अंतरराष्ट्रीय
-फ्रैंक गार्डनर
ब्रसेल्स में बीते सप्ताह नेटो रक्षा मंत्रियों की बैठक हुई. ये तय किया जा रहा है कि यूक्रेन को सैन्य मदद देने में नेटो किस हद तक जाएगा.
रूस-यू्क्रेन युद्ध में नेटो के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रही है कि वो रूस के ख़िलाफ़ संघर्ष में शामिल हुए बिना कैसे अपने सहयोगी यूक्रेन को हथियारों की पर्याप्त आपूर्ति कर पाए ताकि वो रूस के ख़िलाफ़ लड़ सके और अपनी सुरक्षा कर सके.
इस दौरान यूक्रेन की सरकार खुलकर नेटो से सैन्य मदद मांगती रही है.
यूक्रेन का कहना है कि अपने पूर्वी डोनबास क्षेत्र में रूस का आक्रमण रोकने के लिए उसे तुरंत पश्चिमी देशों के हथियारों की ज़रूरत है. यूक्रेन ने कहा है कि उसे तुरंत जेवलिन एनएलएडब्ल्यू (नेक्स्ट जेनरेशन एंटी टैंक वेपन यानी अगली पीढ़ी के टैंक रोधी हथियार), स्टिंगर और स्टारस्ट्रीक एंटी टैंक और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलों की ज़रूरत है. यूक्रेन की सेनाएं पहले से ही पश्चिमी देशों में बने इन हथियारों का इस्तेमाल कर रही हैं.
यूक्रेन को अब तक ये हथियार तो मिलते रहे हैं, लेकिन उसे अब और अधिक हथियार चाहिए.
यूक्रेन को टैंक चाहिए, लड़ाकू विमान चाहिए और अति उन्नत एयर डिफेंस मिसाइल डिफेंस सिस्टम चाहिए ताकि वो रूस के लगातार बढ़ रहे हवाई हमलों और लंबी दूरी की मिसाइलों से किए जा रहे हमलों का जवाब दे सके. रूस के ये हमला यूक्रेन के ईंधन भंडारों और हथियार भंडारों को भारी नुक़सान पहुंचा रहे हैं.
पश्चिमी नेताओं के दिमाग़ में ये डर है कि कहीं रूस यूक्रेन में टेक्टिकल न्यूक्लियर वेपन का इस्तेमाल न कर दे या यूक्रेन का संघर्ष बड़े यूरोपीय युद्ध में ना बदल जाए. इन हालात में दांव पर बहुत कुछ लगा है.
अब तक पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को क्या-क्या दिया है?
अब तक तीस से अधिक पश्चिमी देश यूक्रेन को सैन्य मदद दे चुके हैं. इनमें यूरोपीय यूनियन की एक अरब यूरो और अमेरिका की 1.7 अरब डॉलर की मदद शामिल है.
अभी तक ये मदद हथियारों तक सीमित रही है. गोला बारूद और रक्षात्मक उपकरण दिए हैं जैसे टैंक रोधी और मिसाइल रोधी डिफेंस सिस्टम
इनमें कंधे पर रखकर मार करने वाली जेवलिन मिसाइलें शामिल हैं. ये हथियार गर्मी को पहचानने वाले रॉकेट दागते हैं.
स्टिंगर मिसाइलें भी यूक्रेन को दी गई हैं. इन्हें सैनिक आसानी से ले जा सकते हैं. अफ़ग़ानिस्तान सोवियत युद्ध में इनका इस्तेमाल सोवियत विमानों को गिराने के लिए किया जाता था.
स्टारस्ट्रीक पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम. ब्रिटेन में बना ये सिस्टम आसानी से लाया ले जाया सकता है.
नेटो सदस्यों को ये डर है कि अगर यूक्रेन को टैंक और लड़ाकू विमान दिए गए तो इससे संघर्ष में नेटो के शामिल होने का ख़तरा है.
हालांकि इस सबके बावजूद, चेक गणराज्य ने यूक्रेन को टी-72 टैंक भेज दिए हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में ही राष्ट्रपति पुतिन ने ये चेतावनी दे दी थी कि रूस एक परमाणु संपन्न देश है और रूस के परमाणु हथियार तैयार और तैनात हैं.
अमेरिका ने इसकी प्रतिक्रिया में कुछ नहीं किया. अमेरिका का अनुमान है कि रूस ने अपने टेक्टिकल परमाणु हथियारों को अभी बंकरों से नहीं निकाला है. लेकिन पुतिन ने अपनी बात कह दी. वास्तव में वो ये कह रहे थे कि, "रूस के पास भारी मात्रा में परमाणु हथियार हैं, इसलिए ये मत सोचना कि तुम हमें डरा दोगे."
रूस की सेना कम क्षमता वाले टेक्टिकल परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल की नीति पर चलती है. रूस ये जानता है कि पश्चिमी देशों में परमाणु हथियारों के प्रति नफ़रत है. बीते 77 सालों में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं हुआ है.
यूक्रेन में बर्बाद हुआ रेलवे स्टेशन
नेटो के रणनीतिकारों की चिंता ये है कि एक बार परमाणु हथियार इस्तेमाल करने का भय टूट गया. भले ही नुकसान यूक्रेन के रणक्षेत्र में स्थानीय निशाने तक ही सीमित हो, तो रूस और पश्चिमी देशों के बीच विनाशकारी परमाणु युद्ध शुरू हो जाने का ख़तरा बढ़ जाएगा.
और फिर भी, जाहिरा तौर पर रूसी सैनिकों की ओर से किए गए हर अत्याचार के साथ, नेटो का संकल्प सख्त होता है और उसके अवरोध दूर हो जाते हैं. चेक गणराज्य पहले ही टैंक भेज चुका है, माना जाता है कि सोवियत युग के टी72s पुराने हैं, लेकिन वो यूक्रेन को टैंक भेजने वाला पहले नेटो देश हैं. स्लोवाकिया अपनी S300 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली भेज रहा है. जब यह युद्ध शुरू हुआ तो इस तरह के दोनों क़दम असंभव रूप से जोखिम भरे लगते थे.
संसद की रक्षा समिति के प्रमुख सांसद टोबियास एलवुड को लगता है कि रूस जब परमाणु हमले का डर दिखाता है तो वो गीदड़ भभकी दे रहा होता है और नेटो को यूक्रेन की मदद के लिए अधिक क़दम उठाने चाहिए.
एलवुड कहते हैं, "हम जो हथियार देने के इच्छुक हैं उन्हें लेकर अधिक सावधानी बरत रहे हैं. हमें और मजबूत रवैये की जरूरत है. हम यूक्रेनियन लोगों को जीवित रहने के लिए तो पर्याप्त दे रहे हैं लेकिन युद्ध जीतने लायक नहीं, और इसे बदलना होगा."
ऐसे में सवाल ये है कि रूस-यूक्रेन युद्ध कैसे उस स्थिति में पहुंच सकता है कि ये समूचे यूरोप में फैल जाए और नेटो को भी इसमें शामिल होना पड़े?
ऐसे कई संभावित परिदृश्य हैं जो निस्संदेह पश्चिमी रक्षा मंत्रियों को परेशान कर रहे होंगे.
1- यूक्रेन ओडेसा से नेटो से मिली एंटी-शिप मिसाइल को काले सागर में डेरा डाले रूसी युद्ध पोत पर दागता है, जिसमें क़रीब सौ नाविक और दर्जनों मरीन मारे जाते हैं. एक ही हमले में इस पैमाने पर हुई मौतें अभूतपूर्व होंगी और पुतिन पर इसी तरह की बदले की कार्रवाई का दबाव होगा.
2- रूस की स्ट्रेटजिक मिसाइलें नेटो देशों, जैसे की स्लोवाकिया या पोलैंड, से यूक्रेन की तरफ आ रहे आपूर्ति काफ़िले पर हमला करती हैं. यदि इस तरह के हमले में नेटो के लोग मारे जाते हैं तो इससे नेटो के संविधान का अनुच्छेद 5 प्रभावी हो सकता है, इससे हमले का शिकार बने देश की रक्षा के लिए समूचे नेटो गठबंधन को सामने आना पड़ सकता है.
3- डोनबास में भीषण लड़ाई में किसी औद्योगिक ठिकाने पर बड़ा धमाका होता है जिससे ज़हरीली रासायनिक गैसें निकलती है. ऐसा अभी तक के युद्ध में हो चुका है लेकिन उस मामले में कोई मौत नहीं हुई थी. लेकिन अगर सीरिया के घूटा इलाक़े में हुए रासायनिक हमले की तरह ही यदि यूक्रेन में भी मौतें होती हैं और अगर ये पता चलता है कि रूस ने जानबूझकर ऐसा किया है तब नेटो को दख़ल देना ही होगा.
ऐसा भी हो सकता है कि इस तरह की तीनों परिस्थितियों हो ही ना.
लेकिन जहां पश्चिमी देशों ने रूस के आक्रमण के जवाब में दुर्लभ स्तर की एकजुटता दिखाई है, ऐसे भी संकेत हैं कि नेटो देश सिर्फ़ प्रतिक्रिया ही कर रहे हैं और ये नहीं सोच रहे हैं कि ये युद्ध समाप्त कैसे होगा.
ब्रिटेन के सबसे अनुभव सैन्य अफ़सरों में से एक अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, "बड़ा रणनीतिक सवाल ये है कि क्या हमारी सरकार संकट के समाधान में जुटी है या उसके पास कोई वास्तविक रणनीति है."
वो कहते हैं कि इस सवाल के जवाब के लिए अंत के बारे में भी सोचना होगा.
"हम यहां ये हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं कि हम यूक्रेन को हर संभव मदद दें, लेकिन तीसरे विश्व युद्ध से पीछे रहें. लेकिन सच ये है कि पुतिन हमसे बड़े दांव लगाने वाले शख्स हैं."
वहीं सांसद एलवुड सहमत होते हुए कहते हैं, "रूस ये काम (युद्ध को बढ़ाने की चेतावनी) बहुत प्रभावी तरीक़े से करता है. और हम झांसे में आ जाते हैं. हमने संघर्ष को बढ़ाने की सीढ़ी को नियंत्रित करने की क्षमता को गंवा दिया है." (bbc.com)
-अभिनव गोयल
पाकिस्तान में इमरान ख़ान के बाद अब शहबाज़ शरीफ़ मुल्क़ के अगले प्रधानमंत्री होंगे. पाकिस्तान की संसद में सोमवार को बहुमत परीक्षण के लिए हुए मतदान में उन्हें जीत मिली. वो विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार हैं. उन्हें 174 वोट मिले.
इससे पहले रविवार तड़के एक अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान के बाद इमरान ख़ान को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. उनकी जगह उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ (पीटीआई) ने शाह महमूद क़ुरैशी को उम्मीदवार बनाया था मगर सोमवार को वोटिंग से पहले उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया. उनकी पार्टी ने वोटिंग के दौरान सदन की कार्रवाई का बहिष्कार किया. क़ुरैशी को एक भी वोट नहीं मिला.
शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के भाई हैं और पाकिस्तान में राजनीतिक तौर पर सबसे ताक़तवर समझने जानेवाले पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वे पिछले तीन साल से संसद में विपक्ष के नेता थे, लेकिन उन्हें केंद्र की राजनीति में नया चेहरा माना जाता है. आइए जानें कैसा रहा है शहबाज़ शरीफ़ का सियासी सफ़र.
