अंतरराष्ट्रीय
मैड्रिड, 23 जुलाई | स्पेन के कैटालोनिया, सेगोविया, जारागोजा और एविला क्षेत्रों में इस सप्ताह जंगल की आग पर सफलतापूर्वक काबू पाने के बावजूद एक पारिस्थितिकी विशेषज्ञ ने कहा कि जंगल की आग के कारण यहां रहना सही नहीं है। बार्सिलोना विश्वविद्यालय में पारिस्थितिकी में एमेरिटस प्रोफेसर नार्सिस प्रैट ने समाचार एजेंसी शिन्हुआ को बताया, "हम नहीं जानते कि वास्तव में क्या होगा, हमेशा संदेह होते हैं और जलवायु मॉडल कभी-कभी गलत होते हैं, लेकिन सब कुछ बताता है कि हम उच्च तापमान, गर्मी की लहरों, अधिक अनियमित वर्षा की मात्रा में कम लेकिन बहुत तीव्र स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं।"
यूरोपियन फॉरेस्ट फायर इंफॉर्मेशन सिस्टम (ईएफएफआईएस) के अनुसार, इस साल अकेले स्पेन में 193,247 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग से जल गए हैं।
यह एक नया रिकॉर्ड है, जो 2012 में दर्ज 189,367 हेक्टेयर को पार कर गया है।
प्रोफेसर नार्सिस प्रैट ने कहा है, "बड़े हिस्से में यह वुडलैंड प्रबंधन की कमी के कारण है। कई वर्षो से वुडलैंड्स की उपेक्षा की गई है, क्योंकि उनके साथ कुछ भी करना बहुत महंगा था, उन्हें एक्सेस करना मुश्किल था, और यह सब लाभदायक नहीं था।"
"मुख्य सबक यह है कि हमें वुडलैंड्स को अलग तरह से प्रबंधित करने की आवश्यकता है। हमें पेड़ों के बड़े समूह से बचना चाहिए। इसके बजाय, पेड़ों को अंडरग्राउंड, घास के मैदान और कृषि क्षेत्रों के साथ मिश्रित किया जाना चाहिए, जिसे वन मोजेक कहा जाता है। इससे यह बहुत मुश्किल हो जाएगा। जंगल की आग फैल जाएगी।"
प्रैट ने चेतावनी दी कि जब तक दुनिया भर के अधिकारी कम समय में कार्बन उत्सर्जन को मौलिक रूप से कम नहीं करते हैं, तब तक स्थिति और खराब होने की संभावना है।
प्रोफेसर नार्सिस प्रैट ने आगे कहा, "हमने इस साल यहां इतनी गर्मी की लहरों के साथ जो देखा है वह कुछ ऐसा है जो वैज्ञानिकों का मानना था कि यह अगले पांच से दस वर्षो तक नहीं होने वाला था। चीजें तेज हो गई हैं और वैज्ञानिक चिंतित हैं कि उन्होंने 2030 या 2050 के लिए जो पूर्वानुमान लगाया था, वैसी स्थिति तेजी से आ रही है।"
शुक्रवार को अग्निशामक तीन जंगल की आग को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे, जो एक साथ गैलिसिया में लगभग 31,000 हेक्टेयर को कवर करते थे, जबकि दो नई आग टेनेरिफ द्वीप पर और मैड्रिड के क्षेत्र में गुआडालिक्स डे ला सिएरा में शुरू हुई थी। (आईएएनएस)
सऊदी अरब की यात्रा के दौरान पवित्र शहर मक्का में एक इसराइली रिपोर्टर के जाने के मामले में सऊदी अरब के एक शख़्स को गिरफ़्तार किया गया है. इस शख़्स पर इसराइली पत्रकार को मक्का में जाने में मदद करने का आरोप है.
इसराइल के चैनल 13 के टीवी पत्रकार गिल तामरी ने मक्का में जाते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था जबकि वहाँ ग़ैर-मुसलमानों का प्रवेश प्रतिबंधित है.
उन्होंने पवित्र स्थल माउंट अराफ़ात की चढ़ाई भी की, जहाँ हज यात्रा के समय मुस्लिम इकट्ठा होते हैं. उनकी इस यात्रा को सऊदी अरब के अधिकारियों से अनुमति नहीं मिली थी. उनके इसराइल लौटने के बाद टीवी चैनल ने रिपोर्ट को प्रकाशित किया है.
इस यात्रा के बाद पत्रकार गिल तामरी ने माफ़ी मांगी है और कहा है कि वे धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए मक्का और इस्लाम की सुंदरता दुनिया को दिखाना चाहते थे.
सऊदी अरब और इसराइल के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन संबंधों में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. पिछले हफ़्ते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की सऊदी अरब की यात्रा के दौरान कई इसराइली पत्रकारों ने विदेशी पासपोर्ट का इस्तेमाल कर देश में एंट्री ली थी.
पत्रकार गिल तामरी को पता था कि वे क्या कर रहे हैं. उन्होंने वीडियो बनाते हुए साफ़ तौर पर मक्का की अहमियत बताई और कहा कि वे पहले इसराइली पत्रकार हैं जो वहाँ पहुंचे हैं और ऐसी तस्वीरें ले पा रहे हैं.
सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक़ गिरफ़्तार किए गए शख़्स ने इसराइली पत्रकार को मक्का के रास्ते का इस्तेमाल करने में मदद की थी जो क़ानून का पूरी तरह उल्लंघन है.
मक्का पुलिस के प्रवक्ता ने ज़ोर देकर कहा कि सऊदी अरब आने वाले लोग यहाँ के नियम-क़ानूनों का पालन करें, ख़ासतौर पर दो पवित्र मस्जिदों और अन्य पवित्र जगहों के मामले में. क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले को सज़ा दी जाएगी.
मक्का में प्रवेश करने वाले इसराइली पत्रकार पर आगे क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है.
क्या था वीडियो में
बीबीसी उर्दू के मुताबिक इस वीडियो में दिखाई दे रहा है कि गिल तामरी अपनी कार से यात्रा कर रहे हैं और उनके साथ एक स्थानीय गाइड भी है जिनके चेहरे पर मास्क लगा है. इसलिए उनकी पहचान नहीं हो पा रही है.
रिपोर्ट के साथ लिखा गया है कि सुरक्षा चैक प्वाइंट के बाद सऊदी पुलिसकर्मी ने हमें मक्का की तरफ़ जाने के लिए कहा. इस रास्ते में आप बड़ा क्लॉक टावर भी देख सकते हैं.
वीडियो रिपोर्ट के दौरान गिल तामरी कैमरा की तरफ़ देखकर हिब्रू में धीरे-धीरे बोलते हैं ताकि कोई उनकी आवाज़ ना सुन ले. वो बीच-बीच में अंग्रेज़ी में भी बोल रहे हैं.
अपने वीडियो में वो ख़ुद बता रहे हैं, ''सऊदी क़ानून के मुताबिक ग़ैर-मुसलमानों का यहाँ आना मना है. मेरे लिए यहां आना नामुमकिन था लेकिन मुझे एक बेहतरीन शख़्स मिले जिन्होंने अपनी जान ख़तरे में डालकर मुझे यहां ले जाने का फ़ैसला किया. ''
गिल वीडियो में कह रहे हैं कि अगर पुलिस उन्हें रोकती है तो वो कहेंगे कि हम मक्का अपने दोस्तों से मिलने जा रहे हैं.
रिपोर्ट में दिख रहा है कि उनके रास्ते में कई साइन बोर्ड लगे हैं जिन पर लिखा है ग़ैर-मुसलमानों का आगे जाना मना है. पुलिस चैक पोस्ट से गुज़रते हुए वो अपना कैमरा नीचे कर लेते हैं.
अराफात में पहुंचने के बाद गिल तामरी के गाइड को ये कहते हुए सुना जा सकता है, ''ये गैर-क़ानूनी है.'' वो थोड़े असहज हुए लग रहे हैं क्योंकि आसपास के लोगों को उन पर शक हो गया है.
ऐसी स्थिति में तामरी कैमरे की तरफ़ देखकर हिब्रू में कहते हैं, ''सिर्फ़ मुस्लिम यहां आ सकते हैं. अब तक किसी इसराइली पत्रकार ने यहां से प्रसारण नहीं किया है.''
तामरी वीडियो में कहते हैं, ''जब हम माउंट अराफात पहुंचे और ऊपर की ओर बढ़े तो मेरे गाइड ने वापस जाने का ईशारा किया. गाइड ने कुछ लोगों को कहते सुना था कि वो दोनों मुसलमान हैं या नहीं. इसके बाद हम कार तक पहुंचे और शहर से निकल गए.''
इसराइल ने क्या कहा
इस वीडियो के सामने आने के बाद गुल तामरी को आलोचना का सामना करना पड़ा.
इसराइल के क्षेत्रीय सहयोग मंत्री इसावी फ्रेज ने सरकारी मीडिया से कहा, ''मैं इसके लिए माफ़ी मांगता हूं. ये एक बेवकूफ़ी भरा कदम है. रेटिंग्स के लिए ऐसी रिपोर्ट चलाना गैर-ज़िम्मेदाराना और घातक है.''
इस रिपोर्ट ने इसराइल और सऊदी अरब के संबंधों में सुधार की अमेरिकी कोशिशों को नज़रअंदाज़ किया है.
इस रिपोर्ट के प्रसारण के बाद ही ''ए ज्यू इन मक्काज़ ग्रेंड मास्क (मक्का की भव्य मस्जिद में एक यहूदी)'' ट्रेंड करने लगा.
बीबीसी उर्दू के मुताबिक एक सऊदी सामाजिक कार्यकता ने लिखा, ''इसराइल में मेरे प्यारे दोस्तों, आपका एक पत्रकार इस्लाम के पवित्र शहर में घुस गया और शर्मनाक तरीक़े से वहां वीडियो भी बनाया. चैनल 13 ने इस्लाम का अपमान किया है.''
पाकिस्तान के पंजाब सूबे की विधानसभा में शुक्रवार को नए मुख्यमंत्री का चुनाव हो रहा है. इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर सरकारी मशीनरी के जरिए जनादेश हड़पने की कोशिश की जाएगी तो पाकिस्तान में श्रीलंका संकट जैसे हालात पैदा हो सकते हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के बेटे हमज़ा शहबाज़ सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं जबकि इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ की ओर से चौधरी परवेज़ इलाही मैदान में हैं.
