अंतरराष्ट्रीय
कतर में पहली बार संसदीय चुनाव होने वाले हैं और इनमें महिला प्रत्याशी भी चुने जाने की उम्मीद कर रही हैं. महिला प्रत्याशियों की संख्या है तो बहुत कम लेकिन फिर भी इसे एक काफी सकारात्मक कदम बताया जा रहा है.
30 सीटों पर चुनाव के लिए 284 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें से सिर्फ 28 महिलाएं हैं. संसदीय परिषद में 15 सीटें और हैं जिन पर देश के अमीर लोगों को नियुक्त करेंगे. समीक्षकों का कहना है कि परिषद में लैंगिक असंतुलन को ठीक करने के लिए अमीर इन सीटों पर भी कई महिलाओं को नियुक्त कर सकते हैं.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप में सीनियर गल्फ ऐनालिस्ट इल्हाम फखरो कहते हैं, "यह एक बहुत ही सकारात्मक कदम है कि महिलाएं भी इस प्रक्रिया का हिस्सा हैं. हालांकि, मुझे लगता है कि हमें अपनी अपेक्षाओं को थोड़ा सीमित करना चाहिए क्योंकि सिर्फ 28 महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं. यह कोई आश्चर्य वाली बात भी नहीं है."
नागरिकता में भेदभाव
इन महिला प्रत्याशियों में से एक लीना अल-दफा ने बताया कि अगर वो जीत गईं तो उनकी प्राथमिकताओं में महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहन देना, महिला शिक्षकों को समर्थन देना और कतरी महिलाओं के बच्चों की नागरिकता का मुद्दा शामिल होगा.
अभी तक कतरी नागरिकता बच्चों को सिर्फ उनके पिता से मिल सकती है. अगर कोई कतरी महिला किसी ऐसे पुरुष से शादी कर लेती है जो कतर का नागरिक नहीं है तो उनके बच्चों को कतर की नागरिकता नहीं मिल पाएगी. इससे इस तरह के बच्चे देश में सरकार की तरफ से दिए जाने वाले अनुदान, जमीन और दूसरी सरकारी मदद से महरूम जाते हैं.
दफा कहती हैं, "मेरे लिए सबसे जरूरी मुद्दा है कतरी महिलाओं के बच्चों की नागरिकता. यह मुद्दा मेरे दिल से जुड़ा हुआ है और मैं इसे सबसे जरूरी मानती हूं." दफा एक शिक्षा अधिकारी हैं और वो कतर के 17वें जिले से चुनाव लड़ रही हैं. उनके सामने चुनाव में दो महिलाएं और सात पुरुष खड़े हैं.
वो कहती हैं कि लिंग से ज्यादा योग्यता जरूरी है. उन्होंने बताया, "मैं इसे पुरुषों और अपने बीच में प्रतियोगिता के रूप में नहीं देखती क्योंकि मैं पुरुषों को विधायिका के कार्य में अनुपूरक मानती हूं. और हम काबिलियत के बारे में बात कर रहे हैं, लिंग के बारे में नहीं."
"अभिभावक पद" को लेकर विवाद
कतर में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पड़ोसी देश सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से ज्यादा है. कतर की स्वास्थ्य मंत्री एक महिला हैं और विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता भी एक महिला हैं.
विश्व कप आयोजन समिति में भी महिलाएं अहम भूमिकाओं में हैं. परोपकारी गतिविधियों, कला, चिकित्सा, कानून और व्यापार जैसे क्षेत्रों में भी महिलाएं सक्रिय हैं. लेकिन मार्च में ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने कतर पर महिलाओं के जीवन पर "अभिभावक पद" के अस्पष्ट नियमों के तहत अंकुश लगाने का आरोप लगाया था. इस कानून के तहत वयस्क महिलाओं को भी रोज के कामों के लिए भी किसी पुरुष की स्वीकृति की जरूरत होती है.
अभिभावक मुख्य रूप से पुरुष रिश्तेदार ही होते हैं, जैसे पिता, भाई और दूसरे पुरुष. कतर का संविधान "सभी नागरिकों को बराबर अवसर" देने की बात करता है. लेकिन एचआरडब्ल्यू का कहना है कि काफी ठोस प्रगति के बावजूद, महिलाओं "आज भी जीवन के लगभग हर क्षेत्र में गहरे भेदभाव का सामना कर रही हैं."
एचआरडब्ल्यू ने पूर्व में यह माना है कि कतरी महिलाओं ने "अवरोधों को तोड़ा है और महत्वपूर्ण तरक्की हासिल की है" और पुरुष स्नातकों से महिला स्नातकों की संख्या ज्यादा होना और प्रति व्यक्ति महिला डॉक्टरों और वकीलों की संख्या का काफी अधिक होना इस बात का सबूत है.
सीके/एए (एएफपी)
हांग कांग में अब बिना सहमति के यदि किसी ने महिलाओं के स्कर्ट से नीचे की तस्वीर ली या उसे शेयर किया तो उसे जेल जाना होगा.
गुरुवार को हांग कांग ने एक कानून पास कर अपस्कर्टिंग यानी बिना सहमति के महिलाओं के स्कर्ट के नीचे की तस्वीर या वीडियो बनाने या शेयर करने को अपराध बना दिया है.
इंटरनेट पर ऐसी तस्वीरों और वीडियो बहुतायत में शेयर किए जाते हैं जो बाजारों में, दुकानों में या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर गुप चुप तरीके से बनाई जाती हैं. हांग कांग की लैजिसलेटिव काउंसिल ने नए कानून के जरिए इस तरह की गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में डाल दिया है.
चार गतिविधियां होंगी अपराध
नए कानून में चार गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में डाला गया है जिसके बाद वॉयरिजम में कुल अपराधों की संख्या छह हो गई है.
कानून में सिर्फ सार्जवनिक ही नहीं, निजी स्थानों पर भी इस तरह की तस्वीरें लेने या रिकॉर्डिंग बनाने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. तस्वीरें लेने वाले और शेयर करने वाले दोनों को ही अपराधी माना जाएगा.
नए नियमों में वॉयरिजम यानी छिपकर किसी की अंतरंग पलों को देखना या रिकॉर्ड करना, ऐसी गतिविधि से मिली तस्वीरों या वीडियो शेयर करना, और यौनेच्छा से प्रेरित होकर किसी व्यक्ति के प्राइवेट पार्ट्स की तस्वीरें अथवा वीडियो लेना शामिल है.
यदि कोई व्यक्ति दो या उससे अधिक अपराधों में दोषी पाया जाता है तो उसका नाम सेक्स ऑफेंडर्स रजिस्टर में दर्ज किया जा सकता है.
डीप फेक भी अपराध
कानून में एक और प्रावधान रखा गया है जिसके तहत डीप फेक यानी आर्टफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए पॉर्न वीडियो या फोटो बनाने को भी अदालत में चुनौती दी जा सकती है और उसे इंटरनेट से हटाया जा सकता है.
डीप फेक में जिन लोगों के चेहरे इस्तेमाल हुए हैं, वे न सिर्फ उन्हें बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं बल्कि ऐसी तस्वीरों को शेयर करने या प्रकाशित करने वालों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.
इस क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि फेसबुक या इंस्टाग्राम जैसी सोशल मीडिया वेबसाइट्स को भी अदालत में घसीटा जा सकेगा.
कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नए कानून का स्वागत किया है. ‘एसोसिएशन कनसर्निंग सेक्शुअल वायलेंस अगेंस्ट विमिन' नामक संस्था की लिंडा एस वाई वॉन्ग ने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि ये नए अपराध आम लोगों और कानून व्यवस्था लागू करवाने वाली एजेंसियों को समझने में मदद करेंगे कि फोटो या वीडियो आधारित यौन हिंसा ऐसा नुकसान पहुंचाती है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती."
अपस्कर्टिंग को लेकर दुनियाभर में चिंता और जागरूकता बढ़ रही है. इसलिए जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड जैसे देश इसे पहले ही अपराध की श्रेणी में ला चुके हैं.
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
दशकों से नीदरलैंड का दावा रहा है कि उसके लोग दुनिया में सबसे लंबे हैं. नीदरलैंड केंद्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (सीबीएस) के मुताबिक, 1958 के बाद डच दुनिया के किसी भी दूसरे देश के लोगों के मुक़ाबले सबसे लंबे हो गए.
लेकिन हाल में हुए शोध बताते हैं कि आज की पीढ़ी अपने पहले की पीढ़ी की तुलना में थोड़ी छोटी हो गई है. पुरुषों की औसत लंबाई 1 सेंटीमीटर, तो महिलाओं की औसत लंबाई 1.4 सेंटीमीटर तक कम हो गई है.
हालांकि लंबाई में हुई इस कमी के कई कारण बताए जा रहे हैं, लेकिन इसमें से कोई कारण ऐसा नहीं है जो विशेषज्ञों को संतुष्ट कर सके.
20वीं सदी में लोगों का कद बढ़ता गया
सीबीएस ने अपनी वेबसाइट पर बताया कि क़द लंबा होने की प्रवृत्ति लगभग एक सदी पहले शुरू हुई थी. यह एजेंसी हर चार साल में एक स्वास्थ्य सर्वेक्षण करती है. इसी सर्वेक्षण में लोगों की लंबाई भी मापी जाती है.
2020 में, 19 साल के डच पुरुषों की औसत लंबाई 182.9 सेंटीमीटर थी, जबकि उसी उम्र की महिलाओं की लंबाई 169.3 सेंटीमीटर थी.
ये वृद्धि सतत और तीव्र रही है. 1930 में पैदा हुए पुरुषों की तुलना में 1980 में पैदा हुए पुरुषों की ऊंचाई औसतन 8.3 सेंटीमीटर बढ़ गई. इसी तरह महिलाओं की लंबाई इस दौरान 5.3 सेंटीमीटर बढ़ गई.
सीबीएस की एक रिसर्चर और एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र की प्रोफ़ेसर रूबेन वैन गैलेन ने डचों के लंबे होने का कारण बताया. उन्होंने बीबीसी को बताया, "इस देश में लोग बहुत दूध पीते हैं."
लेकिन उन्होंने कहा कि इस सिलसिले में और भी कई थ्योरी हैं. वे कहते हैं, "बेहतर जीवन स्तर से भी ऐसा हो सकता है. सभी देशों के मानव विकास सूचकांकों में नीदरलैंड पहले स्थान पर है. दूसरे देशों में डेनमार्क का भी यही सूचकांक है और वहां के लोग भी लंबे हैं."
लंबे होने का फायदा बहुत
रूबेन वैन गैलेन ने प्राकृतिक चयन (चार्ल्स डार्विन की नैचुरल सेलेक्शन थ्योरी) की घटना की ओर इशारा किया. और कहा कि लंबा होने से व्यक्ति को काफी फायदा होता है.
मालूम हो कि प्राकृतिक चयन के सिद्धांत को 19वीं सदी के वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने पेश किया था. उनके अनुसार, ये सिद्धांत बताता है कि समय के साथ किसी प्रजाति के आनुवंशिक लक्षण बदल सकते हैं. इससे एक नई प्रजाति भी बन सकती है.
इस अध्ययन में लंबाई और आय के बीच के संबंधों पर भी काम किया गया.
वे बताती हैं, "आप जितने लंबे होते हैं, उतना अधिक पैसा कमाते हैं. यदि आप लंबे हैं तो आप अधिक प्रभाव का अहसास कराते हैं और शायद इसलिए लोग आपकी बातों को ज्यादा मानते हैं. और आप ज्यादा सामाजिक प्रतिष्ठा पाते हैं."
सामान्यत: महिलाएं भी अपने से लंबे पुरुषों की ओर ही आकर्षित होती हैं. लंबे पुरुषों के पास महिलाओं का चयन करते समय अधिक विकल्प होते हैं.
क़द छोटा होने के कारण
सीबीएस के नए शोध के अनुसार, अब डच लोगों की लंबाई बढ़ना बंद हो गई है. इसके लिए 19 से 60 साल की उम्र के 7,19,000 लोगों की लंबाई ली गई.
नतीजों के अनुसार, 2000 के बाद पैदा हुए 19 साल के पुरुषों की लंबाई 1980 के दशक में पैदा हुए पुरुषों की तुलना में औसतन 1 सेमी कम हो गई. महिलाओं का क़द भी 1.4 सेंटीमीटर छोटा हो गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि इसके मुख्य कारणों में प्रवासन का बढ़ना, खान-पान बदलना और आर्थिक संकट के प्रभाव रहे हैं.
सांख्यिकीय अधिकारी ने कहा, "प्रवासियों का आना एक वजह है. यदि हम दुनिया के सबसे लंबे लोग हैं, तो प्रवासी हमसे छोटे होते हैं. उनकी आनुवंशिक बनावट छोटे कद का होता है."