ये बात पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता शहबाज़ शरीफ़ ने ऐसे वक्त में कही थी जब इमरान ख़ान सबसे बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रहे थे. उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा था. अपनी सरकार बचाने के लिए उन्हें विश्वास मत साबित करना था जो इमरान खान नहीं कर पाए. अब विपक्ष का चेहरा शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन रहे हैं.
फूल और बहार की बातें शायद शहबाज़ शरीफ़ इसी उम्मीद से कर रहे थे.
शहबाज़ शरीफ़ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के भाई हैं. भ्रष्टाचार के आरोप में जेल से रिहा होने के बाद से वे देश नहीं लौटे हैं. उनका लंदन में इलाज चल रहा है. हालांकि अब कहा जा रहा है कि वो अब पाकिस्तान लौट सकते हैं. नवाज़ शरीफ़ की सरकार को हराकर ही इमरान ख़ान पाकिस्तान की सत्ता पर क़ाबिज़ हुए थे.
शहबाज़ शरीफ़ के सामने कई बार पाकिस्तान की सत्ता संभालने का मौका आया, लेकिन उन्होंने अपने भाई नवाज़ शरीफ़ के साथ चलते हुए अपने रास्ते नहीं बदले. शहबाज़ शरीफ़ के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री बनने से लेकर नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता चुने जाने तक की कहानी बहुत दिलचस्प है.
शहबाज़ शरीफ़ अक्सर भाषणों और रैलियों के दौरान क्रांतिकारी कविताएं सुनाते हैं. सार्वजनिक मौकों पर बोलते हुए ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की तरह माइक गिराने की नकल करते हैं. इस बात को लेकर पाकिस्तान के टेलीविज़न चैनलों पर उनका मज़ाक उड़ाया जा चुका है.
शहबाज़ शरीफ़ का जन्म पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में हुआ. डेली टाइम्स वेबसाइट के मुताबिक शहबाज़ शरीफ़ कश्मीरी मूल के पंजाबी हैं. वे जम्मू-कश्मीर के मियां जनजाति से ताल्लुक़ रखते हैं.
एक के रिपोर्ट के मुताबिक़ शरीफ परिवार कश्मीर में अनंतनाग का रहने वाला था जो बाद में व्यापार के सिलसिले में अमृतसर के जटी उमरा गांव में रहने लगा. बाद में अमृतसर से परिवार लाहौर जा पहुंचा. शहबाज़ शरीफ़ की मां का परिवार कश्मीर के पुलवामा से था.
उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पाकिस्तान में 'इत्तेफ़ाक़ ग्रुप' को सफल बनाने में मुख्य भूमिका निभाई जिसे उनके पिता मोहम्मद शरीफ़ ने शुरू किया था. 'डॉन' अख़बार के मुताबिक़ 'इत्तेफाक ग्रुप' पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक समूह है जिसमें स्टील, चीनी, कपड़ा, बोर्ड उद्योग जैसे कारोबार शामिल हैं और शहबाज़ शरीफ़ इस ग्रुप के सह-मालिक हैं.
बीबीसी से बातचीत में पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच बताते हैं, ''शहबाज़ शरीफ़ का जन्म एक जाने-माने परिवार में हुआ था. शुरू में वे अपने बड़े भाई नवाज़ शरीफ को उनके कामों में मदद करते थे, फिर भाई की मदद से ही उन्होंने राजनीति में क़दम रखा.''
राजनीति में एंट्री
शहबाज़ शरीफ़ को साल 1985 में लाहौर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का अध्यक्ष चुना गया. उनके सियासी सफ़र की शुरुआत साल 1988 में हुई जब वो पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए, मगर विधानसभा भंग हो गई, वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.
इसके बाद शहबाज़ शरीफ़ ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा. साल 1990 में वे पाकिस्तान की संसद नेशनल असेंबली के लिए चुने गए. ये वही समय था जब नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे. जितने दिन नवाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री रहे उतना ही समय शहबाज़ शरीफ़ नेशनल असेंबली में बने रहे.
सेना के बढ़ते दबाव के कारण 1993 में नवाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसी साल शहबाज़ शरीफ़ पंजाब विधानसभा पहुँचे और 1996 तक विपक्ष के नेता रहे. 1997 में वे तीसरी बार पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए, और मुख्यमंत्री बने. वे लगभग 13 वर्षों तक प्रांत के मुख्यमंत्री रहे.
इस दौरान वह कई बार भाषणों में अपने भावनात्मक रवैये और कभी अपने काम करने के अंदाज़ के कारण राजनीतिक विरोधियों, मीडिया और लोगों के ध्यान का केंद्र बने रहे हैं. कभी वह बूट पहने बाढ़ के पानी में खड़े नज़र आते तो कभी सरकारी संस्थानों पर 'अचानक छापे' मारते नज़र आते थे.
शहबाज़ शरीफ़ की सरकार के अलग-अलग दौर में उनके राजनीतिक विरोधी और विपक्षी दल उनके इस अंदाज़ की आलोचना भी करते रहे, उनका मानना था कि वह यह सब कुछ दिखावे के लिए करते हैं, नहीं तो हर जगह मीडिया उनके साथ क्यों होता था.
हालांकि, शहबाज़ शरीफ़ को क़रीब से जानने वाले सरकारी अधिकारी और पत्रकार मानते हैं कि "ज़ाहिरी तौर पर इन सभी दिलचस्प लम्हों से अलग शहबाज़ शरीफ़ 'एक मेहनती नेता थे.' उनका मानना है कि शाहबाज़ शरीफ़ एक अच्छे प्रबंधक थे, जो अपने लिए एक बार कोई लक्ष्य तय कर लेते थे तो उसे पूरा करते थे.
सैन्य तख़्तापलट के समय हुई गिरफ़्तारी
शहबाज़ शरीफ़ को पंजाब का मुख्यमंत्री बने क़रीब दो साल ही हुए थे कि पाकिस्तान में सैन्य तख़्तापलट हो गया. 12 अक्टूबर 1999 की शाम जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार को गिरा दिया. ऐसे में शहबाज़ शरीफ़ को भी गिरफ़्तार कर लिया गया.
अप्रैल 2000 में शहबाज़ शरीफ़ के बड़े भाई नवाज़ शरीफ़ को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. उन्हें जनरल मुशर्रफ के विमान का अपहरण करवाने और आतंकवाद के आरोप के तहत सज़ा दी गई थी. क़रीब आठ महीने बाद पाकिस्तान की सैन्य सरकार ने नवाज़ शरीफ़ को माफ़ी दी और कथित समझौते के तहत परिवार के 40 सदस्यों के साथ उन्हें सऊदी अरब भेज दिया गया. इन 40 लोगों में नवाज़ शरीफ के छोटे भाई शहबाज़ शरीफ़ भी थे.
रॉयटर्स न्यूज एजेंसी के मुताबिक़, पाकिस्तान में गिरफ़्तारी के जोख़िम के बावजूद वे 2004 में अबू धाबी से फ़्लाइट पकड़कर लाहौर आ गए थे. कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें सऊदी अरब वापस भेज दिया गया था.
साल 2007 में जब शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान लौटे तो उन्हें इस मामले में अदालत से ज़मानत लेनी पड़ी, लेकिन आम चुनाव तक वो इस केस में बरी नहीं हुए थे, इसलिए उन्हें उपचुनाव में भाग लेना पड़ा. वह भाकर सीट से जीत कर एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री चुने गए, लेकिन अगले ही साल सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया.
पाकिस्तान में फिर से हुई वापसी
शहबाज़ शरीफ़ ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ बड़ी बेंच में याचिका दायर की. दो महीने बाद फ़ैसला उनके पक्ष में आया और उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री के पद पर बहाल कर दिया गया.
23 अगस्त 2007 को पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि शहबाज़ शरीफ़ और नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान लौट सकते हैं और राष्ट्रीय राजनीति में हिस्सा ले सकते हैं.
नवंबर, 2007 में नवाज़ शरीफ के साथ शहबाज़ शरीफ़ भी पाकिस्तान लौटे. 2008 में नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन सरकार नहीं बना पाए.
दूसरी तरफ़ 2008 में शहबाज़ शरीफ़ चौथी बार पंजाब विधानसभा में सदस्य के रूप में चुने गए और अगले पांच सालों तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे.
2013 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) पंजाब में प्रचंड जनादेश के साथ सत्ता में आई. शहबाज़ शरीफ़ पंजाब के मुख्यमंत्री चुने गए. दूसरी तरफ बड़े भाई नवाज़ शरीफ़ ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. शहबाज़ शरीफ़ ख़ुद को मुख्यमंत्री की बजाय पंजाब का ख़ादम-ए-आला यानी मुख्य सेवक सुनना पसंद करते हैं.
लाहौर की तस्वीर बदली
पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच का मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ एक अच्छे मैनेजर रहे हैं. बीबीसी से बातचीत में सुहैल वरैच बताते हैं, ''शहबाज़ शरीफ़ ने ना सिर्फ लाहौर बल्कि पूरे पंजाब की तस्वीर बदलने का काम किया है. वे पंजाब में डेवलपमेंट के लिए जाने जाते हैं. मेट्रो बस और ऑरेंज ट्रेन का श्रेय शहबाज़ शरीफ़ को ही जाता है''
शहबाज़ शरीफ़ ने 'सस्ती रोटी' और 'लैपटॉप योजना' शुरू की थी जिसकी काफ़ी आलोचना हुई. वहीं दूसरी तरफ़ आशियाना हाउसिंग स्कीम के लिए उन्हें सराहा गया.
शहबाज़ शरीफ़ अपने बड़े भाई नवाज़ शरीफ़ के सामने राजनीति में हमेशा दूसरे दर्जे की भूमिका निभाते रहे. प्रधानमंत्री हमेशा नवाज़ शरीफ़ बने और मुख्यमंत्री शहबाज़ शरीफ़.
हालांकि, साल 2017 में स्थिति उस समय बदल गई जब सुप्रीम कोर्ट ने पनामा मामले में नवाज़ शरीफ़ को आजीवन अयोग्य क़रार दे दिया. पार्टी की अध्यक्षता तो शहबाज़ शरीफ़ के पास आ गई लेकिन प्रधानमंत्री पद शाहिद ख़ाकान अब्बासी के हिस्से में आया.
उधर, अदालत से सज़ा सुनाए जाने के बाद कुछ समय जेल की सज़ा भुगतने के बाद नवाज़ शरीफ़ इलाज की इजाज़त लेकर लंदन चले गए और अभी तक वापस नहीं आये हैं.
इसी कमी को पूरा करने के लिए साल 2018 के चुनाव में शहबाज़ शरीफ़ ने पंजाब छोड़कर केंद्र में आने का फ़ैसला किया. वो नेशनल असेंबली के सदस्य चुने गए और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने की वजह से, विपक्ष के नेता भी चुने गए.
जेल में गुज़ारे कई महीने
पाकिस्तान में 2018 में आम चुनावों में पीएमएल-एन ने शहबाज़ शरीफ़ को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया था. इस आम चुनाव में तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और इमरान ख़ान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. चुनाव हारने के बाद शहबाज़ शरीफ़ को विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया.
साल 2020 में शहबाज़ शरीफ़ की ज़मानत याचिका ख़ारिज होने के बाद उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. क़रीब सात महीने लाहौर की कोट लखपत सेंट्रल जेल में रहने के बाद वे बाहर आए.
उस समय इमरान ख़ान के सलाहकार शहज़ाद अकबर ने उनके बेटे हमज़ा और सलमान पर भी फ़र्ज़ी खातों के ज़रिए मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने के आरोप लगाए थे. गिरफ़्तारी से पहले शहबाज़ शरीफ़ ने इमरान ख़ान पर साज़िश के तहत गिरफ़्तार करवाने के आरोप लगाए थे.
