विचार / लेख
प्रकाश दुबे
महात्मा गांधी दिल्ली में हरिजन बस्ती में रहते थे। 1977 में जनता सरकार आने के बाद आदिवासियों के बीच काम करने वाले मामा बालेश्वर दयाल राज्यसभा के लिए चुने गए। वे कई बार रेलवे स्टेशन से सरकारी निवास तक पैदल चल देते। इस सरकार के कुछ मंत्री कभी कभी साइकल से संसद जाते हैं। सांसद मुखर्जी संसद भवन के निकट छोटी कोठी में रहते थे। लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के नेता रहे। वित्त, रक्षा आदि मंत्रालय संभाले। बड़ी कोठी का मोह नहीं पाला।
आतंकवादियों के निशाने पर रहने के कारण मनिंदरजीत सिंह बिट्टा को बाद में उसी मार्ग पर कोठी आवंटित की गई। बिट्टा की कोठी फ़ौजी छावनी था। लोग उसे मुखर्जी का बंगला समझते। मुखर्जी दादा के यहां गेट पर मात्र एक रक्षक। राष्ट्रपति बने। साहित्यकारों को राष्ट्रपति भवन में रहकर लिखने के लिए आमंत्रित किया। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तीन मूर्ति भवन में रहते थे। वर्तमान प्रधानमंत्री आवास में उस आकार की आधा दर्जन कोठियां शामिल की जा चुकी हैं। शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी न तो भूत हो चुके पूर्व सांसदों से कोठियां खाली करा पा रहे हैं और न सही मापदंड लागू करा सके।
की बोले मां?
ममता बनर्जी की कांग्रेस नेता प्रणव मुखर्जी से अनेक मुद्दों पर असहमति रहती थी। इसके बावजूद उनकी राय लेती थीं। पश्चिम बंगाल में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। राष्ट्रपति मुखर्जी ने वर्ष 2018 में पैतृक ग्राम मिरासी में दुर्गा पूजा की। सुरक्षा एजेंसियां आनाकानी कर रही थीं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता ने पूरी सुरक्षा का वादा किया। निभाया। दादा हिंदी समझ लेते हैं। बोलने में अटकते हैं, इसलिए बोलने से बचते रहे। मां के बारे में हिंदी काव्य पर उनकी उत्सुकता और याददाश्त का प्रसंग।
बरसों पहले अविनाश पांडे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के महासचिव और फिर सांसद बने। नरसिंहराव और मुखर्जी के विश्वासपात्र अविनाश ने अपने गुरु के मां पर लिखे वृहद काव्य की मुखर्जी से चर्चा की होगी। पक्की याददाश्त के धनी राष्ट्रपति ने रचनाकार से मुलाकात की। पुस्तक प्राप्त की। विश्व की आत्मा मां पर विश्वात्मा रचने वाले का नाम सुनकर हंसना मत। मधुप पांडेय की ख्याति व्यंग्य कवि की है।
करनी, करने वाले की
राजनीति में छोटा बड़ा नहीं होता। उस बात को सबसे अच्छी तरह जानते हैं-अरे भाई, लाल कृष्ण आडवाणी से पहले भी याद करो। इंदिरा गांधी के निधन के बाद ज्ञानी जेल सिंह, राजीव गांधी को शपथ दिलाने की हड़बड़ी में थे। प्रणव मुखर्जी की वरिष्ठता की अनदेखी करने के लिए सारे तार जोड़े गए। आडवाणी जी तो एक झटका खाकर मौन मार्गदर्शक बन गए। कर्मण्येवाधिकारस्ते पर भरोसा करने वाले मुखर्जी डटे रहे। बरस 1984 में दुनिया के सबसे यशस्वी वित्त मंत्री के रूप में सम्मानित हो चुके थे। जिसे रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया, वह प्रधानमंत्री बना। इसके बावजूद नेता प्रणव थे। डा मनमोहन सिंह लोकसभा के सदस्य नहीं थे। इसलिए साल 2009 से 2012 तक लोकसभा में सत्ता दल के नेता मुखर्जी थे। वित्त मंत्री की छोटी सी कोठी में जासूसी के तार मिले। हंगामा मचा। दादा से पहले वित्त मंत्रालय संभालने वाले पी चिदम्बरम गृह मंत्री थे। दुनिया रंग रंगीली बाबा, क्या छोटा? कौन बड़ा यहां पर??
तेरहवीं से पहले खनका कंगना
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पांच बरस पहले राष्ट्र के नाम संबोधन में भाईचारा बनाए रखने की अपील की। अभिनेता आम खान की पत्नी की राय पर विरोध हुआ। देशभक्ति का फरसा दिखाने के शौकीन सांसद सहित कुछ लोगों ने बिनमांगे देश छोडऩे की कीमती सलाह दी थी। राष्ट्रपति भवन छोडऩे के बाद प्रणव दा नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय पहुंचे। निडरता से भारत की समरसता की विरासत सहेज कर रखने की सलाह दी। महात्मा गांधी की याद दिलाई।
मुखर्जी की तेरहवीं से पहले अभिनेत्री कंगना रनौत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से मुंबई शहर की तुलना कर श्रद्धांजलि देने का पुण्य कमाया। किरण राव ने कहा था-जिस तरह असहमति जताने वालों पर हमले हो रहे हैं, उससे देश में रहने में डर लगता है। उस सांसद पर अब तक कार्रवाई नहीं। कंगना को प्यार से समझाने की पहल का इंतजार है।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)