उन्होंने कहा, "लेकिन क़द में आया ये ठहराव कई पीढ़ियों में हुआ जब दो माता-पिता नीदरलैंड में पैदा हुए. ऐसा ही उन पीढ़ियों के साथ हुआ, जिनके चार दादा-दादी नीदरलैंड में पैदा हुए."
सीबीएस ने अपनी वेबसाइट पर लिखा कि बिना आप्रवासन के इतिहास वाले पुरुष लंबे नहीं होते, जबकि बिना आप्रवासन के इतिहास वाली महिलाओं की लंबाई में कमी की प्रवृत्ति दिखती है.
रूबेन वैन गैलेन कद घटने का एक दूसरा संभावित कारण बताते हैं. वो कहते हैं कि औसत लंबाई में कमी उस जैविक सीमा के चलते हो सकती है कि व्यक्ति अब और नहीं बढ़ सकता.
हालांकि विशेषज्ञों को सबसे ज्यादा चिंता जीवनशैली बदलने और विकास के दौरान युवाओं के ज्यादा कैलोरी लेने को लेकर है.
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "सभी सामाजिक वर्गों में बच्चों का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) समय के साथ बढ़ा है. इससे लोग पहले की तरह नहीं बढ़ सकते."
उन्होंने चेताया कि यदि ऐसा ख़राब जीवनशैली के चलते हुआ है तो इसकी जांच होनी चाहिए, क्योंकि इससे ज़्यादा जीने की संभावना पर असर पड़ सकता है.
उन्होंने कहा, "हम अब धूम्रपान नहीं करते, पर हमारे जीवन में अब ज्यादा गति नहीं है. हम अधिक कैलोरी लेकर अपना वजन भी बढ़ाते हैं. इसलिए पहले जितना लंबा न होने का अप्रत्यक्ष प्रभाव, प्रत्यक्ष प्रभाव की तुलना में अधिक चिंताजनक है." (bbc.com)
इस्लामाबाद. पाकिस्तान की राजनीति में अश्लील वीडियो के वायरल होने से हंगामा मच गया है. ये वीडियो पाकिस्तान पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज पार्टी के नेता मोहम्मद जुबैर उमर का है. वह सिंध प्रांत के पूर्व गवर्नर भी रह चुके हैं. उन्हें पाकिस्तान आर्मी और खुफिया एजेंसी ISI का खास आदमी भी माना जाता है.
इस्लामाबाद. पाकिस्तान की राजनीति में अश्लील वीडियो के वायरल होने से हंगामा मच गया है. ये वीडियो पाकिस्तान पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज पार्टी के नेता मोहम्मद जुबैर उमर का है. वह सिंध प्रांत के पूर्व गवर्नर भी रह चुके हैं. उन्हें पाकिस्तान आर्मी और खुफिया एजेंसी ISI का खास आदमी भी माना जाता है.
इस वायरल वीडियो में जुबैर कई लड़कियों के साथ आपत्तिजनक हालत में नजर आते हैं. इमरान खान की पार्टी PTI को अक्सर निशाने पर लेने वाली नवाज शरीफ की पार्टी बैकफुट पर आ गई है. हालांकि जुबैर ने इस वीडियो को फर्जी बताया है.
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जुबैर का यह वीडियो कराची के एक फाइव स्टार होटल में कुछ महीने पहले बनाया गया है. दो से ज्यादा लड़कियां नजर आ रही हैं. इस वीडियो को चार कैमरों से अलग-अलग एंगल से शूट किया गया है.अभी सिर्फ एक मिनट सात सेकंड की फुटेज जारी की गई है. माना जा रहा है कि अन्य फुटेज भी सामने आ सकती हैं.
सबसे ज्यादा हैरत की बात यह है कि वीडियो बनवाने और लीक करने का आरोप नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज पर लग रहा है. दरअसल, जुबैर नवाज के भाई शहबाज शरीफ के गुट के माने जाते हैं. मरियम का शहबाज और जुबैर से विवाद चलता रहा है.
कुछ लोगों का कहना है कि PML-N लीडर मरियम नवाज के इशारे पर ही मोहम्मद जुबैर का वीडियो बनाया गया है. वहीं, कुछ का ये भी कहना है कि जुबैर लड़कियों को नौकरी का लालच देकर उनका यौन शोषण करते रहे हैं.
सिंध के गवर्नर रहते हुए भी उनके बारे में तरह-तरह की खबरें सामने आई थीं. उधर, मरियम नवाज ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वो पूरे मामले की सच्चाई तक जाकर ही रहेंगी.
एसपीएस पन्नू
दिल्ली, 1 अक्टूबर : आतंकवाद के खिलाफ अपने युद्ध में, अमेरिका तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान में ठिकानों को निशाना बनाने के लिए मध्य एशिया में रूस के ठिकानों का इस्तेमाल कर सकता है, जहां आईएसआईएस-के और अल कायदा के अवशेष जैसे आतंकवादी समूह अभी भी सक्रिय हैं।
अमेरिका उन देशों के साथ बातचीत कर रहा है जो अफगानिस्तान की सीमा पर 'क्षितिज के ऊपर' आतंकवाद विरोधी अभियानों के आवास के बारे में बात कर रहे हैं, जो अमेरिकी सेना को तालिबान-नियंत्रित राष्ट्र में अधिक आसानी से सर्वेक्षण करने और लक्ष्य पर हमला करने की अनुमति देगा, अमेरिकी समाचार पोर्टल पोलिटिको ने सीनेटरों का हवाला देते हुए रिपोर्ट किया है जो एक में शामिल हुए थे। इस सप्ताह पेंटागन के नेताओं के साथ वगीर्कृत सुनवाई। उन्होंने कहा कि उन साइटों में उन देशों में रूस द्वारा चलाए जा रहे ठिकाने शामिल हो सकते हैं।
सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के समक्ष मंगलवार को सार्वजनिक रूप से गवाही देने के बाद, सेना के शीर्ष अधिकारियों की तिकड़ी ने बंद दरवाजों के पीछे सांसदों को ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और अन्य की सरकारों के साथ होने वाली चर्चाओं के बारे में जानकारी दी, सीनेटरों ने पोलिटिको को बताया।
मंगलवार को सांसदों के सामने यह खुलासा रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने स्वीकार किया कि अमेरिका ने रूस से मध्य एशिया में रूसी सैन्य ठिकानों पर अमेरिकी आतंकवाद विरोधी अभियानों की मेजबानी करने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से एक प्रस्ताव के बारे में 'स्पष्टीकरण' के लिए कहा है।
इंडियानैरेटिव ने पहले भी रिपोर्ट किया था कि रूस ने अमेरिका को इस क्षेत्र में अपने सैन्य ठिकानों का उपयोग करने की पेशकश की थी। मॉस्को भी मध्य एशियाई गणराज्यों में फैल रहे आतंकवाद से चिंतित है, जिसके साथ रूस सीमा साझा करता है। ये देश अफगानिस्तान के खिलाफ रूस के लिए एक बफर भी बनाते हैं।
वर्गीकृत सत्र के दौरान, सीनेटरों को बताया गया कि उस विकल्प पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है, सांसदों ने कहा। यू.एस. सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल केनेथ मैकेंजी ने विशिष्ट प्रकार के विमानों और लॉन्चिंग पॉइंट्स के बारे में विस्तार से बताया, जिनका उपयोग अफगानिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर हमला करने के लिए किया जा सकता है।
सीनेटरों ने ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने भी सीनेटरों को अपने रूसी समकक्ष वालेरी गेरासिमोव के साथ बातचीत की प्रकृति के बारे में बताया।
पोलिटिको की रिपोर्ट में सीनेट के सशस्त्र सेवा अध्यक्ष जैक रीड के हवाले से कहा गया है, "यह उनका क्षेत्र है। लेकिन मुझे लगता है, वास्तव में, रूस का वहां प्रभाव है और इसलिए रूस के पास वीटो नहीं हो सकता है, लेकिन उनका निश्चित रूप से प्रभाव है तो आपको उनसे बात करनी है।"
अमेरिका ने तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान में खाड़ी देशों में अपने ठिकानों से दो ड्रोन हमले किए हैं। हालांकि, इन्हें कुशल कार्रवाई के लिए बहुत दूर माना जाता है, क्योंकि ड्रोन की उड़ान अवधि क्षमता का अधिकांश हिस्सा स्ट्राइक जोन में उड़ान भरने और फिर वापस बेस पर बर्बाद हो जाता है।
बैंकॉक, 30 सितम्बर | देश के आपदा नियंत्रण अधिकारियों ने गुरुवार को यह जानकारी दी है कि उष्णकटिबंधीय तूफान डियानमु के कारण आई भारी बाढ़ ने थाईलैंड के लगभग आधे प्रांतों को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसमें से सात लोगों की मौत और एक लापता है। आपदा निवारण और शमन विभाग (डीडीपीएम) के अनुसार, दक्षिण पूर्व एशियाई देश के 31 प्रांतों में भारी बारिश हुई, जिससे अब तक 220,000 से अधिक घर प्रभावित हुए हैं।
डीडीपीएम ने यह भी कहा कि प्रभावित प्रांतों में से 13 में स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन अन्य 18 प्रांतों में स्थिति गंभीर बनी हुई है।
बैंकॉक मेट्रोपॉलिटन एडमिनिस्ट्रेशन (बीएमए) ने गुरुवार को चेतावनी दी कि चाओ फ्राया नदी का जल स्तर अगले कुछ दिनों में बढ़ने का अनुमान है, जिससे नदी के किनारे सात जिलों के लोगों को संभावित बाढ़ के लिए तैयार रहने को कहा गया है।
स्थानीय मीडिया ने बैंकॉक के गवर्नर अश्विन क्वानमुआंग के हवाले से कहा कि चाओ फ्राया नदी का स्तर वर्तमान में राजधानी भर में बाढ़ तटबंध के शीर्ष से काफी नीचे है, जिससे आस-पास के घरों को कोई नुकसान नहीं हुआ है। (आईएएनएस)
-सेलिया हैटन
चीन वैश्विक स्तर पर विकास के कामों के लिए अमेरिका और दुनिया के दूसरे कई प्रमुख देशों की तुलना में लगभग दोगुनी धनराशि ख़र्च करता है.
साक्ष्य दिखाते हैं कि इनमें से ज़्यादातर धनराशि राष्ट्रीय बैंकों से उच्च ब्याज दर के जोख़िम पर ऋण के रूप में ली जाती है.
ऋण की राशि चौंकाने वाली है.
बहुत पुरानी बात नहीं है जब चीन को विदेशी सहायता मिलती थी लेकिन अब बात पूरी तरह से अलग है.
अमेरिका में वर्जीनिया के विलियम एंड मैरी यूनिवर्सिटी स्थित एडडाटा रिसर्च लैब के अनुसार, 18 साल की समयावधि में चीन ने 165 देशों में 13,427 परियोजनाओं के लिए क़रीब 843 बिलियन डॉलर की धनराशि या तो निवेश के रूप में लगायी है या फिर ऋण के तौर पर दिया है.
इस धनराशि का एक बड़ा हिस्सा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना से संबंधित है. इस परियोजना के तहत चीन नए वैश्विक व्यापार मार्गों का निर्माण कर रहा है जिसमें उसने बड़ी धनराशि का निवेश किया है.
चीन की महत्वाकांक्षा
एडडाटा के शोधकर्ता ने चीन के सभी वैश्विक ऋण, ख़र्च और निवेश की जानकारी जुटाने में चार साल का समय लगाया है. उनका कहना है कि चीन सरकार के मंत्रालय नियमित रूप से इस बात की जानकारी रखते हैं कि विदेशों में चीन की धनराशि का इस्तेमाल कैसे किया जा रहा है.
एडडाटा के कार्यकारी निदेशक ब्रैड पार्क्स बताते हैं, "हम चीन में अधिकारियों को हर समय यह कहते सुनते हैं कि 'देखो, यह एकमात्र विकल्प है.'
चीन और उसके पड़ोसी देश लाओस के बीच चलने वाली रेल चीन के 'ऑफ़-द-बुक' उधार देने का एक प्रमुख उदाहरण माना जाता है.
दशकों तक, राजनेता इस तरह के संबंध बनाने के बारे में सोचते रहे कि वे कैसे दक्षिण-पश्चिम चीन को सीधे दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ें.
हालांकि इंजीनियर पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि इसकी लागत बहुत अधिक होगी, खड़ी पहाड़ियों में पटरियों का निर्माण करना होगा, सैकड़ों पुल और सुरंगें बनानी होंगी.
लाओस इस क्षेत्र के सबसे ग़रीब देशों में से एक है और इस परियोजना की लागत का एक हिस्सा भी वह नहीं दे सकता है. बावजूद इसके महत्वाकांक्षी बैंकरों और चीन के ऋणदाताओं के एक संघ के समर्थन के साथ 5.9 बिलियन डॉलर में तैयार यह रेलवे दिसंबर से शुरू हो जाएगा.