24 मई 2021, ये वो दिन था जब नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता शहबाज़ शरीफ़ ने विपक्षी दलों के नेताओं को डिनर के लिए बुलाया. ये मुलाक़ात इस्लामाबाद में हुई. इस डिनर पर शहबाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान की सत्ता में मौजूद इमरान के नेतृत्व वाली सरकार को हटाने के लिए एक मंच पर एकजुट होने की अपील की.
इसके बाद लगातार विपक्ष इमरान ख़ान की सरकार को अलग-अलग मोर्चों पर घेरता रहा. हाल के दिनों में पाकिस्तान की सियासत में सारे दाँव-पेच खेले गए. एक के बाद एक सत्तारूढ़ तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की सरकार से कई सहयोगियों ने समर्थन वापस ले लिया और इमरान खान की सरकार अल्पमत में आ गई.
विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को 342 सांसदों की नेशनल असेंबली में 172 सांसदों के समर्थन की ज़रूरत थी. इसी संख्याबल के दम पर विपक्षी पार्टियों ने इमरान ख़ान को सत्ता से बाहर कर दिया.
शहबाज़ शरीफ़ के सेना के साथ रिश्तों पर बीबीसी से बात करते हुए पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच बताते हैं, ''बड़े भाई नवाज शरीफ के मुकाबले शहबाज़ शरीफ़ के सेना के साथ शुरू से काफी अच्छे रिश्ते हैं. उन्हें लंबा राजनीति का अनुभव है. वे अच्छे गवर्नर रहे हैं. कंट्रोल करने की क्षमता उनमें काफ़ी अच्छी है''.
शहबाज़ शरीफ़ की निजी जिंदगी पर बात करते हुए राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वरैच बताते हैं, ''साल 2003 में शहबाज़ शरीफ़ ने तहमीना दुर्रानी से तीसरी शादी की थी. इस शादी से उनके कोई औलाद नहीं है. पहली पत्नी से दो बेटे हैं, दूसरी पत्नी से एक बेटी है. ज़्यादातर समय वो अपनी पहली पत्नी के साथ रहते हैं''
शहबाज़ शरीफ़ के बेटे हमज़ा शरीफ़ का जन्म 6 सितंबर 1974 को लाहौर में हुआ था. उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरे करने के बाद लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एलएलबी की डिग्री हासिल की.
हमज़ा शरीफ़ 2008-13 और 2013-18 के दौरान लगातार दो बार पाकिस्तान के सांसद रहे हैं. वे पंजाब की विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे और कुछ ही दिनों पहले वो पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए हैं. (bbc.com)
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने शहबाज़ शरीफ़ को नया प्रधानमंत्री चुन लिया है.
इस चुनाव के बाद शरीफ़ ने असेंबली को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि ये इतिहास में पहली बार था कि अविश्वास प्रस्ताव कामयाब हुआ और सच की जीत हुई, झूठ की हार हुई.
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि आज का दिन महान दिन है और सदन ने आज एक चुने हुए प्रधानमंत्री को रास्ता दिखाया है और इस दिन को यादगार दिन के तौर पर मनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी रुपया 8 रुपये मजबूत हुआ है, 190 से वापस 182 वापस आया है.
इमरान ख़ान के ''लेटर'' वाले दावे पर बोले शहबाज़
इस दौरान शहबाज़ शरीफ़ उस लेटर का भी जिक्र करते नज़र आए जिसके बारे में इमरान ख़ान बार-बार कहते दिखे थे. शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि ये झूठ कहा जा रहा था कि एक पत्र आया था, उन्होंने कहा कि ये अब दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए.
शहबाज़ ने दावा किया कि वो काफी पहले ही आसिफ़ अली ज़रदारी और बिलावल भुट्टो से मिल चुके थे और अविश्वास प्रस्ताव को लाए जाने का फ़ैसला लिया जा चुका था. उन्होंने कहा कि बड़े सोच विचार के बाद ये फैसला लिया गया कि ''इतिहास की इस सबसे अक्षम सरकार'' के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा.
उनके मुताबिक, आपसी विचार-विमर्श के बाद 8 मार्च को प्रस्ताव पेश किया गया था. शरीफ़ ने कहा कि इस सदन के हर सदस्य को यह जानने का अधिकार है कि सच्चाई क्या है. उनके मुताबिक ये सच्चाई सामने आनी चाहिए. (bbc.com)
शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री चुन लिए गए हैं. इससे पहले पाकिस्तान की एक अदालत ने शहबाज़ शरीफ़ और उनके बेटे हमज़ा को राहत दी थी.
शहबाज़ शरीफ़ और उनके बेटे हमज़ा के ख़िलाफ़ चल रहे हाई प्रोफ़ाइल हवाला केस की सुनवाई 27 अप्रैल तक के लिए टाल दी है. साथ ही 27 तारीख़ तक की ही अग्रिम जमानत भी दी गई है.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को अदालत के एक अधिकारी ने बताया कि शहबाज़ शरीफ़ ने ख़ुद को व्यक्तिगत पेशी से छूट दिए जाने को लेकर याचिका दायर की थी. साथ ही अपने लिए और अपने बेटे हमज़ा के लिए अग्रिम जमानत को 27 अप्रैल तक के लिए बढ़ाने की अपील की थी, जिसे फेडरल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एफआईए) की विशेष अदालत ने मंजूर कर लिया.
ये मामला मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हुआ है. एफआईए ने नवंबर 2020 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और एंटी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की कई धाराओं में शहबाज़ और उनके बेटों हमज़ा और सुलेमान के ख़िलाफ़ केस दर्ज़ किया था. सुलेमान फ़रार हैं और ब्रिटेन में रहे रहे हैं.
पाकिस्तान की फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एफ़आईए) ने इमरान ख़ान के पूर्व सलाहकार और मुख्य सचिव जैसे अधिकारियों का नाम स्टॉप लिस्ट में डाल दिया गया है, जिसके बाद ये देश छोड़कर नहीं जा सकते हैं.
ख़ान के ख़ास सहयोगी रह चुके शाहबाज़ गिल और शहज़ाद अक़बर का नाम भी स्टॉप लिस्ट में शामिल किया गया है.
इसके अलावा पूर्व मुख्य सचिव आज़म ख़ान, पीटीआई के सोशल मीडिया प्रमुख़ अर्सलान ख़ालिद और मोहम्मद रिज़वान के नाम भी नो-फ़्लाई लिस्ट में शामिल हैं. पंजाब डायरेक्टर जनरल गौहर नफ़ीस का नाम भी सूची में है. ये कार्रवाई शनिवार को इमरान ख़ान की सरकार गिरने के बाद की गई है.
एग्ज़िट कंट्रोल लिस्ट यानी ईसीएल में किसी का नाम डालने में ज़्यादा समय लगता है जिसके कारण एफ़आईए ने कम समय में लोगों को देश छोड़ने से रोकने के लिए 2003 में स्टॉप लिस्ट की शुरुआत की थी.
पाकिस्तान में आज अगले प्रधानमंत्री को चुना जाना है और पीएमएल-एन के शहबाज़ शरीफ़ का इस पद पर नियुक्त होना लगभग तय माना जा रहा है.
इससे पहले बीते शनिवार देर रात नेशनल असेंबली में इमरान ख़ान सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई जिसमें 174 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसके बाद ख़ान की सरकार गिर गई.
रविवार को इमरान ख़ान के समर्थन में उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) ने देशभर में प्रदर्शन किया. कराची और लाहौर में हज़ारों की तादाद में ख़ान के समर्थकों ने नारेबाज़ी की.
इमरान ख़ान ने दावा किया है कि उन्हें सत्ता से बाहर निकालने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में साजिश रची गई थी. उन्होंने किसी भी नई सरकार को स्वीकार करने से इनकार किया है.
पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार है कि किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव सफल रहा हो.
सोमवार यानी आज पाकिस्तान असेंबली का एक अहम सत्र होने वाला है जिसमें नया प्रधानमंत्री चुना जाना है. नए प्रधानमंत्री अगले चुनावों तक यानी अक्तूबर 2023 तक कार्यभार संभालेंगे.
पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान रहे इमरान ख़ान 2018 में देश के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने और अर्थव्यवस्था में सुधार का वादा किया.
लेकिन आर्थिक संकट में घिरे पाकिस्तान के लिए मुश्किलें बढ़ती गईं. बीते साल मार्च में उनकी पार्टी के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी जिसके बाद उनके लिए एक नया राजनीतिक संघर्ष शुरू हो गया था.
इमरान ख़ान बार-बार ये आरोप लगाते रहे हैं कि देश का विपक्ष विदेशी ताकतों के साथ मिल कर काम कर रहा है. उनका कहना है कि रूस और चीन के मामले में उन्होंने अमेरिका के साथ खड़े होने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उन्हें सत्ता से निकालने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में साजिश रची जा रही थी.
अमेरिका ने कहा है कि इमरान ख़ान के आरोपों में 'कोई सच्चाई' नहीं है और कहा है कि उन्होंने इसके पक्ष में कभी कोई सबूत नहीं दिया है.
पाकिस्तान में बीते रविवार (3 अप्रैल, 2022) को प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होनी थी लेकिन संसद के डिप्टी स्पीकर ने वोटिंग न कराकर इसे असंवैधानिक क़रार देते हुए रद्द कर दिया.
उन्होंने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद पांच का हवाला दिया.
डिप्टी स्पीकर क़ासिम सूरी ने अविश्वास प्रस्ताव रद्द करते हुए कहा था कि चुनी हुई सरकार को किसी विदेशी ताक़त को साज़िश के ज़रिए गिराने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.
इसके तुरंत बाद इमरान ख़ान ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति से संसद भंग करने की सिफ़ारिश की जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार करते हुए आदेश जारी कर दिया.
इसके साथ ही पाकिस्तान में संसद भंग हो गई और इमरान ख़ान कार्यवाहक प्रधानमंत्री बन गए.
इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और इस फ़ैसले को असंवैधानिक क़रार देते हुए पलट दिया. (bbc.com)
(एम. जुल्करनैन)
लाहौर (पाकिस्तान), 11 अप्रैल। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान ने प्रधानमंत्री पद से स्वयं को हटाए जाने तथा देश में ‘‘अमेरिका समर्थित’’ सरकार के गठन के खिलाफ पाकिस्तान और विदेश में प्रदर्शन करने के लिए अपने समर्थकों का शुक्रिया अदा किया।
खान के आह्वान पर पीटीआई के समर्थकों ने रविवार रात नौ बजे के बाद प्रदर्शन शुरू किया, जो कई घंटों तक चला।
खान ने ट्वीट किया, ‘‘ स्थानीय ‘मीर जाफरों’ द्वारा किए गए अमेरिका समर्थित शासन परिवर्तन के विरोध में व्यापक प्रदर्शन करने के लिए सभी पाकिस्तानियों को धन्यवाद। यह दिखाता हे कि देश और विदेश सभी जगह पाकिस्तानियों ने इसका पुरजोर तरीके से विरोध किया है।’’
इससे पहले, खान ने रविवार की सुबह ट्वीट किया था, ‘‘पाकिस्तान में ‘‘शासन परिवर्तन की विदेशी ताकतों की साजिश’’ के खिलाफ ‘‘आज स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत करें’’। उन्होंने कहा, ‘‘हमेशा लोग ही अपनी संप्रभुता तथा लोकतंत्र की रक्षा करते हैं।’’
महिलाओं और बच्चों समेत कई पीटीआई समर्थकों ने खान के साथ एकजुटता दिखाई। लाहौर में रैली रविवार को रात नौ बजे शुरू हुई और सोमवार तड़के तीन बजे तक चली।
फैसलाबाद, मुल्तान, गुजरांवाला, वेहारी, झेलम और गुजरात जिलों सहित पंजाब प्रांत के अन्य हिस्सों से भी बड़ी सभाएं होने की खबर है। इस्लामाबाद और कराची में भी पीटीआई समर्थकों की बड़ी भीड़ उमड़ी।
खान को प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के खिलाफ शिकागो, दुबई, टोरंटो और ब्रिटेन सहित विदेशों में भी विरोध प्रदर्शन हुए।
इस प्रदर्शनों का नेतृत्व पीटीआई के स्थानीय नेतृत्व ने किया। इस दौरान पार्टी के कार्यकर्ता एवं समर्थक अमेरिका के खिलाफ नारे लगा रहे थे। खान ने अपनी सरकार को हटाने के पीछे अमेरिका का हाथ होने का दावा किया है। वे पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष शहबाज शरीफ के खिलाफ भी नारे लगा रहे थे, जिनके सोमवार को देश का नया प्रधानंत्री बनने की संभावना है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान के खिलाफ भी नारेबाजी की गई।
प्रदर्शनकारियों में से अधिकतर ने हाथ में तख्तियों ले रखी थीं, जिन पर लिखा था ‘‘आयातित सरकार स्वीकार्य नहीं है।’’
यह ‘‘आयातित सरकार स्वीकार्य नहीं है’’ सोमवार तड़के तक 27 लाख से अधिक ट्वीट के साथ पाकिस्तान में ट्विटर पर ‘ट्रेंड’ भी कर रहा था।
पूर्व संघीय मंत्री और पीटीआई की वरिष्ठ नेता शिरीन मजारी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘पाकिस्तान और विदेशों से इस तरह के अद्भुत दृश्य...पाकिस्तानियों ने अमेरिकी शासन परिवर्तन को खारिज कर दिया है। ’’
उन्होंने कहा कि ‘‘आयातित सरकार स्वीकार्य नहीं है’’...उनकी पसंदीदा तख्तियों में से है।
उन्होंने पाकिस्तानी मीडिया के देशभर में, खासकर लाहौर और कराची में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को उचित तरीके से ना दिखाने का आरोप भी लगाया।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने अपने समर्थकों का बाद में शुक्रिया अदा किया। पार्टी ने ट्विटर पर साझा किए गए एक बयान में कहा, ‘‘ शुक्रिया पाकिस्तान। हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो किसी भी विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ खड़ा है, हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो इमरान खान के साथ खड़ा है।’’
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने का नेशनल असेंबली उपाध्यक्ष का फैसला सर्वसम्मति से रद्द कर दिया था। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही नेशनल असेंबली को बहाल करने का आदेश दिया था।
नेशनल असेंबली का महत्वपूर्ण सत्र शनिवार को आयोजित हुआ, जिसमें सदन के अध्यक्ष असद कैसर ने अलग-अलग कारणों से तीन बार सदन की कार्यवाही स्थगित की। इस्तीफे की घोषणा के बाद कैसर ने पीएमएल-एन के अयाज सादिक को सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करने को कहा, जिसके बाद अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराया गया और वह पारित हो गया।
विपक्षी दलों ने आठ मार्च को इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। इसके बाद खान ने इसके पीछे विदेशी साजिश होने का आरोप लगाते हुए अमेरिका पर निशाना साधा था, लेकिन अमेरिका ने आरोपों को बेबुनियाद करार दिया था।
क्रिकेटर से नेता बने खान 2018 में 'नया पाकिस्तान' बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे। हालांकि, वह वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रण में रखने की बुनियादी समस्या को दूर करने में बुरी तरह विफल रहे। नेशनल असेंबली का वर्तमान कार्यकाल अगस्त, 2023 में समाप्त होना था। (भाषा)
जर्मनी में रूस के समर्थन में रविवार को फिर प्रदर्शन हुए. कुछ लोग इसे यूक्रेन पर मॉस्को के हमले के समर्थन के रूप में देखते हैं लेकिन आयोजकों का कहना है कि उनका लक्ष्य देश में रूसियों के खिलाफ भेदभाव को उजागर करना है.
जर्मनी में रविवार को दूसरे दिन भी रूस समर्थक प्रदर्शनकारियों ने रैली निकाली और यूक्रेन में हमले के बाद से देश की बड़ी रूसी भाषी आबादी के साथ भेदभाव को खत्म करने की मांग की. लगभग 600 लोगों ने देश के वित्तीय केंद्र फ्रैंकफर्ट में मार्च किया जिस दौरान कई लोगों ने रूसी झंडे लहराए. जर्मन पुलिस के मुताबिक उत्तरी शहर हनोवर में भी इसी तरह का प्रदर्शन हुआ, जिसमें लगभग 350 कारों का काफिला शामिल था.
हालांकि रैली की शुरुआत में देरी हुई क्योंकि अधिकारियों ने आदेश दिया था कि वाहनों के बोनट को झंडे से ढका न जाए. ऐसे प्रदर्शनों के आयोजकों ने कहा कि वे जर्मनी में रहने वाले रूसियों के प्रति बढ़ती असहिष्णुता जैसे मुद्दों को उजागर करना चाहते हैं. हालांकि कई समीक्षकों ने सवाल किया है कि क्या प्रदर्शन कुछ हद तक युद्ध का समर्थन करते हैं. उनके अनुसार इस तरह की दोनों रैलियां यूक्रेन समर्थक प्रदर्शनों के जवाब में रैलियों के अनुरूप हैं.
जर्मनी में रूसी मूल के लोग
जर्मनी लगभग 12 लाख रूसी और लगभग 3,25,000 यूक्रेनियों का घर है. 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से जर्मन पुलिस ने रूसियों के खिलाफ 383 घृणा अपराध और यूक्रेनियन के खिलाफ 181 अपराध दर्ज किए हैं.
एक दिन पहले, रूस समर्थक काफिले कई जर्मन शहरों से होकर गुजरे थे. लगभग 190 कारों का एक काफिला "रूसी भाषी लोगों के खिलाफ भेदभाव के खिलाफ" नारे के साथ स्टुटगार्ट से होकर गुजरा. कार रैली में भाग लेने वाले "रूसी फोबिया बंद करो" वाले बैनर लिए हुए थे. रैली के दौरान वे स्कूलों में रूसी भाषी बच्चों के साथ भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान कर रहे थे.
शहर के अधिकारियों ने पहले ही रैली में शामिल होने वाले लोगों को चेतावनी दी थी कि कार्यक्रम यूक्रेन संघर्ष का समर्थन नहीं कर सकता. अधिकारियों ने जेड और वी जैसे प्रतीकात्मक अक्षरों के इस्तेमाल के खिलाफ भी चेतावनी दी, जो रूसी आक्रमण और समर्थन का प्रतीक बन गए हैं.
विरोध के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया
रूस-समर्थक प्रदर्शनों को जर्मनी में कड़ी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं और कई लोग ऐसी रैलियों को क्रेमलिन के समर्थन के रूप में देखते हैं. इसी तरह के समर्थकों ने पिछले हफ्ते बर्लिन में कार रैली की थी, जिसकी कई लोगों ने कड़ी आलोचना की थी. जर्मन अखबार बिल्ड ने इसे "शर्मनाक परेड" कहा था.
प्रदर्शन को गैर-राजनीतिक बताया गया था, लेकिन उसी दिन यूक्रेनी शहर बुचा में कथित रूसी अत्याचारों का खुलासा हुआ था. जर्मनी में यूक्रेन के राजदूत आंद्री मेलनिक ने गुस्से में प्रतिक्रिया देते हुए बर्लिन की मेयर फ्रांजिस्का गेफी से सवाल किया, "आप इस शर्मनाक काफिले को बर्लिन के केंद्र से कैसे गुजरने दे सकती हैं?"
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका), 11 अप्रैल। टेस्ला के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एलन मस्क पूर्व घोषणा के मुताबिक, अब ट्विटर के निदेशक मंडल में शामिल नहीं होंगे। अरबपति मस्क ट्विटर के सबसे बड़े शेयरधारक बने हुए हैं।
ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। मस्क ने सप्ताहांत में ट्विटर पर संभावित बदलावों का सुझाव दिया था, जिसमें साइट को विज्ञापन-मुक्त बनाना भी शामिल है। ट्विटर के 2021 राजस्व का लगभग 90 प्रतिशत विज्ञापनों से आया।
अग्रवाल ने मूल रूप से टेस्ला के कर्मचारियों को भेजे गए एक रीपोस्टेड नोट में लिखा, ‘‘बोर्ड में एलन की नियुक्ति आधिकारिक तौर पर 4/9 से प्रभावी होनी थी, लेकिन एलन ने उसी सुबह स्पष्ट किया कि वह बोर्ड में शामिल नहीं होंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि यह बेहतरी के लिए है।’’
अग्रवाल ने मस्क के निर्णय के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। उन्होंने लिखा, ‘‘ट्विटर बोर्ड का मानना है कि एलन को कंपनी के एक भरोसेमंद सहायक के रूप में माना जाता है, जहां उन्हें सभी बोर्ड सदस्यों की तरह कंपनी और हमारे सभी शेयरधारकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करना है, यह सबसे बेहतर रास्ता है।’’ (एपी)
(एम. जुल्करनैन)
लाहौर (पाकिस्तान), 11 अप्रैल। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थकों ने विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के जरिए पूर्व प्रधानमंत्री एवं पार्टी अध्यक्ष इमरान खान को सत्ता से बाहर करने के खिलाफ लाहौर के लिबर्टी चौक पर एक रैली निकाली।
पीटीआई के समर्थकों की यह रैली रविवार को रात नौ बजे शुरू हुई और सोमवार तड़के तीन बजे तक चली। रैली के दौरान महिलाओं और बच्चों समेत कई समर्थकों ने खान के साथ एकजुटता दिखाई।
फैसलाबाद, मुल्तान, गुजरांवाला, वेहारी, झेलम और गुजरात जिलों सहित पंजाब प्रांत के अन्य हिस्सों से भी बड़ी सभाएं होने की खबर है। इस्लामाबाद और कराची में भी पीटीआई समर्थकों की बड़ी भीड़ उमड़ी।
इमरान खान के आह्वान पर रविवार रात नौ बजे के बाद अलग-अलग शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जो कई घंटों तक जारी रहे।
इससे पहले खान ने रविवार सुबह ट्वीट किया था, ‘‘पाकिस्तान में ‘‘शासन परिवर्तन में विदेशी ताकतों’’ के खिलाफ ‘‘आज स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत करें’’।
उन्होंने, ‘‘हमेशा लोग ही अपनी संप्रभुता तथा लोकतंत्र की रक्षा करते हैं।’’
खान ने एक अन्य ट्वीट में, लाहौर रैली की तस्वीर साझा की और कहा कि उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में लोगों का जमावड़ा कभी नहीं देखी।
इस प्रदर्शनों का नेतृत्व पीटीआई के स्थानीय नेतृत्व ने किया। इस दौरान पार्टी के कार्यकर्ता एवं समर्थक अमेरिका के खिलाफ नारे लगा रहे थे। खान ने अपनी सरकार को हटाने के पीछे अमेरिका का हाथ होने का दावा किया है। वे पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष शहबाज शरीफ के खिलाफ भी नारे लगा रहे थे, जिनके सोमवार को देश का नया प्रधानंत्री बनने की संभावना है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान के खिलाफ भी नारेबाजी की गई।
प्रदर्शनकारियों में से अधिकतर ने हाथ में तख्तियों ले रखी थीं, जिन पर लिखा था ‘‘आयातित सरकार स्वीकार्य नहीं है।’’
यह ‘‘आयातित सरकार स्वीकार्य नहीं है’’ सोमवार तड़के तक 27 लाख से अधिक ट्वीट के साथ पाकिस्तान में ट्विटर पर ‘ट्रेंड’ भी कर रहा था।
पूर्व संघीय मंत्री और पीटीआई की वरिष्ठ नेता शिरीन मजारी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘पाकिस्तान और विदेशों से इस तरह के अद्भुत दृश्य...पाकिस्तानियों ने अमेरिकी शासन परिवर्तन को खारिज कर दिया है। ’’
उन्होंने कहा कि ‘‘आयातित सरकार स्वीकार्य नहीं है’’...मेरी पसंदीदा तख्तियों में से है।
उन्होंने पाकिस्तानी मीडिया के देशभर में, खासकर लाहौर और कराची में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को उचित तरीके ने ना दिखाने का आरोप भी लगाया।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने अपने समर्थकों का बाद में शुक्रिया अदा किया। पार्टी ने ट्विटर पर साझा किए एक बयान में कहा, ‘‘ शुक्रिया पाकिस्तान। हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो किसी भी विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ खड़ा है, हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो इमरान खान के साथ खड़ा है।’’
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने का नेशनल असेंबली उपाध्यक्ष का फैसला बृहस्पतिवार को सर्वसम्मति से रद्द कर दिया था। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही नेशनल असेंबली को बहाल करने का आदेश दिया था।
नेशनल असेंबली का महत्वपूर्ण सत्र शनिवार को आयोजित हुआ, जिसमें सदन के अध्यक्ष असद कैसर ने अलग-अलग कारणों से तीन बार सदन की कार्यवाही स्थगित की। इस्तीफे की घोषणा के बाद कैसर ने पीएमएल-एन के अयाज सादिक को सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करने को कहा, जिसके बाद अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराया गया और वह पारित हो गया।
विपक्षी दलों ने आठ मार्च को इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। इसके बाद खान ने इसके पीछे विदेशी साजिश होने का आरोप लगाते हुए अमेरिका पर निशाना साधा था, लेकिन अमेरिका ने आरोपों को बेबुनियाद करार दिया था।
क्रिकेटर से नेता बने खान 2018 में 'नया पाकिस्तान' बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे। हालांकि, वह वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रण में रखने की बुनियादी समस्या को दूर करने में बुरी तरह विफल रहे। नेशनल असेंबली का वर्तमान कार्यकाल अगस्त, 2023 में समाप्त होना था। (भाषा)
इमरान खान ने पाकिस्तान में रविवार को एक और रैली की. प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद लाहौर में गई इस रैली में इमरान ने कहा कि अब देश में विदेशी साजिश के खिलाफ संघर्ष शुरू हो गया है.
