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अफगानिस्तान क्रिकेट पर ब्रिटेन में क्यों हो रही है पाबंदी लगाने की मांग?
12-Jan-2025 10:30 PM
अफगानिस्तान क्रिकेट पर ब्रिटेन में क्यों हो रही है पाबंदी लगाने की मांग?

-नदीम अशरफ

हाल ही में ब्रिटेन के कुछ सांसदों ने इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड से अपील की है कि वो  आगामी फरवरी में चैंपियंस ट्रॉफ़ी में अफगानिस्तान के खिलाफ मैच का बहिष्कार करें।

हालांकि इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) कहा है कि अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय सिरीज न खेलने के अपने फैसले को जारी रखेंगे लेकिन आईसीसी (इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल) के उन टूर्नामेंटों में हिस्सा लेंगे जिसमें अफगानिस्तान भी शामिल रहेगा।

ईसीबी के चेयरमैन रिचर्ड गाउल्ड मानते हैं कि ‘सदस्यों द्वारा एकतरफा कार्रवाई के बजाय आईसीसी स्तर पर एक तालमेल के साथ अपनाया गया व्यापक रवैया कहीं अधिक असरदार होगा।’

अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन नसीम दानिश चेतावनी दे चुके हैं कि अफगानिस्तान पर पाबंदी लगाए जाने का खतरा है।

कई सालों तक अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड की अगुवाई करने वाले नसीम दानिश ने बीबीसी से कहा कि अफग़़ानिस्तान क्रिकेट बोर्ड पर बहुत अधिक दबाव है और हो सकता है कि अन्य क्रिकेट बोर्ड अफगानिस्तान के साथ धीरे-धीरे खेलना बंद कर दें।

उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि आने वाले समय में अफगानिस्तान क्रिकेट के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिया जाए और इस तरह देश के लिए आखिरी खुशी और उम्मीद भी चली जाएगी।’

नसीम दानिश कहते हैं, ‘अगर महिलाओं की शिक्षा, काम और अन्य अधिकारों पर मौजूदा पाबंदियों के हालात जारी रहते हैं, तो मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि अफगानिस्तान क्रिकेट पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगाया जा सकता है।’

ब्रिटिश सांसदों की चि_ी पर प्रतिक्रिया देते हुए ईसीबी ने भी कहा है कि अफगानिस्तान के अंदर और विदेशों में अफगानों के लिए क्रिकेट ‘उम्मीद और सकारात्मकता का स्रोत’ है।

नसीम दानिश जोर देते हैं कि तालिबान को महिला अधिकारों के प्रति नरमी का रुख दिखाना चाहिए, वरना इसका नुकसान केवल अफगानिस्तान क्रिकेट को ही नहीं होगा बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी होगा।

वो कहते हैं, ‘अगर अफगानिस्तान क्रिकेट पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो आईसीसी का फंड आना बंद हो जाएगा, प्रायोजक चले जाएंगे, घरेलू क्रिकेट खत्म हो जाएगा और कोई भी नहीं खेलेगा क्योंकि उन्हें इसका कोई भविष्य नजर नहीं आएगा। अफगानिस्तान क्रिकेट का वजूद ही खत्म हो जाएगा।’

पाबंदियां लगाने की अपीलें

हाल ही में उत्तरी आयरलैंड के पूर्व फस्र्ट मिनिस्टर बैरोनेस फ़ोस्टर ने इंग्लैंड टीम से अफगानिस्तान के साथ क्रिकेट न खेलने की अपील की है।

पिछले एक सप्ताह से, ब्रिटेन के महिला अधिकार कार्यकर्ता और पीयर्स मॉर्गन जैसे प्रमुख पत्रकार और राजनेता इस बात को सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं कि इंग्लैंड की क्रिकेट टीम अफगानिस्तान के खिलाफ न खेले।

उनके कारण बिल्कुल स्पष्ट हैं- वे मानते हैं कि तालिबान सरकार के मातहत अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों को ‘रौंद’ दिया गया है, महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी लगा दी गई है और महिलाओं के खेलने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।

ब्रिटेन के जाने माने प्रत्रकारों में से एक पीयर्स मॉर्गन ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, ‘26 फऱवरी को आईसीसी टैंपियंस ट्रॉफी के ग्रुप स्टेज में ईसीबी की पुरुष टीम को अफगानिस्तान के खिलाफ मैच खेलने को रद्द कर देना चाहिए।’

‘सभी खेलों से प्रतिबंधित किए जाने के साथ-साथ, अफगान महिलाओं के खिलाफ तालिबान का घृणित और लगातार बदतर होता दमन बर्दाश्त के बाहर है। समय आ गया है कि हम स्टैंड लें।’

आईसीसी के लक्ष्यों और हालात के बीच टकराव

ऐसा लगता है कि आईसीसी (इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल) ने अपने विचार विमर्श के बाद और एजेंडे से अफगानिस्तान क्रिकेट पर प्रतिबंध लगाने याउसे निलंबित करने के मुद्दे को जानबूझ कर किनारे कर दिया है।

किसी देश को एक पूर्ण सदस्य मानने या टेस्ट खेलने वाले देश के रूप में मान्यता देने के लिए आईसीसी की शर्तों में से एक है कि उस देश के पास एक महिला टीम होनी ज़रूरी है, लेकिन अफगानिस्तान के पास मौजूदा समय में कोई महिला क्रिकेट टीम नहीं है।

ऐसा लगता है कि आईसीसी इसे एक संवेदनशील मुद्दे के रूप में ले रही है और इसकी अहमियत को कम करने की कोशिश कर रही है।

लेकिन ऑस्ट्रेलिया के कड़े रुख़ और अब इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड और ब्रिटिश सांसदों की हालिया टिप्पणी से इस मुद्दे पर आईसीसी के अंदर भी फिर से बहस छिड़ सकती है।

