विचार / लेख
ट्रंप की बाजीगरी कामयाब रही. 2020 की हार को पीछे छोड़कर उन्होंने बड़े अंतर से जीत दर्ज की है. भले कई लोग इससे हैरान हों, लेकिन जमीनी हवा पहले से ही ट्रंप की जीत का संकेत दे रही थी. किन मुद्दों ने लिखी जीत की स्क्रिप्ट?
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अमेरिका में इस साल पूर्व राष्ट्रपति की हत्या के दो प्रयासों, प्रचार के बीच एक राष्ट्रपति उम्मीदवार के अपने कदम वापस खींच लेने, 10 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा के खर्च और बेहद विवादित प्रचार अभियान के बाद आखिरकार डॉनल्ड ट्रंप अमेरिकी चुनाव 2024 जीतकर राष्ट्रपति बन ही गए। यह जीत ऐतिहासिक है। करीब 230 साल के अमेरिकी लोकतंत्र के इतिहास में डॉनल्ड ट्रंप से पहले सिर्फ एक अमेरिकी राष्ट्रपति ने चुनाव हारने के बाद फिर जीत हासिल की है। वो भी 131 साल पहले।
डेमोक्रेटिक पार्टी के ग्रोवर क्लीवलैंड 1885 से 1889 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहने के बाद रिपब्लिकन पार्टी के बेंजामिन हैरिसन से चुनाव हार गए थे। चार साल बाद वह फिर से हैरिसन के खिलाफ ही चुनाव लड़े और उन्हें भारी अंतर से मात दी। अब ट्रंप इस लीग में शामिल होने वाले दूसरे राष्ट्रपति बन गए हैं।
महंगाई सबसे बड़ी वजह
करीब 10 दिनों से अमेरिकी चुनावों से जुड़े मुद्दों और इसके भविष्य की चर्चा करते हुए ट्रंप की जीत बहुत मुश्किल नहीं लगती थी। हां, बातचीत सिर्फ अमेरिका के पूर्वी छोर तक सीमित थी तो ऐसा लगता था कि शायद बाकी अमेरिका में कुछ अलग माहौल हो। नतीजे ये दिखाते हैं कि ऐसा बिल्कुल नहीं था। बल्कि कई पोल का इस्तेमाल सिर्फ ये दिखाने के लिए किया गया कि कमला हैरिस रेस में हैं। अमेरिकी सडक़ों पर आपको वही माहौल मिलता था, जो रिजल्ट में दिख रहा है।
ट्रंप की इस जीत का श्रेय सिर्फ श्वेत समुदाय को ही नहीं, बल्कि अमेरिका के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले आप्रवासियों, अरब-मुस्लिम समुदाय (जिन्होंने ‘कमला को छोड़ो’ अभियान चलाया) और कुछ हद तक दक्षिण एशियाई-भारतीय समुदाय के लोगों को भी जाता है। अलग-अलग मौकों पर जब आप्रवासियों से बात हुई, तब उन्होंने यही कहा कि जिस तरह से महंगाई बढ़ी है, इसे संभालने के लिए वो ट्रंप पर भरोसा करते हैं। ज्यादातर लोग ट्रंप के समय अलग-अलग उत्पादों की कीमतों की चर्चा करते और अब उनके दामों में आ चुके अंतर का जिक्र करते।
ग्लोबल सप्लाई चेन की समस्या
अमेरिका ने चीन से कटते हुए ज्यादातर आयात को कनाडा और मेक्सिको पर केंद्रित कर लिया है। यह बदलाव इतनी तेजी से हुआ कि कई लोग आश्चर्य में थे। हालांकि, कोरोना महामारी के बाद वैश्विक सप्लाई चेन में आए बदलावों को तेजी से समझ पाने में बाइडेन प्रशासन नाकाम रहा था। ऐसे में ज्यादातर सामानों के दाम तेजी से बढ़े। इसके चलते राष्ट्रपति जो बाइडेन के ज्यादातर कार्यकाल में लोग चीजों की ऊंची कीमतों से जूझते रहे।
