अंतरराष्ट्रीय
नई दिल्ली, 19 फरवरी| पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री सैयद मुराद अली शाह ने शनिवार को कराची में सड़क पर अपराधों में वृद्धि के लिए देश की मौजूदा वित्तीय स्थिति को जिम्मेदार ठहराया। मुख्यमंत्री ने यह बात कराची में मीडिया के एक सवाल के जवाब में कही।
अपराध में वृद्धि के संभावित कारणों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि कई मामलों में ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों को आर्थिक परिस्थितियां इस तरह के कार्यो का सहारा लेने के लिए मजबूर करती हैं।
उन्होंने कहा, "सड़क पर अपराध बढ़ने का एक कारण बिल्कुल स्पष्ट है, और वह है देश की वर्तमान वित्तीय स्थिति। लेकिन हम कोई बहाना नहीं ढूंढ रहे हैं, जिम्मेदारी हमारी है और हम इसे पूरा करेंगे।"
उन्होंने कहा कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हाल ही में कुछ उपाय किए गए थे, पुलिस को आवश्यक निर्देश दिए गए थे और उम्मीद है कि सुधार दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि सुरक्षित शहरों की परियोजना में तकनीकी सुधार भी अपने अंतिम चरण में हैं।
कराची में एक पत्रकार की हत्या के बारे में पूछे जाने पर, जिसे कथित स्नैचिंग के दौरान सशस्त्र लुटेरों ने गोली मार दी थी, सीएम शाह ने कहा कि तीन से चार अलग-अलग सुरागों पर काम किया जा रहा है और अपराधियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने कहा कि बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति देश के अधिकांश शहरों की समस्या है और केवल कराची तक ही सीमित नहीं है, जो एक प्रमुख शहर होने के कारण अधिक ध्यान आकर्षित करता है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 19 फरवरी| अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन पुलिस ने घोषणा की है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के 1 मार्च को होने वाले पहले स्टेट ऑफ द यूनियन (एसओटीयू) संबोधन से पहले अतिरिक्त सुरक्षा की योजना बना रहे हैं। कड़ी सुरक्षा ऐसे समय पर निर्धारित की जा रही है, जब अमेरिका के पड़ोसी देश कनाडा में ट्रक चालकों द्वारा शुरू किए गए विरोध प्रदर्शन अब खत्म हो रहे हैं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने कैपिटल पुलिस के हवाले से एक बयान में कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कानून प्रवर्तन एजेंसियां ट्रक काफिले की एक सीरीज की योजना से अवगत हैं, जो कि कांग्रेस के संयुक्त सत्र में बाइडेन के भाषण के समय के आसपास ही वाशिंगटन, डी. सी. आ रहे हैं।
होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (डीएचएस) ने हाल ही में राज्य और स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों को चेतावनी दी है कि कनाडा में ट्रक विरोध के समान प्रदर्शन अमेरिका के प्रमुख महानगरीय शहरों में भी शुरू हो सकते हैं।
ट्रक ड्राइवरों ने पिछले कुछ हफ्तों में कनाडा में देश के कोविड-19 प्रतिबंधों के खिलाफ शहर के यातायात और अमेरिका के साथ सीमा पार को अवरुद्ध करके विरोध प्रदर्शन किया है।
कनाडा की पुलिस ने शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों को उस समय गिरफ्तार करना शुरू किया था, जब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कानून प्रवर्तन अधिकारियों को नाकाबंदी को अवैध घोषित करने, ट्रकों को हटाने, ड्राइवरों को गिरफ्तार करने, उनके लाइसेंस निलंबित करने और उनके बैंक खातों को फ्रीज करने का अधिकार दिया था।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि प्रशासन अमेरिका में संभावित ट्रक विरोध से किसी भी प्रभाव या किसी भी सुरक्षा प्रभाव का लगातार आकलन कर रहा है।
कांग्रेस के सभी 535 सदस्यों के बाइडेन के एसओटीयू संबोधन में शामिल होने की उम्मीद है।
उन्हें पूरे समय मास्क पहनना होगा और आयोजन से पहले 24 घंटों के भीतर एक कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
अमेरिकी राष्ट्रपतियों को देश के संविधान द्वारा स्टेट ऑफ यूनियन की कांग्रेस को जानकारी देना और उनके विचार के लिए ऐसे उपायों की सिफारिश करना आवश्यक है।
बाइडेन ने पिछले साल अप्रैल में कांग्रेस के एक संयुक्त सत्र में अपने विचार रखे थे, लेकिन राष्ट्रपति के दूसरे कैलेंडर वर्ष के कार्यकाल तक दी गई टिप्पणियों को स्टेट ऑफ द यूनियन एड्रेस यानी एक आधिकारिक संबोधन नहीं माना जाता है। (आईएएनएस)
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नस्ल के लोग रहते हैं, लेकिन डर्मेटोलॉजी की किताबों में नस्लीय प्रतिनिधित्व की कमी साफ तौर पर दिखती है. यह समस्या सिर्फ श्वेत आबादी वाले देशों में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है.
डॉयचे वैले पर क्लेयर रोथ की रिपोर्ट-
सीये एबिम्बोला 2000 के दशक की शुरुआत में नाइजीरिया में डॉक्टर बनने की ट्रेनिंग ले रहे थे. उस समय उनकी किताबों में त्वचा से जुड़ी जितनी भी तस्वीरें दी गई थीं सबका रंग गोरा था. उनकी ज्यादातर किताबें अमेरिका या ब्रिटेन से आई थीं, जहां चिकित्सा से जुड़ी तस्वीरों में गोरी नस्ल को दिखाया जाता है. जब डर्मेटोलॉजी की बात आई, तो एबिम्बोला पेज पर दिख रही तस्वीरों को हकीकत से नहीं जोड़ पा रहे थे. नाइजीरिया की लगभग पूरी आबादी अश्वेत है. वह, उनके सहपाठी और उनके शिक्षक सभी अश्वेत थे.
एबिम्बोला ने डॉयचे वेले को बताया, "इसके बाद मैंने भारतीय किताबें खरीदीं, क्योंकि मैं यह बात नहीं समझ पा रहा था कि गोरी त्वचा में कोई जख्म कैसा दिखता है और वह काली त्वचा में कैसा दिखता है. इसे लेकर उस किताब में कोई खास जानकारी नहीं दी गई थी. भारतीय किताब के जरिए इस बात को आसानी से समझा जा सकता था. हालांकि, मैंने उस समय इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा था."
अफ्रीका में एक जैसा अनुभव
दक्षिण अफ्रीका और युगांडा के त्वचा विशेषज्ञों को भी पढ़ाई के दौरान इसी तरह का अनुभव हुआ. दक्षिण अफ्रीका की डर्मेटोलॉजिस्ट नकोजा डलोवा भी जब पढ़ाई कर रही थीं, तो उनकी किताबों की भी ज्यादातर तस्वीरों में गोरी त्वचा दिखाई गई थी. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद समाप्त होने के कुछ समय बाद ही 1990 के दशक के अंत में डलोवा ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की. वह देश की पहली अश्वेत त्वचा विशेषज्ञ बनीं.
वह कहती हैं, "उन तस्वीरों के जरिए पूरी बात को समझना हमारे लिए मुश्किल था, क्योंकि हमारे ज्यादातर मरीज अश्वेत हैं. अगर हमें बताया जाता है कि किसी व्यक्ति को सोरायसिस (त्वचा से जुड़ी बीमारी) है और उसके शरीर पर सैल्मन के रंग वाला धब्बा हो गया है, तो हमें आश्चर्य होगा. हमें तो पता भी नहीं कि यह धब्बा कैसा दिखता है. हमारे यहां आने वाले अश्वेत रोगियों में सोरायसिस की बीमारी होने पर ऐसा नहीं दिखता है. यह तस्वीर हमारे यहां के रोगियों के हिसाब से सही नहीं है."
वह आगे कहती हैं, "काली त्वचा से जुड़ी कीलॉइड और रंगहीनता जैसी सामान्य समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया था. जब उनके बारे में किताबों में जानकारी दी भी गई, तो काफी कम. यह इतनी कम जानकारी थी कि उसके सहारे किसी का इलाज करना भी संभव नहीं था."
दक्षिण अफ्रीका की एक अन्य डर्मेटोलॉजिस्ट सेबी सिबिसी ने भी पढ़ाई करते समय कुछ इसी तरह का अनुभव किया. वह कहती हैं कि उनकी किताबों में दिखाई गई 95 फीसदी तस्वीरें गोरी त्वचा की थीं. वह डॉयचे वेले को बताती हैं, "अश्वेत लोगों को हाइपरपिंग्मेंटेशन (त्वचा पर काले धब्बे) की काफी समस्या होती है. हमारे यहां लगभग हर दिन ऐसे मरीज आते हैं जो चेहरे के धब्बे, जांघ के नीचे गहरे काले धब्बे जैसी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि इनका इलाज कैसे करना है. हमें इसके बारे में विश्वविद्यालय में कभी बताया ही नहीं गया."
कम प्रतिनिधित्व और शोषण
वर्ष 2021 के सितंबर महीने में एक जर्मन अध्ययन प्रकाशित हुआ है. इसके लिए जर्मन डॉक्टरों द्वारा पिछले चार वर्षों में जर्मन भाषा में प्रकाशित की गईं डर्मेटोलॉजी की 17 किताबों में छपीं 5,300 तस्वीरों का मूल्यांकन किया गया. जर्मन डॉक्टरों ने इन किताबों के जरिए त्वचा के अलग-अलग रंग के बारे में जानकारी देने के लिए फिट्जपैट्रिक फ्रेमवर्क का इस्तेमाल किया है.
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि 91 फीसदी तस्वीरों में गोरी त्वचा, 6 फीसदी में मध्यम या जैतून के रंग की त्वचा, और 3 फीसदी से भी कम में भूरी त्वचा दिखाई गई है. टाइप 6 वाले सबसे गहरे रंग की त्वचा वाली सिर्फ एक तस्वीर मिली. 2021 में एक अमेरिकी किताब का भी विश्लेषण किया गया था. उसके नतीजे भी इसी से मिलते-जुलते हैं. उसमें भी सिर्फ 14 फीसदी तस्वीरें गहरे रंग की त्वचा की थी.
डलोवा कहती हैं कि उन्होंने पढ़ाई करते समय शायद ही अपनी किताबों में गहरे रंग की त्वचा की कोई तस्वीर देखी थी. उन्होंने कहा कि यौन संचारित रोगों के बारे में पढ़ाई करते समय भी उनके लिए यह असामान्य बात नहीं थी. ये रोग भी सबसे पहले त्वचा को ही प्रभावित करते हैं.
सिफलिस यौन संचारित रोगों में से एक है. यह बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण है जो यौन संपर्क की वजह से फैलता है. इस रोग को लेकर हुए अमेरिकी शोध के दौरान अश्वेत लोगों का शोषण किया गया था. 1930 के दशक में अमेरिकी सरकार की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के डॉक्टरों ने इस बीमारी के बारे में जानने के लिए सैकड़ों अश्वेत पुरुषों पर प्रयोग किया. उस समय तक इस बीमारी के उपचार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इस अध्ययन को बाद में कुख्यात ‘टस्केगी सिफलिस एक्सपेरिमेन्ट' नाम दिया गया.
अगले 15 वर्षों में शोधकर्ताओं ने पाया कि पेनिसिलिन को सिफलिस के इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन अश्वेत पुरुषों को पेनिसिलिन की खुराक नहीं दी गई. डॉक्टर देखना चाहते थे कि यह बीमारी किस तरह इंसानों को मौत के मुंह में ले जाती है. 1970 के दशक की शुरुआत में एक रिपोर्टर ने इस प्रयोग का खुलासा किया. तब तक दो दर्जन से अधिक पुरुषों की मौत हो गई थी. कई अन्य पुरुष अपने परिवार के लोगों को भी इस बीमारी से ग्रसित कर चुके थे.
