विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
सदियों पहले शेक्सपियर ने लिखा-नाम में क्या रखा है? यारों ने हामी भरी-गुलाब को गोबर कहो। खुश बू तब भी रहेगी। सात समुंदर पार आर्यावर्त में गंगातट पर भी नाम का कवच बेकाम है। शिवजी की तीन लोक से न्यारी काशी को प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। देवी देवताओं के नाम वाले उत्तरप्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल बनारस के रवीन्द्र सहित उत्साहित भक्त राममंदिर के लिए चंदा जुटा रहे हैं। रवीन्द्र के पिता रामशंकर जायसवाल कारसेवक थे। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने किसान नेताओं के विरुद्ध गुंडा एक्ट में नोटिस जारी कर दिए। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के पुराने विद्यार्थी नेता रामजी बरसों से किसान सभा में सक्रिय हैं। दूसरे राष्ट्रीय नेता रामजनम के घर नोटिस पहुंचा। दिल्ली के किसान आंदोलन का समर्थन करने के अपराध में उत्तर प्रदेश में कई लोगों को नोटिस जारी हुए। इलाहाबाद उच्चन्यायालय की हिदायत है कि गुंडा एक्ट का प्रयोग अहिंसक सार्वजनिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध न हो। राम कसम। वाकया दिलचस्प है।
कुर्सी पर पूत कमाल
लंबे समय तक गुजरात में बीज बोया। उसकी भरपूर फसल काटकर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। नरेन्द्र भाई के निवेश का भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में लगातार फायदा मिलता है। बिगड़ैल संतान की तरह राज्य के नेता नरेन्द्र भाई की कमाई को लुटाते हैं। लौह पुरुष सरदार पटेल की प्रतिमा देखने वालों के लिए देश के कोने कोने से रेल संपर्क जुड़ा। उसी वक्त उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार को फटकार लगाई। 25 हजार रुपए का जुर्माना ठोंका। शिखर अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय ने मार्च 2019 में आदेश जारी किया था। राज्य सरकार ने आदेश के विरुद्ध याचिका दायर करने में 420 दिन से एक सप्ताह अधिक समय लिया। कुल 427 दिन। सर्वोच्च अदालत में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की पीठ ने विजय रूपाणी सरकार को आड़े हाथों लिया। कहा-इस तरह की देरी जानबूझकर की जाती है। सरकार की मंशा है कि अपील खारिज हो जाए। मामला ठंडे बस्ते में चला जाए। वैसे जुर्माना सरकार भरती है। किसी नेता की जेब से तो जाता नहीं।
धूल का ‘फूल’
जो लोग इन दिनों महाराष्ट्र के मंत्री धनंजय मुंडे की दोहरी-तिहरी प्रणय निष्ठा से हतप्रभ हैं, वे ही कुछ वर्ष पूर्व प्रश्न करते थे-गोपीनाथ वर्षा में भीगने पुणे बार-बार जाने का रहस्य खोलो। केन्द्र में मंत्री बनने के कुछ दिन बाद ही दुर्घटना में प्राण गंवाने वाले गोपीनाथ महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष और उपमुख्यमंत्री रहे। अभिनेत्री से निकटता के कारण छींटाकशी सहते रहे। अनदेही से कुपित धनंजय ने काका से बगावत की। नेता प्रतिपक्ष रहा। इन दिनों मंत्री है। काका के पदचिह्नों पर चलते हुए धनंजय ने भी बाहर ढाई आखर पढ़ा। प्रेम का बीज बोया तब भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे। बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की गोद में जा बैठे। फला प्रेम तब उसके स्वाद की मिठास और कड़वाहट पर अधिकार किस पार्टी का? पूछने की बात है? भतीजे की छवि रेणु यानी धूल में मिलने की नौबत है। काका का कारनामा इस बखेड़े में भतीजे के लिए कवच बन रहा है।
गुत्थी सुलझे ना
कुछ लोग किसानों पर उबल रहे हैं। कुछ सरकार पर और कुछ सुप्रीम कोर्ट की पहल पर। बाकी देश माथा पीट रहा है। समाधान निकलने की कोई सूरत नहीं बन रही है। ऐसे मासूम देशवासियों को समझाना मुश्किल है। हम यह बताने नहीं जा रहे हैं कि चंडीगढ़, बेलगांव का विवाद पांच दशक से अटका है या अदालतों में इतने ही अरसे से मुकदमे निर्णय के इंतजार में हैं। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दवे ने अरुण मिश्र की कुंडली सार्वजनिक की थी। हम मिसर जी का गुणगान नहीं करने वाले। इसलिए उनके विदाई समारोह में दवे को बोलने नहीं दिया गया। एडवोकेट दुष्यंत तीन कृषि कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती देकर किसानों के साथ हैं। अध्यक्षीय कार्यकाल पूरा होने के कारण दवे ने त्यागपत्र दिया।
चुनाव कराने वाली समिति के सभी सदस्यों ने भी इस्तीफा दिया क्योंकि कुछ वकील आभासी यानी डिजिटल तरीके से चुनाव का विरोध कर रहे हैं। दूसरों के लफड़े सुलझाने वाले नामी वकीलों का लफड़ा कौन हल करे?
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)