368 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में विपक्षी गठबंधन के पास 187 विधायक हैं जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के पास 179 विधायकों का समर्थन हासिल है.
माना जा रहा है कि हमज़ा शरीफ़ बहुमत की दौड़ में पिछड़ सकते हैं, हालांकि अगर कुछ विपक्षी विधायकों के पाला बदलने की सूरत में सियासी समीकरण बदल भी सकते हैं.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के 25 विधायकों ने अप्रैल में विधानसभा के भीतर हमज़ा शरीफ़ के पक्ष में वोट दिया था जिसके बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई थी. मामला सुप्रीम कोर्ट गया जिसके बाद अदालत ने बहुमत तय करने के लिए 22 जुलाई को फिर से वोटिंग कराने का फ़ैसला सुनाया. (bbc.com)
पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री अब्दुल क़ादिर पटेल ने बढ़ती आबादी से निपटने के लिए सुझाव दिया है कि जो लोग अधिक बच्चों की चाहत रखते हैं, वे ऐसे देशों में जाकर बच्चे पैदा करें जहाँ मुसलमान अल्पसंख्यक हैं.
अब्दुल क़ादिर पटेल विश्व जनसंख्या दिवस के एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान की आबादी पर बात कर रहे थे.
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने जनसंख्या पर जारी की गई अपनी रिपोर्ट 'वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉसपेक्ट्स 2022' में कहा था कि इस साल के नवंबर महीने तक दुनिया की आबादी आठ अरब हो जाएगी.
इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि भारत अगले साल सबसे ज़्यादा आबादी वाले देशों की सूची में अव्वल स्थान पर होगा और चीन दूसरे स्थान पर आ जाएगा. वहीं, पाकिस्तान की आबादी 2050 में जाकर 36 करोड़ के आंकड़े को पार करेगी.
ऐसे में सवाल ये है कि पाकिस्तान में आबादी नियंत्रित करने के मुद्दे पर इतनी चिंता क्यों बढ़ गई है?
पाकिस्तान की सांसद समीना मुमताज़ ज़हरी ने एक कार्यक्रम के दौरान इस सवाल का कुछ हद तक जवाब दिया है. समीना बलूचिस्तान आवामी पार्टी (बीएपी) की सदस्य हैं.
उन्होंने कहा, "आंकड़ों के मुताबिक़, पाकिस्तान कुल क्षेत्रफल के लिहाज़ से दुनिया का 33वां सबसे बड़ा देश है लेकिन जब बात आबादी की हो तो वो दुनिया का पाँचवां सबसे बड़ा देश है. पाकिस्तान में मौजूदा आबादी के हिसाब से भी संसाधनों की भारी कमी है और देश का हर नागरिक इनका इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है."
पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री के बयान में भी बढ़ती आबादी के प्रति यही चिंता दिखती है.
पाकिस्तान आबादी
अब्दुल क़ादिर ने कहा, "पाकिस्तान की आबादी 2030 तक 285 मिलियन (यानी 28.5 करोड़) हो जाएगी, जो एक चिंताजनक स्थिति है. हम अल्लाह की मख़लूक़ कम नहीं करना चाह रहे, हम मुसलमान कम नहीं करना चाह रहे. हम मुसलमान को बेहतर बनाना चाह रहे हैं. हम मुसलमान को पढ़ा-लिखा और सेहतमंद बनाना चाह रहे हैं."
"अक्सर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमारी बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते, जो कहते हैं कि अल्लाह दे रहा है और उसे हम बढ़ा रहे हैं... तो मैंने कहा कि आप किसी ऐसे मुल्क में जाकर इतने बच्चे पैदा करो न, जहाँ मुसलमान माइनॉरिटी हों. यहाँ तो हम लोग वैसे ही बहुत हैं..."
पाकिस्तान में ब्रिटेन के उच्चायुक्त क्रिश्चियन टर्नर ने भी चिंता ज़ाहिर करते हुए ये बताया कि मुल्क की आबादी अगले 30 साल में दोगुनी हो जाएगी, जिससे देश के संसाधनों पर पहले से पड़ रहा बोझ और बढ़ जाएगा.
बढ़ती आबादी को रोकने के लिए उन्होंने पाकिस्तान में परिवार नियोजन के मुद्दे पर अधिक बातचीत की ज़रूरत को महत्वपूर्ण बताया.
पाकिस्तान की आबादी
वर्ल्ड बैंक की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार पाकिस्तान की आबादी 22 करोड़ 52 लाख के क़रीब है. इनमें से 11 करोड़ 58 लाख से अधिक पुरुष और 10 करोड़ 93 लाख से अधिक महिलाएं हैं, जो कुल आबादी का 48 फ़ीसदी है.
लिंगानुपात की बात करें तो पाकिस्तान में प्रति 100 महिलाओं पर 105 पुरुष हैं. साल 1950 में ये अनुपात प्रति 100 महिलाओं पर क़रीब 120 पुरुष था.
वहीं इसी साल भारत में जारी नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार लिंगानुपात के मामले में देश में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं. अब भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020 तक पहुंच गई है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट 'वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉसपेक्ट्स 2022' के अनुसार 2050 तक पाकिस्तान की आबादी में 56 फ़ीसदी का इजाफ़ा होगा और ये 36.6 करोड़ के आंकड़े को पार कर जाएगी.
पाकिस्तान में पहली बार साल 1998 में जनगणना कराई गई थी. उस समय से लेकर 2017 तक पाकिस्तान की आबादी में 57 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई और ये 21 करोड़ के पास पहुँच गई.
पाकिस्तान की आबादी
इतना ही नहीं उस समय से अब तक ब्राज़ील को पीछे छोड़ते हुए पाकिस्तान दुनिया का पाँचवां सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया. उससे पहले चीन, भारत, अमेरिका और इंडोनेशिया थे.
भारत से अलग होने के बाद साल 1950 में पाकिस्तान की आबादी 3.3 करोड़ थी और उस समय वो जनसंख्या के लिहाज से दुनिया में 14वें स्थान पर था.
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पाकिस्तान में प्रजनन दर
प्रजनन दर वो अहम पैमाना है, जिससे ये पता लगाया जाता है कि किसी देश या राज्य में जनसंख्या विस्फ़ोट की स्थिति है या नहीं.
पाकिस्तान स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर जो आंकड़े हैं उसके अनुसार मुल्क में औसतन हर महिला 3.6 बच्चों को जन्म दे रही है. बात मुस्लिम देशों की हो तो पाकिस्तान दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है. लेकिन इसके बावजूद गर्भनिरोधक के प्रसार दर के मामले में पाकिस्तान दक्षिण एशिया के भी सबसे निचले पायदान वाले देशों में से एक है.
वहीं नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल प्रजनन दर 2.0 है.
विश्व बैंक के आंकड़ों को देखें तो पाकिस्तान की कुल आबादी में करीब एक करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं यानी जिनकी उम्र 65 या उससे अधिक है. इसमें से 49 लाख के क़रीब महिलाएं हैं.
पाकिस्तान में चिंता क्यों?
जानकार मानते हैं कि बढ़ती आबादी की तुलना में देश के संसाधनों के बेहतर होने की रफ़्तार सुस्त है. पाकिस्तान में 15 से 64 साल की उम्र के बीच 13 करोड़ 75 लाख के क़रीब आबादी है. देश में 15 साल से अधिक उम्र की कामकाज के योग्य आबादी के केवल 49.4 फ़ीसदी हिस्से के पास ही रोज़गार है, यानी करीब 51 फ़ीसदी कामकाजी के पास नौकरी नहीं है.
शिक्षा के क्षेत्र में भी पाकिस्तान दुनिया के टॉप देशों में दूसरे स्थान पर है.
यूनिसेफ़ पाकिस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में 5-16 साल के तकरीबन 2 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा रहे. ये तब है, जब इस उम्र के बच्चों का देश की कुल आबादी में 44 का फ़ीसदी योगदान है.
देश की आबादी और विकास के बारे में पाकिस्तानी एक्सपर्ट शाहिद जावेद बुर्की बताते हैं कि कैसे इस मुल्क की आबादी बहुत युवा है. उनका कहना है कि विश्व की जनसंख्या की औसत उम्र क़रीब 31 वर्ष है, जिसका मतलब आधी जनसंख्या उससे कम आयु की है. वहीं, पाकिस्तान की औसत आयु क़रीब 24 साल है.
लेकिन रोज़गार-सुविधाओं की तलाश में पाकिस्तान के कुछ शहरों में अब क्षमता से कहीं गुना अधिक लोग रह रहे हैं.
