विचार / लेख
- मोहर सिंह मीणा
एक सितंबर 2013 सुबह के क़रीब 11 बजे थे. देश भर की निगाहें जोधपुर पर टिकी हुई थीं. हवाई अड्डे पर मीडिया और लोगों का जमावड़ा था.
पुलिस का एक बड़ा अमला चौकसी से तैनात था. थोड़ी देर में दिल्ली से आई फ़्लाइट हवाई अड्डे पर उतरी.
इस फ़्लाइट में नाबालिग़ लड़की से रेप के अभियुक्त और अपने को आध्यात्मिक गुरु कहने वाले आसाराम थे. जोधपुर पुलिस की स्पेशल टीम इंदौर से उन्हें गिरफ़्तार करके लाई थी.
राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी जोधपुर आ रहे थे, इसलिए शहर में ख़ासी पुलिस व्यवस्था थी.
हवाई अड्डे से आसाराम को आरएसी परिसर में बनाए पूछताछ केंद्र में ले जाया गया. आसाराम को अहसास भी नहीं था कि पुलिस की तफ़्तीश कैसे होती है.
शाम के पाँच बज रहे थे. जोधपुर ईस्ट के डीसीपी रूम में मौजूद थे.
पश्चिमी राजस्थान के तेज़-तर्रार सब इंस्पेक्टर अमित सिहाग ने आसाराम से मुख़ातिब होकर कहा, "बाबा, सोफ़े पर कैसे बैठो हो. चलो उठो वहाँ से और नीचे ज़मीन पर बैठो."
पूछताछ की शुरुआत में ही अभियुक्त को अहसास हो गया कि यहाँ कोई रियायत मिलने की उम्मीद नहीं है.
ज़मीन पर बैठते ही उनकी आँखों में आँसू आ गए, "ऐसा मत करो डीसीपी साहब."
डीसीपी ने जवाब दिया, "बाबा, ये बताएँ कि ये सब कैसे किया, जल्दी बताएँ."
आसारामः "ग़लती कर दी. ग़लती कर दी मैंने..."
आसाराम बापू के सामने बैठे डीसीपी थे, उस वक्त जोधपुर ईस्ट में तैनात, आईपीएस अजय पाल लांबा.
ये हिस्सा है पुलिस अधिकारी अजय लांबा की किताब 'गनिंग फ़ॉर द गॉडमैन, द ट्रू स्टोरी बिहाइंड द आसाराम बापूज़ कन्विक्शन' का. इस किताब में ऐसी कई घटनाओं का ज़िक्र है.
आगे की कहानी भी इसी पुस्तक पर आधारित है.
पैसों का लालच और परिवार को धमकियाँ
दो सितंबर 2013 को आसाराम को न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है. अजय लांबा की किताब दावा करती है कि इसके बाद से ही जोधपुर पुलिस टीम को ख़तों, लगातार फ़ोन, जान से मारने की धमकियाँ और पैसों का लालच देने वालों की बाढ़ सी आ जाती है.
आसाराम समर्थक एक दिन आईपीएस लांबा के दफ़्तर तक पहुँच जाते हैं.
किताब के मुताबिक़, ये लोग लांबा से कहते हैं, "आप जितनी कल्पना कर सकते हैं उससे भी ज़्यादा पैसा बापू देंगे आपको, लेकिन आप इस केस में उनको गिरफ़्तार मत करो."
धमकियों और इंटेलिजेंस की रिपोर्ट से परेशान लांबा की पत्नी, अपनी बेटी को स्कूल भेजना बंद कर देती हैं.
अजय लांबा कहते हैं कि समर्थकों ने उनके माता-पिता को भी धमकाने का प्रयास किया.
नवंबर 2013 में चार्जशीट फ़ाइल करने के बाद भी लगातार पुलिस टीम और ख़ास कर आईपीएस लांबा को जान से मारने की धमकियाँ मिलती रही थीं.
अजय लांबा बताते हैं कि उन्हें राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट्स, पुलिस विभाग के कुछ अधिकारियों और परिचित तक ने आसाराम केस में बैकफ़ुट पर रहने की सलाह दी थी.
