विचार / लेख

छत्तीसगढ़ में लेट्रोजोल दवा का गड़बड़ घोटाला
24-Mar-2025 8:00 PM
छत्तीसगढ़ में लेट्रोजोल दवा का गड़बड़ घोटाला

-जे के कर

हमने पाया कि छत्तीसगढ़ के अधिकांश शहरों में लेट्रोजोल नामक कैंसर की दवा को पुरूष तथा महिला बांझपन के लिये दवा कंपनियों द्वारा प्रचारित किया जा रहा है. जानकर आश्चर्य हुआ कि किस तरह से एक ही दवा पुरूष तथा महिला बांझपन के रोग में कारगार हो सकता है. हालांकि, मालूमात करने पर पता चला कि रायपुर एम्स के बाहर के दवा दुकानों में इसे केवल कैंसर के मरीज ही पर्ची लेकर लेने आते हैं. मूल रूप से लेट्रोजोल महिलाओं के स्तन कैंसर की दवा है. यूएसएफडीए भी इसे कैंसर की दवा मानता है. इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस दवा को पुरूष बांझपन के लिये पूरे देश में पेश तथा प्रचारित किया जा रहा है.

बता दें कि करीब दो दशक पहले हमारे देश में इस लेट्रोजोल दवा को एक भारतीय दवा कंपनी द्वारा महिला बांझपन के लिये प्रचारित किया जा रहा था. उस समय प्रतिष्ठित ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में इसको लेकर लेख भी प्रकाशित हुआ था. जिसमें भारत के मिम्स (मंथली इंडेक्स आफ मेडिकल स्पेशियालिटी) पत्रिका के संपादक सी एम गुलाजी ने कहा था कि अस्वीकृत उपयोग के लिये दवा को प्रचारित करना गैर-कानूनी है तथा इसके लिये जुर्माने एवं दंड का प्रावधान है. इसको लेकर दवा क्षेत्र के जानकारों ने अपना विरोध भी दर्ज कराया था. आखिरकार, 12 अक्टूबर 2011 में इस इंडीकेशन पर रोक लगा दी गई. कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसे 'आफ लेबल यूस' कहकर मामले को हल्का करने की कोशिश की. दरअसल, इस दवा का बिना अनुमति के गैर-कानूनी रूप से क्लीनिकल ट्रायल किया जा रहा था, देश की महिलाओं को गिनीपिग समझकर.

बाद में साल 2017 को Indian Council for Medical Research (ICMR) तथा Drugs Technical Advisory Board (DTAB) ने गहरी छानबीन तथा भारत में इसके उपयोग के आंकड़ों के आधार पर इस दवा को महिलाओं के बांझपन की दवा के रूप में अंततः इसके ऑफ-लेबल उपयोग पर कुछ छूट दी, बशर्ते डॉक्टर मरीजों को जोखिमों के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित करें तथा इसका उपयोग केवल योग्य प्रजनन विशेषज्ञों (fertility specialists) द्वारा किया जाये. लेकिन अचानक से इसे पुरूष बांझपन के लिये प्रचारित करना तथा इसकी पर्ची लिखवाना हमारी समझ से परे हैं. हमने पाया कि इस लेट्रोजोल दवा के ब्रांड लीडर कंपनी के दवा के बक्से के साथ दी जाने वाली जानकारी में भी पुरूष बांझपन का कहीं उल्लेख नहीं है. इसे केवल स्तन कैंसर तथा महिला बांझपन की दवा बताया गया है.


बता दे कि CDSCO याने Central Drugs Standard Control Organisation ने अपने सूची में 2922 नंबर पर इसे महिला बांझपन के लिये अतिरिक्त दवा  (for additional indication) की मान्यता दी है. दरअसल यह रजोनिवृत्ति वाले महिलाओं के स्तन कैंसर की दवा है. तो क्या दवा कंपनियों के द्वारा किये जाने वाले आडियो-विजुअल प्रेजेंटेशन या फोल्डर में पुरुष बांझपन की दवा होना बताया जा है. यदि यह सच है तो माना जाना चाहिये कि लेट्रोजोल दवा का पुरुष बांझपन पर अनैतिक क्लिनिकल ट्रायल किया जा रहा है या लेट्रोजोल का आफ लेबल यूस का प्रमोशन किया जा रहा है.

सबसे दिक्कत की बात है कि जब दवा कंपनियां चिकित्सक के कमरे में आडियो-विजुएल प्रमोशन करती है तो वहां पर ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया की पहुंच नहीं होती है तथा उन्हें जानकारी भी नहीं मिल सकती है.

यदि लेट्रोजोल पर क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति ली भी गई है तो इसकी जानकारी चिकित्सकों एवं मरीजों को होना चाहिये जोकि नहीं हो रहा है. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नाजी चिकित्सकों के द्वारा कैदियों पर किये गये अनैतिक क्लिनिकल ट्रायल्स के बाद बनी 'न्यूरेमबर्ग कोड आफ क्लिनिकल ट्रायल्स' का मुख्य लब्बोलुआब यह है कि किसी भी क्लिनिकल ट्रायल के लिये मरीजों की सहमति आवश्यक है तथा उन्हें इस बात की जानकारी दी जानी चाहिये. क्या हमारी आवाज केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तक पहुंच पायेगी.

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news