इसी दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मैक्रो तस्वीर बेहतर हो रही थी। अर्थव्यवस्था बेहतर विकास दर से बढ़ रही थी और शेयर मार्केट भी अच्छा कर रहा था, लेकिन आम लोगों का मानना था कि उन्हें इसका कोई फायदा नहीं हो रहा।
वर्जीनिया में रहने वाले इमरान इन समस्याओं के बीच बाइडेन से ठीक पहले के ट्रंप के कार्यकाल को याद करते हैं। वह अमेरिका में दूसरी पीढ़ी के पाकिस्तानी हैं। डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में इमरान ने बताया कि उनकी नौकरी चली गई थी, लेकिन ट्रंप की ओर से मिलने वाली आर्थिक राहत के चलते उनका घर चलता रहा। चुनाव से पहले हुई बातचीत में उन्होंने ट्रंप को ही बेहतर राष्ट्रपति बताया।
छोटे कारोबारियों को आशा
कई छोटे कारोबारी आशा लगाए हुए थे कि ट्रंप आएंगे, तो वो अपने कारोबार में विस्तार करेंगे। उन्हें उम्मीद है कि चीन से मिलने वाली प्रतिद्वंद्विता से ट्रंप उनकी बेहतर रक्षा करेंगे। हालांकि, अमेरिका में कच्चे माल का उपलब्ध होना बहुत महंगा है लेकिन वो मेक्सिको या अमेरिकी महाद्वीप के ही अन्य देशों से कच्चा माल हासिल कर अमेरिका में अपने उत्पादन को बढ़ाना चाह रहे हैं। इन कारोबारियों का मानना है कि ट्रंप इसमें पूरी तरह से मददगार होंगे।
भारतीय मूल के कारोबारी भूपिंदर सिंह न्यू जर्सी में अपना टीशर्ट प्रिटिंग का कारोबार करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके बिजनेस के लिए जरूरी रंगों के दाम पिछले वर्षों में कई गुना बढ़ते चले गए। बाइडेन-हैरिस प्रशासन ने कीमतों पर लगाम लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। ट्रंप के कार्यकाल में ही अमेरिका की मुक्त व्यापार की नीति खत्म हो गई थी। बाइडेन ने उसे आगे बढ़ाने का ही काम किया था, लेकिन छोटे व्यापारी फिर से ट्रंप को चाह रहे थे। उन्हें लगता है कि डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के छोटे कारोबारों को बेहतर संरक्षण दिलाएंगे।
शरणार्थियों की समस्या
डोमिनिकन रिपब्लिक से आए आप्रवासी मिगेल, न्यू यॉर्क में टैक्सी चलाते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी बच्ची के स्कूल में इंक्लूसिविटी प्रोग्राम का खर्च उठाने के लिए बास्केटबॉल के खेल को बंद कर दिया गया। मिगेल बताते हैं कि न्यू यॉर्क की सडक़ों पर कचरा पेटियों से खाना बीनकर खा रहे लोग, कभी शरणार्थियों की तरह ही अमेरिका में दाखिल हुए थे।
ज्यादातर अमेरिकी मानते हैं कि बड़ी संख्या में अमेरिका आ रहे शरणार्थी घरों की उपलब्धता, कानून व्यवस्था, सरकारी खर्च और संसाधनों के बंटवारे में बाधा खड़ी करते हैं। अमेरिका में पिछले वित्तीय वर्ष में एक लाख से ज्यादा शरणार्थियों को बसाया गया। यह 1995 के बाद से अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी। अमेरिकी वित्तीय वर्ष 1 अक्टूबर से 30 सितंबर तक होता है।