केस की इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर चंचल मिश्रा का आसाराम समर्थक कोर्ट में भी पीछा करते थे. मिश्रा को आईईडी ब्लास्ट से मारने की साज़िश भी सामने आई थी. इस वजह से उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा भी दी गई थी.
केस की तफ़्तीश से जुड़े एक अन्य सब इंसपेक्टर, सत्यप्रकाश को राजस्थान में आसाराम की करोड़ों की प्रॉपर्टी देने तक का ऑफ़र दिया जाता है.
इस सब बातों को अब सात साल बीत चुके हैं. आसाराम बापू को दो साल पहले इन्हीं अधिकारियों की विवेचना के आधार पर दोषी पाकर सज़ा सुनाई जा चुकी है और वे जेल में हैं.
लेकिन अब भी तफ़्तीश करने वाली टीम के कई सदस्यों को पुलिस ने बाक़ायदा सिक्योरिटी दी हुई है.
प्रेस कॉन्फ़्रेंस से हुई गिरफ़्तारी की राह आसान
आसाराम केस में राजस्थान पुलिस की एंट्री मध्य प्रदेश में इंदौर में स्थित उनके आश्रम से हुई थी.
पुलिस टीम 30 अगस्त 2013 को जोधपुर से एडिशनल डीसीपी सतीश चंद्र जांगिड़ के नेतृत्व में इंदौर के लिए रवाना हुई थी.
जोधपुर पुलिस टीम इंदौर के सफ़र में थी और इधर जोधपुर में शाम पाँच बजे डीसीपी अजय पाल लांबा ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी.
लांबा ने पत्रकारों को बताया था, "हम आसाराम को गिरफ़्तार करने वाले हैं. एक टीम गिरफ़्तारी के लिए भेजी जा चुकी है. हम जानते हैं वह कहाँ है और हमारी टीम जल्द ही वहाँ पहुँच कर उसे गिरफ़्तार करेगी."
अजय लांबा बताते हैं कि वो उस दिन अंधेरे में तीर चला रहे थे, क्योंकि उनके पास आसाराम के बारे में कोई पुख़्ता जानकारी नहीं थी.
लेकिन पुलिस का ये दांव सही पड़ा और आसाराम शायद पुलिस से दूर जाने के लिए भोपाल एयरपोर्ट पहुँच गए.
पुलिस को इसकी जानकारी हुई, लेकिन इंदौर से इतनी जल्दी भोपाल पहुँचना मुश्किल था.
पुलिस ने इसकी जानकारी मीडिया को लीक कर दी और भोपाल एयरपोर्ट पर मीडिया जमा हो गया.
आसाराम शायद ख़ुद को कैमरों की नज़रों से छिपाने और ख़ुद छिपने के इरादे से इंदौर में अपने आश्रम के लिए निकल पड़े. एयरपोर्ट में हो रहे सारे घटनाक्रम की सूचना पुलिस तक टीवी चैनलों के माध्यम से मिल रही थी.
आसाराम बापू ख़ुद ब ख़ुद पुलिस के जाल में फँसते जा रहे थे. पुलिस के इंदौर में उनका इंतज़ार करने के बारे में वे पूरी तरह से अनभिज्ञ थे.
पुलिस का सामना
रात के नौ बजे इंदौर आश्रम के मुख्य गेट पर हज़ारों समर्थक नारेबाज़ी कर रहे थे. पुरुषों से ज़्यादा संख्या महिलाओं की थी. मीडिया और पुलिस बल भी बड़ी संख्या में मौजूद था.
आश्रम में आसाराम, उनके बेटे नारायण साईं, बेटी और उनके क़रीबी भक्त मौजूद थे. पुलिस ने नारायण साईं से कहा कि एक मामले में आसाराम से पूछताछ करनी है.
काफ़ी कोशिशों के बाद रात 11 बजे पुलिस आसाराम तक पहुँचती है.