इमरान खान ने कहा कि देश में जनता की चुनी हुई सरकार को गिराने के लिए विदेश से साजिश की जा रही है. लेकिन जनता इनका जवाब देगी.
इससे पहले उन्होंने ट्वीट कर कहा, '' पाकिस्तान में आज से ‘सत्ता बदलाव के लिए विदेशी षडयंत्र के ख़िलाफ़ आज़ादी का संघर्ष’ शुरू हो रहा है.''
पाकिस्तान में सोमवार को नए प्रधानमंत्री का चुनाव होगा. इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ने शाह महमूद कुरैशी को उम्मीदवार बनाया है. उनका मुक़ाबला विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार शहबाज़ शरीफ़ से है. इमरान ख़ान बार-बार आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें ‘सत्ता से बाहर निकालने के लिए विदेशी ताक़तों ने षडयंत्र किया है.’ (bbc.com)
वुसतुल्लाह ख़ान
ये ठीक है कि पाकिस्तान में आज तक किसी प्रधानमंत्री ने पांच वर्ष की मुद्दत पूरी नहीं की.
ये भी ठीक है कि कोई प्रधानमंत्री फ़ौज ने कान पकड़कर निकाला तो किसी को न्याय तंत्र ने दरवाज़ा दिखाया. मगर इमरान ख़ान को सिवाए विपक्ष के कोई भी घर नहीं भेजना चाहता था. यूं वो पहले प्रधामंत्री बन गए जिन्हें संविधान में लिखे गए तरीके के मुताबिक घर जाना पड़ा.
लेकिन ये भी इतनी आसानी से नहीं हुआ. शुरू शुरू में जब अविश्वास प्रस्ताव पार्टियामेंट में जमा कराया गया तो प्रधानमंत्री ने उसे मज़ाक समझते हुए कहा कि मैं तो ख़ुद ऊपर वाले से दुआ कर रहा था कि ऐसा कोई मौका आ जाए कि मैं विपक्ष के चोरों डाकुओं पर खुलकर हाथ डाल सकूं. जब मैं इस अविश्वास को विश्वास में बदलकर पार्टियामेंट से घर जाऊंगा तो मेरे हाथ खुल चुके होंगे और फिर मैं इन चोरों डाकुओं का वो हश्र करूंगा कि इनकी नस्लें तक याद रखेंगी.
ज्यों ज्यों दिन गुज़रते गए प्रधानमंत्री को लगने लगा कि मामला शायद थोड़ा सीरियस है. परंतु उन्होंने इसका तोड़ गद्दारी के पुराने चूरन से निकालने की कोशिश की और नारा लगा दिया कि ये सब अमेरिका करवा रहा है और भरे जलते में काग़ज भी लहराया.
बाद में पता चला कि ये गद्दारी कार्ड तो दरसअल वो इंटरनल मेमो है जिस वॉशिंगटन से पाकिस्तानी राजदूत ने एक अमेरिकी अफ़सर से मुलाक़ात का हाल भेजा है. इसमें वो शिकायतें थीं जो अमेरिका को पाकिस्तान से थीं और ऐसे सीक्रेट मेमो कभी भी खुलेआम नहीं लहराए जाते. उनसे विदेशी मामलों का दफ़्तर तयशुदा नियमों के हिसाब से निपटता है.
इमरान ख़ान जो पौने चार वर्ष पूरी कौम से कहते रहे कि आपने घबराना नहीं है. वो सिर्फ़ एक अविश्वास प्रस्ताव आने से घबरा गए.
जब गद्दारी का चूरन भी गुप्तचर संस्थाओं, न्याय तंत्र और सबसे नजदीकी दोस्त चीन तक ने खरीदने से इनकार कर दिया तो फिर ख़ान साहब ने कौमी असेंबली के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को आदेश दिया कि किसी भी सूरत अविश्वास प्रस्ताव मंज़ूर न होने पाए.
जैसे ही स्पीकर ने ये प्रस्ताव रद्द किया अगले एक घंटे में ख़ान साहब ने राष्ट्रपति के दस्तख़्तों से असेंबली तोड़ने की घोषणा करवा दी.
मगर उच्चतम न्यायालय ने चार दिन बाद ही इन तमाम हरकतों को संविधान के ख़िलाफ़ करार देते हुए असेंबली बहाल करके अविश्वास पत्र पर एक ही दिन में कार्यवाही मुक्कमल करने का आदेश दिया.
स्पीकर और ख़ान साहब ने इस आदेश की भी धज्जियां उड़ाने की कोशिश की और जाते जाते सुना है कि आर्मी चीफ़ को भी बदलने की कोशिश की.
जब पार्लियामेंट के बाहर कै़दी ले जाने वाली गाड़ी खड़ी हो गई. उच्चतम न्यायालय के दरवाज़े रात 12 बजे खुल गए और दो आला अफ़सर उससे दो घंटे पहले प्रधानमंत्री भवन के लॉन में हेलीकॉप्टर से उतरे और उन्होंने ख़ान साहब को अविश्वास प्रस्ताव का मतलब ठीक से समझाया तब जाकर ख़ान साहब ठंडे पड़े.
मगर तब भी त्यागपत्र देकर घर जाने की बजाए अविश्वास प्रस्ताव की मंज़ूरी का इंतज़ार करते रहे.
इमरान ख़ान ने आख़िरी दिनों में भारत की आज़ाद विदेशी पॉलिसी की बहुत तारीफ की. काश कोई ख़ान साहब को ये भी बता देता कि उसी भारत के एक नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अविश्वास प्रस्ताव को किस तरह स्वीकार करके पार्लियामेंट बिल्डिंग से घर जाने का बाइज्ज़त रास्ता चुना और फिर अगला चुनाव जीतकर उसी रास्ते से लोकसभा में दाखिल हुए.
मालूम नहीं आपमें से कितनों ने वो मुहावरा सुना है कि राजा जी के दरबार में सौ जूते भी खाए और सौ प्याज़ भी. जिन्होंने सुन रखा है वो इसका बैकग्राउंड उन्हें बता दें जिन्होंने नहीं सुन रखा.
अब हम एक बार फिर नए पाकिस्तान से पुराने वाले में दाखिल हो गए हैं. मगर इस बार संवैधानिक दरवाज़े से. स्वागत नहीं करोगे हमारा. (bbc.com)
शनिवार की रात पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव 174 वोटों से कामयाब हो गया. इसके साथ ही प्रधानमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल समय से पहले ही ख़त्म हो गया.
अब देश के नए प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए सोमवार का दिन तय किया गया है. लेकिन सत्ता हस्तांतरण के इस अंतराल के दौरान देश को कौन चला रहा है?
पाकिस्तान के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव सफल हुआ है. सदन में इमरान ख़ान सरकार की हार के साथ ही उनके मंत्रिमंडल को भी भंग कर दिया गया है. यानी अब देश में कोई कैबिनेट नहीं है.
ऐसे में सवाल ये है कि एक प्रधानमंत्री के जाने और दूसरे के आने के बीच के अंतराल में पाकिस्तान का चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव कौन है, देश के महत्वपूर्ण फ़ैसले लेने का अधिकार किसके पास होता है और किस तरह के फ़ैसलों का अधिकार है.
हालांकि कैबिनेट भंग कर दी गई है, लेकिन राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी अभी भी अपने पद पर मौजूद हैं, तो क्या राष्ट्रपति देश चला रहे हैं? क्या देश की सत्ता किसी एक व्यक्ति के पास है या ऐसी स्थिति में किसी समिति का गठन होता है?
और इस अंतराल में जब देश में कोई प्रधानमंत्री नहीं है, युद्ध या आपदा के मामले में, अगर आपात निर्णय लेने पड़ जाएं, तो ये निर्णय कौन लेगा और उसके अधिकारों का दायरा क्या है?
बीबीसी ने पाकिस्तान में संवैधानिक और संसदीय मामलों के विशेषज्ञ और पीएलडीएटी के प्रमुख अहमद बिलाल महबूब और मुस्लिम लीग (नवाज़) की पिछली सरकार में संसदीय मामलों के संघीय मंत्री मोहसिन शाहनवाज़ रांझा से बात करके इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश की हैं.
वे कहते हैं, "संविधान इस पर पूरी तरह से ख़ामोश है."
इस समय पाकिस्तान का चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव कौन हैं? अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि हमारा संविधान इस पर पूरी तरह ख़ामोश है.
