विचार / लेख

बिहार का बहुत बीमार स्वास्थ्य विभाग
24-Jul-2020 7:49 PM
बिहार का बहुत बीमार स्वास्थ्य विभाग

पुष्य मित्र

लगातार हुई फजीहत के बाद बिहार सरकार सक्रिय हुई है। आनन-फानन में दो तीन फैसले लिए गए हैं।

पहला यह कि अब रिपोर्ट 24 घंटे में मिल जाएगी। अब तक अमूमन 4 से 8 दिन लग जाते थे। कई मित्रों ने तो बिना रिपोर्ट के ही खुद को सुरक्षित मान लिया है।

दूसरा यह कि एनएमसीएच में अब मृत मरीज के शव को 3 घंटे में बेड से हटा लिया जाएगा। वहां अब तक दो फो दिन मरीज पड़े रहते थे। हैरत की बात है कि क्या एनएमसीएच के पास मोरचुरी नहीं है?

कुछ बेड बढ़ाने की बात चल रही है।

पता नहीं इन फैसलों को लागू होने में कितना वक्त लग जाये। पर यह भी सच है कि इन फैसलों के लागू हो जाने से भी मसला इतनी आसानी से नियंत्रित नहीं होने वाला।

वजह यह है कि बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियाद ही कमजोर हो गई है। डॉक्टरों और नर्सों के साठ से सत्तर फीसदी पद खाली हैं। सदर अस्पतालों और प्रखंड, अनुमंडल स्तरीय अस्पतालों को मरीजों के इलाज करने का अभ्यास छूट गया है। कई दशकों से पूरा सिस्टम कोलैप्स है। सब कुछ प्राइवेट के भरोसे छोड़ दिया गया था। अब अचानक इन पर भार पड़ गया है।

पटना से लेकर पंचायतों तक काम करने वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की सरकारी सेवा में काम करने की आदत छूट गई है। डॉक्टर पहले सिर्फ हाजिरी लगाने पीएचसी पहुंचते थे फिर अपने क्लीनिक भागते थे। हेल्थ वर्कर बैठकर टाइम पास करते थे।

फरवरी से पहले तक स्वास्थ्य विभाग का काम सिर्फ टीकाकरण करना और आंकड़ेबाजी करना रह गया था, अचानक उसे आपदा से जूझना पड़ रहा है। इस सुस्त और जंग लगी मशीनरी को चालू करना आसान नहीं है।

नीतीश सरकार का भी फोकस कभी शिक्षा और स्वास्थ्य की तरफ नहीं रहा। अस्पतालों को दुरुस्त करने के बदले स्मारकों के निर्माण पर पैसे खर्च किये गए। इससे पैसे बचे तो हर शहर में फ्लाई ओवर बनाए गए। जब इन मुद्दों पर काम करने कहा गया तो सरकार पैसों का रोना रोती रही। अब भुगतना पड़ रहा है।

यह सब एक झटके में नहीं होगा। मंगल पांडे जैसे मंत्री और उमेश कुमावत जैसे प्रशासक के बस की बात नहीं। इसके लिये डायनेमिक प्रशासक चाहिए। जो फ्रंट से लीड करे। अथाह काम है। समझ नहीं आता यह व्यवस्था कैसे सुधरेगी।


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