विचार / लेख

ankhi das photo credit facebook page
अंखी दास कौन हैं - इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं. मगर उनका एक परिचय ये बताने के लिए पर्याप्त है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कितनी अहमियत रखती हैं.
नरेंद्र मोदी डॉट इन नाम से प्रधानमंत्री मोदी की एक व्यक्तिगत वेबसाइट है. उनका एक व्यक्तिगत ऐप भी है - नमो ऐप.
वेबसाइट पर न्यूज़ सेक्शन के रिफ़्लेक्शंस सेक्शन के कॉन्ट्रिब्यूटर्स कॉलम में, और नमो ऐप पर नमो एक्सक्लूसिव सेक्शन में एक टैब या स्थान पर कई लोगों के लेख प्रकाशित किए गए हैं.
वहाँ जो 33 नाम हैं, उनमें 32वें नंबर पर अंखी दास का नाम है. यानी अंखी दास का एक परिचय ये भी है कि वो नरेंद्र मोदी की वेबसाइट और ऐप की कॉन्ट्रिब्यूटर हैं, यानी वो वहाँ लेख लिखती हैं.
अलबत्ता, अप्रैल 2017 से ऐप के साथ जुड़े होने के बावजूद वहाँ उनका एक ही लेख दिखाई देता है जिसका शीर्षक है - प्रधानमंत्री मोदी और शासन की नई कला.
वहाँ उनका परिचय ये लिखा है - "अंखी दास, भारत और दक्षिण एवं मध्य एशिया में फेसबुक के लिए लोक नीति की निदेशिका हैं. उनके पास टेक्नोलॉजी सेक्टर में लोक नीति और रेगुलेटरी एफेयर्स में 17 साल का अनुभव है."
पर यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि अंखी दास मीडिया में लेख लिखती रही हैं. उनका नाम अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के कॉलमनिस्ट लेखकों की सूची में भी है. वो अमरीकी वेबसाइट हफ़िंग्टन पोस्ट के भारतीय एडिशन के लिए भी लिखती रही हैं.
अंखी दास अक्तूबर 2011 से फ़ेसबुक के लिए काम कर रही हैं. वो भारत में कंपनी की पब्लिक पॉलिसी की प्रमुख हैं.
फ़ेसबुक से पहले वो भारत में माइक्रोसॉफ़्ट की पब्लिक पॉलिसी हेड थीं. माइक्रोसॉफ़्ट से वो जनवरी 2004 में जुड़ीं, और लगभग आठ साल काम करके बाद वो फ़ेसबुक में चली गईं.
उन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से 1991-94 के बैच में अंतरराष्ट्रीय संबंध और राजनीति शास्त्र में मास्टर्स की पढ़ाई की है. ग्रेजुएशन की उनकी पढ़ाई कोलकाता के लॉरेटो कॉलेज से पूरी हुई है.
हालाँकि, ये दिलचस्प है कि दुनिया की सबसे कामयाब और प्रभावशाली ताक़तों में गिनी जानेवाली कंपनी के फ़ेसबुक इंडिया पेज पर और ना ही वेबसाइट पर कंपनी के भारत में काम करने वाले अधिकारियों के बारे में कोई जानकारी दी गई है.
अंखी अभी चर्चा में क्यों हैं
ये समझने के लिए पहले अंखी दास के इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख की चर्चा ज़रूरी है. मुंबई हमलों की दसवीं बरसी पर 24 नवंबर 2018 को छपे अंखी दास के इस लेख का शीर्षक था - No Platform For Violence.
इसमें वो कहती हैं कि "फ़ेसबुक संकल्पबद्ध है कि वो ऐसे लोगों को अपना इस्तेमाल नहीं करने देगा जो कट्टरवाद को बढ़ावा देते हैं." इसमें वो आगे लिखती हैं, हमने इस साल ऐसी 1 लाख 40 हज़ार सामग्रियों को हटा लिया है जिनमें आतंकवाद से जुड़ी बातें थीं.
लेख में वो कहती हैं कि "उनके पास ऐसी तकनीक और उपकरण हैं जिनसे अल क़ायदा और उनके सहयोगियों को पहचाना जा सका, इसी वजह से इस्लामिक स्टेट और अल क़ायदा से जुड़ी 99 फीसदी सामग्रियों को पहचाना जाए, उससे पहले ही उन्हें हटा लिया गया".
इस लेख में वो ये भी बताती हैं कि "फ़ेसबुक की अपनी विशेषज्ञों की एक टीम है जिनमें पूर्व सरकारी वकील, क़ानून का पालन करवाने वाले अधिकारी, ऐकेडमिक्स, आतंकवाद-निरोधी रिसर्चर शामिल हैं. साथ ही निगरानी करनेवाले और भी लोग हैं, जो आतंकी गतिविधियों वाले केंद्रों में बोली जाने वाली भाषाएँ समझते हैं".
यानी उनके इस लेख का आशय ये है कि फ़ेसबुक आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों का प्रचार-प्रसार करने वाली सामग्रियों को पकड़ने को लेकर बहुत सक्रिय था और उसने इन पर प्रभावशाली तरीक़े से लगाम लगाई.