सिस्टम का असर
ऑस्ट्रेलिया में सिडनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में स्वास्थ्य प्रणाली के शोधकर्ता और वरिष्ठ व्याख्याता एबिम्बोला ने कहा कि 1940 के दशक के अंत में अमेरिका में टस्केगी एक्सपेरिमेन्ट पर काम चल रहा था. इसी दौरान अंग्रेजों ने नाइजीरिया में पहला मेडिकल स्कूल स्थापित किया था.
एबिम्बोला ने डीडब्ल्यू को बताया, "उस समय औपनिवेशिक शासन था. स्कूल की स्थापना करने वालों ने अपने मुताबिक पाठ्यक्रम तैयार किया. वे चाहते थे कि इस स्कूल से पढ़ाई करने वाले डॉक्टर ब्रिटेन में प्रैक्टिस करें." इसका साफ मतलब था कि डॉक्टरों को नाइजीरिया के बजाय ब्रिटेन में होने वाली बीमारियों के इलाज के लिए तैयार किया गया था.
एबिम्बोला कहते हैं, "आप 1948 के नाइजीरिया और ब्रिटेन की कल्पना कर सकते हैं. आपको यह तय करना होगा कि आप डॉक्टर को किस लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं. अगर आप उन्हें ब्रिटेन में इलाज करने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं, तो इसका मतलब यह भी है कि आप नहीं चाहते कि वे नाइजीरिया में रोगियों का इलाज करें." उन्होंने कहा कि 1960 में देश को आजादी मिलने के बाद भी, नाइजीरियाई मेडिकल स्कूल में किस तरह ट्रेनिंग और पढ़ाई हो, इस तर्क ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
स्थानीय विशेषज्ञ की जरूरत
एक बार यूरोपीय डर्मेटोलॉजिस्ट से मुलाकात के दौरान डलोवा ने देखा कि उस डर्मेलॉजिस्ट को अफ्रीका के लोगों की त्वचा से जुड़ी सामान्य समस्याओं के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है. उसके पास कांगो का एक मरीज इलाज के लिए गया था. वहां का कर्मचारी इलाज के सिलसिले में मरीज का बायोप्सी करना चाहता था.
डलोवा ने इस बीमारी की पहचान तुरंत कर ली. वह बीमारी थी सारकॉइडोसिस. यह एक गंभीर बीमारी है जिससे त्वचा पर लाल या बैंगनी रंग के धब्बे उभर आते हैं. इससे त्वचा पर जख्म होने का खतरा बढ़ जाता है और त्वचा के नीचे दाना भी हो सकता है. डलोवा ने उनसे कहा, "यह सारकॉइडोसिस है. आपको बायोप्सी करने की जरूरत नहीं है."
डलोवा ने कहा कि मेडिकल जर्नल को त्वचा से जुड़ी इन समस्याओं के बारे में लिखने के लिए अफ्रीका के विशेषज्ञों को आमंत्रित करना चाहिए. वह कहती हैं, "उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के पास नहीं जाना चाहिए जिसे इन सब के बारे में जानकारी नहीं है. उन्हें अमेरिकन या यूरोपीय डर्मेटोलॉजिस्ट की जगह इन बीमारियों के बारे में पूरी तरह जानकारी रखने वाले अफ्रीकी डर्मेटोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए."
जब डलोवा, एबिम्बोला और सिबिसी मेडिकल स्कूल में थे, उस समय की तुलना में चीजें अब बदलने लगी हैं. डलोवा ने 2017 में ‘डर्मेटोलॉजी: अ कॉम्प्रिहेंसिव हैंडबुक फॉर अफ्रीका' नामक पुस्तक प्रकाशित की. साथ ही, वह ऐसे अंतरराष्ट्रीय दल का हिस्सा भी रह चुकी हैं जिसने 2019 में ऐसे जीन की खोज की जिससे यह समझने में मदद मिलती है कि अश्वेत महिलाओं के बाल क्यों झड़ते हैं.
नाइजीरियाई मेडिकल छात्र चिडीबेरे इबे की एक तस्वीर दिसंबर 2021 में वायरल हुई थी. इस चित्र में मां के गर्भ में अश्वेत बच्चे को दिखाया गया था. दुनिया भर के लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी त्वचा के रंग को चिकित्सा के क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली तस्वीर में देखा.
पिछले महीने इबे ने घोषणा की कि उन्होंने डर्मेटोलॉजी की ऑनलाइन किताब ‘माइंड इन गैप' की तस्वीरें बनाने की योजना बनाई है. इस किताब को 2020 में यूके में लॉन्च किया गया था. यह किताब ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर उपलब्ध उन संसाधनों में से एक है जिसमें पूरी तरह काली त्वचा से जुड़ी जानकारी दी गई है. (dw.com)
तेजी से बदलते मौसम, जंगल की आग और शहरों का शोरगुल हमें बीमार कर रहा है. पक्षियों को भी नुकसान पहुंचा रहा है. सिर्फ यूरोप में हर साल लाखों लोग हृदय रोग की चपेट में आ रहे हैं. आखिर इन समस्याओं से निपटने का क्या उपाय है?
डॉयचे वैले पर टिम शाउएनबेर्ग की रिपोर्ट-
संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि शहरों में होने वाला शोर हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा हानिकारक है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, यातायात, निर्माण स्थलों और अन्य स्रोतों से लगातार होने वाले शोर की वजह से बार्सिलोना और काहिरा से लेकर न्यूयॉर्क तक हर जगह, दुनिया भर के लोगों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोग और मानसिक बीमारी का खतरा बढ़ गया है.
ध्वनि प्रदूषण
सिर्फ यूरोप में, तेज और लगातार होने वाले शोर की वजह से हर साल 4,80,000 लोग हृदय रोग से प्रभावित हो रहे हैं और करीब 12,000 लोगों की असमय मौत हो रही है.
जानवरों की दुनिया में, ध्वनि प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा समस्या पक्षियों को हो रही है. जेब्रा फिंच, गौरैया और टिट जैसे पक्षी ऊंची आवाज में गा रहे हैं या ऊंची आवाज निकाल रहे हैं, ताकि अपने साथियों से बातचीत कर सकें. हालांकि, इस वजह से कई बार पक्षियों के बीच गलतफहमियां पैदा होती हैं. इससे नर पक्षी को मादा पक्षी खोजने में परेशानी होती है.
रिपोर्ट के लेखकों के मुताबिक, शहरों में ज्यादा से ज्यादा पेड़ और जंगल लगाने से ध्वनि प्रदूषण कम हो सकता है. इससे शोर भी कम होगा और जलवायु भी बेहतर होगी. उदाहरण के लिए, शोर को कम करने वाली दीवार के पीछे पंक्ति में पेड़ लगाने से शोर का स्तर करीब 12 डेसिबल तक कम हो सकता है.
साइकिल के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर और कार के इस्तेमाल को कम करके भी यातायात के शोर को कम किया जा सकता है. शहरों में ग्रीन जोन बनाने से इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा और हवा की गुणवत्ता बेहतर होगी.
प्रकृति के साथ छेड़छाड़
प्रवासी पक्षी अब सर्दियों में दक्षिण की ओर नहीं उड़ रहे हैं और पौधे समय से पहले फल दे रहे हैं. साथ ही, पक्षी समय से पहले ही अपने बच्चों के लिए घोंसले बना रहे हैं जबकि उस समय उनके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए पर्याप्त कीड़े भी नहीं होते.
जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ वैश्विक स्तर पर औसत तापमान में वृद्धि हुई है, बल्कि हजारों वर्षों से स्थापित जीवन चक्र को भी नुकसान पहुंच रहा है. पहाड़ी इलाकों से लेकर तटीय क्षेत्रों, जंगलों और घास के मैदान तक कोई भी जगह इन बदलावों से अछूता नहीं है. पेड़-पौधे से लेकर इंसान और पक्षी तक इस बदलाव से प्रभावित हो रहे हैं.
जिस गति से धरती गर्म हो रही है उस गति से पशु और पेड़-पौधे बढ़ते तापमान के साथ सामंजस्य नहीं बैठा सकते. इससे यह खतरा तेजी से बढ़ रहा है कि जमीन और समुद्र के सभी पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो सकते हैं. इससे इंसानों को अप्रत्याशित स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.
जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने के लिए, हमें उत्सर्जन में काफी ज्यादा और तेजी से कटौती करनी चाहिए. शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवन चक्र में बदलाव से निपटने के लिए, अलग-अलग प्रजातियों की रक्षा करनी होगी. पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना होगा. साथ ही, वन्यजीव गलियारा बनाना होगा. यह एक मात्र तरीका है कि अलग-अलग प्रजातियां धरती पर मौजूद रहें और उन्हें यह मौका मिल सके कि वे प्राकृतिक वातावरण में रहते हुए नई परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठा सकें.
जंगल की आग
जंगल में आग लगना मौसम के हिसाब से स्वाभाविक घटना है. हालांकि, गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ने, तेज गर्मी और सूखा पड़ने से जंगलों में लंबे समय तक आग लग रही है. साथ ही, आग लगने की संभावना भी बढ़ रही है.
पिछले साल कैलिफोर्निया और साइबेरिया से लेकर तुर्की और ऑस्ट्रेलिया तक के जंगलों को आग ने नष्ट कर दिया. आग लगने की वजह से आसपास के शहरों की हवा की गुणवत्ता पूरी तरह खराब हो गई. कई दिनों तक लोगों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया. काफी ज्यादा मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ.
जंगल की आग भी जल प्रदूषण, समुद्री जीवन और जैव विविधता के नुकसान का कारण बन सकती है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, कुछ एहतियाती उपाय जंगल की आग और उससे होने वाले नुकसान को कम करने में मदद कर सकते हैं. पड़ोसी इलाकों के बीच बेहतर सहयोग, उपग्रह से निगरानी, आकाशीय बिजली गिरने का पूर्वानुमान, बेहतर पूर्वानुमान प्रणाली और अग्निशामक क्षमता से काफी मदद मिल सकती है.
विशेषज्ञ आग से निपटने के पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करने की भी सलाह देते हैं. जंगलों में छोटी-छोटी झाड़ियों को नियंत्रित तौर पर जलाने से जंगल में लंबे समय तक लगने वाली आग को कम किया जा सकता है, क्योंकि ये छोटी-छोटी झाड़ियां ही आग को दूर-दूर तक फैलाने और इंधन का काम करती हैं. कुछ पारिस्थितिकी तंत्र में आग के फायदे भी हो सकते हैं, क्योंकि कुछ फूल और पौधे तभी उगते हैं जब उनके बीज आग से गर्म होते हैं. (dw.com)
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने युद्ध अपराधों के लिए इंडोनेशिया से माफी मांगी है. क्षमा इंडोनेशिया के स्वतंत्रता आंदोलन को बर्बरता से कुचलने के लिए मांगी है.
इंडोनेशिया 17वीं शताब्दी से लेकर 1949 तक नीदरलैंड्स के अधीन रहा. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नीदरलैंड्स खुद जर्मनी के नियंत्रण में आ गया. ऐसे में हजारों किलोमीटर दूर इंडोनेशिया को कंट्रोल में रखना उसके लिए मुश्किल होने लगा. जापान ने इस स्थिति का फायदा उठाया और इंडोनेशिया में आजादी के आंदोलन को हवा देनी शुरू की. 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु हमले के बाद एशिया में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो गया. जापान के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया.