हालांकि लाओस को अपनी हिस्सेदारी के तहत कम ही सही, लेकिन भुगतान करना पड़ा. लेकिन अपना हिस्सा देने के लिए लाओस को एक चीनी बैंक से 480 मिलियन डॉलर का ऋण लेना पड़ा. लाओस के पास लाभ कमाने के संसाधन बेहद सीमित हैं (जैसे पोटास की खानें इत्यादि), पर इनसे होने वाले मुनाफ़े का एक बड़ा हिस्सा चीन का लोन चुकाने में गया.
हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में सहायक प्रोफ़ेसर वानझिंग केली चेन बताते हैं, "हिस्सेदारी के तहत चीन के बैंक ने जो लोन दिया है, वह वास्तव में परियोजना के माध्यम से चीन के आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा को दर्शाता है."
लोन डिप्लोमेसी
ज़्यादातर रेलवे लाइन चीनी-प्रभुत्व वाले रेलवे समूह के स्वामित्व में हैं, लेकिन सौदे की संदिग्ध शर्तों के तहत लाओस की सरकार ही अंततः क़र्ज़ के लिए ज़िम्मेदार है.
इस असंतुलित सौदे का परिणाम यह हुआ है कि अंतरराष्ट्रीय लेनदार लाओस की क्रेडिट रेटिंग को "जंक" (डाउनग्रेड) करने पर विचार कर रहे हैं.
सितंबर 2020 में लाओस दिवालिया होने की कगार पर पहुंच हो गया था. ऐसे में इस स्थिति से निपटने के लिए लाओस ने चीन को एक बड़ी संपत्ति बेच दी. चीन के लेनदारों से लिए ऋण में राहत लेने के लिए लाओस ने अपने पावर ग्रिड का एक हिस्सा 600 मिलियन में सौंप दिया.
यह सब रेलवे के संचालन शुरू होने से पहले का घटनाक्रम है.
एडडाटा का कहना है कि चीन कई ग़रीब और मध्यम आय वाले देशों के लिए फ़ाइनेंसर की भूमिका में है.
ब्रैड पार्क्स कहते हैं कि औसतन एक वर्ष में चीन अपनी अंतरराष्ट्रीय विकास परियोजनाओं के लिए ज़रूरी वित्त प्रतिबद्धताओं के तहत लगभग 85 बिलियन डॉलर लगाता है. जबकि अमेरिका वैश्विक स्तर पर जारी विकास गतिविधियों के लिए औसतन एक वर्ष में लगभग 37 बिलियन डॉलर ख़र्च कर रहा है."
एडडाटा का कहना है कि चीन ने विकास से जुड़ी गतिविधियों को आर्थिक सहायता देने के मामले में दुनिया के अन्य देशों को काफी पीछे छोड़ दिया है.
इससे पहले, पश्चिमी देश अफ्ऱीकी देशों को कर्ज़ में घसीटने के दोषी थे लेकिन चीन अलग तरह से उधार दे रहा है.
किसी प्रोजक्ट के लिए पैसे देने की जगह पैसा देने या उधार देने की बजाय, वह लगभग सारा पैसा बैंकिंग ऋण के रूप में दे रहा है.
ऐसे ऋण सरकारी ऋण के आधिकारिक खातों में दिखाई नहीं देते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय बैंकों के बहुत सारे सौदों में केंद्र सरकार के संस्थानों का नाम नहीं होता है और इस तरह के सौदों को सरकारी बैलेंस शीट से दूर रखा जाता है. इसके साथ ही कई गोपनीयता नियम भी होते हैं.।
एडडाटा का अनुमान है कि यह लोन क़रीब 385 बिलियन डॉलर तक हो सकता है.
कई बार लोन देने के क्रम में अपने सहायक से असामान्य मांग करता है. कई बार उन्हें प्राकृतिक संसाधनों को बेचकर प्राप्त धनराशि से लोन चुकाने का वादा करना पड़ता है.
वेनेज़ुएला के साथ हुई डील इसी का उदाहरण है. इस सौदे में मांग की गई कि कर्ज़दार को तेल बेचकर मिली विदेशी मुद्रा सीधे चीन नियंत्रित बैंक में जमा करानी होगी, ताकि यदि कोई भुगतान में चूक जाता है तो लोन देने वाले चीनी ऋणदाता उस खाते में रखे नक़द से पैसे ले सकते हैं.
ब्रैड पार्क कहते हैं "यह वास्तव में ब्रेड-एंड-बटर रणनीति के जैसा लगता है जिसके अनुरूप वे अपने उधारकर्ता को यह साफ़ संकेत देते हैं कि वे कितने बड़े हैं.
वंडर्स एना गेल्पर्न क़ानून के प्रोफेसर हैं, जो इस साल की शुरुआत में चीन के विकास से जुड़े लोन अनुबंधों की जांच करने वाले एडडाटा अध्ययन में शामिल हुए. वह कहते हैं, "क्या चीन स्मार्ट हो रहा है? हमारा निष्कर्ष यह है कि अपने हितों की पूरी तरह से रक्षा कर रहा है."
गेलपर्न कहते हैं, ''यह उम्मीद करना व्यावहारिक नहीं है कि अगर वे (क़र्ज़ लेने वाले देश) अपने कर्ज़ का भुगतान करने में असमर्थ हैं, तो वे अपनी भौतिक संपत्ति जैसे कोई बंदरगाह या फिर कुछ और चीन को सौंप देंगे.''
चीन को आने वाले समय में हो सकता है कि कुछ प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़े.
जून में जी-7 देशों की बैठक में, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने घोषणा की कि जी-7 ने चीन के प्रभाव को कम करने के लिए 'ख़र्च करने' की योजना को अपनाया है, जो वैश्विक परियोजनाओं को आर्थिक सहायता देगी.
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के सीनियर फ़ेलो और चीन में पूर्व अमेरिकी ट्रेज़री प्रतिनिधि डेविड डॉलर कहते हैं, "मुझे संदेह है कि पश्चिमी देशों का यह प्रयास चीन को बहुत अधिक प्रभावित कर सकेगा."
एडडाटा शोधकर्ताओं ने पाया कि बेल्ट एंड रोड परियोजना कुछ मुद्दों पर स्वयं के स्तर पर ही चुनौती का सामना करती दिख रही है. चीन के विकास संबंधित दूसरे सौदों की तुलना में इस परियोजना में भ्रष्टाचार, श्रम घोटाला और पर्यावरणीय मुद्दों के कारण चुनौतियां पेश आयीं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि बीआरआई परियोजना सही से आगे बढ़े इसके लिए बीजिंग के पास क़र्ज़दारों की चिंताओं को दूर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं.
रूस और पाकिस्तान के बीच क़रीबी बढ़ रही है. इसे भारत और रूस के रिश्तों में आई दूरियों के नतीजे के तौर पर भी देखा जा रहा है.
रूसी समाचार एजेंसी ताश के अनुसार रूसी और पाकिस्तानी रक्षा मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि दोनों मुल्क रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार हैं. ताश के अनुसार बुधवार को रूसी उप-रक्षा मंत्री एलेक्जेंडर फ़ोमिन ने इस्लामाबाद में द्विपक्षीय सैन्य संपर्क समिति की एक बैठक में ये बात कही है.
फ़ोमिन ने कहा, ''वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने पारस्परिक हितों वाले संबंधों में हुई प्रगति की प्रशंसा की और सैन्य सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं.''
ताश के अनुसार, रूस और पाकिस्तान में द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर सरगर्मी बढ़ी है. फ़ोमिन ने कहा कि दोनों मुल्कों के बीच बढ़ते संबंध और रक्षा सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए काफ़ी अहम है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान उन कुछ मुल्कों में से एक है, जहाँ ने महामारी के बावजूद पूर्व-नियोजित कार्यक्रमों में कोई कटौती नहीं की. फ़ोमिन ने कहा कि पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के रिश्तों में काफ़ी गति आई है और रक्षा सहयोग को लेकर अहम सहमति बनी है.
इससे पहले 14सितंबर को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अफ़ग़ानिस्तान में बदलते हालात को लेकर फ़ोन पर बात की थी.
एक महीने से भी कम समय में दोनों नेताओं के बीच दो बार फ़ोन पर बात हुई थी.
इससे पहले 25अगस्त को दोनों नेताओं के बीच फ़ोन पर बात हुई थी. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने पुतिन से हुई बातचीत पर एक बयान जारी कर कहा था कि दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच एससीओ यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन में सहयोग बढ़ाने को लेकर बात हुई है.
इमरान ख़ान ने कहा था कि पाकिस्तान रूस से रिश्तों में गर्मजोशी लाने के लिए प्रतिबद्ध है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा था कि व्यापार और निवेश के मामले में दोनों देशों के बीच व्यापक संभावनाएं हैं और पाकिस्तान रूस के साथ गैस पाइप लाइन प्रोजेक्ट जल्द ही पूरा करना चाहता है.
इसी साल अप्रैल महीने में रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोफ़ पाकिस्तान गए थे. वहीं पिछले साल पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने रूस का दौरा किया था. सर्गेइ लावरोफ का पाकिस्तान दौरा पिछले नौ सालों में पहली बार किसी रूसी विदेश मंत्री का दौरा था.
सर्गेइ लावरोफ और पाकिस्तान के विदेश मंत्री की ओर से इस दौरे में एक साझा बयान जारी किया गया था. बयान में कहा गया था कि रूस पाकिस्तान को सैन्य आपूर्ति में भी मदद करेगा. इसके अलावा दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास पर भी सहमति बनी थी. (bbc.com)
फ़ूमियो किशीडा जापान के अगले प्रधानमंत्री होंगे. पहले वो देश के विदेश मंत्री रह चुके हैं.
किशीडा ने अपनी पार्टी और देश की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के अंदर के इस मुक़ाबले में टारो कोनो को हराया है.
चुनाव से पहले, टारो कोनो को पार्टी का सबसे पसंदीदा उम्मीदवार माना जा रहा था.
फ़ूमियो किशीडा मौज़ूदा प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा की जगह लेंगे. सुगा ने एक साल प्रधानमंत्री रहने के बाद अपने पद से हटने का फ़ैसला किया.
उन्होंने कोरोना महामारी से अच्छे से न निपटने के चलते लोकप्रियता में आई गिरावट के चलते पद छोड़ने का फ़ैसला लिया.
किशीडा का लंबे समय से प्रधानमंत्री बनने का लक्ष्य था, लेकिन पिछले साल के चुनाव में वो सुगा से हार गए थे. संसद में एलडीपी का बहुमत देखते हुए प्रधानमंत्री के रूप में किशीडा की स्थिति मजबूत है.
नए प्रधानमंत्री की चुनौतियां
नए प्रधानमंत्री को कई कठिन मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है. इन मामलों में कोरोना महामारी के बाद आर्थिक सुधार और उत्तर कोरिया की ओर से ख़तरों का सामना करना आदि शामिल हैं.
महामारी से निपटने के लिए उन्होंने "स्वास्थ्य संकट प्रबंधन संस्था" बनाने का आह्वान किया है. किशीडा ने चीन की सरकार के वीगर अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हो रहे व्यवहार की निंदा करने वाले प्रस्ताव को पारित करने का भी सुझाव दिया है.
अपनी जीत के बाद किशीडा ने कहा, "मेरी कुशलता लोगों की बातें सुनना है. मैं सबको साथ लेकर चलने वाली एलडीपी और देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए सभी के साथ काम करना चाहता हूँ." (bbc.com)
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन ने कहा है कि वो दक्षिण कोरिया के साथ सुलह की कोशिश के लिए उसके साथ हॉटलाइन बहाल करने को तैयार हैं.
उनका ताज़ा बयान उत्तर कोरिया की संसद के सालाना सत्र के दौरान आया. उत्तर कोरिया ने इस साल अगस्त में अमेरिका के साथ दक्षिण कोरिया के सैन्य अभ्यास करने पर इस हॉटलाइन को बंद कर दिया था.
संसद सत्र के दौरान किम जोंग-उन ने अमेरिका पर आरोप लगाया है कि उसने उत्तर कोरिया के प्रति अपनी "शत्रुतापूर्ण नीति" बदले बिना ही बातचीत का प्रस्ताव दिया है.
दक्षिण कोरिया पर मेहरबान, पर अमेरिका पर निशाना
सरकारी समाचार संस्था केसीएनए ने किम जोंग-उन के हवाले से बताया, "अमेरिका 'राजनयिक जुड़ाव' की बात कर रहा है, लेकिन ये अंतरराष्ट्रीय समुदाय को धोखा देने और अपने शत्रुतापूर्ण कामों को छिपाने की छोटी सी चाल है. ये अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगातार अपनाई गई शत्रुतापूर्ण नीतियों का ही विस्तार है."
हालांकि किम जोंग-उन दक्षिण कोरिया के साथ शांति का सशर्त प्रस्ताव बढ़ाते देखे गए.
