विचार / लेख
-कृष्ण कांत
सभी मीडिया हाउस ने आज एक खबर चलाई हैं, जिसका सार-संक्षेप है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन से बात की और चीन पीछे हट गया। अब सवाल है कि अगर डोभालजी इतने जादुई आदमी हैं तो अब तक क्या कर रहे थे? अप्रैल से ही घुसपैठ की खबरें थीं। जून की शुरुआत में वार्ता हुई। फिर 15 जून को सैनिकों में झड़पें हुईं और 20 जवान शहीद हो गए, दस बंधक बनाए गए। आज 6 जुलाई है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के सलाहकार के पास राष्ट्रीय सुरक्षा से जरूरी कौन सा काम होता है जो उनके जागने में इतनी देर हो जाती है?
अब एक और दिलचस्प मामला देखिए। खबर आई है कि चीन पीछे हट गया है। सुबह से अलग-अलग रिपोर्ट पढ़ीं। सारी सूत्रों के हवाले से हैं। इन दर्जनों खबरों के मुताबिक, चीन एक किलोमीटर, डेढ़ किलोमीटर और दो किलोमीटर पीछे हटा है. मंत्री और सरकार कुछ बोलते नहीं।
अगर देश की सीमा पर खतरा है तो जनता को क्यों नहीं बताया जाना चाहिए? शहीद होने नेता नहीं जाता, अपनी जमीन बचाने के लिए कुर्बानी तो जनता ही देती है. फिर जनता से झूठ क्यों बोला जाता है?
अगर कोई देश घुसपैठ करके आया और वापस चला गया, यह तो देश की जीत हुई। इस जीत की सही सूचना भी जनता को क्यों नहीं दी जाती? जो जनता अपने बेटों के शहादत का मातम मनाती है, उससे जीत के जश्न का मौका क्यों छीन लिया जाता है?
यह सूत्र कौन है जो अपने हवाले से अडग़म-बडग़म कुछ भी छपवाता रहता है? इस सूत्र को ही देश का रक्षामंत्री क्यों नहीं बना दिया जाना चाहिए?
जब बताने के लिए स्पष्ट सूचना नहीं होती, तब सूत्र एक्टिव किए जाते हैं और फर्जीवाड़ा फैलाते हैं।
प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि न कोई घुसा है, न किसी ने कब्जा किया है। जब कोई नहीं घुसा तो पीछे कौन हटा और हटकर कहां गया? जहां से हटा वहां अब क्या होगा? भारत भी हटा कि आगे बढक़र अपनी असली सीमा से सटा? हमारी जो जमीन कब्जे में थी, वह छूटी कि नहीं छूटी?
असल में किसी को कुछ नहीं पता. सूत्रों के हवाले से सुर्रा छोड़ते रहो।