जापानी राजा के आत्मसमर्पण के दो दिन बाद 17 अगस्त 1945 को इंडोनेशिया के नेताओं ने आजादी का एलान कर दिया. लेकिन विश्वयुद्ध में जापान की हार का फायदा उठाकर नीदरलैंड्स की सेना ने इंडोनेशिया को फिर से नियंत्रण में लेने की कोशिश की. और इस तरह इंडोनेशिया में आजादी का युद्ध शुरू हो गया. स्वतंत्रता के इस युद्ध को डच फौजों ने बर्बर तरीके से कुचलने की कोशिश की.
अनुमानों के मुताबिक इस संघर्ष में 45 हजार से लेकर एक लाख स्वतंत्रता सेनानियों की मौत हुई. मरने वाले आम लोगों की संख्या 25 हजार से एक लाख तक आंकी जाती हैं. 1949 में इंडोनेशिया के आजाद होने के बाद भी नीदरलैंड्स में यही आम धारणा रही कि फौज सिर्फ छिटपुट संघर्ष में शामिल रही और सैन्य कार्रवाइयों का मकसद सिर्फ उपनिवेश पर नियंत्रण बनाए रखना था.
तीन रिसर्च इंस्टीट्यूटों का शोध
अब नीदरलैंड्स में इतिहास पर काम करने वाले तीन रिसर्च इंस्टीट्यूटों के शोध ने इस धारणा को तोड़ा है. चार साल लंबी रिसर्च के बाद प्रकाशित शोध में दावा किया गया है कि नीदरलैंड्स के सैनिकों ने तत्कालीन डच ईस्ट इंडीज (इंडोनेशिया का औपनिवेशिक नाम) में योजनाबद्ध तरीके से बर्बरता को अंजाम दिया. शोध कहता है, "डच सशस्त्र बलों की चरम हिंसा सिर्फ व्यापक ही नहीं थी बल्कि ये अक्सर जानबूझकर की गई कार्रवाई होती थी."
रिसर्चरों के मुताबिक, रिसर्च दिखाती है कि डच पक्ष में ऐसे कई लोग हैं जो इसके जिम्मेदार हैं. इनमें राजनेता, अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, जज और अन्य भी शामिल हैं, इन्हें योजनाबद्ध तरीके से हो रही उस बर्बर हिंसा की भनक या जानकारी थी. इस हिंसा को राजनीतिक, सैन्य और कानूनी, हर स्तर पर नजरअंदाज किया गया. रिसर्चर कहते हैं, "इन वारदातों को बिना सजा के नजरअंदाज करने, जायज ठहराने और छुपाने के पीछे एक सामूहिक सोच थी. यह सब कुछ एक बड़े लक्ष्य के लिए हो रहा था: वो था युद्ध जीतना."
शोध के रिव्यू में साफ लिखा गया है कि, "गैर न्यायिक कार्रवाइंया, बदसलूकी और यातनाएं, अमानवीय परिस्थितियों में हिरासत में रखना, घरों और गांवों में आग लगाना, संपत्ति और भोजन आपूर्ति को चुराना और बर्बाद करना, हवाई हमले और गोलीबारी करना और अकसर बड़ी संख्या में गिरफ्तारी और नजरबंदी, ये सब बहुत आम था." रिसर्चरों के मुताबिक डच सेना के अपराधों और उनका शिकार बने पीड़ितों की सटीक संख्या जुटाना अब नामुमकिन है.
डच सेना का हिस्सा रहे चुके एक भूतपूर्व फौजी ने 1969 में पहली बार इन युद्ध अपराधों का खुलासा किया. उस खुलासे के दशकों बाद भी नीदरलैंड्स की सरकारें लगातार युद्ध अपराध के आरोपों से इनकार करती रहीं. सरकारों ने हमेशा यही तर्क दिए कि हमले गिने चुने थे और पूरी तस्वीर को देखें तो सेना का व्यवहार सही था. शोध साफ कहता है कि यह धारणा बिल्कुल गलत है.
क्षमा मांगते हुए प्रधानमंत्री ने क्या कहा?
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री रुटे ने सिर्फ अतीत की बर्बरता के लिए ही माफी नहीं मांगी, बल्कि अब तक डच सरकार द्वारा इन तथ्यों को स्वीकार न करने के लिए क्षमा मांगी. पीएम मार्क रुटे ने कहा, "उन बरसों में डच पक्ष की तरफ से की गई योजनाबद्ध और व्यापक बर्बरता के लिए और पुरानी सरकारों द्वारा लगातार इसे नजरअंदाज किए जाने के लिए, मैं तहेदिल से इंडोनेशिया के लोगों से माफी मांगता हूं."
रुटे ने कहा कि शोध में सामने आने वाले तथ्य असहज करने वाले हैं, लेकिन इन्हें स्वीकार करना होगा, सरकार "सामूहिक नाकामी" की पूरी जिम्मेदार लेती है.
यह पहला मौका नहीं है जब नीदरलैंड्स ने इंडोनेशिया से माफी मांगी हो, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब डच सरकार ने यह स्वीकार किया है कि इंडोनेशियाई लोगों को साथ जानबूझकर और एक सिस्टम बनाकर बर्बरता की गई. इससे पहले मार्च 2020 में डच राजा किंग विलियम-आलेक्जांडर ने भी डच सेना की बर्बरता के लिए माफी मांगी. 2016 में नीदरलैंड्स के तत्कालीन विदेश मंत्री ने भी डच सेना द्वारा इंडोनेशिया के एक गांव में 400 लोगों के जनसंहार के लिए माफी मांगी.
ओएसजे/एके (रॉयटर्स, डीपीए, एएफपी, एपी)
एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में खुद को एलजीबीटी मानने वाले वयस्कों की संख्या 7.1 प्रतिशत हो गई है. 2012 के मुकाबले यह आंकड़ा दोगुना हो गया है और यह एक तरह से पीढ़ीगत बदलाव है.
ये आंकड़े सर्वेक्षण करने वाली कंपनी गैलप के हैं. कंपनी ने 2012 में ही इन आंकड़ों को इकट्ठा करना शुरू किया था. ताजा सर्वेक्षण के नतीजों पर कंपनी ने एक बयान में कहा, "युवा अब वयस्क हो रहे हैं और अपनी लैंगिकता और अपनी पहचान को भी समझ रहे हैं, और यह समय भी ऐसा है जब अमेरिका में समलैंगिक और ट्रांसजेंडर लोगों की स्वीकार्यता बढ़ रही है. सभी तरह के एलजीबीटी लोगों को कानूनी संरक्षण भी मिल रहा है."
गैलप फोन पर किए गए सर्वेक्षणों के दौरान जनसंख्या से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करती है. कंपनी इन सर्वेक्षणों में लोगों से यह भी पूछती है कि क्या वो खुद को स्ट्रेट, लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर या हेट्रोसेक्सुअल के अलावा और कुछ महसूस करते हैं.
पीढ़ीगत बदलाव
जवाब देने वाले दूसरी कोई लैंगिक अनुस्थिति या पहचान के बारे में भी बता सकते हैं. 2021 के सर्वेक्षण में 12,000 लोगों से बात की गई थी और उनमें से 86.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो स्ट्रेट या हेट्रोसेक्सुअल हैं. 6.6 प्रतिशत लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया.
2012 में जब सर्वेक्षण शुरू हुआ था तब खुद को एलजीबीटी बताने लोग 3.5 प्रतिशत थे और तब से यह संख्या लगातार बढ़ ही रही है. आंकड़ों को और बारीकी से देखने पर पता चलता है कि कम उम्र के वयस्कों में खुद को एलजीबीटी मानने वाले लोग ज्यादा हैं.
कुल मिला कर 1997 से 2003 के बीच जन्मे जनरेशन जेड के युवाओं में 20.8 प्रतिशत यानी हर पांच में से एक व्यक्ति एलजीबीटी है. 1981 से 1996 के बीच जन्मे मिलेनियलों में यह आंकड़ा आधा, यानी 10.5 प्रतिशत है.
1965 से 1980 के बीच जन्मे जनरेशन एक्स के लोगों में यह आंकड़ा 4.2 प्रतिशत है. 1946 से 1964 के बीच जन्मे बेबी बूमर लोगों के बीच यह आंकड़ा 2.6 प्रतिशत और 1946 से पहले जन्मे परंपरावादी लोगों में 0.8 प्रतिशत है.
हर श्रेणी की जानकारी
2017 तक जनरेशन जेड का आंकड़ा सात प्रतिशत था लेकिन जैसे जैसे ये लोग वयस्क हुए 2021 तक यह आंकड़ा बढ़ कर 12 प्रतिशत हो गया. जब से सर्वेक्षण शुरू हुआ है तब से परंपरावादियों, बूमरों, और जनरेशन एक्स के बीच खुद को एलजीबीटी मानने वालों की संख्या स्थिर है. बस मिल्लेनियलों में इस संख्या में थोड़ी सी बढ़ोतरी देखी गई है.
गैलप ने बयान में कहा, "यह ट्रेंड अगर जनरेशन जेड के बीच जारी रहा तो उस पीढ़ी में खुद को एलजीबीटी बताने वाली लोगों की संख्या तब और बढ़ जाएगी जब पीढ़ी के सभी युवा वयस्क हो जाएंगे.
इस बार पहली बार सर्वेक्षण में हर एलजीबीटी श्रेणी में भी लोगों की गणना की गई. 57 प्रतिशत यानी आधे से ज्यादा एलजीबीटी लोगों ने बताया कि वो बाइसेक्सुअल हैं. यह अमेरिका की कुल वयस्क आबादी के चार प्रतिशत के बराबर है.
इसके बाद अगले स्थान पर हैं गे (21 प्रतिशत), लेस्बियन (14 प्रतिशत) और ट्रांसजेंडर (10 प्रतिशत). चार प्रतिशत एलजीबीटी क्वियर या समलैंगिक प्रेमी जैसी किसी दूसरी श्रेणी में हैं.
सीके/एए (एएफपी)
इस समय तनावग्रस्त क्षेत्र से पुख़्ता जानकारी हासिल करने में स्वाभाविक समस्याएं हैं. ऐसे में विरोधी पक्ष की ओर से किए जाने वाले दावों को संदेह के साथ देखे जाने की ज़रूरत है.
यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में तनाव बढ़ने के बाद एक दूसरे पर लगाए जा रहे आरोप असल गोलाबारी से कम अहम नहीं हैं.
यूक्रेन के लुहांस्क में स्थित नर्सरी स्कूल पर गोले दागे जाने की हालिया घटना उस बर्बरता को रेखांकित करता है जिसे कीव के अधिकारी 'रूसी आक्रामकता' के रूप में परिभाषित करते हैं.
वहीं, रूसी सरकार यूक्रेन पर हमला करने का इरादा रखने से इनकार कर रहा है. लेकिन मीडिया मैसेजिंग को देखें तो ऐसा लगता है कि यह इस पक्ष में आम राय बनाने की दिशा में काम कर रही है.
इसमें यूक्रेन पर रूस समर्थित अलगाववादियों द्वारा कब्जाई ज़मीन पर बड़ा हमला करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है जिसमें संभवत: बेगुनाह लोगों को निशाना बनाया जाएगा.
रूस के टीवी दर्शकों को ये लग सकता है कि यूक्रेन में रहने वाले अपने लोगों को बचाना रूस का नैतिक कर्तव्य है.
इस प्रक्रिया में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या रूस उस अत्याचार के बारे में लोगों को बताएगा जिसकी वह चेतावनी दे रहा है, और अगर ऐसा होगा तो वह कब बताएगा.
