विचार / लेख
-रमेश अनुपम
आखिरकार गुरुदेव ने मन ही मन एक युक्ति ढूंढ ही निकाली। उन्होंने रूखमणी से अपने साथ आने के लिए कहा ताकि प्लेटफार्म में किसी दुकान से सौ रुपए का चिल्हर करवा कर वे उसे पच्चीस रुपए दे सकें। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के इस फैसले को देखकर मृणालिनी देवी प्रसन्न हुई।
गुरुदेव अपने साथ रूखमणी को लेकर प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए। थोड़ी दूर जाने के बाद गुरुदेव अपने असली रूप में आ गए। जेब से दो रुपए निकाले और रूखमणी को डांटते हुए बोले तुम मुसाफिरों को लुटती हो मैं अभी तुम्हारी शिकायत करता हूं और तुम्हें जेल भिजवाता हूं। रूखमणी गुरुदेव की डांट से घबरा गई वह उसके चरणों में गिर गई।रूखमणी डर कर कांपने लगी और कहने लगी मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे जाने दीजिए, मेरी शिकायत मत कीजिए।
यह सारी कथा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शब्दों में ‘फांकि ’ कविता में कुछ इस तरह से है-
‘ऐई बोले सेई मेयेटाके
आड़ा लेते निये गेलेम डेके
आच्छा करेई दिलेम तारे हेंके
केमन तोमार नोकरी थाके
देखबो आमी
पैसेंजरे के ठकीये बेडाओ
घोंचार नाष्टामी
केंदे जखन पडलो पाये धरे
दूई टाका तार हाथे दीये
दिलेम बिदाय करे। ’
(यह बोलकर उस स्त्री को एक आड़ में ले जाकर मैंने उसे अच्छे से डांटा। मैंने उससे कहा कि मैं देखता हूं कि तुम्हारी नौकरी कैसे बचती है, पैसेंजर को तुम ठगती हो। तब रोते हुए उसने पांव पकड़ लिए। उसी समय मैंने उसे दो रुपए का नोट देकर विदा कर दिया। )
रूखमणी को दो रुपए थमाकर उसे विदा करने के बाद गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर वापस यात्री प्रतीक्षालय में पहुंचे। मृणालिनी देवी तो जैसे उनकी प्रतीक्षा ही कर रही थीं, गुरुदेव के आते ही पूछा कि क्या सौ रुपए तुड़वाकर रूखमणी को पच्चीस रुपए दे दिए। गुरुदेव ने मृणालिनी देवी से झूठ बोलते हुए कहा कि हां मैंने सौ रुपए तुड़वाकर रूखमणी को पच्चीस रुपए दे दिए हैं।
मृणालिनी देवी ने खुश होकर कहा कि अब रूखमणी अपनी बेटी की शादी के लिए आभूषण बनवा सकेगी और अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में अच्छे से विदा कर सकेगी। यह कल्पना कर ही मृणालिनी देवी का हृदय एक अलौकिक आनंद से भर उठा था। उसे लगा कि उसके जीवन की एक बड़ी साध अब शीघ्र ही पूरी होने वाली है।
पेंड्रा रोड पहुंचकर भी बार-बार मृणालिनी देवी यह सोच-सोच कर मन ही मन आनंदित होती रहती थी कि रूखमणी की बेटी को उसके ब्याह में आभूषण बनवाने के लिए पच्चीस रुपए देकर उन लोगों ने एक बड़े पुण्य का कार्य किया है ।
अपनी बीमारी के पूरे दो महीनों में मृणालिनी देवी कई-कई बार इस घटना का गुरुदेव से उल्लेख करतीं और मन ही मन खुश होती थी। इन दो महीनों में रूखमणी की बेटी के लिए उन्होंने जो कुछ किया था उसका स्मरण कर, मृणालिनी देवी के हृदय में जैसे अमृत का संचार होने लगता था।
अंतत: जब मृणालिनी देवी इस पृथ्वी से विदा ले रही थीं तब भी वे इस घटना को जो उनके जीवन की सबसे मूल्यवान घटना थी, याद कर रहीं थीं। वे अपने अंतिम समय में भी इस घटना को भूल नहीं पा रही थी और बार-बार उसका स्मरण कर रही थीं।
गुरुदेव ने ‘फांकि’ कविता में लिखा है-
‘ऐई दूटी मास सुधाय दिलो भरे। बिदाय नीलेम सेई कथाटी स्मरण करे।’
मृणालिनी देवी के जीवन के ये दो मास जैसे अमृत से भरे हुए थे। जब विदा हो रही थीं तब भी उनके अधरों पर इसी एक घटना का स्मरण था।)
इस समय गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के हृदय में जो कुछ घटित हो रहा था उसे अभिव्यक्त करने के लिए शब्द भी शायद कम पड़ जायेंगे। उनकी वेदना को प्रदर्शित कर सके, ऐसी शक्ति भी किसी भी शब्द में नहीं थी।
ऐसी मर्मांतक वेदना जो गुरुदेव के हृदय को छलनी किए जा रही थी, उसे प्रकट करने की शक्ति भला किस भाषा में हो सकती थी।
गुरुदेव क्लांत हैं। उनके जीवन के सबसे मार्मिक क्षण यहीं हैं जब उन्हें उनके द्वारा किए गए छल के लिए जो क्षमा प्रदान कर सकती थी आज वही उससे दूर चली गई है।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर अंतर्यामी से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे मृणालिनी देवी को आज सत्य से परिचित करवाना चाहते हैं। इन दो महीनों में उन्होंने मृणालिनी देवी को जो दुख दिया है, जो कष्ट पहुंचाया है, मात्र पच्चीस रुपए के लिए जो झूठ बोला है, उसके साथ छल किया है, उस जघन्य पाप से से वे मुक्त होना चाहते हैं ।
‘फांकि’ कविता में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की वेदना कुछ इस तरह से प्रकट हुई है -
‘ओगो अंतर्यामी
बिनूर आज जानाते चाई आमी
सेई दू मासेर अर्धेय आमार विषम बाकी
पंचिस टाकार फांकि ’ ( हे अंतर्यामी ! आज मैं बीनू को बताना चाहता हूं। वे दो मास का अर्ध्य जो विषम है मेरे मन में शेष है ,जो पच्चीस रुपए के लिए मैने छल किया था )
गुरुदेव सोच रहे हैं कि आज रूखमणी को एक लाख रुपए देने पर भी मैं मृणालिनी देवी से किए गए छल से मुक्त नहीं हो पाऊंगा। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर यह सोच-सोच कर द्रवित हो रहें हैं कि मृणालिनी देवी जिन बीते हुए दो महीनों को अपने साथ लेकर गई हैं उसमें वे जान ही नहीं पाई हैं कि मैंने उसके साथ कितना बड़ा छल या धोखा किया है।
गुरुदेव आहत हैं, उनका हृदय अपार वेदना से द्रवित है। गुरुदेव अपने किए गए इस छल से, धोखे से क्षुब्ध हैं। वे इसके लिए हर तरह के प्रायश्चित करने के लिए तैयार हैं।
उन्होंने मृणालिनी देवी से जो छल किया है, उस छल से मुक्त होने के लिए वे अपना सब कुछ अर्पण करने के लिए प्रस्तुत हैं । पर इसे संभव करें तो भला कैसे करें बस इसी एक चिंतन में आकंठ डूबे हुए हैं।
(शेष अगले हफ्ते)