डिप्लोमैट वेबसाइट में छपे एक लेख में बताया गया है कि कैसे 20 फ़ीसदी से अधिक पाकिस्तानी देश के केवल 10 बड़े शहरों में ही रह रहे हैं. कराची और लाहौर पाकिस्तान के वे शहर हैं जिनपर आबादी का बोझ सबसे ज़्यादा है. (bbc.com)
ब्यूनस आयर्स, 22 जुलाई | अर्जेटीना के राष्ट्रपति अल्बटरे फर्नाडीज ने साउथन कॉमन मार्केट (मर्कोसुर) को मजबूत करने का आह्वान किया है, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह पूरी दुनिया को भोजन की आपूर्ति करने में सक्षम है। अल्बटरे फर्नांडीज ने गुरुवार को कहा, "अगर हम इसका लाभ उठाना शुरू कर देंगे, तो हमारे पास दुनिया में भूखे लोगों की मदद करने का एक और अनूठा अवसर होगा।"
प्रेसीडेंसी प्रेस रिलीज के अनुसार, राष्ट्रपति ने यह टिप्पणी ल्यूक के परागुआयन शहर में मर्कोसुर और संबद्ध राज्यों के प्रमुखों द्वारा आयोजित एलएक्स शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र के दौरान अपने संबोधन में की।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अल्बटरे फर्नाडीज ने चुनौतीपूर्ण वैश्विक स्थिति के चलते एकजुट होने का आग्रह किया। (आईएएनएस)
कोलंबो, 22 जुलाई | श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने शुक्रवार को दिनेश गुणवर्धने को श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी के सांसद गुणवर्धने ने अन्य वरिष्ठ सांसदों की उपस्थिति में राजधानी कोलंबो में शपथ ली।
विक्रमसिंघे को बुधवार को एक संसदीय वोट में दक्षिण एशियाई देश के नए राष्ट्रपति के रूप में चुना गया और उन्होंने गुरुवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
राष्ट्रपति कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी शिन्हुआ को बताया कि शेष मंत्रियों को शुक्रवार को बाद में शपथ दिलाई जाएगी। (आईएएनएस)
वारसॉ, 22 जुलाई | पोलैंड ने 60-79 आयु वर्ग के लोगों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले 12 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए कोविड वैक्सीन की चौथी खुराक को मंजूरी दे दी है। देश के स्वास्थ्य मंत्री एडम नीडजेल्स्की ने घोषणा की है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पोलिश प्रेस एजेंसी (पीएपी) ने एक संवाददाता सम्मेलन में नीडजेल्स्की के हवाले से कहा, 22 जुलाई से, हम 60-79 आयु वर्ग के लोगों और 12 वर्ष से अधिक उम्र के कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए एक अतिरिक्त टीकाकरण की पेशकश करेंगे।
नीडजेल्स्की के अनुसार, देश की कुल 38 मिलियन आबादी में से लगभग 12 मिलियन लोगों को अब तक तीसरी खुराक मिल चुकी है। वहीं 80 से अधिक उम्र वाले लोगों को चौथी खुराक दी जा चुकी है।
वर्तमान में, रोजाना लगभग 3,000 नए मामले सामने आ रहे हैं। जिसका अर्थ है कि साप्ताहिक वृद्धि दर लगभग 60 प्रतिशत है। हालांकि, नीडजेल्स्की ने कहा कि सकुर्लेटिंग म्यूटेशन पिछले स्ट्रेन की तरह खतरनाक नहीं है। (आईएएनएस)
यरुशलम, 22 जुलाई | इजराइल के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि सरकार आतंकवाद और देश के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम देने वाले दोषी लोगों की नागरिकता रद्द कर सकती है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बताया, सुप्रीम कोर्ट के अध्यक्ष एस्तेर हयूत के नेतृत्व में सात जजों के एक पैनल ने कहा कि एक व्यक्ति को इजरायल राज्य के खिलाफ विश्वास के उल्लंघन का दोषी ठहराया गया है। इस तरह के दोषी, जो आतंक, देशद्रोह, जासूसी, या शत्रुतापूर्ण जैसे कामों में लिप्त होते है, उन्हें नागरिकता रद्द करने का सामना करना पड़ सकता है।
राष्ट्र विरोधी गतिविधियों केदोषियों की इजरायली नागरिकता रद्द हो सकती है। लेकिन उन्हें देश में रहने की अनुमति देने के लिए एक निवास परमिट जारी किया जाएगा।
कोर्ट के यह फैसला आंतरिक मंत्रालय द्वारा इजरायल के दो सऊदी अरब नागरिकों की नागरिकता से इनकार करने के अनुरोध के जवाब में आया। जिन्हें दो अलग-अलग हमलों को अंजाम देने का दोषी ठहराया गया था।
इन दो सऊदी अरब नागरिकों के नाम मोहम्मद मफराजा और अला जि़उद है। मोहम्मद मफराजा ने 2012 में तेल अवीव में एक बस में विस्फोटक उपकरण लगाया था, जिसमें 24 लोग घायल हो गए थे। वहीं अला जि़उद ने 2015 में उत्तरी इजराइल के गण शमूएल जंक्शन पर छुरा घोंपकर हमला किया था, जिसमें चार लोग घायल हो गए थे।
अदालत ने प्रस्तुत की गई प्रक्रियाओं में खामियों के चलते उनकी नागरिकता रद्द करने के मंत्रालय के अनुरोधों को ठुकरा दिया। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 22 जुलाई | शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के महासचिव झांग मिंग शुक्रवार को तीन दिनों के लिए पाकिस्तान दौरे पर हैं। इसके दौरान वह 15-16 सितंबर को उज्बेकिस्तान के समरकंद में होने वाले एससीओ वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को आमंत्रित करेंगे। यह सूचना द न्यूज के हवाले से मिली है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि इस सम्मेलन में पाकिस्तान और भारत के प्रधानमंत्री मुलाकात कर सकते हैं।
द न्यूज ने कहा कि छह साल में यह पहली बार है कि दोनों प्रधानमंत्री एक छत के नीचे मौजूद होंगे और एक-दूसरे से मुलाकात करेंगे।
उच्च पदस्थ राजनयिक सूत्रों ने गुरुवार को द न्यूज को बताया कि शहबाज और मोदी के बीच मुलाकात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि दोनों दो दिनों के लिए एक ही परिसर में रहेंगे।
सूत्रों ने कहा, "दोनों की अभी तक कोई बैठक नहीं हुई है, क्योंकि भारत की ओर से अभी तक इसकी कोई पेशकश नहीं की गई है। अगर हिंदुस्तान ऐसी कोई पेशकश करता है, तो इस पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया सकारात्मक होगी।"
चीन, पाकिस्तान, रूस, भारत, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान इस ग्रुप के पूर्ण सदस्य हैं।
ग्रुप के नए अध्यक्ष ने अपनी प्राथमिकताओं और कार्यो को पहले ही रेखांकित कर दिया है। इनमें संगठन की क्षमता और अधिकार बढ़ाने, क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने, गरीबी कम करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास शामिल हैं। (आईएएनएस)
रोम, 22 जुलाई | इटली के राष्ट्रपति सर्जियो मैटरेला ने देश में समय से पहले चुनाव कराने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाते हुए संसद के दोनों सदनों को आधिकारिक रूप से भंग कर दिया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्राध्यक्ष ने देश के नाम एक संक्षिप्त संबोधन में और प्रधानमंत्री मारियो द्रागी के इस्तीफे को स्वीकार करने के बाद इसकी घोषणा की।
बुधवार को सीनेट में हुए विश्वास मत पर मतदान का उनके ही गठबंधन के प्रमुख सहयोगी पार्टियों फाइव स्टार मूवमेंट, राइट विंग लीग और सेंटर-राइट फोर्जा इटालिया ने बहिष्कार कर दिया था। जिसके चलते द्रागी की सरकार गिर गई और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा।
तीनों गठबंधन में द्रागी के प्रमुख सहयोगी थे, जिन्होंने 13 फरवरी, 2021 को द्रागी की राष्ट्रीय एकता कैबिनेट का समर्थन किया है।
मैटरेला ने कहा, मैंने संविधान द्वारा निर्धारित 70 दिनों की समय सीमा के भीतर चुनाव करवाने के लिए डिक्री पर हस्ताक्षर किए।
उन्होंने बताया कि समय से पहले संसद को भंग करना एक अंतिम विकल्प था।
आम चुनाव कराने की तारीख की घोषणा बाद में किए जाने की उम्मीद है। (आईएएनएस)
अफगानिस्तान में काम करने वाली एक ऑस्ट्रेलियाई महिला पत्रकार ने तालिबान पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
फॉरेन पॉलिसी पत्रिका की पत्रकार लिन ओडॉनेल ने कहा कि तालिबान ने उन्हें हिरासत में लिया. उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और जेल में डालने की धमकियां दी गई.
उन्होंने आरोप लगाया कि तालिबान ने उन्हें ऐसे ट्वीट करने के लिए मजबूर किया कि उन्होंने तालिबान को लेकर जो आर्टिकल लिखे हैं, वे झूठे हैं.
पत्रकार लिन ओ डॉनेल ने ट्विटर पर लिखा कि तालिबान इंटेलिजेंस ने कहा कि माफी मांगते हुए ट्वीट करो नहीं तो जेल जाना होगा.
साथ ही उन्होंने कई बार ट्वीट को एडिट, डिलीट करने के लिए मजबूर किया. मेरा वीडियो ये कहते हुए बनाया कि मेरे साथ ज़बरदस्ती नहीं की गई है.
लिन ओडॉनेल ने लंबे समय तक अफगानिस्तान को कवर किया है. इसके बाद से उन्होंने अफगानिस्तान छोड़ दिया है.
तालिबान ने उन्हें हिरासत में लिए जाने की पुष्टि की है और कहा कि उन्होंने झूठी रिपोर्ट्स की हैं.
बीबीसी से बात करते हुए लिन ओ डॉनेल ने कहा कि उन्होंने काबुल की यात्रा ये देखने के लिए की थी कि करीब एक साल पहले उनके देश छोड़ने के बाद से देश कैसे बदल गया है.
उन्होंने कहा कि मेरे ऊपर अफगानिस्तान के कानूनों को तोड़ने और उनकी संस्कृति को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया था. मैंने अफगानिस्तान में एलजीबीटीक्यू+ और तालिबान चरमपंथियों के जबरन शादी करने को लेकर आर्टिकल लिखे थे. तालिबान का कहना था कि वे आर्टिकल झूठ और गलत हैं.
उन्होंने कहा कि तालिबान ने उन्हें अपने सोर्स का खुलासा करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया.
लिन ओडॉनेल, अफगानिस्तान में समाचार एजेंसी एएफपी और एपी की ब्यूरो प्रमुख रही चुकी हैं. (bbc.com)
श्रीलंका में विपक्ष के नेता सजिथ प्रेमदासा ने मध्य-रात्रि में प्रदर्शनकारियों के शिविरों को तोड़ने और उन्हें खदेड़ने की कार्रवाई की निंदा की है.
प्रेमदासा ने एक वीडियो री-ट्वीट करते हुए लिखा है, "शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रदर्शन कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ एक कायरतापूर्ण हमला. ये लोग पहले से ही घोषणा कर चुके थे कि वे साइट खाली कर देंगे, उसके बादजूद इस कार्रवाई से निर्दोष ज़िंदगियों को ख़तरे में डाला गया. यह श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचाने वाला है, यह सिर्फ़ अहंकार और ताक़त का एक औचित्यहीन प्रदर्शन है."
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में मध्य रात्रि के दौरान सैकड़ों की संख्या में सैन्यबल प्रदर्शन-स्थल पर पहुंच गए और वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों के तंबुओं को नष्ट करने लगे. उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर भी हमले किए.
इस दौरान बीबीसी के एक पत्रकार पर भी हमला हुआ है.
श्रीलंका में हुई इस कार्रवाई पर दुनिया भर के देशों के राजनयिकों ने प्रतिक्रिया की है.
