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पाकिस्तान में ट्रेन पर हमले की जिम्मेदारी लेने वाली बलूच लिबरेशन आर्मी क्या है?
12-Mar-2025 3:30 PM
पाकिस्तान में ट्रेन पर हमले की जिम्मेदारी  लेने वाली बलूच लिबरेशन आर्मी क्या है?

बलूच चरमपंथियों के हमले में क्षतिग्रस्त स्कूल


पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के सिब्बी जिले में मंगलवार दोपहर को हथियारबंद चरमपंथियों ने क्वेटा से पेशावर जा रही ट्रेन जाफर एक्सप्रेस पर हमला कर कई यात्रियों को बंधक बना लिया।

हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी ने ली है।

पाकिस्तानी सेना ने बीबीसी उर्दू को बताया है कि अब तक 104 यात्रियों को सुरक्षित निकाल लिया गया है और 16 चरमपंथियों को मार दिया गया है।

दूसरी ओर, बलूच लिबरेशन आर्मी ने दावा किया है कि उसने कई सुरक्षाकर्मियों को मार दिया है और 35 लोगों को बंधक बना लिया है।

चरमपंथियों के दावों की पुष्टि नहीं हो पाई है।

पाकिस्तानी सेना के मुताबिक यात्रियों को चरमपंथियों से मुठभेड़ हो रही है और लोगों का निकाला जा रहा है।

इससे पहले जाफऱ एक्सप्रेस से बचकर निकले 80 यात्री मच्छ रेलवे स्टेशन पहुंच गए हैं, जहां उन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया है।

रेलवे के अधिकारियों के मुताबिक जिस ट्रेन पर हमला किया गया है उसमें लगभग 400 यात्री थे।

आइए जानते हैं हमले की जि़म्मेदारी लेने वाली बलूच लिबरेशन आर्मी क्या है और अलग बलूचिस्तान की मांग को लेकर वो कैसे समय-समय पर सक्रिय होती रही है।

बलूचिस्तान में कब से है बलूच लिबरेशन आर्मी ?

बलूच नेशनल आर्मी यानी बीएलए एक दशक से ज़्यादा समय से बलूचिस्तान में सक्रिय है।

लेकिन हाल के वर्षों में इस चरमपंथी संगठन और इसके उप-समूह मजीद ब्रिगेड के विस्तार और हमलों में तेज़ी आई है।

पाकिस्तान ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बीएलए के सहयोगी मजीद ब्रिगेड पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

वैसे पाकिस्तान और अमेरिका बीएलए पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुके हैं।

बलूचिस्तान में चरमपंथ की शुरूआत कब हुई?

बलूचिस्तान में चरमपंथ की शुरुआत बलूचिस्तान के पाकिस्तान में विलय के साथ ही हो गई थी। उस दौरान कलात राज्य के राजकुमार करीम ने सशस्त्र संघर्ष शुरू किया था।

फिर 1960 के दशक में, जब नौरोज खान और उनके बेटों को गिरफ्तार कर लिया गया, तो प्रांत में एक छोटा चरमपंथी आंदोलन भी उठ खड़ा हुआ था।

बलूचिस्तान में संगठित चरमपंथी आंदोलन 1970 के दशक में शुरू हुआ, जब बलूचिस्तान की पहली निर्वाचित विधानसभा और सरकार को निलंबित कर दिया गया।

उस समय सरदार अताउल्लाह मेंगल प्रांत के मुख्यमंत्री थे और मीर गौस बख़्श बिजेंजो गवर्नर। ये दोनों ही नेशनल अवामी पार्टी से थे।

उस समय बलूचिस्तान में अलगाववादी नेताओं में नवाब खैर बख्श मरी और शेर मुहम्मद उर्फ शेरोफ मरी का नाम सबसे आगे था। उन दिनों भी बीएलए का नाम सामने आया था।

बलूचिस्तान की पहली विधानसभा और सरकार को मात्र दस महीनों में बर्र्खास्त कर दिया गया था।

गौस बख्श बिजेंजो, अताउल्लाह मेंगल और नवाब खैर बख्श मरी सहित नेशनल अवामी पार्टी के कई प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था।