केसीएनए की रिपोर्ट में कहा गया, "किम जोंग-उन ने कोरिया के दोनों देशों के बीच की हॉटलाइन को अक्टूबर से पहले बहाल करने की इच्छा जाहिर की है. लेकिन अब ये दक्षिण कोरिया के अधिकारियों के रवैये पर निर्भर करता है कि दोनों देशों के संबंधों को बहाल किया जाता है या वर्तमान स्थिति को यूं ही बिगड़ते रहने दिया जाएगा.'' (bbc.com)
ट्यूनिस, 30 सितम्बर | ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति कैस सईद ने बुधवार को राष्ट्रपति पद के अनुसार नई सरकार बनाने वाली नजला बोडेन रोमधाने को अपने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, नए सरकार के प्रमुख को संबोधित करते हुए सईद ने घोषणा की कि "देश जिस असाधारण स्थिति से गुजर रहा है, उसे देखते हुए मैंने आपको एक नई सरकार बनाने का काम सौंपने का फैसला किया है।"
सईद ने कहा, "आप हमारे देश के इतिहास में सरकार की पहली महिला मुखिया हैं।"
सईद ने कहा, "हम भ्रष्टाचार को खत्म करने और अराजकता को खत्म करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ मिलकर काम करेंगे।"
राष्ट्रपति ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि आप पिछले असाधारण उपायों के प्रावधानों के अनुसार आने वाले घंटों या दिनों में सरकार के गठन का प्रस्ताव देने में कामयाब होंगे।"
सईद ने कहा कि नई सरकार की मुख्य प्राथमिकताओं में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, लोगों के मौलिक अधिकारों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन के अधिकार की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देना शामिल है।
1958 में जन्मी, नव नियुक्त प्रधानमंत्री ट्यूनिस के नेशनल इंजीनियरिंग स्कूल में एक अकादमिक थी और ट्यूनीशियाई उच्च शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय में विश्व बैंक कार्यक्रम निष्पादन अधिकारी के पद पर भी रह चुकी हैं। (आईएएनएस)
चिली की संसद ने एक कानून पास किया है जिसके तहत निजी पहचान, इच्छा और मानसिक निजता को अधिकारों का दर्जा दिया गया है. ऐसा करने वाला चिली दुनिया का पहला देश बन गया है.
डॉयचे वेले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
चिली ने एक ऐसा कानून पास किया है जिसके तहत किसी व्यक्ति की मानसिक निजता और उसकी इच्छा उसका अधिकार होगी. इस कानून के जरिए न्यूरोटेक्नोलॉजी के जरिए किसी व्यक्ति को नियंत्रित करके कुछ करवाना अपराध बना दिया गया है. राष्ट्रपति के दस्तखत होने के बाद इसे कानून का औपचारिक दर्जा मिल जाएगा.
न्यूरोटेक्नोलॉजी के बारे में दुनिया में पहली बार कहीं कोई कानून पास हुआ है. यह बिल पिछले साल ही चिली की संसद के ऊपरी सदन सेनेट से पास हो गया था. बुधवार को निचले सदन से भी इसे मंजूरी मिल गई.
‘अहम शुरुआत'
विशेषज्ञ इस कानून को अहम मान रहे हैं क्योंकि यह भविष्य में मानवाधिकारों की रक्षा का आधार बन सकता है. न्यूरोटेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल ने इस कानून को अहमियत दी है.
कानून पास कराने से पहले संसद में इस पर लंबी-चौड़ी बहस हुई. इस कानून के सबसे प्रबल समर्थकों में से एक सेनेटर गीडो जिरार्डी ने कहा कि इसका मकसद इंसान के आखरी मोर्चे, उसकी सोच की रक्षा करना है,
ट्विटर पर जिरार्डी ने कहा, "हम खुश हैं कि तकनीक को इंसानियत की भलाई के लिए किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए, उसे परखने की शुरुआत हो रही है.”
मई में जब यह कानून लाया गया था तब जिरार्डी ने दावा किया था कि यदि न्यूरोटेक्नोलॉजी को नियमित नहीं किया गया तो यह "मनुष्य की स्वायत्तता और सोचने की आजादी” के लिए खतरा बन सकती है. मीडिया में जारी एक बयान में उन्होंने कहा था, "अगर यह तकनीक आपके सोचने से पहले ही (आपके दिमाग को) पढ़ने में कामयाब हो जाती है, तो यह ऐसी भावनाएं पैदा कर सकती है जो आपकी जिंदगी में हैं ही नहीं.”
क्यों जरूरी है ऐसा कानून?
इस कानून के जरिए चिली न्यूरोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हो रहे आधुनिक तकनीकी विकास के मोर्चे पर सबसे आगे रहने की कोशिश कर रहा है. कोलंबिया यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर रफाएल युस्ते इस क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी विशेषज्ञों में गिने जाते हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि न्यूरोलॉजी कितना अधिक विकास कर चुकी है.
प्रोफेसर युस्ते कहते हैं कि शोधकर्ता चूहों के मस्तिष्क में ऐसी चीजों की छवियां प्लांट करने में सफल हो चुके हैं जिन्होंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा और इन छवियों ने चूहों के व्यवहार को प्रभावित किया.
इस तरह की तकनीकों ने विशेषज्ञों को चिंतित भी किया है क्योंकि इनका इस्तेमाल लोगों के मस्तिष्क में चल रही सोच को पढ़ने और उसे बदलने के लिए किया जा सकता है.
चिली के चैंबर ऑफ डेप्यटूजी ने एक बयान में कहा कि इसीलिए यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि वैज्ञानिक और तकनीकी विकास लोगों की भलाई के लिए हो और शोध करते वक्त मानव जीवन के साथ साथ मानव की शारीरिक व मानसिक निष्ठा का सम्मान किया जाए.
पिछले कुछ सालों में न्यूरोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है. हालांकि इसका मकसद आमतौर पर मानसिक बीमारियों जैसे पारकिन्सन्स और एपिलेप्सी आदि का इलाज रहा है. वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि मस्तिष्क को किसी तरह अपने हिसाब से चलाया जा सके.
कहां तक पहुंच चुकी है तकनीक?
ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक यूके में हर 500 में से एक व्यक्ति पारकिन्सन्स बीमारी से पीड़ित है जबकि 34 लाख लोग एपिलेप्सी के शिकार हैं.
अमेरिका में ‘ब्रेन' नाम की एक योजना के जरिए मस्तिष्क में होने वाली बीमारियों को समझने की कोशिश की जा रही है. इसमें उद्योगपति इलॉन मस्क समर्थित न्यूरालिंक कॉरपोरेशन भी है जिसने दावा किया है कि उसे बंदरों और सूअरों के मस्तिष्क में सेंसर प्लांट करने में कामयाबी मिली है.
लकवाग्रस्त लोगों की कंप्यूटर और फोन का इस्तेमाल करने में मदद के लिए किए जा रहे एक प्रयोग में दिखाया गया कि एक बंदर सिर्फ अपने मस्तिष्क से सिग्नल भेजकर बिना छुए ही वीडियो गेम खेल सकता था.
कंपनी ने कहा कि उसकी तकनीक डिमेंशिया और पीठ में चोट के कारण पैरालिसिस जैसी स्थिति में काम आ सकती है. (dw.com)
इक्वाडोर की सबसे कुख्यात जेलों में से एक में हुए दंगे में कम से कम 100 लोग मारे गए और 52 घायल हो गए. यह देश की अधिक आबादी वाली और कम कर्मचारी वाली जेल में घातक संघर्षों की कड़ी में ताजा घटना थी.
इक्वाडोर के तटीय शहर ग्वायाक्विल में बुधवार को जेल में हुए दंगे में कम से कम 100 लोग मारे गए और 52 अन्य घायल हो गए. देश की जेलों में जानलेवा झड़प की यह ताजा घटना है. सेना ने जेल परिसर की घेराबंदी कर दी है.
इक्वाडोर की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी भरे हैं और भीड़भाड़ के कारण हुई श्रृंखलाबद्ध झड़पों में यह सबसे ताजा है. इस झड़प में कम से कम छह लोगों के सिर भी काट दिए गए.
जेल में गैंगवार
अधिकारियों का कहना है कि दो विपक्षी गैंग लॉस लोबोस और लॉस चनेरोस से संबंधित सशस्त्र बंदियों के बीच मंगलवार को झड़पें हुईं. झड़प के दौरान दोनों गुटों के लोगों ने बंदूकों, चाकुओं और विस्फोटकों का इस्तेमाल किया.
कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने वाले राष्ट्रीय संगठन एसएनएआई के प्रमुख बोलिवर गार्जोन ने कहा कि वह आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या पर तुरंत टिप्पणी नहीं कर सकते.
स्थानीय समाचार एजेंसी नोटी मंडो ने गार्जोन के हवाले से कहा, "मुझे लगता है कि मरने वालों की संख्या 100 तक पहुंचने वाली है, मैं कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं दे सकता."
हालांकि राष्ट्रीय अभियोजक कार्यालय ने बाद में ट्वीट किया कि 100 से अधिक लोग मारे गए और 52 घायल हुए.
टेलीविजन फुटेज में कैदियों को गोलियां चलाते और जेल की खिड़कियों से बम फेंकते हुए दिखाया गया.
ग्वायाक्विल शहर के पुलिस प्रमुख फाबियन बस्टोस ने कहा, "शुक्र है कि पुलिस (जेल में प्रवेश कर गई) और अधिक हत्याएं रोक दी गईं." उन्होंने कहा कि पुलिस पर भी बंदूकों से हमला किया गया था.
बस्टोस ने पत्रकारों को बताया कि पुलिस और सैन्य अभियानों ने पांच घंटे बाद जेल पर कब्जा कर लिया. उन्होंने बताया कि कई हथियार भी बरामद किए गए हैं.
आपातकाल की घोषणा
इक्वाडोर की जेल व्यवस्था बेहद खराब है. वे संघर्ष के कारण युद्ध का मैदान बन गए हैं. मादक पदार्थों की तस्करी करने वाले गिरोह के कैदियों के बीच जेलों में झड़प आम बात है.
इस साल अब तक जेल की झड़पों में 120 से ज्यादा कैदी मारे जा चुके हैं.
जेल अधिकारियों का कहना है कि इस महीने की शुरुआत में ग्वायाक्विल में जेल नंबर 4 पर एक ड्रोन हमला अंतरराष्ट्रीय समूहों के बीच लड़ाई से हुआ था. हमले में कोई भी नहीं मारा गया था.
इसके अलावा फरवरी में ग्वायाक्विल समेत तीन जेलों में दंगे हुए, जिसमें कम से कम 79 कैदी मारे गए. उनमें से कई का सिर कलम कर दिया गया था.
देश की जेलों में झड़पों और दंगों के मद्देनजर, राष्ट्रपति गुयलेरमो लासो ने जुलाई में जेल व्यवस्था में आपातकाल की स्थिति का आदेश दिया.
इक्वाडोर में 29,000 कैदियों की क्षमता वाली लगभग 60 जेल हैं, लेकिन कैदियों की संख्या जेल कर्मचारियों की तुलना में बहुत अधिक है.
एए/वीके (एएफपी, एपी)
लंबे समय से डिप्रेशन का शिकार मरीजों पर ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि जो लोग दवाएं छोड़ना चाहते हैं, उनके लिए भी ऐसा करना कितना मुश्किल होता है.
ब्रिटेन में शोधकर्ताओं ने लंबे समय से डिप्रेशन की दवाएं ले रहे मरीजों पर शोध किया है. इस शोध में सामने आया कि जिन मरीजों ने धीरे-धीरे दवा छोड़ने की कोशिश भी की, उनमें से आधे एक साल के भीतर ही दोबारा डिप्रेशन का शिकार हो गए. इसके उलट जिन लोगों ने दवाएं नहीं छोड़ीं, उनमें दोबारा डिप्रेशन होने की संभावना लगभग 40 प्रतिशत रही.
दोनों समूहों के मरीज डिप्रेशन के लिए रोजाना दवा ले रहे थे और हाल ही में आए अवसाद से उबरकर स्वस्थ महसूस कर रहे थे. ये सभी मरीज दवाएं छोड़ने के बारे में सोचने लायक स्वस्थ महसूस कर रहे थे.
पहले भी ऐसे अध्ययन हो चुके हैं कि डिप्रेशन का लौट आना आम बात है. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे एक संपादकीय में कहा गया है कि जिन लोगों को कई बार अवसाद हो चुका है उनके लिए उम्रभर खाने के लिए दवाएं लिखी जा सकती हैं.
कैसे छूटे दवा?
जो मरीज दवाएं छोड़ना चाहते हैं उनके लिए काउंसलिंग और व्यवहार थेरेपी के विकल्प हैं. कई अध्ययन दिखा चुके हैं कि दवा के साथ इस तरह की थेरेपी काफी मरीजों के लिए फायदेमंद साबित होती है. लेकिन ये थेरेपी काफी महंगी होती हैं और जिन देशों में पब्लिक हेल्थ सिस्टम के तहत उपलब्ध हैं वहां लाइन बहुत लंबी हैं.