श्रीलंका में अमेरिका की राजदूत जूली चुंग ने ट्वीट किया है, "मध्यरात्रि में गॉल फ़ेस में प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई से चिंतित हैं. हम अधिकारियों से संयम बरतने और घायलों को तत्काल मेडिकल सहायता उपलब्ध कराने का आग्रह करते हैं."
श्रीलंका में ब्रिटिश हाई-कमीशन सारा हल्टन ने भी ट्वीट करके अपनी चिंता ज़ाहिर की है.
उन्होंने ट्वीट किया है, "गाले फ़ेस विरोध-स्थल से आ रही रिपोर्ट्स के बारे में बहुत चिंतित हैं. हमने हमेशा से शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार को महत्वपूर्ण माना है."
श्रीलंका में यूरोपीय संघ के राजनयिकों ने भी इस कार्रवाई के संबंध में चिंता ज़ाहिर की गई है. ट्वीट करके चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा गया है, "श्रीलंका जिस दौर में हैं, उस मौजूदा समय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है."
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में सुरक्षाबलों ने प्रदर्शकारियों के मुख्य धरना स्थल पर शुक्रवार तड़के धावा बोला. उन्होंने मुख्य प्रदर्शन-स्थल पर मौजूद तंबुओं को एक-एक कर गिरा दिया.
राष्ट्रपति भवन के भीतर मौजूद प्रदर्शनकारियों को बाहर निकालने के लिए भी दर्जनों की संख्या में पुलिस और कमांडो अंदर घुस गए और लोगों को बाहर खदेड़ दिया.(bbc.com)
दिनेश गुणावर्धने ने आज श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
गुणावर्धने की नियुक्ति छह बार के प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनने के बाद हुई है.
73 साल के गुणावर्धने इससे पहले विदेश मंत्री और शिक्षा मंत्री रह चुके हैं.
अप्रैल में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें गृह मंत्री नियुक्त किया था. (bbc.com)
यूक्रेन की सबसे बड़ी स्टील फर्म मेटिनवेस्ट के मालिक ने रूस पर कई हजार करोड़ के स्टील चुराने का आरोप लगाया है.
उन्होंने कहा कि रूस यूक्रेन में स्टील प्लांट और बंदरगाहों से 60 करोड़ डॉलर कीमत के स्टील की चोरी कर रहा है.
मेटिनवेस्ट स्टील फर्म अज़ोवस्टल स्टील प्लांट की मालिक है. ये प्लांट मारियुपोल शहर की तबाही के दौरान यूक्रेनी सैनिकों और नागरिकों का अंतिम ठिकाना बना था.
मुख्य कार्यकारी यूरी रायज़ेनकोव ने कहा कि स्टील को रूस में ट्रांसफर कर बेचा जा रहा था, जिसमें से कुछ स्टील यूके के ग्राहकों के लिए बना था. स्टील की इस लूट पर रूस ने कोई टिप्पणी नहीं की है.
मेटिनवेस्ट स्टील कंपनी का मुख्यालय मारियुपोल में है, जो ट्रेड और मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र है. तीन महीने की लंबी लड़ाई के बाद मई में रूस ने इस पर कब्जा किया है.
मुख्य कार्यकारी यूरी रायज़ेनकोव ने कहा कि अज़ोवस्टल स्टील प्लांट पर हमले में 300 कर्मचारी और 200 कर्मचारियों के रिश्तेदार मारे गए हैं. (bbc.com)
रियो डी जनेरियो, 22 जुलाई | ब्राजील की वर्कर्स पार्टी ने अक्टूबर में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा की उम्मीदवारी की आधिकारिक घोषणा कर दी है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, साओ पाउलो के पूर्व गवर्नर गेराल्डो अल्कमिन को उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है।
साओ पाउलो में कार्यक्रम की मेजबानी गुरुवार को फेडरेशन ऑफ होप ब्राजील द्वारा की गई, जिसमें वर्कर्स पार्टी, ब्राजील की कम्युनिस्ट पार्टी और ग्रीन पार्टी शामिल थीं।
76 वर्षीय लुइज इनासियो ने 2003 से 2010 तक ब्राजील के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। एक बार फिर वह इस पद के लिए 2 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में खड़े होंगे। उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों में मौजूदा राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो शामिल हैं, जो दूसरे कार्यकाल की मांग कर रहे हैं।
राजनीतिक दलों के पास अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के उम्मीदवारों को आधिकारिक तौर पर सुपीरियर इलेक्टोरल कोर्ट के साथ रजिस्टर्ड करने के लिए 15 अगस्त तक का समय होगा।
16 अगस्त से, उम्मीदवार चुनाव से एक दिन पहले तक आधिकारिक तौर पर ऑनलाइन और सार्वजनिक स्थानों पर प्रचार शुरू कर सकते हैं।
(आईएएनएस)
-जॉर्ज राइट
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में सुरक्षाबलों ने प्रदर्शकारियों के मुख्य धरना स्थल पर शुक्रवार तड़के धावा बोला. उन्होंने मुख्य प्रदर्शन-स्थल पर मौजूद तंबुओं को एक-एक कर गिरा दिया.
राष्ट्रपति भवन के भीतर मौजूद प्रदर्शनकारियों को बाहर निकालने के लिए भी दर्जनों की संख्या में पुलिस और कमांडो अंदर घुस गए और लोगों को राष्ट्रपति भवन से बाहर खदेड़ दिया.
इस दौरान बीबीसी के एक वीडियो जर्नलिस्ट को भी पीटा गया. एक सैनिक ने उनसे उनका मोबाइल छीन लिया और उसमें मौजूद वीडियो डिलीट कर दिए.
सेना की यह कार्रवाई रानिल विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनने के बाद हुई है. जनता के बीच काफी अलोकप्रिय रानिल ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की बात की थी.
हालाँकि, कुछ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे उन्हें एक मौक़ा ज़रूर देंगे.
पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के देश छोड़कर भाग जाने के बाद रानिल राष्ट्रपति चुने गए हैं. इससे पहले उन्हें हाल ही में महिंदा राजपक्षे के इस्तीफ़ा देने के बाद प्रधानमंत्री बनाया गया था.
जब हमने ये सुना कि कोलंबों में पुलिस दल और सुरक्षा बल सरकार-विरोधी प्रदर्शन स्थलों पर, आधी रात के बाद कार्रवाई करने वाले हैं, हम मुख्य प्रदर्शन स्थल पर पहुंच गए. यह जगह कोलंबो में राष्ट्रपति कार्यालय के ठीक सामने है.
थोड़ी ही देर में, भारी लाव-लश्कर के साथ सैकड़ों की संख्या में सैन्य-बल और पुलिस-कमांडो वहां आ पहुंचे. उनके पास दंगा-रोधी उपकरण भी थे. वे दो दिशाओं से उस जगह पर पहुंचे. उनके चेहरे ढके हुए थे.
प्रदर्शन-स्थल पर मौजूद कार्यकर्ताओं ने जब उनकी मौजूदगी को लेकर आपत्ति जताई तो वे और आगे बढ़ने लगे और एकाएक आक्रामक हो गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया.
कुछ पलों के भीतर ही हमने देखा कि वे फुटपाथ लगे तंबुओं को गिराने लगे. वे काफी आक्रामक थे और वहां लगे तंबुओं को एक-एक करके नष्ट कर रहे थे. सुरक्षाबल की एक टुकड़ी राष्ट्रपति भवन के भीतर चली गई, जहां 9 जुलाई को आम-जनता दाख़िल हो गई थी और जिसने राष्ट्रपति भवन को अपने कब्ज़े में लेकर राजपक्षे को भागने पर मजबूर कर दिया था.
हालांकि इससे पहले ही कार्यकर्ताओं की ओर से यह घोषणा की जा चुकी थी कि शुक्रवार तक सभी प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन से बाहर निकल जाएंगे लेकिन राष्ट्रपति भवन में दाखिल हुई सैन्यबल की ये टुकड़ी अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को किनारे करती हुई आगे बढ़ रही थी.
कार्यकर्ताओं को पीछे धकेल दिया गया और वे आगे ना बढ़ सकें, इसके लिए स्टील के बैरिकेड्स लगा दिए गए.
जिस समय उस इलाक़े से वापस लौट रहे थे, उस वक़्त एक शख़्स जिसने की साधारण कपड़े पहन रखे थे, उसने मेरे सहयोगी पर चिल्लाते हुए कहा कि वह उसके मोबाइल में मौजूद वीडियोज़ को डिलीट करना चाहता है. उस शख़्स के चारों ओर सैनिक थे. कुछ ही सेकंड्स में वो शख़्स मेरे साथी के पास आया, उसके एक ज़ोर का मुक्का मारा और उसका फ़ोन छीन लिया.
हालांकि मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि हम पत्रकार हैं और सिर्फ़ अपना काम कर रहे हैं, उन्होंने मेरी एक बात नहीं सुनी. इसके बाद भी मेरे साथी पर हमला हुआ और हमने इसका कड़ा विरोध किया. बीबीसी के अन्य साथी का माइक भी छीनकर फेक दिया गया.
उन लोगों ने वीडियो डिलीट करने के बाद मोबाइल वापस लौटा दिया. इस दौरान एख दूसरे आर्मी अधिकारी ने आखर हस्तक्षेप किया और हमें जान दिया.
मेरा साथी कांप रहा था लेकिन हम किसी तरह अपने होटल लौट आए जोकि उस जगह से कुछ सौ मीटर की ही दूरी पर है.
बीबीसी ने सेना से और पुलिस से इस हमले पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की लेकिन किसी ने भी हमारे फ़ोन-कॉल्स का जवाब नहीं दिया. बीते सप्ताह इस जगह पर आफातकाल की घोषणा की गई थी जोकि अभी भी कायम है.
श्रीलंका में जारी प्रदर्शन एक महीने या हफ़्ते भर पुराने नहीं हैं. इस साल की शुरुआत से ही श्रीलंका में आम लोगों का प्रदर्शन शुरू हो गया था. आर्थिक संकट और रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तरसते लोग इस साल की शुरुआत में ही सड़कों पर उतर आए थे.
ये प्रदर्शन अप्रैल महीने में इतने उग्र हो गए थे कि आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी और अब जुलाई में तो प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन के अंदर ही घुस गए.
