संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लापरवाह लोगों के साथ सरकारी नरमी किसलिए?
30-Jul-2020 9:06 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लापरवाह लोगों के साथ सरकारी नरमी किसलिए?

हिन्दुस्तान में कोरोना का जो हाल चल रहा है, वह  बहुत फिक्र पैदा करता है। कई प्रदेशों में अस्पतालों में जगह नहीं बची है, तो बड़े-बड़े स्टेडियमों में पलंग लगाकर कोरोना वार्ड बना दिए गए हैं। मौतें बहुत रफ्तार से इस देश में आगे नहीं बढ़ रही हैं, इसलिए लोग बेफिक्र हैं। यह एक अलग बात है कि पिछले चौबीस घंटों में 52 हजार से अधिक लोग पॉजिटिव निकले हैं, और दो सौ से अधिक मौतें भी हुई हैं। 

देश में झारखंड ने मास्क न लगाने वालों पर एक लाख रूपए जुर्माना लगाया है। इसके पहले सबसे बड़ा जुर्माना केरल ने 10 हजार रूपए का लगाया था। इनसे परे देखें तो छत्तीसगढ़ जैसे बहुत से राज्य सौ-दो सौ रूपए का जुर्माना लगा रहे हैं जिसे लोग मजाक बनाकर चल रहे हैं। यह भी खबर सामने आ रही हैं कि किस तरह बड़े अफसर, मंत्री और विधायक, सांसदों से लेकर पार्षदों तक राजनीति के लोग लापरवाही दिखा रहे हैं। उनके आसार गड़बड़ दिख रहे हैं, लेकिन वे कोरोना टेस्ट के लिए नमूना देने के बाद घर बैठने के बजाय जनसंपर्क कर रहे हैं। 

कहने के लिए तो महामारी का कानून बड़ा कड़ा है, और जानकारी छुपाने वालों के लिए सजा है, लापरवाही बरतने वालों के लिए भी सजा है। लेकिन सरकार में बैठे छोटे-छोटे कर्मचारियों, और पुलिस कर्मचारियों की इतनी हिम्मत कहां हो सकती है कि वे ताकतवर नेताओं और बड़े अफसरों के बारे में किसी कार्रवाई की सोच भी सकें। छत्तीसगढ़ में ताजा-ताजा मिसाल वन विभाग के एक सबसे छोटे कर्मचारी वनरक्षक की है जिसने अपने खासे बड़े अफसर को बांस की अवैध कटाई करते पकडक़र जुर्म दर्ज कर लिया था, अब उसी के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। महामारी का खतरा और हिन्दुस्तान में छत्तीसगढ़ किस्म के दर्जनों राज्यों में राजनीतिक दबदबा मेल नहीं खा रहे हैं। महामारी से लापरवाह लोग अकेले नहीं बच सकते, वे औरों को साथ लेकर डूबते हैं, और अपने आसपास हम रात-दिन देखते हैं कि लोग किस तरह गैरजिम्मेदार हैं। 