मुख्य शोधकर्ता यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की जेमा लुइस कहती हैं कि ब्रिटेन में डिप्रेशन के मरीजों का इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ही कर रहे हैं.
डिप्रेशन या अवसाद मूड से जुड़ी बीमारी है. इस बीमारी में मरीज लगातार उदास और निराश महसूस करता है और सामान्य गतिविधियों में उसकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 5 प्रतिशत लोगों में इस बीमारी के लक्षण पाए जाते हैं.
लुइस कहती हैं कि ब्रिटेन में डिप्रेशन के दर्ज मामले अमेरिका के मुकाबले कम हैं लेकिन डिप्रेशन आंकने के अलग-अलग तरीकों के चलते विभिन्न देशों के बीच डिप्रेशन के मरीजों की तुलना मुश्किल हो जाती है.
ज्यादातर को नहीं हुआ दोबारा डिप्रेशन
शोध में इंग्लैंड के चार शहरों के 478 मरीजों को शामिल किया गया था. इनमें से ज्यादातर प्रौढ़ श्वेत महिलाएं थीं. ये सभी सामान्य एंटी डिप्रेसेंट दवाएं ले रही थीं जिन्हें सिलेक्टिव सेरोटोनिन रेप्युटेक इन्हीबिटर्स कहा जाता है. प्रोजैक और जोलोफ्ट जैसी दवाएं इसी श्रेणी में आती हैं.
शोध में शामिल आधे मरीजों को धीरे-धीरे दवा छोड़ने को कहा गया जबकि बाकियों की दवाओं में कोई बदलाव नहीं किया गया. शोधकर्ता इस बात पर निश्चित नहीं हैं कि अन्य दवाएं ले रहे मरीजों में भी ऐसे ही नतीजे मिलेंगे या नहीं.
दवा छोड़ने वालों में से 56 प्रतिशत मरीज शोध के दौरान ही दोबारा डिप्रेशन का शिकार हो गए. लुइस कहती हैं कि दवाएं न छोड़ने वालों को मिला लिया जाए तो ज्यादातर लोग दोबारा डिप्रेशन के शिकार नहीं हुए.
वह कहती हैं, "ऐसे बहुत से लोग हैं जो दवाएं लेना जारी रखना चाहेंगे और हमारे शोध से पता चलता है कि उनके लिए यह एक सही फैसला है.”
संपादकीय लिखने वाले मिलवाकी वेटरंस अफेयर्स मेडिकल सेंटर के डॉ. जेफरी जैक्सन ने इस शोध के नतीजों को अहम लेकिन निराशाजनक बताया. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के लिए दवा छोड़ना संभव है.
उन्होंने लिखा, "जिन लोगों को एक ही बार डिप्रेशन हुआ है, खासकर जीवन में घटी किसी घटना के कारण, मैं उन्हें छह महीने के इलाज के बाद दवा कम करने को प्रोत्साहित करता हूं.”
वीके/एए (एपी)
मोहिबुल्लाह रोहिंग्या शरणार्थियों के संघर्ष को उजागर करने के अपने अथक प्रयास के लिए जाने जाते थे. 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा हमले के बाद लाखों शरणार्थी बांग्लादेश भागने के लिए मजबूर हुए थे.
संयुक्त राष्ट्र के एक प्रवक्ता ने कहा कि दुनिया के मंच पर रोहिंग्या शरणार्थियों की पीड़ा को आवाज देने वाले सबसे मशहूर नेताओं में से एक की बुधवार को दक्षिणी बांग्लादेश में एक शरणार्थी शिविर में गोली मारकर हत्या कर दी गई.
करीब 40 वर्षीय मोहिबुल्लाह 2017 में म्यांमार में एक सैन्य कार्रवाई से भागे रोहिंग्या समुदाय के कल्याण के लिए एक शिक्षक और उत्साही समर्थक थे. उस दौरान करीब सात लाख से अधिक लोगों को पड़ोसी बांग्लादेश में भागने के लिए मजबूर किया गया था.
उनमें से ज्यादातर दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी कैंप कॉक्स बाजार में एक साथ रहते हैं. हाल के समय में कैंपों में हिंसा के मामले तेजी से बढ़े हैं. हथियारबंद लोग अक्सर प्रभाव के लिए संघर्ष करते हैं. आलोचकों का अपहरण कर लिया जाता है और रूढ़िवादी इस्लामी फरमान को तोड़ने के खिलाफ महिलाओं को चेतावनी भी दी जाती है.
मौत का मातम
मोहिबुल्लाह के कार्यालय में काम करने वाले एक व्यक्ति ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि वह शाम की नमाज के बाद अपने कार्यालय के बाहर कुछ अन्य शरणार्थियों से बात कर रहे थे जब उन्हें बुधवार को गोली मार दी गई. वहीं एक अज्ञात व्यक्ति ने उन पर कम से कम तीन बार फायरिंग की.
उन्होंने कहा, "उन पर घात लगाकर हमला किया गया और करीब से उन पर गोलियां चलाई गईं." फायरिंग से कई अन्य रोहिंग्या शरणार्थियों को डर के कारण वहां से भागने पर मजबूर होना पड़ा. बाद में उन्हें शिविर के ही एक अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया
मोहिबुल्लाह थे उम्मीद की किरण
इलाके के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रफीक इस्लाम ने हत्या की पुष्टि की लेकिन अधिक जानकारी देने से इनकार करते हुए कहा कि अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) के एक प्रवक्ता ने मोहिबुल्लाह की मौत पर गहरा दुख और खेद जताया है.
प्रवक्ता ने कहा, "हम शिविरों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ लगातार संपर्क में हैं."
दक्षिण एशिया में वैश्विक मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने भी मोहिबुल्लाह की मौत पर गहरी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि उनकी आवाज समुदाय के लिए महत्वपूर्ण थी और इससे समुदाय को अपूरणीय क्षति हुई है.
संगठन ने घटना की पूरी जांच की मांग करते हुए कहा कि बांग्लादेशी अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी को रोहिंग्या शरणार्थियों की रक्षा के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है. संगठन ने पिछले साल भी रोहिंग्या शरणार्थियों की सुरक्षा के बारे में भी चिंता व्यक्त की थी और अतिरिक्त उपाय करने का आह्वान किया था.
बांग्लादेश में शरण लेने वाले अधिकांश रोहिंग्या मुसलमानों ने कॉक्स बाजार कैंप में शरण ली है और इसे दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर कहा जाता है. ये सभी शरणार्थी किसी तरह म्यांमार से भागकर बांग्लादेश पहुंचे थे, लेकिन यहां भी उनकी जिंदगी सबसे कठिन परिस्थितियों से गुजर रही है.
मोहिबुल्लाह ने शांति और अधिकारों के संरक्षण के लिए अराकान रोहिंग्या सोसायटी की स्थापना की थी, जो इन शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए लगातार प्रयास कर रही थी. इसी समूह ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यांमार के सैन्य अत्याचारों को भी दर्ज किया, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने नरसंहार के रूप में वर्णित किया.
समुदाय के लिए वकालत को देखते मोहिबुल्लाह अन्य कट्टरपंथियों का भी निशाना बन गए, जिन्होंने उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी. साल 2019 में उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा था, "अगर मैं मर गया, तो मैं ठीक हूं. मैं अपनी जान दे दूंगा."
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स, डीपीए)
नई दिल्ली, 29 सितंबर | अमेरिका के शीर्ष जनरलों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को चेताया है कि अफगानिस्तान से जल्दबाजी में हटने से पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।
संयुक्त प्रमुख जनरल मार्क मिले ने मंगलवार को सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति को बताया, "हमने अनुमान लगाया है कि त्वरित वापसी से क्षेत्रीय अस्थिरता, पाकिस्तान की सुरक्षा और उसके परमाणु शस्त्रागार के जोखिम बढ़ जाएंगे।"
रिपोर्ट के अनुसार, जनरल ने कहा, "हमें पाकिस्तान के अभयारण्य की भूमिका की पूरी तरह से जांच करने की जरूरत है।" कहा गया है कि तालिबान ने 20 साल तक अमेरिकी सैन्य दबाव को कैसे झेला, उन्होंने इसकी जांच की जरूरत पर भी जोर दिया।
जनरल मिले और यूएस सेंट्रल कमांड के नेता जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने भी चेतावनी दी है कि तालिबान, जिससे अब पाकिस्तान को निपटना होगा, वह पहले से निपटने वाले तालिबान से अलग होगा और इससे उनके संबंध जटिल होंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सेंटकॉम प्रमुख ने यह भी कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए एक महत्वपूर्ण हवाई गलियारे के इस्तेमाल पर चल रही बातचीत में शामिल हैं।
उन्होंने कहा, "पिछले 20 वर्षो में हम पश्चिमी पाकिस्तान में जाने के लिए एयर बुलेवार्ड का उपयोग करने में सक्षम रहे हैं और यह कुछ ऐसा बन गया है, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है, साथ ही संचार की कुछ लैंडलाइन भी है।"
उन्होंने आगे कहा, "हम आने वाले दिनों और हफ्तों में पाकिस्तानियों के साथ काम करेंगे, ताकि यह देखा जा सके कि भविष्य में यह रिश्ता कैसा दिखने वाला है।"
हालांकि, दोनों जनरलों ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में अपनी चिंताओं और आतंकवादियों के हाथों में पड़ने की संभावना पर अधिक चर्चा करने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि वे सीनेटरों के साथ बंद सत्र में इस मुद्दे पर और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
वहीं रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने अमेरिकियों से काबुल के पतन के लिए किसी को दोष देने से पहले 'कुछ असहज सच्चाइयों पर विचार' करने का आग्रह किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने इस बारे में बात करते हुए कहा, "हमने उनके वरिष्ठ रैंकों में भ्रष्टाचार और खराब नेतृत्व की गहराई को पूरी तरह से नहीं समझा। हमने अपने कमांडरों के राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा लगातार और अस्पष्टीकृत रोटेशन के हानिकारक प्रभाव को नहीं समझा।"
उन्होंने कहा, "हमने दोहा समझौते के मद्देनजर तालिबान कमांडरों द्वारा स्थानीय नेताओं के साथ किए गए सौदों के कारण स्नोबॉल प्रभाव का अनुमान नहीं लगाया था और यह कि दोहा समझौते का अफगान सैनिकों पर मनोबल गिराने वाला प्रभाव था।"
उन्होंने कहा कि अमेरिकी यह समझने में भी विफल रहे कि अफगान सैनिकों में भ्रष्ट सरकार के लिए लड़ने की प्रेरणा नहीं थी।
जनरल मिले ने उल्लेख किया कि बड़ी संख्या में होते हुए भी अफगान सैनिकों ने बहुत ही कम समय में ही अपने हथियार डाल दिए।
उन्होंने पिछली अफगान सरकार पर सैनिकों को प्रेरित करने में विफल रहने का भी आरोप लगाया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 सितंबर| पाकिस्तानी शेयरों में बुधवार को करीब 3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया, क्योंकि निवेशकों को डर था कि अमेरिकी सीनेट विधेयक में अफगान तालिबान पर प्रतिबंध लगाने की मांग को पाकिस्तान तक बढ़ाया जा सकता है। अखबार 'डॉन' के मुताबिक, सिर्फ एक दिन की राहत के बाद, विक्रेता कार्रवाई में वापस आ गए, जो कि रुपये के बारे में चिंता से भी शुरू हो गया था, क्योंकि बुधवार को केएसई -100 908 अंक गिरकर 44,366.74 पर 2 प्रतिशत नीचे बंद हुआ।
विश्लेषकों ने कहा कि हालांकि निवेशकों के मन में चिंताएं बनी हुई हैं, बुधवार को डॉलर की उच्च मांग और अफगानिस्तान की स्थिति के कारण रुपया ग्रीनबैक के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 170.27 रुपये पर पहुंच गया।
इंटरमार्केट सिक्योरिटीज के कार्यकारी निदेशक रजा जाफरी ने कहा कि अमेरिकी सीनेट में 22 सीनेटरों द्वारा समर्थित एक विधेयक आज गिरावट का मुख्य कारण था। इस विधेयक में पिछले 20 वर्षो में अफगान तालिबान के संबंध में पाकिस्तान की भूमिका की जांच करने के प्रयास की झलक है।
जाफरी ने कहा, "अगर कुछ पाया जाता है, तो वे पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहे हैं और यह एक वर्जित शब्द है और इससे घबराहट होती है। भावना पहले से ही कमजोर थी और फिर वह झुक गई।"