आगे की कहानी अजय लांबा की किताब से
पुलिस को देखते ही आसाराम कहने लगते हैं, "तुम्हें पता है मैं कौन हूँ? तुम जानते हो देश में मेरे कितने भक्त हैं? तुम्हें पता है कि कितने राजनीति के लोगों के सिर पर मेरा हाथ है? तुम लोगों की हिम्मत कैसे होती है मेरे ही आश्रम में घुस कर मुझसे यह सब बेवकूफ़ी की बातें करने की? बताओ? "
यह पुलिस टीम और आसाराम का पहली बार आमना-सामना था.
देर तक आसाराम कभी अपनी सेहत का तो कभी सुबह चलने की बात करते हैं. बीच-बीच में वो पुलिस को अपने रसूख़ की भी याद दिलाते रहते हैं.
अजय लांबा बताते हैं कि आसाराम नित्य क्रियाओं के नाम पर ख़ुद अपने कमरे में चले गए, और शायद अपने बेटे नारायण साईं से समर्थकों को बुलाने के लिए कहा.
जोधपुर से डीसीपी अजय पाल लांबा ने भी सुबह के बजाय रात में ही उन्हें गिरफ़्तार करने को कह दिया था.
आख़िर में देर रात क़रीब 12 बजे राजस्थान पुलिस के टीम लीडर एडिशनल डीसीपी सतीश चंद्रजांगिड़ आसाराम से कहते हैं, "बाबा, कल सुबह नहीं. हम आपको अभी अरेस्ट करके जोधपुर ले जा रहे हैं. सुबह तक तो बहुत देर हो जाएगी."
फ़िल्मी अंदाज़ में आसाराम की गिरफ़्तारी
पुलिस ने आसाराम को पकड़कर बाहर खड़ी अपनी गाड़ी में बिठा दिया.
अजय लांबा की किताब के मुताबिक़ गिरफ़्तारी के समय आसाराम अपने बेटे और भक्तों को पुकारते हुए कह रहे थे, "अरे अरे, ये क्या कर रहे हो. नारायण इनको रोको. भक्तों देखो ये तुम्हारे बाबा को पकड़ कर ले जा रहे हैं. सब इनको रोको."
राजस्थान पुलिस, स्थानीय पुलिस के बताए रास्ते पर आश्रम से बाहर निकल जाती है. बाहर भारी तादाद में मौजूद समर्थकों ने पुलिस की गाड़ियों को रोकने की कोशिश की और कुछ ने कहा कि ये लोग एयरपोर्ट न पहुँच पाएँ.
लेकिन इंदौर पुलिस के सहयोग से पुलिस टीम एयरपोर्ट पर पहुँच जाती है. फ़्लाइट में भी आसाराम समर्थकों से उलझते हुए पुलिस टीम आसाराम को लेकर इंदौर से दिल्ली और फिर दिल्ली से 1 सितंबर सुबह 11 बजे जोधपुर पहुँचती है.
केस की इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर चंचल मिश्रा ने बीबीसी को बताया, "रात क़रीब 12.30 बजे थे, जब आश्रम से इंदौर एयरपोर्ट के सफ़र में आसाराम ने कहा- मुझसे ग़लती हो गई. मुझे उससे नहीं मिलना चाहिए था, वो बहुत छोटी थी."
इस केस को ठीक सात साल बीत चुके हैं. लंबा ट्रायल, कुछ गवाहों की हत्या और पुलिस टीम को मिली धमकियों के बाद आसाराम को दोषी पाया जा चुका है और वो सज़ा काट रहे हैं.
अब अजय लांबा की किताब एक बार फिर से भारत के एक चर्चित केस के कुछ अनछुए पहलुओं को आम जनता के बीच ला रही है. लेकिन, इन सबके बीच पीड़िता का परिवार अब भी ख़ुद को संभाल नहीं सका है.
पीड़िता के पिता ने बीबीसी को बताया, "हमने अपने जिगर के टुकड़ों को गुरुकुल में पढ़ने भेजा था. लेकिन उस दुष्ट ने ऐसा किया कि हम टूट गए. लेकिन सुकून है कि उसे सज़ा हुई, पूरे परिवार को तसल्ली है कि वो जेल में बंद है."(bbc)