अमेरिकी अधिकारियों ने बताया है कि यह एक फॉल्स फ़्लैग ऑपरेशन हो सकता है जिसे रूस द्वारा अंजाम दिया जाएगा जिससे यूक्रेन पर हमला करने का बहाना मिल सके.
डोनबास में हालिया तनाव के बावजूद अब तक इस हद को पार नहीं किया गया है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 18 फरवरी | भारत के कुछ हिस्सों में हिजाब को लेकर जारी विवाद का लाभ उठाते हुए, पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्री नूरुल हक कादरी ने प्रधानमंत्री इमरान खान से 8 मार्च (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस) को अंतर्राष्ट्रीय हिजाब दिवस घोषित करने का अनुरोध किया है। उन्होंने यह दावा किया है कि देश भर में औरत मार्च आयोजित किया गया था। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, यह दिन इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।
कादरी ने खान को एक संयुक्त राष्ट्र-नामित अंतर्राष्ट्रीय दिवस की स्थिति को बदलने के लिए एक प्रतिगामी उपाय का सुझाव देते हुए लिखा, जिसका उद्देश्य 'महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों' का जश्न मनाना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जब महिला अधिकार आंदोलन न केवल पाकिस्तान में बल्कि दुनिया भर में लिंग आधारित अपराधों और अन्याय के मद्देनजर गति पकड़ रहा है।
9 फरवरी को लिखे गए पत्र में लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि सामाजिक अन्याय और सुरक्षा के लिए कानूनों के कार्यान्वयन की कमी पर प्रकाश डालने के लिए दुनिया भर में रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था।
हालांकि, बाद में यह कहा गया कि पाकिस्तान में, औरत मार्च पूरे देश में आयोजित किए गए थे जहां प्रतिभागियों ने नारे लगाए और इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ जाने वाले तख्तियां और बैनर ले लिए।
मंत्री ने लिखा, "हम सभी स्वीकार करते हैं कि इस्लाम जीवन का एक पूर्ण कोड प्रदान करता है और इसका कोई विकल्प नहीं है। किसी भी संगठन को औरत मार्च या किसी अन्य पर इस्लामी मूल्यों, समाज के मानदंडों, हिजाब या मुस्लिम महिलाओं की विनम्रता पर सवाल उठाने या उपहास करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इन कृत्यों से देश में मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंची है।"
कादरी ने प्रधानमंत्री से 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय हिजाब दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया है, जिसमें प्रस्ताव दिया गया है कि इस अवसर का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मुसलमानों के साथ भारत के व्यवहार की जाँच करने और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए किया जाए।
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, इस दिन का इस्तेमाल दुनिया भर की मुस्लिम महिलाओं के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए भी किया जा सकता है, जो अपनी धार्मिक स्वतंत्रता और बुनियादी मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 फरवरी | एक जनमत सर्वेक्षण में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकप्रियता में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जिससे यह भी पता चला है कि विपक्षी पीएमएल-एन सुप्रीमो नवाज शरीफ पंजाब प्रांत में 58 फीसदी, खैबर पख्तूनख्वा (केपी) 46 फीसदी और सिंध में 51 फीसदी के साथ लोकप्रियता रेटिंग में आगे चल रहे हैं। द न्यूज की रिपोर्ट में यह जानकारी मिली।
गैलप पाकिस्तान द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, केपी में खान लोकप्रियता में 44 प्रतिशत के साथ दूसरे और सिंध और पंजाब में 33 प्रतिशत लोकप्रियता के साथ तीसरे स्थान पर थे।
22 दिसंबर, 2021 से 31 जनवरी, 2022 तक किए गए इन ओपिनियन सर्वे में पीएमएल-एन सुप्रीमो नवाज शरीफ, खान, पीएमएल-एन के अध्यक्ष शहबाज शरीफ और पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी की लोकप्रियता के बारे में देश भर के 5,000 लोगों के विचार मांगे गए।
खैबर पख्तूनख्वा में शहबाज शरीफ की लोकप्रियता 43 फीसदी रही, जबकि बिलावल भुट्टो जरदारी और आसिफ अली जरदारी की लोकप्रियता 24 फीसदी रही।
केपी में खान के साथ संतुष्टि के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई जो फरवरी 2020 में 67 प्रतिशत से घटकर वर्तमान सर्वेक्षण में 44 प्रतिशत हो गई, जबकि बिलावल भुट्टो जरदारी की 26 प्रतिशत से 24 प्रतिशत तक गिर गई।
हालांकि, नवाज शरीफ के मामले में, उनकी अनुमोदन रेटिंग 33 प्रतिशत से बढ़कर 46 प्रतिशत और केपी में शहबाज शरीफ की 31 प्रतिशत से बढ़कर 43 प्रतिशत हो गई।
गैलप पाकिस्तान के अनुसार, यह पहली बार था जब पूर्व प्रधानमंत्री की लोकप्रियता दिसंबर 2018 के बाद बढ़ी और नवाज शरीफ ने शहबाज शरीफ के समान रेटिंग हासिल की।
लेकिन खान की लोकप्रियता जो 2018 में बढ़कर 51 फीसदी हो गई, वह अब घटकर 33 फीसदी रह गई है। जबकि पीपीपी चेयरमैन का पद 18 फीसदी से बढ़कर 24 फीसदी हो गया। (आईएएनएस)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के सह संस्थापक रहे बिल गेट्स के साथ मुलाक़ात की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है.
इस तस्वीर को शेयर करते हुए पीएम ख़ान ने लिखा है-“मेरे निमंत्रण पर पाकिस्तान आए बिल गेट्स का स्वागत करते हुए बहुत खुशी हुई. उनके हिस्से कई उपलब्धियां हैं लेकिन दुनियाभर में उन्हें उनके परोपकार से जुड़े कामों के लिए सराहा जाता है.”
इमरान ख़ान ने आगे लिखा है कि मैं अपनी और अपने देश की ओर से पोलियो को जड़ से समाप्त करने और ग़रीबी को मिटाने के लिए उनकी पहला और उनके योगदान के लिए धन्यवाद देता हूं.
दूसरी ओर बिल गेट्स ने भी इमरान ख़ान के साथ एक फ़ोटो शेयर की है.
उन्होंने लिखा है-“इमरान ख़ान को धन्यवाद.पाकिस्तान में पोलियों को ख़त्म करने के लिए उठाए गए क़दमों पर एक अच्छी और उपयोगी बातचीत हुई. मैं पोलियो उन्मूलन के लिए उनके देश की प्रतिबद्धता से काफी उत्साहित हूं.”
टीकाकरण की वजह से दुनिया के ज़्यादातर इलाक़ों से इस बीमारी को मिटाने में कामयाबी मिली है.
आज की तारीख़ में केवल दो देशों में पोलियो के मरीज़ पाए जाते हैं. पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान.
पाकिस्तान में पोलियो से मुक्ति का अभियान कमोबेश पटरी पर ही है लेकिन इस बात से इनक़ार भी नहीं कर सकते हैं कि यहां टीके को लेकर एक वर्ग अभी भी संदेह करता है.
साल 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान जारी कर के कहा था, "हम इस बात से बहुत चिंतित हैं कि पोलियो के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की लड़ाई ग़लत दिशा में जा रही है." (bbc.com)
चरमपंथी गुट इस्लामिक स्टेट ने इराक की यजीदी औरतों और लड़कियों की फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफार्मों पर खरीद-बिक्री की थी. अब पीड़ित यजीदी चाहते हैं कि ये कंपनियां अपनी गलती मान कर उन्हें मुआवजा दें.
वहाब हासू के परिवार ने 80 हजार डॉलर की फिरौती दी ताकि उनकी भतीजी को इस्लामिक स्टेट के चंगुल से छुड़ाया जा सके. चरमपंथियों ने 2014 में उनकी भतीजी का अपहरण कर लिया और फिर उसे व्हाट्सऐप ग्रुप में "बेचने के लिए" पेश किया. अब हासू चाहते हैं कि इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियों को जिम्मेदार ठहरा कर उनसे मुआवजा वसूला जाए.
हासू अकेले नहीं हैं. इराक में अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय के दर्जनों दूसरे लोग भी चाहते हैं कि सोशल मीडिया कंपनियों को यजीदी महिलाओं और लड़कियों की तस्करी और खरीद-फरोख्त में मदद का दोषी माना जाए.
हासू और उनके साथी यजीदी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वकीलों के साथ मिल कर एक रिपोर्ट तैयार की है. यह रिपोर्ट अमेरिका और दूसरे देशों को सौंप कर यजीदियों के खिलाफ अपराध में फेसबुक और यूट्यूब जैसी सोशल मीडिया कंपनियों की भूमिका की जांच करने की मांग की जाएगी.
26 साल के हासू का कहना है, "इससे यजीदी पीड़ितों को न्याय मिलेगा." हासू 2012 में नीदरलैंड्स आ गए. उनके पिता को अमेरिकी सैनिकों के साथ काम करने की वजह से धमकियां मिल रही थीं.
सोशल मीडिया कंपनियों की नाकामी
120 पन्नों की ये रिपोर्ट कहती है कि बड़ी तकनीकी कंपनियों ने अपने प्लेटफार्मों का महिलाओं और लड़कियों के कारोबार के लिए इस्तेमाल होने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया. इस्लामिक स्टेट ने आठ साल पहले यजीदियों के गढ़ समझे जाने वाले सिंजार पर तब हमला कर बड़ी संख्या में लड़कियों और औरतों का अपहरण किया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म पर यजीदियों के खिलाफ नफरती भाषणों की पहचान कर उन्हें हटाने में भी नाकाम रहीं. कंपनियों को कंटेंट मॉडरेशन में उनकी कमजोरियों के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ ही सरकार से सख्त दिशानिर्देश बनाने की मांग रिपोर्ट में की गई है.
संयुक्त राष्ट्र की एक जांच टीम ने हिंसा के इस अभियान को जनसंहार माना है. इसमें इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने यजीदी पुरुषों की हत्या की, बच्चों को बाल सैनिक बनाया और महिलाओं के साथ साथ लड़कियों को यौन दासी बना कर उनकी खरीद बिक्री की. हासू का कहना है, "हम सरकार से जांच की मांग कर रहे हैं क्योंकि इन प्लेटफार्मों ने जनसंहार में योगदान किया है."
सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों ने कुछ कंटेंट हटाए और ऐसे कुछ अकाउंट सस्पेंड भी किए जिनमें महिलाओं और लड़कियों की तस्करी समेत इस्लामिक स्टेट से जुड़ी सामग्री थी. हालांकि कार्यकर्ताओं का कहना है कि कंपनियों का रवैया पैबंद लगाने जैसा और बहुत अत्यंत धीमा था.
रिपोर्ट में ऑनलाइन तस्करी के करीब दर्जन भर उदाहरण हैं. इनमें फेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट हैं जहां एक युवा यजीदी महिला की कीमत लगाई जा रही है. साथ ही यूट्यूब वीडियो का स्क्रीनशॉट भी है जिसमें इस बात पर चर्चा हो रही है कि महिलाओं की किस खूबी पर ज्यादा पैसा मिलेंगे.
सोशल मीडिया कंपनियों का रवैया
यूट्यूब ने रिपोर्ट में लगाए आरोपों पर प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया हालांकि एक प्रवक्ता ने कहा है कि साइट ने जुलाई से सितंबर 2021 के बीच करीब ढाई लाख ऐसे वीडियो हटाए हैं जिनमें हिंसक चरमपंथ को लेकर यूट्यूब की नीतियों का उल्लंघन हुआ.
मेटा यानी भूतपूर्व फेसबुक ने भी रिपोर्ट की कॉपी दखने के बाद इस पर कोई प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया. इसी तरह ट्वीटर के प्रवक्ता ने कहा कि धमकी देना या आतंकवाद को बढ़ावा देना हमारे नियमों के खिलाफ है, हालांकि यजीदियों के मामले में खासतौर से ट्वीटर की तरफ से भी कोई बयान नहीं दिया गया.
