विचार / लेख
-डालिया शेंडलिन
इजराइल सरकार ने गाजा के दक्षिणी किनारे पर, जहां कभी रफा था, वहाँ एक नया ‘मानवीय शहर’बसाने की योजना पेश की है और इसमें तकरीबन 6 लाख बेघर फिलस्तीनी लोगों को जबरन बसाने की बात कही गई है। इस योजना को रक्षा मंत्री इसराइल कात्ज ने सार्वजनिक किया और प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने तुरंत इसका समर्थन करते हुए आईडीएफ से अमल का प्लान बनाने को कहा।
इंसानियत या निर्वासन की तैयारी?
पहली नजऱ में ही यह योजना अंतरराष्ट्रीय कानून और इंसानी शराफत दोनों के खिलाफ जाती है। इस तथाकथित ‘मानवीय शहर’ में लोगों को भूख और मौत के डर से भागने पर मजबूर किया जाएगा, जहां से आगे का रास्ता सिर्फ एक होगा: विदेश निर्वासन।
नेतन्याहू सरकार की ये सोच अचानक नहीं आई है। दिसंबर 2022 की गठबंधन संधियों में पहले ही साफ-साफ लिखा गया था कि यह सरकार वेस्ट बैंक (जिसे यहूदी धार्मिक शब्दों में ‘जूडिया और समारिया’ कहा जाता है) में इजऱाइली संप्रभुता लागू करने का इरादा रखती है। यानी वेस्ट बैंक की डि-फैक्टो एनेक्सेशन (अधिग्रहण) की पूरी योजना पहले से मौजूद थी। अब गाजा को लेकर भी वही मानसिकता ज़ाहिर हो रही है।
‘मानवीय शहर’ एक जुमला है
‘मानवीय शहर’ नाम सिर्फ दिखावे के लिए है। हकीकत में यह एक घिरे हुए शिविर जैसा होगा जहां न तो बिजली होगी, न पानी, न निकास का कोई रास्ता। खुद इसराइल में अंतरराष्ट्रीय कानून के विशेषज्ञों ने इसे एक गैर-कानूनी आदेश बताया है, जिसे सैनिकों को मानने से इंकार कर देना चाहिए। उनके अनुसार यह योजना युद्ध अपराध, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध, और कुछ शर्तों में जनसंहार की परिभाषा में भी आ सकती है।
इजराइली सेना (आईडीएफ) ने मार्च से गाजा पर पूर्ण नाकाबंदी लागू की है ना ईंधन, ना दवा, और ना ही जरूरी खाद्य सामग्री की पर्याप्त आपूर्ति हो रही है। हाल ही में तो खाद्य सहायता और पानी वितरण केंद्रों पर भी गोलाबारी की गई, जिसमें महज 24 घंटे में 140 से ज़्यादा नागरिक मारे गए इनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं।
निर्वासन को ‘स्वैच्छिक’ कहना एक छलावा
सरकार ने एक ‘स्वैच्छिक प्रवासन प्राधिकरण’भी बना दिया है, जो ऐसे देश खोज रहा है जो फ़लस्तीनियों को शरण दें हालांकि अब तक कोई देश आगे नहीं आया है। नेतन्याहू और कात्ज़ बार-बार गजा से ‘जनसंख्या हटाने’की बात करते हैं, लेकिन उसमें ‘स्वैच्छिक’शब्द जोड़ते हैं ताकि दुनिया को धोखा दिया जा सके।
क्या ये योजना अमल में लाई जा सकती है?
सुरक्षा विशेषज्ञ माइकल मिलशटाइन कहते हैं कि यह इलाका, जहां 6-7 लाख लोगों को बसाने की बात की जा रही है, इतनी बड़ी आबादी को समाहित करने के लायक ही नहीं है। वहाँ ना घर हैं, ना सडक़ें, ना पानी की लाइन, ना बिजली।
इसी योजना में एक और डरावना सुझाव भी आया है ‘डी-रेडिकलाइज़ेशन कैंप्स’, यानी पुन: शिक्षा शिविर। क्या इजऱाइल अब फिलस्तीनियों को विचारधारा बदलने की शिक्षा भी देगा? या फिर उन्हें वहीं तंग हालत में छोड़ देगा, जहां वे या तो अपराध की ओर बढ़ेंगे या गैंग्स में शामिल होंगे?
मिस्र और इजराइल के रिश्ते और खराब होंगे
यह योजना मिस्र के लिए भी एक चुनौती है। मिलशटाइन कहते हैं, मिस्र बार-बार संकेत दे चुका है कि इजराइल उसके बॉर्डर पर ‘खतरा खड़ा कर रहा है’। पहले से तनावपूर्ण संबंध अब और खराब हो सकते हैं।
होलोकॉस्ट की छाया
इजऱाइल के कुछ लोगों को ये नागवार गुजऱा कि इस योजना को ‘कंसन्ट्रेशन कैंप’ कहा गया। लेकिन जब आप 6 लाख लोगों को जबरन एक जगह भर देते हैं, बिना बुनियादी सुविधाओं के, और उन्हें निकलने की इजाज़त नहीं देते, तो इसे और क्या कहेंगे?
यह सिर्फ एक लेखिका की राय नहीं है — पूर्व प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट ने भी इसे ‘जातीय सफ़ाया’का हिस्सा कहा है। इजऱाइली मीडिया भी इसे ‘thinning out’, यानी फ़लस्तीनियों की संख्या घटाने का नाम दे रही है।
आगे क्या?
इस योजना का भविष्य स्पष्ट नहीं है। हो सकता है सेना खुद ही इसे टालती रहे या फिर कुछ नहीं रोकेगा इन ‘पागलों’ को। मिलशटाइन को डर है कि इसका अंजाम होगा गाजा में फिर से इजऱाइली सैन्य प्रशासन की स्थापना, जैसा कि दक्षिणपंथी मंत्री स्मोत्रिच शुरू से कहते आ रहे हैं।
आखिरी बात
नेतन्याहू सरकार बार-बार धार्मिक प्रतीकों की बात करती है। लेकिन शायद इजराइल की जनता को यह सोचना चाहिए कि ‘आफतें ढाना’ उतना ही बड़ा पाप है, जितना आफतें झेलना।
(इजऱाइली अखबार Haaretz से अनुवाद chatGPT द्वारा)