विचार / लेख
प्रकाश दुबे
हिमाचल प्रदेश को कश्मीर घाटी से हर मौसम में सडक़ मार्ग से जोडऩे के लिए हिमालय क्षेत्र में अटल सुरंग खुली। सुनसान सुरंग पार करते समय प्रधानमंत्री को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में स्थान पा चुके अटल बिहारी वाजपेयी तथा देश के लिए कुर्बानी देने वाले जवान याद आए होंगे। सुरंग बनने मात्र से अपने आपको चीन की चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने लायक मानने का भ्रम न करें। अमेरिका की पहल पर जापान और आस्ट्रेलिया से मिलकर चीन के विरुद्ध मोर्चा तैयार करना इसी रणनीति का अंग है। कूटनीति की कसौटी पर ऐसे अवसर भी आते हैं जब विवश होकर पुराने संकल्प की अनदेखी की जाती है। संसद के शीतकालीन अधिवेशन के दौरान सारे देश में आंतरिक मुद्दों पर हंगामा मचा था। विदेश मंत्री जयशंकर अन्यत्र महत्वपूर्ण काम में व्यस्त थे। यह काम था-तालिबान से बातचीत का। अमेरिका पिछले लंबे अरसे से अफगानिस्तान से अपनी फौजें हटाने की जुगत में है। किसी वक्त रूस की लाल सेना को अफगानिस्तान से खदेडऩे के लिए अमेरिका ने तालिबानी मनोवृत्ति वाले कबीलों को साधन और शस्त्र दिए। उन्हें ताकतवर हमलावर बनाया। रूस को भागना पड़ा। तालिबानियों के मुंह को खून लग चुका था। उन्होंने अमेरिकी सैनिकों पर हमले किए। सैनिकों की मौतों पर देश के अंदर जारी विरोध से अमेरिकी प्रशासन परेशान है। तालिबान से वार्ता में भारत के शामिल होना आश्चर्यजनक रहा। तालिबान और पाकिस्तान की मिलीभगत के कारण वर्ष 1999 में इंडियन एयरलाइन्स के विमान का अपहरण किया गया।
अमृतसर, लाहौर और दुबई की धरती को छूने के बाद अपहरण कर्ताओं ने विमान को कंधार, अफगानिस्तान में उतरने के लिए मजबूर किया। अपहर्ताओं ने 176 यात्रियों में से 27 को दुबई में छोड़ दिया एक को बुरी तरह चाकू से मारा और कई अन्य को घायल कर दिया। भारतीय ही नहीं, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में बताया गया कि अपहर्ताओं, अल-कायदा और तालिबान के बीच गहरे संबंध हैं। उनकी साजिश का भारत शिकार बना। वाजपेयी सरकार के दो मंत्री जसवंत सिंह और शरद यादव बातचीत के लिए कंधार गए।
अपहरणकर्ताओं की शर्त मानकर तीन आतंकवादी जेल से रिहा किये गए। आतंकवादियों को तालिबान द्वारा एक सुरक्षित मार्ग प्रदान किया गया। देशभक्ति का पाठ पढ़ाने वाला एक निजी चैनल हर जान की कीमत की मांग कर देश भर में हर कीमत पर यात्रियों की रिहाई की मांग करता रहा। क्षुब्ध प्रधानमंत्री वाजपेयी कड़ा जवाब देने के पक्ष में थे। देश भर में हाहाकार मचने का प्रचार हुआ। दबाव में आकर प्रधानमंत्री ने आतंकियों की मांगें मानी। भारत ने उसी पल संकल्प किया कि कभी भी, किसी भी कीमत पर तालिबान से कोई बात नहीं होगी। भारत की ओर से मध्यस्थ जसवंत सिंह ने इस शर्मनाक पल पर इस आशय की घोषणा की थी। जसवंत सिंह के आखिरी सांस लेने से पहले भारत तालिबान के साथ वार्ता करने के लिए हाजिर हुआ। 22 बरस के अंतराल में कूटनय में बदलाव का यह पहला अवसर नहीं है। कुछ दिन पहले भारत और डेनमार्क के प्रधानमंत्रियों ने आपस में बातचीत की। देश और दुनिया को बेहतर बनाने के नेक इरादे से करार किए। साल 1995 में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में शस्त्रों का जखीरा पकड़ा गया था। डेनमार्क का नागरिक किम डेवी इन्हें विमान से लाया था। किम को भारत के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेडऩे का अपराधी मानते हुए भारत सरकार ने मामला दर्ज किया। किम के प्रत्यर्पण की भारत की मांग को डेनमार्क ने सिरे से खारिज कर दिया। भारत ने डेनमार्क सरकार के साथ सौदे और करार नहीं करने का निर्णय किया। समय के साथ परिस्थितियां बदलती हैं। आपसी मतभेद अपनी जगह रहते हैं। इस तरह के निर्णय किसी खास दल या व्यक्ति के नहीं होते। 1984 पुस्तक के जार्ज आर्वेल जैसे लेखक ने व्यंग्य किया था-हर दौर में सत्तारूढ़ वर्ग अपने समर्थकों के समक्ष विश्व के बारे में फर्जी परिदृश्य लादता है। उनकी फब्ती अपनी जगह। विदेश नीति के साथ कूटनय में इस तरह के बदलाव अकारण तो नहीं होंगे। परिदृश्य बदलने के साथ पैंतरा बदलता है। कंधार पश्चिम के पड़ोसी देश अफगानिस्तान का हिस्सा है। पुरलिया पूरब में पश्चिम बंगाल में। दोनों घटनाएं अलग अलग सालों में दिसम्बर के महीने में घटीं। दोनों के बारे में अब जाकर सितम्बर महीने में कूटनीतिक बदलाव हुआ। सितम्बर महीने में दुनिया से अलविदा कहने वाले जसवंत के कंधार संबंधी निर्णय को अमान्य किया। जसवंत सिंह ने मोहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा की थी। उनके इस गुनाह को माफ नहीं किया गया। जसवंत सिंह के पहले लाल कृष्ण आडवाणी जिन्ना की कब्र पर जाकर प्रणाम करने के अपराध की सजा भुगत चुके हैं। कांग्रस पर निशाना साधने के फेर में आडवाणी कह गए-भारत विभाजन के लिए जिन्ना को दोषी ठहराना अनुचित है। शहादत की मुद्रा में दोनों नेता जार्ज आर्वेल की तरह सोचते रहे-जो समाज सत्य से जितनी दूर भागता है, वह सच बोलने वालों से उतनी अधिक नफरत करने लगता है। वर्तमान नेतृत्व कौटिल्य की सीख पर चला-दूसरों की गलतियों से सीख लेना चाहिए। अपने ऊपर प्रयोग करने पर जिंदगी कम पड़ जाएगी।
हम आप ध्यान देते हैं?
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)