देश की मौजूदा स्थिति के लिए एक बड़ा वर्ग राजपक्षे प्रशासन की ग़लत नीतियों को दोषी मानता है. वे विक्रमसिंघे को भी इस समस्या की एक बड़ी वजह मानते हैं. जिस दिन रनिल विक्रमसिंघे राष्ट्रपति चुनाव जीते, उस दिन सड़क पर प्रदर्शन कर रहे लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं थी. कुछ ही प्रदर्शनकारी सड़क पर मौजूद थे.
लेकिन जैसे ही रनिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली, उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार गिराना या सरकारी भवनों पर क़ब्ज़ा कर लेने का प्रयास करना, लोकतंत्र नहीं है. उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने और गतिविधियों में शामिल लोगों को किसी भी सूरत में बक़्शा नहीं जाएगा और उनसे सख़्ती से निपटा जाएगा.
प्रदर्शन कर रहे लोगों को इस बात की चिंता बिल्कुल थी कि सरकार धीरे-धीरे या फिर एकाएक, विरोध आंदोलनों पर आज नहीं तो कल, कार्रवाई कर सकती है.
श्रीलंकाः कुछ अहम तथ्य
भारत का पड़ोसी देश जो 1948 में ब्रिटेन से आज़ाद हुआ.
श्रीलंका की आबादी 2 करोड़ 20 लाख है, सिंहला आबादी बहुसंख्यक है, तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यक
राजपक्षे परिवार के कई भाई पिछले कई वर्षों से सत्ता में रहे
1983 में तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई और सरकार के बीच गृहयुद्ध छिड़ा
2005 में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति चुनाव में विजयी रहे
2009 में एलटीटी के साथ लंबा युद्ध समाप्त हुआ, तमिल विद्रोही हारे, महिंदा राजपक्षे नायक बनकर उभरे
तब गोटाबाया राजपक्षे रक्षा मंत्री थे जो 2019 में राष्ट्रपति बने, वे महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं
2022 में कई महीनों के ज़बरदस्त विरोध के बाद पहले महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद से और फिर गोटाबाया ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दिया
रनिल विक्रमसिंघे पहले प्रधानमंत्री और अब राष्ट्रपति बनाए गए, वो 2024 तक पद पर रहेंगे
श्रीलंका में राष्ट्रपति देश, सरकार और सेना प्रमुख होता है
प्रधानमंत्री संसद में सत्ताधारी दल का प्रमुख होता है मगर कई विधायी शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास होती हैं
विक्रमसिंघे बतौर नए राष्ट्रपति
नव-नियुक्त राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का लक्ष्य है कि वे जितनी जल्दी हो सके देश में राजनीतिक स्थिरता बहाल कर सकें.
एकबार राजनीतिक स्थिरता कायम हो जाने के बाद ही देश अपने सबसे बड़े संकट, यानी आर्थिक तंगहाली से निपटने के प्रयासों को आगे बढ़ा सकेगा.
राजनीतिक स्थिरता कायम होने के बाद ही श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ एक बेल-आउट पैकेज के लिए बातचीत शुरू कर सकेंगा. अनुमान है कि श्रीलंका इसके तहत तीन अरब डॉलर की मांग करेगा.
विक्रमसिंघे का लक्ष्य राजनीतिक स्थिरता बहाल करना है ताकि देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ एक बेलआउट पैकेज के लिए बातचीत फिर से शुरू कर सके, जिसका अनुमान लगभग 3 बिलियन डॉलर है.
श्रीलंका में महीनों से सरकार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं क्योंकि देश अपनी आज़ादी के बाद के सबसे बुरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. देश में खाद्यान्न, ईंधन और दूसरी बुनियादी ज़रूरतों की भारी कमी है.
जुलाई के दूसरे सप्ताह में हज़ारोंकी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो की सड़कों पर मार्च किया था और राजपक्षे और विक्रमसिंघे से इस्तीफ़ा देने की मांग की थी.
इसके बाद के घटनाक्रम में राजपक्षे 13 जुलाई को तड़के सुबह देश छोड़कर भाग गए. वह पहले मालदीव पहुंचे और उसके बाद सिंगापुर के लिए उड़ान भरी. सिंगापुर पहुंचकर उन्होंने स्पीकर को अपना इस्तीफ़ा मेल कर दिया.
हालांकि विक्रमसिंघे ने इस्तीफ़ा नहीं दिया, उन्होंने शुरू में पेशकश ज़रूर की थी लेकिन राजपक्षे के भाग जाने पर उन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद स्वीकार कर लिया.
रनिल ने पिछले सप्ताह कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने के साथ ही सेना को आदेश दिया था कि पब्लिक-ऑर्डर को बहाल करने के लिए जो बी ज़रूरी हो, वे करें.
छह बार के पूर्व प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दो दावेदारियों में विफल रह चुके हैं.
बीते बुधवार संसदीय प्रकिया के बाद वह देश के राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं.
बुधवार को राष्ट्रपति पद के लिए उनकी जीत का मतलब यह है कि वह नवंबर 2024 तक राष्ट्रपति के शेष कार्यकाल को पूरा करेंगे. (bbc.com)
कोलंबो, 22 जुलाई। श्रीलंका के नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का मंत्रिमंडल आज शुक्रवार को शपथ लेगा।
मंत्रिमंडल में दिनेश गुणवर्धने (73) भी शामिल हैं, जो देश के नए प्रधानमंत्री होंगे। अप्रैल में पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के कार्यकाल के दौरान उन्हें गृह मंत्री बनाया गया था। वह विदेश मंत्री और शिक्षा मंत्री के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
गुणवर्धने समेत मंत्रिमंडल में वही नेता शामिल किए जाएंगे, जो विक्रमसिंघे के कार्यवाहक राष्ट्रपति रहने के दौरान इसके (मंत्रिमंडल के) सदस्य थे। संसद सत्र के शुरू होने पर सरकार पर सहमति बनने तक पिछला मंत्रिमंडल काम करता रहेगा और इसके बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा।
अधिकारियों ने बताया कि विक्रमसिंघे सर्वदलीय सरकार का गठन करेंगे। छह बार प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे को बुधवार को सांसदों ने राष्ट्रपति चुना था।
विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनने के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि नकदी संकट से जूझ रहे श्रीलंका के वास्ते राहत सौदे के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ चल रही वार्ता को निरंतरता मिलेगी।
इस बीच, प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास के बाहर अप्रैल से डेरा डाले प्रदर्शनकारियों के समूह ने कहा कि वह अपने विरोध-प्रदर्शन समाप्त कर रहे हैं।
इस समूह के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ इस बात पर चर्चा की गई कि संविधान का सम्मान किया जाना चाहिए और इस प्रदर्शन को बंद किया जाना चाहिए।’’
हालांकि, नौ अप्रैल से राष्ट्रपति कार्यालय में प्रवेश बाधित करने वाले प्रदर्शनकारियों ने मुख्य समूह ने कहा कि वे विक्रमसिंघे के इस्तीफा देने तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
इस समूह के प्रवक्ता लहिरू वीरसेकरा ने कहा, ‘‘हमारी जीत तभी होगी, जब आम लोगों की सरकार बनेगी।’’
हालांकि, पुलिस तथा विशेष कार्यबल के जवानों ने शुक्रवार को उन्हें वहां से हटा दिया। उस समय वहां करीब 100 प्रदर्शनकारी ही मौजूद थे। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के आवास और प्रधानमंत्री कार्यालय को नौ जुलाई को कब्जा करने के बाद खाली कर दिया था, वे गॉल फेस में राष्ट्रपति सचिवालय के कुछ कमरों पर कब्जा किए हुए थे। (भाषा)
-शुमाइला जाफ़री
महाराष्ट्र के पुणे की रहने वाली 90 वर्षीय रीना वर्मा आख़िरकार मंगलवार 18 जुलाई को पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी की हवा में सांस ले पाईं. वो बीते 75 साल से पाकिस्तान के इस शहर में लौटने के लिए तड़प रही थीं.
उनकी ये तीर्थयात्रा उस घर में जाकर पूरी हुई जो रीना वर्मा के मुताबिक उनके पिता ने अपनी सारी ज़िंदगी की जमा पूँजी ख़र्च कर बनवाया था. रीना वर्मा हमेशा इस घर को फिर से देखने का सपना देखती रहीं थीं.
रावलपिंडी लौटने पर उनका शानदार स्वागत हुआ. जब उन्होंने गली में क़दम रखा तो उन पर गुलाब के फूलों की बारिश की गई.
स्थानीय लोगों ने 90 वर्षीय रीना वर्मा के साथ ढोल नगाड़ों पर डांस किया. वो इस स्वागत से अभिभूत थीं.
1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से कुछ दिन पहले ही रीना वर्मा का परिवार रावलपिंडी के 'प्रेम निवास' इलाक़े को छोड़कर भारत पहुंचा था. अब इसे कॉलेज रोड कहा जाता है.
1947 में बंटवारे के दौरान ज़बरदस्त हिंसा हुई थी. ख़ासकर पंजाब प्रांत में लाखों लोगों को अपने घर छोड़कर इधर से उधर जाना पड़ा. जगह-जगह दंगे भड़क गए और लाखों लोग मारे गए.
दर-बदर हुए लाखों परिवारों में रीना वर्मा का परिवार भी एक था.
वापसी की कहानी
साल 2021 में पाकिस्तान के एक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर जब रीना वर्मा का साक्षात्कार हुआ तो वो रातों-रात सोशल मीडिया पर सनसनी बन गईं.
'इंडिया पाकिस्तान हेरिटेज क्लब' फ़ेसबुक ग्रुप से जुड़े लोगों ने रावलपिंडी में उनके पैतृक घर की तलाश शुरू कर दी और आख़िरकार एक महिला पत्रकार ने इस घर को खोज लिया. रीना वर्मा पाकिस्तान जाना चाहती थीं लेकिन कोविड महामारी की वजह से वो जा नहीं सकीं.
हालांकि इस साल मार्च में उन्होंने अंततः पाकिस्तान के वीज़ा के लिए आवेदन दिया, और फिर बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया गया.
रीना कहती हैं, "मैं टूट गई थी. मैंने ये उम्मीद नहीं की थी कि एक 90 वर्षीय महिला, जो सिर्फ़ अपने घर को देखना चाहती है, उसका वीज़ा रद्द कर दिया जाएगा. मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ."
