थॉमस वेस्ट ने सप्ताहांत में बीबीसी पश्तो को बताया कि वाशिंगटन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय स्कूली शिक्षकों के वेतन का भुगतान करने का इरादा रखते हैं, अगर तालिबान लड़कियों के लिए स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति देता है। (आईएएनएस)
मोटी कद काठी के तीन लोगों ने अपने आपको केवल डेढ़ मीटर वर्ग की जगह में 27 दिनों तक बंद रख कर समुद्र के भीतर लंबा सफ़र तय किया. पानी के भीतर चल रही उस छोटी सी पनडुब्बी में चलने की जगह शायद ही हो. वे जिस पनडुब्बी में यात्रा कर रहे थे, वहां रखे सामानों पर सोकर काम चलाया.
उस पनडुब्बी के बाथरूम में पानी निकलने के इंतज़ाम नहीं थे. इसलिए उन्होंने ख़ुद को हल्का करने के लिए एक बैग का इस्तेमाल किया. उन्होंने ज़िंदा रहने के लिए डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, पेस्ट्री, एनर्जी बार और रेड बुल ड्रिंक का उपयोग किया.
यात्रा के दौरान उनकी चमड़ी पर कई जगह चकत्ते उभर आए. इसकी वजह हर समय पहने जाने वाले गीले और चिकने वेटसूट थी. वहां से बाहर देखने के लिए केवल छह छोटी खिड़कियां थीं.
इन तीनों ने 2019 के अक्टूबर-नवंबर में अटलांटिक महासागर में ब्राजील से यूरोप के बीच की 3,500 नॉटिकल मील से अधिक की दूरी तय की. इसके लिए उन्होंने फाइबर ग्लास से बनी, जिस पनडुब्बी का इस्तेमाल किया, उसकी सफलता संदिग्ध थी. (bbc.com)
ब्रितानी सरकार ने चौंकाते हुए औपचारिक बयान जारी कर रूस द्वारा यूक्रेन में अपने समर्थक नेता को स्थापित करने को लेकर चेताया है.
ब्रिटेन का यह बयान ऐसा समय में आया है जब यूक्रेन को लेकर क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है.
ब्रिटेन के विदेश, कॉमनवेल्थ ऐंड डेवलपमेंट ऑफिस (एफसीडीओ) ने कहा कि यूक्रेन के पूर्व सासंद येवहेन मुरायेव क्रेमलिन के संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं.
ब्रिटेन ने रूस को फिर चेतावनी दी है यूक्रेन से छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम होंगे.
ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रुस ने शनिवार को बयान जारी कर कहा, ''आज जारी की गई जानकारी से पता चलता है कि यूक्रेन को पटरी से उतारने के रूस की तरफ से किस हद तक कोशिश की जा रही है.''
उन्होंने आगे कहा, ''रूस को निश्चित रूप से पीछे हटना चाहिए और अपने आक्रामक और झूठ से भरे अभियान को खत्म कर कूटनीति के रास्ते पर जाना चाहिए. जैसा कि यूके और हमारे सहयोगियों ने बार-बार कहा है कि यूक्रेन में रूस द्वारा किसी तरह की सैन्य कार्रवाई एक बड़ी राजनीतिक भूल होगी और इसके गंभीर परिणाम होंगे.''
एफसीडीओ ने कहा कि हमारी जानकारी से ऐसा लग रहा है कि रूसी सरकार यूक्रेन पर हमले और कब्जे के बारे में सोच रही है लेकिन उससे पहले वह कीव में एक रूस समर्थक नेता को स्थापित करना चाहती है.
आपको बता दें कि ऐसी रिपोर्ट्स आईं है कि रूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए सीमा पर 1 लाख सैनिकों को तैनात किया है. हालांकि रूस किसी भी तरह के हमले की योजना से इनकार करता आ रहा है.
एफसीडीओ के अनुसार पूर्व यूक्रेनियन सांसद येवहेन मुरायेव को एक रूस समर्थक नेता के तौर पर स्थापित करने पर विचार किया जा रहा है, इसके अलावा भी रूसी इंटेलिजेंस एजेंसियां पूर्व उपप्रधानमंत्री और कार्यवाहक पीएम रहे सरहिय अर्बुजोव, आंद्रे क्यलुयेव समते कई पूर्व यूक्रेनी नेताओं के संपर्क में है.
एफसीडीओ का कहना है कि इनमें से कुछ नेता यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर रही रूसी सुरक्षा एजेंसियों के संपर्क में हैं.
बयान में कहा गया है, ''यूक्रेन के मुद्दे पर रूस का रुख साफ है, हम उसके अतंरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमा (जिसमें क्रीमिया भी शामि है) के अंदर उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का स्पष्ट तौर पर समर्थन करते हैं. यूक्रेन एक आजाद और संप्रभु राष्ट्र है.''
गौरतलब है कि यूके की ओर से कई ब्रिटिश सैनिकों को 2015 से ही यूक्रेन की सेना को ट्रेनिंग देने के लिए वहां भेजा जा रहा है.
ब्रिटेन ने 2015 में रूस के हमले के बाद यूक्रेन की नौसेना को फिर से तैयार करने के लिए भी मदद का भरोसा दिया है. इसी हफ्ते की शुरुआत में यूके ने यूक्रेन में अतिरिक्त सैनिक और हथियार भेजने का ऐलान किया है. (bbc.com)
न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने नए कोविड प्रतिबंधों के कारण अपनी शादी रद्द कर दी है.
देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के फैलते संक्रमण के कारण नए कोविड प्रतिबंध लगाए गए हैं.
इन प्रतिबंधों के तहत किसी कार्यक्रम में 100 वैक्सीनेटेड लोगों के आने की सीमा है. इसके साथ ही दुकानों और सार्वजनिक परिवहन में मास्क पहनना अनिवार्य है.
न्यूज़ीलैंड में अब तक कोरोना वायरस संक्रमण के 15,104 मामले सामने आए हैं जबकि 52 लोगों की मौत हुई है.
अर्डर्न ने रविवार को पत्रकारों से पुष्टि करते हुए कहा कि वो टीवी होस्ट क्लार्क गेफ़ोर्ड के साथ तय कार्यक्रम के तहत शाही नहीं करने जा रही हैं.
उन्होंने कहा, “मैं कोई अलग नहीं हूं न्यूज़ीलैंड के हज़ारों लोग महामारी से प्रभावित हुए हैं. सबसे अधिक दुखदायी तब होता है जब अपने क़रीबियों के साथ उनके दुख के समय भी उनके साथ न रह सको.”
न्यूज़ीलैंड में रविवार से नए प्रतिबंधों की शुरुआत हो रही है. ऐसा देश में ओमिक्रॉन के नौ मामलों की पुष्टि के बाद हो रहा है.
अधिकारियों का कहना है कि कुछ मामलों के सामने आने के बाद समूह में कम्युनिटी ट्रांसमिशन में तेज़ी देखने को मिली है.
न्यूज़ीलैंड हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, इंडोर जगहों पर किसी कार्यक्रम में सिर्फ़ 100 वैक्सीनेटेड लोग या 25 आम लोग भाग ले सकते हैं. यही नियम शादी और जिम पर भी लागू होता है.
