विचार / लेख
चित्र में विश्व धर्म संसद में वीरचंद - सबसे बाएं
-लक्ष्मण सिंहदेव
जैन धर्म, बौद्ध धर्म के समान ही एक अनीश्वरवादी दर्शन है। विश्व की उतपत्ति का जैन सिद्धांत वैज्ञानिक मान्यताओं के सबसे जयादा नजदीक है ऐसा मेरा मानना है। 1893 में शिकागो हुई विश्व धर्म संसद में वीरचंद गाँधी ने विश्व पटल पर जैन धर्म से परिचित करवाया।
इस कॉन्फ्रेंस के लिए आचार्य विजयचन्द सूरी को जाना था चूँकि जैन मुनि केवल पैदल चलते हैं इसलिए वीरचंद को चुना गया। वीरचंद का जन्म 1864 में महुआ। गुजरात में हुआ। वीर चंद ने बंबई के एल्फिंस्टीन कॉलेज से बेचलर डिग्री ली और 21 साल की उम्र में वीर चंद गाँधी को भारतीय जैन संगठन का सचिव चुन लिया गया।
शिकागो की धर्म संसद में वीरचंद, जैन धर्म के आधिकारिक प्रतिनिधि के तौर पर गए। वीरचंद गाँधी ने अपनी विद्धता से बहुत श्रोताओ को प्रभावित किया और धर्म दर्शन के अलावा अनेक विषयों पर 535 लेक्चर दिए। समुद्र पार यात्रा करने के कारण बहुत से जैनियों ने वीर चंद की आलोचना की। स्वामी विवेकानंद ने वीर चंद के समर्थन में आलेख लिखा। विवेकानंद, वीरचंद के ज्ञान से प्रभावित थे। 1895 में वीरचंद दोबारा अमेरिका की यात्रा पर गए और वहां जैन धर्म का प्रचार किया। उसी समय भारत में दुर्भिक्ष की स्थिति हो गई। वीर चंद ने अमेरिका से एक अनाज का भरा जहाज और हजारो रूपये भिजवाएं। वीरचंद की मृत्यु मात्र 37 वर्ष की अवस्था में बंबई में 1901 में हो गई।