पाकिस्तान में अटल बिहारी वाजपेयी कुछ लोगों को अभी क्यों आए याद?
पाकिस्तान: सुप्रीम कोर्ट में संसद और संसद में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर बहस, किसने क्या कहा?
मोहसिन शाहनवाज़ रांझा ने कहा कि प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े या कार्यकाल की समाप्ति या असेंबली भंग होने की सूरत में, हमारे पास विकल्प हैं और अविश्वास के मामले में, संविधान के अनुच्छेद 94 में स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि "जब तक नया प्रधानमंत्री अपना पद न संभाल ले, राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को कार्य जारी रखने के लिए कह सकते हैं, लेकिन अगर राष्ट्रपति ने ऐसा कोई नोटिफ़िकेशन जारी नहीं किया है, तो इस बारे में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है.
(अभी तक राष्ट्रपति की ओर से ऐसा कोई नोटिफ़िकेशन जारी नहीं किया गया है, जिसमें जाने वाले प्रधानमंत्री (इमरान ख़ान) को काम जारी रखने के लिए कहा गया हो... )
अहमद बिलाल महबूब के अनुसार, "हो सकता है कि राष्ट्रपति ने इमरान ख़ान को काम जारी रखने के लिए कह दिया हो, लेकिन यह बात मीडिया में रिपोर्ट न की गई हो.
उनके अनुसार, यह हमारे संविधान में एक ख़ामी है. संविधान हर बात का जवाब नहीं देता. जब स्थिति बनती है, तो उसके लिए रास्ते खोजे जाते हैं.
अहमद बिलाल का कहना है कि पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार है, जब किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव सफल हुआ है. इससे पहले किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पास ही नहीं हुआ है, इसलिए यह सवाल भी पहले नहीं आया है. अब यह सवाल उठा है तो कोई रास्ता निकाला जाएगा.
कार्यवाहक प्रधानमंत्री की धारणा ही नहीं
अहमद बिलाल महबूब के अनुसार, अगर किसी कारण से राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है या देश से बाहर हैं, तो शपथ लेने के बाद, सीनेट के अध्यक्ष के पास कार्यवाहक राष्ट्रपति की शक्ति होती है, लेकिन चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव के अधिकार न अध्यक्ष के पास हैं, न स्पीकर के पास हैं.
उनका कहना है कि हमारे देश में कार्यवाहक राष्ट्रपति की धारणा तो है, लेकिन कार्यवाहक प्रधानमंत्री की धारणा नहीं है. अगर राष्ट्रपति देश के बाहर होते हैं, तो सीनेट का अध्यक्ष शपथ लेने के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है, लेकिन प्रधानमंत्री के जाने की स्थिति में, हमारे देश में कोई कार्यवाहक प्रधानमंत्री नहीं होता है.
'राष्ट्रपति बड़े एग्ज़ीक्यूटिव निर्णय नहीं ले सकते'
अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि मान लें कि अगर ऐसा न भी हुआ हो, तो हमारे देश के राष्ट्रपति देश की व्यवस्था को चलाते हैं, लेकिन वह कोई बड़े एग्ज़ीक्यूटिव निर्णय नहीं ले सकते हैं. लेकिन क्योंकि सब कुछ उनके नाम पर होता है, इसलिए राज्य के मुखिया वही हैं.
राष्ट्रपति के बाद, देश का स्थायी प्रशासन, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों के सचिव शामिल होते हैं, अपने-अपने विभागों के चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव होते हैं.
इस दौरान अगर युद्ध छिड़ जाए तो क्या होगा?
ऐसी स्थिति में जब देश में कोई चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव नहीं है और राष्ट्रपति के अधिकार सीमित हैं, अगर कोई आपदा आ जाये या युद्ध छिड़ जाए, तो क्या होता है?
अहमद बिलाल महबूब के अनुसार युद्ध की स्थिति में कमांडर-इन-चीफ़ देश का राष्ट्रपति होता है और कमांडर-इन-चीफ़ के रूप में उनके पास सेना को आदेश देने का अधिकार होता है और ऐसी युद्ध की स्थिति में सेना ख़ुद भी प्रतिक्रिया देने का अधिकार रखती है.
"इन परिस्थितियों में, राष्ट्रपति संबंधित विभागों के पदाधिकारियों को बुला कर कॉर्डिनेटर की भूमिका निभाएंगे, लेकिन उनके पास प्रमुख नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं है."
इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, कि अगर सुरक्षा से संबंधित कोई मामला होता है, तो राष्ट्रपति सशस्त्र सेना के चीफ़ और चेयरमैन ज्वाइंट चीफ्स ऑफ़ दि स्टाफ़ कमिटी को बुलाते हैं और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा होने पर डिज़ास्टर मैनेजमेंट कमिटी के प्रमुख को तलब करेंगे.
अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि राष्ट्रपति को अगले प्रधानमंत्री के आने तक कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लेना होगा, लेकिन यह हमारे संविधान में एक ख़ामी है और वर्तमान स्थिति को देखते हुए, हमारे क़ानूनविदों को भविष्य में इसके लिए कोई विकल्प निकाल कर रखना होगा, कि ऐसी स्थिति में देश का चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव कौन होगा.
इमरान ख़ान कार्यवाहक प्रधानमंत्री भी नहीं बनाए गए
सत्ता हस्तांतरण के इस अंतराल में देश को कौन चला रहा है, इसके जवाब में, मुस्लिम लीग की पिछली सरकार में संसदीय मामलों के संघीय मंत्री मोहसिन शाहनवाज़ रांझा ने बीबीसी को बताया, कि देश को राष्ट्रपति चला रहे हैं और इस स्थिति में, राष्ट्रपति के पास वही अधिकार हैं, जो चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव के पास होते हैं और वह छोटे बड़े सभी प्रकार के निर्णय ले सकते हैं.
मोहसिन शाहनवाज़ रांझा इसे संविधान में ख़ामी मानने से इनकार करते हैं.
उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 94 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह प्रधानमंत्री का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, दूसरा प्रधानमंत्री चुने जाने तक, निवर्तमान प्रधानमंत्री को काम जारी रखने को कह सकते हैं. हालांकि वो कहते हैं कि शनिवार की रात प्रधानमंत्री ने जिस तरह की गतिविधियां की हैं उसके बाद ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि राष्ट्रपति उन्हें (इमरान ख़ान को) एक दिन का भी समय नहीं दे सके.
मोहसिन शाहनवाज़ रांझा ने कहा, कि "शनिवार रात की घटनाएं सबके सामने हैं, और इस बात का ख़तरा था कि अगर उन्हें अधिकार मिल गए तो वो कोई भी ऐसा क़दम उठा सकते हैं जिससे देश हित को ख़तरा हो सकता है."
वे कहते हैं, "चूंकि इमरान ख़ान प्रधानमंत्री के रूप में अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सके, शायद यही वजह है कि राष्ट्रपति ने इमरान ख़ान को एक दिन के लिए भी कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने का रिस्क नहीं लिया और उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 94 के तहत अधिकार अपने पास ही रखे हुए हैं." (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमिर ज़ेलेंस्की ने शनिवार देर रात अपने संबोधन में कहा कि रूस की आक्रमकता केवल यूक्रेन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरा यूरोप उसके निशाने पर है.
ज़ेलेंस्की ने इस दौरान पश्चिमी देशों से रूस के ऊर्जा उत्पादों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने को कहा और साथ ही यूक्रेन को अतिरिक्त हथियारों की आपूर्ति करने की भी मांग की.
उन्होंने कहा कि रूस का बल प्रयोग करना एक ऐसी तबाही है जो अंततः सबको प्रभावित करेगी. रूस की सेना के यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में जुटने को लेकर जे़लेंस्की ने कहा कि यूक्रेन कठिन से कठिन लड़ाई के लिए तैयार है.
उन्होंने कहा, "ये मुश्किल लड़ाई होगी. हमें अपनी जीत का भरोसा है. हम लड़ने के साथ ही साथ कूटनीतिक रास्तों से इस युद्ध को रोकने के लिए भी तैयार हैं."
वहीं, यूक्रेन की ओर से मुख्य वार्ताकार मिख़ाइलो पोदोल्याक ने कहा कहा कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की तब तक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से नहीं मिलेंगे जब तक पूर्वी हिस्से की जंग में रूस को हरा न दिया जाए. (bbc.com)
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कीएव की यात्रा के दौरान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से 120 बख्तरबंद वाहन के साथ ही नई एंटी-शिप मिसाइल सिस्टम देने का वादा किया है.
ब्रिटिश पीएम कार्यालय (डाउनिंग स्ट्रीट) की ओर से जारी बयान में कहा गया है, "ये सहायता इसलिए दी जा रही है क्योंकि ज़ेलेंस्की के अटल नेतृत्व और यूक्रेनी लोगों के साहस के आगे पुतिन के ख़तरनाक मंसूबों पर पानी फिर गया है."
इस दौरे पर बोरिस जॉनसन ने वादा किया है कि यूक्रेन को विश्व बैंक से 50 करोड़ डॉलर की राशि दिलवाने के लिए ब्रिटेन गारंटी देगा. हालांकि, इसके लिए ब्रिटेन की संसद की मंज़ूरी की ज़रूरत है.
अब तक ब्रिटेन ने यूक्रेन को 1 अरब डॉलर की लोन गारंटी दी है. इसके अलावा यूके यक्रेन से आयात किए जाने वाले अधिकांश उत्पादों से टैरिफ में रियायत देगा ताकि कारोबार बढ़े.
ब्रितानी पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा, "यूक्रेन ने मुश्किलों को हराते हुए रूसी सेना को कीएव के द्वार से पीछे धकेल दिया है. मैं आज ये स्पष्ट करना चाहता हूं कि ब्रिटेन इस लड़ाई में यूक्रेन के साथ खड़ा है और आगे भी रहेगा." (bbc.com)
-आसिफ़ फ़ारूक़ी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के हंगामे के बीच शनिवार की रात पीएम आवास में असामान्य हचलच देखी गई.
इस दौरान कुछ ऐतिहासिक फ़ैसले और घटनाएं हुईं जिन्हें कैमरे में कैद किया गया, हालांकि, ज़्यादातर गतिविधियां बंद कमरों में ही हुईं.
शनिवार को पूरे दिन संसद भवन गहमागहमी का केंद्र रहा, कभी भाषण होते, तो कभी सत्र स्थगित करके सरकार के सदस्य, विपक्षी सदस्य और नेशनल असेंबली स्पीकर के बीच बातचीत होती.
लेकिन शाम को जब नेशनल असेंबली का सत्र इफ़्तार के लिए स्थगित किया गया, तो अचानक से देश का प्रधानमंत्री आवास गतिविधि का केंद्र बन गया.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपने क़ानूनी और राजनीतिक सलाहकारों, स्पीकर और डिप्टी स्पीकर और कुछ नौकरशाहों के साथ संघीय कैबिनेट की एक आपातकालीन बैठक बुलाई.
देर रात उतरा हेलीकॉप्टर
कैबिनेट की बैठक में कुछ अधिकारियों को कथित केबल दिखाने की मंज़ूरी दी गई, जिसके बारे में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का कहना था, कि उनकी सरकार को गिराने के लिए अमेरिकी साजिश के बारे में जानकारी है.
इस बीच नेशनल असेंबली के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर भी प्रधानमंत्री आवास पहुंचे लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय के बगल वाले लाउंज में इंतज़ार करने को कहा गया.