डॉनल्ड ट्रंप का प्रभावी व्यक्तित्व
डॉनल्ड ट्रंप और कमला हैरिस की कहानी में बड़ा अंतर रहा। डॉनल्ड ट्रंप, मीडिया मैग्नेट थे, हैं और लगता है रहेंगे। उनके बारे में कही बात अच्छी हो या बुरी, लेकिन उनपर लगातार कुछ बात होती रहती है। ट्रंप चर्चा में बने रहना पसंद करते हैं, जबकि कमला हैरिस की छवि एक गंभीर वकील की रही है। हालांकि, उनकी मुक्त हंसी यह छवि तोड़ती रही है।
चुनाव प्रचार के दौरान कमला हैरिस से प्रेसिडेंशियल डिबेट के बाद ट्रंप काफी पीछे हो गए थे। यानी कोई दो राय नहीं कि कमला हैरिस की बातें ट्रंप से ज्यादा तर्कशील थीं, पर ट्रंप मंझे हुए कारोबारी हैं और लोगों को सपने बेचना जानते हैं। तभी तो तमाम असफल कारोबार कर चुके ट्रंप अब भी सफल कारोबारी ही माने जाते हैं। ऐसे में वो लोगों को अपनी करिश्माई छवि एक बार फिर से बेच पाने में सफल रहे।
रूढि़वादी अमेरिका
चुनाव प्रचार के दौरान डॉनल्ड ट्रंप ने जिन मुद्दों को आगे रखा, सारे आम जनमानस को प्रभावित करने (कई बार उकसाने वाले भी) वाले मुद्दे रहे। मसलन अर्थव्यवस्था, महंगाई, कारोबार और शरणार्थी। जबकि कमला हैरिस ने अबॉर्शन, एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अधिकारों, पर्यावरण जैसे मुद्दों को भी चुनाव प्रचार में शामिल किया। नतीजे दिखाते हैं कि ट्रंप जिन मुद्दों पर बात कर रहे थे, वो लोगों के रोजमर्रा के मुद्दे थे। इन मुद्दों ने लोगों को ज्यादा प्रभावित किया।
जिस तरह का चुनाव प्रचार हुआ, उसमें कमला हैरिस के मुद्दों का इस्तेमाल ट्रंप और उनके समर्थकों ने उपराष्ट्रपति को निशाना बनाने के लिए ही किया। डोमिनिकन रिपब्लिक के मिगेल कमला हैरिस को इसलिए भी पसंद नहीं करते कि वो एलजीबीटीक्यू+ समुदाय का समर्थन करती हैं। मिगेल को डर है कि बास्केट बॉल खेलने वाली उनकी 12 साल की बेटी एलजीबीटीक्यू+ समुदाय का हिस्सा ना बन जाए।
अमेरिका में प्रवासी और शरणार्थी पृष्ठभूमि के लोग भारी संख्या में हैं। इनमें से ज्यादातर बेहद पारंपरिक और कई बार रूढि़वादी सोच भी रखते हैं। ट्रंप के प्रचार अभियान ने ऐसे लोगों और इनमें भी खासकर पुरुषों को प्रभावित करने का हर संभव प्रयास किया। जाहिर है, वो इसमें सफल भी रहे।
हालांकि, इस पूरे चुनाव में जिस मुद्दे की सबसे बड़ी हार हुई, वह है जलवायु परिवर्तन का मुद्दा। ऐसा मानना है यूनिवर्सिटी ऑफ मैरी वॉशिंगटन में असोसिएट प्रोफेसर सुरूपा गुप्ता का। उन्होंने डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में कहा कि रिपब्लिकन और खुद ट्रंप इसे मुद्दा ही नहीं मानते। ऐसे में अमेरिका इस मुद्दे पर अब कई साल पिछड़ जाएगा। पेरिस जलवायु सम्मेलन में तय हुए लक्ष्यों को हासिल करने से लगातार दूर हो रही दुनिया के लिए यह एक और बड़ी चोट होगी। (dw.comhi)