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हाथरस:यूपी में बड़ी घटनाओं के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश कैसे आ जाती है?
08-Oct-2020 7:36 PM
हाथरस:यूपी में बड़ी घटनाओं के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश कैसे आ जाती है?

समीरात्मज मिश्र

उत्तरप्रदेश के हाथरस में दलित युवती के साथ हुए कथित बलात्कार और फिर हत्या के मामले में पीडि़त युवती के परिजन जहां न्यायिक जांच की मांग पर अड़े हैं वहीं पुलिस अब इस घटना को ‘इतना तूल’ देने के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजि़श की बात कह रही है।

उत्तरप्रदेश पुलिस का आरोप है कि राज्य में जातीय और सांप्रदायिक दंगे कराने और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साजिश रची गई थी।

हाथरस के चंदपा थाने में इस संबंध में तीन दिन पहले एक नई एफ़आईआर दर्ज की गई जिसमें कुछ अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ राजद्रोह जैसी धाराएं लगाई गई हैं।

बुधवार को इस मामले में चार लोगों को मथुरा से गिरफ्तार भी किया गया जिनमें मलयालम भाषा के एक पत्रकार भी शामिल हैं। इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा था, ‘हमारे विरोधी अंतरराष्ट्रीय फंडिंग के जरिए जातीय और सांप्रदायिक दंगों की नींव रखकर हमारे खिलाफ साजिश कर रहे हैं।’

100 करोड़ रुपये की फंडिंग के आरोप

हाथरस मामले में कथित अंतरराष्ट्रीय साजिश के संबंध में उत्तर प्रदेश पुलिस ने राज्य भर में कम से कम 19 एफआईआर दर्ज की हैं और मुख्य एफआईआर में करीब 400 लोगों के खिलाफ राजद्रोह, षडय़ंत्र, राज्य में शांति भंग करने का प्रयास और धार्मिक नफरत को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए गए हैं।

प्रवर्तन निदेशालय के हवाले से मीडिया में ये खबरें भी चल रही हैं कि हाथरस की इस घटना को जातीय और सांप्रदायिक दंगों में बदलने के लिए मॉरीशस के जरिए करीब 100 करोड़ रुपये की फंडिंग भी हुई है।

हालांकि इसके न तो पुख्ता सबूत मिले हैं और न ही आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि हुई है। पुलिस जिस संगठन पर शक जाहिर कर रही है उसका नाम पीएफआई यानी पॉपुलर फ्ऱंट ऑफ इंडिया है और गिरफ्तार किए गए लोगों के भी इस संगठन से संपर्क बताए जा रहे हैं।

शक के घेरे में रही है पीएफआई

राज्य सरकार ने इससे पहले नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ इस साल दिसंबर में हुए प्रदर्शनों और इस दौरान हुई हिंसा के लिए भी पीएफआई को ही जिम्मेदार ठहराया था।

उस दौरान 100 से भी ज़्यादा पीएफ़आई सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था और मुख्यमंत्री ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। यूपी में इससे पहले भी कुछ घटनाएं ऐसी हो चुकी हैं जिनके तूल पकडऩे के बाद उनके ‘अंतरराष्ट्रीय तार’ जोडऩे की कोशिश की गई।

स्थानीय घटनाओं में अंतरराष्ट्रीय साजि़श की बात से हैरानी जरूर होती है लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी कहते हैं कि इस साजिश में कुछ राजनीतिक दल और उनके नेता भी शामिल हैं।

शलभमणि त्रिपाठी के मुताबिक, ‘राज्य सरकार ने दंगाई मानसिकता के लोगों के खिलाफ जो कार्रवाइयां की हैं, उससे ऐसे संगठनों में बौखलाहट है। उपद्रवियों के पोस्टर सरेआम चौराहों पर लगाए गए, उनकी संपत्तियां कुर्क करके सार्वजनिक नुकसान की वसूली भी की गई।’

‘ऐसे में पीएफ़आई जैसे संगठनों ने योगी सरकार को बदनाम करने और प्रदेश में जातीय और सांप्रदायिक दंगे कराने की साजिश रची। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुछ राजनीतिक दल भी अराजकता की इस साजिश में पीएफ़आई जैसे संगठनों के साथ खड़े दिख रहे हैं।’

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ राज्य में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे और उस दौरान लखनऊ, कानपुर, आज़मगढ़, फिरोजाबाद, मेरठ जैसे कई शहरों में हिंसा भडक़ गई थी।

इस हिंसा में कई लोगों की मौत हुई थी और सरकार की कार्रवाई पर सवाल भी उठे थे। सरकार ने प्रदर्शनों के आयोजन और उस दौरान हिंसा होने की घटना को भी अंतरराष्ट्रीय साजिश बताया था।

