नयी दिल्ली, 6 नवंबर। राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने ऑनलाइन भुगतान प्रणाली को हैक करके पैसे निकालने के आरोपी दो लोगों को जमानत देते हुए कहा कि मामले में दंडात्मक प्रावधानों के बजाय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धाराएं लागू की जानी चाहिए थीं।
अदालत ने यह भी कहा कि आईटी अधिनियम की धारा-66 (कंप्यूटर से संबंधित अपराध) के तहत हैकिंग का अपराध जमानत योग्य है और धोखाधड़ी तथा साजिश के दंडात्मक प्रावधानों को आरोपियों के खिलाफ गलत तरीके से लागू किया गया था।
न्यायिक मजिस्ट्रेट राघव शर्मा उन दोनों आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
अदालत ने आरोपियों के वकीलों शशांक दीवान और अमृत सिंह की उन दलीलों पर गौर किया, जिनके अनुसार इस मामले में केवल आईटी अधिनियम के ‘‘विशेष कानून’’ को ही लागू किया जा सकता है।
वकीलों ने दलील दी कि आईटी अधिनियम की धारा-66 के तहत अपराध जमानत योग्य है, इसलिए आरोपियों की हिरासत अवैध थी।
अदालत ने 29 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘चूंकि, आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एकमात्र अपराध आईटी अधिनियम की धारा-66 के तहत लगाया गया है और यह जमानती प्रकृति का है, इसलिए जांच अधिकारी (आईओ) द्वारा आरोपी व्यक्तियों को हिरासत में नहीं रखा जा सकता था। आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धाराओं को गलत तरीके से लगाया गया है।’’
उसने कहा कि आईटी अधिनियम एक विशेष अधिनियम है और मामले में आईपीसी के सामान्य कानून के बजाय यह लागू होगा।
अदालत ने कहा, ‘‘प्राथमिकी की विषय-वस्तु और आईओ के जवाब का अध्ययन करने से पता चलता है कि आरोपी व्यक्तियों ने ‘वेब एप्लीकेशन’ और ‘बग’ का इस्तेमाल किया और इस तरह शिकायतकर्ता की भुगतान प्रणाली की ‘प्रोग्रामिंग’ में खामी ढूंढ ली तथा उसके खाते से पैसे निकालने में कामयाब रहे।’’
कंप्यूटिंग के मामले में ‘बग’ का मतलब किसी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम में कोई दोष, खराबी, त्रुटि या विसंगति होता है। (भाषा)