विचार / लेख
-विमलेंदु झा
स्थानीय लोगों की अनभिज्ञता या शासन की शिथिलता का खामियाजा भुगत रहे तथाकथित कंटेनमेंट जोन में रह रहे लोग, आज यह जानना चाहते हैं कि कंटेनमेंट जोन कितने दिनों के लिए लागू किया जाता है। स्थानीय जनप्रतिनिधि (पार्षद, सरपंच, पंच और विधायक) भी इन स्थानों से दूरी बनाकर चल रहे है, वहीं दूसरी ओर कंटेनमैंट जोन के करीब रहने वाले स्थानीय लोग भी उन स्थानों और खास कर लोगों से कन्नी काटते दिखते है। सरकारी प्रावधान के तहत अगर किसी परिवार में कोई कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आता है तो जिस स्थान में वह रहता है उस स्थान की सडक़ को बंद किया जाता है। वहां आवागमन की मनाही होती है, ऐसे में केवल जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अमला ही उस स्थान में अन्न, सब्ज़ी और आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करने के लिए अधिकृत होते है। लेकिन अलग-अलग स्थानों से शिकायत आ रही है कि उस स्थान को कंटेनमेंट ज़ोन तो बनाया गया है, किन्तु उन्हें आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराने के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है।
अब सवाल ये उठता है कि यह जो सील करने वाली प्रक्रिया है यह कितने दिन की होगी क्योंकि इस कंटेनमेंट जोन यानी क्षेत्र को सील करने वाली प्रक्रिया के कारण संक्रमित एवं आस पड़ोस के अन्य परिवारों का हर व्यक्ति लगभग अपने घर में कैद हो जाता है। क्षेत्र को सील कर दिए जाने के कारण वहां के रहवासियों को काफी दिन तक अपने क्षेत्र के अंतर्गत रहना पड़ता है और वे लोग काम रोजगार में भी कहीं जा नहीं पाते।
खैर! यहां हम प्रधानमंत्री जी की बात मान लेते है ‘जान है तो जहान है’ मगर सवाल ये उठता है कि लोग आर्थिक रूप से भले ही पिछड़ जाएं, लेकिन उन्हें मूलभूत आवश्यकताओं (भोजन, पानी, साफ-सफाई ‘सेनिटाइजेशन’) की पूर्ति ही अगर ना की गई तो वे किसकी शरण में जाएंगे? प्रशासनिक अधिकारी से शिकायत करने पर वे त्वरित कार्यवाही करने के नाम पर, उन कर्मचारियों को बदलने की कार्यवाही अवश्य करते है, मगर व्यवस्था तो बद से बदतर होती जाती है। ऐसी स्थिति में लोगों की जीवनशैली में काफी प्रतिकूल प्रभाव पडऩा लाजमी है, क्योंकि इस क्षेत्र के लोग अपने घर के अंदर ही खुद को कैद करके रखते हैं जो बहुत जरूरी भी है।
‘एक तो खुजली ऊपर से फोड़ा’ एक व्यंगात्मक वाक्य है, जो इन ज़ोन में लागू होता साफ दिखाई देता है, एक ओर प्रशासन की अनदेखी और दूसरी ओर पड़ोसियों की लानतों का दर्द है, जिसकी छाप शायद लंबे समय तक हमारे समाज में जरूर नजऱ आएगा। हॉलीवुड की फिल्मों में जैसे एक प्रकार के भूत दिखाए जाते है जिन्हें जोंबी कहा जाता है। ये आपके और हमारे जैसे आम लोग होते है जिनकी संक्रमण की वजह से मौत हो जाती है, लेकिन उनका मृत शरीर फिर भी चलता रहता है, और सामने आने वाले हर जिंदा आदमी का खून पीता है और उन्हें भी जोंबी बना देता है। कुछ ऐसा ही कंटेनमेंट जोन के लोगों को समझा जा रहा है।
बस्तर के बेलर गांव के कंटेनमेंट जोन में रह रहे एक निवासी से हमारी बात हुई, उन्होंने बताया कि ‘यदि इस महामारी से बचना है तो कुछ तो त्याग करना ही होगा, लेकिन सवाल यह उठता है कि यह कंटेनमेंट जोन कब से कब तक रहेगा एवं इसके परिपालन में लोगों को किस ढंग से रहना है और क्या क्या सावधानी बरतना है इस पर पूरी जानकारी नहीं दी जा रही है।’ अन्य संक्रमित मरीज ने कहा कि ‘गांव के कुछ लोग कोविड-19 के जो मरीज हैं उनसे काफी दूरी बनाकर चल रहे हैं जो कि बहुत जरूरी भी है लेकिन कुछ लोग अज्ञानता वश इस बीमारी को इतना अछूत बना दिए हैं की वह लोग उनके परछाई से तक दूरी बनाकर चल रहे हैं, मेरा अनुरोध है कि बीमारी को खत्म करे, बीमार को भूखे प्यासे खत्म ना करें।’
