-दिलनवाज पाशा
बांग्लादेश ने चार महीने पहले हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से ऐसे कई कदम उठाए हैं, जिनसे उसके पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर होने के संकेत मिलते हैं।
बुधवार को बांग्लादेश ने पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा देने के लिए जरूरी सुरक्षा जांच के नियम को भी हटा दिया।
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान के नागरिकों के लिए वीजा प्रक्रिया को आसान किया जाएगा।
मंत्रालय ने कहा है कि पाकिस्तानी लोगों और पाकिस्तान मूल के लोगों को वीजा दिया जाए। वहीं, पाकिस्तान ने सितंबर में बांग्लादेश के नागरिकों के लिए वीजा फीस माफ कर दी थी और वीजा प्रक्रिया को आसान कर दिया था।
साल 2019 में शेख हसीना सरकार ने बांग्लादेश का वीज़ा लेने वाले सभी पाकिस्तानी नागरिकों के लिए बांग्लादेश की सिक्योरिटी सर्विस डिवीजन से सुरक्षा मंज़ूरी लेना अनिवार्य किया था।
अब इस नियम को भी हटा दिया गया है।
ये सत्ता परिवर्तन के बाद से बांग्लादेश के ऐसे कई क़दमों में से एक है, जिनसे ये संकेत मिलते हैं कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पाकिस्तान के कऱीब दिखने की कोशिश कर रही है।
बांग्लादेश ने बदला रुख़
बांग्लादेश ने पाकिस्तान के साथ गोला बारूद की खऱीद के लिए रक्षा सौदे भी किए हैं और बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच पांच दशक बाद समुद्री रास्ते से कारोबार भी शुरू हुआ है।
पहली बार, पाकिस्तान का मालवाहक जहाज हाल ही में बांग्लादेश के चिट्टागांव बंदरगाह पहुंचा है।
यही नहीं, बांग्लादेश ने पाकिस्तान से 25 हजार टन चीनी खरीदने के लिए भी सौदा किया है। बांग्लादेश अब तक भारत से चीनी आयात करता रहा था।
शेख हसीना सरकार के जाने के कुछ वक्त बाद ही बांग्लादेश ने पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर गोला-बारूद खऱीदने के लिए सौदा किया।
1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के अस्तित्व में आमने के बाद से, दोनों देशों के बीच रहे ऐतिहासिक तनाव को देखते हुए इस घटनाक्रम को अहम पड़ाव माना जा रहा है।
बांग्लादेश में शेख़ हसीना के शासन के दौरान भारत की तरफ झुकाव रहा और शेख हसीना सरकार ने भारत के साथ रिश्ते मज़बूत करने पर जोर दिया।
भारत से जुड़े बांग्लादेश के हित
बांग्लादेश के साथ करीब चार हजार किलोमीटर की सीमा साझा करने वाला भारत भी बांग्लादेश से रिश्ते मजबूत करने पर जोर देता रहा है।
और इसके लिए भारत ने बांग्लादेश में भारी निवेश भी किया। भारत बांग्लादेश को एक अहम रणनीतिक सहयोगी के रूप में देखता रहा है।
यही वजह है कि पाकिस्तान की एक लंबे दौर तक बांग्लादेश से दूरी बनी रही।
लेकिन, अब ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में चल रही अंतरिम सरकार बांग्लादेश के भू-राजनैतिक दृष्टिकोण को बदल रही है। और भारत पर निर्भरता कम करने के प्रयास कर रही है।
बांग्लादेश भी पाकिस्तान के कऱीब जाकर शायद ये संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि वह अब दक्षिण एशिया की राजनीति को भारत के नज़रिए से नहीं देखेगा।
‘भारत को चिंता करने की जरूरत नहीं’
लेकिन विश्लेषकों को लगता है कि बांग्लादेश के लिए लंबे समय तक पाकिस्तान के कऱीब रहना आसान नहीं होगा।
अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार स्मृति एस पटनायक कहती हैं, ‘बांग्लादेश भले पाकिस्तान के करीब जाता दिख रहा है, लेकिन वास्तविकता में ऐसा होना आसान नहीं है। बांग्लादेश के आर्थिक हित भारत के साथ जुड़े हैं।’
हालांकि वो ये भी कहती हैं, ‘बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों ही स्वतंत्र देश हैं और कारोबारी रिश्ते बना सकते हैं, भारत को इसे लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए।’
‘बाजार के अपने नियम हैं और बांग्लादेश के लिए भारत की जगह पाकिस्तान के साथ कारोबार को बढ़ावा देना उसके आर्थिक हित में नहीं होगा।’
हालांकि, विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि हाल के महीनों के जो घटनाक्रम हुए हैं, उनसे बांग्लादेश पाकिस्तान के करीब जाता हुआ दिख रहा है।
‘बांग्लादेश अस्थिरता के दौर में’
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर संजय भारद्वाज कहते हैं कि बांग्लादेश इस समय अस्थिरता के दौर में हैं।