लेकिन, जाफरी के अनुसार, यह केवल एक प्रारंभिक प्रतिक्रिया थी और बिल के वास्तव में पारित होने की संभावना काफी कम है, यही वजह है कि बुधवार को शुरुआती गिरावट के बाद बाजार में कुछ सुधार हुआ।
पाकिस्तान कुवैत इन्वेस्टमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड में अनुसंधान और विकास के प्रमुख समीउल्लाह तारिक ने विकास पर इसी तरह की टिप्पणी की थी, जिसमें कहा गया था कि यह अमेरिकी सीनेट बिल से संबंधित प्रतीत होता है जो अफगान तालिबान पर प्रतिबंध लगाने की मांग करता है और जो पाकिस्तान तक बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा, "डॉलर समता लगातार बढ़ रही है, क्योंकि चालू खाते के घाटे के कारण डॉलर की मांग अधिक है और अफगान स्थिति भी दबाव बढ़ा रही है।" (आईएएनएस)
इस्लामाबाद/नई दिल्ली, 29 सितम्बर| पाकिस्तान की योजना पर सीनेट की स्थायी समिति के अध्यक्ष सलीम मांडवीवाला ने हाल ही में कहा है कि चीनी राजदूत और कंपनियों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) परियोजनाओं पर काम की धीमी गति के बारे में शिकायत की है। उन्होंने खुलासा करते हुए कहा, "वे रो रहे हैं। चीनी राजदूत ने मुझसे शिकायत की है कि आपने (पाकिस्तान) सीपीईसी को नष्ट कर दिया है और पिछले तीन वर्षों में कोई काम नहीं किया गया है।"
इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान की मौजूदा सरकार से चीनी बहुत नाराज हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2015 में शुरू होने के बाद से देश में 77 सीपीईसी परियोजनाओं में से सिर्फ 15 ही पूरी हो सकी हैं। यहां तक कि पाकिस्तान के योजना एवं विकास मंत्री असद उमर ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि पाकिस्तान सीपीईसी का पहला चरण ही पूरा कर सकता है और यह दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है।
सीपीईसी को धीमा करने की धारणा को दूर करने के लिए हाल ही में एक जल्दबाजी में बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में, मंत्री ने दावा किया कि वर्तमान पीटीआई सरकार के कार्यकाल के दौरान कॉरिडोर परियोजनाओं पर प्रमुख काम पूरा हो गया है। हालांकि, उमर ने यह भी माना कि सीपीईसी के लिए अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के विरोध और अफगानिस्तान की ताजा स्थिति के कारण देश में सुरक्षा खतरे बढ़ गए हैं।
उन्होंने कहा, "सुरक्षा खतरा बढ़ गया है।" पाकिस्तानी मंत्री ने कहा कि सीपीईसी पर विकास को बड़ी वैश्विक शक्तियों द्वारा घृणा के साथ देखा गया है, जो देश में असंतोष फैलाना चाहते हैं। अफगानिस्तान की अनिश्चित स्थिति के कारण भी चुनौतियां हैं।
उन्होंने कहा, "इसलिए न केवल सुरक्षा चुनौतियां हैं, बल्कि ये एक ऊंचे स्तर पर हैं।"
सीपीईसी चीन की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया के तटीय देशों में देश के ऐतिहासिक व्यापार मार्गों को नवीनीकृत करना है। 2015 में, चीन ने 'चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर' (सीपीईसी) परियोजना की घोषणा की थी, जिसकी लागत 60 अरब डॉलर से अधिक बताई गई है।
सीपीईसी के साथ, बीजिंग का लक्ष्य अमेरिका और भारत के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान और मध्य और दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव का विस्तार करना है।
सीपीईसी पाकिस्तान के दक्षिणी ग्वादर बंदरगाह (कराची से 626 किलोमीटर पश्चिम में) को अरब सागर पर चीन के पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र से जोड़ेगा। इसमें चीन और मध्य पूर्व के बीच संपर्क में सुधार के लिए सड़क, रेल और तेल पाइपलाइन लिंक बनाने की योजना भी शामिल है। सीपीईसी बीआरआई पहल का हिस्सा है, जिसे हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) पर नियंत्रण पाने के लिए चीन की भू-रणनीति के रूप में पेश किया गया है। इसका उद्देश्य विशेष रूप से भारत और इसकी ऊर्जा आपूर्ति को घेरने के साथ ही मध्य पूर्व और मध्य एशियाई क्षेत्र तक पहुंच का विस्तार करना भी है।
हालांकि, भ्रष्टाचार, सुरक्षा लागत और पाकिस्तान के कर्ज संबंधी तनाव के मुद्दों ने चीनी रुख को तेजी से प्रभावित किया है और इसे सीपीईसी में निवेश करने से अनिच्छुक बना दिया है, जिसने चीन-पाकिस्तान की सदाबहार दोस्ती को प्रभावित किया है।
14 जुलाई को उत्तरी पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा के दसू में नौ चीनी कामगारों की हत्या कर दी गई थी। चीनी और पाकिस्तानी श्रमिकों को ले जा रही एक बस में विस्फोट हुआ था, जो सीपीईसी के हिस्से के रूप में चीन द्वारा बनाए जा रहे एक जलविद्युत बांध की साइट पर हुआ था। विस्फोट के बाद से परियोजना पर काम रोक दिया गया है और इस्लामाबाद को पाकिस्तान में इसकी परियोजनाओं की सुरक्षा के बारे में बीजिंग को आश्वस्त करने के लिए बहुत पीड़ा हो रही है।
इसके अलावा, पाकिस्तान भर में सीपीईसी परियोजनाओं के लिए काम करने वाले कई चीनी नागरिकों पर हाल ही में हमला किया गया है।
परियोजनाओं के कार्यान्वयन को लेकर चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते अविश्वास ने इन प्रमुख पहलों को अधर में डाल दिया है और चीन सीपीईसी निर्माण परियोजनाओं के दूसरे चरण में निवेश करने से हिचक रहा है।
चीनी निवेश के घटने के कई कारण हैं, जैसे कि पाकिस्तान पर बढ़ता कर्ज का बोझ, सीपीईसी प्राधिकरण और पाकिस्तान में रहने वाली चीनी कंपनियों का भ्रष्टाचार आदि। इसके अलावा सीपीईसी परियोजनाओं पर पाकिस्तान सरकार में सैन्य नियंत्रण का विस्तार करने का प्रयास और अंत में, बिगड़ती सुरक्षा भी इसका प्रमुख कारण है, जहां चीनी परियोजनाओं को देश में चीनी निवेश का विरोध करने वाले तत्वों द्वारा लक्षित किया जा रहा है। (आईएएनएस)
जर्मनी को औद्योगिक क्षेत्र का पावरहाउस माना जाता है. किसी भी नई सरकार के लिए उद्योग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मुद्दे पर ध्यान देना जरूरी होगा. औद्योगिक महाशक्ति के रूप में जर्मनी की ख्याति दांव पर लगी है.
जर्मनी काफी लंबे समय से विज्ञान व प्रौद्योगिकी में अग्रणी रहा है. अब आने वाले समय में उसे औद्योगिक विकास के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के विकास पर ध्यान देना होगा. एआई तकनीक दुनिया के आर्थिक तथा औद्योगिक भविष्य की प्रमुख तकनीकों में से एक बनती जा रही है. देश को भविष्य में एआई के अनुरूप तैयार करने बहुत सारी बाधाओं को दूर करना होगा.
वर्ष 2018 से ही संघीय सरकार के पास घरों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग बढ़ाने की एक योजना है. यूरोपीय स्तर पर भी इसके लिए प्रयास हो रहे हैं. मोबिलिटी, स्वास्थ्य सेवा, उद्योग, पर्यावरण संतुलन और कोरोना वायरस महामारी जर्मन सरकार द्वारा बीते दिसंबर में प्रकाशित सूची के अनुसार प्रमुख कार्य क्षेत्र थे. सरकार देश में इन क्षेत्रों में एआई को शामिल करने की व्यापक संभावनाएं देखती है लेकिन उसने कई सारे अवरोधों की भी पहचान की है.
प्रतिभा के लिए प्रतियोगिता
जर्मनी ने काफी लंबे समय से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विषय पर शैक्षणिक शोध पर खासा योगदान दिया है. परंतु ऐसे शक्तियुक्त और गतिशील क्षेत्र में देश को विश्व स्तर पर अलग दिखने के लिए और अधिक करने की जरूरत है. सरकार और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ भी इससे सहमत हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में योग्य लोगों को आकर्षित करने के लिए जर्मनी को तकनीक व शोध की स्थिति में सुधार लाने की आवश्यकता है.
साल 2019 में एआई क्षेत्र में नौकरी की 50 प्रतिशत रिक्तियों को या तो भरा नहीं जा सका या फिर कम योग्य लोगों से भर दिया गया. जर्मनी पहले से ही कुशल श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है. इस स्थिति में एआई के क्षेत्र में विशेषज्ञों का मिलना मुश्किल होगा.
डीडब्ल्यू से फोन पर बातचीत में जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (डीएफकेआइ) के सीईओ तथा निदेशक डॉ अंटोनियो क्रुइगर कहते हैं, "शिक्षा व उद्योग, दोनों के लिए प्रतिभा का होना बहुत महत्वपूर्ण है. और ऐसे योग्य लोगों को उचित माहौल देना जो उनके लिए आकर्षक हो, जरूरी है."
एसएमई का उन्नयन
सरकार जर्मनी की सभी महत्वपूर्ण लघु तथा मध्यम इकाइयों (एसएमई) में एआई तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देना चाहती है. फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज (बीडीआई) के अनुसार तथाकथित मझौले उद्यम जो जर्मन कंपनियों के टर्नओवर का एक तिहाई उत्पादन करती हैं, उनमें सरकारी प्रयासों के बावजूद एआई का उपयोग काफी धीमा रहा है. आर्थिक मामलों के मंत्रालय द्वारा हाल में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि सर्वे में शामिल महज छह फीसद कंपनियों ने ही एआई तकनीक का इस्तेमाल किया है.
क्रुइगर कहते हैं, "मेरा मानना है कि एआई में हुए विकास का इन छोटी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल करना निर्णायक होगा." वे कहते हैं, "इसका तात्पर्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए कंप्यूटर और यूजर के बीच बेहतर तालमेल, अच्छे टूल्स तथा क्लाउड आधारित बुनियादी ढांचा का होना है. जो इन लघु तथा मध्यम आकार की इकाइयों को अपने उत्पादों में एआई के उपयोग के लिए सक्षम बनाए और एआई तकनीक आधारित डिजिटल सेवा के सहारे उनके उत्पाद को संवर्धित करे."
इस तरह के विकास से जर्मनी डिजिटलाइजेशन के ऐसे क्षेत्र में काफी उन्नति कर सकेगा, जिसमें वह चीन व अमेरिका जैसे देश से काफी पिछड़ गया है.
लोगों तथा डेटा की सुरक्षा
जर्मनी कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में भी एआई को इस्तेमाल करना चाहता है. कोरोना वायरस प्रोत्साहन पैकेज के एक भाग के रूप में संघीय सरकार ने 2025 तक एआई पर खर्च की जाने वाली राशि को तीन अरब यूरो से बढ़ाकर पांच अरब डॉलर करने का वादा किया है. इसकी अधिकांश राशि का उपयोग जर्मनी में सुपर कम्प्यूटिंग टेक्नोलॉजी को विकसित करने में किया जाएगा.
सरकारी रणनीतिकारों का मानना है कि एआई महामारी प्रबंधन में सहायक हो सकता है. उदाहरण के तौर पर यह महामारी के पूर्वानुमान, मॉनीटरिंग, प्रभावकारी उपायों की खोज तथा प्रबंधन, अनुसंधान और यहां तक कि टीका विकसित करने में भी मददगार हो सकता है.
इन उद्देश्यों से जर्मनी में मेडिकल डेटा का समन्वय करना विशेष तौर पर कठिन होगा हालांकि, व्यक्तिगत डेटा यहां काफी हद तक विकेंद्रीकृत तथा संरक्षित है. क्रुइगर कहते हैं, "मेरे विचार से यह एक बड़ी बाधा है. इसकी पहचान हो गई है. यह कुछ ऐसा है जिसे हम जर्मनी में जानते हैं और इसे धीरे-धीरे हमने बदलना शुरू किया है. लेकिन, इसमें काफी समय लग रहा है." वह कम नियंत्रण के लिए नहीं बल्कि इसके बदले सिस्टम के व्यापक एकीकरण की बात कहते हैं.
एआई सीखने और अधिक प्रभावी बनने के लिए बड़ी मात्रा में डेटा पर निर्भर करता है. एआई तकनीक का उपयोग कब और कहां करना है और इसके लिए कितने डेटा की आवश्यकता है, यह पता लगाना भी एक पहेली होगी.
अपनी ओर से संघीय सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि एआई के क्षेत्र में सभी स्टेकहोल्डर (हितधारक) मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी का सम्मान करें. एआई तकनीक को भी ऊर्जावान, संसाधन संपन्न तथा पर्यावरण संरक्षण में योगदान करने वाला होना चाहिए.