रीना वर्मा
रीना कहती हैं कि पाकिस्तान तब राजनीतिक अस्थिरता से गुज़र रहा था वो ये नहीं जान पा रहीं थीं कि आख़िर कैसे वीज़ा के लिए आवेदन करें.
हालांकि वो ये ज़रूर कहती हैं कि वो फिर से वीज़ा के लिए आवेदन देने की योजना बना चुकी थीं, लेकिन उनके दोबारा आवेदन करने से पहले ही उनकी कहानी पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी ख़ार तक पहुंच गई जिन्होंने दिल्ली में पाकिस्तान के दूतावास को रीना के वीज़ा की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए.
रीना बताती हैं, "जब पाकिस्तान के दूतावास से मेरे पास फ़ोन आया तो मेरी खु़शी का ठिकाना ही नहीं रहा. उन्होंने मुझसे आने और वीज़ा हासिल करने के लिए कहा. कुछ ही दिन में ये सब हो गया."
लेकिन फिर एक और चुनौती उनके सामने थी. गर्मी बहुत थी. और हाल ही में रीना ने अपने बेटे को खोया था. ऐसे में उन्हें अकेले ही यात्रा करना था. उन्हें कुछ और महीने इंतज़ार करने की सलाह दी गई.
वो कहती हैं कि इंतज़ार करना बहुत थकाने वाला था लेकिन वो बीमार पड़ने का ख़तरा नहीं उठा सकती थीं. इसलिए उन्होंने सब्र किया और आख़िरकार 16 जुलाई को पाकिस्तान पहुँचीं.
20 जुलाई को रीना आख़िरकार अपने पैतृक घर पहुंची. मैंने सुबह उनसे मुलाक़ात की थी जब वो होटल की लॉबी में बैठी थीं.
उन्होंने इस मौके के लिए ख़ास पोशाक पहनी थी. उन्होंने रंग बिरंगी बसंती सलवार कमीज़ के साथ हरी चुन्नी पहनी थी. वो शांत और ख़ूबसूरत लग रहीं थीं. उन्होंने नेल पेंट लगाया था, जब वो चेहरा घुमातीं तो चमकते हुए कानों के कुंडल नज़र आते.
लेमन जूस पीते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि इस यात्रा को लेकर उनकी भावनाएं मिश्रित हैं. वो बोलीं, "ये कड़वी भी हैं और मीठी भी."
"मैं इस पल को अपने परिवार के साथ साझा करना चाहती थी. लेकिन वो सब जा चुके हैं. मैं यहां आकर ख़ुश हूं लेकिन बहुत अकेला भी महसूस कर रही हूं."
रीना बताती हैं कि 1947 की गर्मियों में उन्होंने रावलपिंडी में अपना घर छोड़ा था. उन्होंने और उनकी बहनों ने कभी ये नहीं सोचा था कि वो वापस नहीं लौट पाएंगी.
"मेरी एक बहन की शादी अमृतसर में हुई थी, मेरे बहनोई अप्रैल 1947 में हमसे मिलने आए थे और मेरे पिता से मुझे अपने साथ वापस भेजने को कहा था. वो जानते थे कि हालात ख़राब होने वाले हैं. इसलिए, उस साल गर्मियों में हमें शिमला भेज दिया गया था. हम मरी नहीं गए थे जहां आमतौर पर हम छुट्टियां मनाने जाते थें. मरी एक पहाड़ी रिसॉर्ट है जो रावलपिंडी से 55 किलोमीटर दूर है."
"मेरे माता पिता ने शुरू में आनाकानी की थी लेकिन कुछ सप्ताह बाद वो भी हमारे पास आ गए थे. धीरे-धीरे हम सबने बंटवारे को स्वीकार कर लिया था, हालांकि मेरी मां इसे स्वीकार नहीं कर पाईं थीं. वो कभी भी बंटवारे को समझ नहीं पाईं और हमेशा ये ही कहा करती थीं कि इससे हमें क्या ही फ़र्क पड़ेगा, पहले हम ब्रितानी राज में रहते थे, अब मुस्लिम राज में रह लेंगे. लेकिन हमें हमारे घर को छोड़ने के लिए मजबूर कैसे किया जा सकता है."
रीना बताती हैं कि उनकी मां ने उस घर को कभी स्वीकार नहीं किया जो उन्हें शरणार्थी के तौर पर दिया जा रहा था क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वो इस घर को ले लेंगी तो पाकिस्तान में उस घर पर उनका दावा छूट जाएगा जिसे वो छोड़कर आई हैं.
वापस घर लौटना
जब रीना ने अपने बुज़ुर्गों की गली में क़दम रखा स्थानीय लोगों की भीड़ ने उनका स्वागत किया. उन्होंने रीना को गोद में उठा लिया, गले लगाया और उन पर गुलाब के फूलों की बारिश की.
कुछ लोगों ने ढोल की आवाज़ पर उनके साथ डांस भी किया. रीना बहुत ख़ुश नज़र आ रहीं थी. फिर उन्हें घर के भीतर ले जाया गया जहां मीडिया को जाने की अनुमति नहीं थी.
इमारत के हरे रंग के अगवाड़े पर ताज़ा रंग किया गया था. घर बाहर से कुछ नयापन लिए था लेकिन उसका ढांचा पुराना था. इसी बीच गली में लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. वो सब रीना को देखना और उनके साथ सेल्फी लेना चाहते थे.
रीना कुछ घंटों तक घर के भीतर रहीं. जब वो दोबारा बाहर निकलीं तो दर्जनों कैमरे उनकी तस्वीर लेने का इंतज़ार कर रहे थे.
मौसम में नमी थी और गली में भीड़ थी. लेकिन रीना शांत दिख रहीं थीं. उन पर अपने इर्द गिर्द इकट्ठा पत्रकारों का कोई असर नहीं था.
उन्होंने मीडिया को बताया कि घर अधिकतर अब भी पहले जैसा ही है. टाइलें, छत, आग की जगह सबकुछ वैसा ही है और ये देखकर उन्हें अपनी ज़िंदगी के उस ख़ूबसूर दौर की याद आ रही है जो उन्होंने यहां बिताया. उन्हें अपने उन रिश्तेदारों की भी याद आई जिन्हें अब वो गंवा चुकी हैं.
रीना ने कहा कि उनका दिल रो रहा है लेकिन वो शुक्रगुज़ार हैं कि वो अपने घर को दोबारा देखने के लिए ज़िंदा रहीं.
जब उनसे पूछा गया कि वो दोनों देशों की सरकारों को क्या संदेश देना चाहती हैं तो उन्होंने राजनीति में पड़ने से इनकार करते हुए सिर्फ़ इतना ही कहा कि जिन लोगों के परिवार और जड़ें बॉर्डर के आरपार हैं उन्हें इस तरह से पीड़ा नहीं झेलनी चाहिए जैसे उन्हें झेलनी पड़ीं.
भारत और पाकिस्तान में बहुत से लोगों को लगता है कि दिल को छू जाने वाली उनकी कहानी इस क्षेत्र को नई उम्मीद देगी जो जहां दूसरे समुदायों के प्रति नफ़रत की राजनीति हर चीज़ पर हावी हो रही है. (bbc.com)
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन कोरोना से संक्रमित हो गए हैं. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कैराइन जीन-पियरे ने एक बयान जारी करके इसकी जानकारी दी है.
प्रवक्ता ने बताया कि राष्ट्रपति बाइडन व्हाइट हाउस में आइसोलेट होकर काम कर रहे हैं. साथ ही वो एंटीवायरल दवा का सेवन कर रहे हैं.
वहीं अमेरिका की पहली महिला और राष्ट्रपति बाइडन की पत्नी जिल बाइडन ने कहा है, ''वो ठीक हैं, जबकि मैं निगेटिव पाई गई हूं.''
कैराइन जीन-पियरे ने अपने बयान में बताया है, ''79 साल के राष्ट्रपति बाइडन में 'बहुत हल्के लक्षण' देखे गए. और वे अपने सभी काम करते रहेंगे.''
बयान के अनुसार, व्हाइट हाउस के प्रोटोकॉल के अनुरूप राष्ट्रपति जो बाइडन आइसोलेशन में रहकर निगेटिव होने तक काम करते रहेंगे.
जीन-पियरे ने यह भी बताया है कि वो टेलीफोन और ज़ूम के ज़रिए बैठकों में हिस्सा लेंगे.
राष्ट्रपति के फिजिशियन डॉ. केविन ओ कोनोर ने भी इस बारे में एक ट्वीट किया है. उन्होंने यह भी बताया है कि राष्ट्रपति बाइडन, दो बूस्टर डोज़ के साथ कोविड वैक्सीन से पूरी तरह वैक्सीनेटेड हैं.
वहीं व्हाइट हाउस के कोविड समन्वयक डॉ. आशीष झा ने बताया है, ''राष्ट्रपति बाइडन थकान महसूस कर रहे थे. उनकी नाक बह रही थी और उन्हें सूखी खांसी भी थी. वे सोने गए लेकिन अच्छे से नींद नहीं आई. उसके बाद गुरुवार सुबह हुए टेस्ट में वो कोविड पॉज़िटिव पाए गए.''
ब्रिटिश साइंस एंड बायोलॉजी के अध्यापक नताली विल्सर ने अपने हाथ पर अल्बर्ट आइंस्टीन का एक टैटू बनवा रखा है. उनके पांव पर, कलाई पर और टखने पर भी कई अलग-अलग डिज़ाइन के टैटू हैं.
इन सभी टैटू में उनके लिए सबसे दर्दनाक इंस्टेप (पैर के ऊपरी हिस्से) और टखने पर टैटू करवाना रहा.
उन्होंने बीबीसी के पॉडकास्ट 'टीच मी लेसन' पर बताया, "दर्द, ख़ुद को सुरक्षित करने का एक तरीक़ा है और नर्व्स (तंत्रिकाएं) के कारण यह दर्द महसूस होता है."
उन्होंने पॉडकास्ट प्रेज़ेंटर बेला मैकी और ग्रेग जेम्स से बातचीत में कहा, "शरीर के जिस हिस्से में कम चर्बी होती है और तंत्रिकाएं अधिक होती हैं, वहां टैटू बनवाना सबसे अधिक दर्दनाक होता है."