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय साजिश की बजाय ‘प्रशासनिक नाकामी को ढकने की कोशिश’ मानते हैं।

सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘हाथरस में जो कुछ भी हुआ है वह प्रशासनिक नाकामी और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस नाकामी को ढकने के जो तर्क दिए गए हैं वो बेसिर-पैर के हैं। चूंकि प्रशासनिक नाकामी आखिरकार सरकार की ही नाकामी की तरह है, इसलिए उसे ढकने के लिए अब अंतरराष्ट्रीय साजिश की ढाल तैयार की जा रही है।’

यूपी के डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय हाथरस जैसी घटनाओं के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश जैसी बात को सिरे से नकारते हैं।

बीबीसी से बातचीत में डॉक्टर वीएन राय कहते हैं, ‘इसमें कोई तथ्य नहीं हैं। सिर्फ गुमराह करने की कोशिश है। आप देखिएगा, दो-चार हफ़्ते के बाद ये सारी साजिशें कहीं नहीं दिखेंगी। सब भूल जाएंगे। अंतरराष्ट्रीय साजि़श के जो प्रमाण दिए जा रहे हैं वो शुरुआती दौर में ही इतने खोखले हैं कि कोर्ट पहुंचने से पहले ही धराशायी हो जाएंगे।’

लेकिन सवाल उठता है कि ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय साजिश की बात कहने के पीछे क्या सच में लोगों को गुमराह करना या फिर ‘समय काटना’ है या फिर इसके पीछे कुछ राजनीतिक नफे-नुकसान का गणित भी काम करता है।

इस सवाल के जवाब में सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘निश्चित तौर पर लोगों का ध्यान तो बँटेगा ही। लोग अब एक नए एंगल की थ्योरी पर सोचना शुरू कर देंगे और उन्हें लगेगा कि हां, सच में ऐसा हो रहा है। दूसरे, अंतरराष्ट्रीय साजिश में सीधे तौर पर इस्लामिक देशों का जिक्र किया जा रहा है तो ऐसी बातों में बीजेपी अपना फायदा ही देखती हैं।’

‘विरोधी को तो वो अपने पक्ष में ला नहीं सकते हैं लेकिन जिन समर्थकों का विश्वास सरकार की कार्यशैली से उठने लगा है, ऐसी साजिशों का जिक्र करके और कुछ के खिलाफ कार्रवाई करके, उनका विश्वास एक बार फिर जीतने की कोशिश तो हो ही सकती है।’

खुफिया एजेंसियों को खबर क्यों नहीं?

हालाँकि यदि अंतरराष्ट्रीय साजिश की बात मान भी ली जाए, तो अहम सवाल यह भी उठता है कि इतनी बड़ी साजिश हो रही थी तो पुलिस या खुफिया एजेंसियों को पता क्यों नहीं चला? और उन्हें पहले ही रोकने की कोशिश क्यों नहीं हुई।

सीएए के खिलाफ प्रदर्शन को भी अंतरराष्ट्रीय साजि़श से जोड़ा गया लेकिन न तो कोई पुख़्ता सबूत मिले और न ही किसी के ख़िलाफ़ अब तक कोई चार्ज शीट फ़ाइल की जा सकी है।

शलभ मणि त्रिपाठी कहते हैं, ‘सीएए प्रदर्शन के दौरान भी पूरे देश में अराजकता पैदा करने की कोशिश की गई, लेकिन सरकार की मुस्तैदी और खुफिया तंत्र की सक्रियता के चलते पूरे प्रदेश में एक भी बेकसूर व्यक्ति को इस उपद्रव से नुकसान नहीं पहुंचा।’

शलभ मणि त्रिपाठी का दावा है कि सीएए प्रदर्शन के दौरान एक भी बेकसूर व्यक्ति को नुक़सान नहीं हुआ लेकिन प्रदर्शन के दौरान कई लोगों की मौत पुलिस की गोली से हुईं और उससे जुड़े कई मुकदमे अभी अदालत में लंबित हैं।

जहां तक हाथरस की घटना का सवाल है, राज्य सरकार ने चार दिन पहले ही उसकी जांच सीबीआई को सौंपने की सिफारिश की थी लेकिन उसकी स्वीकृति अब तक नहीं मिली है।

दूसरी ओर, जांच का दायरा अब गैंगरेप और हत्या के अलावा अंतरराष्ट्रीय साजिश के साथ-साथ युवती की मौत की अन्य वजहों की ओर भी मुड़ता दिख रहा है। (bbc.com/hindi/india)


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