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इसराइल और हमास को अस्थाई युद्धविराम के लिए राज़ी कराने वाला मुल्क
25-Nov-2023 1:03 PM
इसराइल और हमास को अस्थाई युद्धविराम के लिए राज़ी कराने वाला मुल्क

राघवेंद्र राव

सत्ताईस लाख की आबादी वाला एक छोटा सा देश मध्य-पूर्व के साथ-साथ दुनिया भर में अपना क़द बढ़ाता जा रहा है.

तीन तरफ से फ़ारस की खाड़ी से घिरे इस देश का क्षेत्रफल 11,581 वर्ग किलोमीटर है. मध्य-पूर्व के नक़्शे में ये एक बिंदु सा नज़र आता है.

लेकिन पिछले कुछ सालों में इस देश ने अपनी कूटनीति का लोहा सारी दुनिया में मनवा लिया है.

आज दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश है जो एक मध्यस्थ के तौर पर क़तर का मुक़ाबला कर सके.

इसराइल और हमास के बीच चार दिन के युद्ध विराम की ख़बर ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं कि शायद आने वाले दिनों में इस युद्ध से पैदा हुए मानवीय संकट से निपटा जा सकेगा.

दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के तहत हमास चार दिनों में ग़ज़ा से 50 बंधकों को रिहा करेगा और इसराइल 150 फ़लस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा.

अमेरिका, इसराइल और हमास से लगातार बातचीत के ज़रिये क़तर ने ये समझौता करवाने में बड़ी भूमिका निभाई है.

साथ ही मध्य-पूर्व के इस छोटे से देश ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो इस क्षेत्र का निर्विवाद मध्यस्थ है.

इसराइल-हमास जंग और क़तर

सात अक्टूबर को हमास के इसराइल पर हमले और कई लोगों को बंधक बनाए जाने के बाद से ही क़तर बंधकों को छुड़वाने के लिए अमेरिका और इसराइल के साथ क़रीबी तौर पर काम करता रहा है.

इन्हीं कोशिशों का नतीजा था कि 20 अक्टूबर को दो अमेरिकी महिला बंधकों को हमास से छुड़ाने में कामयाबी मिली.

इसके बाद इसराइल और हमास के बीच बातचीत करवाने की कोशिशें और तेज़ हुईं और आख़िरकार दोनों पक्ष चार दिन के युद्धविराम और बंधकों की रिहाई पर राज़ी हो गए.

क़तर की भूमिका सिर्फ़ बंधक छुड़ाने तक सीमित नहीं रही है. इस खाड़ी देश ने इसराइली नाकाबंदी के तहत ग़ज़ा में मानवीय सहायता की अनुमति देने के लिए मिस्र के साथ सीमा खोलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

याद रहे कि क़तर एक ऐसा देश है जिसके सम्बन्ध इसराइल और हमास दोनों से ही हैं. साल 2012 में हमास ने दोहा में अपना राजनीतिक कार्यालय खोला था. माना जाता है कि हमास के कई शीर्ष नेता दोहा में ही रहते हैं.

पिछले कुछ समय में अमेरिका ने क़तर पर दबाव बनाने की कोशिश की है कि वो हमास के कार्यालय को बंद कर दे.

लेकिन क़तर ने ये साफ़ कर दिया है कि हमास के राजनीतिक कार्यालय का मक़सद क्षेत्र में बातचीत का ज़रिया बनना हैं न कि किसी युद्ध को भड़काना.

क़तर का कहना है कि हमास के साथ संचार माध्यमों को खुला रखना महत्वपूर्ण है और अब शायद अमेरिका भी इस बात को समझने लगा है.

मध्यस्थता में माहिर क़तर?

पिछले कुछ सालों के उदाहरणों पर नज़र डालें तो लगता है कि क़तर ने मध्यस्थता करने या बातचीत में मदद करवाने में महारत हासिल कर ली है.

इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण साल 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच क़तर की राजधानी दोहा में हुआ शांति समझौता था जिसके तहत फैसला लिया गया कि अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा.

क़तर ही वो देश था जिसने साल 2013 में तालिबान को अपने देश में राजनीतिक कार्यालय खोलने की इजाज़त दी.

क़तर की मध्यस्थता की एक मिसाल इस साल सितंबर में देखी गई जब उसकी मदद से एक हाई-प्रोफाइल क़ैदियों की अदला बदली हुई जिसमें पांच अमेरिकी कैदियों और पांच ईरानी कैदियों को रिहा किया गया. पांचों अमेरिकी क़ैदियों को तेहरान से दोहा लाया गया जहां से वो अमेरिका के लिए रवाना हुए.

इसी साल अक्टूबर में क़तर की मध्यस्थता से हुए समझौते के तहत रूस चार यूक्रेनी बच्चों को उनके परिवारों को लौटाने के लिए मान गया.