विल्सर कहते हैं, "पांव और टखने के अलावा, पिंडली, आर्म-पिट्स (बगल), कंधे और पसलियों के पास का हिस्सा बेहद संवेदनशील होता है. हालांकि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि उसके शरीर का कौन सा हिस्सा कितना अधिक संवेदनशील है."
उन्होंने बताया, "जिस समय शरीर के हिस्से पर टैटू किया जा रहा होता है, यानी जिस समय सुई स्किन को पंक्चर कर रही होती है, उस समय तंत्रिकाएं मस्तिष्क को दर्द होने का संदेश भेजती हैं."
लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि एक शख़्स को टैटू करवाने में जितना दर्द हो रहा हो, ज़रूरी नहीं की दूसरे शख़्स को भी उतना ही दर्द हो. दर्द का पैमाना अलग-अलग लोगों की अपनी संवेदनशीलता पर निर्भर करता है.
वह आगे कहते हैं कि एक शख़्स के बर्दाश्त करने की क्षमता भी, दूसरे शख़्स के बर्दाश्त करने की क्षमता से अलग होती है. ऐसे में दर्द का पैमाना अलग-अलग हो सकता है.
टैटू बनवाना सदियों से मानव-सभ्यता का हिस्सा रहा है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में टैटू की परंपरा रही, अलग-अलग नामों से. लेकिन दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात टैटू उत्ज़ी के शरीर पर पाया गया था. जिसे हिममपुरुष (आईसमैन) भी कहते हैं.
साल 1991 में इटली के आल्प्स क्षेत्र के दूर-दराज़ इलाक़े में यह ममी खोजी गई थी. यह क़रीब बीते 5000 सालों से बर्फ़ में दबी हुई थी.
विल्सर बताते हैं, "उत्ज़ी का टैटू हालांकि बेहद छोटा था. ये सिर्फ़ डॉट्स और डैशेज़ की मदद से बनाई गई आकृति जैसे थे. मानव-विज्ञानी मानते हैं कि ये किसी मेडिकल उद्देश्य के लिए एक्यूपंक्चर ट्रीटमेंट केनिशान भी हो सकते हैं."
वह आगे कहते हैं, "यह जानना अपने आप में दिलचस्प और हैरत में डालने वाला है कि उस समय भी लोग (यानी पाषाण-युग में और धातु-युग) में भी लोग टैटू का इस्तेमाल करना जानते थे और लोग इसका इस्तेमाल बेहद सही तरीक़े से करते थे."
इसके बाद धीरे-धीरे टैटू, कहानियां बताने का एक तरीक़ा बन गया.
विल्सर के मुताबिक़, "पौराणिक कथाओं के अनुसार, कैप्टन जेम्स कुक 18वीं शताब्दी के अंत में, बहुत से लोगों से मिले. प्रशांत क्षेत्र में अपनी यात्रा के दौरान वह ऐसे ढेरों लोगों से मिले जिन्होंने टैटू गुदवा रखा था. उनके दल के 90 फ़ीसद क्रू मेंबर्स ने अपनी यात्रा के दौरान मिले अनुभवों को ज़िंदा रखने लिए टैटू गुदवाए."
विल्सर कहते हैं, "ब्रिटिश नौ-सेना के सैनिकों को यह परंपरा विरासत में मिली और उन्होंने अपनी यात्राओं के टैटू बनवाने शुरू कर दिए. उन्होंने टैटू बनाने के लिए मूत्र और बारूद का इस्तेमाल किया."
19वीं सदी के अंत में टैटू मशीन अस्तित्व में आ चुकी थी. जोकि वास्तव में थॉमस एडिसन के प्रिंटर पर आधारित थी.
"यह 1875 में बनाई गई थी और उस समय से लेकर लेटेस्ट मॉडल तक इसमें बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ है. इसमें मौजूद सुई अभी भी एक मिनट में 50 से 3,000 बार स्किन में चुभती है."
ऐसे में सवाल उठता है कि यदि त्वचा नई हो जाती है, तो टैटू का रंग क्यों जस का तस बना रहता है?
प्रोफेसर विल्सर के मुताबिक़, त्वचा की तीन मुख्य परतें होती हैं. सबसे बाहर की ओर एपिडर्मिस, मध्य में डर्मिस, जहां रक्त-वाहिकाएं (ब्लड-वेसेल्स) , पसीने की ग्रंथियां, रोम-छिद्र और तंत्रिकाएं होती हैं. सबसे अंदर की तरफ़ हाइपोडर्मिस लेयर होती है.
वो कहते हैं,"टैटू की स्याही को त्वचार के उस हिस्से में इंजेक्ट किया जाता है, जहां तंत्रिकाएं होती है. टैटू का रंग इसलिए फीका नहीं पड़ता क्योंकि यह एपिडर्मिस द्वारा सुरक्षित होती है."
विल्सर कहते हैं कि जब स्याही को इंजेक्ट किया जाता है तो तंत्रिकाएं मस्तिष्क को संदेश भेजती हैं कि वो घायल हो रही हैं. इसके बाद दिमाग शरीर के उस हिस्से के संदेश को ग्रहण करके सुरक्षात्मक रवैया अख़्तियार करते हुए ह्वाइट-ब्लड-वैसेल्स (श्वेत रूधिर कणिकाएं) को उस जगह की सुरक्षा के लिए निर्देश देता है. (bbc.com)
ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में अंतिम दो उम्मीदवारों में बुधवार को शामिल हुए ऋषि सुनक ने कहा है कि वो अपने कैंपेन के लिए दिन और रात काम करने को तैयार हैं.
न्यूज़ वेबसाइट दे डेली टेलीग्राफ़ में लिखे एक आलेख में पूर्व वित्त मंत्री सुनक ने यह बात कही है.
लिज़ ट्रस के साथ कई नीतिगत मसलों पर पैदा हुई कड़वाहट को कम करने का प्रयास करते हुए कहा है कि वे अपनी प्रतिद्वंद्वी को 'चाहते और उनका सम्मान करते' हैं.
ऋषि सुनक ने लिखा, ''मैं थैचराइट (मार्गरेट थैचर का अनुयायी) हूं. मैं कड़ी मेहनत, परिवार और ईमानदारी में यक़ीन करता हूं. इस मुहिम में मैं थैचराइट के रूप में भाग ले रहा हूं और शासन भी इसी रूप में करूंगा.''
उन्होंने लिखा, ''मेरा देश की संप्रभुता में यक़ीन है. क़ानूनी और ग़ैर क़ानूनी आप्रवासन को लेकर मेरा रुख़ सख़्त है. मेरे लिए आर्थिक विकास सबसे आगे है. और यह महंगाई कम करके और सरकारी ख़र्च बढ़ाकर ही हासिल हो सकता है. वृद्धि दर तेज़ करने का सबसे बेहतर तरीक़ा करों और नौकरशाही में कटौती करना है. साथ ही निजी निवेश और इनोवेशन को बढ़ाने की ज़रूरत है.''
कब तय होगा अगले पीएम का नाम
बोरिस जॉनसन की जगह लेने की दौड़ में ऋषि सुनक का मुक़ाबला लिज़ ट्रस से है. अनुमान है कि 5 अगस्त से कंजरवेटिव पार्टी के 1.6 लाख सदस्यों के वोट पोस्टल बैलेट से मिलने शुरू हो जाएंगे. पोस्टल बैलेट पाने की समयसीमा 2 सितंबर शाम 5 बजे है.
उसके बाद मतों की गिनती की जाएगी. 5 सितंबर को ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री के नाम का एलान कर दिया जाएगा.
इससे पहले, बुधवार को कंज़रवेटिव सांसदों के बीच अंतिम दौर के मतदान में अंतिम दो नामों का फ़ैसला हुआ. पाँचवें दौर के मतदान में ऋषि सुनक को सबसे अधिक 137 वोट मिले हैं, जबकि लिज़ ट्रस को 113 वोट मिले. (bbc.com)
चीन की सड़कों पर टैंक की लाइन देख कर इंटरनेट हैरान है. स्थानीय मीडिया के हवाले से रेडइट के यूजर्स ने बताया है कि यह फुटेज रिझाओ की है जो शेंडॉन्ग क्षेत्र का है. यहां बैंक की स्थानीय शाखा को बचाने के लिए टैंक उतार दिए गए. हेनान प्रांत की ये वीडियो क्लिप दिखाती है कि कई टैंक कतार में खड़े हैं और स्थानीय लोगों को बैंक की ब्रांच तक पहुंचने से रोक रहे हैं. जैसे ही कैमरा घूमता है वैसे ही टैंक की कतार पूरे ब्लॉक को कवर कर लेता है. स्थानीय लोग गुस्से में दिखते हैं लेकिन वो इंतजार करने पर मजबूर हैं क्योंकि बख्तरबंद वाहन सामने खड़े हैं. रेडइट यूज़र इस सीन की तुलना थियानमन चौराहे की घटना से करते हैं जो 1989 में हुआ था. जब सैकड़ों टैंकों का प्रयोग लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिए किया जाता था.
यह मुद्दा सबसे पहले अप्रेल में उठा था जब साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने एक लेख में बताया था कि हेनान और अन्हुई क्षेत्रों के निवासियों को सिस्टम अपग्रेड के कारण बैंक अकाउंट का एक्सेस नहीं दिया जा रहा है. तब से युझोऊ शिनमिनशेंग विलेज बैंक, शैंगकाऊ हुईमिन काउंटी बैंक, झेचेंग हुआनगुआई कम्युनिटी बैंक और हेनान प्रांत में काईफेंग के न्यू ओरिएंटल कंट्री बैंक ऑफ कैईफेंग और पास के अनहुई प्रांत के गुझेन शिंनहुआइहे विलेज बैंक प्रभावित हुए हैं.