चार साल और उससे अधिक आयु के छात्रों को भी स्कूल में मास्क पहनना अनिवार्य होगा. (bbc.com)
अफ्रीकी देशों की सेनाओं के पास पैसों और संसाधन की कमी तो है ही, साथ ही वे बहुत अप्रभावी भी हैं. महाद्वीप में तख्तापलट और मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक लंबा इतिहास रहा है.
डॉयचे वैले पर क्रिस्टीना क्रिपपाल की रिपोर्ट-
स्टॉकहोम स्थित इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के मुताबिक, कुल 49 उप-सहारा अफ्रीकी देशों में से कम से कम 20 देश साल 2020 में किसी न किसी सशस्त्र संघर्ष में शामिल थे. इन घटनाओं के केंद्र में इन देशों की सेनाएं थीं और इस वजह से ये जांच के दायरे में हैं.
कई अफ्रीकी देशों की सेनाएं खराब प्रतिष्ठा का दंश झेल रही हैं. वे अक्सर कम प्रशिक्षित और अप्रभावी होती हैं. इसके कई कारण हैं जिनमें कम फंडिंग भी शामिल है. ये बातें तब सामने आती हैं जब सेनाओं को विद्रोहियों का मुकाबला करने की जरूरत होती है, जैसा कि नाइजीरिया और मोजाम्बिक में देखा गया है. इसके अलावा, राजनेताओं द्वारा समर्थित सैन्य तख्तापलट के लिए सेनाओं को दोषी ठहराया जाता है, जैसा कि माली, गिनी और सूडान में हुआ था.
कुछ सेनाओं पर भ्रष्टाचार और संसाधनों के दुरुपयोग के आरोप भी लगते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में सिपरी के एक वरिष्ठ शोधार्धी नान तियान कहते हैं, "हालांकि, यह एक गलत धारणा है. सामान्य तौर पर अफ्रीकी सेनाएं ऐसी नहीं होती हैं. उदाहरण के लिए रवांडा की सेना है जिसने अपने अनुशासन और प्रभावशीलता के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है.”
एक धारणा यह भी है कि अफ्रीकी सेनाएं देश के बजट का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग करती हैं. हैम्बर्ग स्थिति गीगा इंस्टीट्यूट फॉर अफ्रीकन स्टडीज के निदेशक माथियाज बासीदू कहते हैं, "स्थानीय लोगों की संख्या और सेना के अनुपात और सैनिकों की संख्या के अनुसार सेना का बजट दोनों ही सापेक्ष रूप में अफ्रीका में बहुत कम हैं.”
सेना में भ्रष्टाचार से लड़ना
उदाहरण के लिए, उप-सहारा क्षेत्र में नाइजीरिया के पास दक्षिण अफ्रीका के बाद दूसरी सबसे बड़ी सेना है. लेकिन 15 करोड़ से अधिक निवासियों के सापेक्ष यहां महज दो लाख सैनिक हैं जो कि बहुत ही कम हैं. 14 करोड़ की आबादी वाले देश रूस में दस लाख से ज्यादा सैनिक हैं. अफ्रीकी सेनाएं पारदर्शिता में कमी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से भी जूझ रही हैं. तियान कहते हैं, "इसमें से अधिकांश एक संरचनात्मक समस्या है. देश में वित्तीय संसाधनों की कमी का मतलब है कि सैन्य और राज्य की अन्य इकाइयां संसाधनों के छोटे टुकड़ों के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.”
अंगोला में, राष्ट्रपति जोआओ लौरेंको द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में साल 2021 में कई उच्च स्तरीय सैन्य अधिकारियों को हिरासत में लिया गया और गबन के आरोप में मुकदमा चलाया गया. लौरेंको अंगोला में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे अपने पूर्ववर्ती जोस एडुआर्डो डॉस सैंटोस द्वारा लगाई गई संरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने की भी कोशिश कर रहे हैं.
सेना एक राजनीतिक भागीदार की भूमिका में
अफ्रीका के औपनिवेशिक इतिहास के कारण कई देशों में सेना ने शुरू से ही एक राजनीतिक भूमिका निभाई. बासेदू कहते हैं, "एक बार जब जिन्न बोतल से निकल जाता है, तो उसे वापस अंदर डालना मुश्किल होता है.”
अंगोला में, कुछ शीर्ष लड़ाकों को पुर्तगाल से स्वतंत्रता की लड़ाई और आगामी दशकों के गृहयुद्ध में उनकी भागीदारी के लिए मुआवजा दिया गया था. इस तरह की व्यवस्था ने उन लोगों को जल्दी से अमीर बनने का अवसर प्रदान किया. मसलन, जनरल मैनुअल हेल्डर विएरा डायस जूनियर, जिनका उपनाम "कोपेलिपा" है, के बारे में अनुमान है कि साल 2014 में उनके पास तीन बिलियन डॉलर की संपत्ति थी. हालांकि लौरेंको की सरकार ने डॉस सैंटोस के जाने के बाद डायस को शक्तिशाली पदों से हटा दिया है, फिर भी जनरल अपनी संपत्ति को रखने में सक्षम है.
हालांकि अंगोला तेल और हीरे के मामले में काफी समृद्ध है, लेकिन इसके 32 मिलियन लोगों में से अधिकांश गरीबी में रहते हैं. बासेदू कहते हैं कि अंगोला की तरह दूसरे कई देशों की सरकारों ने सेना को ‘भ्रष्ट प्रथाओं में उन्हें खुश रखने और उन्हें लाइन में रखने के लिए' शामिल किया है. यह अक्सर सेना का समर्थन हासिल करने की एक युक्ति है.
सैन्य तख्तापलट फिर से बढ़ रहा है
1950 के दशक के मध्य से, अफ्रीका में प्रति वर्ष औसतन चार तख्तापलट की घटनाएं हुई हैं. "1950 से 2010 तक के तख्तापलट के वैश्विक उदाहरण: एक नया डेटासेट" नामक एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, साल 2010 से 2019 तक सफल तख्तापलट की घटनाओं की संख्या में गिरावट आई है. लेकिन साल 2021 में, उनकी संख्या अचानक बढ़कर छह हो गई जो कई विश्लेषकों के लिए चिंताजनक प्रवृत्ति थी.
अफ्रीका में सुरक्षा, संघर्ष और विकास के मुद्दों पर केंद्रित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के रिसर्च फेलो बेंजामिन पेट्रिनी कहते हैं कि अफ्रीका में सैन्य तख्तापलट की घटनाओं की आशंका हमेशा बनी रहती है, खासकर पश्चिम और मध्य अफ्रीका में. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "जब हम कमजोर राज्यों का सामना करते हैं जहां अधिक जवाबदेह और कमजोर राजनीतिक संस्थान हैं, तो हम यह भी शर्त लगा सकते हैं कि उनकी सेनाएं जवाबदेह नहीं होंगी और बहुत संभव है कि विभाजित होंगी.”
पेट्रिनी कहते हैं कि अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित लोकतांत्रिक मानदंडों का क्षरण ‘इस भावना के लिए एक प्रमुख योगदान कारक है कि एक सैन्य तख्तापलट के वही परिणाम नहीं होते हैं जो पहले हुआ करते थे.'