इस बीच दो बिन बुलाए मेहमान भी असाधारण सुरक्षा और हथियारों से लैस जवानों की घेराबंदी में हेलीकॉप्टर से प्रधानमंत्री आवास पहुंचे और क़रीब 45 मिनट तक प्रधानमंत्री से अकेले में मुलाक़ात की.
फ़िलहाल यह पता नहीं चल पाया है कि इस मुलाक़ात में क्या बात हुई है. हालांकि, विश्वसनीय और सरकारी सूत्रों ने, जिन्हें बाद में इस बैठक के बारे में सूचित किया गया था, उन्होंने बीबीसी को बताया कि बैठक बहुत सुखद नहीं थी.
एक घंटे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने बैठक में मौजूद एक वरिष्ठ अधिकारी को हटाने का आदेश दिया था. इसलिए इन बिन बुलाए मेहमानों का अचानक आना प्रधानमंत्री के लिए अप्रत्याशित था. इमरान ख़ान हेलीकॉप्टर का इंतज़ार तो कर रहे थे, लेकिन इस हेलीकॉप्टर के यात्रियों के बारे में उनका अनुमान और उम्मीदें पूरी तरह ग़लत साबित हुईं.
सूत्रों ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री उम्मीद कर रहे थे, कि उनके नवनियुक्त अधिकारी इस हेलीकॉप्टर से प्रधानमंत्री आवास पहुंचेंगे और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद संसद भवन में उठा शोर शांत हो जाएगा.
शायद ऐसा हो भी जाता, लेकिन समस्या यह हुई कि इस उच्च स्तर की बर्ख़ास्तगी के लिए जो क़ानूनी दस्तावेज़ (अधिसूचना) रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी होने चाहिए थ, वो जारी नहीं हो सके. इस तरह इस 'क्रांतिकारी' बदलाव की प्रधानमंत्री की कोशिश विफल हो गई.
वैसे अगर बर्ख़ास्तगी की यह प्रक्रिया प्रधानमंत्री के आदेश पर पूरी हो भी जाती, तो इसे भी अमान्य घोषित करने की व्यवस्था की जा चुकी थी.
शनिवार रात को इस्लामाबाद हाईकोर्ट के ताले खोल दिए गए और चीफ़ जस्टिस अतहर मिनाल्लाह के साथ काम करने वाले कर्मचारी हाईकोर्ट पहुंचे.
बताया गया है कि हाईकोर्ट एक तत्काल याचिका पर सुनवाई करने वाला था, जिसमें अदनान इक़बाल एडवोकेट ने एक सामान्य नागरिक के रूप में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान द्वारा सेना प्रमुख को हटाने की 'संभावित' अधिसूचना को अदालत में चुनौती दी थी.
इस याचिका में कहा गया था, कि इमरान ख़ान ने राजनीतिक और व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए, सेना प्रमुख को हटाने की सिफ़ारिश की है. याचिका में कोर्ट से दरख़्वास्त की गई कि अदालत इस आदेश को जनहित में अमान्य घोषित करे.
यहां यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि यह याचिका तैयार तो कर ली गई थी, लेकिन इसमें सेना प्रमुख को हटाने के लिए अधिसूचना संख्या के स्थान को खाली छोड़ दिया गया था. इसका कारण यह था कि प्रधानमंत्री की इच्छा के बावजूद यह अधिसूचना जारी नहीं की जा सकी और इस तरह इस याचिका पर सुनवाई की नौबत ही नहीं आई. (bbc.com)
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव सफल रहने के बाद प्रधानमंत्री इमरान ख़ान सत्ता से बाहर हो गए हैं.
शनिवार देर रात नेशनल असेंबली में उनकी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई जिसमें 174 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया.
इमरान ख़ान ने दावा किया है कि उन्हें सत्ता से बाहर निकालने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में साजिश रची गई थी. उन्होंने किसी भी नई सरकार को स्वीकार करने से इनकार किया है.
पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार है कि किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव सफल रहा है.
इसके बाद अब सोमवार को पाकिस्तान असेंबली का एक अहम सत्र होने वाला है जिसमें नया प्रधानमंत्री चुना जाना है. नए प्रधानमंत्री अगले चुनावों तक यानी अक्तूबर 2023 तक कार्यभार संभालेंगे.
अविश्वास प्रस्ताव
असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के सफल होने के बाद सदन को संबोधित करते हुए पीएमएल-एन के अध्यक्ष शाहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि आज पाकिस्तान संविधान और क़ानून को फिर से स्थापित करना चाहता है.
पीएमएल-एन के अध्यक्ष शाहबाज़ शरीफ़ ने कहा है कि हम किसी से बदला नहीं लेंगे लेकिन क़ानून अपना काम करेगा.
नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के सफल होने के बाद सदन को संबोधित करते हुए पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि 10 अप्रैल का ऐतिहासिक महत्व है.
उन्होंने सदन को याद दिलाया कि 10 अप्रैल को ही सदन ने 1973 का संविधान पारित किया था. उन्होंने कहा, "पुराने पाकिस्तान में आपका स्वागत है!"
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल ख़ालिद जावेद ख़ान ने इस्तीफ़ा दे दिया है.
वोटिंग से पहले नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.असद कैसर के बाद अब पीएमएल-एन नेता अयाज़ सादिक नेशनल असेंबली के सत्र की अध्यक्षता कर रहे हैं.
असद कैसर ने कहा, "ज़मीनी वास्तविकताओं और घटनाओं को देखते हुए, मैंने तय किया है कि जो दस्तावेज़ मेरे पास पहुंचे हैं, मैं विपक्ष के नेता से अनुरोध करूंगा कि इसे मेरे कार्यालय में रखा जाए, मैं इसे सुप्रीम कोर्ट में भेजूंगा. मुझे इस देश की संप्रभुता के लिए खड़े होने की ज़रूरत है और मैंने फैसला किया है कि मैं अब अध्यक्ष नहीं बन सकता."
नए प्रधानमंत्री का चुनाव
इसी के साथ ही पीएमएल-एन के नेता शाहबाज़ शरीफ़ का पाकिस्तान का नया पीएम बनना तय माना जा रहा है. शाहबाज़ शरीफ़ अभी पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता हैं.
सोमवार को इस संबंध में सदन की एक बैठक बुलाई गई है. इस बैठक में नए प्रधानमंत्री के नाम पर मुहर लग सकती है.
नेशनल असेंबली के कार्यकारी अध्यक्ष अयाज़ सादिक ने कहा है कि रविवार स्थानीय समय 11.00 तक (06.00 जीएमटी) उम्मीदवारों को अपना नामांकन दाखिल करना होगा.
पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान रहे इमरान ख़ान 2018 में देश के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने और अर्थव्यवस्था में सुधार का वादा किया.
लेकिन आर्थिक संकट में घिरे पाकिस्तान के लिए मुश्किलें बढ़ती गईं. बीते साल मार्च में उनकी पार्टी के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी जिसके बाद उनके लिए एक नया राजनीतिक संघर्ष शुरू हो गया था.
बीबीसी संवाददाता सिकंदर किरमानी कहते हैं कि माना जाता है कि इमरान ख़ान को पाक सेना का समर्थन हासिल था लेकिन अब पर्यवेक्षकों का कहना है कि सेना से उनकी दूरियां बढ़ी हैं.
इमरान ख़ान बार-बार ये आरोप लगाते रहे हैं कि देश का विपक्ष विदेशी ताकतों के साथ मिल कर काम कर रहा है. उनका कहना है कि रूस और चीन के मामले में उन्होंने अमेरिका के साथ खड़े होने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उन्हें सत्ता से निकालने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में साजिश रची जा रही थी.
अमेरिका ने कहा है कि इमरान ख़ान के आरोपों में 'कोई सच्चाई' नहीं है और कहा है कि उन्होंने इसके पक्ष में कभी कोई सबूत नहीं दिया है.
यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध छिड़ने के बाद इमरान ख़ान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात करने रूस पहुंचे थे.
इस मामले में मरियम नवाज़ ने ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा है,"नवाज़ शरीफ़ साहब, हर दबाव के खिलाफ़ आपका सब्र जीत गया."
फ़ैसल सब्जवारी का कहना है कि तेल की कीमतें नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.
इस अवसर पर बोलते हुए नेशनल असेंबली के सदस्य मोहसिन डावर ने कहा कि 2018 में हम पर थोपी गई इस हाइब्रिड सरकार से आज मुक़्ति मिली है.
उन्होंने कहा कि जो सरकार बैसाखी के सहारे सत्ता में आने की कोशिश करती है, यही उनकी किस्मत है. उन्होंने कहा कि पिछले तीन साल मीडिया और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए सबसे खराब रहे.
वहीं, पीटीआई के अली मोहम्मद खान ने कहा, "मुझे खुशी है कि मैं जिस शख्स के साथ खड़ा हूं, उसने सरकार को कुर्बान कर दिया, लेकिन गुलामी को स्वीकार नहीं किया." (bbc.com)
कैनबरा, 10 अप्रैल। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन इन वर्षों में कम से कम एक मायने में देश के सबसे सफल प्रधानमंत्री रहे हैं।
मॉरिसन 2007 के बाद से एक चुनाव से अगले चुनाव तक कार्यालय में बने रहने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। वर्ष 2007 में ऑस्ट्रेलिया के दूसरे सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे जॉन हॉवर्ड की सरकार को लगभग 12 वर्षों के शासन के बाद मतदान के जरिए सत्ता से बाहर कर दिया गया था।
हॉवर्ड और मॉरिसन के बीच, केविन रुड सहित ऐसे चार प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक अस्थिरता की एक असाधारण अवधि के दौरान दो बार सेवा की। रुड का दूसरा कार्यकाल तब समाप्त हुआ जब मतदाताओं ने 2013 के चुनाव में उनकी मध्यमार्गी-वामपंथी ऑस्ट्रेलियाई लेबर पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को हटा दिया। अन्य तीन प्रधानमंत्रियों को उनकी ही पार्टियों ने हटा दिया।
मॉरिसन ने रविवार को घोषणा की कि अगला चुनाव 21 मई को होगा। अधिकांश जनमत सर्वेक्षणों में मॉरिसन का गठबंधन एक बार फिर पीछे है। लेकिन चुनाव की विश्वसनीयता 2019 के परिणाम के झटके से उबर नहीं पाई है और मॉरिसन को अब एक कुशल प्रचारक के रूप में पहचाना जाता है जो झुकते नहीं हैं।
53 वर्षीय मॉरिसन को 2018 में ‘‘आकस्मिक प्रधानमंत्री’’ का तमगा दिया गया था, जब सरकार में सहयोगियों ने उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की जगह लेने के लिए चुना था।
यह मतदाताओं को शामिल किए बिना किसी प्रधानमंत्री का एक बार फिर किया गया तख्तापलट था।
मॉरिसन खुद को एक साधारण ऑस्ट्रेलियाई परिवार से बताते हैं। उन्होंने राजनीति में प्रवेश से पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सरकारों के लिए पर्यटन के क्षेत्र में काम किया था। (एपी)
पाकिस्तान के पीएम इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग शुरू हो गयी है.
इससे पूर्व नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर ने इस्तीफा दे दिया.असद कैसर के बाद अब पीएमएल-एन नेता अयाज़ सादिक नेशनल असेंबली के सत्र की अध्यक्षता कर रहे हैं.
