विचार / लेख

दो रुपए का सिक्का
28-Sep-2021 1:20 PM
दो रुपए का सिक्का

-सुधा अरोरा

मुंबई में ऑटो रिक्शा का न्यूनतम किराया अब 21- रुपए हो गया है। बरसों तक यह 18/-ही था।

कल मैं अपने घर के नजदीक डी मार्ट से कुछ सामान लेकर लौटी तो ऑटो ले लिया। वैसे तो दस मिनट पैदल का ही रास्ता है पर सामान का वजन ज्यादा हो या घर पहुंचने की जल्दी हो तो अक्सर रिक्शा कर लेती हूं । घर पर उतरी, उसे बीस का नोट थमाने के बाद पर्स टटोल ही रही थी कि ऑटो वाले ने बड़े प्यार से कहा- आंटी, रहने दो... कितनी बार आपसे अठारह का बीस लिया है। कभी आपने छुट्टा नहीं लिया... मैंने एकदम उसकी ओर देखा और कहा- अच्छा...मैंने पहचाना नहीं। वह बोला- लेकिन हम सब आपको जानते हैं, सब बोलते हैं- आंटी कभी चिल्लर नहीं लेती। रिक्शा आगे बढ़ाते हुए मुस्कुराकर बोला- जब किराया अठारह रुपया था तो दो रुपया कोई नहीं छोड़ता था, अब इक्कीस है तो एक रुपया छोड़ देते हैं हम!

यह सीख कई साल पहले मेरी बिटिया गुंजन की दी हुई थी। मैं उसके साथ ऑटो में लौटी तो ऑटो वाले ने मुझे बीस का नोट लेने के बाद फौरन दो का सिक्का थमाया। मैंने आदतन ले लिया। गुंजन ने घर लौट कर मुझे डांट लगाई-मां, आपने दो रुपए क्यों लिए रिक्शे वाले से? मैं ठिठकी, फिर कहा- उसने दो के सिक्कों का ढेर रखा हुआ था, दिया तो ले लिया। अपनी सफाई भी दी। कई बार ऑटोवालों के पास छुट्टा नहीं होता तो नहीं लेती। वह कहने लगी-मां, आपके लिए दो रुपए की क्या कीमत है? कुछ नहीं। पर उस रिक्शे वाले से पांच लोग भी दो का सिक्का न लें तो उस को फर्क पड़ता है न! मत लिया करो आगे से! उसकी यह हिदायत मन में खुभ कर रह गई।

उस दिन के बाद से मैं कोशिश यही करती हूं कि ठेले वाले, भाजी वाले, रिक्शे वाले से कभी छुट्टे पैसे न लूं। भाजीवाला भी अब हिसाब करने के बाद चार छह का जोड़ घटाव खुद ही करके राउंड फिगर लेता है।  

मुझे हैरानी जरूर होती है कि हम, जिन्हें पांच दस रुपयों से बिल्कुल कोई फर्क नहीं पड़ता,  ठेले वाले से भाजी का मोल भाव जरूर करते हैं। ठेले वाला अगर दस रुपए के चार नींबू देता है तो दस रुपए के जबरन पांच या छह नींबू लेकर, एक-दो अतिरिक्त नींबू हमें कैसा सुकून देते है, सोचना पड़ता है!

बड़े-बड़े स्टोर से नामी ब्रांड के महंगे कपड़े खरीदते हुए हम अपना क्रेडिट कार्ड खुशी से काउंटर पर थमा देते हैं, पर भाजी वाले से मोल भाव करना, उसे पांच सात रुपए कम देना हमारे लिए बहुत बड़ी नियामत है।

कौन सा मनोविज्ञान काम करता है यहां ? इसे बदलना क्या इतना मुश्किल है ?

 

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