मानवता के विरुद्ध अपराध
इस प्रवृत्ति ने मानवता के खिलाफ अपराध करने के लिए कुख्यात कुछ सेनाओं में दण्ड से मुक्ति की भावना को भी बढ़ाया है. पैट्रिनी कहते हैं, "महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ यौन हिंसा और अन्य मानवाधिकारों के हनन सिर्फ घटनाएं नहीं हैं, बल्कि वास्तव में युद्ध की रणनीति हैं.”
ऐसा लगता है कि यह एक विशिष्ट अफ्रीकी समस्या होने से ज्यादा कहीं बड़ा मुद्दा है. शोधकर्ता बासेदू कहते हैं, "युद्ध में मानवाधिकारों की अवहेलना एक सार्वभौमिक विशेषता है.”
कोरोनो वायरस महामारी ने कई संस्थागत घाटों को कम कर दिया जिसकी वजह से तख्तापलट के खतरे और बढ़ गए हैं. पैट्रिनी कहते हैं, "कई देशों में लोकतांत्रिक राज्य की विफलता की धारणा को बढ़ावा देने के लिए सेना को कदम उठाना पड़ा.” पैट्रिनी तख्तापलट के नेताओं पर दबाव बढ़ाने का आह्वान करते हैं और माली के जुंटा पर सख्त प्रतिबंध लगाने के लिए पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय यानी ECOWAS की सराहना करते हैं.
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अफ्रीका में बाहरी हस्तक्षेप दोधारी तलवार हो सकता है. चीन और रूस तेजी से पश्चिम के साथ आमने-सामने हैं और इस महाद्वीप में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन रहे हैं. बासेदू कहते हैं, "यदि आपके पास ये अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता है और वे अफ्रीकी देशों में घरेलू संघर्षों में हस्तक्षेप करते हैं, तो निश्चित रूप से, यह एक बड़ा जोखिम है क्योंकि तब ये संघर्ष अधिक तीव्र और अधिक लंबे हो जाएंगे.” (dw.com)
एक लाख से ज्यादा रूसी सैनिकों ने यूक्रेन को तीन तरफ से घेरा हुआ है. चेतावनियों के बीच अमेरिका समेत कुछ देशों ने यूक्रेन को हथियार दिए हैं.
अमेरिका और उसके सहयोगी लगातार यह अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि रूस अब आगे क्या करेगा. कुछ अमेरिकी विशेषज्ञों को लगता है कि भारी बर्फबारी होते ही रूसी सेना अपनी भारी-भरकम मशीनों के साथ पूर्वी यूक्रेन में घुस सकती है. कड़ाके की सर्दी में इलाके की कुछ नदियां जम जाएंगी, फिर रूसी सेना उन्हें सड़क मार्ग की तरह इस्तेमाल कर सकती है. पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थकों की अच्छी-खासी संख्या है. यह आबादी भी रूस की मदद करेगी.
वहीं कुछ विशेषज्ञों को लग रहा है कि रूस सिर्फ दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. रूसी विदेश नीति के जानकार फियोडोर लुकयानोव कहते हैं, "बहुत ज्यादा तनाव बढ़ने के बाद ही असली बातचीत और पैर पीछे खींचने जैसी कोशिशों के लिए जगह बनेगी."
यूक्रेन को लेकर बढ़ते तनाव के बीच इसी हफ्ते रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से टेलीफोन पर बातचीत भी हो चुकी है. उस बातचीत में भी यूक्रेन ही मुख्य मुद्दा था. जिनेवा में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिकंन और रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव के बीच भी इसी पर बात हुई. वार्ता में दोनों पक्षों ने मांगें और चेतावनियां एक-दूसरे को थमाईं. रूस चाहता है कि पूर्वी यूरोप में नाटो की तैनाती वापस ली जाए. वहीं अमेरिका का कहना है कि बंदूक के बल पर किसी को दूसरे देश को धमकाने का हक नहीं है.
अमेरिका ने साफ चेतावनी दी है कि अगर रूसी सेना यूक्रेन में दाखिल हुई, तो रूस पर बहुत ही कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे. इस बीच अमेरिका ने 90 टन सैन्य सामग्री भी यूक्रेन पहुंचा दी है. ब्रिटेन भी रूसी सेना से घिरे यूक्रेन को सैन्य सामग्री दे चुका है. पश्चिमी देशों की चेतावनियों के जवाब में कुछ रूसी अधिकारियों का कहना है कि अगर नाटो की तैनाती का मसला नहीं सुलझा, तो वह क्यूबा में फिर से मिसाइलें तैनात करने पर विचार कर सकते हैं.
बीते कुछ हफ्तों से रूस के एक लाख से ज्यादा सैनिक यूक्रेन की सीमा पर तैनात हैं. रूसी सेना ने भारी मशीनरी के साथ यूक्रेन को तीन तरफ से घेरा है. इस घेराबंदी की जद में यूक्रेन की उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमा है. बेअसर बातचीत के बाद रूस ने यह भी एलान किया है कि वह इलाके में सैन्य अभ्यास बढ़ाएगा.
रूस और पश्चिम के बीच बफर जोन का मसला
1990 के दशक की शुरुआत में सोवियत संघ के टूटने के बाद से पूर्वी यूरोप में लगातार नाटो का विस्तार हुआ है. रूस के करीबी देशों पोलैंड और रोमानिया में नाटो ने अत्याधुनिक सैन्य सेटअप लगा रखा है. पुतिन लगातार इसका विरोध करते आ रहे हैं. रूस चाहता है कि नाटो, उसकी सीमा से बहुत दूर रहे और बीच में एक बफर जोन बना रहे.
यूक्रेन की घेराबंदी के बीच रूस ने मांग की है कि पश्चिम कानूनी समझौता करके यह गारंटी दे कि नाटो, यूक्रेन समेत सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके किसी भी देश में पैर न रखे. मॉस्को की यह भी मांग है कि 1990 के बाद मध्य और पूर्वी यूरोप के जिन देशों में नाटो की तैनाती हुई है, उसे वापस लिया जाए. रूस को लगता है कि अगर यूक्रेन में नाटो ने सैन्य स्टेशन बनाए, तो वहां से फायर की जाने वाली मिसाइल पांच मिनट से भी कम समय में मॉस्को पहुंच जाएगी. पुतिन की चेतावनी है कि अगर ऐसा हुआ, तो वह भी पांच मिनट के भीतर अमेरिका तक पहुंचने वाली हाइपरसॉनिक मिसाइल तैनात करेंगे.
दूसरी तरफ बीते दो-तीन साल में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कई नए हथियार दुनिया के सामने पेश किए हैं. इनमें हाइपरसॉनिक मिसाइलें भी हैं और अंडरवॉटर ड्रोन भी. रूसी हथियार कार्यक्रम से अमेरिका नाखुश है. अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों को लगता है कि रूस नाटो के खिलाफ ये हथियार विकसित कर रहा है.