आईसीसी का प्राथमिक मिशन क्रिकेट के खेल को पूरी दुनिया में बढ़ाना और फैलाना है और बीते दो दशकों में अफग़़ानिस्तान क्रिकेट को इसकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में देखा गया है।

हाल ही में आईसीसी चेयरमैन के पद पर भारतीय जय शाह की नियुक्त हुई है और कई लोगों का मानना है कि वह संस्था के अंदर अफगानिस्तान की स्थिति को और मजबूत करेंगे।

हालांकि हालिया चर्चाओं में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन उसने लगातार ज़ोर देकर कहा है कि राजनीति और खेलों को अलग रखना चाहिए और देशों से अपील की है कि वो दबाव डालने की बजाय इस तरह के मुद्दों पर बातचीत और समझ पैदा करने में शामिल हों।

नस्लीय भेदभाव को लेकर साल 1970 में दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम पर कऱीब 22 सालों तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगाया गया था और इसकी वजह से यह देश इंटरनेशनल क्रिकेट से दूर रहा।

अफगानिस्तान खिलाडिय़ों पर दबाव का असर

अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम एकमात्र ऐसी संस्था है जिसमें तालिबान बदलाव करने या उसमें अपना प्रभाव डालने में कामयाब नहीं हो पाया है। टीम का लोगो, अफगानिस्तान का तिरंगा झंडा और पिछली सरकार का राष्ट्रगान-अंतरराष्ट्रीय मैदान पर यह टीम अभी भी इन्हीं का प्रतिनिधित्व करती है।

टीम ने तालिबान के झंडे तले खेलने से अभी तक इंकार किया है।

राशिद खान और मोहम्मद नबी समेत कई खिलाडिय़ों ने अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और काम के अधिकार को लेकर बार-बार बात की है और तालिबान सरकार से अपील की है कि वे इन क्षेत्रों में अपने फैसलों पर पुनर्विचार करें।

जब ऑस्ट्रेलिया ने अफगानिस्तान के खिलाफ अपने मैच रद्द किए तो कई खिलाडिय़ों ने ऑस्ट्रेलिया के व्यावसायिक लीगों जैसे ‘बिग बैश’से खुद को अलग कर लिया।

नसीम दानिश का बयान

अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन नसीम दानिश मानते हैं कि अफगानिस्तान क्रिकेट को लेकर मौजूदा चर्चाएं भी खिलाडिय़ों पर बहुत अधिक दबाव डालेंगी।

हालांकि खिलाड़ी संभावित दबावों का टीम पर पडऩे वाले असर के बारे में आम तौर पर चर्चा नहीं कर रहे हैं, लेकिन घरेलू क्रिकेट खेलने वाले हजारों खिलाडिय़ों पर इसका असर साफ है, जिनकी आकांक्षा है कि वो अफगानिस्तान की राष्ट्रीय टीम की ओर से खेलें और उच्चस्तरीय क्रिकेट में मुकाम हासिल करें।

कॉमर्शियल लीग में खेलने वाले कई अफगान क्रिकेटर अच्छी कमाई कर रहे हैं, लेकिन जो केवल नेशनल टीम में खेलते हैं या घरेलू क्रिकेट पर अधिक ध्यान देते हैं, अगर दबाव बढ़ा या प्रतिबंध लगाया गया तो उनपर सबसे अधिक असर पड़ सकता है।

दानिश मानते हैं कि अगर अफगानिस्तान की टीम को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से प्रतिबंधित किया जाता है, तो कई घरेलू खिलाड़ी क्रिकेट ही छोड़ देंगे और युवा खिलाड़ी इस खेल में जाने से हतोत्साहित होंगे। परिवार अपने बच्चों को क्रिकेट अकादमी में फिर कभी नहीं भेजेंगे।

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं में मतभेद

अफगानिस्तान क्रिकेट पर प्रतिबंध लगाने को लेकर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की भी अलग-अलग राय है।

 अफगानिस्तान क्रिकेट पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की वकालत करने वाले एक ग्रुप का दावा है कि अफगान खिलाड़ी तालिबान के प्रतिबंधों को खिलाफ पर्याप्त आवाज बुलंद नहीं कर रहे हैं।

हालांकि एक दूसरे ग्रुप का तर्क है कि प्रतिबंध लगाना बेहतरी करने की बजाय अधिक नुकसान पहुंचाएगा।

इनमें से अधिकांश कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान क्रिकेट के लिए अपना समर्थन जाहिर करते हैं और तर्क देते हैं कि महिला अधिकारों को लेकर खिलाडिय़ों ने लगातार आवाज उठाई है।

यहां तक कि कुछ का दावा है कि अगर अफगानिस्तान क्रिकेट पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो ‘तालिबान को इससे सबसे अधिक फायदा होगा।’

अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के संचालन में तालिबान ने कोई सीधे दखल नहीं दिया है, लेकिन यह साफ है कि क्रिकेट में उनकी दिलचस्पी कम है, खासकर कंधार में मौजूद उनके नेता की।

हालांकि तालिबान के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के भाई अनस हक्कानी को अक्सर क्रिकेट के मामलों में दिलचस्पी लेते हुए देखा गया है।

अनस हक्कानी ने बार-बार अफगान क्रिकेटरों की तारीफ की है और कुछ मौकों पर उनके साथ भी दिखे हैं। हालांकि तालिबान ने महिला क्रिकेट पर खासतौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन महिला अधिकारों को लेकर उनका आम रवैया बदला नहीं है, जिसमें महिलाओं के खेलों पर पूर्ण प्रतिबंध और कई अन्य पाबंदियां शामिल हैं। (bbc.com/hindi)

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