एआई के भविष्य पर वोटिंग
संघीय संसद के लिए हुए चुनावों के बाद नई सरकार बनाने की कवायद चल रही है. सरकार कोई भी बने उद्योग में एकआई के इस्तेमाल को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकता में ऊपर होगा. जर्मनी के पांच प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र में इस मुद्दे को उठाया है. जबकि जर्मनी की राइट ऑफ सेंटर पार्टियां आर्थिक महाशक्ति तथा उद्योग जगत के नेतृत्वकर्ता के रूप में जर्मनी की स्थिति को बरकार रखने में एआई के महत्व पर जोर दे रहीं हैं, वहीं लेफ्ट ऑफ सेंटर पार्टियां इसके खतरों पर ध्यान दे रहीं हैं. उनका मानना है कि लापरवाही से इस्तेमाल के कारण भेदभाव पूर्ण तरीके से डेटा के उन सुरक्षा मानकों का उल्लंघन हो सकता है, जो जर्मन समाज को काफी प्रिय हैं.
सभी पार्टियां एआई के महत्व को स्वीकार करती हैं यद्यपि उनकी प्राथमिकताएं अलग हैं. सोशल डेमोक्रेट्स का सार्वजनिक क्षेत्र के सामान का प्रावधान, ग्रीन पार्टी के लिए पारिस्थितिकी और जलवायु की निगरानी व पूर्वानुमान में इसका इस्तेमाल तथा क्रिश्चियन-डेमोक्रेट्स एवं लिबरल पार्टी का औद्योगिक प्रतिस्पर्धा पर जोर है.
एमेजॉन कंपनी का नया रोबोट आपको सुन सकता है, देख सकता है और घर में आपके पीछे-पीछे घूम सकता है.
(dw.com)
एमेजॉन ने एक नया रोबोट पेश किया है जिसमें लोगों को देखने, सुनने और उनके साथ चलने की योग्यता है. एस्ट्रो नाम का यह रोबोट किसी टीवी सीरियल में दिखाए गए रोबोट जैसा नहीं है. यह खाना बनाने या सफाई करने जैसे काम नहीं कर सकता. लेकिन यह इतना काबिल है कि देख सकता है कि आप बाहर जाते वक्त गैस स्टोव ऑन तो नहीं छोड़ गए हैं. या फिर, कोई अनजान व्यक्ति घर में घुसा तो आपको चेतावनी भरा मैसेज भी भेज सकता है.
एस्ट्रो में कैमरे, सेंसर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया गया है जो इसे बेहद सजग और चौकन्ना बनाते हैं. इसीलिए, यह दीवारों या कुत्तों से टकराता नहीं है. एमेजॉन का कहना है कि वक्त के साथ-साथ यह और स्मार्ट होता जाएगा.
एस्ट्रो घर के कुछ काम कर सकता है जैसे आप इसकी पीठ पर स्नैक्स या सोडा कैन रख सकते हैं जिन्हें यह कमरे में ले जाएगा. अमेरिका में इस रोबोट की कीमत एक हजार डॉलर रखी गई है और कुछ ही हफ्तों में इसे खरीदारों को भेजा जाएगा.
स्मार्ट है एस्ट्रो
एमेजॉन ने एस्ट्रो के अलावा भी कई आधुनिक गैजेट्स पेश किए लेकिन एस्ट्रो ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचे रखा. एमेजॉन के एग्जेक्यूटिव डायरेक्टर डेविड लिंप ने ऑनलाइन दुनियाभर में दिखाए गए इवेंट के दौरान 17 इंच ऊंचे एस्ट्रो को आवाज देकर स्टेज पर बुलाया. उन्होंने उसे बीटबॉक्स करने को भी कहा.
एस्ट्रो को इंसानों जैसा बनाने के लिए उसकी गोल आंखों पर पलकें लगाई गई हैं जिन्हें यह काम करते वक्त खोलता-बंद करता रहता है. कंपनी का कहना है कि सीमित संख्या में ही ये रोबोट बनाए गए हैं. हालांकि उन्होंने संख्या नहीं बताई.
घर के बाहर से भी एस्ट्रो को रिमोट से संचालित किया जा सकता है. यह घर के पालतु जानवरों को संभालने जैसे काम भी कर सकता है. और घर की पहरेदारी तो पूरी मुस्तैदी से करता है वह कुछ असामान्य दिखने पर चेतावनी भेजता है.
एलेक्सा से बढ़कर
एमेजॉन ने कहा कि यह सिर्फ पहियों वाली एलेक्सा नहीं है बल्कि इसे कई तरह की गतिविधियों के लिए प्रोग्राम किया गया है, जिनसे इसका अपना एक व्यक्तित्व बन गया है. कंपनी के मुताबिक यह उन जगहों पर भी जा सकता है, जो आमतौर पर रोबोट्स के लिए नहीं होतीं. इसके अलावा इसे ‘डू नॉट डिस्टर्ब' मॉड पर भी लगाया जा सकता है. इसके अलावा इसके कैमरे और कान बंद करने का भी एक बटन है. हालांकि ऐसा होने पर यह चल फिर नहीं पाएगा.
रोबोट के अलावा एमेजॉन ने फोटो फ्रेम जैसी दिखती एक स्क्रीन भी पेश की. इस स्क्रीन को दीवार पर टांगा जा सकता है. इसमें एलेक्सा भी पहले से फिट की गई है, जो एमेजॉन का वॉइस असिस्टेंट है.
कंपनी को उम्मीद है कि इस स्क्रीन को लोग अपने रसोईघरों की दीवारों पर लगाएंगे, जहां से वे इसे रेसिपी देखने, अपना शेड्यूल जांचने या फिर खाना बनाते वक्त कोई शो देखने के लिए इस्तेमाल करेंगे.
सिएटल स्थित इस कंपनी ने कहा है कि अगले साल एक और आधुनिक गैजेट एको बाजारा में उतारा जाएगा, जो डिज्नी के होटल के कमरों में लगाया जाएगा. इस गैजेट का प्रयोग ग्राहक रूम सर्विस के लिए कर सकेंगे.
वीके/एए (रॉयटर्स)
अमेरिका में ज्यादातर लोग चाहते हैं कि कम सैनिकों को विदेशों में तैनात किया जाए और दूसरे देशो के साथ कूटनीतिक तरीकों से बात की जाए. हाल ही में हुए एक सर्वे में ये नतीजे सामने आए हैं.
एक ताजा सर्वे के मुताबिक अमेरिका में लोग अब अपने सैनिकों को विदेश भेजने से आजिज आ चुके हैं और चाहते हैं कि विदेशों में समस्याओं से निपटने में कूटनीति का सहारा लिया जाए.
यूरेशिया ग्रुप फाउंडेशन ने यह सर्वे किया है जिसके मुताबिक 58.3 प्रतिशत लोग मानते हैं कि अमेरिका को जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार और माइग्रेशन जैसे मुद्दों पर ज्यादा काम करना चाहिए. 27 अगस्त से 1 सितंबर के बीच किए गए इस सर्वे में में 21.6 फीसदी लोगों ने कहा अमेरिका को दूसरे देशों में कम दखलअंदाजी करनी चाहिए. 20.1 फीसदी लोगों की कोई राय नहीं थी.
सर्वेक्षण में 2,168 लोगों ने हिस्सा लिया. इनमें से 42.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अमेरिका को यूरोप, एशिया और मध्य पूर्व में तैनात अपने सैनिकों की संख्या में कमी करनी चाहिए और दूसरे देशों की रक्षा की अपनी प्रतिबद्धताओं को घटानी चाहिए. ये लोग चाहते हैं कि अमेरिका को धीरे-धीरे क्षेत्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने सहयोगियों को सौंप देनी चाहिए.
अफगानिस्तान का असर
बुधवार को जारी किए गए इस सर्वे में 32 प्रतिशत लोगों ने विदेशों में सेना बढ़ाने या कम से कम मौजूदा स्तर पर बनाए रखने की बात कही है. 25.5 प्रतिशत लोगों की इस बारे में कोई राय नहीं थी.
अमेरिका में अफगानिस्तान में 20 साल चले युद्ध के नतीजों पर लगातार बहस हो रही है. 30 अगस्त को अमेरिका ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था लेकिन उससे पहले ही देश पर उस तालिबान ने कब्जा कर लिया, जिसे बीस साल पहले अमेरिका ने हमला कर सत्ता से हटाया था. सर्वे करने वाली संस्था का मानना है कि नतीजों पर इस युद्ध के नतीजों का प्रभाव पड़ा होगा.
यूरेशिया ग्रुप फाउंडेशन के सीनियर फेलो मार्क हाना कहते हैं कि पिछले दो साल में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है जो चाहते हैं कि अमेरिका की विदेश नीति घरेलू लोकतंत्र की मजबूती पर केंद्रित होनी चाहिए ना कि विदेशों में लोकतंत्र स्थापित करने पर.
हाना कहते हैं, "हमने अपना डेटा तब जमा किया था जबकि अमेरिका अफगानिस्तान से निकल रहा था और सैन्य दखल के जरिए किसी देश को बनाने व वहां लोकतंत्र स्थापित करने में मिली नाकामी स्पष्ट नजर आ रही थी.”
सर्वे के कुछ और नतीजे
सर्वेक्षण में सामने आईं कुछ और बातें हैः
40.3 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि अमेरिका का मौजूदा सैन्य खर्च जस का तस बना रहे. 38.6 प्रतिशत लोग इसमें कमी के हक में हैं जबकि 16.4 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि यह खर्च बढ़ाया जाए.
62.6 प्रतिशत लोगों ने ईरान के साथ परमाणु मुद्दे पर वार्ता को फिर से शुरू करने का पक्ष लिया. ये लोग चाहते हैं कि एक ऐसा समझौता किया जाए जो ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोके. 37.4 प्रतिशत लोग बातचीत के विरोधी हैं और ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए दबाव बनाकर उसे परमाणु हथियार बनाने से रोकने के हिमायती हैं.
42.2 प्रतिशत लोग कहते हैं कि अगर चीन ताईवान पर हमला करता है तो अमेरिका को उसकी रक्षा करनी चाहिए. 16.2 प्रतिशत लोग इसके पक्ष में नहीं हैं जबकि 41.6 प्रतिशत लोग इस बारे में कोई राय नहीं बना सके.
यूरेशिया ग्रुप फाउंडेशन ने यह सर्वे ऑनलाइन भागीदारी के जरिए कराया था. इस फाउंडेशन के संस्थापक राजनीतिक विश्लेषक इयान ब्रेमर हैं जिनका यूरेशिया ग्रुप राजनीतिक खतरों के संबंध में सरकारों और नेताओं को परामर्श देने का काम करता है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
रिऐलिटी टीवी से लेकर ऑनलाइन खेलों और पॉप संस्कृति तक, चीन ने युवाओं पर नियंत्रण लगाने के लिए एक व्यापक अभियान शुरू कर दिया है. जानकारों का कहना है कि इससे देश पर "वैचारिक नियंत्रण" बढ़ाने की कोशिश की जा रही है.
इस दिशा में चीन की सरकार ने कई कदम उठाए हैं जिनके पीछे उद्देश्य है सरकार जिसे आधुनिक मनोरंजन की अति समझती है उसका नियंत्रण करना. सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को भी देशभक्ति पूर्ण सामग्री को बढ़ावा देने के लिए कहा है.
सरकार का कहना है कि उसके निशाने पर अस्वस्थ नैतिक मूल्य और "सौंदर्य के अनुचित अनुभव" हैं, लेकिन समीक्षकों का कहना है कि इन कदमों से हर तरह के बाहरी असर पर अंकुश लगाने की और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ किसी भी विरोध की संभावनाओं को खत्म करने की कोशिश की जा रही है.
"मूल्यों का पतन"
टेक्सस एएंडएम विश्वविद्यालय में मीडिया अध्ययन पढ़ाने वाले कारा वॉलिस मानते हैं कि ये बदलाव "वैचारिक नियंत्रण को और बढ़ाने की दिशा में काफी संगठित रूप से की हुई कोशिश" का प्रतिनिधित्व करते हैं.
पिछले एक दशक में चीन में काफी रंगीन और काफी अलग मनोरंजन की शुरआत हुई है. इसमें जापानी और कोरियाई पॉप संस्कृति और सेलिब्रिटी गपशप से प्रेरित बूट कैंप जैसे टैलेंट टीवी कार्यक्रम शामिल हैं.
इसके साथ ही चीन दुनिया का सबसे बड़ा वीडियो गेम बाजार भी बन गया है. नियामकों की समझ में इन सबसे नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है और वो मनोरंजन और गेमिंग उद्योगों पर लगाम लगाना चाह रहे हैं.
उन्होंने कुछ फिल्मी सितारों का उदाहरण बनाने के लिए रिएलिटी कार्यक्रमों को बैन किया है और प्रसारकों को "गैर मर्दाना आचरण वाले" पुरुषों और "अश्लील इन्फ्लुएंसरों" को दिखाना बंद करने का आदेश दिया है.