पुतिन की लाल लकीर
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की साफ चेतावनी है कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता देना या हथियार देना, लाल लकीर पार करने जैसा होगा. ऐसा हुआ तो वह "सैन्य और तकनीकी कदम" उठाएंगे. 2014 में रूस ने सैन्य कार्रवाई करते हुए यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया. तब से पुतिन बार-बार यह धमकी दे रहे हैं कि अगर क्रीमिया को वापस लेने की कोशिश की गई, तो यूक्रेन को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
बीते आठ साल से यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष और तनातनी चल रही है. अब तक इस संघर्ष में 14,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. मृतकों में अधिकतर यूक्रेनी हैं. 2015 में जर्मनी और फ्रांस की मदद से यूक्रेन में संघर्ष विराम तो हुआ, लेकिन तनाव बरकरार है.
तनाव की आंच का फायदा
यूक्रेन के मुद्दे को लेकर रूस ने अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया है, जिससे लगे कि वह तनाव कम करना चाहता है. यूक्रेनी सीमा पर फौज के भारी जमावड़े के बीच रूसी रक्षा मंत्रालय ने फरवरी में काले सागर और भूमध्यसागर में बड़े स्तर के सैन्य अभ्यास करने का एलान भी किया है. इन सैन्य अभ्यासों में 140 से ज्यादा जहाज, वायु सेना के कई दर्जन विमान और 10,000 से ज्यादा सैनिक शामिल होंगे.
पुतिन पश्चिम के विरोधी देशों के सर्वोच्च नेताओं से भी मिल रहे हैं. वह ईरान के राष्ट्रपति की मेजबानी कर चुके हैं और अब शीत ओलंपिक के उद्घाटन में शामिल होने के लिए बीजिंग जाने की तैयारी कर रहे हैं. इस दौरान वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत भी करेंगे. निकारागुआ और वेनेजुएला के नेताओं से भी पुतिन की बातचीत हुई है. हाल-फिलहाल में रूस के सरकारी विमान क्यूबा और वेनजुएला के चक्कर काटते भी दिखाई दिए हैं.
वहीं अमेरिका इस तरह के कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का खाका तैयार कर रहा है, जिससे आम रूसी नागरिकों की जिंदगी पर भी सीधा असर पड़े. अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि यूक्रेन, रूस के लिए अफगानिस्तान साबित हो सकता है. कड़े आर्थिक प्रतिबंध पुतिन को अपने ही घर में कमजोर करेंगे, जबकि जमीनी संघर्ष रूसी सेना को बेतहाशा खर्च करने पर मजबूर कर देगा. ओएसजे/वीएस (एपी, एएफपी)
ब्रिटेन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर आरोप लगाया है कि वो यूक्रेन में रूस समर्थित राष्ट्रपति तैनात करना चाहते हैं.
ब्रितानी विदेश मंत्रालय ने एक असामान्य क़दम उठाते हुए यूक्रेन के पूर्व सांसद येवेन मुरायेव को रूस का एक संभावित उम्मीदवार बताया है.
रूस ने यूक्रेनी सीमा पर अपने एक लाख से अधिक जवान तैनात किए हुए हैं और उसने इन दावों को ख़ारिज किया है कि वो यूक्रेन पर धावा बोलने जा रहा है.
ब्रिटेन के मंत्रियों ने चेतावनी दी है कि अगर हमला किया जाता है तो रूसी सरकार को इसके गंभीर परिणाम देखने होंगे.
एक बयान में ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज़ ट्रस ने कहा है कि ‘आज जारी की गई सूचना यूक्रेन को उलटने के लिए डिज़ाइन की गई रूसी गतिविधियों को दिखाती है और यह क्रेमलिन की सोच पर प्रकाश डालती है.'
“रूस को पीछे हटना चाहिए और आक्रामकता और दुष्प्रचार के अपने अभियानों को समाप्त करना चाहिए और कूटनीति के रास्ते को अपनाना चाहिए.”
“ब्रिटेन और उसके सहयोगी कई बार कह चुके हैं कि रूसी सेना का यूक्रेन पर किसी भी तरह का हमला गंभीर परिणामों के साथ एक बड़ी रणनीतिक ग़लती होगी.”
2014 में रूस ने यूक्रेनी क्षेत्र क्राइमिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था जिसके बाद यूक्रेन ने रूस समर्थक राष्ट्रपति को हटा दिया था.
कौन हैं मुरायेव
पेशे से मीडिया व्यवसायी मुरायेव 2019 के चुनावों में यूक्रेनी संसद का चुनाव हार गए थे और उनकी पार्टी 5% वोट भी नहीं ला पाई थी.
ब्रिटेन का उनको रूस समर्थित उम्मीदवार बताने पर उन्होंने कहा है कि विदेश मंत्रालय ‘कुछ भ्रम में नज़र आ रहा है.’
“यह बहुत तार्किक नहीं है. रूस ने मुझे प्रतिबंधित किया हुआ है. सिर्फ़ इतना ही नहीं उसने मेरे पिता की फ़र्म को भी ज़ब्त किया हुआ है.”
ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने चार और अन्य यूक्रेनी राजनेताओं के नाम बताएं हैं जो रूसी ख़ुफ़िया एजेंसियों के संपर्क में हैं.
कहा गया है कि इनमें से कुछ लोग रूसी ख़ुफ़िया अफ़सरों के साथ हमले की योजना पर काम भी कर रहे हैं. (bbc.com)
क्या रूस की सेना यूक्रेन पर हमले की तैयारी में जुटी है? यूक्रेन से लगी अपनी सीमा पर रूस ने एक लाख से अधिक सैनिक तैनात किए हैं.
रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण करने की किसी योजना से इनकार किया है लेकिन इसे लेकर तनाव बढ़ रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन में सैनिक कार्रवाई की आशंका जताई है. बाइडन ने बुधवार को कहा कि उन्हें लगता है कि उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में 'हस्तक्षेप करेंगे', लेकिन एक 'मुकम्मल जंग' से बचना चाहेंगे. असल में उन्होंने रूसी सेना के 'छोटे-से हस्तक्षेप' की आशंका जताई है. (bbc.com)
न्यूयॉर्क, 22 जनवरी | अस्पताल में कोरोना संक्रमित बच्चों में से 44 प्रतिशत में न्यूरोलॉजिकल लक्षण विकसित हुए हैं और इन बच्चों को अपने साथियों की तुलना में गहन देखभाल की आवश्यकता थी। एक नए अध्ययन से यह जानकारी मिली। जर्नल पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी में प्रकाशित निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि सबसे आम न्यूरोलॉजिक लक्षण सिरदर्द और बदली हुई मानसिक स्थिति थी, जिसे एक्यूट एन्सेफैलोपैथी के रूप में जाना जाता है।
पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय की मुख्य लेखिका एरिका फिंक ने कहा, "सार्स-सीओवी-2 वायरस बाल रोगियों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित कर सकता है, यह तीव्र बीमारी का कारण बन सकता है।"
अस्पताल में भर्ती 1,493 बच्चों में से 1,278 बच्चों में तीव्र सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित पाए गए। वहीं 215 बच्चों में एमआईएस-सी, या बच्चों में मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के लक्षण दिखे, जो आमतौर पर वायरस को साफ करने के कई सप्ताह बाद प्रकट होता है।
तीव्र कोविड -19 से जुड़ी सबसे आम तंत्रिका संबंधी अभिव्यक्तियां सिरदर्द, तीव्र एन्सेफैलोपैथी और दौरे थे, जबकि एमआईएस-सी वाले युवाओं में अक्सर सिरदर्द, तीव्र एन्सेफैलोपैथी और चक्कर आना होता था।
दोनों स्थितियों के दुर्लभ लक्षणों में गंध की हानि, दृष्टि हानि, स्ट्रोक और मनोविकृति शामिल हैं। (आईएएनएस)
जर्मनी की नई गठबंधन सरकार हर साल विदेशों से चार लाख कुशल श्रमिकों को अपने देश में आकर्षित करना चाहती है. ऐसा कर वह प्रमुख क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय असंतुलन और श्रम की कमी दोनों से निपटना चाहती है.
