-आर.के.जैन
वरिष्ठ पत्रकार व लेखिका नीरजा चौधरी ने अपनी पुस्तक ‘हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में इंदिराजी के बारे में लिखा है कि वर्ष 1977 के बाद इंदिराजी बेहद धार्मिक हो गई थी और उनका मंदिरों में जाना बढ़ गया था। उनको डर था कि कहीं सत्तारूढ़ जनता पार्टी के लोग संजय गांधी को कुछ ना कर दे। वो अक्सर कहती थीं कि मैं तो पहाड़ों पर चली जाऊँगी, एक छोटा सा घर ले लूँगी, रिटायर हो जाऊँगी, मेरी जरूरतें ही क्या हैं ? लेकिन वो चाहती थी कि संजय गांधी सुरक्षित रहे।
इंदिराजी ने वर्ष 1966 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ संविधान के नाम पर ली थी लेकिन जब वह दोबारा 1980 में प्रधानमंत्री बनी तब उन्होंने ईश्वर के नाम पर शपथ ली थी।
इंदिराजी के करीबी सहयोगी रहे अनिल बाली ने उनको सलाह दी थी कि उन्हें हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के प्रसिद्ध चामुंडा माता मंदिर में जाना चाहिए । इंदिराजी ने 22 जून की तिथि तय की पर किसी कारण से उन्हें मंदिर जाने का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ गया था। इस बात से मंदिर के पुजारी बहुत नाराज हुए थे और कहा था कि ‘माता सामान्य लोगों को तो माफ कर देती हैं यदि वह मंदिर नहीं आते लेकिन जब शासक ही नहीं आता तो माता कुपित हो जाती है। पुजारी ने कहा था कि ‘देखना, यह रोती हुई मंदिर में आयेगी।
दिनांक 23 जून को खबर आई कि संजय गांधी का प्लेन क्रैश हो गया है और उनकी मृत्यु हो गई हैं।
अगले दिन इंदिराजी के करीबी चामुंडा माता के मंदिर से लौटे, तो इंदिराजी ने पूछा ‘क्या संजय की मौत इसलिए तो नहीं हुई कि मैं मंदिर नहीं जा पाई?
संजय गांधी की मृत्यु के कुछ महीनों बाद इंदिराजी चामुंडा माता के मंदिर पालनपुर गई और बहुत देर तक मंदिर में खड़ी होकर रोए जा रही थी।