नियामकों ने बच्चों के रोजाना वीडियो गेम पर बिताए जाने वाले समय पर भी सीमा लगा दी है. एसओएस चीन इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव सांग ने बताया कि सरकार मनोरंजन की धुन की चमक से खतरा महसूस करती है, क्योंकि उसे लगता है कि इनसे चीनी युवाओं को "पार्टी द्वारा आध्यात्मिक या वैचारिक मार्गदर्शन का विकल्प" मिलता है.
"सीआईए का षड्यंत्र"
पश्चिम के साथ तनाव के बीच चीन ने देश के अंदर राष्ट्रवादी और सैन्यवादी विचारों को भी बढ़ावा दिया है. इनमें एक सख्त मर्दानगी भरे व्यक्तित्व की छवि भी शामिल है जैसा कि "वुल्फ वॉरियर" जैसी एक्शन फिल्मों में दिखाया गया है.
पार्टी द्वारा चलाए जाने वाले टैब्लॉयड अखबार ग्लोबल टाइम्स ने पिछले सप्ताह कहा की "नारी जैसे" मर्द सेलिब्रिटियों के पूर्व एशियाई चलन की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापानी मर्दों को कमजोर करने के सीआईए के षड्यंत्र में हैं.
न्यूकासल विश्ववद्यालय में मीडिया और जेंडर के शोधकर्ता ऑल्टमैन पेंग कहते हैं, "भविष्य में देश की समृद्धि को लेकर एक डर है, वो युवा पीढ़ी की गुणवत्ता से जुड़ा हुआ है." पार्टी का मानना है की युवाओं की गुणवत्ता को देश में फैल चुके मनोरंजन और संस्कृति से खतरा है.
समीक्षकों का कहना है कि सरकार के कदमों के पीछे ऐसे चलनों पर लगाम लगाने की एक चाहत है जिन्हें वो समस्यात्मक समझती है. इसी कड़ी में अब पॉप सितारों के प्रशंसकों पर भी नकेल कसी जा रही है. लेकिन कई चीनी युवा इन नियमों से बचने के रास्ते भी निकाल ले रहे हैं. इनमें वयस्कों के ऑनलाइन खेलों वाले अकाउंट खरीदना शामिल है.
कुछ युवा तो मानते हैं कि नए नियम हद से ज्यादा नियंत्रण लगाने वाले हैं. सेलिब्रिटी रिएलिटी कार्यक्रमों की प्रशंसक 21 वर्षीय सू कहती हैं, "मैं अब एक वयस्क हूं और फैसला करने की मेरी अपनी क्षमता है. इस तरह के नियम विविधता के विकास के लिए अनुकूल नहीं हैं."
सीके/एए (एएफपी)
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद न केवल महिलाएं और उदारवादी बल्कि एलजीबीटी समुदाय के सदस्य भी अपनी जान बचा रहे हैं. समुदाय अभी भी तालिबान के अतीत से खौफजदा है.
मारवा और उनकी दोस्त दोनों समलैंगिक हैं. अगस्त में काबुल पर तालिबान के कब्जे के दौरान दोनों ने अचानक शादी करने का फैसला किया. कोई औपचारिक समारोह का आयोजन नहीं किया गया था और कोई भी रिश्तेदार या दोस्त खुशी में शरीक नहीं हो पाया. 24 वर्षीय मारवा ने एएफपी को बताया, "मुझे डर था कि तालिबान आकर हमें मार डालेगा."
अफगानिस्तान में समलैंगिकों का गुप्त जीवन
अफगानिस्तान में एलजीबीटी समुदाय अभी भी तालिबान के अतीत से भयभीत है. 1996 से 2001 तक तालिबान का देश पर शासन रहा. उन दिनों समलैंगिकों को पत्थर मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था या फिर उन्हें कमर या छाती तक जमीन में गाड़ दिया जाता है और फिर पत्थर मारा जाता.
तालिबान ने अभी तक समलैंगिकों पर अपनी नीति स्पष्ट नहीं की है, लेकिन पूर्व वरिष्ठ न्यायाधीश गुल रहीम ने एक जर्मन अखबार बिल्ड से कहा कि समलैंगिकों के लिए मौत की सजा बहाल किए जाने की संभावना है. तालिबान ने साफ कर दिया है कि उसके शासन में इस्लामी व्यवस्था लागू होगी. नतीजतन, अफगानिस्तान में एलजीबीटी समुदाय के सदस्य छिप गए हैं और सोशल मीडिया से अपने सभी सबूत मिटा दिए हैं. एक समलैंगिक लड़के को हाल ही में प्रताड़ित किया गया था. हेरात के एक लड़के ने कहा, "जब तालिबान आया, तो हमें अपने घरों में बंद होना पड़ा. मैं दो या तीन हफ्तों से बाहर नहीं गया हूं."
रूढ़िवादी सोच से भरा समाज
अफगानिस्तान एक रूढ़िवादी समाज वाला देश है, लेकिन हाल के सालों में समलैंगिक असहिष्णुता में गिरावट आई है. अकबरी एक प्रसिद्ध अफगान एलजीबीटी कार्यकर्ता हैं जो कुछ साल पहले तुर्की चले गए थे. उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे लोग समलैंगिकों को पहचानने लगे हैं, लेकिन जैसे ही तालिबान ने शहरों पर कब्जा कर लिया, अफगानिस्तान में एलजीबीटी समुदाय के सदस्य पाकिस्तान और ईरान भाग गए.
महिलाओं को लेकर भी तालिबान ने सख्त रवैया अपनाया है. उसने महिलाओं को लेकर सितंबर में एक आदेश जारी किया था. तालिबान का कहना है कि महिलाओं को सिर्फ वही काम करने की इजाजत होगी जो पुरुष नहीं कर सकते हैं. यह फैसला अधिकतर महिला कर्मचारियों को काम पर लौटने से रोकेगा.
यही नहीं तालिबान ने विश्वविद्यालय की महिला छात्रों से कहा गया कि वे लड़कों से अलग हटकर बैठेंगी. साथ ही उन्हें सख्त इस्लामी ड्रेस कोड का पालन करने को कहा गया. अमेरिका के समर्थन वाली पिछली सरकार में अधिकतर स्थानों पर विश्वविद्यालयों में सह शिक्षा थी.
एए/सीके (एएफपी)
लंदन, 28 सितंबर| पिछले महीने अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा धन की निकासी किए जाने बाद से वहां पोलियो, कोविड-19 और अन्य बीमारियों के फिर से पनपने का खतरा बढ़ गया है, जिसके वैश्विक प्रभाव हो सकते हैं। यह बात नेचर की रिपोर्ट में कही गई है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन वूमेन एंड चाइल्ड हेल्थ और इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ एंड डेवलपमेंट के संस्थापक निदेशक जुल्फिकार ए. भुट्टा ने पाकिस्तान के आगा खान विश्वविद्यालय की पत्रिका में लिखा है कि पिछले 20 वर्षो में देश की उपलब्धियों के बावजूद, बच्चों और महिलाओं का स्वास्थ्य 'अनिश्चित' बना हुआ है।
साल 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा तालिबान को उखाड़ फेंके जाने के तुरंत बाद, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने देशभर में खसरा-प्रतिरक्षण अभियान शुरू किया, जिसमें 1.7 करोड़ बच्चों को लक्षित किया गया था। उस समय तक तीन में से एक अफगान बच्चे का कोई टीकाकरण नहीं हुआ था।
अभियानों ने 2002 और 2003 में लक्षित आबादी के 96 प्रतिशत का टीकाकरण किया और 2014 तक इसमें और प्रगति की। लेकिन जैसे ही तालिबान ने फिर से घुसपैठ की, पोलियो कार्यकर्ताओं के घर-घर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
भुट्टा ने कहा, "अफगानिस्तान में 2018 और 2020 के बीच पोलियो के मामले तीन गुना हो गए हैं। लगभग 30 लाख बच्चे, जिनमें से एक तिहाई पात्र हैं, टीकाकरण अभियान से बाहर हो गए।"
लेकिन अब, तालिबान के पूर्ण अधिग्रहण के साथ, अफगानिस्तान ने विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से विकास निधि खो दी है, और अमेरिका ने लगभग '7 अरब डॉलर अफगान सरकार के फंड' को फ्रीज कर दिया है।
इसका अर्थ है बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों को भुगतान करने के लिए पैसा नहीं है।
देश में कोविड-19 टीकों की लगभग 30 लाख खुराक का भंडार है और जल्द ही इसके खत्म होने की संभावना है।
यह सब वैश्विक प्रभाव के साथ एक स्थानीय मानवीय आपदा में बदल सकता है।
भुट्टा ने लिखा, "मुझे डर है कि यह अब और भी बदतर हो जाएगा। अफगानिस्तान में पोलियो और कोविड-19 दोनों संक्रमण पड़ोसी देशों में फैल सकते हैं। जब तक प्रसारण बाधित नहीं होता, पूरी दुनिया खतरे में है।"
भुट्टा ने दुनिया के देशों से पोलियो और अन्य बीमारियों को नियंत्रण में लाने के लिए काबुल के नए शासकों के साथ काम करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा, "अब देश को चलाने वाले तालिबान के पास दुनिया और अफगानिस्तान के लोगों के लिए एक व्यावहारिक, सुधारवादी चेहरा दिखाने का अवसर है। उसे स्वास्थ्य प्रणाली चलाने की जरूरत है, जासूसों और राजनीतिक विरोधियों के बारे में जुनूनी होने के बजाय महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के बारे में अधिक देखभाल करने की जरूरत है।"
तीन में से एक अफगान इस समय भी भूख से जूझ रहा है।
भुट्टा ने कहा, "सर्दियों के दौरान सुरक्षित खाद्य आपूर्ति में मदद करने, बैंकों जैसी वित्तीय सेवाओं को फिर से खोलने और इस साल विस्थापित हुए अनुमानित 500,000 लोगों को उनके घरों में लौटने के लिए धन की तत्काल आवश्यकता है।"
उन्होंने कहा, "देशों को अपने समर्थन को औपचारिक रूप देना चाहिए, और समझौतों में स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधानों को शामिल करना चाहिए। वे जरूरत की इस घड़ी में निरंकुश समर्थन के पात्र हैं।" (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 28 सितम्बर | अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस ने अंतरिक्ष उद्यम ब्लू ओरिजिन को 12 अक्टूबर को न्यू शेपर्ड से अंतरिक्ष में अपनी दूसरी मानव उड़ान की घोषणा की है। यह न्यू शेपर्ड का 18वां मिशन होगा, और अंतरिक्ष के लिए चालक दल की दूसरी उड़ान होगी।
एनएस-18, 12 अक्टूबर को चार अंतरिक्ष यात्रियों को भेजेगी।
लिफ्टऑफ को वर्तमान में पश्चिम टेक्सास में लॉन्च साइट वन से सुबह 8.30 बजे सीडीटी (शाम 7 बजे भारत समय) के लिए लक्षित किया गया है।
कंपनी ने दो अंतरिक्ष यात्रियों के नामों की भी घोषणा की है: इनमें नासा के पूर्व इंजीनियर और प्लैनेट लैब्स के सह-संस्थापक डॉ. क्रिस बोशुइजेन; और ग्लेन डी व्रीस, वाइस-चेयर, लाइफ साइंसेज एंड हेल्थकेयर, डसॉल्ट सिस्टम्स शामिल हैं।
दो अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की घोषणा आने वाले दिनों में की जाएगी।
बोशुइजन ने बयान में कहा,यह मेरे बचपन के सबसे बड़े सपने का पूरा होना है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि, हालांकि, मैं इस उड़ान को छात्रों को एसटीईएम में करियर बनाने के लिए प्रेरित करने और अंतरिक्ष खोजकतार्ओं की अगली पीढ़ी को उत्प्रेरित करने के अवसर के रूप में देखता हूं।
डी व्रीस ने कहा,मैंने अपना पूरा करियर लोगों के जीवन के विस्तार करने के लिए काम किया है। हालांकि, पृथ्वी पर सीमित सामग्री और ऊर्जा के साथ, अंतरिक्ष में हमारी पहुंच बढ़ाने से मानव को आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है।
अंतरिक्ष में पहले अमेरिकी एलन शेपर्ड के नाम पर पांच मंजिला लंबा न्यू शेपर्ड रॉकेट, अंतरिक्ष के किनारे की ओर आकाश में लगभग 340, 000 फीट की सीटों के साथ एक क्रू कैप्सूल डिजाइन किया गया है।
बूस्टर के ऊपर एक गमड्रॉप के आकार का क्रू कैप्सूल है, जिसमें अंदर छह यात्रियों के लिए जगह और बड़ी खिड़कियां हैं।
कर्मन रेखा पर पहुंचने के बाद, कैप्सूल बूस्टर से अलग हो जाता है, जिससे अंदर के लोग पृथ्वी की वक्रता को देख सकते हैं और भारहीनता का अनुभव कर सकते हैं। (आईएएनएस)