गठबंधन सरकार में शामिल फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) के संसदीय दल के नेता क्रिस्टियान डुइर ने बिजनेस पत्रिका विर्टशॉफ्ट्स वोखे से कहा, "कुशल श्रमिकों की कमी अब तक इतनी गंभीर हो गई है कि यह नाटकीय रूप से हमारी अर्थव्यवस्था को धीमा कर रही है,"
डुइर ने आगे कहा, "हम एक आधुनिक आव्रजन नीति के साथ सिर्फ एक बूढ़े होते कार्यबल की समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं. हमें विदेशों से चार लाख कुशल श्रमिकों के निशान तक जल्द से जल्द पहुंचना होगा."
बूढ़े होते कर्मचारी
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की एसपीडी, डुइर की उदारवादी एफडीपी और पर्यावरण को अपने एजेंडे पर रखने वाली ग्रीन पार्टी ने यूरोपीय संघ के बाहर के देशों के कुशल श्रमिकों के लिए एक अंक प्रणाली जैसे उपायों पर अपने गठबंधन कॉन्ट्रैक्ट में सहमति जाहिर की है और जर्मनी में काम करने को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को 12 यूरो प्रति घंटे तक बढ़ाया है.
जर्मन आर्थिक संस्थान का अनुमान है कि इस साल श्रम बल में तीन लाख से अधिक लोगों की कमी आएगी, क्योंकि श्रम बाजार में नए युवाओं के आने की तुलना में अधिक बूढ़े कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं.
यह अंतर 2029 में साढ़े छह लाख से अधिक होने की उम्मीद है. जिससे 2030 में कामकाजी उम्र के लोगों की संचित कमी लगभग 50 लाख हो जएगी. कोरोना वायरस महामारी के बावजूद पिछले साल रोजगार में जर्मनों की संख्या बढ़कर लगभग 4.5 करोड़ हो गई.
दशकों से कम होती जन्म दर और असमान प्रवासन के बाद से ही सिकुड़ती हुई श्रम शक्ति जर्मनी की सार्वजनिक पेंशन प्रणाली के लिए एक जनसांख्यिकीय संकट खड़ा कर रही है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
काबुल, 22 जनवरी | अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार ने एक महिला प्रदर्शनकारी को उसके घर से जबरन गिरफ्तार करने से इनकार किया है। खामा प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार को तमाना जरयब परयानी ने एक वीडियो क्लिप में कहा कि तालिबान लड़ाके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं और उन्हें और उनकी बहनों को ले जाना चाहते हैं।
गवाहों का हवाला देते हुए, कुछ पश्चिमी मीडिया रिपोटरें ने दावा किया कि तालिबान के सहयोगी अपार्टमेंट में घुस गए और परयानी और उसकी तीन बहनों को हिरासत में ले लिया।
परयानी उन 20 अफगान महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने तालिबान सरकार द्वारा घोषित हिजाब पहनने की बाध्यता का विरोध किया था।
विकास पर प्रतिक्रिया देते हुए, आंतरिक मंत्रालय ने गिरफ्तारी से इनकार किया और कहा कि कोई भी तालिबान कर्मी परयानी के अपार्टमेंट में नहीं घुसा।
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि वीडियो फर्जी है और प्रदर्शनकारी ने विदेश में शरण लेने के लिए क्लिप बनाई है। (आईएएनएस)
पृथ्वी की असीम गहराई में मौजूद गर्भ खौलते तरल से भरा है. 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी के अस्तित्व में आने के बाद से इसका गर्भ लगातार ठंडा पड़ता जा रहा है, वो भी अब तक अनुमानों से कहीं ज्यादा तेजी से.
डॉयचे वैले पर लुइजा राइट की रिपोर्ट-
पृथ्वी की उत्पत्ति के समय पूरी धरती खौलते मैग्मा से लबालब थी. वक्त के साथ धरती धीमे धीमे ठंडी होने लगी, लेकिन पृथ्वी के गर्भ (कोर) में उष्मा खोने की यह प्रक्रिया आज भी जारी है.
पृथ्वी के तेजी से ताप खोने की प्रक्रिया की जो वैज्ञानिक समझ अब तक पेश की जाती रही, उसे अब एक नए शोध ने चुनौती दी है. 15 जनवरी को प्रकाशित नए शोध में धरती के ठंडे होने की रफ्तार को पुराने अनुमानों से कहीं ज्यादा तेज बताया गया है.
स्विट्जरलैंज, जर्मनी, अमेरिका और जापान के रिसर्चरों की इस खोज के मुताबिक पृथ्वी के गर्भ से गर्मी को बाहर निकालने में विकिरण बड़ी भूमिका निभाता है. लेकिन अब तक इस भूमिका को नजरअंदाज किया जाता रहा है.
पृथ्वी पर जो जमीन और समंदर हैं, वो धरती का सबसे बाहरी भाग है. इसके नीचे क्रस्ट कही जाने वाली परत आती है. क्रस्ट के नीचे मेंटल कही जाने वाले दो मोटी होते हैं. एक अपर मेंटल और दूसरा लोअर मेंटल. लोअर मेंटल के कवच के भीतर तरल अवस्था में पृथ्वी का गर्भ है. वैज्ञानिकों का मानना है कि लोअर मेंटल, ब्रिजमैनाइट नाम के खनिज से बना है. ब्रिजमैनाइट शब्द भौतिक विज्ञानी पेर्सी ब्रिजमैन के नाम पर रखा गया है. वैज्ञानिकों को लगता है कि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा मात्रा में मौजूद खनिज ब्रिजमैनाइट ही है.
इटीएच ज्यूरिख में भूविज्ञानी के प्रोफेसर मोतोहिको मुराकामी कहते हैं, "हमें पता चला है कि ब्रिजमैनाइट की ताप संवाहक क्षमता यानी थर्मल कंडक्टिविटी वैल्यू पहले कम आंकी गई. मुराकामी और उनके साथियों का दावा है कि ब्रिजमैनाइट की ताप संवाहक क्षमता पूर्वानुमान से डेढ़ गुना ज्यादा है.
मुराकामी कहते हैं, "कोर से गर्मी का ट्रांसफर पूर्वानुमान के मुताबिक कही ज्यादा किफायती ढंग से होता है, इसका मतलब यह है कि गर्भ अनुमान के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से ठंडा हो रहा है.
शोध का मुश्किल विषय
विज्ञान और वैज्ञानिक अभी तक भूगर्भ तक नहीं पहुंच सके हैं. यही वजह है कि उसके बारे में सटीक खोज करना आसान नहीं है. वैज्ञानिक अब तक जियोफिजिकल रिसर्च डाटा की मदद से लैब में पृथ्वी के गर्भ का मॉडल तैयार करते हैं. प्रयोग इसी मॉडल पर किए जाते हैं.
