विचार / लेख
संजय श्रमण
एक मजेदार बात बार-बार घटित होती है। धर्म पर जब भी बात निकलती है तो बहुत सारे लोग आकर सलाह देने लगते हैं कि धर्म की क्या जरूरत है, यह सब अंधविश्वास है इत्यादि इत्यादि। मैं उन लोगों की टाइमलाईन पर जाकर उनकी शिक्षा की जांच करता हूँ तो ज्यादातर ये वे लोग होते हैं जिन्होंने समाजशास्त्र, साहित्य, भाषा, दर्शन, इतिहास, एंथ्रोरोपोलोजी, कल्चर और मनोविज्ञान आदि की कोई पढ़ाई नहीं की है।
दुर्भाग्य से बहुजन समाज में एसे लोग सर्वाधिक हैं जिन्होंने इंजीनियरिंग, मेडिकल या मेनेजमेंट की पढ़ाई से नौकरी हासिल कर ली है और वे साइंस और टेक्नोलॉजी के अलावा कभी कुछ नहीं पढ़ते। दुर्भाग्य की बात तो यह कि वे साइंस, टेक्नोलॉजी और मेडिसिन आदि भी विशुद्ध घोटामार स्टाइल में पढ़े हैं। एसे अधिकांश लोगों मे वैज्ञानिक प्रच्छा का भारी अभाव है।
इन लोगों से पूछा जाए कि ये एकांत मे अपने बच्चों और पत्नी से कैसी बातें करते हैं? क्या ये वहाँ सौ प्रतिशत रेशनल और आब्जेक्टिव होकर बात करते हैं? या फिर कभी चाँद सितारों की या इश्क रूमानियत की बात भी करते हैं? क्या ये अपनी पत्नी या प्रेमिका को कहते हैं कि प्रेम सिर्फ केमिकल लोचा है? क्या आप अपने रिश्तों मे इतने आब्जेक्टिव होते हैं? नहीं ना?
दूसरी बात ये कि अगर कोई पॉलिटिकल साइंस या मनोविज्ञान पढ़ा हुआ आदमी क्वांटम मेकेनिक्स या मेडिसिन पर टिप्पणी करने लगे तो आप क्या कहेंगे?
लोगों को लगता है कि राजनीति, दर्शन, धर्म आदि चलताऊ विषय हैं, इनमे शिक्षण प्रशिक्षण की कोई आवश्यकता नहीं है। एक कम्प्यूटर इंजीनियर या डॉक्टर को कम से कम चार साल की पढ़ाई चाहिए। तब वह कम्प्यूटर सार्इंस या मेडिसिन पर कोई टिप्पणी करना सीखता है। लेकिन धर्म, दर्शन संस्कृति और समाज मनोविज्ञान के बारे में लोग एक किताब पढ़े बिना भी अंतिम निर्णय सुनाने लगते हैं।
धर्म या संस्कृति या कर्मकांड पर कुछ भी लिखने के पहले कम से कम दो तीन किताबें दर्शन और समाज मनोविज्ञान पर जरूर पढ़ लीजिए। कर्मकांड, भाषा, अवचेतन, सामूहिक अवचेतन और समाज की नियंत्रण व्यवस्था आदि का एक जटिल संबंध होता है। अगर आप सिर्फ कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल या बाइकेमिस्ट्री इत्यादि को ही साइंस मानते हैं तो कृपया एक दो साल की छुट्टी लेकर कुछ पढऩा सीख लीजिए। हजारों साल से दार्शनिक, समाजशास्त्री, भाषा विज्ञानी और राजनीतिशास्त्री इस दुनिया में घास नहीं काटते रहे हैं। उनके जगत में भी एक कहीं गहरा विज्ञान होता है जो ‘तकनीक के बाबुओं’ को समझना चाहिए।
खास तौर से ओबीसी, अनुसूचित जाति और जनजाति के युवाओं की सबसे बड़ी समस्या यही है। वे दुनिया के सबसे प्राचीन और सबसे महत्वपूर्ण विषयों-धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान, राजनीतिशास्त्र आदि के बारे में कोई किताब नहीं पढ़ते। इसीलिए वे हमेशा दूसरों के नियंत्रण मे रहने को मजबूर हैं।


