विचार / लेख
तस्वीर प्रतीकात्मक
कृष्ण कांत
नेता फोकट में फोटो खिंचवा रहा था तो फ्रंट पेज पर छप रहा था। साफ जगह पर कूड़ा डालकर कूड़ा उठाने का नाटक कर रहा था और दिन भर मीडिया में छाया हुआ था। उस नौटंकी के पहले भी सफाईकर्मी गटर में डूबकर मर रहे थे। उस नौटंकी के बाद भी वे गटर में डूबकर मर रहे हैं।
सफाईकर्मी की जान की कीमत उस तमाशे के बराबर भी नहीं है, जिसमें साफ सडक़ पर झाड़ू लगाई जाती है। आजकल कोई झाड़ू लेकर फोटो नहीं खिंचवा रहा है। अभियान चला और खतम हो गया। करोड़ों अरबों के उस अभियान से इन गरीबों की जिंदगी पर क्या असर पड़ा?
दिल्ली के बदरपुर में कल दो लोगों की सेप्टिक टैंक में दम घुटकर मौत हो गई। सतीश चावला नाम के एक 60 वर्षीय बुजुर्ग ने मनोज और देवेंद्र नाम के दो लोगों को टैंक साफ करने के लिए बुलाया था। देवेंद्र टैंक में घुसा ओर बेहोश हो गया। उसे बचाने के लिए मनोज और सतीश भी टैंक में कूद गए। मनोज बच गए, बाकी दोनों की मौत हो गई।
ऐसी घटनाएं आए दिन होती हैं। छोटी सी खबर छप जाती है। जो असली सफाईकर्मी हैं, उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिली। जो नंगे बदन सीवर में घुसकर सफाई करते हैं, उन्हें सुरक्षा उपकरण नहीं मिले। वे गटर में घुसते हैं और जहरीली गैसों से दम घुट जाता है, उनकी मौत हो जाती है।
यह भी सोचिए कि कोई गटर में घुसकर सफाई क्यों करता है? क्योंकि उसे रोटी चाहिए, काम चाहे जो करना पड़े।
स्वच्छता अभियान के दौरान ये सवाल उठाने पर भक्त ट्रोल करते थे कि तुम लोग मोदी से जलते हो, इसलिए हर अच्छे काम में बुराई खोजते हो। हम बुराई नहीं खोजते, हम सिर्फ ये सवाल आपके सामने रखते हैं कि अगर कोई गरीब हमारे लिए 100-50 रुपये में अपनी जान की बाजी लगाता है, तो हमें भी उनके बारे में सोचना चाहिए।
यह कैसा राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान था जो कुछ लोगों को भी गटर से नहीं बचा सकता? हम 1947 में नहीं हैं। हम सुविधा और साधन संपन्न देश हैं। हम 21वीं सदी में हैं। अगर कोई योजना लोगों की जिंदगी नहीं बदलती है, उन्हें राहत नहीं पहुंचाती है तो वह योजना नहीं है, वह स्कैम है। स्कैम सिर्फ वह नहीं होता जिसमें पैसा लूट लिया जाए। स्कैम वह भी होता है जिसके जरिये लोगों को उल्लू बनाया जाए।