उन पर सरकार के खिलाफ साजिश रचने का मुकदमा चलाया गया, जिसे हैदराबाद षडय़ंत्र केस के रूप में याद किया जाता है।

सरकारी प्रतिष्ठानों और सुरक्षा बलों पर बीएलए के हमले

इसके बाद नवाब खैर बख्श मरी अफगानिस्तान चले गए। अपने साथ बड़ी संख्या में मरी जनजाति के सदस्यों को भी ले गए। वो वहां ‘हक टावर’ नाम से एक स्टडी सर्किल चलाते थे।

बाद में, जब अफगानिस्तान में तालिबान सरकार सत्ता में आई, तो वह पाकिस्तान लौट आए और यहां भी ‘हक टावर’ स्टडी सर्किल को जारी रखा।

कई युवा इस स्टडी सर्किल से जुडऩे के लिए प्रेरित हुए। इनमें उस्ताद असलम अच्छू भी शामिल थे, जो बाद में बीएलए के कमांडर बन गए।

वर्ष 2000 से बलूचिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी प्रतिष्ठानों और सुरक्षा बलों पर हमले शुरू हो गए।

जब दिसंबर 2005 में पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ़ की कोहलू यात्रा के दौरान रॉकेट दागे गए तो स्थिति गंभीर हो गई। इसके बाद फ्रंटियर कोर के हेलीकॉप्टर पर कथित गोलीबारी की गई। कोहलू नवाब खैर बख्श मरी का पैतृक गांव है

पाकिस्तानी सरकार ने बीएलए को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाल दिया। 21 नवंबर 2007 को अफगानिस्तान में एक सडक़ के पास एक कथित ऑपरेशन में नवाब ख़ैर बख्श मरी के बेटे नवाबजादा बालाच मरी की हत्या कर दी गई।

पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन्हें बीएलए का प्रमुख बताया था। बालाच मरी की मौत के बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने उनके भाई नवाबजादा हरबयार मरी को बीएलए का प्रमुख बताना शुरू कर दिया था।

वो ब्रिटेन में रहते थे। उन्होंने पाकिस्तानी अधिकारियों के इस दावे का खंडन किया था कि वो बीएलए के प्रमुख हैं।

बीएलए क्या चाहती है?

बलूचिस्तान के लोगों का मानना है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त उन्हें जबरदस्ती पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया, जबकि वो ख़ुद को एक आजाद मुल्क के तौर पर देखना चाहते थे।

ऐसा नहीं हो सका इसलिए इस प्रांत के लोगों का पाकिस्तान की सरकार और वहां की सेना के साथ संघर्ष चलता रहा और वो आज भी बरकरार है।

बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग करने वाले फि़लहाल कई अलगाववादी समूह सक्रिय हैं।

इनमें सबसे पुराने और असरदार संगठनों में एक है बीएलए यानी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी।

साल 2007 में पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को चरमपंथी संगठनों की सूची में डाल दिया था।

ये समूह बलूचिस्तान को विदेशी प्रभाव, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तानी सरकार से निजात दिलाना चाहता है। बीएलए का मानना है कि बलूचिस्तान के संसाधनों पर पहला हक उनका है।

बीएलए की स्थापना कब हुई?

माना जाता है कि ये संगठन पहली बार 1970 के दशक की शुरुआत में वजूद में आया।

तब जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार खिलाफ बलूचों ने सशस्त्र बगावत शुरू की।

लेकिन, सैन्य शासक जियाउल हक के सत्ता पर कब्जे के बाद बलूच अलगाववादी नेताओं से बातचीत हुई। और नतीजा ये निकला कि सशस्त्र बग़ावत के ख़ात्मे के बाद बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी भी गायब होती गई।

फिर कब सक्रिय हुई बीएलए?