सोशल मीडिया कंपनियां हाल के वर्षों में कंटेंट मॉडरेशन की नीतियों को लेकर लगातार आलोचना झेल रही हैं. कुछ कार्यकर्ता उन्हें अभिव्यक्ति को दबाने का आरोप लगाते हैं तो कुछ मुद्दों पर अत्यधिक नरमी बरतने के भी आरोप हैं.
कहीं नरम तो कहीं गरम रवैया
पिछले साल म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों ने मेटा से 150 अरब अमेरिकी डॉलर के हर्जाने की मांग करते हुए मुकदमा ठोका. उनका आरोप है कि समुदाय के खिलाफ नफरती भाषणों के खिलाफ कुछ नहीं किया गया और समुदाय के खिलाफ हिंसा हुई.
2021 में फेसबुक के आंतरिक दस्तावेज व्हिसलब्लोअर फ्रांसिस हाउगेन ने सार्वजनिक किए गए थे. इन दस्तावेजों से पता चला कि कंपनी को इन कमियों के बारे में जानकारी थी.
इसी तरह 2020 का एक दस्तावेज जो थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने देखा है उसमें कहा गया कि प्लेटफॉर्म गलत तरीके से अरबी भाषा में 77 फीसदी बार काउंटर टेररजिज्म सामग्री को आगे बढ़ा रहा था. रिपोर्ट में कहा गया है, "औरतों से द्वेष रखने वाले बहुत सारे दुष्प्रचार" मौजूद हैं और कंपनी ने इराक के अरबी बोलने वाले लोगों के पोस्ट्स की "ना के बराबर समीक्षा" की.
सच्चाई सामने आनी चाहिए
अगवा की गईं कुछ यजीदी औरतें और लड़कियां भागने में कामयाब हो गईं. हासू की भतीजी जैसी कुछ लड़कियों को उनके परिवारों ने पैसा देकर छुड़ाया. सैकड़ों दूसरी लड़कियां आज भी लापता हैं. डच यजीदियों की मदद करने वाले एक गुट के साथ काम करने वाली कैथरीन कांपेन वकील हैं.
कांपेन ने बताया कि अमेरिका और नीदरलैंड के अधिकारियों को पहले ही इस रिपोर्ट की कॉपी दी जा चुकी है. उनका कहना है, "अगर एक जांच से आपराधिक प्रक्रिया का पता चलता है और आरोप साबित होता है तो होने दीजिए. अगर यह एक दीवानी मुकदमा बनता है तो यही होने दीजिए, हम चाहते हैं कि सच्चाई सामने आए."
अमेरिका से चलने वाली वेबसाइटों को उनके यूजरों की डाली गई अवैध सामग्री की जिम्मेदारी से 1996 के कम्युनिकेशन डीसेंसी एक्ट की धारा 230 के तहत संरक्षण मिला हुआ है. हालांकि बाद की धाराएं कहती हैं कि यह तस्करी जैसी चीजों पर लागू नहीं होगा. यानी दोषी होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है.
रिपोर्ट का मानना है कि अमेरिकी अधिकारी इस मामले की जांच कर कंपनी पर मुकदमा चला सकते हैं. इसके लिए टेक्सस में फेसबुक के खिलाफ 2021 के आए फैसले का हवाला दिया गया है.
कोई न्याय नहीं
संयुक्त राष्ट्र की एक टीम इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जांच कर रही है. उसने बहुत सारे सबूत जमा किए हैं और इराक की जजों को ट्रेनिंग दी है हालांकि अब तक इसका कोई नतीजा सामने नहीं आया है. यजीदियों के लिए काम करने वाले संगठन याजदा के सह संस्थापक मुराद इस्माइल कहते हैं, "मैंने यजीदी बच्चों को इस प्लेटफॉर्म पर बिकते हुए अपनी आंखों से देखा है. किसी को कुछ करना होगा."
हासू को उम्मीद है कि विदेशी सरकारें सोशल मीडिया कंपनियों पर उनकी कमियों के लिए और आखिरकार पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दबाव बनाएंगी. हासू को 2019 के एक मुकदमे में आए फैसले से प्रेरणा मिली है. इसमें डच नेशनल रेल कंपनी एनएस को यहूदी नरसंहार के उन पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कहा गया जो इस कंपनी की ट्रेन में भर कर दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कंसंट्रेशन कैंप तक लाए गए थे.
एनआर/एके (रॉयटर्स)
अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया होता तो बहुत से रूसी इस बात से हैरान नहीं होते. बरसों से रूसी सरकारी मीडिया इसकी जमीन तैयार कर रहा है और यूक्रेन को हमेशा दुश्मन देश की तरह पेश करता रहा है.
डॉयचे वैले पर रोमान गोंसारेंको की रिपोर्ट-
क्या रूसी नागरिक यूक्रेन के साथ युद्ध करने के पक्ष में हैं? जब से यूक्रेन की सीमा पर रूसी सैनिकों का जमावड़ा किया है, तब से यह सवाल हर किसी के जेहन में है.
मॉस्को के जाने-माने लेवाडा सेंटर में सर्वेक्षणकर्ता के तौर पर काम करने वाले डेनिस वोल्कोव इस सवाल का जवाब देने से पहले थोड़ा सोचते हैं. वह कहते हैं, "हमने लोगों से यह सवाल पूछा ही नहीं. कुछ लोगों का रवैया युद्ध समर्थक हो सकता है, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है."
युद्ध कितना संभव है?
रूसी मीडिया में युद्ध की संभावना को लेकर खुले आम चर्चा होती है. दक्षिणपंथी सांसद व्लादिमीर जिरीनोव्स्की अकसर टीवी पर होने वाली बहसों में शामिल होते हैं और कई साल से यूक्रेन पर हमले का आह्वान करते रहे हैं. पिछले साल के आखिरी दिनों में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल ना होने की रूस की मांग को नहीं मानता है तो उसके खिलाफ बलप्रयोग किया जाना चाहिए.
कई साल पहले रूस के एक सरकारी टीवी चैनल पर जिरीनोव्स्की ने कहा था कि रूस को कीव में यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको के घर पर परमाणु बम गिरा देना चाहिए. इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी सोशल मीडिया पर भी धड़ल्ले से की जाती है. मिसाल के तौर पर, हाल ही में एक रूसी पत्रकार ने ट्विटर पर लिखा, "अब यूक्रेन को एक बार फिर आजाद कराने का समय आ गया है."
यह साफ नहीं है कि आम रूसी जनता में इस तरह की भावना कितनी गहराई से मौजूद हैं. सितंबर 2021 में हुए पिछले संसदीय चुनावों में जिरीनोव्स्की की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ रशिया को सिर्फ 7.5 प्रतिशत वोट मिले थे. इनमें से भी सारे लोग युद्ध का समर्थन नहीं करेंगे.
सर्वे करने वाले वोल्कोव के पास कुछ और आंकड़े हैं. जो लोग उनके सर्वे में शामिल रहे, उनमें से 36 प्रतिशत लोगों ने माना कि मौजूदा तनाव रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का रूप ले ले इसकी "बहुत आशंका है" . अन्य चार प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्हें लगता है कि युद्ध को 'टाला नहीं जा सकता'. ये आंकड़े 2021 के आखिर में लेवाडा सेंटर की तरफ से कराए गए एक सर्वे के हैं.
वोल्कोव कहते हैं, "ज्यादातर लोग युद्ध नहीं चाहते, वे इसे लेकर डरे हुए हैं, लेकिन उनके भीतर यह अहसास भी है कि युद्ध कभी भी शुरू हो सकता है." सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोग इस स्थिति के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार मानते हैं. अगर युद्ध शुरू होता है, तो रूस में आधे लोग इसके लिए पूरी तरह अमेरिका और नाटो देशों को कसूरवार मानेंगे. वहीं 16 प्रतिशत इसकी जिम्मेदारी यूक्रेन पर और चार प्रतिशत लोग रूस पर डालेंगे.
रूसी मीडिया के मुद्दे
रूसी आबादी के बड़े तबके में इस तरह की राय होना इस बात की पुष्टि करता है कि सरकारी मीडिया जो बरसों से प्रचारित-प्रसारित करता रहा है, उसने लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. वोल्कोव कहते हैं, "(यूक्रेन के साथ संभावित युद्ध का) मुद्दा लोगों तक टीवी के जरिए ही पहुंचा है, जो दो तिहाई रूसी लोगों के लिए सूचना देने वाला सबसे अहम साधन है."
रूसी टीवी पर यूक्रेन ऐसा मुद्दा है जो बरसों से चला आ रहा है. यूक्रेन में 2004 में हुई ऑरेंज क्रांति के बाद से उसे लेकर रूस में व्यापक कवरेज शुरू हुई. 2004 में यूक्रेन के राष्ट्रपति चुनावों के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रदर्शनकारियों ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. आखिकार पश्चिमी समर्थक विक्टर युश्चेंको को विजेता घोषित किया गया और रूस के करीबी विक्टर यानुकोविच को पराजित. इसे रूस पश्चिमी देशों की तरफ से हुए तख्तापलट के तौर पर देखता है.
इससे पहले रूस और यूक्रेन को "रणनीतिक साझीदार" और बहुत करीबी सहयोगी माना जाता था. 2008 में रूस और जॉर्जिया के बीच हुआ युद्ध भी एक अहम मोड़ था जिसमें यूक्रेन ने जॉर्जिया का साथ दिया था.
इसके बाद यूक्रेन से युद्ध का विचार रूसी और यूक्रेनी लोगों के साथ साथ उनके मीडिया के दिमाग में घुस गया.
पूर्वी यूक्रेन के "रूसी लोग"
रूस ने 2014 में जब यूक्रेन के क्रीमिया इलाके को अपने क्षेत्र में मिलाया तो उससे पहले रूस के पूरे मीडिया में हर तरफ यूक्रेन की चर्चा थी, ठीक उसी तरह जैसे 2004 के विरोध प्रदर्शनों को तख्तापलट की तरह पेश किया गया था. रूसी मीडिया की रिपोर्टिंग में रूसी भाषा बोलने वाले यूक्रेनी नागरिकों के लिए मौजूद तथाकथित 'खतरे' पर बहुत जोर दिया जाता है. इस खतरे को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है, जबकि ना उन पर कभी हमला हुआ और ना ही इसकी कोई गंभीर आशंका है. हालांकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इसी बात को आधार बनाकर क्रीमिया को हड़पकर उसे रूसी क्षेत्र में मिला लिया. इसके बाद पुतिन ने कहा कि उनका मकसद रूसियों की रक्षा करना था.
इसके बाद यूक्रेन रूसी मीडिया की रिपोर्टिंग का अहम विषय बन गया. घरेलू राजनीति के बाद सबसे ज्यादा रूसी मीडिया यूक्रेन की ही चर्चा करता है. रूस के भीतर और बाहर बहुत से पर्यवेक्षक मानते हैं कि ऐसा इसीलिए किया जा रहा है ताकि अगर यूक्रेन से रूस का कोई सैन्य टकराव होता है तो रूसी लोग हमेशा अपनी सरकार के रवैया का समर्थन करें.
बरसों से रूसी मीडिया में यूक्रेन को एक कमजोर और नाकाम राष्ट्र के तौर पर पेश किया जाता रहा है. उसे पश्चिमी देशों की कठपुतली और रूस का दुश्मन बताया जाता है. लोग भी इस बारे में सुन-सुन कर थक गए हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि रूसी लोग अमेरिका के बाद यूक्रेन को अपना दूसरा सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे हैं. ब्रिटेन को वे लोग इस सूची में तीसरे स्थान पर रखते हैं.