असद कैसर ने कहा, "ज़मीनी वास्तविकताओं और घटनाओं को देखते हुए, मैंने तय किया है कि जो दस्तावेज़ मेरे पास पहुंचे हैं, मैं विपक्ष के नेता से अनुरोध करूंगा कि इसे मेरे कार्यालय में रखा जाए, मैं इसे सुप्रीम कोर्ट में भेजूंगा.मुझे इस देश की संप्रभुता के लिए खड़े होने की जरूरत है और मैंने फैसला किया है कि मैं अब अध्यक्ष नहीं बन सकता.’
इस बीच प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर नेशनल असेंबली में कार्रवाई हो रही है. सदन में मतदान हो रहा है लेकिन सरकार के सदस्य सदन से बाहर जा चुके हैं.(bbc.com)
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव सफल रहा है. 174 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया.
नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के सफल होने के बाद सदन को संबोधित करते हुए पीएमएल-एन के अध्यक्ष शाहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि आज पाकिस्तान संविधान और क़ानून को फिर से स्थापित करना चाहता है.
पीएमएल-एन के अध्यक्ष शाहबाज़ शरीफ़ ने कहा है कि हम किसी से बदला नहीं लेंगे लेकिन क़ानून अपना काम करेगा.
नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव की सफलता के बाद सदन को संबोधित करते हुए पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि 10 अप्रैल का ऐतिहासिक महत्व है.
उन्होंने सदन को याद दिलाया कि 10 अप्रैल को ही सदन ने 1973 का संविधान पारित किया था. उन्होंने कहा, "पुराने पाकिस्तान में आपका स्वागत है!"
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल ख़ालिद जावेद ख़ान ने इस्तीफ़ा दे दिया है. (bbc.com)
साल 2015 के परमाणु समझौते को लेकर बातचीत के रुक जाने के बाद अब ईरान ने अमेरिका के 15 और अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया है.
न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने बताया है कि ईरान ने कहा है कि जिन लोगों पर प्रतिबंध लगाया गया है उनमें पूर्व आर्मी चीफ़ ऑफ स्टाफ़ जॉर्ज केसी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निजी वकील रूडी जियुलियानी भी शामिल हैं.
लिस्ट में शामिल ज़्यादातर अधिकारी डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने ईरानी अधिकारियों, नेताओं और कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया था और अमेरिका को तेहरान न्यूक्लियर डील से अलग किया था.
रिपोर्ट में स्थानीय मीडिया के हवाले से कहा गया है कि ईरान का विदेश मंत्रालय अमेरिकी अधिकारियों पर ऐसे ''आतंकी समूह और आतंकी गतिविधियों'' का समर्थन करने का आरोप लगा रहा है, जो ईरान के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं.
बता दें कि ईरान और अमेरिका के बीच 11 महीनों की अप्रत्यक्ष बातचीत रुक गई है. (bbc.com)
दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो मौत के बाद की जिंदगी पर विश्वास करते हैं. कई लोग तंत्र विद्या के सहारे मर चुके लोगों से कांटेक्ट करने की भी कोशिश करते हैं. ऐसे काम के लिए कई बार तांत्रिकों का सहारा किया जाता है. इंग्लैंड के विलटशायर में रहने वाली आशा ने अभी अपने पति की मौत के बाद उसकी आत्मा से बात करने के लिए एक तांत्रिक का सहारा लिया था. लेकिन तांत्रिक से मुलाक़ात के मात्र 6 हफ्ते के बाद ही दोनों ने शादी कर ली.
जानकारी के मुताबिक़, आशा के पति जॉन रॉजर की मौत 2018 में हो गई थी. दोनों की 22 साल की एक बेटी भी थी. पति की मौत के बाद आशा टूट गई थी. लेकिन उसने अपने पति से कांटेक्ट करने का फैसला किया. इसके लिए उसने 60 साल के केरिन की मदद ली. केरिन ने भरोसा दिलाया था कि वो उसकी बात उसके स्वर्गोय पति से करवा देगा. इसके छह हफ्ते के बाद ही आशा ने केरिन से शादी कर ली. अब दोनों काफी खुश हैं.
बीमारी से हुई थी पूर्व पति की मौत
आशा और जॉन रॉजर की शादी 18 साल पहले हुई थी. दोनों की एक बाइस साल की बेटी भी है. जॉन की मौत दिमाग में सूजन के कारण हो गई थी. पति को यूं अचानक खो देने से आशा टूट गई थी. उसने जॉन से मौत के बाद समपर्क करने का फैसला किया. इसके लिए उसने केरिन की मदद ली. आशा का कहना है कि केरिन की मदद से उसने जॉन से बात की और उसकी की परमिशन से आशा और केरिन ने 2019 में शादी कर ली. अब दोनों सुखद वैवाहिक जीवन जी रहे हैं.
खुद भी बन गई तांत्रिक
केरिन से शादी के आबाद अब आशा भी तांत्रिक बन गई है. आशा से मुलाक़ात के बारे में केरिन ने बताया कि जब उसने पहली बार उसे देखा था, तब ही उसे अहसास हो गया था कि आशा की आत्मा से उसका कुछ गहरा कनेक्शन है. ऐसा लगा था कि दोनों सदियों से एक दूसरे को जानते थे. जब उसने आशा को उसके मरे हुए पति से बात करवाई, तो खुद जॉन ने ही दोनों को शादी की इजाजत दे दी.
नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर क़सिम सूरी ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से निराश हैं.
जियो न्यूज़ से बात करते हुए उन्होंने कहा कि "मैं एक देशभक्त पाकिस्तानी हूं और मेरे सामने जो चीज़े आईं, साज़िश के जो सबूत मेरे सामने आये मैंने उनके मुताबिक़ फ़ैसला किया."
उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रूलिंग को देखा ही नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने संविधान का कोई उल्लंघन नहीं किया है.
क़ासिम सूरी ने आगे कहा कि "पूरा देश इमरान खान के साथ है और वह जानता है कि ये लोग विदेशी आकाओं के साथ मिलकर इमरान खान की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश कर रहे हैं."
नेशनल असेंबली का सत्र 12:30 बजे तक के लिए स्थगित होने के बाद मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता ख़्वाजा साद रफ़ीक़ ने ट्वीट किया कि 'कब तक वोटिंग से भागोगे?'
"बिना वोटिंग के सत्र को स्थगित करना असंवैधानिक और अदालत की अवमानना है."
उनका कहना है कि "आज वोटिंग करनी होगी. इमरान तानाशाही नहीं मानते." (bbc.com)
पीएमएल-एन की नेता मरियम औरंगज़ेब ने दावा किया है कि विपक्ष के 176 सदस्य इस वक़्त नेशनल असेंबली में मौजूद हैं.
उन्होंने एक सूची जारी की है जिसके तहत उनकी पार्टी के 84 और संसद के 56 सदस्य मौजूद हैं.
ग़ौरतलब है कि विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव की कामयाबी के लिए 172 वोट चाहिए. (bbc.com)
पीटीआई की नेता मलाइका बुखारी ने सत्र स्थगित होने की वजह के बारे में कहा कि स्पीकर ने थोड़ा सा समय मांगा है.
उन्होंने इस आरोप से इंकार किया है कि ये वोटिंग न कराने की कोई चाल है. हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि आज अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होगी या नहीं, लेकिन होगी ज़रूर.
उन्होंने कहा कि ‘भाषणों का एक क्रम था जिसके अनुसार पहले विपक्ष के नेता ने भाषण दिया और बाद में शाह महमूद कुरैशी के भाषण के दौरान माहौल थोड़ा बिगड़ गया. इसलिए थोड़ा सा ब्रेक दिया है जिसके बाद शाह महमूद कुरैशी के भाषण के साथ सत्र दोबारा शुरू होगा.’
उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार तर्कों के साथ अपना पक्ष रख रही थी, जो चीज़ें पहले सामने आई हैं और पिछली रूलिंग देने के जो कारण थे, संसद के ज़रिये उन्हें पाकिस्तान की जनता के सामने लाना ज़रूरी है.
मलाइका बुख़ारी का कहना है, "हम उच्च न्यायालयों का सम्मान करते हैं और संविधान और कानून के अनुसार आगे बढ़ेंगे. हालांकि, हमने अदालत के फैसले को निराशा के साथ स्वीकार किया है."
उन्होंने कहा कि जो चीज़ें सुप्रीम कोर्ट में सामने आनी चाहिए थी, जिस पर बात होनी चाहिए थी, जिस पर जजों को एक आयोग बनाना चाहिए था, उस पत्र की समीक्षा होनी चाहिए थी.
उन्होंने कहा कि अगर ये बात संसद में अच्छे माहौल में पूरी हो जाये तो अच्छा है. (bbc.com)
भारत के दो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और श्रीलंका राजनीतिक संकट से जूझ रहे हैं. पाकिस्तान में शनिवार को प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ नेशनल असेंबसली में अविश्वास प्रस्ताव पर वोट होगा.
वहीं दूसरी ओर श्रीलंका में जारी भयंकर आर्थिक संकट ने देश को राजनीतिक संकट की ओर धकेल दिया.
अंग्रेजी अख़ाबर द हिंदू में छपी ख़बर के मुताबिक़, श्रीलंका के नेता प्रतिपक्ष सजिथ प्रेमदासा ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह अपने पद से इस्तीफ़ा नहीं देते हैं तो वह राजपक्षे सरकार के खिलाफ़ सदन में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएंगे.
श्रीलंका अब तक के सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है. देश में ईंधन, खाने के सामान, बिजली और आवश्यक दवाओं की भारी किल्लत है. देश भर में बिजली की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, इसलिए आम लोगों को कई-कई घंटों तक बिजली कटौती का सामना करना पड़ा रहा है.
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के ख़िलाफ़ देश की सड़कों पर आम लोगों का प्रदर्शन दिन-प्रति-दिन तेज़ होता जा रहा है.
प्रदर्शनकारी गोटाबाया के इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं. जनता के ग़ुस्से को देखते हुए बीते सप्ताह श्रीलंका की पूरी कैबिनेट ने इस्तीफ़ा दे दिया था. लेकिन बढ़ते जन आक्रोश के बावजूद राष्ट्रपति गोटाबाया और उनके भाई और देश के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे अब तक पद पर बने हुए हैं.
देश की विपक्षी पार्टी ने गोटाबाया राजपक्षे के उस प्रस्ताव को भी ख़ारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने विपक्षी पार्टियों के नेताओं को सरकार में शामिल होन का न्योता दिया था.
अख़बार कहता है कि श्रीलंका की आर्थिक स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की रिपोर्ट को लेकर हो रहे एक स्थगन बहस के दौरान संसद में अपनी बात कहते हुए समागी जाना बालवेगया पार्टी यानी एसबीजे के नेता प्रेमदासा राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सीधे संबोधित करते हुए कहा- "या तो नेतृत्व करें, या फिर हट जाएं."
राजपक्षे गोटाबाया के इस्तीफ़े की मांग को दोहराते हुए उन्होंने देश की एक्ज़ेक्युटिव प्रेजिडेंसी को रद्द करने की मांग की.
लेकिन राष्ट्रपति गोटाबाया को पद से हटाना मौजूदा समय में विपक्ष के लिए इतना भी आसान नहीं है.
एसजेबी के पास 54 सीटें हैं, यहाँ तक कि विपक्ष में बैठे अन्य सभी दलों के समर्थन के साथ गोटाबाया राजपक्षे के ख़िलाफ़ सिर्फ़ 70 वोट ही जुटाए जा सकेंगे. 225 सदस्यीय सदन में विश्वास मत पारित करने के लिए विपक्ष को सरकार के 42 सांसदों के समर्थन की ज़रूरत होगी. (bbc.com)