मुराकामी और उनकी टीम ने ब्रिजमैनाइट को सिंथेसाइज कर यह प्रयोग किया. सिथेंटिक मिनरल ऐसा खनिज है जिसे प्रकृति से लेने के बजाए वैज्ञानिक लैब में बनाते हैं. इस प्रयोग में जिस सिथेंटिक ब्रिजमैनाइट का प्रयोग किया गया वह इंसानी हाथ में आसानी से फिट हो सकने लायक आकार का है.
ब्रिजमैनाइट के इस नमूने को एक छोटे से चैंबर में रखा गया. फिर उसे हीरे की दीवारों से कंप्रेस किया गया. इस दौरान सैंपल को एक लेजर से गर्म भी किया गया. फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च की जियोफिजिस्ट कारीन सिंगलॉख के मुताबिक लेजर बीम हीरे की दीवारों को पार कर सैंपल को गर्म करती है.
क्यों अहम है ये नतीजे
जर्मनी की बायरूथ यूनिवर्सिटी में इनर अर्थ पर रिसर्च करने वाले गैर्ड श्टाइले-नॉयमन कहते हैं, "अब तक का ज्ञान तो यही कहता आया है कि ठोस धरती पर ताप के परिवहन में विकिरिण कोई खास भूमिका नहीं निभाता है."
श्टाइनले-नॉयमन शोध का हिस्सा नहीं हैं लेकिन डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुराकामी के प्रयोग इस बात की पुष्टि करते हैं कि विकिरण, पृथ्वी के कोर से मेंटल तक, ताप के परिवहन को करीब 50 फीसदी तक बढ़ा सकता है, यानि पूरी पृथ्वी के गर्मी खोने की रफ्तार को तेज कर सकता है."
लेकिन कुछ बातें अब भी साफ नहीं हुई हैं. फ्रांसीसी वैज्ञानिक सिंगलॉख कहती हैं, "भूगर्भ के ठंडे होने से मेंटल के व्यवहार में क्या फर्क पड़ता है."
पृथ्वी भीतर से तेजी से ठंडी भी हो रही है तो भी मौजूदा जलवायु संकट पर इसका कोई असर नहीं दिखता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्रहों के ठंडा होने की यह प्रक्रिया अरबों साल तक चलती है, जबकि बाहरी वातावरण के तापमान में उछाल दशकों की समयसीमा के भीतर होता है. (dw.com)
संयुक्त राष्ट्र ने यमन के एक डिटेंशन सेंटर पर सऊदी के नेतृत्व वाले गठबंधन की ओर से किए गए एयर स्ट्राइक की निंदा की है. इस हवाई हमले में 70 से अधिक लोग मारे गए हैं.
हूती विद्रोहियों के आंदोलन का गढ़ माने जाने वाले सादा के डिटेंशन सेंटर पर शुक्रवार को ये हमला किया गया.
मरने वालों का सटीक आंकड़ा स्पष्ट नहीं है लेकिन मेडिसिन्स साँ फ्रंतिए (एमएसएफ) ने कहा कि हमले में कम से कम 70 लोग मारे गए हैं, हालांकि ये संख्या और भी बढ़ने की बढ़ने की आशंका है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि "इस तरह के हमलों को रोकने की ज़रूरत है". साथ ही उन्होंने हमलों की जांच करने की बात पर भी ज़ोर दिया है.
सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन की सेना 2015 से हूती विद्रोहियों से लड़ रही है.
इस युद्ध में 10,000 से अधिक बच्चों सहित दसियों हज़ार नागरिक मारे गए या घायल हुए हैं. लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और बड़ी आबादी अकाल और भूखमरी के कगार पर खड़ी है.
बीबीसी मध्य पूर्व संवाददाता एना फ़ोस्टर के मुताबिक़ हवाई हमले के कुछ घंटे बाद भी बचावकर्मी मलबे से शवों को बाहर निकाल रहे. (bbc.com)
पश्चिम एशिया जलवायु संकट की कड़ी मार झेल रहा है. ऐसे में इलाके के देशों के बीच सहयोग अनिवार्य हो चला है. क्या इस्राएल और जॉर्डन के बीच हुआ अक्षय ऊर्जा और पानी की अदलाबदली का समझौता इस दिशा में पहला कदम माना जा सकता है?
डॉयचे वैले पर तानिया क्रेमर की रिपोर्ट-
जलवायु समझौते के तहत जॉर्डन, इस्राएल को सौर ऊर्जा देने की तैयारी कर रहा है और बदले में उसे इस्राएल से पानी मिलेगा. ये रजामंदी दोनों देशों के बीच एक जलवायु सहयोग सौदे का आधार है. दोनों देशों ने 1994 में शांति समझौता कर लिया था. इस साहसिक सौदे के तहत, पानी की कमी से जूझता जॉर्डन करीब 600 मेगावॉट सौर ऊर्जा, इस्राएल को निर्यात करेगा और इस्राएल उसे बदले में 20 करोड़ घन मीटर विलवणीकृत पानी मुहैया कराएगा.
इस आशय के प्रस्ताव पर हुए दस्तखत के दौरान प्रकाशित हुई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात की एक कंपनी जॉर्डन में एक सौर फार्म बनाएगी, जिसमें इस्राएल को जोड़ने वाली ट्रांसमिशन लाइन भी होगी. यह काम 2026 तक पूरा होगा. इस बीच इस्राएल ने अपने भूमध्यसागरीय तट पर पानी के विलवणीकरण के पांच प्लांट चालू कर दिए हैं. दो और संयंत्र बनाने की योजना है.
एक इस्राएली-जॉर्डन-फलिस्तीनी पर्यावरण एनजीओ- ईकोपीस मिडल ईस्ट के सह-संस्थापक और इस्राएली निदेशक गिडोन ब्रोमबर्ग कहते हैं, "दोनों देशों के लिए ये फायदे का सौदा है और जलवायु सुरक्षा पर लीक से हटकर बन रहे सोच का एक आदर्श नमूना भी.”
सहयोग के लिए आवश्यक जमीन तैयार करने और जलवायु परिवर्तन पर ज्यादा क्षेत्र केंद्रित नजरिया देने के लिए इस संगठन को श्रेय जाता है. दिसंबर 2020 में ईकोपीस ने "ग्रीन ब्लू डील फॉर द मिडल ईस्ट” नाम से एक विस्तृत योजना प्रकाशित की थी जिसमें सीमा पार जलवायु सुरक्षा की वकालत की गई है और जॉर्डन, इस्राएल और फलिस्तीनी भूभाग पर जोर दिया गया है.
ईकोपीस के जॉर्डन में निदेशक याना अबु तालेब ने एक बयान में कहा, "यह समझौता हमारे क्षेत्र में देशों के बीच स्वस्थ अंतर्निर्भरता का एक नया मॉडल बना रहा है.” नफ्थाली बेनेट की अगुआई में नयी इस्राएली सरकार ने जॉर्डन के साथ रिश्तों की बेहतरी को अपनी प्राथमिकता बनाया है. इससे पहले इस्राएल ने संयुक्त अरब अमीरात और दूसरे अरब देशों के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में अब्राहम संधि पर हस्ताक्षर भी किए थे.
