संपादकीय
कीर्तिश भट्ट का कार्टून बीबीसी पर
देश में कई तरह की नकली चीजें चलती हैं, लेकिन गुजरात के इस ताजा मामले में सबको पीछे छोड़ दिया है। राजधानी गांधीनगर में एक व्यक्ति ने एक फर्जी अदालत खोल ली, और वह लोगों के कानूनी मामले निपटाने लगा, पूरा अदालत का ढांचा खड़ा कर लिया, उसके अपने गिरोह के लोग वकील बनकर बहस करने लगते थे ताकि लोगों को भरोसा हो जाए, और वह लोगों के मामलों को निपटाने का यह कानूनी ट्रिब्यूनल पांच बरस से चलाते हुए अब तक अरबों की दौलत बना चुका था। जज के पोशाक में बैठकर वह फैसले देता था, और दूसरी अदालतों में चल रहे जमीनों के मामलों को निपटाने के ट्रिब्यूनल का जज बनकर वह हजारों लोगों को धोखा देते रहा, और दिलचस्प बात यह है कि यह नकली अदालत अहमदाबाद की अदालत के ठीक सामने एक वकील ही चला रहा था। यह पकड़ में तब आया जब इसका एक मामला असली अदालत तक पहुंचा।
यह समाचार चौंकाता है कि देश किस हद तक धोखा खाने पर आमादा है। अभी कुछ हफ्ते पहले ही छत्तीसगढ़ में स्टेट बैंक की एक नकली ब्रांच खोलकर उसे चलाया जा रहा था, लेकिन कुछ लोगों को शक होने से वह पकड़ में आ गई। बाद में पता लगा कि इसके पहले भी तमिलनाडु और दूसरी जगहों पर स्टेट बैंक की नकली शाखाएं खुल चुकी हैं। खुद गुजरात की बात करें तो वहां पर अभी कुछ हफ्ते पहले ही गांधी की जगह अनुपम खेर की तस्वीर छपे हुए नोट देकर किसी ने सोना खरीदी की थी। यह मामला भी राजधानी अहमदाबाद का ही था, और सोना खरीदकर एक व्यक्ति ने एक करोड़ साठ लाख रूपए के नोट देकर नकली नोट दे दिए थे। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग चीजों की नकल बनाने के इतने मौलिक और अनोखे तरीके हिन्दुस्तान में इस्तेमाल हो रहे हैं कि नकल बनाने के लिए बदनाम चीन को भी शर्म आ जाए, वह भी हीनभावना में पहुंच जाए। यहां लोग अलग-अलग कंपनियों के फर्जी कस्टमर केयर वेबसाइट बनाकर शिकायत करने वाले ग्राहकों को वहां से फंसा रहे हैं, तो कहीं नकली सीबीआई अफसर बनकर कोई अदना सा आदमी असली पासपोर्ट ऑफिस जाकर गिरफ्तारी का डर दिखाकर लाखों रूपए वसूल कर निकल जाता है। यह नौबत देश के लिए बहुत भयानक है कि नकल का कारोबार इतनी दूर तक चले जाता है, और जिन निगरानी या जांच एजेंसियों से इनको रोकने की उम्मीद की जाती है, उन्हें हवा भी नहीं लगती। हम इस सिलसिले में कामयाब कारोबारी ब्रांड की नकल के बारे में नहीं कह रहे जो कि दुनिया के कई देशों में एक समस्या है, लेकिन जब किसी देश के लोग किसी टेलीफोन कॉल पर अपने को नार्कोटिक्स ब्यूरो का बताकर धमकाते हैं, और उसके बाद वीडियो कॉल शुरू करवाकर थाने का नकली नजारा पेश करते हैं, तो जालसाजों की कल्पनाशीलता, और जनता की झांसा खाने की क्षमता इन दोनों के बीच एक कड़ा मुकाबला चलता है।
