विचार / लेख
-भरत वर्मा
‘सो जा बेटे, रात के 12 बज रहे हैं, कब तक मोबाइल फोन देखते रहोगे?’
‘बस मम्मी, एक फिल्म खत्म कर रहा हूं, दिन में वाई-फाई नहीं मिलता ना!’
‘इस वाई-फाई का कुछ करना होगा!’
नोएडा में रहने वालीं सरिता और आठवीं क्लास में पढऩे वाले उनके बेटे अक्षर के बीच ये बातचीत एक रूटीन की तरह है। हफ़्ते में तीन-चार रातों को यह हो ही जाती है।
कुछ लोग कहते हैं कि वाई-फाई का मतलब ‘वायरलेस फिडेलिटी’ है, जैसे हाई-फाई का मतलब ‘हाई फिडेलिटी’ होता है। लेकिन इंडस्ट्री संगठन वाई-फाई एलायंस का कहना है कि वाई-फाई का कोई पूरा नाम नहीं है।
सीधी भाषा में कहें तो वाई-फाई वह तकनीक है, जो हमें तारों और कनेक्टरों के जाल में फंसे बिना इंटरनेट से जोड़ती है। इसके जरिए हम इंटरनेट से जानकारी हासिल कर सकते हैं और आपस में संपर्क कर सकते हैं।
वाई-फाई ऑन रहने से सेहत पर कुछ असर होता है?
वाई-फ़ाई कंप्यूटर और स्मार्टफ़ोन जैसे डिवाइस को बिना केबल के नेटवर्क से कनेक्ट कर देता है। ये एक वायरलेस राउटर का इस्तेमाल कर वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्क (डब्ल्यूएलएएन) बनाता है।
मोबाइल फोन की लत से हम सभी वाकिफ़ हैं और अब वाई-फाई एक नई लत बनकर उभर रहा है। लेकिन इसका एक पहलू ऐसा भी है, जिसकी चर्चा कम होती थी, लेकिन अब ज़ोर पकडऩे लगी है।
अगर कोई देर रात तक मोबाइल फ़ोन, टैबलेट, कंप्यूटर या लैपटॉप पर मनोरंजन या काम की वजह से एक्टिव है तो इसकी संभावना बढ़ जाती है कि वाई-फ़ाई राउटर भी रात में ऑन ही रह जाए।
तो क्या वाई-फ़ाई ऑन रखने से हमारी सेहत पर कुछ असर होता है या उसे बंद करने से हेल्थ के लिए कुछ फायदे हो सकते हैं?
इस सवाल को और पैना करें तो क्या वाई-फ़ाई रात में ऑन रह जाना, इंसानी शरीर के न्यूरोलॉजिकल पक्षों या दिमाग़ को नुक़सान पहुंचा सकता है?
दिल्ली-एनसीआर की यशोदा मेडिसिटी में कंसल्टेंट (मिनीमली इनवेसिव न्यूरो सर्जरी) डॉक्टर दिव्य ज्योति से जब यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सीधे तौर पर ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि साइंटिफिक़ तौर पर अभी तक ऐसा कुछ साबित नहीं हुआ है।
डॉक्टर ने आगे कहा कि तार्किक रूप से देखें तो ऐसा सोचा जा सकता है क्योंकि ब्रेन के इम्पलसेस, इलेक्ट्रिकल इम्पलसेस होते हैं, और वाई-फाई या दूसरे अप्लायंसेज जो होते हैं, वो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड (ईएमएफ) पर निर्भर करते हैं।
‘तो मुमकिन है कि ये दिमाग के इम्पलसेस के साथ दख़लअंदाजी करें, लेकिन अभी तक हमारे पास ये सोचने का कोई वैज्ञानिक कारण, स्पष्टीकरण या निष्कर्ष नहीं है। लेकिन तर्क तो यही कहता है कि हमें इससे जितना मुमकिन हो बचना चाहिए।’
ये ब्रेन इम्पलसेस होते क्या हैं?
ब्रेन इम्पलसेस वो इलेक्ट्रोकेमिकल सिग्नल होते हैं, जिसकी मदद से न्यूरॉन कम्यूनिकेट करते हैं, और सूचना को प्रोसेस करते हैं। इन नर्व इम्पल्स को एक्शन पोटेंशियल भी कहा जाता है।
जो नर्व इन इम्पल्स को दिमाग तक ले जाती है, वो है सेंसरी नर्व। यह दिमाग तक मैसेज लेकर जाती है, तभी हम और आप स्पर्श, स्वाद, गंध महसूस कर पाते हैं, साथ ही देख पाते हैं।
वाई-फाई राउटर का रात और दिन में असर
क्या वाई-फाई राउटर से रात में बचना चाहिए और दिन के समय क्यों नहीं?
इस पर डॉक्टर दिव्य ज्योति ने बीबीसी से कहा, ‘दिन और रात में शरीर और उसकी गतिविधियों में अंतर होता है। रात के समय शरीर की वेव्स अलग तरह की होती हैं, जो स्लीप वेव्स होती हैं। रात को सबसे ज़रूरी है अच्छी नींद मिलना और वो स्लीप साइकिल से तय होता है।’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए कहा जाता है कि रात में इसे बंद कर देना चाहिए ताकि दिमाग को आराम मिले, साउंड स्लीप मिले, पूरी तरह रेस्ट मिले। लेकिन दिन के समय हमें काम करना होता है, तो नींद में दखल नहीं होती, लेकिन लॉजिक यही है कि ये एक्सपोजऱ जितना कम हो, उतना अच्छा।"
लेकिन क्या रात में वाई-फ़ाई से ही बचने की सलाह दी जाती है। मोबाइल फ़ोन का क्या, जो हम अक्सर अपने सिरहाने रखकर सोते हैं?