मौजूद संकट के दौरान भी साफ है कि रूसी मीडिया इस बार भी यूक्रेन में मौजूद "रूसियों की हिफाजत" पर जोर दे रहा है. उसका इशारा यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में रहने वाले रूसी भाषी यूक्रेनी लोगों की तरफ है जो खास तौर से यूक्रेन के अलगाववादी इलाकों दोनेत्स्क और लुहांस्क गणराज्यों में रहते हैं.
ऐसे लाखों लोगों को 2019 के बाद से रूसी नागरिकता दी गई है. दिसंबर के आखिर में राष्ट्रपति पुतिन ने पहली बार पूर्वी यूक्रेन में "नरसंहार" के संकेत मिलने की बात कही. अलगाववादी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वे सैन्य मदद के लिए रूस को बुलाएंगे. यह एक और ऐसा विषय है जिस पर रूसी मीडिया आसमान सिर पर उठा लेगा. (dw.com)
संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने कहा है कि टोंगा में ज्वालामुखी और सुनामी से 80 प्रतिशत लोग प्रभावित हुए थे और अब नुकसान से उबरने के लिए देश को करीब 6.7 अरब रुपये चाहिए.
टोंगा में एक अंतर्जलीय ज्वालामुखी के फटने और फिर सुनामी आने के एक महीने बाद अब जाकर वहां हुई बर्बादी का कुछ अंदाजा मिल पा रहा है. टोंगा के लिए संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर सनका समारासिंहा ने कहा है कि त्रासदी से द्वीप के 1,05,000 लोगों में से 80 प्रतिशत प्रभावित हुए थे.
उन्होंने पड़ोसी देश फिजी से एक वर्चुअल समाचार वार्ता में बताया कि नुकसान की मरम्मत करने और देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण खेती और मछली पालन क्षेत्रों को फिर से पहले जैसा करने के लिए 90 मिलियन डॉलर (करीब 6.7 अरब रुपये) की आवश्यकता है.
राहत कार्य
समरसिंहा के मुताबिक "सुनामी की लहरें तो लौट गई हैं लेकिन लोगों की चिंताएं कम नहीं हुई हैं." उन्होंने बताया कि तूफानों का मौसम पूरे जोरों पर है और लगभग हर सप्ताह ही भूकंप भी आ रहे हैं. बल्कि उन्होंने बताया कि प्रेस वार्ता से कुछ ही घंटों पहले टोंगा की राजधानी नुकुआलोफा से सिर्फ 47 किलोमीटर दूर 5.0 तीव्रता का भूकंप आया था. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि उस भूकंप से कोई नुकसान नहीं हुआ.
समारासिंहा ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र की 14 एजेंसियां और अंतरराष्ट्रीय समुदाय राहत और मरम्मत कार्यों में टोंगा की मदद कर रही हैं. एजेंसियों ने करीब 40 टन पानी और सफाई का सामान पहुंचाया है, आपातकालीन संचार सेवाओं की मदद से टोंगा को बाकी दुनिया से जोड़ा है. एजेंसियां खाना, स्कूल का सामान और मनोवैज्ञानिक समर्थन भी दे रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र की टोंगा के सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों को नकद धनराशि देने की भी योजना है. इनमें वो 2000 लोग भी शामिल हैं जो अपने अपने घरों से विस्थापित हो गए और कुछ और ऐसे लोग जिनकी जीविका छीन गई. टोंगा पिछले दो सालों से कोविड-मुक्त भी था लेकिन त्रासदी के बाद महामारी भी यहां पहुंच गई. बंदरगाह पर काम करने वाले दो कर्मी कोविड पॉजिटिव पाए गए.
आगे की योजना
समरसिंहा ने बताया कि देश में 20 फरवरी तक के लिए तालाबंदी लगी हुई है और वहां 89 प्रतिशत टीकाकरण की ऊंची दर की वजह से संक्रमित लोगों के लक्षण भी हल्के हैं. उन्होंने बताया कि विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार त्रासदी में देश का जितना नुकसान हुआ है वो उसके सकल घरेलू उत्पाद के 18.5 प्रतिशत के बराबर है. और पर्यटन, कृषि और वाणिज्य के क्षेत्रों पर भविष्य में जो असर पड़ेगा वो नुकसान अलग है.
टोंगा के 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग छोटे स्तर पर की जाने वाली खेती, मछली पालन और खुद इस्तेमाल करने लायक पशुपालन पर निर्भर हैं. विश्व बैंक का अनुमान है कि कृषि, वन निर्माण और मछलीपालन को करीब दो करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है.
समरसिंहा ने बताया कि घरों, स्कूलों, चर्चों, सामुदायिक भवनों और दूसरी गैर रिहायशी इमारतों, सड़कों, पुलों और समुद्र के नीचे बिछी संचार की तारों को भी करोड़ों का नुकसान पहुंचा है. उन्होंने बताया कि राहत कार्यों के लिए करीब तीन करोड़ डॉलर या तो आ चुके हैं या आने वाले हैं और इसमें से कुछ राशि का इस्तेमाल शुरूआती कार्यों के लिए किया जाएगा.
सीके/एए (एपी)
अमेरिका ने रूस पर आरोप लगाते हुए कहा है कि रूस, यूक्रेन पर हमला करने के लिए कारण पैदा करने की तैयारी कर रहा है.
गुरूवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि रूस आने वाले दिनों में सैन्य कार्रवाई शुरू कर सकता है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस समस्या और गतिरोध का राजनयिक हल अभी भी संभव है.
अमेरिका के विदेश नीति से जुड़े कई अधिकारियों ने उन संभावित कारणों को सूचीबद्ध किया है जिसे आधार बनाकर रूस, यूक्रेन पर हमले कर सकता है और उसे सही ठहरा सकता है.
वहीं दूसरी ओर रूस बार-बार अमेरिका पर तनाव को भड़काने और बढ़ाने का आरोप लगा रहा है. रूस का कहना है कि उसकी यूक्रेन पर हमले की कोई योजना नहीं है.
बीते दिनों रूस ने यह भी दावा किया था कि वह रूस से लगी यूक्रेन की सीमा पर तैनात (एक लाख से अधिक)अपने सैनिकों को कम भी कर रहा है. हालांकि अमेरिका और नेटो के महासचिव ने दावा किया था कि रूस जो कह रहा है उसका कोई संकेत अभी तक सामने नहीं आया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने पत्रकारों से कहा कि हमारे पास यह मानने के कई कारण हैं कि वे यूक्रेन पर हमला करने के लिए कारण तैयार कर रहे हैं.
यूक्रेन-रूस सीमा से रूसी सैन्य टुकड़ियों की वापसी की ख़बरों के बीच एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने दावा किया है कि रूस अभी भी अपनी सैन्य टुकड़ियों को इस क्षेत्र में भेज रहा है.
व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए इस अधिकारी ने बताया है कि बीते कुछ दिनों में लगभग 7000 रूसी सैनिक सीमा पर तैनात किए गए हैं.
इस अधिकारी ने बताया कि रूस “कभी भी यूक्रेन में घुसने के लिए एक झूठा बहाना कर सकता है.”
“यह बहाना इस तरह से हो सकता है – डोनबास में उकसावे की कार्रवाई, ज़मीन – हवा – समुद्र में नेटो गतिविधि या रूसी क्षेत्र में आक्रमण का दावा आदि.” (bbc.com)
ब्राज़ील के पेट्रोपोलिस शहर में भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ के कारण 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई है.
यह शहर रियो डी जनेरियो के उत्तर में पहाड़ों में बसा हुआ है. जहां बीते दिनों हुई मूसलाधार बारिश के कारण यह हादसा हुआ.
इस हादसे में कई घर तबाह हो गए हैं और बाढ़ के कारण सड़कों पर खड़ी गाड़ियां तक बह गईं.
राहत-बचाव कार्य जारी है और लोगों को मिट्टी के मलबे में खोजने की कोशिश की जा रही है.
ब्राज़ील के नेशनल सिविल डिफ़ेस का कहना है कि स्थानीय समयानुसार बुधवार देर रात तक 24 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है.
इस हादसे के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं. जिनमें हादसे के कारण हुए नुकसान का आंकलन किया जा सकता है.
रियो डी जनेरियो के गवर्नर क्लॉडियो कास्त्रो ने पत्रकारों को बताया कि यह लगभग युद्ध जैसी स्थिति है.
उन्होंने कहा, “कारें खंभों से लटकी पड़ी हैं, पलट गयी हैं और अभी भी बहुत सारी मिट्टी और मलबा बिखरा पड़ा है.”
30 से अधिक लोगों के लापता होने की सूचना है. पेट्रोपोलिस रियो डी जेनेरियो का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. (bbc.com)
संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 18 फरवरी। कनाडा के पूर्व मंत्री और राजनयिक क्रिस एलेक्जेंडर ने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा है कि उसे 9/11 के पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए, क्योंकि हमले की साजिश कराची में रची गई थी।
अफगानिस्तान में कनाडा के पूर्व राजदूत का कहना है कि अफगान संपत्ति युद्धग्रस्त देश के लोगों की है, पाकिस्तानियों की नहीं।
कनाडा के नागरिकता और आव्रजन मंत्री ने एक ट्वीट में कहा, "सेंट्रल बैंक ऑफ अफगानिस्तान की संपत्ति अफगानों की है - पाकिस्तानी सेना के आतंकवादी प्रॉक्सी या उनके पीड़ितों के लिए नहीं। पाकिस्तान को 9/11 के पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए - 2011 तक पाकिस्तान द्वारा संरक्षित एक नेता के तहत कराची में हमले की योजना बनाई।
अलेक्जेंडर ने कहा है कि कराची में 9/11 के हमलों की योजना पाकिस्तान द्वारा संरक्षित एक नेता द्वारा बनाई गई थी और इसलिए पाकिस्तान को 9/11 के आतंकी हमले के पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने घोषणा की है कि वह 9/11 पीड़ितों के लिए अफगानिस्तान के 7 अरब डॉलर के फंड का आधा हिस्सा देगा।
अलेक्जेंडर ने यह भी बताया कि धन अफगानों का है, न कि पाकिस्तानी सेना के आतंकवादी प्रॉक्सी का, जो तालिबान का हिमायती है।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले, पाकिस्तान ने 9/11 के हमलों के पीड़ितों के लिए अमेरिका में रखी अफगान संपत्ति का आधा हिस्सा अलग रखने के अमेरिका के फैसले पर सवाल उठाया था और कहा था कि अफगान फंड का उपयोग अफगानिस्तान का संप्रभु निर्णय होना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 9/11 के हमलों के पीड़ितों के परिवारों सहित कई लोगों सहित अमेरिका के भीतर भी इस फैसले की आलोचना की जा रही है और कहा जा रहा है कि अफगान फंड को अमेरिकी सरकार द्वारा मनमाने ढंग से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए था।
पाक विदेश कार्यालय के प्रवक्ता असीम इफ्तिखार ने कहा, "पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के लिए 3.5 अरब डॉलर और 9/11 पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे के लिए 3.5 अरब डॉलर जारी करने के लिए अमेरिकी बैंकों द्वारा अफगान संपत्ति को मुक्त करने के अमेरिकी फैसले को देखा है।" (आईएएनएस)
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सांसद शेरी रहमान ने पाकिस्तान में धार्मिक मामलों के केंद्रीय मंत्री नूर-उल-हक़ क़ादरी के महिलाओं की रैली पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को लिखे ख़त को लेकर चिंता ज़ाहिर की है.
