विचार / लेख

बाँस गायन : 100 बरस से भी पुरानी विरासत
07-Jan-2021 4:41 PM
बाँस गायन : 100  बरस से भी पुरानी विरासत

-सतीश जयसवाल 

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध बाँस गायक-वादक हमारे जानते, देखते में इतिहास की बात होते जा रहे है।उनके साथ उनका "बाँस" भी।यह "बाँस" वस्तुतः बांसुरी का ही एक रूप है।छत्तीसगढ़ का बिल्कुल अपना।खूब लम्बी बांसुरी,जिसे बजाने के लिए उतनी ही लम्बी और दमदार साँस भी चाहिए।जो "बाँस" को भर सके।

बिलासपुर के चकरभाठा एयरपोर्ट से लगे हुए एक गांव- अचानकपुर के पंजूराम बरेठ के पास इतनी लंबी और दमदार साँस है।यह साँस उसे अपने पिता से विरासत में मिली है।इस लम्बी साँस के साथ उसके पिता का बनाया हुआ, कलात्मक "बाँस वाद्य" भी उसे विरासत में मिला है।अब यह विरासत 100 बरस से भी पुरानी हो चुकी।

खुद पंजूराम 60 पार कर चुका।और जुठेल राम बरेठ, उसके पिता ने जब उसे सौंपा था तब वह सत्तर पार कर चुके थे। या, शायद इससे भी अधिक। जुठेल राम, उसके पिता अब नहीं रहे। अब 10 बरस से अधिक हुए।
जुठेल राम ने अपना "बाँस वाद्य" खुद बनाया था।उसकी कलात्मक सजावट भी खुद ही की थी।पंजूराम ने उसे ही सम्हाल कर रखा है।और उसे ही बजाता है।लेकिन उसके पिता ने उसे "बाँस" वादन-गायन के साथ बनाना और सजना भी सिखाया था।छत्तीसगढ़ के यदुवंशी राउत बाँस गायन-वादन के साथ इसके बनाने-कलात्मक सजावट में भी पारंगत होते हैं।एक तरह से यह कला उनकी अपनी जातिगत परम्परा है।

जुठेल राम भी यादव ही था।लेकिन उसने अपनी जाति से बाहर एक बरेठ स्त्री से विवाह किया।बाहर होकर खुद भी बरेठ हो गया।अब उसका वंश भी बरेठ ही हुआ।लेकिन जब तक वह रहा, बाँस गायन की शान बनकर रहा।
बाँस वादन और गायन साथ चलते हैं। यह गायन पारंपरिक धुन में चलता है।ऐसे ही यहाँ की कोई पारंपरिक लोक गाथा भी इसके साथ-साथ चलती है। और लोक-संगीत का अनोखा रूप रचती है।

अब पंजूराम अपने पिता की स्मृतियों की कोई एक गाथा अपने भीतर समाये किसी ना किसी पारंपरिक लोक-गाथा को बाँस गीत की धुन में बांधता, रोजाना गांव से शहर आता है।और दिन भर घूमता है। रोजी-रोटी ढूंढता है। फिर लौट जाता है।
हाँ, अपने पिता और उनके पिता की वंशगत कला-परंपरा के साथ अपने बाँस की कलात्मक सजावट और खुद अपनी आकर्षक रंगीन पोषाक और वही रौबदार घनी मूँछें भी सम्हाले हुए है।और शहर के लिए खुद को दर्शनीय बनाये हुए है। 
ऐसे में भी कोई सुनने वाला मिल जाये तो वहां घर में,शाम का चूल्हा जल सके।वैसे प्रति माह 300 रुपयों  की सरकारी पेंशन का भी एक सहारा है।

 

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