विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
देश की जनता ने महाराष्ट्र में पिछले पांच साल में राजनीति को कई गड्ढों में गिरते हुए देखा है। यूं तो राजनीति को इन गड्ढों में गिराने में कमोबेश सभी राजनीतिक दल शामिल रहे हैं लेकिन निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना की इसमें सबसे बड़ी भूमिका थी।शिव सेना ने कम सीट जीतने के बाद भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी विचारधारा वाली भाजपा को छोडक़र कांग्रेस और एन सी पी के साथ सरकार बनाई थी। लगता है इस चुनाव में तमाम भविष्यवाणियों को धता बताते हुए महाराष्ट्र के मतदाता ने इन तीनों दलों का पत्ता साफ कर दिया। राजनीति में चाल चरित्र और चेहरे का अपना पुराना चोगा बदल चुकी मोदी और शाह के नेतृत्व की बी जे पी ने भी शिवसेना की प्रतिक्रियावश न केवल शिवसेना के दो टुकड़े कर दिए साथ ही उसका साथ देने वाले शरद पवार की एन सी पी को भी दो फाड़ कर दिया। उम्मीद तो यह की जा रही थी कि शिव सैनिक और पवार समर्थक बी जे पी से इसका बदला लेंगे। लेकिन मतदाताओं ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार की शिवसेना और एन सी पी को अवसरवादी गठबंधन करने की सजा दी है।
उद्धव ठाकरे परिवार और शरद पवार परिवार के लिए यहां से वापसी करना वैसा ही मुश्किल होगा जैसा पंजाब में अकाली दल के लिए साबित हो रहा है।भारतीय जनता पार्टी अब महाराष्ट्र में दबंगई के साथ बड़े भाई जैसा व्यवहार कर सकेगी। केंद्र सरकार की छत्रछाया में चलने वाले उसके शासन में अजित पवार और एकनाथ शिंदे की बैशाखियां आने वाले समय में ज्यादा अड़चन नहीं डाल सकेंगी। इस चुनाव में जनता ने यह भी जनादेश दिया है कि कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना का गठबंधन बेमेल है। दोनों दलों की विचारधारा में धरती आसमान का फर्क है शायद इसीलिए इन दोनों पुराने दलों को महाराष्ट्र की जागरूक जनता ने सिरे से नकार दिया।
महाराष्ट्र का महत्व अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। देश की आर्थिक राजधानी होने से इस राज्य में हर राजनीतिक दल सत्ता चाहता है। यही कारण था कि महाराष्ट्र चुनाव में शामिल प्रत्येक प्रमुख दल ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था। चुनाव परिणाम भी सभी को चौंकाने वाले हैं। शरद पवार को यह उम्मीद नहीं थी कि अपने अंतिम समय में इतने बुरे दिन देखने को मिलेंगे। साफ जाहिर है कि तमाम एग्जिट पोल के विपरीत महाराष्ट्र की जनता ने शरद पवार से भावनात्मक रिश्ता भी खत्म कर दिया। जिस तरह बालासाहब ठाकरे ने भतीजे राज ठाकरे को दरकिनार कर अपने राजनीतिक रूप से अपरिपक्व बेटे उद्धव ठाकरे को गद्दी सौंपकर अपने दल के पैर पर कुल्हाड़ी मारी थी वैसा ही शरद पवार ने अपने भतीजे अजित पवार को दरकिनार कर बेटी सुप्रिया सुले को कमान सौंपकर एन सी पी का नुकसान किया है। इस चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिव सैनिक विरासत और शरद पवार का चाणक्य का खिताब धूल में मिल गया। इंडिया गठबंधन और विशेष रूप से कांग्रेस इस चुनाव में उसी तरह पस्त हुई है जैसे हरियाणा में हुई थी। लगता है कि कांग्रेस को जनता से ज्यादा विश्वास एग्जिट पोल पर होने लगा है। उसे एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को भुनाने की कला अच्छे से सीखने की आवश्यकता है अन्यथा मध्य प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह वह अन्य राज्यों में भी पिछड़ती चली जाएगी।
भारतीय जनता पार्टी और देवेंद्र फडणवीस के लिए महाराष्ट्र की जीत बेहद खास है। यहां भाजपा को इतनी सीट राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय होने के बावजूद पहले कभी नहीं मिली थी। भाजपा अकेले बहुमत के आंकड़े से थोड़ा कम तक पहुंच गई इसलिए वह गठबंधन में मुख्यमंत्री पद के लिए सशक्त दावेदार है। पिछली बार भाजपा और देवेंद्र फडणवीस की काफी छीछालेदार हुई थी जब पहले उन्हें अजित पवार ने गच्चा दिया था और बाद में मुख्यमंत्री से उपमुख्यमंत्री बनना पड़ा था। अब भाजपा अच्छे से ड्राइविंग सीट पर काबिज हो गई।