उन्होंने इस पत्र को ट्वीट करते हुए लिखा है, “महिलाओं की रैली पर प्रतिबंध लगाया जाना, चिंता का विषय है. केंद्रीय मंत्री का यह बयान हैरत में डालने वाला है. आठ मार्च को महिला दिवस है और उस दिन यह प्रतिबंध.”
उन्होंने आगे लिखा है, “पाकिस्तान में किसी ने भी महिलाओं के हिजाब डे मनाने पर रोक नहीं लगाई है. एक ओर हम हिजाब पर भारत के रवैए की आलोचना करते हैं और दूसरी ओर अपनी महिलाओं के आठ मार्च को प्रस्तावित रैली को बैन करने की बात करते हैं.”
उन्होंने आगे लिखा है, “अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ग की महिला का नेतृत्व करता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का उद्देश्य समाज में जेंडर से जुड़ी रूढ़ियों और महिलाओं को जागरूक करना है. ऐसा करके आप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के ही दिन ही उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों से उन्हें वंचित कर रहे हैं.”
पाकिस्तान पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए महिला मार्च की एक आयोजक ने कहा, "हमारे लिए पाकिस्तानियों का दिमाग़ और सोच बहुत छोटी है. मैं अब तक केवल एक प्लेकार्ड बनाने की वजह से घर में क़ैद हूं. मुझे किस तरह की गालियां नहीं दी गईं? चूंकि हिजाब पहनना हमारी सामूहिक सोच को दर्शाता है, इसलिए इसका पुरज़ोर समर्थन किया जा रहा है.'' (bbc.com)
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अब तक की सबसे सटीक घड़ी बनाई है. यह घड़ी मिलीमीटर के हिसाब से टाइम का फर्क बता सकती है. और आइंस्टाइन का सिद्धांत एक बार फिर सबसे सटीकता से साबित हुआ.
आइंस्टाइन का सापेक्षता सिद्धांत कहता है कि पृथ्वी जैसी विशाल वस्तु सीधे नहीं बल्कि घुमावदार रास्ते पर चलती है जिससे समय की गति भी बदलती है. इसलिए अगर कोई व्यक्ति पहाड़ी की चोटी पर रहता है तो उसके लिए समय, समुद्र की गहराई पर रहने वाले व्यक्ति की तुलना में तेज चलता है.
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को अब तक के सबसे कम स्केल पर मापा है, और सही पाया है. उन्होंने अपने प्रयोग में पाया कि अलग-अलग जगहों पर ऊंचाई के साथ घड़ियों की टिक-टिक मिलीमीटर के भी अंश के बराबर बदल जाती है.
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी (NIST) और बोल्डर स्थित कॉलराडो यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले जुन ये कहते हैं कि उन्होंने जिस घड़ी पर यह प्रयोग किया है, वह अब तक की सबसे सटीक घड़ी है. जुन ये कहते हैं कि यह नई घड़ी क्वॉन्टम मकैनिक्स के लिए कई नई खोजों के रास्ते खोल सकती है.
जुन ये और उनके साथियों का शोध प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर में छपा है. इस शोध में उन्होंने बताया है कि कैसे उन्होंने इस वक्त उपलब्ध एटोमिक क्लॉक से 50 गुना ज्यादा सटीक घड़ी बनाने में कामयाबी हासिल की.
कैसे साबित हुआ सापेक्षता का सिद्धांत
एटोमिक घड़ियों की खोज के बाद ही 1915 में दिया गया आइंस्टाइन का सिद्धांत साबित हो पाया था. शुरुआती प्रयोग 1976 में हुआ था जब ग्रैविटी को मापने के जरिए सिद्धांत को साबित करने की कोशिश की गई.
इसके लिए एक वायुयान को पृथ्वी के तल से 10,000 किलोमीटर ऊंचाई पर उड़ाया गया और यह साबित किया गया कि विमान में मौजूद घड़ी पृथ्वी पर मौजूद घड़ी से तेज चल रही थी. दोनों घड़ियों के बीच जो अंतर था, वह 73 वर्ष में एक सेकंड का हो जाता.
इस प्रयोग के बाद घड़ियां सटीकता के मामले में एक दूसरे से बेहतर होती चली गईं और वे सापेक्षता के सिद्धांत को और ज्यादा बारीकी से पकड़ने के भी काबिल बनीं. 2010 में NIST के वैज्ञानिकों ने सिर्फ 33 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर रखी घड़ी को तल पर रखी घड़ी से तेज चलते पाया.
कैसे काम करती है यह घड़ी
दरअसल, सटीकता का मसला इसलिए पैदा होता है क्योंकि अणु गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होते हैं. तो, सबसे बड़ी चुनौती होती है कि उन्हें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से मुक्त किया जाए ताकि वे अपनी गति ना छोड़ें. इसके लिए NIST के शोधकर्ताओं ने अणुओं को बांधने के लिए प्रकाश के जाल प्रयोग किए, जिन्हें ऑप्टिकल लेटिस कहते हैं.
जुन ये की बनाई नई घड़ी में पीली धातु स्ट्रोन्टियम के एक लाख अणु एक के ऊपर एक करके परतों में रखे जाते हैं. इनकी कुल ऊंचाई लगभग एक मिलीमीटर होती है. यह घड़ी इतनी सटीक है कि जब वैज्ञानिकों ने अणुओं के इस ढेर को दो हिस्सों में बांटा तब भी वे दोनों के बीच समय का अंतर देख सकते थे.
सटीकता के इस स्तर पर घड़ियों सेंसर की तरह काम करती हैं. जुन ये बताते हैं, "स्पेस और टाइम आपस में जुड़े हुए हैं. और जब समय को इतनी सटीकता से मापा जा सके, तो आप समय को वास्तविकता में बदलते हुए देख सकते हैं.”
वीके/एए (एएफपी)
वॉशिंगटन, 17 फरवरी| दो-तिहाई अमेरिकियों का कहना है कि अमेरिका गलत रास्ते पर है। यह जानकारी एक नए सर्वेक्षण से पता चली है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को प्रकाशित एक नए पोलिटिको-मॉनिर्ंग कंसल्ट सर्वेक्षण में केवल 34 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि देश सही दिशा में जा रहा है।
तैंतालीस प्रतिशत अमेरिकियों का कहना है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन को '²ढ़ता से स्वीकार' या 'कुछ हद तक स्वीकृत' करते हैं, जबकि लगभग 53 प्रतिशत ने नोट किया कि वे इसे 'कुछ हद तक अस्वीकार' करते हैं।
केवल 39 प्रतिशत अमेरिकियों का कहना है कि वे कोविड -19 महामारी से निपटने के लिए बाइडेन को मंजूरी देते हैं, जबकि 41 प्रतिशत इसे खराब रेटिंग देते हैं, 16 प्रतिशत ने इसे उचित कहा।
देश में राज्यों की बढ़ती संख्या, जिन्होंने दुनिया के सबसे अधिक कोरोनावायरस संक्रमण और मौतों की सूचना दी है, ने ओमाइक्रोन वेरिएंट द्वारा संचालित वृद्धि के बाद दैनिक नए मामलों में गिरावट के बीच कोविड -19 प्रतिबंधों में ढील दी है।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के निदेशक रोशेल वालेंस्की ने बुधवार को एक वर्चुअल ब्रीफिंग में कहा कि ओमाइक्रोन के मामले घट रहे हैं, और हम जिस प्रक्षेपवक्र पर हैं, उसके बारे में हम सभी आशावादी हैं।
"हम वह सब करने के लिए सतर्क रहना चाहते हैं जो हम कर सकते हैं ताकि यह प्रक्षेपवक्र जारी रहे।" (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 17 फरवरी| अमेरिकी तटीय इलाकों में समुद्र का स्तर वर्ष 2050 तक औसतन मौजूदा स्तर से 10 से 12 इंच (25 से 30 सेंटीमीटर) ऊपर बढ़ जाएगा। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई है। एक अंतर-एजेंसी टास्क फोर्स की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण अगले 30 वर्षो में तटीय बाढ़ में काफी वृद्धि होगी। टास्क फोर्स में नासा, राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन और अन्य संघीय एजेंसियां शामिल हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि अगले 30 वर्षो में समुद्र की ऊंचाई में वृद्धि पिछले 100 वर्षो में देखी गई कुल वृद्धि के बराबर हो सकती है।
टास्क फोर्स ने अपने निकट-अवधि के समुद्र के स्तर में वृद्धि के अनुमानों को विकसित किया है, जो इस बात की बेहतर समझ पर आधारित है कि कैसे प्रक्रियाएं जो बढ़ते समुद्रों में योगदान करती हैं, जैसे कि ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के पिघलने के साथ-साथ समुद्र, भूमि और बर्फ के बीच समुद्र की ऊंचाई को लेकर बातचीत प्रभावित होगी।
नासा के प्रशासक बिल नेल्सन ने कहा, "यह रिपोर्ट पिछले अध्ययनों का समर्थन करती है और पुष्टि करती है कि हम लंबे समय से क्या जानते हैं, समुद्र का स्तर खतरनाक दर से बढ़ रहा है, जिससे दुनिया भर के समुदायों खतरे में हैं।"
उन्होंने कहा, "विज्ञान निर्विवाद है और जलवायु संकट को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, जो अच्छी तरह से चल रहा है।" (आईएएनएस)
काबुल, 17 फरवरी| अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने कहा है कि देश की प्रत्येक लड़की को स्कूलों में लौटना चाहिए, क्योंकि यह युद्धग्रस्त राष्ट्र की भलाई के लिए अति आवश्यक है।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व नेता ने कहा कि लड़कियों की स्कूल और महिलाओं की उनके कार्यस्थल पर वापसी अफगानिस्तान की मांग है।
अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर अधिकार करने के बाद से लड़कियां और महिलाएं शैक्षणिक संस्थानों और कार्यालयों से बाहर हो गई हैं।
मौजूदा तालिबान सरकार की मान्यता के संबंध में करजई ने कहा कि मार्ग प्रशस्त करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुछ प्रारंभिक कदम उठाए जाने की जरूरत है।
"अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता के मुद्दे पर, मेरा प्रस्ताव शुरू से ही यही रहा है कि हम अफगान लोगों को पहले अपने घर को व्यवस्थित करने की जरूरत है।" (आईएएनएस)
साओ पाउलो, 17 फरवरी | ब्राजील के रियो डी जनेरियो राज्य के पेट्रोपोलिस नगरपालिका में भूस्खलन, भारी बारिश और बाढ़ से कम से कम 44 लोगों की मौत हो गई है। स्थानीय नागरिक सुरक्षा अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने बताया, रियो डी जनेरियो शहर से 68 किमी दूर स्थित पहाड़ी शहर में मंगलवार को भारी बारिश के कारण 50 से अधिक भूस्खलन हुए।
रियो डी जनेरियो राज्य के गवर्नर क्लाउडियो कास्त्रो ने बुधवार को कहा, "यह एक युद्ध की स्थिति है, घरों के ऊपर कारें, कीचड़ और लोग अपने प्रियजनों की तलाश करने में लगे हैं।"
नागरिक सुरक्षा लेफ्टिनेंट कर्नल गिल केपरम्स ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान विस्तार से बताया कि लापता लोगों की संख्या अभी पता नहीं चली है।
अधिकारी ने मोरो दा ओफिसिना में भूस्खलन को लेकर कहा, "निवासी मिट्टी के नीचे अपने प्रियजनों की तलाश कर रहे हैं। एक पहाड़ी जहां लगभग 80 घर बह गए थे।"
निवासियों द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई तस्वीरों में एक भूस्खलन की घटना कैद हो गई है, जो घरों को बहा ले गया।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 फरवरी| पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की उपाध्यक्ष मरियम नवाज शरीफ ने बुधवार को कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान राज्यों की सत्ता का कितना भी इस्तेमाल करें, वह खुद को बचा नहीं पाएंगे। एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, मरियम ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, "ज्वार ने इमरान खान को बदल दिया है! आप राज्य की कितनी भी शक्ति का उपयोग करें, आप खुद को नहीं बचा सकते।"
पीएमएल-एन की उपाध्यक्ष ने यह भी कहा कि इमरान खान एक 'गंदा खेल' में शामिल हैं और अपने 'अज्ञानी मंत्रियों' को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, मरियम ने कहा, "इस तरह आप जैसे लोगों का डर तब सामने आता है, जब वे सत्ता खोने लगते हैं। आपके कार्यो को देखकर, मुशर्रफ (पूर्व सैन्य शासक) युग के आखिरी कुछ दिन याद आते हैं।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि मरियम का बयान पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) द्वारा मीडिया शख्सियत मोहसिन बेग को गिरफ्तार किए जाने के कुछ घंटे बाद आया है।
गिरफ्तारी के दौरान, बेग और उनके बेटे ने एफआईए कर्मियों पर गोलियां चला दीं, जिसमें एक घायल हो गया। घटना के वीडियो तभी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।
एफआईए साइबर क्राइम विंग ने पाकिस्तान के संचार मंत्री मुराद सईद के अनुरोध पर बेग के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
रिपोर्ट में कहा गया है, "आपके अपराधों की सूची में न केवल विरोधियों से बदला लेना शामिल है, बल्कि एफआईए जैसे राज्य संस्थानों का उपयोग अपने व्यक्तिगत स्कोर को निपटाने के लिए करना भी शामिल है। आपको इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वह कोई प्राणी नहीं हैं जो धरती पर आसमान से उतरे हैं कि कोई आपकी आलोचना करेगा तो उसके घर पर छापा मारा जाएगा।
उन्होंने कहा, "आईसीयू में मेरी मां को वही सम्मान दिया जाना चाहिए था, जो आप अपनी पत्नी को देते हैं.आपके राजनीतिक विरोधियों की मां और बहनें उतने ही सम्मान की पात्र हैं।" (आईएएनएस)
अमेरिकी नागरिक वर्जीनिया रॉबर्ट्स गिफ्रे ने आरोप लगाया था कि 2001 में जब वह 17 साल की थीं, तब प्रिंस एंड्र्यू ने उनका यौन शोषण किया था.