थियानमेन स्वायर 2 : इलेक्ट्रिक बूगालू, एक यूजर ने कंफर्म किया. दूसरा लिखता है...इतिहास खुद को दोहराता है. एक अन्य यूज़र ने लिखा, मैं सोच रहा हूं कि क्या होगा अगर टैंक ऑपरेटर भी अपना पैसा ना निकाल पाएं. स्थानीय लोग चीन के बैंक संकट का सामना कर रहे हैं. ऐसा दावा किया जा रहा है कि 40 बिलियन युआन यानि करीब ( 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) चीन के बैंक सिस्टम से गायब हो गए हैं. और लोग अपनी बचत निकालने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
SCMP ने एक रिपोर्ट में सोमवार को कहा कि लोगों से सब्र के साथ इंतजार करने को कहा जा रहा है. कुछ लोगों को पिछले हफ्ते 50,000 युआन यानि करीब 7, 400 अमेरिकी डॉलर का भुगतान हुआ लेकिन बाकि अभी भी इंतजार कर रहे हैं. (ndtv.in)
लिज़ ट्रस ने अपने स्कूल के दिनों में एक नाटक में मारग्रेट थैचर का किरदार निभाया था जो ब्रिटेन की मशहूर प्रधानमंत्री थीं. लेकिन अब उनकी नज़र असल ज़िंदगी में प्रधानमंत्री बनने की राह पर है.
ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री की दौड़ में अंतिम दो उम्मीदवारों का फ़ैसला हो गया है. बोरिस जॉनसन की जगह पीएम पद पर अब या तो ऋषि सुनक काबिज़ होंगे या लिज़ ट्रस बैठेंगी.
बुधवार को कंज़रवेटिव सांसदों के बीच अंतिम दौर के मतदान में यह फ़ैसला हुआ. पाँचवें दौर के मतदान में ऋषि सुनक को सबसे अधिक 137 वोट मिले हैं, जबकि लिज़ ट्रस को 113 वोट मिले.
अब पार्टी के 1.6 लाख सदस्य पोस्टल बैलेट से मतदान करेंगे. 5 सितंबर को ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री के नाम का एलान होगा.
बीते साल, 46 साल की उम्र में लिज़ ट्रस ब्रिटेन की दूसरी महिला विदेश मंत्री बनीं. इससे 15 साल पहले लेबर की मारग्रेट बैकेट विदेश मंत्री बनी थीं.
हालांकि ब्रिटिश संसद में, तुलनात्मक तौर पर उनका अनुभव बहुत अधिक नहीं हैं लेकिन उन्होंने इस कम समय में ही कई अलग-अलग पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं. वह कई हाई-प्रोफ़ाइल पदों पर रही हैं.
ए-लिस्ट उम्मीदवार
लिज़ ट्रस का जन्म साल 1975 में, ऑक्सफ़ोर्ड में हुआ. ट्रस के अभिभावकों के बारे में जो जानकारी प्राप्त है, उसके मुताबिक़, उनके पिता गणित के प्रोफ़ेसर और मां नर्स रही हैं.
जब लिज़ चार साल की थीं, उसी समय वह स्कॉटलैंड में पैस्ले चली गईं थीं. इसके बाद साल 1983 में उनके एक अभिनय में उनकी राजनेता बनने की इच्छा नज़र आ गई थी. उन्होंने अपने स्कूल के एक नाटक में मारग्रेट थैचर का रोल प्ले किया था.
इसके बाद उनका परिवार लीड्स चला गया, जहां उन्होंने स्टेट सेकेंडरी स्कूल से आगे की तालीम हासिल की.
बीबीसी रेडियो 4 के प्रोफाइल से बात करते हुए, उनके छोटे भाई ने बताया कि उनका परिवार क्लूडो और मोनोपॉली जैसे बोर्ड गेम खेला करता था.
उनके भाई ने बताया कि लिज़ ट्रस को हारना पसंद नहीं है और खेलने के दौरान जब उन्हें लग जाता था कि वो हारने वाली हैं, तो वह खेल छोड़कर गायब हो जाती थीं.
ट्रस ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से उच्च-शिक्षा हासिल की है. उन्होंने दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र की है. वो इसके साथ-साथ राजनीति में भी सक्रिय रहीं.
शुरुआती दौर में वह में लिबरल डेमोक्रेट्स के साथ रहीं और बाद में कंज़रवेटिव्स पार्टी के लिए सक्रिय रहते हुए काम किया.
इसके बाद उन्होंने शेल और केबल एंड वायरलेस के लिए अकाउंटेंट के तौर पर काम भी किया. लेकिन वो हमेशा से संसद ही जाना चाहती थीं.
साल 2001 और 2005 के आम-चुनावों में हेम्सवर्थ और काडर-वैली से कंज़रवेटिव पार्टी की उम्मीदवार थीं. हालांकि वह दोनों में से कोई भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकीं लेकिन साल 2006 में ग्रीनिच की काउंसलर चुनी गईं.
साल 2008 से उन्होंने राइट-ऑफ़-सेंटर रिफ़ॉर्म थिंक टैंक के उप-निदेशक के तौर पर काम करना शुरू किया.
वह कंज़रवेटिव नेता डेविड कैमरन की पसंद वाले उम्मीदवारों की "ए-लिस्ट" का भी हिस्सा रहीं. इसके बाद वह साल 2010 में, टोरी पार्टी की सुरक्षित दक्षिण पश्चिम नॉरफ़ॉक सीट से 13,140-वोट बहुमत के साथ विजयी रहीं और सांसद चुनी गईं.
संसद में रहते हुए उन्होंने 'ब्रिटैनिया-अनचेन्ड' नाम की किताब का सह-लेखन भी किया.
साल 2012 में, सांसद बनने के दो साल बाद वह तात्कालिक सरकार का हिस्सा बनीं. वह सरकार में बतौर शिक्षा मंत्री शामिल हुईं.
चीज़ स्पीच को लेकर चर्चा में आईं
स्कूलों में नए सुधार को लेकर उनके और लिब डेम के उप-प्रधानमंत्री निक क्लेग के बीच काफी विवाद भी हुआ लेकिन कैमरन ने उन्हें साल 2014 में पर्यावरण मंत्री के रूप पदोन्नत किया.
इसके बाद साल 2015 में वह एक बार फिर चर्चा में आईं.
साल 2015 में कंज़रवेटिव कॉन्फ्रेंस में पनीर के आयात करने पर भाषण देने के लिए उनका मज़ाक उड़ाया गया था. लेकिन ट्रोलर्स की टिप्पणियों के बावजूद वो आगे ही बढ़ती रहीं.
ब्रेक्ज़िट यानी यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए हुए जनमत संग्रह में उन्होंने यूरोपीय संघ में बने रहने का समर्थन किया था. उस समय उन्होंने कहा था कि ब्रेक्ज़िट "एक त्रासदी" होगा.
हालांकि, बाद में उन्होंने अपने विचार बदल दिए थे.
साल 2016 में, वह थेरेसा मे के नेतृत्व वाली सरकार में जस्टिस सेक्रेटरी (न्याय मंत्री) बनीं. उसी के अगले साल वह वित्त मंत्रालय में मुख्य सचिव बनीं.
साल 2019 में बोरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री बनने के बाद, ट्रस को अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री का कार्यभार सौंपा.
विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने उत्तरी आयरलैंड प्रोटोकॉल की उलझी हुई समस्या को हल करने की मांग की. उनके इस कदम की यूरोपीय-संघ ने काफी आलोचना की थी.
उन्होंने ईरान में गिरफ़्तार हुए दो ब्रिटिश-ईरानी नागरिकों, नाज़नीन ज़गारी-रैटक्लिफ और अनुशेह अशूरी की रिहाई भी सुनिश्चित की.
रूस के यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर भी वह सक्रिय रही हैं. उन्होंने हमेशा इस पर सख़्त रवैया ही अपनाया. उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि रूसी सेनाओं को देश से बाहर खदेड़ दिया जाना चाहिए.
ब्रिटेन के जिन लोगों ने निजी तौर पर यूक्रेन जाकर युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई थी, उनका समर्थन करने पर भी ट्रस को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था.(bbc.com)
नई दिल्ली, 21 जुलाई | टेस्ला ने इस साल दूसरी तिमाही में अपनी बैलेंस शीट में 93.6 करोड़ डॉलर नकद जोड़कर अपने बिटकॉइन का 75 प्रतिशत बेचा है, क्योंकि यह चट्टान की तरह गिरने वाली क्रिप्टोकरेंसी के बीच आर्थिक मंदी से निपट रहा है। पिछले साल, टेस्ला ने बिटकॉइन में 1.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया था और घोषणा की थी कि वह बिटकॉइन को भुगतान के रूप में स्वीकार करेगा।
विश्लेषकों के साथ दूसरी तिमाही की अर्निग कॉल में टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने कहा कि कंपनी ने अपने बिटकॉइन होल्डिंग्स का एक हिस्सा बेचने का कारण 'यह था कि हम अनिश्चित थे कि चीन में कोविड लॉकडाउन कब कम होगा।'
उन्होंने कहा, "इसलिए चीन में कोविड लॉकडाउन की अनिश्चितता को देखते हुए हमारे लिए अपनी नकदी की स्थिति को अधिकतम करना महत्वपूर्ण था। हम निश्चित रूप से भविष्य में अपने बिटकॉइन होल्डिंग्स को बढ़ाएंगे। इसलिए इसे बिटकॉइन पर कुछ फैसले के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।"
मस्क ने कहा कि कंपनी चीन में शटडाउन को देखते हुए कंपनी के लिए समग्र तरलता को लेकर चिंतित है।
उन्होंने कहा, "और हमने अपना कोई भी डॉजक्वाइन नहीं बेचा है।"
बिटकॉइन पर दो महीने से भी कम समय के बाद टेस्ला ने पर्यावरणीय नुकसान का हवाला देते हुए अपने इलेक्ट्रिक वाहनों को खरीदने के लिए भुगतान मोड के रूप में लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी पर ब्रेक लगाया है।
(आईएएनएस)
कोलंबो, 21 जुलाई | श्रीलंकाई रेलवे ने कल (शुक्रवार) मध्यरात्रि से अपने टिकट किराए में वृद्धि करने की घोषणा की है। डेली मिरर ने रेलवे के महाप्रबंधक धम्मिका जयसुंदरा के हवाले से बताया कि इस संशोधन पर सूचनापत्र अधिसूचना प्रिंट करने के लिए भेजी गई है।
धम्मिका जयसुंदरा ने कहा कि ईंधन पर होने वाले खर्च से ट्रेन यात्राएं बढ़ाना संभव नहीं होगा।
देश के दो करोड़ 20 लाख लोग बढ़ते कर्ज, आसमान छूती महंगाई, भोजन और ईंधन की कमी के साथ अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। (आईएएनएस)