साल 2000 में बीएलए फिर सक्रिय हुई। कुछ जानकार मानते हैं कि बीएलए की आधिकारिक स्थापना इसी साल हुई।

साल 2000 से ही संगठन ने बलूचिस्तान के विभिन्न इलाकों में सरकारी प्रतिष्ठानों और सुरक्षा बलों पर हमलों का सिलसिला शुरू किया।

संगठन में ज़्यादातर मरी और बुगती जनजाति के सदस्य शामिल हैं और ये क्षेत्रीय स्वायत्तता के लिए पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ लड़ रहे हैं।

बीएलए ने पहले किन हमलों की जिम्मेदारी ली है

जुलाई, 2000-बीएलए ने क्वेटा में बम विस्फोट की जिम्मेदारी ली। इस विस्फ़ोट में सात लोग मारे गए, वहीं 25 घायल हुए।

मई, 2003 - बीएलए ने एक के बाद एक कई हमले किए, जिनमें पुलिस और गैर बलोच निवासियों की मौत हुई।

साल 2004 - बीएलए ने पाकिस्तानी सरकार की मेगा-विकास परियोजनाओं में शामिल चीनी विदेशी श्रमिकों पर हमला किया। बीएलए चीन की ओर से पाकिस्तान में शुरू की जा रही परियोजनाओं के विरोधी रही है।

दिसंबर, 2005 - बीएलए लड़ाकों ने कोहलू में एक अर्धसैनिक शिविर पर छह रॉकेट दागे, जहां तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ दौरा कर रहे थे।

हालांकि मुशर्रफ को कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने इस हमले को उनकी जान लेने का प्रयास करार दिया और जवाबी कार्रवाई में एक व्यापक सैन्य अभियान शुरू किया।

अप्रैल, 2009- बीएलए के कथित नेता ब्रह्मदाग ख़ान बुगती ने बलूच मूल के लोगों से बलूचिस्तान में रहने वाले गैर-मूल निवासियों को मारने की अपील की।

बीएलए का दावा है कि इस अपील के बाद हुए हमलों में लगभग 500 पंजाबियों की जान चली गई।

जुलाई, 2009- बीएलए हमलावरों ने सुई में 19 पाकिस्तानी पुलिसकर्मियों का अपहरण कर लिया। अपहृत कर्मियों के अलावा, बीएलए ने एक पुलिस अधिकारी की भी हत्या कर दी और 16 को घायल कर दिया।

तीन हफ़्ते के दौरान बीएलए के बंधकों ने अपहृत पुलिसकर्मियों में से एक को छोडक़र सभी को मार डाला।

नवंबर, 2011- बीएलए विद्रोहियों ने उत्तरी मुसाख़ेल जि़ले में एक निजी कोयला खदान की सुरक्षा कर रहे सरकारी सुरक्षा कर्मियों पर हमला किया। जिसमें 14 लोगों की जान गई, वहीं 10 घायल हो गए।

दिसंबर, 2011- बीएलए के लड़ाकों ने पूर्व राज्य मंत्री मीर नसीर मेंगल के घर के बाहर एक कार में बम विस्फोट किया। हमले में 13 मारे गए, वहीं 30 घायल हो गए।

जून, 2013- बीएलए ने पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना के एक घर पर रॉकेट हमले और रेड की जि़म्मेदारी ली। संगठन ने जिन्ना के आवास पर लगे पाकिस्तान के झंडे को भी बीएलए ध्वज से बदल दिया था।

जून, 2015- बीएलए उग्रवादियों ने पीर मसोरी इलाके में यूनाइटेड बलूच आर्मी के करम खान कैंप पर हमला किया। हमले में 20 लोगों की जान गई।

मई, 2017- बलूचिस्तान के ग्वादर में मोटरसाइकिल पर सवार बीएलए के लड़ाकों ने निर्माण कार्य में जुटे श्रमिकों पर गोलीबारी की।

अगस्त, 2017- बीएलए ने बलूचिस्तान के हरनाई में आईईडी हमले की जि़म्मेदारी ली। यह हमला पाकिस्तानी अर्धसैनिक सीमा बल फ्रंटियर कोर के सदस्यों पर किया गया था। आठ लोगों के मारे जाने की पुष्टि की गई।

नवंबर, 2018- बीएलए उग्रवादियों ने कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला करने का प्रयास किया। इसमें सात लोगों की जान गई। (bbc.com/hindi)

 


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