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जर्मनी: कैसा होगा केंद्र सरकार के गिरने के बाद का रास्ता
12-Nov-2024 12:17 PM
जर्मनी: कैसा होगा केंद्र सरकार के गिरने के बाद का रास्ता

जर्मनी में केंद्र की मौजूदा गठबंधन सरकार के गिर जाने की स्थिति में देश में जल्द ही नए चुनाव कराने पड़ेंगे. देखिए कैसी होगी नई सरकार के अस्तित्व में आगे तक की पूरी प्रक्रिया.

डॉयचे वैले पर डाविड एल की रिपोर्ट-

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के दिन ही जर्मनी में मौजूदा गठबंधन सरकार लड़खड़ा गई. कारण बना पूर्व वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर द्वारा जारी 18 पन्नों का एक पेपर, जिसने गठबंधन के बाकी सहयोगियों को खासा नाराज किया. इसके बाद चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने लिंडनर को अपनी कैबिनेट से बाहर निकाल दिया. एफडीपी पार्टी के नेता लिंडनर का साथ देते हुए उनके दल के सभी सांसदों ने गठबंधन सरकार से इस्तीफा दे दिया.

चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने जर्मनी की सरकारी प्रसारण सेवा एआरडी को दिए इंटरव्यू में कहा, "अगर सब लोग सहमत हों तो मुझे क्रिसमस से पहले ही विश्वास मत के लिए सदन बुलाने में कोई दिक्कत नहीं है. मुझे कुर्सी का लालच नहीं है."

इससे पहले उन्होंने विश्वास मत साबित करने के लिए 15 जनवरी को संसद का सत्र बुलाने की बात कही थी. लेकिन लगातार बढ़ते दबाव के कारण अब दिसंबर में ही विश्वास मत की स्थिति बनती दिख रही है.

कैसी है आगे की राह
आने वाले हफ्तों में मौजूदा सरकार गठबंधन के दो सहयोगियों, एसपीडी और ग्रीन पार्टी, की मदद से बचे हुए कामों को पूरा करने की योजना बना रही है. शॉल्त्स ने पेंशन पैकेज पारित करने, शरणार्थियों के लिए यूरोपीय संघ के नए ढांचे के तहत कानून बनाने और जर्मनी की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सहायता पैकेज पारित करने की बात की है.

हालांकि शॉल्त्स ने मौजूदा साल के सप्लीमेंट्री बजट का जिक्र नहीं किया. इसके बिना अल्पमत की सरकार के पास काम की बहुत कम संभावना बचती है.

बजट पारित करने के लिए बुंडेस्टाग में शॉल्त्स बहुमत कैसे हासिल करेंगे, यह भी साफ नहीं है. उन्होंने मुख्य विपक्षी पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के प्रमुख फ्रीडरिष मेर्त्स के साथ बातचीत की घोषणा की है.

हालांकि मेर्त्स ने सहयोग के लिए यह शर्त रखी है कि शॉल्त्स जल्द से जल्द अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएं. कई विपक्षी सांसद भी जल्द से जल्द नए चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं.

पहला चरण: अविश्वास प्रस्ताव
'बेसिक लॉ' कहलाने वाले जर्मनी के संविधान के अनुच्छेद 68 के अनुसार, चांसलर संसद में एक प्रस्ताव पेश करेंगे और बुंडेस्टाग के सदस्यों से उसका समर्थन करने का अनुरोध करेंगे. संविधान में इस पर सोच विचार और बहस करने के लिए अधिकतम 48 घंटे का समय निर्धारित किया गया है. इसके बाद संसद को एक नतीजे पर आना होगा. 

अगर चांसलर को सांसदों का विश्वास मत नहीं मिल पाता है तो उस स्थिति में अगले चुनाव का रास्ता साफ हो जाएगा. जर्मनी के इतिहास में ये छठी बार होगा जब कोई चांसलर विश्वास मत का सामना करेगा. ऐसे मामलों में अब तक केवल दो बार ही सरकार बचाई जा सकी है.

दूसरा चरण: संसद का विघटन
अगर चांसलर बुंडेस्टाग में विश्वास मत खो देते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति को संसद भंग करने का प्रस्ताव देना होगा. अगर राष्ट्रपति को लगता है कि मौजूदा परिस्थितियों में सरकार चलाना संभव नहीं है तो संसद भंग करके अगले चुनावों का एलान करने के लिए उनके पास 21 दिनों का समय होता है.

जर्मनी के 'बेसिक लॉ' के अनुसार संसद भंग होने के 60 दिनों के भीतर नए चुनाव करा दिए जाने चाहिए.

तीसरा चरण: समय से पहले चुनाव
अब तक जर्मनी में मार्च 2025 में नई संसद का चुनाव कराने की संभावना पर चर्चा हो रही थी लेकिन तेजी से बदलते परिदृश्य में दिसंबर में ही अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने पर चुनाव पहले भी हो सकते हैं.

चुनाव की नई तारीखों को लेकर राजनीतिक पंडित कई कयास लगा रहे हैं. मेर्त्स की मानें तो नए चुनाव जनवरी में हो सकते हैं. सामान्य स्थिति में अपना कार्यकाल पूरा कर पाने पर जर्मनी में अगले चुनाव 28 सितंबर 2025 को होने तय थे. नया चुनाव हाल ही में पारित चुनावी कानून सुधार के बाद आयोजित होने वाला पहला चुनाव होगा. इसके तहत बुंडेस्टाग के 733 सदस्यों की संख्या को घटाकर 630 कर दिया गया है.

चौथा चरण: नई सरकार का गठन
सर्वेक्षणों की मानें तो जर्मनी की अगली संसद की संरचना बिल्कुल अलग होगी. गठबंधन से बर्खास्त की गई एफडीपी को संसद में बने रहने के लिए जरूरी 5 फीसदी वोट मिलने की कम ही उम्मीद है. ज्यादातर सर्वे वर्तमान में सीडीयू/सीएसयू और एसपीडी के बीच गठबंधन की उम्मीद कर रहे हैं.

इसके बाद भी जर्मनी में नई सरकार का गठन कितनी जल्दी हो पाएगा, ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता. पिछली बार 2021 में अपने तय समय और आम परिस्थितियों में हुए आम चुनावों के बाद देश में नई सरकार के गठन में 71 दिन लग गए थे. (dw.com)
 


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