सौर ऊर्जा के रूप में राजनीतिक लाभ?
लाल सागर के एक छोटे से फैलाव से लगे जॉर्डन के पास लंबी तटीय रेखा नहीं हैं जिस पर वो खारे पानी को साफ करने वाले बहुत सारे प्लांट लगा सके. हुकूमत इसीलिए लंबे समय से पानी की खरीद के लिए इस्राएल पर निर्भर रहती आई है. तालेब इस नये समझौते को राजनीतिक हिसाब-किताब बराबर करने के एक नये अवसर के रूप में देखते हैं क्योंकि जॉर्डन के पास अब इस्राएल को वापस बेचने के लिए एक बेशकीमती चीज है और इसके चलते उसे इस्राएल पर एक राजनीतिक बढ़त भी हासिल हुई है.
क्योंकि इस्राएल ने 2030 तक अपनी 30 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन नवीनीकृत स्रोतों से करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और उसके पास बड़े स्तर के सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं है जबकि जॉर्डन के पास विशाल कड़क धूप वाली रेगिस्तानी जमीन है जो विशालकाय सौर ऊर्जा उपकरण लगाने के लिए बिल्कुल उपयुक्त है.
तालेब ने डीडबल्यू को बताया, "जॉर्डन अक्षय ऊर्जा का इलाकाई अड्डा बन सकता है. वह पूरे इलाके को अक्षय ऊर्जा बेच सकता है ना कि सिर्फ इस्राएल को. और कल्पना कीजिए- हमें तमाम जलवायु सुरक्षा हासिल हो रही है, तमाम आर्थिक फायदे भी देश को मिल रहे हैं.”
जलवायु परिवर्तन से जूझता इलाका
इस्राएल पहले ही जलवायु परिवर्तन को राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बता चुका है. ब्रोमबर्ग के मुताबिक ये चिंता निश्चित रूप से इस समझ से बनी होगी कि खतरा पूरे इलाके को है. ब्रोमबर्ग कहते हैं, "इस्राएल खुद को एक अंतरराष्ट्रीय भूमिका में देखना चाहता है, जलवायु मुद्दों पर और, विश्व नेता के तौर पर. उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को दिखाना भी है सो उन संकल्पों और प्रतिबद्धताओं का निर्वहन भी करना होगा.”
जलवायु परिवर्तन का गंभीर असर पहले ही इस्राएल और जॉर्डन के इर्दगिर्द समूचे मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) इलाके पर पड़ चुका है. तेल अवीव यूनिवर्सिटी में पर्यावरणीय अध्ययन के पोर्टर स्कूल के प्रमुख कोलिन प्राइस कहते हैं, "यह इलाका बाकी दुनिया की अपेक्षा तेजी से गरम हो रहा है. पिछले दो दशकों के दरमियान हमने देखा है कि समूचे भूमध्यसागर की तपिश में तेजी आई है और इस्राएल में भी. लिहाजा हमारी गर्मियां तो और गरम और लंबी होने लगी हैं.”
इस्राएल के मौसम विभाग के पेश किए हुए "एक गंभीर परिदृश्य” में इस सदी के अंत तक औसत तापमान में चार डिग्री सेल्सियस (7.2 डिग्री फारेनहाइट) की बढोतरी का आकलन किया गया है. उधर प्राइस के मुताबिक वृहद् भूमध्यसागरीय क्षेत्र में सदी के अंत तक बारिश में 20 फीसदी की गिरावट आ सकती है. वह कहते हैं, "यही तो हम कई देशों में देख रहे हैं- ग्रीस, इटली और स्पेन में. और इसकी वजह से जंगलों में आग की ज्यादा गंभीर घटनाएं होने लगी हैं.”
संयमित आशावाद की जरूरत
जॉर्डन भी हाल के वर्षों में ताजा पानी की आपूर्ति में भारी किल्लत से जूझ रहा है. राजधानी अम्मान में नागरिक अपनी छतों पर लगे टैंकों तक पानी पहुंचाने के आदी हो चुके हैं. याना अबु तालेब कहते हैं, "पूरा इलाका स्वाभाविक रूप से पानी की कमी का शिकार है. हमार पास बहुत सीमित सतही और भूजल संसाधन हैं और पानी की उपलब्धतता के मामले में इलाके के दूसरे देशों के बीच जॉर्डन सबसे गरीब देश है.”
लेकिन भारी कमी के और भी कारण हैं जैसे कि खराब जल-प्रबंधन और बढ़ती आबादी. पड़ोस के संघर्षरत देशों से हाल के वर्षों में करीब आठ लाख शरणार्थी जॉर्डन आ चुके हैं. देश के प्राकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है. पिछली गर्मियों में इस्राएल अपने पड़ोसी जॉर्डन को पानी की सालाना सप्लाई दोगुना कर पांच करोड़ घन मीटर सालाना करने पर सहमत हो गया था. और ये स्वागत-योग्य है. लेकिन नये समझौते के तहत उस मात्रा का चार गुना ही जॉर्डन में जा सकता है.
इस बीच रॉयटर्स समाचार एजेंसी की रिपोर्टों में बताया गया कि योजनागत प्रोजेक्ट को लेकर अम्मान में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे क्योंकि एक तबका इस्राएल के साथ रिश्तों के "सामान्यीकरण” को नकारात्मक ढंग से ले रहा था. ऐसी रिपोर्टों के बावजूद ब्रोमबर्ग कहते हैं कि वो समझौते को लेकर सकारात्मक हैं- खासकर उसके कई हिस्से निजी सेक्टर के जिम्मे हैं और दान के पैसों पर निर्भर नहीं हैं.
ब्रोमबर्ग कहते है कि "दोनों पक्ष एक ही पायदान पर खड़े हैं, क्योंकि दोनों को एक-दूसरे से कुछ खरीदना भी है और कुछ बेचना भी है.” उनके मुताबिक पर्यावरणीय और राजनीतिक संदर्भों के लिहाज से भी "एहतियाती आशावाद के लिए अच्छी वजह है.” (dw.com)
ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से नेपाल में एक बार फिर से कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चिंता सताने लगी है कि ऐसे में हालात बेकाबू हो सकते हैं.
डॉयचे वैले पर लेखानंद पांडेय की रिपोर्ट-
नेपाल में कोरोना संक्रमण के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते मंगलवार को एक दिन में संक्रमण के 10,200 से ज्यादा मामले सामने आए. यह एक दिन में अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. पिछले साल जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का डेल्टा वेरिएंट तबाही मचा रहा था, तब मार्च 2021 में नेपाल में एक दिन में सबसे ज्यादा 9,300 मामले सामने आए थे. इस बार वह रिकॉर्ड टूट गया है.
राजधानी काठमांडू और आसपास के इलाके कोरोना वायरस के हॉटस्पॉट बन चुके हैं. सबसे ज्यादा मामले इन्हीं इलाकों से सामने आ रहे हैं. वायरोलॉजिस्ट का अनुमान है कि संक्रमण की सही संख्या रिपोर्ट किए गए आंकड़े से बहुत अधिक हो सकती है, क्योंकि कई सारे लोग जांच और इलाज के लिए अस्पताल नहीं आ रहे हैं. वायरोलॉजिस्ट का यह भी कहना है कि पिछले वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट तेजी से लोगों को संक्रमित कर रहा है.