अभी जो विवाद चल रहा है उसके केंद्र में यही मुद्दा है - कि फ़ेसबुक पर भारत में कुछ ऐसी सामग्रियाँ आईं हैं जिन्हें नफ़रत फैलाने वाली सामग्री बताया गया, मगर अंखी दास ने उन्हें हटाने का विरोध किया.
क्या हैं आरोप?
अमरीकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल में 14 अगस्त को एक रिपोर्ट छपी जिसमें आरोप लगाया कि दुनिया की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी जो वॉट्सऐप की भी मालिक है, उसने भारत में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सामने हथियार डाल दिए हैं.
अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अंखी दास ने ये जानकारी दबा दी कि फ़ेसबुक ने बीजेपी से जुड़े फ़र्ज़ी पन्नों को डिलीट किया था.
अख़बार ने ये भी दावा किया कि फ़ेसबुक ने अपने मंच से बीजेपी नेताओं के नफ़रत फैलाने वाले भाषणों को रोकने के लिए ये कहते हुए कुछ नहीं किया कि सत्ताधारी दल के सदस्यों को रोकने से भारत में उसके व्यावसायिक हितों को नुक़सान हो सकता है.
रिपोर्ट में तेलंगाना से बीजेपी विधायक टी राजा सिंह की एक पोस्ट का हवाला दिया गया था जिसमें कथित रूप से अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा की वकालत की गई थी.
मामले की जानकारी रखने वाले फ़ेसबुक के मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों से बातचीत के आधार पर लिखी गई इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि फ़ेसबुक के कर्मचारियों ने तय किया था कि पॉलिसी के तहत टी राजा सिंह को बैन कर देना चाहिए, लेकिन अंखी दास ने सत्तारूढ़ बीजेपी के नेताओं पर हेट स्पीच नियम लागू करने का विरोध किया था.
अख़बार ने लिखा - "देश में कंपनी की शीर्ष पब्लिक-पॉलिसी अधिकारी अंखी दास ने नफ़रत फैलाने वाले भाषणों के नियम को टी राजा सिंह और कम-से-कम तीन अन्य हिंदू राष्ट्रवादी व्यक्तियों और समूहों पर लागू करने का विरोध किया जबकि कंपनी के भीतर से लोगों ने इस मुद्दे को ये कहते हुए उठाया था कि इससे हिंसा को बढ़ावा मिलता है."
हालाँकि, विधायक टी राजा सिंह ने बीबीसी तेलुगू संवाददाता दीप्ति बथिनी से कहा कि वो अपने बयानों पर अभी भी क़ायम हैं और उन्हें नहीं लगता कि उनकी भाषा में कोई दिक़्क़त थी. उन्होंने दावा किया कि ये आपत्तियाँ उनकी छवि को ठेस लगाने के लिए की गईं.
टी राजा सिंह ने कहा, "क्यों केवल मुझे ही निशाना बनाया जा रहा है? जब दूसरा पक्ष ऐसी भाषा का इस्तेमाल करता है तो किसी को तो जवाब देना होगा. मैं बस उसी का जवाब दे रहा हूँ".
सियासी मुद्दा
बहरहाल, इस मुद्दे ने अब भारत में राजनीतिक रंग ले लिया है. राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने जहाँ इसे लेकर सत्ताधारी बीजेपी पर हमला बोला है, वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता पार्टी के बचाव में उतर आए हैं.
राहुल गांधी ने रविवार को ट्वीट कर लिखा - "भाजपा-RSS भारत में फेसबुक और व्हाट्सएप का नियंत्रण करती हैं. इस माध्यम से ये झूठी खबरें व नफ़रत फैलाकर वोटरों को फुसलाते हैं. आख़िरकार, अमरीकी मीडिया ने फेसबुक का सच सामने लाया है."
वहीं केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसके जवाब में ये ट्वीट किया, "जो लूज़र ख़ुद अपनी पार्टी में भी लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते वो इस बात का हवाला देते रहते हैं कि पूरी दुनिया को बीजेपी और आरएसएस नियंत्रित करती है."
इस सारे मामले पर फ़ेसबुक ने कहा है कि वो नफ़रत फैलाने वाले भाषणों पर अपनी नीतियों को बिना किसी के राजनीतिक ओहदे या किसी पार्टी से उसके संपर्क को देखे लागू करती है.
फ़ेसबुक के एक प्रवक्ता नेबीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास को बताया - "हम नफ़रत फैलाने वाले भाषणों और सामग्रियों को रोकते हैं और दुनिया भर में अपनी नीतियों को बिना किसी के राजनीतिक ओहदे या पार्टी से उसके संपर्क को देखे लागू करते हैं. हमें पता है कि इस बारे में और प्रयास किए जाने की ज़रूरत है, मगर हम निष्पक्षता और सत्यता को सुनिश्चत करने के लिए हमारी प्रक्रिया को लागू किए जाने की जाँच करने की दिशा में प्रगति कर रहे हैं."(BBCNEWS)