अब साइबर-धोखाधड़ी या जालसाजी के बारे में तो जांच एजेंसियां लोगों को सावधान करने का अभियान चला रही हैं लेकिन जब पूरा का पूरा बैंक, या पूरा का पूरा कोर्ट नकली बना दिया जाए, तो उस इलाके की पुलिस पर भी यह सवाल उठता है कि क्या उसे अपने आसपास की इतनी बड़ी जालसाजी की भी हवा नहीं लगती? इसी अहमदाबाद की एक दूसरी खबर कल की ही है कि एक रिटायर्ड बैंक अधिकारी ने किसी महिला की नकली बलात्कार की रिपोर्ट लिखाने की धमकी में जिंदगी के आखिरी तीस बरस में उसे एक करोड़ रूपए दिए, और आखिर में ब्लैकमेलिंग से थककर एक चिट्ठी में इस महिला और उसके परिवार के पांच लोगों के बारे में सब लिखा, और जहर पीकर खुदकुशी कर ली। अब नकली बलात्कार की असली धमकी देकर किसी को इस तरह लूटा जा सकता है, दशकों तक लूटा जा सकता है, और खुदकुशी पर मजबूर किया जा सकता है, तो इस तरकीब को आजमाने में कई और लोगों की लार टपक सकती है, आखिर तीस बरस तक तो यह औरत और उसके परिवार के लोग किसी मुसीबत में नहीं फंसे थे।
नकली का कारोबार देश को अभी कुछ समय पहले ही दहला चुका है जब यह सामने आया कि देश के एक सबसे प्रमुख हिन्दू मंदिर, तिरुपति में प्रसाद के विख्यात लड्डुओं को बनाने के लिए जानवरों की, गाय और सुअर की चर्बी से बना हुआ घी इस्तेमाल हो रहा था। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के रास्ते जांच एजेंसियों तक पहुंचा हुआ है, और नकली सामान से लोगों की आस्था को चोट पहुंचाने का यह देश का सबसे भयानक मामला इसलिए है कि इस मंदिर में रोजाना छह सौ लोग लड्डू बनाने में जुटते हैं, और करीब तीन लाख लड्डू रोज प्रसाद में बांटे या बेचे जाते हैं। अब अगर इसमें राज्य सरकार के बताए मुताबिक चर्बी वाला नकली घी इस्तेमाल होता था, तो घर जाकर दर्जनों लोगों में बंटने वाले एक-एक लड्डू के मार्फत कितने लोगों तक क्या-क्या नहीं पहुंचा होगा?
ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान में नकली के खिलाफ समाज में बर्दाश्त बहुत हो गया है। ऑटोमोबाइल पुर्जों के बाजार में जाएं तो वहां किसी भी बड़ी कंपनी के किसी भी पुर्जे की अलग-अलग तीन-चार नकली क्वालिटी मौजूद रहती है। और देश की राजधानी दिल्ली का ऑटोपाटर््स का बाजार इसी भाषा से भरा रहता है कि किस क्वालिटी का डुप्लीकेट चाहिए? यह नौबत बताती है कि सरकार और अदालतें मिलकर नकली पर लगाम लगाने के लिए काफी नहीं हैं, और लोग हैं कि वे नकली को उतना बुरा भी नहीं मानते। भारत से चीन जाने-आने वाले लोग, या चीन से बनकर भारत आने वाला सामान दुनिया के तमाम बड़े ब्रांड के महंगे फैशनेबुल की नकल रहता है, और बड़े ब्रांड की मिट्टी के मोल मिलने वाली नकल से गरीब हिन्दुस्तानियों की हसरतें भी पूरी होती हैं। दिल्ली का किताबों का बाजार पाइरेटेड किताबों से पटा हुआ है, और जिस महंगी किताब की कॉपी चाहिए वह घंटे भर में तैयार कर दी जाती है। इस देश के नेताओं की राजनीतिक प्रतिबद्धता जितनी नकली है, उसी के अनुपात में यहां पर नकली काम भी बर्दाश्त होता है, बल्कि उसका स्वागत होता है। इम्तिहानों में मुन्नाभाई बनकर नकली लोग पर्चे लिखने जाते हैं, और अब तक लोगों ने मेहरबानी यह की है कि नकली यूपीएससी रिजल्ट निकालकर लोगों को कलेक्टर-एसपी नहीं बनाया है।
फिलहाल जिस राज्य में जिस तरह का नकली धंधा पकड़ा रहा है, वहां की सरकार और पुलिस को अपने कामकाज के बारे में आत्ममंथन करना चाहिए कि यह नौबत कैसे आई है, और इसमें सरकार की क्या जवाबदेही बनती है। दूसरी बात, भारत जैसा संघीय गणराज्य है, उसमें केन्द्र और राज्यों के बीच जुर्म के तौर-तरीकों की जानकारी पलक झपकते फैलनी चाहिए ताकि ठोकर किसी एक को लगे, तो संभल सभी सकें। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)