विचार / लेख

सदर्भ-वाल स्ट्रीट जर्नल की स्टोरी
-पुष्य मित्र
इसी साल 16 अप्रैल की बात है। मेरी न्यूज फीड में नजर आ रहे इस हेट स्पीच वाली पोस्ट (जो इस पोस्ट के साथ लगी है) को हटाने के लिए मैंने फेसबुक के कम्युनिटी स्टैंडर वाली टीम से अनुरोध किया था। मैंने उन्हें लिखा था, यह पोस्ट न सिर्फ फेक है, बल्कि एक खास धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने वाला भी है। मुझे लगता है कि फेसबुक पर ऐसी पोस्ट को नहीं रहना चाहिये। मैंने इस फेसबुक गु्रप की भी समीक्षा करने का अनुरोध किया था, यह कहते हुए कि इस पर सिर्फ नफरत भरी सामग्रियां होती हैं। तब मुझे लगता था कि चूंकि हमलोग शिकायत नहीं करते इसलिये फेसबुक पर ऐसे घटिया पोस्ट और पेज की भरमार है। हमें इनके बारे में फेसबुक को बताना चाहिये। फेसबुक एक न्यूट्र्ल संस्था है, वह जरूर सही फैसले लेगी। मगर उस रोज फेसबुक ने मेरा भ्रम दूर कर दिया।
फेसबुक टीम का एक घंटे में इस पोस्ट और पेज की जांच कर मुझे सूचित कर दिया कि इसमें कुछ भी आपत्तिजनक या हमारी कम्यूनिटी स्टैंडर के खिलाफ नहीं है। हम आपका अनुरोध अस्वीकार करते हैं। मुझे तब दुख हुआ। मगर मुझे मालूम नहीं था, असली झटका आने वाला है।
अगले ही घंटे मेरे पास उनका मैसेज आया कि हम लोगों ने आपके फेसबुक पेज की पिछली पांच पोस्ट की समीक्षा की है, वे कम्युनिटी स्टैंडर के खिलाफ हैं। इसलिये हम आपको अगले 24 घंटे के लिए ब्लॉक कर रहे हैं।
मैंने अपने पिछले पांच पोस्टों को पढ़ा। संयोग से वे सभी पांच पोस्ट सूचनात्मक थे, उनमें किसी तरह का कोई विचार या ओपिनियन भी नहीं था। बहुत सोचा, मगर उन पोस्टों में ऐसी कोई बात नजर नहीं आई कि जिससे कोई दिक्कत हो रही हो। आखिरकार इस बात को मानना पड़ा कि इस हिन्दूवादी पेज की रिपोर्ट करना फेसबुक की टीम को पसंद नहीं आया। इसी के बदले में उसने मुझ पर इस तरह की कार्रवाई की है। तभी मतलब साफ हो गया था कि उस टीम में कोई इस विचार का हितैषी बैठा है।
दुख बहुत हुआ। कई मित्रों को व्यक्तिगत तौर पर बताया भी। उस रोज दिल इस कदर टूटा कि लगा, फेसबुक को ही छोड़ दें। फेसबुक की इंटरनेशनल सिक्योरिटी टीम को मेल से शिकायत भी की। मुकदमा करने का भी मन बना लिया। एक वैकल्पिक फेसबुक खाता भी खोल लिया। अपनी वाल के कई महत्वपूर्ण पोस्ट हटा भी ली।
मगर फिर लगा कि इस प्लेटफॉर्म पर पिछले 14 साल से मेहनत की है। उसे ऐसे नहीं छोडऩा। यहीं रह कर लडऩा है। सो लगा हूं।
मगर सच यही है कि मुझे उसी रोज वह सब अनुभव हो गया था, जो कल एक अमेरिकी अखबार में छपा है। तभी मैं समझ गया था कि अब फेसबुक भी भक्तिमार्ग पर है। फिर उसके भारत में रिटेल सेक्टर में निवेश करने की खबर आई। समझ और साफ हुई।
एक दिन देखा कि बहुत शांत भाव से गांधी और विनोबा के बारे में लिखने वाले साथी अव्यक्त जी के साथ भी यही हुआ। फिर कोई संदेह नहीं रहा।
अब यह सच्चाई है कि जिस तरह अपने देश की मीडिया सरकार के कब्जे में है, फेसबुक भी अब अपने हित के लिए सरकार को खुश करने में जुटा है। हमें इन्हीं स्थितियों में अपनी बात को कहते रहना है, अपना हस्तक्षेप करते रहना है। देर सवर फेसबुक की सच्चाईयां इसी तरह सामने आती रहेगी।
और हां, अभी भी मेरा यह अकाउंट फेसबुक द्वारा रिस्ट्रिक्टेड है। मुझे चेतावनी दी गयी है कि अगली दफा मेरा अकाउंट हमेशा के लिए ब्लॉक किया जा सकता है।