विचार / लेख

‘सरल होना ही सबसे कठिन है’
14-Oct-2025 10:27 PM
‘सरल होना ही सबसे कठिन है’

-संजीव शुक्ला

बचपन में एक कहानी सुनी थी ‘एक राजा अपने दरबार के चित्रकार से कहता है कि मुझे एक ऐसा चित्र बना कर दो जिसमें भगवान का स्वरूप दिखाई दे चित्रकार वर्षों भटकता है, सफलता नहीं मिलती निराश हो जाता है तभी उसकी नजऱ एक नन्हे से बच्चे पर जाती हैं बहुत ही भोला भाला दुनिया के छल प्रपंचों से दूर दिव्य स्वरूप । चित्रकार उसका चित्र बना कर राजा को देता है राजा बहुत ख़ुश हुआ उसने कहा तुमने तो वाक़ई भगवान के स्वरूप को अपने चित्र में उकेर दिया राजा ने उसे ढेर सारा इनाम दिया। दशकों बाद राजा पुन: उस चित्रकार को बुलाता है और उससे कहता है कि मुझे एक ऐसा चित्र चाहिए जिसमें शैतान का स्वरूप दिखाई दे चित्रकार पुन: खोज में जुट जाता है बहुत प्रयास के बाद उसे एक बुजुर्ग व्यक्ति दिखता है जिसका चेहरा क्रूरता, कुटिलता, लोभ, वासना से भरा हुआ था पूरा स्वरूप शैतान सा दिखाई दे रहा था। चित्रकार ने उससे अनुमति लेकर उसका चित्र बनाया। बिल्कुल शैतान का चित्र नजर आ रहा था। उस व्यक्ति ने चित्रकार से पूछा तुम मेरा चित्र क्यों बना रहे हो चित्रकार ने कहा राजा ने एक शैतान का चित्र बनाने कहा है तुम्हारे चेहरे में शैतान का स्वरूप दिखा इसलिए राजा को देने के लिए बनाया हूँ। यह सुनकर वह व्यक्ति रोने लगा चित्रकार हैरान हो गया उसने पूछा रो क्यों रहे हो? व्यक्ति ने कहा तुम्हें याद है कि दशकों पहले तुमने भगवान के स्वरूप को दिखाने के लिए एक बच्चे का चित्र बनाया था , वह बच्चा मैं ही था। चित्रकार हैरान होकर उस व्यक्ति को देखता रह गया। ’

वस्तुत: हम जैसा आचरण करते हैं हममें जो भी गुण अवगुण होते हैं वह हमारे रूप में परिलक्षित होते हैं । बच्चा जिसका चित्र चित्रकार ने बनाया वो तमाम सांसारिक विकारों और बुराइयों से मुक्त था सरल और सहज था इसलिए उसके चेहरे पर भगवान का स्वरूप नजर आ रहा था और जब वही बच्चा बड़ा हुआ तो उसमें तमाम विकार आ गए और यही विकार उसके चेहरे पर दिखने लगे। उसके जीवन से सरलता और सहजता लुप्त हो गई इसलिए उसका स्वरूप शैतान सा दिखने लगा। सरलता और सहजता सबसे बड़ा गुण है यह बहुत मुश्किल से मिलता है , इसमें गजब का आकर्षण होता है। इसीलिए कहा जाता है कि ‘सरल होना सबसे कठिन है। ’

सरल और सहज होना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि यह आज के सामाजिक मापदंडों के विपरीत है। आज समाज भौतिकता और प्रतिस्पर्धा से भरा है। हम सामाजिक दिखावे, इच्छाओं की पूर्ति और अहंकार के संवरण में इतने व्यस्त हैं कि हमारे जीवन से सरलता और सहजता खत्म ही हो गई है।

सरल जीवन का अर्थ केवल भौतिक चीजों से परहेज नहीं है बल्कि उससे आगे यह मन के बोझ को हल्का रखना , इच्छा और आवश्यकता के अंतर को समझना और जीवन को संतुलित तरीके से जीना है । सरल जीवन ना केवल मानसिक शांति देता है बल्कि संबंधों में गुणात्मक सुधार लाते हुए जीवन की व्याकुलता को भी कम करता है।

सरल होने के लिए हमे अपनी जरूरतों और इच्छाओं को नियंत्रित करते हुए कृतज्ञता का अभ्यास करना होगा। जीवन में क्या नहीं मिला इसकी शिकायत छोड़ कर जो कुछ भी मिला है जिसने भी दिया है उसके प्रति कृतज्ञ होना होगा, दूसरों से अपनी तुलना नहीं करने का, छल कपट से दूर रहने का अभ्यास करना होगा।

हम सभी इस संसार में उस अबोध बालक की तरह ही आते हैं जिसमे ईश्वर का स्वरूप दिखाई देता है किंतु अपने कर्मों और आचरण से हम स्वयं को धीरे-धीरे इस रूप में बदल लेते हैं कि हममें शैतान का स्वरूप आ जाता है। आइये अभ्यास करें, सरल और सहज होने का। ईश्वर द्वारा हम जिस रूप में इस संसार में भेजे गए थे उसी स्वरूप के निकट रहने का।


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