ब्रिटेन के प्रिंस एंड्र्यू ने अपने ऊपर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला वर्जीनिया रॉबर्ट्स गिफ्रे के साथ समझौता कर लिया है. वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली अमेरिकी नागरिक वर्जीनिया ने प्रिंस एंड्र्यू पर यह आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था कि उन्होंने वर्जीनिया का तब यौन उत्पीड़न किया था, जब वह नाबालिग थीं.
फेडरल कोर्ट में दायर की गई सूचना में वर्जीनिया के वकील डेविड बोइस ने बताया कि दोनों ही पक्षों के वकील एक सैद्धांतिक समझौते पर पहुंचे हैं. कोर्ट में दायर किए गए एक पत्र में बोइस समेत दोनों ही पक्षों के सभी वकीलों के दस्तखत हैं. इस पत्र में जज से सभी समय-सीमाएं निलंबित करने और मामला होल्ड पर रखने का आग्रह किया गया है.
क्या बातें हुईं समझौते में
पत्र में यह भी लिखा है कि दोनों ही टीमें अगले महीने तक केस रद्द करने की गुजारिश करेंगी. न्यूयॉर्क की एक अदालत में जज के सामने यह समझौता पेश किए जाने से अब मुकदमे की कार्रवाई आगे नहीं बढ़ेगी. यह मामला आगे बढ़ने पर ब्रिटेन के शाही परिवार के लिए और फजीहत का सबब बन सकता था. समझौते के तहत एंड्र्यू से वर्जीनिया की चैरिटी में एक अच्छी-खासी रकम दान करने के लिए भी कहा गया है.
बोइस ने अदालत में जो पत्र दाखिल किया है, उसका एक हिस्सा कहता है, "प्रिंस एंड्र्यू पीड़ितों के अधिकारों के समर्थन में वर्जीनिया की चैरिटी को पर्याप्त दान देने का इरादा रखते हैं. प्रिंस एंड्र्यू का कभी भी वर्जीनिया का चरित्र खराब करने का इरादा नहीं था. वह स्वीकार करते हैं कि वर्जीनिया को उत्पीड़न और अनुचित सार्वजनिक हमलों का शिकार होना पड़ा है."
हालांकि, वर्जीनिया की ओर से अभी कोई बयान नहीं आया है कि वह समझौते पर सहमत क्यों हो गईं. इस पत्र में उस रकम का भी जिक्र नहीं किया गया है, जो प्रिंस एंड्र्यू दान में देने वाले हैं. वर्जीनिया ने आरोप लगाया था कि जेफ्री एप्सटीन की दोस्त गिजलीन मैक्सवेल ने उन्हें प्रिंस एंड्र्यू से मिलवाया था.
क्या है एंड्र्यू के खिलाफ मामला
ब्रिटेन की महारानी के 'सबसे पसंदीदा बेटे' कहे जाने वाले प्रिंस एंड्र्यू पर वर्जीनिया ने आरोप लगाया था कि 2001 में जब वह 17 साल की थीं, तब एंड्र्यू ने उनका यौन उत्पीड़न किया था. एंड्र्यू के वकीलों ने अदालत में कोशिश की थी कि अदालत यह मामला खारिज कर दे, लेकिन जज ने ऐसा नहीं किया.
मुकदमा दायर होने के बाद प्रिंस एंड्र्यू ने अपनी शाही पदवी और जिम्मेदारियां छोड़ दी हैं. इसके बाद बकिंघम पैलेस की ओर से बयान जारी करके कहा गया था, "ड्यूक ऑफ यॉर्क अपनी सभी सार्वजनिक जिम्मेदारियों से मुक्त किए जाते हैं. अब वह एक आम नागरिक की तरह मुकदमे में अपना बचाव करेंगे."
इस मामले में जेफ्री एप्सटीन का नाम आया था. यौन अपराध के कई मामलों में दोषी अमेरिकी अरबपति जेफ्री एप्स्टीन ने 2019 में खुदकुशी कर ली थी. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों बिल क्लिंटन और डॉनल्ड ट्रंप के करीबी बताए जाने वाले एप्सटीन की लाश जेल की बैरक में मिली थी. एप्स्टीन को बच्चों से यौन संबंध बनाने का दोषी भी पाया गया था.
एंड्र्यू ने किया था इनकार
प्रिंस एंड्र्यू ने वर्जीनिया के आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि उन्हें गिफ्रे से मिलने का कोई मौका याद नहीं है. उन्होंने एप्सटीन के साथ अपनी दोस्ती का भी बचाव किया था. एक इंटरव्यू में एंड्र्यू के ये बातें कहने के बाद आम जनता ने इसका जोरदार विरोध किया और तमाम चैरिटी और संगठनों ने एंड्र्यू से किनारा कर लिया. इसके बाद वह कम ही मौकों पर सार्वजनिक रूप से नजर आए.
प्रिंस एंड्र्यू 1978 में रॉयल नेवी की एविएशन ब्रांच में शामिल हुए थे. 1981 में उन्हें बतौर वाइस-लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया था. 1982 में वह फॉकलैंड द्वीप समूह को लेकर हुए युद्ध में शामिल रहे हैं. 1982 में अर्जेंटीना ने ब्रिटेन से हजारों किलोमीटर दूर अपने पड़ोस में स्थित फॉकलैंड द्वीप समूह पर हमला किया था. तब जिस एयरक्राफ्ट कैरियर से अर्जेंटीना का मुकाबला किया गया था, प्रिंस एंड्र्यू भी उसके साथ थे.
वीएस/एनआर (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि अगस्त 2019 में कश्मीर की स्वायत्तता ख़त्म करने के भारत के एकतरफ़ा फ़ैसले के कारण ही दोनों देशों के रिश्ते और बिगड़े हैं.
उन्होंने कहा कि किसी भी बातचीत के लिए भारत को कश्मीर का दर्जा बहाल करना होगा. फ़्रांसीसी अख़बार ली फिगारो के साथ इंटरव्यू में इमरान ख़ान ने कश्मीर, पुलवामा, शिनजियांग और मोदी सरकार के बारे में अपनी राय रखी.
कश्मीर के मुद्दे पर इमरान ख़ान ने कहा कि कश्मीर में भारत ने जो भी किया, वो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के ख़िलाफ़ है. इमरान ने कहा- इतना ही आरएसएस की अगुआई वाली बीजेपी की सरकार ने जिस तरह पाकिस्तान और ख़ासकर कश्मीर को लेकर अपनी नीति दिखाई है, उसे लेकर इस इलाक़े में काफ़ी चिंता है. पाकिस्तानी पीएम ने कहा- हम एक ऐसी सरकार से डील कर रहे हैं, जो तर्कसंगत सरकार नहीं हैं. जिनकी विचारधारा घृणा पर आधारित है ख़ासकर मुसलमानों को लेकर, अल्पसंख्यकों को लेकर और पाकिस्तान को लेकर. भारत में ऐसी सरकार नहीं है, जिससे हम बात कर सकें.
उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद की मुख्य वजह कश्मीर है. इमरान ने कहा- इसलिए जब मैं सरकार में आया, तो मैंने नरेंद्र मोदी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. मेरा मानना था कि हमारे बीच पड़ोसी का रिश्ता होना चाहिए. लेकिन एकमात्र मुश्किल कश्मीर है. और इसके हल के लिए बातचीत होनी चाहिए. लेकिन मुझे भारतीय पीएम से जो प्रतिक्रिया मिली, उससे मुझे काफ़ी आश्चर्य हुआ. पाकिस्तानी पीएम ने कहा, "उसके बाद पुलवामा हुआ, जब एक युवा कश्मीरी ने अपने को उड़ा लिया. लेकिन उन्होंने इसके लिए हमें दोषी ठहराया. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान पर बम गिराए. इसके बाद हमने उनके एक जहाज़ को गिराया और उनके पायलट को वापस भेजा. ये दिखाने के लिए हम और तनाव नहीं बढ़ाना चाहते." उन्होंने कहा कि सिर्फ़ मोदी सरकार के रुख़ के कारण आज हमारे बीच कोई रिश्ते नहीं.
इमरान ने कहा- हमारे बीच रिश्ते शुरू हो सकते हैं, लेकिन उन्हें कश्मीर की अगस्त 2019 से पहले की स्थिति को बहाल करना होगा. क्योंकि ये अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है. इसके बिना कोई भी बातचीत कश्मीर के लोगों के साथ धोखा होगा, जिन्होंने इतना कुछ सहा है.
कश्मीर के मुद्दे पर बोलने और चीन में शिनजियांग के मुद्दे पर ख़ामोश रहने के सवाल पर इमरान ख़ान ने कहा- शिनजियांग प्रांत चीन का हिस्सा है. इस पर कोई विवाद नहीं है. चीन के हिस्से के रूप में इसे मान्यता है. जहाँ तक कश्मीर की बात है, 1948 में इसे विवादित हिस्सा माना गया था. दूसरी बात ये कि भारत ने ये स्वीकार किया था कि कश्मीर में जनमतसंग्रह होगा और वहाँ के लोग ये फ़ैसला करेंगे कि वे किसके साथ जाएँगे, भारत के साथ या पाकिस्तान के साथ. इसलिए पाकिस्तान इस मुद्दे पर बोलता है. कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के पास है. (bbc.com)