विचार / लेख
-अशोक पांडेय
गरीब घर में न जन्मी होती तो 23 साल की एडा ब्लैकजैक को उस अभागे अभियान का हिस्सा न बनना पड़ता। अलास्का के भीषण, बर्फीले इलाके में बसने वाले आदिवासी समुदाय में जन्मी एडा के जीवन में बचपन से ही दुर्भाग्य की छाया पड़ गई-8 की थी तो पिता की असमय मौत हो गई, माँ के पास पैसा न था तो उसे और उसकी बहन को एक मिशनरी अनाथालय में भेजना पड़ा। घर से दूर चले जाने की इस विवशता का नतीज़ा यह हुआ कि वह उन चीजों को नहीं सीख सकी जिन्हें उसके समुदाय में जीने के लिए सबसे ज़रूरी माना जाता था-उसे न शिकार करना सिखाया गया, न जंगली जानवरों के पैरों के निशान पहचानना, न अकेली रात में तारों को देखकर रास्ता पहचानना। इसके उलट उसका हाल यह था कि ध्रुवीय इलाकों में मिलने वाले सफेद भालुओं का जिक्र तक चलने से उसकी घिग्घी बंध जाया करती। अनाथालय में उसे अंग्रेज़ी लिखना-बोलना, अंग्रेजों वाला खाना पकाना और कपड़े सीना सिखाया गया।
14 की उम्र में उसने एक शिकारी से शादी की और तीन बच्चे पैदा किये जिनमें से दो शैशव में ही गुजऱ गए। जो बच्चा बच रहा था, उसे डॉक्टर ने टीबी बता रखी थी जिसका इलाज खासा महँगा होता। एक दिन उसका क्रूर पति उसे और उसके बेटे को अकेला छोड़ गया। यह एक अलग कहानी है कि वह पांच साल के बेटे के साथ किस तरह 64 किलोमीटर का मुश्किल सफर पैदल तय करने के बाद अपनी गरीब माँ के घर पहुँची जिसके पास खुद के खाने तक को पर्याप्त भोजन न था। कुछ ही दिनों बाद बेटा अनाथालय में रह रहा था और एडा लोगों के घरों में झाड़ू-बर्तन करने के अलावा कपड़े सीने का काम कर रही थी। उसे उम्मीद थी कि अपने प्यारे बेटे के इलाज के लिए ज़रूरी रकम वह जल्द जुटा लेगी। छोटी से जगह थी, सारे लोग उस अभागी युवा औरत से सहानुभूति रखा करते।
ऐसे में एक दिन एडा को शहर के पुलिस मुखिया ने एक अभियान के बारे में बताया। कनाडा से आये कुछ साहसी लोगों का समूह एक मुश्किल आर्कटिक अभियान पर निकल रहा था और उन्हें एक ऐसे सदस्य की जरूरत थी जिसे खाना पकाने के अलावा कपड़े सीना भी आता हो। महीने के पचास डॉलर मिलने थे-उस जमाने के लिहाज़ से यह बहुत बड़ी रकम थी। एडा को बताया गया अभियान में उसके समुदाय के कुछ और लोग भी होंगे। बच्चे के इलाज के लिए पैसा इकठ्ठा कर रही एक औरत के लिए इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता था सो उसने हां कह दिया।
आखिरकार 21 सितम्बर, 1921 को जब अभियान का जहाज़ किनारे से निकला तो उसमें कुल पांच लोग थे-एडा को छोड़ चारों गोरी चमड़ी वाले अँगरेज पुरुष थे। ऐन समय पर स्थानीय सदस्यों ने अपना इरादा बदल लिया था। हाँ, समूह में एक छठा सदस्य भी थी-विक नाम की एक बिल्ली।
अभियान के कप्तान ने एडा से एक साल के लिए जिस अनुबंध पर दस्तखत कराये थे, उसके मुताबिक़ उसे उसकी तनख्वाह के अलावा मुफ्त रहना-खाना और मुश्किल काम न करवाए जाने जैसे बातें शामिल थीं, लेकिन एक बार जहाज अपनी मंजिल यानी रेंगल आइलैंड पहुंचा, तब जाकर एडा की समझ में आया कि अगले कुछ महीने उसकी जिंदगी के सबसे मुश्किल साबित होने वाले हैं। चूंकि बेटे का इलाज करवा सकना उसका पहला मकसद था, उसने दिल कड़ा किया और काम में जुट गई।
दरअसल रेंगल आइलैंड एक वीरान, बर्फीला द्वीप था और अभियान का मकसद था उस द्वीप पर अधिकार स्थापित कर उसे ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बनाना। कोई ढाई हजार वर्ग किलोमीटर तक फैली बर्फ के बीच वे कुल पांच जन थे।