क़तर के मध्यस्थता प्रयासों से कई सफलताएँ मिली हैं. क़तरी मध्यस्थता ने दारफुर में दोहा शांति समझौते तक पहुंचने, इरेट्रिया में जिबूती के युद्ध के कैदियों की रिहाई, सीरिया में बंधकों को रिहा करने और लेबनान में राष्ट्रपति पद के संकट को ख़त्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

'क़तर तटस्थ और स्वीकार्य मध्यस्थ'

डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नेल्सन मंडेला सेंटर फ़ॉर पीस एंड कॉनफ़्लिक्ट रेज़ोल्यूशन में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं.

वे कहते हैं कि किसी भी मध्यस्थता के लिए ज़रूरी है कि मध्यस्थ न्यूट्रल या तटस्थ हो और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो.

वे कहते हैं, "साथ ही कोई ऐतिहासिक बोझ नहीं होना चाहिए जो मध्यस्थ की तटस्थता को अयोग्य ठहराए. बातचीत को बनाए रखने के लिए विशाल वित्तीय संसाधनों की ज़रूरत होती है जो मध्यस्थ के पास होने चाहिए."

"इसके अलावा घरेलू मुद्दों पर अपना अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड और अमेरिका जैसी शक्तियों से अच्छे सम्बन्ध होना भी एक मध्यस्थ के लिए मददगार हैं. इन सभी मानदंडों पर क़तर खरा उतरता है."

डॉक्टर मिश्रा कहते हैं, "क़तर के ऊपर कोई निश्चित एजेंडा रखने या किसी एक पक्ष के साथ चयनात्मक होने का कोई ऐतिहासिक बोझ नहीं है. क़तर अच्छे इरादों वाला एक तटस्थ मध्यस्थ रहा है और बातचीत के लिए शत्रु पक्षों को साथ लाने में रणनीतिक रूप से अच्छी स्थिति में है".

डॉक्टर मिश्रा कहते हैं कि क़तर संसाधनों से बेहद समृद्ध है और यही वजह है कि एक छोटा देश होने के बावजूद मध्य पूर्व में उसे गंभीरता से लिया जाता है.

वे कहते हैं कि क़तर की स्थापना के बाद से चौथे आधुनिक मध्य पूर्व में इसराइल, सऊदी अरब, ईरान और तुर्की का वर्चस्व रहा है.

और खाड़ी के भीतर सऊदी अरब के कुछ विरोध को छोड़कर क़तर के सभी क्षेत्रीय शक्तियों के साथ अच्छे संबंध हैं और इसी वजह से संघर्ष समाधान करने और एक तटस्थ मध्यस्थ के तौर पर क़तर एक सक्षम देश के रूप में उभरा है.

वे कहते हैं, "क़तर के एकमात्र वैश्विक शक्ति अमेरिका के साथ मजबूत और भरोसेमंद संबंध हैं. क़तर संगठनात्मक उद्देश्यों के लिए सभी इस्लामी पार्टियों का केंद्र है जो क़तर को मध्य पूर्व में अपरिहार्य अभिनेता बनाता है. क़तर ये भी मानता है कि मध्यस्थ की भूमिका एक धार्मिक कर्तव्य है."

"ये सभी वजहें क़तर को एक सफल मध्यस्थ बनाते हैं लेकिन क़तर के नज़रिए से भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि मध्यस्थ की भूमिका राज्य की ब्रांडिंग और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ाने में मदद करती है."

"साथ ही अपने क्षेत्रीय पड़ोसियों से छोटा देश होने के बावजूद एक गंभीर क्षेत्रीय शक्ति और शांति निर्माता के रूप में खुद को स्थापित करने में मदद करती है."

कैसे बढ़ा क़तर का क़द?

अनिल त्रिगुणायत जॉर्डन और लीबिया में भारत के राजदूत के रूप में काम कर चुके हैं. उन्होंने भारत के विदेश मंत्रालय के वेस्ट एशिया डिविज़न में भी काम किया है.

वे कहते हैं, "सबसे अहम बात ये है कि अमेरिका का एक बहुत बड़ा बेस क़तर में है. जहां तक प्रति व्यक्ति आय का सवाल है, क़तर इस क्षेत्र का सबसे अमीर देश है. क़तर में प्रति व्यक्ति आय 138000 डॉलर है और उनके पास विशाल गैस भंडार है."

"उनके नेता बहुत गतिशील और अंतरराष्ट्रीय सोच वाले रहे हैं और उन्हें एहसास है कि एक छोटा देश होने की वजह से उनका मध्य-पूर्व में कोई ख़ास प्रभाव नहीं होगा."

अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि क़तर के पास धन की कमी नहीं है तो अपना प्रभाव बनाने का रास्ता उसने ये निकाला कि संकटों के दौरान उसने बड़ी शक्तियों, ख़ासकर अमेरिका, की मदद करनी शुरू कर दी.

वे कहते हैं, "कुछ साल पहले क़तर ने तालिबान द्वारा बंदी बनाए गए एक अमेरिकी क़ैदी के बदले में पांच तालिबानियों की रिहाई सुनिश्चित करने में मदद की थी. फिर उन्होंने तालिबान को क़तर में एक कार्यालय खोलने की अनुमति दी."

"क़तर की मदद से अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा समझौता हुआ. इस बातचीत में जब भी कोई मुश्किलें आईं तो क़तर ने मदद की और यही वजह है कि अमेरिका ने क़तर को एक ग़ैर-नेटो अलाइ का दर्जा दिया."

अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि जहाँ तक मध्य-पूर्व की बात है तो क़तर शुरू से मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता रहा है.

वे कहते हैं, "यही वजह थी की 2017 में सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने क़तर पर ब्लॉकेड (नाकाबंदी) लगा दिया था."

इन चार देशों ने साल 2017 में क़तर के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंध तोड़ दिए थे और उस पर समुद्री, ज़मीनी और हवाई नाकाबंदी लगा दी थी.

इन देशों का कहना था कि क़तर आतंकवाद का समर्थन करता है और ईरान से बहुत क़रीब है.

त्रिगुणायत कहते हैं, "इस ब्लॉकेड के दौरान का वक़्त क़तर ने अपने अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को बढ़ने के लिए इस्तेमाल किया. और अब उसके नतीजे दिख रहे हैं. क़तर पर लगाया गया ब्लॉकेड उनके लिए वरदान साबित हुआ."

"उसकी वजह से उन्हें दुनिया की सहानुभूति मिली और उनका प्रभाव बढ़ा और फीफा वर्ल्ड कप जैसे आयोजनों से उसका क़द बढ़ता चला गया. क़तर के पास अब एक कूटनीतिक प्रभाव है."

'अमेरिका से साझेदारी क़तर के लिए फायदेमंद'

डॉक्टर मिश्रा कहते हैं कि क़तर इस्लामी विशेषताओं के साथ मध्य-पूर्व के नॉर्वे की तरह है.

वे कहते हैं, "मध्य पूर्व में संघर्ष की स्थिति काफी हद तक उन इस्लामी आंदोलनों की वजह से है जिन्हें क़तर ने सामग्री और संगठनात्मक दोनों तरह से समर्थन दिया है."

"इसके अलावा क़तर एक भरोसेमंद अमेरिकी साझेदार है और अमेरिका को अन्य खाड़ी राजतंत्रों और इसराइल का विरोध करने वाली अलग-अलग शत्रुतापूर्ण पार्टियों को संभालने के लिए क़तर की ज़रूरत है."

वे कहते हैं कि क़तर को एक क्षेत्रीय मैचमेकर बनाने में ईरान का फैक्टर महत्वपूर्ण है.

क़तर ईरान को स्वीकार्य है क्योंकि ईरान क़तर को तुर्की की तरह एक संभावित खतरा नहीं मानता है. इसके अलावा क़तर मुस्लिम ब्रदरहुड जैसी इस्लामी पार्टियों के भी क़रीब है जिनकी क्षेत्र में मज़बूत लोकप्रियता है.

मिश्रा कहते हैं, "अमेरिकी रणनीति क्षेत्र में शांति स्थापित करने में एक रचनात्मक खिलाड़ी के रूप में क़तर के अपने एजेंडे के साथ फिट बैठती है."

"और क़तर को अंतरराष्ट्रीय मान्यता के साथ एक मज़बूत खिलाड़ी के रूप में खुद को स्थापित करने में मदद करती है. मध्यस्थता ने विश्व राजनीति में क़तर के महत्व को मजबूत किया है."

क्या बढ़ेगा क़तर का दबदबा?

पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत कहते हैं कि जब तक क़तर के अमेरिका से अच्छे रिश्ते हैं उसके प्रभाव में कोई कमी नहीं आएगी.

साथ ही वो इस बात का भी ज़िक्र करते हैं कि सऊदी अरब जिसने एक समय पर क़तर पर ब्लॉकेड लगाया था, आज उसी सऊदी अरब से क़तर के क़रीबी रिश्ते हैं.

डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि मध्य-पूर्व कई मूक क्रांतियों के शिखर पर है और आने वाले वक़्त में कई ज़्यादा संघर्ष उभरने की सम्भावना है.

वे कहते हैं, "मध्य पूर्व में अधिक अरब विद्रोह देखने को मिल सकता है और क्षेत्रीय स्थिति में ईरान की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी और इसलिए सभी फैक्टर्स को देखते हुए क़तर की स्थिति और मज़बूत होगी."

"अगर फ़लस्तीनी मुद्दे का हल नहीं हुआ तो मध्य-पूर्व में गंभीर दरार पैदा होगी. ईरान के साथ अमेरिका, खाड़ी और इसराइल के संबंध शत्रुतापूर्ण बने हुए हैं और यमन, लीबिया, लेबनान से लेकर फ़लस्तीन तक कई चुनौतियाँ मौजूद हैं."

डॉक्टर मिश्रा के मुताबिक़, "मध्य पूर्व में शांति का रोडमैप क्षेत्रीय ढांचे से होकर गुजरता है और क़तर सबसे महत्वपूर्ण अभिनेता है जिसने एक छोटा राष्ट्र होने के बावजूद मध्यस्थ की अपनी भूमिका को अच्छी तरह से निभाया है."

"वैश्विक इरादे वाली एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा, छवि और वैधता के एजेंडे के साथ क़तर की स्थिति अधिक शक्तिशाली होगी." (bbc.com)


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