विचार / लेख
-रमेश अनुपम
छत्तीसगढ़ और विशेषकर रायपुर का इतिहास लिखा जाए और उस इतिहास में रायबहादुर भूतनाथ डे का उल्लेख न हो, ऐसा संभव नहीं है। रायबहादुर भूतनाथ डे एक ऐसे अनमोल शख्शियत थे जिन्होंने इस शहर को शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं से महरूम किया।
रायपुर शहर को एक नई पहचान दिलाने की कोशिश ही नहीं की अपितु एक नए रायपुर को गढऩे में आगे बढ़ कर रुचि भी दिखाई। सेंट्रल प्रोविनेंस एंड बरार के इस नवविकसित शहर को एक नई पहचान दिलाने में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिक्षा के विकास में और जनजागृति के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को उन्होंने अंजाम दिया। जिसके फलस्वरूप उन्हें उस समय सी पी एंड बरार का ईश्वरचंद्र विद्यासागर कहा जाता था। जो कार्य बंगाल में ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने किया ठीक उसी तरह के नवजागरण का कार्य रायबहादुर भूतनाथ डे ने इस शहर के लिए किया।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने बंगाल में नवजागरण के समय कोलकाता में शिक्षा, स्त्री शिक्षा, महिलाओं को आगे बढ़ाने तथा जनजागृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए ठीक उसी तरह के उल्लेखनीय कार्यों को राय बहादुर भूतनाथ डे ने रायपुर में अंजाम दिया।
वे बीस वर्षों तक (सन् 1880 से 1900 तक) रायपुर म्यूनिस्पल के सेक्रेटरी रहे। उस बीच उन्होंने पेयजल के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय कार्य किए। राजनांदगांव के तत्कालीन राजा की आर्थिक सहायता से रायपुर में उन्होंने पेयजल की आपूर्ति को संभव बनाया। वे रायपुर के वकीलों के एक छात्र नेता रहे। सन 1902 में रायपुर के यूनियन क्लब की स्थापना में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही है।
वे दो दशक से भी अधिक समय तक इस शहर के सिरमौर रहे। इस शहर को उन्होंने जिस तरह से प्यार किया, जिस तरह से संवारा वह अद्भुत है। आज के इस दौर में तो यह सब नामुमकिन है। उनके इन कार्यों को देखकर ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें रायबहादुर की पदवी से विभूषित किया।
भूतनाथ डे के रायपुर आने की कहानी और उनका पिछला जीवन भी कोई कम दिलचस्प नहीं है। राय बहादुर भूतनाथ डे का जन्म बंगाल के बेहाला के श्रीनाथ देब के परिवार में सन 1850 में हुआ था। बहुत कम उम्र में पिता की मृत्यु हो जाने के पश्चात अपनी विधवा मां के साथ चौबीस परगना के बहड़ गांव के उदार हृदय जमींदार द्वारकानाथ भंज के यहां उन्हें शरण लेने के लिए बाध्य होना पड़ा।
भूतनाथ डे ने सन 1869 में एफ. ए. तथा 1872 में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
सन 1874 में एम. ए. तथा 1876 में कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी. एल. की परीक्षा पास की।
बी.एल. की परीक्षा उत्तीर्ण के पश्चात भूतनाथ डे का विवाह चौबीस परगना के उमाचरण मित्र की द्वितीय कन्या एलोकेशी के साथ संपन्न हुआ।
विवाह के पश्चात कोर्ट में प्रैक्टिस करने के लिए उन्होंने उपयुक्त स्थान की खोज करना प्रारंभ किया। खोज करते-करते उन्हें रायपुर के बारे में पता लगा।
सन् 1876 में वे पहली बार रायपुर आए, तब तक इलाहाबाद से नागपुर तक रेल सेवा शुरू हो चुकी थी। कोलकाता से रायपुर आवागमन संभव हो चुका था। सन 1876 में रायपुर आने के बाद उन्होंने रायपुर को ही अपनी कर्मभूमि बनाना उचित समझा।
रायपुर को उन्होंने पूरी तरह से अपना लिया और रायपुर ने उन्हें। दोनों ने एक दूसरे से भरपूर प्यार किया और भरपूर सम्मान भी।
मात्र तिरपन वर्ष की अल्प आयु में 10 जुलाई 1903 को रायपुर में इस महाप्राण ने इस पृथ्वी को छोडक़र महाप्रयाण किया। उस समय कोलकाता से प्रकाशित सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘ञ्जद्धद्ग क्चद्गठ्ठद्दड्डद्यद्गद्ग’ के 15 जुलाई 1903 के पांचवें पृष्ठ में उनके निधन के समाचार को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया गया।
छत्तीसगढ़ और रायपुर का एक चमकता हुआ सितारा सदा-सदा के लिए अस्त हो गया। एक उल्का पिंड जिसकी रोशनी से यह शहर दमक उठा था वह सदा-सदा के लिए पृथ्वी के गर्भ में समा गया।
निधन के पश्चात उनकी स्मृति में कोतवाली से गांधी चौक होकर जाने वाले मार्ग का नाम उनके नाम पर किया गया, पर इसे कितने लोग जानते हैं ?
छत्तीसगढ़ और रायपुर शहर के लिए जिस रायबहादुर भूतनाथ डे ने इतना कुछ किया। उस नगर के लोग ही आज राय बहादुर भूतनाथ डे को पूरी तरह से भूल चुके हैं।
शेष अगले रविवार..
विश्व का महान जीनियस हरिनाथ डे...