विचार / लेख
-विनोद कुमार शर्मा
आज (10 अप्रैल) खलील जिब्रान के देहावसान का दिन है। आज ही के दिन 1930 में न्यूयार्क में एक सडक़ दुर्घटना में उनकी मृत्यू हो गई थी। इस समय उनकी उम्र कुल अड़तालीस वर्ष थी। उनका जन्म लेबनान के एक कैथोलिक मान्यता के परिवार में हुआ। इस समय लेबनान तुर्क आथमन वंश के अति कठोर शासन के आधीन था। यहां सब ओर भूख और गरीबी का साम्राज्य ही था। काम की तलाश में परिवार अमेरिका आया पर जिब्रान कुछ समय बाद अपनी मातृभूमि चले आये और बेरूत के एक कॉलेज से उन्होंने आगे की शिक्षा पूरी की । वे अंग्रेजी फ्रांसीसी और अरबी भाषाओं के जानकार थे ।
इक्कीस वर्ष की उम्र में उनकी पहली पुस्तक स्पिरिट्स रिबेलियंस प्रकाशित हुई और लेबनान के धार्मिक कट्टर समाज की जड़ें हिला दीं । कैथोलिक चर्च ने सभी प्रतियों को आग लगाने, एवं खलील जिब्रान को देश तथा धर्म सभी से निष्कासित कर दिया । इस पुस्तक में तीन कहानियां थीं, इसमें से तीसरी कहानी तत्कालीन ईसाई पाखंड की निर्ममता और क्रूरता को उजागर करती थी। कुछ समय जिब्रान अपने पेरिस के चित्रकार मित्र के पास चित्रकला का अभ्यास किया और बाद में न्यूयार्क आ गए। दुर्घटना में मारे जाने के समय तक उनके साहित्य से लोग इतना प्रेम करने लगे थे कि उनके शरीर को लेबनान के राष्ट्रीय झण्डे में लपेट कर लेबनान ले जाया गया। और ईसाई, शिआ, सुन्नी और यहूदियों का जनसैलाब उनको विदा देने आया । आज भी उनकी समाधि उनके प्रेमियों को खींचती है , जहां लगातार यात्री पहुंचते हैं ।
उनकी लगभग पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित हैं । वे चित्रकार होने से अपनी पुस्तकों के आवरण और अंदर भी अपने ही चित्रों से सजाते थे । ओशो ने अमेरिका में सार्वजनिक प्रवचन न देने के दिनों में चार पांच मित्रों के बीच दो बातचीत श्रृंखला चलाईं, जिनकी रिकॉर्डिंग से दो पुस्तकें बनी ‘पुस्तकें जिन्हे मैं प्यार करता हूं’ और ‘स्वर्णिम बचपन।’ पहली में उन्होंने अपनी प्रिय पुस्तकों को एक एक करके बताया है कि इस पुस्तक में क्या है और इसे क्यों पढ़ी जाए। दूसरी में उन्होंने अपने बचपन और अपने गांव की बातों को सुनाया है। अपनी प्रिय पुस्तकों के उन्होंने दस दस के समूह में वर्णन किये हैं। उनकी पुस्तक सूची में संभतया पहली तीन पुस्तकों में दस स्पेक जरथुस्त्र है। फिर जब वे अगली दस पुस्तकों की सूची देते हैं तो पहली पुस्तक पैगम्बर ही चुनते हैं । यह कहते हुए कि यह पुस्तक दस स्पेक जरथुस्त्र की ही अनुकृति है । मैं पढऩे में बहुत ढीला होने से यह पुस्तक कभी देख नहीं पाया पर पैगम्बर को जरूर देखने समझने का मौका मिला, उस तरह से देखें तो यह पुस्तक ओशो की पसंद की पुस्तक सूची में भी बिल्कुल ऊपर है ।
इस पुस्तक से जिब्रान को भी बहुत प्रेम था, पूरी हो जाने पर भी चार साल तक इसकी पाण्डुलिपि को और-और अधिक सुन्दर करने का प्रयास करते रहे । इसके अंदर विचारों और अधिक कह पाने के लिये चित्र बनाये । जिब्रान की यह क्षमता थी कि वे काव्य को गद्य की तरह स्थूल और गंभीरता दे सकें और गद्य को काव्य की तरह रहस्य और लोच से भर सकें। जीवन में जिन चीजों को भी लक्ष्य की तरह मानव जाति ने चुना है वे सभी बातें किसी न किसी तरह के आध्यात्मिक लोगों द्वारा ही आदमी से कही गई हैं। यह पुस्तक भी जीवन के यथार्थ और रहस्य को शब्दों में उतार पाती है। बाहर की दुनिया को जानना कह पाना भी अधूरा सा है और केवल अनुभूतियों में डूबते उतराते रहना भी इसे केवल मानसिक करके अनुपयोगी बनाता है।
यहां कोई चीज पूरी है भी नहीं है न तो गणित और न ही दर्शन। विरोधाभासों का मेल ही जीवन है। दो विपरीतताओं को खुला आमंत्रण और इस बात के डर का अभाव कि मैं इसे कैसे सिद्ध कर पाऊंगा या कह पाऊंगा। यह स्वीकृति ही हमें जीवन के थोड़े-बहुत नज़दीक लाती है। नहीं तो यहां है तो सब कुछ बेबूझ। जिब्रान की पुस्तक पैगम्बर का अलमुस्तफा अपने मूल में जाने से पहले लोगों को हर विषय पर अपने विचार देता है, उत्तर की तरह। ये उत्तर धर्मग्रंथों के क्विंटलों कचरे से कुछ एक कीमती चीजें चुनने की तुलना में बिना कचरे वाला सीधा खजाना ही हैं। जो परिशुद्ध है। काम का है। यह भारत के ब्रहृमसूत्र और उपनिषदों के सामने भी कहीं कमजोर नहीं पड़ता, कहना चाहिए और ज्यादा संघनित। जिब्रान को मरे नब्बे साल हो गए। इतने पहले भी धरती पर रहकर खुद को इतना हरा भरा करने के अवसर थे, आज के हम कुपोषित से आदमी जिनके शरीर, मन, बुद्धि तथा आत्मा सब कुछ कुपोषित हैं। सब एकतरफा, बौने और अधूरे से। कोशिश करेंगे कि जिब्रान जैसे लोगों से कुछ तो संपन्नता अर्जित करें, जिससे धरती पर हमारे खाने पीने का कुछ तो बदला हम समाज को दे सकें।