उनका कहना है कि इस्लामी विचारधारा के करीब जाना वहां की अंतरिम सरकार की राजनीतिक मजबूरी भी है।
संजय भारद्वाज कहते हैं, ‘जब-जब बांग्लादेश में सरकार के सामने संकट आया है या फिर संवैधानिक संकट पैदा हुआ है, तब-तब तक बांग्लादेश, पाकिस्तान और इस्लामी विचारधारा के करीब दिखने की कोशिश करता रहा है।’
‘1975 में शेख़ मुज़ीबुर्रहमान की हत्या के बाद आए अगले शासन ने बांग्लादेश का इस्लामीकरण करने की कोशिश की।’
‘इसके बाद बांग्लादेश में सैन्य शासन के दौरान भी इस्लामीकरण की कोशिश हुई, ताकि बांंग्लादेश का एक वर्ग जो इस्लाम और पाकिस्तान के विचार में विश्वास करता है, उसका साथ मिल जाए।’
‘अब भी ऐसा लग रहा है कि वहां कि अंतरिम सरकार वैधता हासिल करने के लिए इस्लामी विचारधारा से प्रभावित वर्ग को अपने साथ लाने के प्रयास कर रही है।’
जब बांग्लादेश बना था
बांग्लादेश 1971 में हिंसक संघर्ष के बाद पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र बना था और भारत में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों की सैन्य और राजनीतिक मदद की थी।
प्रोफ़ेसर संजय भारद्वाज कहते हैं, ‘बांग्लादेश में जो बंगाली-सांस्कृतिक विचार है वह धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देता है। बांग्लादेश की बंगाली संस्कृति धर्म निरपेक्ष और समावेशी है।’
‘यानी लोकतांत्रिक भारत के अधिक कऱीब है। ऐसे में नए शासन के लिए इस्लामी विचारधारा और पाकिस्तान के लिए कऱीब दिखना राजनीतिक मजबूरी अधिक नजऱ आती है।’
विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि पाकिस्तान के साथ संबंध मज़बूत करते दिखना बांग्लादेश की भारत को संदेश देने की कोशिश भी है।
स्मृति पटनायक कहती हैं, ‘शेख हसीना के दौर में दोनों देशों के बीच नजदीकी रिश्ते नहीं थे। लेकिन उस दौर में भी बांग्लादेश के राजनयिक पाकिस्तान में थे। हसीना के कार्यकाल के मुकाबले जरूर पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं।’
उन्होंने बताया, ‘भले ही आर्थिक रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश के नजदीक आने में चुनौतियां हों लेकिन वैचारिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश करीब आ सकते हैं।’
क्या भारत के लिए चिंता की बात?
बांग्लादेश में इस्लामी विचारधारा का मजबूत होना भारत के लिए चिंता का कारण हो सकता है।
हालांकि, ये सवाल भी है कि क्या 1971 युद्ध के बाद पाकिस्तान से अलग हुआ बांग्लादेश अब फिर से पाकिस्तान के इतना कऱीब आ सकता है कि भारत के लिए ख़तरा पैदा हो जाए?
विश्लेषक मानते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं होगा।
प्रोफेसर संजय भारद्वाज कहते हैं, ‘1947 में बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था, लेकिन वह पाकिस्तान के साथ नहीं रह पाया। उसके सांस्कृतिक और भोगौलिक कारण थे। ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता कि बांग्लादेश और पाकिस्तान बहुत अधिक कऱीब आ पाएंगे।’
‘बांग्लादेश की बड़ी आबादी बंगाली राष्ट्रवाद, धर्म-निरपेक्षता और समावेशी व्यवस्था में यकीन करती है और यही विचारधारा बांग्लादेश को भारत के अधिक करीब ले आती है।’
लेकिन, बांग्लादेश का पाकिस्तान के कऱीब आना भारत के लिए कई स्तर पर चुनौती जरूर पैदा करेगा।
खासकर पूर्वोत्तर के साथ बांग्लादेश की लंबी सीमा को देखते हुए।
स्मृति पटनायक कहती हैं, ‘भारत की मुख्य चिंता सुरक्षा और पूर्वोत्तर में स्थिरता को लेकर होगी। भारत नहीं चाहेगा कि बांग्लादेश के साथ उसका सीमा क्षेत्र अस्थिर हो और वहां सीमा के उस पार से सुरक्षा ख़तरा पैदा हो। अगर बांग्लादेश पूर्वोत्तर के मिलिटेंट तत्वों को शरण देता है तो इससे भारत के लिए ज़रूर चिंता पैदा होगी।’
वहीं बांग्लादेश में इस्लामी विचारधारा और कट्टरवादी तत्वों का मजबूत होना भी भारत के लिए सुरक्षा चिंताएं पैदा कर सकता है।
स्मृति कहती हैं, ‘बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष ताकतें भी हैं, आगे ये देखना होगा कि वहां इस्लामवादी विचारधारा अधिक मजबूत होती है या धर्म निरपेक्ष।’
प्रोफेसर संजय भारद्वाज कहते हैं, ‘किसी भी पड़ोसी देश में राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरवाद का उदय चिंताजनक होता है। ऐसी स्थिति में अल्पसंख्यक वर्ग पर ख़तरा बढ़ जाता है।’