हम सभी जानते ही हैं कि कोरोना मरीज मानसिक रूप से काफी परेशान रहता है उसके ऊपर उसके साथ इस तरह का गलत व्यवहार यानी यह कह सकते हैं कि पूरे परिवार को मानसिक प्रताडऩा देता है। संक्रमित को बहुत ही छूत बीमारी मानकर उस मरीज का काफी अपमान भी किया जाता है जिससे उस मरीज को मानसिक ठेस पहुंचती है एवं उसे गांव के जो अच्छे लोग भी होते हैं जो कुछ लोगों के बहकावे में आकर ऐसे मरीजों का अपमान करने से भी बाज नहीं आते। ऐसी सोच रखने वालों के लिए शासन प्रशासन को चाहिए की यह स्थिति किसी के भी साथ घट सकती है इसलिए हर व्यक्ति को सभी के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए, क्योंकि यह जो कोरोना महामारी है जिस तरीके से अपना पैर पसार रही है इससे लगभग सभी लोग ग्रसित होंगे ही और जो इन लोगों से गलती हो रही है जो संक्रमित लोगों के साथ बुरा व्यवहार कर रहे हैं वही स्थिति इनके साथ भी घट सकती है उस समय इन लोगों के मन में जो दर्द होगा उसका एहसास उन्हें तभी होगा जब वे खुद संक्रमित होंगे इसलिए लोगों को अपनी इस विचारधारा को बदल कर सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए।
अधिकांश लोगों को मालूम ही है की विकास खंड लोहंडीगुड़ा से दो पिता-पुत्र कोरोना पॉजिटिव पाए गए इस हेडिंग से अखबारों में एवं सोशल मीडिया में समाचार चला था मैं खुद मीडिया से जुड़ा हुआ व्यक्ति हूं और मेरे साथ मेरा लडक़ा वेदांत झा मेरा कैमरामैन लक्ष्मीधर बघेल भी मेरे ही साथ रहते हैं और हम लोग फील्ड में जाकर लोगों की समस्याओं को सामने लाकर निराकरण करने की पूरी कोशिश करते हैं एवं शासन-प्रशासन तक लोगों की समस्याओं को लेकर जाना अपना कर्तव्य समझते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश हम भी लोहंडीगुड़ा में पॉजिटिव पाए गए और हमारा इलाज जगदलपुर में किया गया मेरा यानी विमलेंदु शेखर झा का इलाज मेडिकल कॉलेज जगदलपुर में किया गया जहां से वर्तमान में मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर अपने गांव बेलर में आ चुका हूं मैं दिनांक 10.08.2020 को जगदलपुर के मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुआ और उसी दिन मेरा लडक़ा वेदांत झा धरमपुरा के पीजी कॉलेज छात्रावास में अपने उपचार हेतु भर्ती हुआ। हम लोगों को पूर्ण स्वस्थ होने के बाद वहां से छुट्टी दे दी गई, जिसके बाद हमें 25 तारीख तक होम क्वारंटाइन में रहने को कहा गया था, जिसे भी हमने पूरे अनुशासन से पालन किया।
बता दें कि 10 अगस्त के बाद बेलर ग्राम पंचायत विकासखंड लोहंडीगुड़ा के खालेपारा को सील कर दिया गया सील करने की तारीख 11.08.2020 थी जो आज दिनांक 06.09.2020 तक कंटेंटमेंट ज़ोन के नाम से सील कर दिया गया है और इस क्षेत्र के लोगों को कहीं भी आने-जाने से रोक दिया गया है। आज दिनांक तक बेलर खालेपारा के लोग खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं एवं कहीं भी काम में नहीं जा पा रहे हैं। यहां तक की अपने खेत को भी देखने नहीं जा पा रहे हैं जिससे भविष्य में उनकी माली हालत पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩा स्वाभाविक है। बेलर से गुदामपारा की ओर जाने वाली सडक़ पूरी तरह सील कर दी गई है और यह बताना भी जरूरी है कि इसी मार्ग पर गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, राशन की दुकान एवं पोस्ट ऑफिस भी है और यह बताना भी जरूरी है कि यह सडक़ लोहंडीगुड़ा विकासखंड और तोकापाल विकासखंड को जोडऩे वाला सबसे निकटतम सडक़ है जिसका भी खामियाजा गांव वालों को एवं दोनों विकासखंड के लोगों को भुगतना पड़ रहा है अब लोग यह चाहते हैं कि जो भी संक्रमित होगा उसके घर को ही सील किया जाए ना कि मुख्य सडक़ों को सील करके लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जाए।