इस पर डॉक्टर का कहना है कि मोबाइल फोन भी माइक्रोवेव पर आधारित होते हैं। ये भी एक तरह की रेडिएशन पैदा करते हैं, बस इनकी फ्रीक्वेंसी अलग होती है। तर्क के तौर पर देखें तो ये भी दख़ल दे सकती हैं। यहाँ तक कि अगर आप मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल न भी करें तो भी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स मौजूद रहती हैं।
डॉक्टर दिव्य ज्योति ने कहा, ‘बैकग्राउंड रेडिएशन की बात करें तो उसकी तुलना में मोबाइल फोन और वाई-फाई से निकलने वाली रेडिएशन काफी कम होती हैं। क्या इन दोनों से एक्सपोजर बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है तो जवाब है नहीं। इसकी तुलना में बैकग्राउंड रेडिएशन को लेकर हमारा एक्सपोजर कहीं ज़्यादा है।’
जानकारों का कहना है कि हमारे घर-दफ्तर में हर तरह के एप्लायंसेज से रेडिएशन निकलती है। टीवी, फ्रिज से लेकर एसी तक। कोई भी इलेक्ट्रिक अप्लायंस हो, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स उससे जुड़े हैं ही।
कुछ विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि अगर ईएमएफ़ के ओवरएक्सपोजऱ का डर है तो उस कमरे में राउटर लगाने से बचना चाहिए, जिसमें आप सोते हों। या फिर ऐसा मुमकिन ना हो तो सोने के पलंग से राउटर को ठीक-ठाक दूरी पर रख सकते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
मेडिकल लाइन के अलावा टेक्नोलॉजी से ताल्लुक रखने वाले एक्सपर्ट से भी इस विषय पर हमने चर्चा की।
उनका कहना है कि इस बारे में सटीक रूप से कोई जानकारी सामने नहीं है, जिसके कारण कन्फ्यूजन ज़्यादा है। ऐसे में स्टडी होनी चाहिए ताकि ये पता चल सके कि असल में इन वेव्स या ईएमएफ से कितना नुक़सान हो सकता है, और कैसे बचा जाना है।
टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट मोहम्मद फै़सल अली का कहना है कि ऐसी कोई स्टडी नहीं है, जो ये साबित कर सके कि हमें रात को वाई-फ़ाई बंद करना चाहिए, ताकि हमें अच्छी नींद आ सके।
‘या फिर वाई-फ़ाई ऑन रखने से ये हमारे न्यूरोलॉजिकल या किसी दूसरे सिस्टम को इम्पैक्ट करता है। लेकिन ये तो कहा ही जा सकता है कि किसी भी तरह के रेडियो वेव को लेकर ओवरएक्सपोजऱ लंबी मियाद में असर तो डाल ही सकता है। ये जेनेरिक बात है।’
अली ने बीबीसी से कहा, ‘साल 1995-96 से मोबाइल की शुरुआत मान लें तो इसका कुल सफऱ तीस साल का है और पिछले दस साल में भारत में मोबाइल और वाई-फ़ाई की ग्रोथ कहीं ज़्यादा हुई है।’
‘तो मुमकिन है कि आगे चलकर कोई स्टडी हो, जिसमें निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके कि इन चीज़ों से ये-ये नुकसान हो सकते हैं, इसलिए लिमिट में ही इस्तेमाल करने चाहिए। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं है।’
मोबाइल में अपना भी इंटरनेट होता है, क्या ये लॉजिक इन पर भी लागू होता है?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ील्ड हों या रेडियो वेव हों, ऐसी फीलिंग है कि ओवरएक्सपोजऱ ठीक नहीं होता। अब हमारे पास बेहतर आंकड़े हैं, ऐसे में अब इसे लेकर स्टडी जरूर होनी चाहिए। जितनी मेरी जानकारी और समझ है, इनसे इतना भी नुकसान नहीं होता, जितना कई बार डर जताया जाता है।’
जब जानकारों से ये पूछा गया कि रेडिएशन, वेव्स या ईएमएफ़ का शरीर पर क्या-क्या बुरा असर हो सकता है?
डॉक्टर दिव्य ज्योति ने कहा, ‘अगर सैद्धांतिक रूप से देखें तो ये साउंड स्लीप में दखल दे सकता है और अगर ऐसा होता है तो दिन के समय हमारी एफिशिएंसी पर असर होगा। कॉनसेंट्रेशन, फोकस लेवल घटेगा। इसके अलावा रेडिएशन को शरीर में ट्यूमर बनने और बढऩे से भी जोड़ा जाता है।’
वाई-फाई के साथ-साथ मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन को लेकर भी चर्चा होती रहती है। भारत में कई सारे मोबाइल फोन अब 5जी नेटवर्क पर दौड़ते हैं। कऱीब छह साल पहले जब ये यूरोप में आया था तो नई टेक्नोलॉजी से जुड़े हेल्थ रिस्क से जुड़े सवाल उठे थे।’ (bbc.com/hindi)