जनवरी की शुरुआत में, नेपाल के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जानकारी दी गई थी कि संक्रमण के कम से कम 22 फीसदी मामले ओमिक्रॉन वेरिएंट के थे. काठमांडू के सुकरराज ट्रॉपिकल हॉस्पिटल के क्लिनिकल रिसर्चर शेर बहादुर पुन ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह आंकड़ा काफी ज्यादा हो सकता है. उन्होंने कहा कि अब यह पता लगाना मुश्किल हो रहा है कि आखिर इतनी तेजी से संक्रमण कैसे फैल रहा है, क्योंकि प्रयोगशालाओं में पूरी व्यवस्था नहीं है. इस वजह से यह साफ तौर पर पता नहीं चल पा रहा है कि तेजी से बढ़ते मामलों के लिए कौनसा वेरिएंट जिम्मेदार है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि नया वेरिएंट तेजी से फैल रहा है.
भारत से नेपाल पहुंचा ओमिक्रॉन
कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या जनवरी के दूसरे सप्ताह से बढ़नी शुरू हुई. इससे पहले हर दिन एक सौ से भी कम लोग संक्रमित हो रहे थे. संक्रमित लोगों की संख्या काफी कम होने लगी थी. नेपाल के प्रमुख महामारी विज्ञानी कृष्ण प्रसाद पौडेल ने स्थानीय मीडिया को बताया कि संक्रमण की मौजूदा लहर पड़ोसी देश भारत में शुरू हुई. वहां तेजी से मामले बढ़े और इसके बाद यह नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में पहुंचा. अब यह राजधानी काठमांडू तक पहुंच गया है.
हिमाल पत्रिका ने पौडेल के हवाले से लिखा, "ओमिक्रॉन वेरिएंट सामुदायिक स्तर पर फैल गया है. सीमावर्ती इलाकों के लगभग सभी लोग ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से कोरोना वायरस से संक्रमित हुए." नेपाल और भारत के बीच 1,800 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है. हजारों लोग प्रतिदिन एक देश से दूसरे देश में आते-जाते हैं. भारत में हाल के दिनों में एक दिन में संक्रमण की दर दो लाख 27 हजार से ज्यादा तक पहुंच गई है.
महामारी विज्ञानी और रोग नियंत्रण के पूर्व निदेशक बाबूराम मरासिनी ने डॉयचे वेले को बताया कि दिसंबर महीने में आयोजित राजनीतिक सम्मेलनों की वजह से डेल्टा और ओमिक्रॉन दोनों वेरिएंट के मामले बढ़े.
स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं स्वास्थ्यकर्मी
दुनिया के अन्य देशों की तरह, नेपाल में भी ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी सेवाओं पर असर पड़ा है. डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना की चपेट में आ रहे हैं. काठमांडू में पांच सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के 600 से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी हाल के हफ्तों में संक्रमित हुए हैं. डॉक्टरों ने एक बार फिर से आगाह किया है कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों की वजह से इन अस्पतालों की सेवा प्रभावित हो सकती है. स्थानीय मीडिया में यह भी बताया गया है कि दवा की दुकानों में बुखार के लिए इस्तेमाल होने वाली पैरासिटामोल जैसी दवाओं की भी कमी है.
मरासिनी ने चेतावनी दी है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट का लहर पिछले साल के मई के डेल्टा वेरिएंट की तरह खतरनाक साबित हो सकता है. देश की स्वास्थ्य प्रणाली प्रभावित हो सकती है. 2021 में नेपाल में एक दिन में संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या 9,000 तक पहुंच गई थी और मौतों की संख्या 200 तक. ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड और वेंटिलेटर की कमी सहित तुरंत इलाज न मिलने की वजह से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी.
टीका लगवाना हुआ अनिवार्य
नई लहर को देखते हुए नेपाल की सरकार ने टीकाकरण को लेकर नया आदेश जारी किया है. इसमें कहा गया है कि 21 जनवरी से लोगों को सार्वजनिक कार्यक्रमों, रेस्तरां, होटल में जाने या हवाई जहाज से यात्रा करने से पहले यह साबित करना होगा कि उन्होंने टीका लगवा लिया है. अधिकारियों ने जनवरी के अंत तक सिनेमा घर, डांस बार, धार्मिक स्थल, सार्वजनिक पार्क और जिम जैसी जगहों को भी बंद कर दिया है. दुकानों में एक समय में 25 से ज्यादा लोगों को इकट्ठा होने की अनुमति नहीं है.
सरकार को महामारी से निपटने, टीकाकरण की धीमी रफ्तार, और सीमा पर जांच को लेकर पर्याप्त चौकसी न बरतने के लिए तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 18 जनवरी तक नेपाल के तीन करोड़ लोगों में से महज 40 फीसदी लोगों का ही पूरी तरह टीकाकरण हुआ है. जबकि, 53 फीसदी को अब तक एक खुराक लगी है. मरासिनी ने वैक्सीन-कार्ड नियम के आदेश पर सवाल उठाया है, क्योंकि अधिकांश आबादी को अभी तक पूरी तरह से टीका नहीं लगाया गया है. वह कहते हैं, "अगर हम अपनी आबादी के दो तिहाई लोगों का टीकाकरण कर चुके होते, तो ऐसा नियम लागू कर सकते थे. मौजूदा हालात में ऐसे नियमों का पालन करना मुश्किल है."
टीके की खुराक ‘गायब'
नेपाल ने जनवरी 2021 की शुरुआत में अपनी आबादी को टीका लगाना शुरू कर दिया था, लेकिन कुछ ही समय बाद टीकाकरण अभियान ठप हो गया क्योंकि टीके की पर्याप्त खुराक या सीरिंज नहीं थे. नेपाल के स्वास्थ्य सचिव रोशन पोखरेल ने डीडब्ल्यू को बताया कि आपूर्ति की कमी के कारण शुरुआती टीकाकरण अभियान में बाधा आई थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है.
हालांकि, पोखरेल ने मंगलवार को एक संसदीय पैनल को बताया कि सरकारी स्टॉक से टीके की लगभग 25 लाख खुराक का हिसाब नहीं दिया जा सकता है. साथ ही, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस खुराक का अवैध रूप से इस्तेमाल किया गया हो. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि खुराक तक पहुंच रखने वाले लोगों द्वारा टीके का दुरुपयोग एक समस्या बन गया है. सरकार ने अभी तक टीके के दुरुपयोग की जांच नहीं की है. टीके की ये ज्यादातर खुराक देश ने खुद खरीदी थीं या अंतरराष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के दौरान दान के तौर पर मिले थे.
एक ओर जहां देश की करीब आधी आबादी को अभी तक टीके की एक भी खुराक नहीं लगी है, वहीं दूसरी ओर पहुंच वाले लोगों ने बूस्टर शॉट भी ले लिए हैं. सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कर्मचारियों, सफाईकर्मियों, सरकारी अधिकारियों सहित फ्रंटलाइन वर्कर को बूस्टर शॉट देना शुरू कर दिया है. हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इन खुराकों को उन लोगों के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिनका अभी तक टीकाकरण नहीं हुआ है. (dw.com)