अभियान के शुरुआती महीने ठीक ठाक निकले। पुरुष शिकार करते, स्लेज कुत्तों की देखभाल करते और मौसम संबंधी उपकरण लगात, एडा उनके जैकेट, हुड और अन्य कपड़ों की मरम्मत किया करती या खाना पकाती। भोजन के लिए लोमडिय़ों और सील जैसे प्राणियों का शिकार किया जाता।
धीरे-धीरे सर्दियां आईं, शिकार मिलना कम हो गया और खाने का भण्डार खत्म होने लगा। सर्दियाँ अपने चरम पर होतीं तो तापमान शून्य से पचास डिग्री नीचे पहुँच जाता। लोरने नाइट नाम का ग्रुप का एक सदस्य बहुत बीमार पड़ गया। मार्च के आते-आते जब भोजन तकरीबन समाप्त हो गया तो नाइट और एडा को वहीं छोडक़र बाकी तीन सदस्य बर्फ पर पैदल चलते हुए साइबेरिया की तरफ निकल गए। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही रसद वगैरह लेकर लौटेंगे। वे कभी नहीं लौटे।
एडा के पास एक डायरी थी जिस पर उसने इसके आगे के अपने संघर्ष को पेंसिल से दर्ज किया। गोरी चमड़ी का होने के कारण लोरने नाईट की हेकड़ी बीमार होने के बाद भी कम नहीं हुई।
छह महीनों तक एडा नाइट की देखभाल करती रहीं-कभी नर्स, कभी डॉक्टर, कभी साथी, तो कभी शिकारी और जंगल की जानकार के रूप में। इसका अहसान मानने के बजाय नाइट ने एडा को अपने गुस्से और असहायता का शिकार बनाया। वह बिस्तर पर लेटा रहता और ताने देता कि उसकी ठीक से देखभाल नहीं की जा रही। उसने यहाँ तक कहा कि एडा का पति सही था जिसने उसे पीटा और छोड़ दिया और यह भी कि कोई आश्चर्य नहीं कि उसके दो बच्चे उसकी अक्षमता के कारण मर गए। वह बार-बार कहता था कि एडा उसे जानबूझकर भूखा रखकर मार डालना चाहती है।
यह सब उस समय कहा गया जब एडा खुद शिकार करती थी और मांस का सबसे अच्छा हिस्सा नाइट को देती थी। उसने नाइट को बोरियों के बिस्तर पर लिटाया, जिन्हें वह लगातार बदलती रहती थी ताकि उसके शरीर पर घाव न हो जाएं। वह उसके पैरों पर रेत की गर्म थैलियाँ भी रखती ताकि ठंड से वे गल न जाएँ। अप्रैल में महीने की उसकी डायरी की प्रविष्टियाँ बताती हैं कि उन दिनों उसकी आँखों में खतरनाक सूजन आ गयी थी जिसके बावजूद वह नाइट की सेवा करती रही।
अपनी डायरी में एडा ने लिखा-
‘वह एक बार भी नहीं सोचता कि एक औरत के लिए चार मर्दों का काम करना कितना कठिन है-लकड़ी काटना, खाने का इंतज़ाम करना, उसकी खाट पर सेवा करना और उसके मल-मूत्र की सफाई करना’
23 जून 1923 को नाइट मर गया। अब सिर्फ एडा और बिल्ली बच रहे। अगले तीन माह एडा ने जीवन के तमाम नए सबक खुद सीखे-हिंसक भालुओं से खुद को और बिल्ली को बचाना, नाव की मरम्मत करना, बंदूक चलाना और अपना उपचार करना और न जाने क्या-क्या। चाहे कुछ भी हो जाए, उसे मरना नहीं था। उसे अपने बेटे का इलाज कराना था और जिंदा रहना था।
आखिरकार 19 अगस्त 1923 को एक रेस्क्यू टीम ने उसे खोजा और बचा कर वापस उसके घर ले आई।इस दौरान एडा ब्लैकजैक ने जो पैसे बचाए थे उनकी मदद से वह अपने बेटे को टीबी के इलाज के लिए सिएटल, वॉशिंगटन ले गई। बाद में उसने दूसरा विवाह किया और एक और बेटे को जन्म दिया। आखिरकार वह वापस आर्कटिक लौटी और 85 वर्ष की उम्र में मर जाने तक वहीं रही। कहीं से एडा ब्लैकजैक की डायरी मिल जाए तो पहली फुर्सत में पढ़ डालिए। जि़ंदगी से शिकायत करना भूल जाएँगे।