यह सिलसिला बहुत खतरनाक इसलिए है कि इसमें बेकसूर मारे जाएंगे, ठीक उसी तरह जिस तरह कि सडक़ पर नशे में कोई ड्राईवर गाड़ी चलाए, और बाकी लोगों की जिंदगी भी खतरे में आ जाए। आज एक-एक कोरोना पॉजिटिव निकलने पर जिस तरह सैकड़ों लोगों के काम छिन जा रहे हैं, लोग बेरोजगार हो जा रहे हैं, लॉकडाऊन फिर से लागू हो रहा है, उससे करे कोई, भरे कोई की नौबत आ रही है। जो लोग सरकारी तनख्वाह वाले हैं, या कमाई वाले कारोबारी हैं, उनको तो जिंदा रहने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन बार-बार होते लॉकडाऊन की वजह से असंगठित कर्मचारी, तकरीबन तमाम मजदूर, और फेरीवाले, खोमचेवाले, छोटे-छोटे कारोबारी भूखे मरने की नौबत में हैं। कम से कम इन लोगों को देखते हुए सरकार को महामारी के प्रतिबंध बहुत कड़ाई से लागू करना चाहिए। छत्तीसगढ़ लॉकडाऊन के एक और दौर से गुजर रहा है, रोज सैकड़ों कोरोना पॉजिटिव की लिस्ट देखें, तो किसी भी दिन आधा दर्जन से कम पुलिसवाले, और आधा दर्जन से कम स्वास्थ्य कर्मचारी उसमें नहीं रहते। और ये अधिकतर स्वास्थ्य कर्मचारी सरकारी अस्पतालों के हैं। बहुत से सफाई कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं। ये सारे के सारे लोग जनसुविधाओं का काम करते हुए अपनी जान जोखिम  में डाल रहे हैं। देश-प्रदेश में नियम और प्रतिबंध न होना खतरनाक होता है, लेकिन होने के बाद भी उनको लागू न करना, उन पर अमल न होना और भी खतरनाक होता है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इसी लापरवाही और अनदेखी के शिकार हैं कि यहां हजारों लोग राजधानी में ही बिना मास्क घूम रहे हैं, और खतरा झेलकर पुलिस सडक़ों पर तैनात है, सफाई कर्मचारी से लेकर स्वास्थ्य कर्मचारी तक अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर काम कर रहे हैं। लोग इस नौबत के खतरे को भी नहीं समझ रहे हैं कि कोरोना पॉजिटिव का आसार दिखने पर जांच होने में वक्त लग रहा है, और फिर रिपोर्ट आने में कई दिन लग रहे हैं। इसके बाद राजधानी में हाल यह है कि कोरोना पॉजिटिव घर बैठे एम्बुलेंस की राह देखते हैं जो तीन-चार दिनों तक नहीं आ पा रही है। इसके पीछे सरकारी विभागों में तालमेल की कमी है, या एम्बुलेंस की कमी है, इसे तो सरकार ही जाने, लेकिन ऐसी नौबत की सोच तक लोगों को अपने-आपको खतरे से दूर रखना चाहिए, लेकिन ऐसी कोई नीयत लोगों की दिख नहीं रही है। 

अधिकतर लोग इस खुशफहमी में जीने वाले हैं कि खाली चम्मच पीटने से और शंख बजाने से कोरोना मर जाएगा, जबकि ऐसा पाखंड फर्जी साबित हो चुका है। इसके बाद तरह-तरह के दूसरे पाखंड इस्तेमाल हो रहे हैं। पिछले चार दिनों से देश इसमें डूबा है कि मानो नए आए लड़ाकू विमान रफाल से बम गिराकर कोरोना का मार दिया जाएगा। जब लोगों की वैज्ञानिक सोच ही खत्म हो जाती है, तो वे किसी भी पाखंड पर भरोसा करने लगते हैं, और वैज्ञानिक तर्कों को तेजी से खारिज करने लगते हैं, क्योंकि वैज्ञानिक बातों पर भरोसा करने का एक मतलब दिमाग पर जोर देना भी होता है, और जिम्मेदार बनना भी। भला कौन जिम्मेदार बनना चाहते हैं जब तरह-तरह के नारों से काम चल रहा है। 

पॉजिटिव निकलने के बाद मौतें कम होने से लोग कोरोना से तो कम मर रहे हैं, लेकिन भुखमरी और बेरोजगारी से अधिक लोग मर रहे हैं, लॉकडाऊन के तनाव में आत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं, और गरीबी से लोग कुपोषण के शिकार होकर भी मरने वाले हैं जो कि सरकारी रिकॉर्ड में नहीं आएंगे। ऐसी नौबत में सरकार को चाहिए कि वह लापरवाह और गैरजिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करे, ताकि कुछ लोगों को समझ आ सके। आज गैरजिम्मेदार लोगों के लिए मैदानी सरकारी अमला अपनी जान देते जुटा हुआ है, और ऐसे गैरजिम्मेदार लोग ऐसी सरकारी सेवा पाने के हकदार नहीं हैं। जिन लोगों को अपने पैसों का अधिक गुरूर है उन पर झारखंड की तरह लाख रूपए का जुर्माना न सही, केरल की तरह दस हजार रूपए का जुर्माना तो लगाना ही चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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